15 November 2018

एक ब्रह्मा का अवसान



"सुनो पीटर, हमारी मुहब्बत सलामत तो रहेगी ना ? उन्होंने ही तो संभाले रखा था अब तक, जब भी बिखरने को हुई ये !" परसों रात सुबकते हुये मेरी जेन ने पूछा था...
लगभग सत्तावन साल पहले एक नये 'यूनिवर्स' का अस्तित्व जब सामने आया था तो पूरी धरती पर हर्ष और हैरत से भरे कोलाहल का शोर जाने कितने ही उल्कापिंडों के अकस्मात् टूटने का कारण बना । शोर थमा तो इस नये 'यूनिवर्स' के सृजनकर्ता को दुनिया ने सीने से लगा लिया । उम्र के उन्चालीसवें पायदान पर खड़े स्टैन ली ने शायद उस वक़्त सोचा भी न होगा कि मार्वल कॉमिक्स में जिन किरदारों को वो बुन रहे हैं, ये सब मिलकर एक दिन एक ऐसे पैरेलल यूनिवर्स को खड़ा कर देंगे कि हम जैसे दीवाने पीढ़ी दर पीढ़ी पूरी तरह सम्मोहित हो वहीं बस जाने की सोचा करेंगे ।
नहीं, ऐसा तो नहीं था कि स्टैन ली द्वारा इस मार्वल यूनिवर्स के सृजन से पहले ऐसे किसी और यूनिवर्स का वजूद नहीं था । जव वो सत्रह साल के थे तो डीसी यूनिवर्स अपना जलवा कायम कर रहा था । मेट्रोपॉलिस के सुपरमैन और गॉथम के बैटमैन का जादू सर चढ़ कर बोल रहा था । लेकिन डीसी यूनिवर्स के शहर काल्पनिक थे और इसके सुपरहीरोज़ या तो बहुत ज़्यादा 'आइडियलिस्टिक' थे या फिर कुछ ज़्यादा ही 'ट्विस्टेड' । मेट्रोपॉलिस जहाँ एक 'मॉडल' शहर था, वहीं गॉथम एकदम 'डार्क' । सुपरमैन, बैटमैन, फ्लैश वगैरह की शक्तियाँ असीमित थीं । वे सब के सब 'लार्जर दैन लाइफ' की परिकल्पना के द्योतक थे ।
स्टैन ली ने अपने मार्वल यूनिवर्स की बुनियाद न्यूयॉर्क जैसे चिर-परिचित शहर में रखी, उसकी तमाम अच्छाइयों और बुराइयों के साथ । उनके सुपरहीरोज़ हमसब के अपने पड़़ोसियों जैसे देखे-से, भाले-से हैं । स्पाइडरमैन जैसे हीरो के पास अक्सर पेप्सी पीने तक के पैसे नहीं होते...शहर का सबसे ज़्यादा बिकने वाला अख़बार उसे ट्रौल करता है...अपनी तमाम शक्तियों के बावजूद वो अपनी प्रेमिका को ख़ुश नहीं रख पाता । स्टैन ली के यूनिवर्स वाले सुपरहीरोज़ अपनी तमाम ख़ूबियों के साथ उतने ही 'वल्नरेबल' दिखते हैं और यही बात स्टैन ली को इस विधा में सबसे दमकते सिंहासन पर बिठाती है । उनका जाना यक़ीनन एक अनूठे और हैरान करने वाले क़िस्सागो का जाना है ।
विगत सोलह सालों से लगातार मार्वल यूनिवर्स की चार कॉमिक्स को सब्सक्राइब करता आ रहा मेरा 'मैं' आज पहली बार अपने सब्सक्रिप्शन को बंद करने की सोच रहा है । कहाँ बिखेर पायेगा ये महबूब यूनिवर्स मेरा अब वैसा ही जादू अपने जादूगर के बिना !
...और अपने आँसू पोछते हुये पीटर पार्कर ने सुबकती मेरी जेन को बाँहों में भर कर कहा "विद ग्रेट पावर, कम्स ग्रेटर रिस्पॉन्सिबिलिटी । उनकी रूह हमारी मुहब्बत के साथ है, मेरी ।"


[ जाइये स्टैन ली सर कि इन दिनों उस परमपिता परमेश्वर को भी चंद सुपरहीरोज़ चाहिये स्वर्ग में ! सलाम !! ]

05 November 2018

भय को देखना हो नतमस्तक...


