31 July 2014

एक सिगरेट-सी दिल में सुलगी कसक और ब्लौगिंग के छ साल

कैसे तो कैसे बीत जाता है ये कमबख़्त वक़्त और हम खर्च होते रहते हैं इसके इस बीतते जाने में...नामालूम से | पता भी नहीं चला और इस ब्लौग पर लिखते-लिखते छ साल हो गए | तो "पाल ले इक रोग नादां..." की छठी पर एक पुरानी ग़ज़ल :- 

उफ़ ये कैसी कशिश ! बेबसी ? हाँ वही !
बेख़ुदी ? बेक़सी ? हाँ वही ! हाँ वही !

करवटों ने सुनी फिर कहानी कोई
रतजगों से जो लिक्खी गई ? हाँ वही !

एक सिगरेट-सी दिल में सुलगी कसक
अधजली, अधबुझी, अधफुकी ? हाँ वही !

सुब्ह बेचैन है, दिन परेशान है
रात की हाय ये दिल्लगी ? हाँ वही !

फोन पर बात तो होती है खूब यूँ
तिश्नगी फोन से कब बुझी ? हाँ वही !

सैकड़ों ख़्वाहिशें सर पटकती हैं रोज़
देख कर जेब की मुफ़लिसी ? हाँ वही !

ज़िंदगी जैसे हो इक अधूरी ग़ज़ल
काफ़ियों में ही उलझी हुई ? हाँ वही !
('लफ़्ज़' , 'गुफ़्तगू' और 'अभिनव प्रयास' में प्रकाशित)


11 comments:

  1. लाजवाब !
    हमेशा की तरह उम्दा गजल.

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  2. सैकड़ों ख़्वाहिशें सर पटकती हैं रोज़
    देख कर जेब की मुफ़लिसी ? हाँ वही !
    बहुत खूब...
    ब्लॉग की छठी सालगिरह मुबारक हो

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  3. वाह बहुत बेहतरीन !!!

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  4. ब्लॉग की छठी सालगिरह मुबारक हो

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  5. ज़िंदगी जैसे हो इक अधूरी ग़ज़ल
    काफ़ियों में ही उलझी हुई ? हाँ वही !
    बहुत खू हमेशा की तरह लाजवाब्1 ब्लोग की छ ठी साल गिरह की बहुत बहुत बधाई शुभकामनायें

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  6. आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...

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  7. दिल को छू जाने वाली है ये जिंदगी की गज़ल । स्वतंत्रता दिवस की बहुत शुभ कामनाएं।

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  8. बेहतरीन प्यारेलाल! उम्दा और प्रयोगात्मक ग़ज़ल! दिल छू लेने वाले अशआर !

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