कुछ गीतों में, नज़्मों में आदत-सी होती है, जिंदगी से- अपनी, हमारी जिंदगी से जुड़ जाने की। एक ऐसा ही गीत मुझसे भी आकर जुड़ गया था और ये जुड़ना मुझे ले जाता है ग्यारह साल पीछे। वर्ष 1997। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के तीन कड़े सालों का प्रशिक्षण संपन्न कर मैं देहरादून आया ही था भारतीय सैन्य अकादमी में अपनी आखिरी एक साल की विशेष ट्रेनिंग के लिये।...और वहीं मुलाकात हुई मेजर भाष्कर से- हमारे प्रशिक्षक हुआ करते थे। हमें तरह-तरह के शारीरिक परिश्रमों में उलझाये रहने के अलावा उनका जो एक और शौक था, वो था गिटार का।...आहहाहा !! व्हाट गिटार प्ले ! यदि वे Hotel California बजा रहे हों अपने गिटार पर तो मजाल है कोई कह सके कि ये Eagles का लीड गिटारिस्ट खुद फेल्डर नहीं हैं या फिर अपनी मस्ती में भाष्कर सर जब अपने गिटार पर Summer Of 69 की धुन निकाल रहे होते, तो फर्क करना मुश्किल हो जाता था कि हम कैसेट में स्वंय ब्रायन एडम्स को सुन रहे हैं या अपने भाष्कर सर को ...
...और फिर एक दिन उनसे ये गीत सुन लिया मैंने। एक फौजी का अपनी प्रेयसी को लुभाने का प्रयत्न। अपनी सीमित आय में, वो और क्या दे सकता है जंगलों-पहाड़ों के सिवा और सुनाने को चंद किस्सों के अलावा। आप में से अधिकांश लोगों ने उस दिन ये गीत सुन ही लिया होगा ताऊ के साक्षात्कार में। एक बार फिर से-
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन तुझको मैं दे सकूँगा
फिर भी ये वादा है तुझसे तू जो करे प्यार मुझसे
छोटा-सा घर एक दूँगा, सुख-दुख का साथी बनूँगा
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन...
जब शाम घर लौट आऊँगा, हँसती हुई तुम मिलोगी
मिट जायेंगी सारी सोचें बाँहों में जब थाम लोगी
छुट्टी का दिन जब भी होगा हम खूब घूमा करेंगे
दिन-रात होठों पे अपने चाहत के नग्में लिखेंगे
बेचैन दो दिल मिलेंगे
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन...
गर्मी में जाके पहाड़ों पे हम गीत गाया करेंगे
सर्दी में छुप कर लिहाफ़ों में किस्से सुनाया करेंगे
रुत आयेगी जब बहारों की, फूलों की माला बुनेंगे
जाकर समन्दर में दोनों सीपों के मोती चुनेंगे
लहरों की पायल सुनेंगे
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन...
तनख्वाह मैं जब लेके आऊँगा, तेरे ही हाथों में दूँगा
जब खर्च होंगे वो पैसे, मैं तुझसे झगड़ा करूँगा
फिर ऐसा होगा खुदी से, कुछ देर रूठी रहोगी
सोचोगी जब अपने दिल में, तुम मुस्कुरा कर बढ़ोगी
आकर गले से लगोगी
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन तुझको मैं दे सकूँगा...
...वो दिन था और ये गीत आकर बस गया मेरा एक अपना वाला गीत बन कर। सोचा था कि आपलोगों को इसके धुन से भी परिचय करवाऊँगा। अपनी आवाज में। गीत रिकार्ड भी कर लिया है। किंतु अब समझ में नहीं आ रहा कि इसे पोस्ट में लगाऊँ कैसे। ...तो बच गये आप सब मेरी इस कर्कश आवाज को सुनने से। वैसे बचपन में मोहम्मद रफ़ी बनने की तमन्ना संजोये हुये था। हा! हा!! हा!!!
