चिल्ले-कलाँ अपने समापन पर है और वादी अपने धवल-श्वेत लिबास में किसी योगी की भाँति तपस्या में तल्लीन-सी। देर रात गये चिनार की शाखों और बिजली के तारों पर झूलते बर्फ धम-धम की आवाज के साथ टीन के छप्पर पर गिरते हैं और मेरी नींद स्लिपिंग-बैग में कुनमुनायी-सी, मन की तमाम आशंकाओं के साथ गश्त लगाती फिरती है सब रतजगों की चौकसी में। कितने अफ़साने हैं इन ठिठुरते रतजगों के जो लिखे नहीं जा सकते...! कितनी कहानियाँ हैं इन उचटी नींदों की जो सुनाई नहीं जा सकती...!! गश्त करता आशंकित मन पोस्ट-दर-पोस्ट खड़े प्रहरियों के बारे में सोचता है और रतजगे की कुनमुनाहट मुस्कान में बदल जाती है...ये मुस्कान एकदम से बढ़ जाती है जब मन ठिठक कर महेश पर आ रुकता है।
दूर उस टावर वाले पोस्ट पर महेश खड़ा है...लांस नायक महेश सिंह। पिथौड़ागढ़ का। पिथौड़ागढ़- कुमाऊँ का अपना पिट्सबर्ग :-)। महेश...दिखता तो मासूम-सा है, लेकिन है बड़ा ही सख्त और मजबूत...और उतनी ही सुरीली आवाज पायी है कमबख्त ने। एक टीस-सी उठा देता है जब तन्मय होकर गाता है वो। उसी ने तो सिखाया था मुझे ये प्यारा-सा कुमाऊँनी गीत:-
हाय तेरी रुमालाsssss
हाय तेरी रूमाला गुलाबी मुखड़ी

के भली छजी रे नके की नथुली
गवे गवे बंदा हाथ की धौगुली
छम छमे छमकी रे ख्वारे की बिंदुली
हाय तेरी रूमालाssss...
...और जब से उसे पता चला कि मुझे मो० रफ़ी के गीत खास पसंद हैं, तो अब तो हर मौके पर रफ़ी साब छाये रहते हैं महेश के होठों पर। थोड़ा-सा आगे की तरफ झुक कर शरीर का बोझ तनिक ज्यादा आगे वाले दाँये पाँव पर डाले हुये और दोनों हाथ पीछे बाँध कर जब वो "दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर, यादों को तेरी मैं दुल्हन बना कर..." गाना शुरू करता है तो आप आराम से अपनी आँखें बंद कर प्यानो पर बैठे शम्मी कपूर को सोच सकते हैं, कानों में रफ़ी की ही आवाज आयेगी। सोचता हूँ, उसे अगली बार इंडियन आइडल के लिये भिजवाऊँ।
...उधर ज्यों ही रात भर रात पर झुंझलाती हुई बर्फ की परतों को सुबह की झलकी मिलती है, इधर त्यों ही रतजगे को सकून भरी नींद !!!