एक विलोम सा कैसा चिपका हुआ संग मेरे...उलटबाँसी जैसा क्या तो कुछ | क्या कहता था वो बूढ़ा फ़कीर उस सूखे पेड़ के नीचे बैठा...हर्फ़-हर्फ़ अफ़साना देखा, जुमलों में कहानी / कविता में क़िस्सागोई और क़िस्से में कविताई...
तुमने जब से ज़िंदगी लिखा
तलब सी लगी है ख़ुदकुशी की मुझे
अभी उस दिन जब सहरा कहा था ना तुमने
मेरे शहर में झूम कर बारिश हुई थी
भीगी तपिश देखी है तुमने ?
या भीगा पसीना ही ?
उस रोज़ बारिश पसीने में नहाई हुयी थी
...उसी रोज़, जब तुमने सहरा पर बांधा था जुमला
रतजगे वाली नज़्म पढ़कर तो घराई नींद आई थी
शायद नज़्म पढ़ते-पढ़ते ही सो चुका था मैं
बाद अरसे के मालूम चला कि वो पन्ना देर तक सुबुकता रहा था
और एक किसी ख़्वाब के ठहाके छूट रहे थे
ये किस चौंध,
ये किस चमक का ज़िक्र छेड़ा था तुमने
कि पूरा का पूरा वजूद एक अपरिभाषित से अँधेरे में डूबा जाता है
अब कोई गीत उठाओ अमावस का
मैं चाँद होना चाहता हूँ
सुनो, एक अफ़साना तो बुनो कभी
धुयें की तासीर पर
मुँहलगी ये मुई सिगरेट छूटती ही नहीं
हाँ प्रेम तो लिखना ही कभी मत तुम !
तुमने जब से ज़िंदगी लिखा
तलब सी लगी है ख़ुदकुशी की मुझे
अभी उस दिन जब सहरा कहा था ना तुमने
मेरे शहर में झूम कर बारिश हुई थी
भीगी तपिश देखी है तुमने ?
या भीगा पसीना ही ?
उस रोज़ बारिश पसीने में नहाई हुयी थी
...उसी रोज़, जब तुमने सहरा पर बांधा था जुमला
रतजगे वाली नज़्म पढ़कर तो घराई नींद आई थी
शायद नज़्म पढ़ते-पढ़ते ही सो चुका था मैं
बाद अरसे के मालूम चला कि वो पन्ना देर तक सुबुकता रहा था
और एक किसी ख़्वाब के ठहाके छूट रहे थे
ये किस चौंध,
ये किस चमक का ज़िक्र छेड़ा था तुमने
कि पूरा का पूरा वजूद एक अपरिभाषित से अँधेरे में डूबा जाता है
अब कोई गीत उठाओ अमावस का
मैं चाँद होना चाहता हूँ
सुनो, एक अफ़साना तो बुनो कभी
धुयें की तासीर पर
मुँहलगी ये मुई सिगरेट छूटती ही नहीं
हाँ प्रेम तो लिखना ही कभी मत तुम !