खैर, इस गीत की धुन के बाबत...कुछ साल पहले सलमान खान और नीलम की एक फिल्म आयी थी एक लड़का एक लड़की- याद आया? तो उस फिल्म का एक गाना है "छोटी-सी दुनिया मुहब्बत की है मेरे पास और तो कुछ नहीं है..."। उस गाने के बोल और थीम इसी गीत पर बसे हैं और लगभग धुन भी। यदि आप सब में से किसी के पास इस सलमान खान वाली फिल्म के गाने का mp3 हो तो मुझसे साझा करने की कृपा करें।।...और यदि आप में से कोई इस गीत के रचयिता के बारे में जानते हों या कुछ और जानकारी रखते हों, तो ताउम्र ऋणि रहूँगा।
भाष्कर सर तो कर्नल के रैंक से सेवानिवृत हो पूर्णतया गिटार को समर्पित जीवन जी रहे हैं....कहते हैं doctors and soldiers never retire....!!!
यदि ये फ़ाइल 10 MB से कम है तो इसे मुझे भेज दें, मैं इसे अपलोड कर इसका कोड आपको भेज दूंगा जिसे आप पोस्ट पर कापी-पेस्ट कर लगा सकेंगे. यदि बड़ी फ़ाइल है तो बताएं, आपको अपलोड करने की विधि बताते हैं.
ReplyDeleteलेख की जादूगरी में कविता का सम्मोहन पसंद आया
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम
गौतम जी,
ReplyDeleteसंस्मरण के साथ ..आपने जो गीत दिया है पढ़ कर अच्छा लगा. अच्छी और रोचक पोस्ट .
हेमंत कुमार
प्रिय गौतम पूरा गीत पढ़ा अच्छा लगा ये गीत । जिस गीत को तुमने पसंद किया है वो मेरा भी मनपसंद गीत है । 1992 में आई फिल्म एक लड़का एक लड़की का गीत है वो । जिसमें सलमान खान और नीलम थे राजा और रेनू की भूमिकाओं में । फिल्म में संगीत दिया था आनंद और मिलिंद ने जो मशहूर संगीतकार चित्रगुप्त के बेटे हैं । और जहां तक गीत के गीतकार का नाम है तो जाहिर सी बात है कि इतने सुंदर शब्द कोई गुणी ही लिख सकता है उसके गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने । मजरूह साहब के गीत ऐसे ही होते थे पूरी तरह से भावनाओं से भरे हुए । इस फिलम के निर्देशक थे विजय सदानह जो संभवत: कमल सदानह के पिता थे तथा कुछ ही दिनों बाद जिन्होंने पूरे परिवार को गोली मारकर स्वयं भी आत्महत्या कर ली थी । गीत को गाया था उदित नारायण जी ने और साधना सरगम जी ने । ये उन दिनों का गीत है जब आनंद और मिलिंद दोनों मिलकर कुछ अदभुत रच रहे थे । ऐसा ही एक गीत है इन दोनों का जो फिलम वंश का है आके तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी । खैर ये गीत अलग से तुमको मेल कर रहा हूं । तुम्हारी आवाज का गीत मुझे भेज दो उसको मैं लगा दूंगा ।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब !
ReplyDeleteबिल्कुल कविता मय़ी पोस्ट. इंतजार है आपकी आवाज मे इसे सुनने का.
ReplyDeleteरामराम.
सुबह-सुबह इतना प्यारा गीत पढ़कर आनंद आ गया। और साथ ही बरबस याद आ गई दिनकर जी कि कवि और उसकी प्रेयसीवाली कविता....
ReplyDeleteबना रखूं पुतली दृग की निर्धन का यही दुलार सखी
स्वप्न छोड़ क्या पास तुम्हारा जिससे करूं शृंगार सखी
कहां रखूं,किस भांति,सोच यह तड़पा करता प्यार सखी
नयन मूंद बाहों में आखिर भर लेता लाचार सखी
घास-पात की कुटी हमारी
किन्तु तुम्ही इसकी रानी हो
क्या न तुम्हे संतोष किसी
कवि की वरदा तुम कल्याणी हो
वह सर जी, क्या आईडिया है ...
ReplyDeleteये गीत तो वाकई दिल छूने वाला है..
