कार्ट-व्हील और समर-सॉल्ट
करती हुयी धड़कनों...इन रातों की धड़कनों का कोई पैमाना नहीं है | दुनिया की सर्वश्रेष्ट ईसीजी मशीनें भी शायद समर्पण कर
दे जो कभी मापने आये इन धड़कनों को | उस
रात जब बर्फ़ की सफ़ेद चादर पर उतराती हुई गहरी धुंध ने बस थोड़ी देर के लिए अपना परदा
उठाया था और छलांगे लगता
हुआ हिरण–प्रजाति का मझौले कद वाला वो शावक खौफ़ और आतंक
की नई परिभाषा लिखता हुआ आ छुपा था एक बंकर में,
रात की ये बेलगाम धड़कनें अपने सबसे विकराल रूप में उसकी
सहमी आँखों में नृत्य कर रही थीं | तेंदुये
का चार सदस्यी वाला छोटा सा परिवार उस शावक को अपना आहार बनाने के लिए सरहद पर लगे
कँटीले बाड़ों के उस पार हौले-हौले गुर्रा रहा था और उलझन में था कि अपने आहार पर
हक़ जमाने के लिये राइफल लिये खड़े सरहद-प्रहरियों से भिड़ना ठीक होगा कि नहीं | उनकी जानिब बर्फ़ के उलीचे गए चंद गोलों ने तत्काल ही
तेंदुये परिवार की तमाम उलझनों को दरकिनार कर दिया और वापस लौट गए वो चारों नीचे
जंगल में |
बंकर के कोने में सिमटा
हुआ शावक अपनी धौंकनी की तरह चढ़ती-उतरती साँसों पर काबू पाते हुये मानो दुनिया भर
की निरीहता अपनी बड़ी-बड़ी आँखों में समेट लाया था |
लेकिन उसे कहाँ खबर थी कि उनके रक्षक बने सरहद-प्रहरी, विगत पाँच महीनों से भयानक बर्फबारी की वजह से बंद हो आए
सारे रास्तों की बदौलत बस बंध-गोभी और मटर खा-खा कर तंग हो आयी अपनी जिह्वा पर नए
स्वाद का लेप चढ़ाने के लिए उसे भूखी निगाहों से घूर रहे थे | छोटे से रेडियो-सेट पर प्रहरियों के सरदार को संदेशा भेजा
गया | सरदार बड़ी देर तक उलझन में
रहा था...रात की समर-सॉल्ट करती हुयी धड़कनें अचानक से बैक-फ्लिप करने लगी थीं |
बड़ी देर तक बर्फ़ में दबे-घिरे उस बंकर में चुप्पी पसरी रही
और फिर उसी पसरी हुई चुप्पी को चौंकाती सी आवाज़ उभरी सरदार की सख़्त ताकीद के साथ कि
उस शावक को छोड़ दिया जाये | सरदार
का बड़ा ही सुलझा हुआ सा तर्क था कि जो तुम्हारी
शरण में ख़ुद अपनी प्राण-रक्षा के लिए
आया हो, उसी का भक्षण कैसे कर सकते
हो | भिन्नाये से प्रहरियों को आदेश
ना मानने जैसा कोई विकल्प दिया ही नहीं था उनकी वर्दी ने |
अब तक शांत और निश्चिंत हो आए शावक को पहले तो बंध-गोभी के
खूब सारे पत्ते खिलाये गए और फिर उसे बड़े स्नेह और लाड़ के साथ सरहद के अपनी तरफ वाले
जंगल में छोड़ दिया गया |
सरहद पर की वो बर्फ़ीली रात अब मुसकुराती हुयी सुबह को आवाज़
दे रही थी...
सरहद पर से आती एक बहुत सुंदर रचना.रक्षक ने अपने धर्म का सही पालन किया.रक्षकों को सलाम.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ.
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteis this true incident ?
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 17/08/2014 को "एक लड़की की शिनाख्त" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1708 पर.
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteमारने वाले से बचाने वाला ही जीतता है.
बुद्ध उदित हो गये-
सरदार से मैं भी सहमत हूं.
ReplyDeleteसीमाओं और सीमाओं के प्राणियों की रक्षा करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete:) न्याय दया का दानी।"
ReplyDelete"न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।"
- मैथिलीशरण गुप्त
* * *
ह्म्म्म्म... ! सेंसिटिव पोस्ट ।
ReplyDeleteवाह गौतम, अब तक तो आप पर और आपके साथियों पर गर्व था अब प्यार भी उमड़ रहा है. प्रहरियों के सरदार को भी मेरा सलाम.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
कितनी सारी वजहें हैं तुम्हें चाहने की .....
ReplyDeleteजियो सरदार !!
god bless you !!
अनु
गौतम, बहुत सुंदर और मार्मिक रचना...खुद पर नियंत्रण करना बहुत बड़ी बात है और हमारे जवान यह करते हैं...सैल्यूट करती हूं तुम सभीको..
ReplyDeleteॐ
ReplyDeleteगौतम भाई नमस्ते
आज आपका आलेख पढ़ा और मन बाग़ बाग़ हुआ।
आप उन ' बहादुर सरदार ' को मेरी बधाई और शाबाशी अवश्य पहुंचा दीजियेगा।
सरहद आप जैसे जांबाज़ सपाहीयों की बदौलत सरक्षित है और भारत माता अपने
१०० करोड़ बच्चों को सुख की नींद सुलातीं हैं,ज़िंदा रखतीं हैं उसका श्रेय और भार
भी आप के मज़बूत कन्धों पर है। आप जैसे बेटे हर माँ की ममता के आशीर्वाद
स्वरूप हैं। जीते रहिये सदरा प्रसंन्न रहें। ढेर सारे आशिष और हाँ लिखते रहिये।
आपका दिन मंगलमय हो और हर शाम सुहानी हो
स स्नेह
- लावण्या
गौतम भाई, सरदार को हमारा सैल्यूट कहियेगा, मानव निर्मित सीमाओं पर ये प्रेम और मोहब्बत की मिसाल के रूप में जानी जायेगी
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