[ कथादेश के सितम्बर 2018 के अंक में प्रकाशित "फ़ौजी की डायरी" का अठारहवाँ पन्ना ]

अभी कुछ दिन पहले डायरी के किसी बेतरतीब पन्ने से उलझे हुये एक पाठक का बहुत ही तरतीब सा कॉल आया था | बहुत देर बात हुई उनसे और डायरी के तमाम पन्नों से जुड़े उनके सवालों की फ़ेहरिश्त इतनी लम्बी थी कि आख़िर में उनसे कहना पड़ा कि आपके सारे सवालों का जवाब देना इस ऊँचे बर्फ़ीले पहाड़ की खड़ी चढ़ाई चढ़ना जैसा है | मोबाईल के उस पार उनकी छितरी-छितरी हँसी एक सुकून दे रही थी कि इस डायरी के ये बेतरतीब से पन्ने कमोबेश अपनी बात सही तरीक़े से कह पा रहे हैं | एक सवाल था जो देर तक मचलता रहा ज़ेहन में उनके फोन कट जाने के बाद और ये सवाल अमूमन हर दोस्त रिश्तेदार भी करते हैं |  सवाल जो कैसी-कैसी स्मृतियों का सैलाब लेकर आ गया है इस छोटे से बंकर में !

     कैसा लगता है किसी ख़तरनाक मिशन पर एक तयशुदा मृत्यु की तरफ़ जाते हुये सैनिकों को ?

     सच कहूँ, डायरी मेरी, तो कोई उचित शब्द नहीं हैं मेरे पास जिनसे सलीके का एक कोई वाक्य बुन सकूँ जवाब में ! उन्नीस साल पहले का वो युद्ध याद आता है | एक मिशन...जिस पर जाने से पहले बटालियन के कमान्डिंग ऑफिसर ने मिशन पर जाने वाली टीम के हम समस्त सदस्यों से एक-एक छोटा सा ख़त लिखवा कर रख लिया था अपने-अपने घरवालों के नाम कि अगर वापस सही-सलामत नहीं आयें तो... ! ये और बात है कि वो ख़त कभी प्रेषित नहीं हुये...पूरी टीम ही आधे रास्ते से वापस बुला ली गई थी कि युद्ध समाप्ति का ऐलान हो गया |

     लेकिन ऐसे अनगिनत ख़त मुल्क के जाने कितने घरों में पहुँचे भी...रोते-बिलखते परिवार के लोगों के पास | इनमें से कई ख़त तो शहीद सैनिक के पार्थिव शरीर के साथ-साथ ही पहुँचे घर | दरअसल युद्ध के दौरान किसी भी ख़तरनाक मिशन पर जाने से पहले, सैनिकों से उनके परिजनों के नाम की चिट्ठी लिखवा कर रख लिए जाने की एक पुरानी परिपाटी रही है |

     ...तो कैसा लगता है एक तयशुदा मृत्यु की तरफ़ बढ़ते हुये ?

     आओ डियर डायरी, आज तुम्हें एक बहादुर सैनिक का आख़िरी ख़त सुनाता हूँ इस सवाल के जवाब में | उन्नीस साल पहले अगर वो युद्ध नहीं हुआ होता कारगिल की उन बर्फ़ीली चोटियों पर तो उस उन्नीस साल पहले वाले जुलाई को निम्बु साब पचीस के होते | निम्बु साब....राजपूताना राइफल्स के कैप्टेन निकेजकौउ कैंगेरो, जिन्हें बाद में मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया...दुश्मनों के कब्ज़े से अपनी चोटी को छुड़ाने के लिए रॉकेट-लॉंचर लेकर बिना जूते के सोलह हज़ार फुट की ऊँचाई पर चढ़ जाने वाले निम्बु साब अपनी नियत मृत्यु से अच्छी तरह वाकिफ़ थे | उस आख़िरी मिशन पर जाने से पहले निम्बु साब का लिखा ख़त, जिसका निकटतम हिन्दी अनुवाद नीचे है, शुष्क से शुष्कतर संवेदनाओं को नम कर देने की क़ाबिलियत रखता है...

