उस दिन जो एक वो शेर सुनाया था जिस पर गुरूजी ने खूब डंडे बरसाये थे कि "बिन बाप के..." लिखने की हिम्मत कैसे हुयी मेरी, तो वो ग़ज़ल अब मुक्कमल हो गयी गुरूजी के ही आशिर्वाद से। बहरे रज़ज पर बैठी हुई ये ग़ज़ल। इस बहर पर कुछ बहुत ही प्यारी ग़ज़लें कही गयी हैं बड़े शायरों द्वारा। विशेष कर दो ग़ज़लों का जिक्र करना चाहुँगा जो मेरी सर्वकालिन पंसदीदा हैं- पहली इब्ने इंशा जी की कल चौदवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा और दूसरी बशीर बद्र साब की सोचा नहीं अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहीं।...तो पेश मेरी ये ग़ज़ल:-
है मुस्कुराता फूल कैसे तितलियों से पूछ लो
जो बीतती काँटों पे है, वो टहनियों से पूछ लो
लिखती हैं क्या किस्से कलाई की खनकती चूडि़यां
सीमाओं पे जाती हैं जो उन चिट्ठियों से पूछ लो
होती है गहरी नींद क्या, क्या रस है अब के आम में
छुट्टी में घर आई हरी इन वर्दियों से पूछ लो
जो सुन सको किस्सा थके इस शह्र के हर दर्द का
सड़कों पे फैली रात की खामोशियों से पूछ लो
लौटा नहीं है काम से बेटा, तो माँ के हाल को
खिड़की से रह-रह झाँकती बेचैनियों से पूछ लो
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
आकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
लब सी लिये सबने यहाँ, सच जानना है गर तुम्हें
खामोश आँखों में दबी चिंगारियों से पूछ लो
होती हैं इनकी बेटियां कैसे बड़ी रह कर परे
दिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
...पाचवें शेर का मिस्रा "लौटा नहीं है काम से बेटा, तो माँ के हाल को" अभी दुरूस्त नहीं हुआ है। आप सब कुछ सुझाव दें। जल्द ही मिलता हूँ अगले पोस्ट में।
आप सब ने दो उस्ताद शायरों की एक गज़ल की अनूठी जुगलबंदी देखी या नहीं? दोनों गुरूजनों को मेरा नमन इस बेजोड़ प्रस्तुति पर।
बहुत बढियां !आप हुनरमंद तो हैं हीं कला पारखी भी !
ReplyDeleteबढ़िया आलेख,
ReplyDeleteशानदर गज़ल।
बधाई!
शानदार गज़ल की बधाई ,
ReplyDeleteअजी हम क्या खाकर सुझाव देंगे !
बहुत बढिया !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है, बेहतरीन ग़ज़ल, कुछ शेर तो बहुत ही उम्दा हैं.
ReplyDeleteलिखती हैं क्या किस्से कलाई की खनकती चूडि़यां
ReplyDeleteसीमाओं पे जाती हैं जो उन चिट्ठियों से पूछ लो
बेहतरीन लिखा है आपने गौतम जी। मेरी बधाई स्वीकार करें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
डंडे वाली जगह पर तो डंडे ही पड़ेंगें । मगर प्रशंसा वाली जगह पर प्रशंसा भी मिलेगी । पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी बन पड़ी है । एक मुश्किल से काफिये को खूबी के साथ निभाया है । बधाई
ReplyDeletemaaf kar do us dost ko ...shayad kuchh wajah hogi ...
ReplyDeletenaina
लौटा नहीं है काम से बेटा, तो माँ के हाल को
ReplyDeleteखिड़की से रह-रह झाँकती बेचैनियों से पूछ लो
मुझे तो बढ़िया लग रहा है.. खासकर दूसरी लाईन..
होती है गहरी नींद क्या, क्या रस है अब के आम में
ReplyDeleteछुट्टी में घर आई हरी इन वर्दियों से पूछ लो
behtareen .....apne bhai kee yaad aa gaee...
होती है गहरी नींद क्या, क्या रस है अब के आम में
ReplyDeleteछुट्टी में घर आई हरी इन वर्दियों से पूछ लो
behtareen .....apne bhai kee yaad aa gaee...
