22 September 2010

सुरेश की स्मृति में...एक साल

एक साल गुजर गया...एक साल इस जुमले को जीते हुये कि प्रारब्ध जब किसी के होने के लिये किसी और का न होना तय करता है, तो सारी जिंदगी बेमानी नजर आने लगती है...और इस बीते साल का शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जब सुरेश न याद आया हो। सुरेश...सुरेश सूरी...मेजर सुरेश सूरी। पिछले साल की वो ईद के एकदम बाद वाली सुबह -वो 22 सितम्बर 2009 वाली सुबह- जब आयी थी, तो ख्याल तक नहीं आया था कि इस सुबह की शाम अपने साथ ऐसा हृदयविदारक परिणाम लेकर आयेगी और मुझे ता-उम्र किसी की स्मृतियों का ऋणि बनाकर छोड़ जायेगी...कि जिस जुमले को विगत एक साल से जीता आ रहा हूँ उसमें सुरेश शामिल है अपने अब ’न होने’ को लेकर और कमबख्त मैं अपने ’होने’ को लेकर।

अभी भी जैसे कल की ही बात हो...कल की ही तो बात है सचमुच। एक-एक बात उस मनहूस बाइस सितम्बर की, एक-एक दृश्य उस दिन-विशेष का उतावला हो रखा है शब्दों में ढ़लने को। लेकिन विवश हूँ...शायद आज से पंद्रह-बीस साल पश्चात मुक्त होकर लिख सकूँगा।

तब तक के लिये ये ऋण तो है ही, ओ’ सुरेश! तेरा मुझपर...



I salute you, BOY...! Rest in peace...!!