“मेरे प्यारे मम्मी-पापा,                   20 जून 1999 

कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे ऐसी कोई चिट्ठी लिखने की आवश्यकता पड़ेगी | लेकिन आज यह ज़रूरी लग रहा है कि अपना आख़िरी संदेश आपलोगों के साथ साझा करूँ |

पाकिस्तानियों ने घुसपैठ करके हमारे कुछ इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया था, इसलिए हमें इधर कश्मीर के द्रास और बटालिक सेक्टर में आना पड़ा है | मुझे पता है कि ईश्वर मेरे साथ है और वो मेरी रक्षा करेगा...लेकिन यदि ईश्वर की यही इच्छा है कि मैं अपने जीवन की क़ुरबानी दूँ, तो फिर मुझे दुबारा मौक़ा नहीं मिलेगा आपलोगों से मुख़ातिब होने का

मन बहुत उदास है | मैं आपलोगों को अब कभी नहीं देख पाऊँगा, सोचकर ही बहुत दुखता है | लेकिन ईश्वर की इच्छा यही है तो मैं शिकायत भी कैसे कर सकता हूँ |

अगर मैं वापस नहीं आया तो मैं चाहता हूँ कि आपलोग मेरे कुछ शब्द याद रखें | मेरे प्यारे मम्मी-पापा, मैं आपलोगों से बहुत प्यार करता हूँ | आपलोगों का ख़्याल रखने के लिए मैंने हमेशा अपना सब कुछ देने की कोशिश की है और हमेशा यही चाहा है कि आपलोग ख़ुश रहें | लेकिन शायद मैं अपने इस छोटे से जीवन काल में सफल नहीं हो पाया ऐसा करने में |

 मैं जानता हूँ कि मैंने कई बार आपलोगों को शर्मिंदा किया है और बहुत परेशान किया है | कृपया मुझे मेरी ग़लतियों के लिए माफ़ कर दीजिएगा | आपदोनों ने मुझे इतना प्यार दिया है और इतना कुछ सिखाया है कि मैं जीवन के आखिर क्षणों तक एक अच्छा लीडर बना रहा हूँ | मैं कृतज्ञ हूँ | बहुत-बहुत शुक्रिया आपदोनों का |

मेरे प्यारे पापा, अभी रोना आ रहा है छोटे भाई और बहनों के बारे में सोचकर | आप उनको अच्छे से गाइड करना बेहतर मनुष्य बनने के लिए | उनसे कहिएगा कि मैं उनसे बहुत प्यार करता था | दादा जी और दादी माँ से भी कहिएगा कि मैं उन्हें प्यार करता था | सारे रिश्तेदारों और दोस्तों को मेरा प्रणाम कहिएगा और कहिएगा कि मुझे माफ़ कर दें जो कभी मैंने उनका दिल दुखाया हो |

मैं अगर ये बोलूँ भी कि जब मैं नहीं रहूँ तो आप मत रोना, लेकिन आप इतना प्यार करते हैं मुझसे कि मैं जानता हूँ आप रोएँगे | लेकिन ख़ुश रहिएगा यह सोच कर कि मैं आपसब की स्मृतियों में तो रहूँगा | मेरे सारे दोस्तों को लिख दीजिएगा ख़त, जिनके पते मेरे डायरी में हैं

पापा-मम्मी, आपदोनों से एक बहुत ही व्यक्तिगत बात बतानी थी | मेरी एक गर्लफ्रेंड है...उसका नाम कैर्मीला है | आप जानते भी हैं उसको | आपदोनों शायद उसको पसंद ना करें | लेकिन मैं उससे प्यार करता हूँ और वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है | इस बार जब मैं छुट्टियों में आया था मई महीने में, मैंने उसका हाथ मांगा था और वो तैयार थी मुझसे शादी करने के लिए | अगर मैं वापस ना आऊँ तो कृपया उसका भी ख़्याल रखिएगा | वो एक सच्ची दोस्त है मेरी | हमदोनों एक-दूसरे से अपनी सारी समस्याएँ साझा करते थे | मैं जानता हूँ, वो मुझसे सच्चा प्यार करती है | मैं यदि वापस नहीं आ पाता हूँ तो उसके लिए कुछ कीजिएगा | यह मेरा आप दोनों से विनम्र निवेदन है |

आपदोनों पर ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा बना रहे और आपदोनों के अच्छे स्वास्थ्य और शांति की कामना करता हूँ |

आपका प्यारा बेटा 
नीबू ”

     ...तो कैसा लगता है तयशुदा मौत की तरफ़ बढ़ते हुये ? नहीं, कोई जवाब नहीं है मेरे पास | डर...विछोह...अपने प्रियजनों को दुबारा ना देख पाने का नतमस्तक भय...और इन सबके बीच कहीं दबा-सा, छुपा-सा एक गिल्ट भी कि जैसे पर्याप्त नहीं कर पाये ज़िंदगी के लिए...अपनों के लिए ! कैसा लगता है...कि जैसे सब कुछ छूटा जा रहा ! नील कमल की एक कविता का अंश याद आता है...
“भय को देखना हो
नतमस्तक, करबद्ध
तो देखो उस आदमी की आँखों में
जिसे मालूम है
ज़िन्दगी की उलटी गिनती”



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