होती है गहरी नींद क्या, क्या रस है अब के आम में
ReplyDeleteछुट्टी में घर आई हरी इन वर्दियों से पूछ लो
जो सुन सको किस्सा थके इस शह्र के हर दर्द का
सड़कों पे फैली रात की खामोशियों से पूछ लो
waah bahut hi lajawab
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ReplyDeleteलब सी लिये सबने यहाँ, सच जानना है गर तुम्हें
ReplyDeleteखामोश आँखों में दबी चिंगारियों से पूछ लो
बेहतरीन ग़ज़ल
regards
bahut hi badhiya..
ReplyDeleteभाई गौतम जी ,पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है .....गहरी गई कितनी जड़ें .....,लव सीं लिए ....और होती है इनकी ........शेर बहुत अच्छे लगे ,कल रात तो आपकी नशिस्त ने सार्थक कर दी !
ReplyDeleteएक एक शेर सच कि अनुभूति देता हुआ है |एक अच्छे आलेख के लिए बधाई |
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए धन्यवाद |
subhan allah...!!!
ReplyDeletemeet
आपके शेर देखे, एक मुकम्मल ग़ज़ल देखी, कलम का हुनर देखा, दिल की दिमाग से दोस्ती भी देखी, तकनीक से याराने भी देखे, सांचों में ढला हुस्न भी देखा और बेवक्त की अंगड़ाई भी देखी... और क्या बताऊँ कि क्या देखा है ?
ReplyDeleteमैं जो छोटी कहानियां लिखता हूँ, वे बिना अपना वजूद खोये आपके शेर बन मुस्काती सी दिखती हैं. मेरे हज़ार शब्दों को आप चंद शेर में सोने सा खरा बना देते हैं.
मिलने कि उम्मीद में विस्की की बोतलें भी बेकरार हैं . आप क्या लेंगे ?
बहुत लाजवब जी, शुभकामनएं.
ReplyDeleteरामराम.
हर शेर पर वाह वाह निकल रही है गौतम जी।
ReplyDeleteलौटा नहीं है काम से बेटा, तो माँ के हाल को
खिड़की से रह-रह झाँकती बेचैनियों से पूछ लो
ये ज्यादा ही दिल को छू गया।
Ek 'aah' nikalee ek 'waah' nikalee..aur baaqee khaamoshee...!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahatak-thelightbyalonelypath
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
ReplyDeleteआकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
बहुत खूब .बहुत बढ़िया लिखा है आपने एक एक शेर खुबसूरत लगा है शुक्रिया
गौतम जी,
ReplyDeleteजब गुरूजी ने तारीफ़ कर दी है तो अब हमारा कुछ और कहना क्या। बहुत ही शानदार प्रस्तुति, बस इसके सिवाय कुछ और नही कह सकता।
खिड़की से रह-रह झांकती बैचेनियों से पूछ लो
खामोश आँखों में दबी चिंगारियों से पूछ लो
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
मेजर हमें तो आपका ये शेर बहुत पसंद आया....
ReplyDeleteजो सुन सको किस्सा थके इस शह्र के हर दर्द का
सड़कों पे फैली रात की खामोशियों से पूछ लो
क्या बात कही.....
बहुत ही सुन्दर आलेख ........गज़ल की एक एक पंक्तियाँ अच्छी है..........
ReplyDeleteभाई हमें तो मजा आ गया ... एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteGoutam ji.........
ReplyDeleteItni lajawaab gazal mein koi laain sujaaye koi.........toba toba ......ab to Guru dev nein bhi kah diyaa hai ...... gazal kaabile taareef hai...... 3 sher to foujiyon ko hi samarpit hain..... aur baaki sab unse bhi aage hain....
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
ReplyDeleteआकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
khuub acchhi ghazal ...
कई बार पढ़कर भी तय न कर पाई की किस एक शेर को सिरमौर कहूँ......
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल है.....सुपर्ब !!! बिलकुल मुग्ध कर लिया इसने तो....
