...जमीन अता की है शहरयार साब ने, जिसे आसमान की बुलंदी तक ले जाने में मशहूर संगीतकार खैय्याम साब और स्वर-साम्राग्यी आशा भोंसले की अहम भूमिका रही। ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दयार है। इसी जमीन पर अपनी एक गज़ल पेश है
खबर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चाँद है, सितारों में खुमार है
मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस खबर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है
ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
सुलगती ख्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
...और आखिरी में चचा ग़ालिब से क्षमा-याचना सहित*
तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
खलिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है
( त्रैमासिक पत्रिका "नयी ग़ज़ल" के अक्टूबर-दिसंबर 09 वाले अंक में प्रकाशित)
* कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को
वो खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
* कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को
वो खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
सुंदर रचना है भाई।
ReplyDelete"भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
ReplyDeleteनसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है"
वाह! इस शेर की अलग सी संवेदना और अनोखी बुनावट से आनन्द आया । धन्यवाद ।
भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
ReplyDeleteनसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
गौतम भाई, वैसे तो इसे सतपाल जी के यहां पढ़ चुका था पर यह्हां पढ़ना भी अच्छा लगा। मुश्किल बहर पर इतना सुंदर लिखना....वाह! वाह!....
और अंत में थोड़ा सा कंफ़्युउजन है बहर के नाम पर ...मुझे लगता है हज़ज़ मुसमन मकबूज है। वाफ़िर का वज़्न शायद १२ ११२ होता है। गुरूदेव स्थिति को स्पष्ट करें।
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
GURU BHAEE KO MERA NAMASKAAR,
IS SHE'R KO JIS TARAH SE AAP ISKE JAMINI RISHTE TAK GAYE HAI WO KAHANE LAAYEK NAHI HAI BAS MAIN SOCH HI RAHAA HUN KE KITNE UMDAA KHAYAALAAT RAKHTE HAI AAP...AUR KIS TARAH SE JAMINI BAAT KO AATMSAAT KAR RAKHAA HAI AAPNE...
AAPKE YAHAAN FIR SE PADHNAA BAHOT HI SUKHAD ANUBHUTI HAI IS GAZAL KO...
AAPKA
ARSH
बढ़िया ग़ज़ल है भाई... सतपाल जी के ब्लाग पर भी पढ़ी थी. फिर से अच्छी लगी.
ReplyDelete'ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है '
वाह! बहुत खूब!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आप ने गौतम जी.
सभी शेर अच्छे लगे.
bhai maza aa gaya !!
ReplyDeleteसुन्दर ..बहुत अच्छी रचना (वैसे मुझे शेरो -शायरी का ज्ञान बहुत कम है )
ReplyDeleteगज़ब लिखा है आपने!
ReplyDeleteवो उलझनों मे खड़ा है कि किसका क्या उधार है!
वाह ,ज़िंदगी का इससे बड़ा सच और क्या हो सकता है।
गज़ब लिखा है आपने!
ReplyDeleteवो उलझनों मे खड़ा है कि किसका क्या उधार है!
वाह ,ज़िंदगी का इससे बड़ा सच और क्या हो सकता है।
Very good flow, great rhythm Gautam ji. Is baar toh maza aa gaya! Good Ghazal; liked these most !! -
ReplyDeleteये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
सुलगती ख्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
God bless
RC
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
गौतम भाई आपके इस शेर पे मेरी सारी शायरी कुर्बान...आहा हा हा...आनंद ला दिया भाई...बहुत खूब...यूँ ही लिखते रहो...हाँ एक शेर और जो मुझे अब इस उम्र में खूब मजा दे गया...
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
ये शेर लिखना तो मुझे चाहिए था लेकिन आपने कैसे अनुभव किया ? ये शोध का विषय है मेरे लिए.
नीरज
मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस खबर पे रोऊँ मैं
ReplyDeleteकि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है
bahut sunder rachna...
isse parichay karvane ke liye abhaar...
meet
खबर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
ReplyDeleteनशे में तब से चाँद है, सितारों में खुमार है
वाह जी वाह ....कौन है वो....??
मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस खबर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है
बहुत खूब.......!!
ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
ये तो लाजवाब कर गया हजूर ....!!
भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
एक बात पूछूं....कहाँ से और कैसे लिख लेते हैं इतने बढ़िया के दाद देके भी दिल नहीं भरता .....आप भविष्य के ग़ालिब तो नहीं ....???
[ पढ़ता हूँ, तो लगता है जैसे मन आपका कहीं और भी कुछ कहना चाह रहा है है...
तो अब आप मन की बातें भी पढने लगे ....??? जाइये हम नहीं बताते .... आप कुछ भी कयास लगाइए ]
गौतम जी
ReplyDeleteसतपाल जी के ब्लॉग पर भी ये धूम मचा चुकी है ............हर शेर खिला खिला सा है....
ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
ये तो इश्क का खुमार है...गौतम जी ......... इन्तहा है इश्क की ......
सुलगती ख्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है
वाह....क्या बात कही है.........तार तार दिल को क्या छेड़ना..........वाकई प्रेम की धूनी तो प्रेम भरे दिल में ही जगानी चाहिए
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
अभी तो आप जवान हैं.......दिल में उमंग है गौतम जी............प्यार करने वाले तो मरते दम तक जवान रहते हैं........पर शेर लाजवाब कहा है.........सारी ग़ज़ल ही लाजवाब है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
बहुत बढ़िया .बेहद पसंद आई यह शुक्रिया
खबर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
ReplyDeleteनशे में तब से चाँद है, सितारों में खुमार है
....
माशाअल्लाह ...
bahut khuub gautam..
ReplyDeletebahut khoob goutamji,
ReplyDeleteभरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
ese pryog bahut kam padhhne me aaye,, wah aapki baat hi kuchh aour he/
वाह !! वाह !! वाह !! लाजवाब !!!
ReplyDeleteआनंद आ गया.......प्रशंशा को शब्द नहीं मेरे पास....क्या कहूँ....बहुत ही उम्दा ग़ज़ल....
हर शेर पर दादों की झड़ी लग गयी अपने आप......
"...........इस खबर पे रोऊँ मैं
ReplyDeleteकि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार"
अरे इस पा रोइएगा क्यों भाई. आंय. ये तो बड़े फख्र की बात है. न हो तो निपटवा दीजिए लगे हाथ दो-चार नाशुक्रे सालों को बहुत चांय-चांय करते हों. :)
gautam ji , ye gazal behatareen hai, ismen do rai ho sakti hain kya??????????????????
ReplyDeletenahin na..... main bhi yahi kah raha hun, behatareen/beshkeemti , badhai sweekaren.
बहुत अच्छी ग़ज़ल है गौतम । कई जगहों पर ओरिजनल को टक्कर दी है । कल श्री आलोक श्रीवास्तव जी से बात हो रही थी उनको मैंने तुम्हारा बताया था कि नये हिंदी के ग़ज़लकारों में गौतम राजरिशी का नाम सबसे ऊपर है ।
ReplyDeleteबहुत खूब -क्या कहने ! तितिलियों के रंग अब शोख क्यूं नहीं लगते यह बात समझ में अब जाकर आयी !
ReplyDeleteवाह -वाह क्या लिखते हो आप ,लगता नहीं था की वर्दी के अंदर शायर भी रह सकता
ReplyDeleteले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
wah wah.....
ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
ReplyDeleteकि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है
गौतम जी बहुत सुन्दर गजल कही हम तो अभी ऐसा लिखने के बारे में सोंच भी नहीं सकते
वीनस केसरी
भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
ReplyDeleteनसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
वाह ! वाह !!
रिवायती असर भी है , कहन भी शानदार है
जदीद सोच की भी तर्जुमानी बरकरार है
सभी ने राए दी यही, मेरा भी ये विचार है
ग़ज़ल बड़ी haseen है,अज़ीम शाहकार है
मुबारकबाद . . . .