मज़ा आ गया पढ़ कर.. पर सच कहू तो सुन ने मै ज्यादा मज़ा आता.. कही पॉडकास्ट नही क्या है क्या?
सादर
शैलेश
गुरु भाई सुबह सुबह इस गीत से समां बाँध दिया है आपने साथ में ये सस्मरण.. बहोत ही खूबसूरती से कही है आपने अपनी बात को.. भाष्कर सर को मेरा आदाब कहें.. संगीत का प्रेमी तो मैं भी हूँ कोलेज तक गाया करता था मगर अब तो फुर्सत ही नहीं है ... क्या कहें... आपका जवाब मुझे मिल गया है मेल के जरिये... जान कर बढ़िया लगा...
ReplyDeleteबधाई..
आपका
अर्श
आपके दिल ने भी क्या क्या अंदाज़ पाए हैं कभी ऐ के ४७ का संगीत और कभी फिल्मों के वो तराने जो चुपचाप अपनी मिठास के साथ खो गए हों कहीं जाने क्यों आपके इन गीतों के साथ मुझे प्यार झुकता नही फिल्म का गीत भी याद आ गया 'तुम्हें अपना साथी बनाने से पहले ...' हालाँकि आपकी पसंद से इसका कोई मुकाबल नहीं हो सकता. आप अच्छा लिखते हैं
ReplyDeleteyew film Bandish ka gana hai..
ReplyDeletehere is the link in youtube
http://www.youtube.com/watch?v=uobeJjnl-PM
बेहतरीन पोस्ट गौतम जी, गीत ताऊकृपा से पहले भी पढ़ा था पर दोबारा भी उतना ही मज़ा आया.
ReplyDeleteपानीपत की चिलचिलाती गर्मी में ऒल्डमोंक का अहसास गरमी बढ़ा गया. इधर इस गरमी में वोदका जमा बीयर की काकटेल ही कामयाब है.
दिल्ली आना-जाना हो तो पानीपत रास्ते में पड़ेगा.
सुबीर जी की टिप्पणी पढ़कर एक बात याद आ गयी जिस पार्टी में विजय सदाना ने अपने परिवार को भून दिया था. उसका कारण था कि शराब में धुत्त उनकी पत्नी, पुत्री और पुत्र जो वासना का खेल खेल रहे थे उसे वो सहन न कर सके हालांकि वो भी धुत्त थे. ये बात मायापुरी में छपी थी जै तत्कालीन लोकप्रिय फिल्मी साप्ताहिक थी.
के पी सक्सेना जी का नियमित व्यंग्य पढ़ने के लिये उसे पढ़ते थे.
खैर....
Waiting to hear the song .. I know you too play Guitar :)
ReplyDeleteRC
अपनी माँ के घर के आँगन में खड़ी हो कर मित्र जब तुमने कहा था मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करुँगी सदा, आज मैं अशांत और तन्हा अपना समय काट रहा हूँ तो लौट जाना चाहता हूँ उन दिनों में जब तुम्हारा हाथ थामे मैंने महसूस किया था ये सिर्फ आज हासिल है आगे कभी नही हाय वे गर्मियों भरे दिन....ब्रायन एडम्स. आपने किस कमबख्त की याद दिलाई है दिल उदासी से भर गया है ये सोच कर कि हम क्यों नहीं हो पाते अनवाईंड बीते दिनों की ओर....
ReplyDeleteपोस्ट के बारे में क्या कहूं, हर बात मुकम्मल है हर बात दोशीजा है दिल के करीब है और ये आपको रंजो-गम की याद दिलाने की दुआएं देता है. हाँ सोचता हूँ कभी तकदीर आपको राजस्थान के बॉर्डर पे ले आये वैसे गरमी के सुहाने दिनों की याद दिलाने के लिए जो ब्रायन एडम्स ने अपने बचपन में बिताये थे फिर मैं आपको देखूं उन्ही दिनों के नशे में चूर...