लिखती हैं क्या किस्से कलाई की खनकती चूडि़यां
ReplyDeleteसीमाओं पे जाती हैं जो उन चिट्ठियों से पूछ लो
होती है गहरी नींद क्या, क्या रस है अब के आम में
छुट्टी में घर आई हरी इन वर्दियों से पूछ लो
वाऽऽऽऽऽऽऽह
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
आकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
ये तो लाज़वाब वीर जी...!
आप जिसे मुक़ाम ना दे पाए उस शेर को भला अब कौन गढ़ने की हिमाक़त कर सकेगा....!
एक बड़ा ही प्यारा-सा दोस्त मेरी कुछ मासूम गुस्ताखियों की ऐसी सजा देगा, सोचा भी नहीं था...
देश के प्रहरियों का इतना भावुक होना ठीक नही...! take it easy...! communication fills all gaps :)
लिखती हैं क्या किस्से कलाई की खनकती चूडि़यां
ReplyDeleteसीमाओं पे जाती हैं जो उन चिट्ठियों से पूछ ल
बहुत ही लाजवाब गज़ल है बहुत बहुत शुभकामनाये़
गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है.......
ReplyDeleteअंतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट.
कैसी अद्भुत ग़ज़ल हुई है अब.
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
आकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
लाजवाब शेर हुआ है.
लौटा नहीं है काम से बेटा, तो माँ के हाल को
ReplyDeleteखिड़की से रह-रह झाँकती बेचैनियों से पूछ लो
wah !!
Gautam sir.
aapka ye sher to "yahan" asar karta hai....
होती हैं इनकी बेटियां कैसे बड़ी रह कर परे
दिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
ye bhi mukmill hua chahta hai.
इस नायब ग़ज़ल के लिए जीतनी तारीफ़ मैं करूँ वो तो कम ही होगा ... क्या खूबसूरती से मुश्किल से काफिये का आपने निर्वाह किया है क्या कमाल किया है आपने वाह ... और हाँ वो शे'र बिन बाप वाला बदल के बच गए गुरु जी से छड़ी खाने से और हम सबसे कुछ और खाने से .... हा हा हा मगर इस नायब ग़ज़ल में हर चीज आपने डाली है हर चीज आपने परोसी है ... बहोत बहोत बधाई आपको .... वापिस दिल्ली कब आरहे हो जॉन
ReplyDeleteवेसे बहन ने ऊपर कुछ सिख दिए है उसपे अम्ल जरुर करें...
अर्श
khidkiyaan to koi bhi sahi kar degaa...
ReplyDeletepahle ye bataiye ke kiske S.M.S. ne aapki WATT lagaa di....??
गौतम जी,
ReplyDeleteआपकी गजलें तो मेरे लिए हमेशा से प्रेरणा दायक रही है.और गुरुदेव का दरवाजा दिखाने वाले भी आप ही है.अब आपकी गजल की क्या तारीफ़ करुँ मैं तो वैसे ही आपका प्रशंसक हूँ.और आप कामिया छोड़ते ही नहीं है.अगर कोई कमी रह जाती है तो फिर वह इतनी बारीक होती है कि आदरणीय गुरुदेव ही खोज सकते है.हम तो आपकी गजलों से मस्त होते रहते है.आपकी पूरी गजल पढ़ी तो पढ़ कर आनद कि स्थिति में हो गये.एक एक शेर आत्मा से निकलता लगा.
आपके मिसरे में सुधार की क्या बात करुँ मुझे तो ठीक ही लगा...बहर में लगा है.'रह रह' की जगह 'रह के' करने पर पढने में अच्छा लगेगा.मैं तो अपने अल्प ज्ञान से इतना ही कह सकता हूँ.
शानदार गजल...के लिए आभार.
शानदार गज़ल की बधाई
ReplyDeleteगौतम जी ,
ReplyDeleteअब तो गुरु जी खुद आप बनते जा रहे हो. ...वाह ....भई मेरी तो तारीफ से बाहर है अब तो .....!!
गॊतम जी बहुत सुंदर लिखा आप ने, किस किस की तारीफ़ करे ?
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
जनाब गौतम जी, क्या ही ख़ूब, क्या ही ख़ूब ग़ज़ल पढ़ी है भाई! अहा! बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteऔर सर एक बात कहें ?
