20 September 2013

सब दीवानगी अपने अंजाम पर पहुँच कर थक जाती है इक रोज़...

सितम्बर अभी से इतना थका हुआ है कि लगभग घसीटता-सा ले जा रहा है खुद को...अभी तो डेढ़ हफ़्ते शेष हैं इसकी आखिरी साँस का लम्हा आने में ! ऐसे कैसे चलेगा प्यारे सितम्बर ! थोड़ी चाल तेज करो मियाँ ! अक्टूबर को आने भी दो अब | लम्बी रातों की तपिश कुछ इतनी बढ़ गई है कि जिस्म क्या, रूह तक कमबख़्त जलने लगी है | मन गीला होना चाहता है मौसम की अलगनी पर लटक कर गिरते हुये बर्फ के फाहों में | पूरा वजूद भीगना चाहता है अनवरत बर्फबारी में | तुरत ही | अभी के अभी | बस आओ...बरसो...ढँक दो इन ऊँचे पहाड़ों को जो तप कर अड़ियल होते जा रहे हैं...सब सफ़ेद कर दो | मन की परतों को भी | उम्र तो वैसे भी कब की सफ़ेद हो चुकी है...किसने लिखा है ? गुलज़ार ने ना ? हाँ, उसी सरफिरे ने...उम्र कब की बरस के सुफेद हो गई, काली बदरी जवानी की छटती नहीं अब बरस भी जाओ...नज़मों को भी गीला होना है | कब से  सूख रही हैं ये...देखो तो कैसे ऐंठ-सी गई हैं | गीला होना है तमाम नज़मों को भी...इनकी खातिर तो आओ | बरसो ऐ बरफ़ों कि जल रहे मिसरों को नमी मिले...तुमने भी तो कब से ऊपर बादलों में छिपे हुये झांक कर हैलो तक नहीं कहा है और एक कोई है कि एक hi लिखे बैठा है सृष्टि के प्रारंभ से ही | बरसो भी अब कि एक नज़्म मचल रही है....   
 
सुनो ! वो जो छोटा-सा Hi लिखा है
प्रोफाइल में
मेरी खातिर ही है ना ?
कि तुझे तो पता भी नहीं चलता होगा
मेरा उसे निहारना

जानती हो ना,
अकसर तो सिग्नल नहीं रहता मोबाइल में यहाँ
कहाँ दिखता होगा मेरा ऑन लाइन होना तुझे
तेरे व्हाट्स एप पर

देर रात गये सोनी मिक्स में
काका सुना रहे हैं लीना को
"मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं"
और दिनों बाद सुलगी है फिर से
ये चौरासी एमएम वाली विल्स क्लासिक

नयी वाली ने सुलगते ही कहा कुछ यूँ कि
सब दीवानगी अपने अंजाम पर पहुँच कर
थक जाती है इक रोज़...

देखना, जो कभी थक जाये ये निहारना
तेरे प्रोफाइल को...

फिर ?


...ख़त्म हुयी नज़्म ! अब जाओगे भी सितम्बर मियाँ कि यूँ ही ठिठके बैठे रहोगे ? गो नाऊ...जस्ट बज ऑफ !!!