गौतम जी
ReplyDeleteआपकी लाजवाब लिखने की शैली मुझे मेरे अतीत में ले गयी...........मुझे भी याद आ गए ऐसे ही कुछ पल. उनकी बात फिर कभी............आपका गीत, या भास्कर जी का गीत जीवन की वास्तविकता से भरा हुवा है.
तनख्वाह मैं जब लेके आऊँगा, तेरे ही हाथों में दूँगा
जब खर्च होंगे वो पैसे, मैं तुझसे झगड़ा करूँगा
फिर ऐसा होगा खुदी से, कुछ देर रूठी रहोगी
सोचोगी जब अपने दिल में, तुम मुस्कुरा कर बढ़ोगी
आकर गले से लगोगी
बस एक यही तो पल होता है जीवन में जब कोई अपना आ कर गले लगता है.........उस पल में उम्र सिमिट आती है. आपकी आवाज़ में गीत सुनने को बेताब हैं ..........
नमें ये गीत किसी को फारवर्ड कर रहा हूँ. अब ऐसा लिख तो नहीं सकता न :-)
ReplyDeleteमैंने तो यह गाना उसी वक़्त सेव कर लिया था ..आज इस के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा ..अब इन्तजार है इसको आपकी आवाज़ में सुनने का ..सही कहा डाक्टर्स .सोल्जेर्स के साथ यदि दिल गीत लिखने सुनाने सुनने वाला हो तो फिर तो कभी रिटायर हो ही नहीं सकता :)
ReplyDeleteवाह...गौतम जी..वाह...भास्कर जैसे जिन्दा दिल इंसान से मिलवा कर आनद भर दिया आपने...ऐसे लोग ही ज़िन्दगी जीते हैं...उनका गीत पढ़ कर मुझे "ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो गर तो आके पहले मांग ले तेरी नज़र मेरी नज़र....." याद आ गया...
ReplyDeleteपंकज जी ने जिस गीत का जिक्र किया है वंश फिल्म का वो मुझे भी बहुत प्रिय है...उसके शब्द कमाल के हैं...
नीरज
पहले तो ये बता दूँ की ये तीसरी बार टिप्पणी लिख रही हूँ....ups ख्बाब पडा है ...और ये बिजली दिन भर आँख-मिचौनी खेलती रहती है....खैर....
ReplyDeleteतो आजकल मेजर साहब के नए नए रूप देखने को मिल रहे हैं....पहले गध्य लिख कर चौंका दिया और अब ये गीत......??
चलिए जल्दी सुनाइए हम भी सुने एक फौजी की कर्कस आवाज़ मीठे स्वरों में कैसे बदलती है .....!!
{सोचता हूँ आपसे कहूँ कि ये ठीक बात नहीं है मैम...यूं देर रात गये इस ब्लौग-जगत को रूलाना....
आपने देर रात गये पढ़ी ही क्यों....? कई बार पोस्ट करने आई पर हर बार मन भारी हो जाता और छोड़ कर उठ जाती ....बस देर हो गई....!}
aage ke comment tab, jab awaaz sunane ko mil jayegi. Ph no mail kar diya hai... baat kar lijiyega
ReplyDeleteगीत के हर बोल,हर भाव मन को छू गए....गिटार सुनने की इक्षा हुई
ReplyDeleteऔर ऊपर से ?
ReplyDeleteलडकी का पिता: मेरी लडकी के लिए कोई रिश्ता दिखावो !
मैरेज ब्यूरो : ये तीन नए रिश्ते आये है देख लो;
-ये पहले वाला सेल्स टैक्स में कलर्क है
-ये दूसरे वाला कस्टम में इंसपेक्टर है
-और ये तीसरे वाला सेना में मेजर है
लड़के का पिता : इनकी तनख्वाह क्या है ?
मैरेज ब्यूरो: पहले वाले की तनख्वाह तो १०-१२ हजार ही है लेकिन ऊपर से २०-२५ हजार महीने के कमा लेता है ! ये जो दूसरे वाला कस्टम इंसपेक्टर है उसकी तनख्वाह करीब २० हजार रूपये महिना है और ऊपर से २५-३० हजार महीने के कमा लेता है !