जो लोग इसे क़ाफ़िए रदीफ़ और रज़ज में तौलते होंगे, वो ग़ज़ल के दुश्मन हैं हमारी नज़र में।
शेरो-ग़ज़ल ग्राम्रर नहीं हैं, ये तो सरासर फ़लक से नाज़िल हुआ करते हैं गौतम साहब। जैसे ये बहुत बहुत बहुत बेहतरीन ग़ज़ल आप पर नाज़िल हुई। आज आपने दिल खुश कर दिया आर्मीमैन। इस ग्रामेटिकल ग़फ़्लत से दूर ही रहिएगा साहब। आप हमारे बहुत ही अज़ीज़ दोस्त हैं ना इसलिए कह गए। आप यूँ ही मुकम्मिल हैं और बहुत ख़ूब हैं।
हमेशा आपके मुरीद
bahut khoob
ReplyDeletevenus kesari
वाह वाह! तभी तो कहा है, "गुरुर्ब्रह्मा..."
ReplyDeleteलिखती हैं क्या किस्से कलाई की खनकती चूडि़यां
ReplyDeleteसीमाओं पे जाती हैं जो उन चिट्ठियों से पूछ लो
उम्दा शेर है.
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
ReplyDeleteआकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
khoobsurat....
is sher ke to ham qayal ho gaye hain...
gahri baat aap kah gaye hai..
गौतम जी, अनगिनत बार आपकी इन गजलों का आत्यंतिक प्रभाव महसूसता हूँ कहीं बहुत भीतर और जिह्वा है कि लपलपाने लगती है कुछ कहने के लिये - पर क्या करूँ मुग्धता का - चुप रह जाता हूँ ।
ReplyDeleteअभी एक मासूमियत देखी मैंने । गजलों का व्याकरण जानते हुए भी एक शेर थोड़ा कमजोर रख दिया , फिर उसे कह भी दिया हम सबसे । गजलों की तमीज हल्की-सी भी नहीं हमें इसलिये विवेक जी की हाँ में हाँ मिलाना ही ठीक है ।
आभार ।
रचना पढ़ कर जब पाठक असहज हो सकता है तो लेखक का असहज होना तो स्वाभाविक ही है |एक प्रहरी की पारिवारिक और मानसिक स्थिति का सजीव चित्रण
ReplyDelete[:(]
ReplyDeletenaina
गहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
ReplyDeleteआकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो..
wah, har baar ki tarah behatreen,
mujhe ye she'r jyada pasand aaya isliye ise mene apani dairy me note kar liya he, ji hnaa aapke naam se hi.
पहले शेर से अंतिम तक हर एक शेर बेहद प्रभावी है.चाहता हूँ कि अपनी टिप्पणियों से मुझे केवल वाह वाह करने वाला न समझा जाए. लेकिन इन शेरों को पढ़ कर वाह वाह न करुँ तो क्या करुँ?
ReplyDeleteएक बड़ा ही प्यारा-सा दोस्त मेरी कुछ मासूम गुस्ताखियों की ऐसी सजा देगा, सोचा भी नहीं था ये पंक्ति और विस्तार मांगती है....
ReplyDeleteगहरी गईं कितनी जड़ें तब जाके क़द ऊंचा हुआ
आकाश छूने की कहानी फुनगियों से पूछ लो
ओह!!!! अब इस शेर की कैसे तारीफ़ करूं?? इसकी तारीफ़ में शब्द ढूंढूं तो मेरा शब्दकोष दरिद्र मालूम पड़ता है!! लाजवाब शेर!! फेड्रिक नीत्से के वचनों को याद दिलाता हुआ सा-अगर किसी वृक्ष को आकाश के तारे छूने हों तो उसे अपनी जड़ें पाताल तक भेजनी पड़ेंगी
"होती है गहरी नींद क्या, क्या रस है अब के आम में
ReplyDeleteछुट्टी में घर आई हरी इन वर्दियों से पूछ लो"
मेरे चाचा आर्मी में हैं... बहुत चीज़ें देखी... सोमालिया भी, श्रीलका भी.... इसलिए इन शेरों
का मतलब समझ सकता हूँ
बेहतरीन ....