---मुफलिस---
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
सुभान अल्लाह....पहाड़ की उस छोटी पे भी....मैदान की भूख ओर मौसम का अहसास ....शानदार सोचते हो....ओर बेमिसाल लिखते हो.....
आपकी प्रतिभा का जवाब नहीं
ReplyDeleteजितना दिमाग लगाया है उससे भी ज्यादा दिल धड़क रहा है
ग़ज़ल के सब शेर उम्दा
कई सारे पसंद आये हैं इस लिए चुनाव मुश्किल है
ग़ालिब गौतम जी को नमस्ते !
Gautma ji rachna to pehle hi padh li thi par comment nahi kar paya, kyunki google reader main comment ka koi option hi nahi tha...
ReplyDelete..aaj waise hi kai dino baad blogging ke darshan hue.
aur man main yahi prashn utha....
..mere liye bhi kya koi udas bekarar hai?
apke blog ka naya roop bhi accha laga...
Simple & sober....
apke bhavishya main dillin agaman ki soochna bhi mili...
-Darpan Sah
ओह..! ये पोस्ट मुझे कल पता नही कैसे नही दिखी..!!! :(
ReplyDeleteऔर अब किस शेर को चुनूँ..?? क्या सारी पोस्ट ही कॉपी पेस्ट कर दूँ ??:)
लेकिन ये है कि देर से आने का ये फायदा है कि शब्द लोगो से उधार ले सकती हूँ हरकीरत जी की तरह दाद देके भी दिल नहीं भरता ..... और किशोर जी की तरह जितना दिमाग लगाया है उससे भी ज्यादा दिल धड़क रहा है मगर इन ग़ालिब चचा ने आपका क्या बिगाड़ा है, जो हर बार इनका चीर फाड़ कर देते हो वीर जी...! दुश्मनी लेने की आदत पड़ गई है क्या ??? :)
ये क्या जगह है दोस्तों ये कौन सा दयार है
ReplyDeleteये ब्लाग तेरा है कि,जहाँ,चल रही बयार है
बधाई
गौतम जी
ReplyDeleteईमेल के लिए धन्यवाद। कुछ शारीरिक कारणों से नेट पर अधिक समय नहीं दे पाता हूं, इसीलिए काफ़ी दिनों से
आपकी रचनाओं पर टिप्पणी नहीं दे पाया।
ग़ज़ल पढ़कर अब यक़ीन हो गया है कि गुरू सुबीर की शिक्षा पूरा रंग ला रही है। दाद दिए बिना नहीं रह सका।
हर लफ़्ज़, हर शे'र क्या पूरी ग़ज़ल दिल को छूती हुई लगी। दाद क़ुबूल कीजिए।
EK-EK SHER AAPKE DIL KEE GAHRAAEE
ReplyDeleteSE NIKLAA HUA HAI.KAHTE HAIN JAB
KHOOBSOORAT CHEEZ SAAMNE AATI HAI TO
MUNH SE "BAHUT KHOOB" APNE AAP HEE
NIKALTAA HAI.MERAA BHEE YAHEE HAAL
HUA HAI.AAPKE HAR SHER PAR MERE
MUNH SE BHEE "BAHUT KHOOB"NIKLA HAI.YUN HEE SHER KAHTE RAHEN -
KHOOBSOORAT AUR LAAJAWAB.
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
ReplyDeleteवो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
GURU BHAEE YE SHE'R NAHAK HI MUJHE PARESHAAN KAR RAHAA HAI AUR AAPKO BHI PARESHAANI ME DAAL SAKTAA HAI KYUNKE AAPKI AGALI GAZAL JAB PADHUNGAA TO ISKE BARABAR KA SHE'R MUJHE CHAHIYE... KAM KA TO SAWAAL HI NAHI HAI...IS SHE'R KE NASHE SE MAIN UBAR NAHI PAA RAHAA HUN...BAHOT HI KAMAAL KA LIKHAA HAI AAPNE... DIL SE EK BAARI FIR SE KHUL KE DAAD DIYE JAATAA HUN...UPAR WAALAA AAPKO AISE HI GAHARE KHAYAALAAT DIYAA KARE... AAMEEN...