ये जो तीसरे वाला है सेना में मेजर, इसकी तनख्वाह करीब २५-३० हजार रूपये है !( इतना कहकर ब्यूरो वाला चुप हो जाता है )
लडकी का बाप पूछता है : और ऊपर से ?
मैरेज ब्यूरो: बम गिरते है !!!!!!
हा,,,हा,,,हा,,,हा,,,,
ReplyDeleteक्या बात है,,,,,,,,,
उपर से बम गिरते हैं,,,,
par जिंदादिल मेजर इन धमाकों में भी गीत रचते हैं,,,,,
अभी पढा नहीं है,,,,,और पढूंगा भी नहीं,,,,,( जैसी भी आवाज हो ,,,मेल कर do,,,)
पिछली ठकठक ,,,ठक ,,,ठक की कामयाबी के जश्न के बाद ऊपर वाले से उन do पंछियों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करता हूँ,,,,,मालिक उन्हें अब के धरती par भेजे तो कुछ इंसानियत भी देकर भेजे,,,,, नया जन्म मिले तो कुछ मुहब्बत लिए हुए मिले,,,,,
और अगर अब भी उसी रूप में आयें तो हमारे मेजर से जरूर मुलाक़ात हो जाए,,,,
तो गीत भेज रहे हैं ना,,,??????????
आपकी पोस्ट का टाईटल देख कर भागा आया कि आज गाना सुनने को मिल जाऐगा। पर यहाँ आकर पता चला कि यहाँ भी गाने के बोल है आवाज नही। तो निराशा हुई। खैर भाष्कर सर के बारें में पढकर अच्छा लगा। मेजर साहब हमारी तो आपसे तब तक कुट्टी जब तक गाने सुना नही देते। ताऊ जी के ब्लोग पर गाने के बोल ही थे आवाज तो नही थी।
ReplyDeletedoctors and soldiers never retire....!!!
सच।
अच्छा वृतांत,
ReplyDeleteबाकी आपकी आवाज सुनने का इंतजार रहेगा।
होटल केलिफोर्निया मेरे मोबाइल में आज भी है.....पी कर हमने खूब सुना है .सेंटिया कर भी....कुछ गीतों से आपका रिश्ता जुड़ जाता है उम्र भर.......वे आपके साथ चलते है.....कविता का क्या कहूँ........तुम आदमी ही बढ़िया हो तो कविता भी खूब लिखोगे......
ReplyDeletedoctors and soldiers never retire....!!!
gautam ji aapke blog par der se pahuncha, magar ye achcha hi hua, kyunki aapka anmol geet to mila hi, saath hi itni saari comments ko padhkar bhi mazaa aa gaya. aapki awaz men geet sunne ki intzar men......................
ReplyDeleteआप सब का दिल से शुक्रिया और खास कर गुरूदेव सुबीर जी का और श्रद्धेय रविरतलामी जी का...और खासमखास शुक्रिया शैलेश जी का जिन की बदौलत आज बारह साल बाद इस गीत "सोना न चांदी न कोई महल..." का ओरिजिनल विडियो देखने को मिल गया। लिंक है:-
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=uobeJjnl-PM
अब इस अद्भुत गीत की धुन आप सब देख-सुन सकते हैं यू-ट्यूब के ऊपर दिये हुये लिंक पर। इसी बहाने मैं अपनी फटी हुई आवाज आप सब को सुनाने से बच गया।
अब मुझे ये नहीं मालूम कि you-tube के इस विडियो को अपने कम्प्यूटर पर कैसे सेव करूं या mp3 में कैसे प्राप्त करूँ.....
गुरूजी....रवि जी कुछ हो सकता है क्या?
aawaaz sunana chahunga////
ReplyDeletesabko mail karo to pls mujhe mat bhoolanaa.//
kayal to aapki lekhni ka me ho hi gayaa hoo/. ye bhi khoob he/ ab sundar, ati sundar aadi visheshn likhte rahunga to mazaa anhi ayegaa, sirf yahi ki
waah, jindgi, jindadili aour jivatata......ji apme sabkuchh he,,,
गौतम तुम्हारी आवाज़ में ये गीत सुनने का इंतज़ार है। इस गीत को पहली बार सुना (आर्कुट पर विडियो)। सुंदर गीत।
ReplyDeleteaap mujhe apna email id deejiye..
