23 December 2014

तेरी यादों में ये सर्द दिसम्बर नीला नीला है...

...उस दिन जब नीला सा चाँद आया था छज्जे पर, ठिठुरते दिसम्बर को पहलू में लिये, कहाँ मालूम था कि कमबख़्त पूरे वजूद को ही नीला कर जायेगा !  रूह तलक ने जैसे तब से अपने श्वेत लिहाफ़ को छोड़ कर कोई नीला शॉल ओढ़ रखा है ... किसी ने आवाज़ दी थी उसी नीले शॉल के पीछे से झाँकते हुये ... सुनो ओ नीले शायर ! जानते हो तुम्हारी आवाज़ रूमाल सी है ...शायर तब से अपनी आवाज़ को तहें लगा कर अपने नीले कुर्ते की जेब में रखना चाह रहा है ... उन्हीं किन्हीं तहों से एक मिसरा उठता है नीला सा...एक ग़ज़ल होती है कोई नीली सी... 

उजली उजली बर्फ़ के नीचे पत्थर नीला नीला है
तेरी यादों में ये सर्द दिसम्बर नीला नीला है

दिन की रंगत ख़ैर गुज़र जाती है बिन तेरे, लेकिन
कत्थई-कत्थई रातों का हर मंज़र नीला नीला है

दूर उधर खिड़की पे बैठी सोच रही हो मुझको क्या
चाँद इधर छत पर आया है, थक कर नीला नीला है

तेरी नीली चुनरी ने क्या हाल किया बाग़ीचे का
नारंगी फूलों वाला गुलमोहर नीला नीला है

बादल के पीछे का सच अब खोला तेरी आँखों ने
तू जो निहारे रोज़ इसे तो अम्बर नीला नीला है

हुस्न भले हो रौशन तेरा लाल-गुलाबी रंग लिये
इश्क़ का तेरे पर्तो लेकिन दिल पर नीला नीला है

इक तो तू भी साथ नहीं है, ऊपर से ये बारिश उफ़
घर तो घर, सारा-का-सारा दफ़्तर नीला नीला है

महफ़िल-महफ़िल शोर उठा है, मजलिस-मजलिस हंगामा
नीली ग़ज़ल इक लेकर आया शायर नीला नीला है
{ "वागर्थ" के सितम्बर 2013 वाले अंक में प्रकाशित ग़ज़ल }