ARSH
"अर्श" said...
ReplyDeleteले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
अर्श भाई,
ये शेर आपको किसी और तरह से परेशान कर रहा होगा ....
और मुझे किसी और तरह से. कर रहा है......
दर्पण को भी कर रहा होगा....मेरी ही तरह से....
आज ज़रा ज्यादा ही तसल्ली से पढा है एक तो.....
एक कहावत है न के,,,,
हर किसी का टाइम होता है,,,,,
तो हर शेर का भी टाइम होता है,,,,,,,,,
अगर कोई कड़का पढ़े तो उसका ध्यान और कहीं नहीं जाएगा,,,,,बस पूरी गजल पर बार बार यही दोहरता रहेगा ........
किसका क्या उधार है,,,,,,,,,
वाह मेजर साहब,,,,,
Wah gautam bhai, aap to chaa gaye.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है जी आपने। हर शेर पसंद आया।
ReplyDelete"भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है"
पर इस सितार का संग़ीत कुछ ज्यादा ही भाया।
मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस खबर पे रोऊँ मैं
ReplyDeleteकि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है
ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है
ye dono to adbhut sher hai...itna zyaada achha hai :)
खबर मिली है जब से ये की उनको हमसे प्यार है
ReplyDeleteनशे मे तब से चाँद है , सितारों मे खुमार है
और
बनावटी ये तितलियाँ ये रंगों की निशानियाँ
ना भाए अब मिज़ाज को की उम्र का उतार है
गौतमजी किस किस शेर की तारीफ़ करूँ
यहाँ तो सभी एक से बढ़कर एक हैं
इतना अच्छा लिखने वाला शायर मेरे ब्लॉग पर आए
और कॉमेंट करे इससे बढ़कर मेरे लिए और
क्या तारीफ़ हो सकती है .....
अभी मैने आपकी 'क़ातिलों का सरगना तो
मेरा यार है ' ही पढ़ी है , समय मिलते ही
और भी पढ़ूंगी ....बस एक शब्द और .....
शुक्रिया .....सभी बातों के लिए .....
गौतम भाई आदाब
ReplyDeleteअभी अभी ताऊ रामपुरिया पर साक्षात्कार भी पढा वहां भी टिप्पणी दी है. गज़ल बहुत अच्छी कही है लगता ही नहीं कि शहर्यार जी की जमीन पर कही है. बहुत खूब. वाह-वाह-वाह-वाह......
ये जानकर खुशी हुई कि आप पत्रिकाओं से भी जुडे हैं. क्या आपका कोई संकलन भी प्रकाशित हुआ है? मैं आगरा से हूं और अभी आगरा में ही पोस्टेड हूं कभी आगरा आयें तो दर्शन दें. क्या आपको जानकारी है कि पूज्य दुष्यंत जी के छोटे पुत्र श्री अपूर्व त्यागी सेना में हैं और आगरा में ही तैनात हैं? उम्मीद है मित्रों में शुमार करेंगे.....
संजीव
तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
ReplyDeleteखलिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है
मज़ा आ गया भाई...
my e-mail id is
ReplyDeletesunil11b@yahoo.co.in
yahoo mess. par add karen. ummeed hai jaldi hi baaten hongi.
अच्छा रोग पाल रक्खा है आपने......ग़ज़लें वाकई बेहतरीन हैं.....एक फौजी और उस पर कवि, अद्भुत संगम है....
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
बहुत सुंदर गज़ल। कश्मीर की वादियों में रहना रंग लाया है। रोमैंटिक गज़ल कम सुनी है तुमसे।
ReplyDeletesach much bahut hi badhiya...
ReplyDeletehar ek pankti rasmay hai..
क्या मेरी ई मेल आई डी नहीं मिली?
ReplyDeleteसुलगती ख्वाहिशों की धूनी चल जलाएँ कहीं और
ReplyDeleteकुरेदना यहाँ पे क्या , ये दिल तो ज़ार ज़ार है ..
वाह क्या खूब कहा ...... मुबारक