ReplyDeleteI have a software to download the flv. files from youtube. I will download and send it to you..
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteमुझे यकीन है आप के आने का...
मेरी ग़ज़ल/प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
रोमांटिक ग़ज़लें
मेरे गीत/प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
aaj phir mazaa aa gayaa.....aaj phir acchha lagaa....aaj phir mast ho gayaa....!!
ReplyDeleteअरे भईया....ये जो आपने अपनी पसंद के तरह-तरह के लोगों के ब्लोगों के जो लिंक बनाए हुए हैं....ये कैसे होता है....अपुन को भी बताएं भाई.........मैं आपका आभारी रहूंगा...सच....!!
ReplyDeleteगौतम जी संस्मरण बहुत अच्छा था..
ReplyDeleteaudio player code ke liye आशीष जी के ब्लॉग-टिप्स पर भी एक पोस्ट है जिसमें जानकरी है.[waise प्लेयर कोड बनाने के लिए मुझ से भी पूछ सकते थे.:)...आप तो मेरे ब्लॉग पर ऑडियो सुनते ही हैं.]
यह बिलकुल मुश्किल नहीं है.
वैसे is samay बहुत लोग आप को सहायता देने के लिए तैयार हैं ,फिर भी भविष्य में अगर आप को रिकॉर्डिंग मिक्सिंग आदि की कोई मदद चाहिये तो मुझे जितना आता है जरुर आप को बता दूंगी.
आप की आवाज़ भी जरुर सुनना चाहेंगे.
इसे पढ़कर आँखों में आंसू आने से नहीं रोक सका...
ReplyDeleteप्यार का सुंदर एहसास है...
मीत
puraani kisi raat ki yaad..saathi or geet ki baat ..bahut achi baat ke sath bhut sundar geet hai..khaskar aakhiri panktiyaan
ReplyDeletepuraani kisi raat ki yaad..saathi or geet ki baat ..bahut achi baat ke sath bhut sundar geet hai..khaskar aakhiri panktiyaan
ReplyDeleteगौतम जी,
ReplyDeleteआपकी रचनाओं और लेखों की सरलता अभिभूत करने वाली है.ऐसा लगता है भाव ह्रदय के निकट रहते है.आपके गीतों और गजलों में बेहद खूबसूरत श्रेष्ठता दृष्टिगोचर होती है और गुरु पंकज सुबीर जी से जो मार्गदर्शन मिलता है वह आपकी रचनाओं को उत्कर्ष पर पहुंचा देता है. काश !गुरु पंकज सुबीर जी हमारे भी गुरु होते...
aj phli bar hi ai hu geet to sundar hai hi sath hi prstuti ati sundar.
ReplyDeletebdhai
गौतम भाई आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा ! पोस्ट तो बढ़िया है ही साथ ही प्रतिक्रियाएं भी जबरदस्त हैं ! लगा मानो असली हिन्दुस्तान आपके ब्लॉग पर सिमट आया है ! जरा सी मदद क्या माँगी दर्जनों हाथ आगे बढे !
ReplyDeleteथोड़ी सी सूचना मांगी ...
पूरा ब्यौरा तुंरत हाजिर !
है न बढ़िया बात !
अब मैं भी बेकरार हूँ आपके मुंह से यह गीत सुनने के लिए ! आशा है जल्दी ही आप रिकार्ड करके हमें यह गीत सुनायेंगे !
आज की आवाज़
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन तुझको मैं दे सकूँगा
ReplyDeleteफिर भी ये वादा है तुझसे तू जो करे प्यार मुझसे
छोटा-सा घर एक दूँगा, सुख-दुख का साथी बनूँगा
सोना न चाँदी न कोई महल जानेमन...'
- गीत में एक फौजी की भावनाओं को खूबसूरती से उभारा गया है, एक फौजी और उसके निकट रिश्तेदार गीत की भावनाओं को ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं.