07 July 2009

दिल्ली की एक शाम और नशिस्त की रपट

छुट्टी बीतती जा रही है। समय की गति भी अबूझ है। जब मैं चाहता हूँ कि ये एकदम कच्छप गति में चले, मुआ घोड़े की सरपट चाल में दौड़ा जा रहा है। तनया के संग तो जैसे दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ रहे हैं।
खैर तो हाजिर हुआ हूँ अपनी पिछली पोस्ट में जिक्र हुये नशिस्त की रपट लेकर।

20 जून की वो संध्या अजब-सी उमस लिये हुये थी। दिल्ली की संध्या। कश्मीर के बर्फीले चीड़-देवदार के बीहड़ों में रास्ता ढ़ूंढ़ना कहीं आसान जान पड़ा बनिस्पत दिल्ली की उस भूल-भूलैय्या ट्रैफिक में। ...और फिर मेट्रो रेल का विस्तार देख कर इंसान की असीम शक्ति का आभास हुआ। मोबाईल पर मनु जी द्वारा तमाम दिशा-निर्देशन के बाद मेट्रो रेल के राजीव चौक स्टेशन पर उनसे और अर्श भाई से मुलाकात हुई। अर्श का गर्मजोशी से गले मिलना एकदम से जोड़ गया हमें और फिर हम तीन तिलंगे चल पड़े मेट्रो पर सवार हो। अर्श कम बोलते हैं। मेट्रो रेल के यमुना बैंक स्टेशन के बाहर प्रतिक्षा शुरू हुई मुफ़लिस जी के लिये...कुछ ही क्षणों बाद वो हाजिर थे। उनके चरण-स्पर्श के लिये झुके मेरे हाथों को बीच में ही रोक कर उनका मुझे गले से लगा लेना अविस्मरणीय कर गया उस पल को। ...और फिर हम चल पड़े दरपण की जानिब एक आटो में बैठ कर। आटो में बैठकी भी बकायदा बहरो-वजन में थी। 2122 के वजन में। अर्श-मुफ़लिस-मैं-मनु। या मनु जी के लिये 3 रखें? मुफ़लिस जी तो यकिनन 1 पर फिट बैठते हैं।

दरपण जी-जान से लगे थे अपने निवासस्थान की सफाई में जब हम पहुँचे। देहलीज़ के बाहर जुते-चप्पलों का अंबार लगा देख मुफ़लिस जी के मुख से बेसाख्ता निकला ये जुमला- "वाह! मुशायरे की पूरी तैयारी है...!!"

उधर उस संध्या ने जब मुस्कुराते हुये विदा लिया तो रात अपने पूरे यौवन पर कभी न भूल पाने वाले एक सत्संग के लिये बिछी हुई तैयार हो रही थी। मुफ़लिस जी ने बागडोर थामते हुये नशिस्त का आगाज़ किया। ...तो शुरू करते हैं मुफ़लिस जी की कशिश भरी आवाज में उनकी एक बेमिसाल ग़ज़ल, जिसके नशे में अब तलक हम डूब-उतरा रहे हैं।

दिल की दुनिया में अगर तेरा गुजर हो जाये - >मुफ़लिस





उनकी इस ग़ज़ल का ये शेर "अब चलो बाँट लें आपस में वो बीती यादें / ग़म मेरे पास रहे चैन उधर हो जाये" उस दिन से मेरी जबान पे कुछ ऐसा चढ़ा है कि पूछिये मत। इसी बहर पर एक किसी शायर ने कहा है इतनी आसानी से मिलती नहीं फ़न की दौलत / ढ़ल गयी उम्र तो ग़ज़लों पे जवानी आयी। लेकिन मुफ़लिस जी के शेरों की जवानी तो देखते बनती ही है, उनके चेहरे पे छाया बचपना कहीं से आभास ही नहीं देता उनकी उम्र का। वैसे उनकी इस ग़ज़ल को पूरा पढ़ने के लिये >यहाँ क्लीक करें।

अगली पेशकश मनु जी की...


शेर क्या रूक़्न भी होता है मुक्कमल मेरा - >मनु




मनु जी के साथ सबसे खास बात ये होती है कि कई बार उन्हें खुद ही नहीं पता होता कि वो कितनी बेमिसाल ग़ज़ल कह गये हैं। उस रात को बार-बार बंद होते पंखे{स्पष्ट रिकार्डिंग के लिये} के साथ उतरती उनकी कैप का नजारा अद्‍भुत था। मनु जी की इस ग़ज़ल के इन दो शेरों पर अपनी सारी आह-वाह-उफ़्फ़्फ़्फ़ निछावर है:-
और गहराईयां अब बख्श न हसरत मुझको / कितने सागर तो समेटे है ये सागर मेरा

आह निकली है जो यूं दाद के बदले उसकी / कुछ तो समझा है मेरे शेर में मतलब मेरा

और अब आते हैं हरदिल अज़ीज प्रकाश अर्श अपनी दिलकश आवाज के साथ...

इश्क मुहब्बत आवारापन - >अर्श

अर्श ज्यादा बोलते नहीं, लेकिन जब गाते हैं तो साक्षात सरस्वती विराजती हैं उनके गले में। आह ! क्या आवाज पायी है मेरे गुरूभाई ने...! उस रात हमने उनकी लरज़ती आवाज में डूबी कई बंदिशें और मेहदी हसन व ग़ुलाम अली के गाये कुछ शानदार ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाया। फिलहाल यहाँ प्रस्तुत है उनकी ये खूबसूरत छोटी बहर वाली ग़ज़ल उनकी आवाज में- पहले तहत में और फिर तरन्नुम में:-







पूरी ग़ज़ल पढ़ने के लिये >यहाँ क्लीक करें और साथ में इसी ग़ज़ल पर >निर्मला कपालिया जी की विशेष टिप्पणी पर भी गौर फर्माइयेगा। अर्श, तुम भी गौर कर लो।

और अब दरपण की बारी...

संदूक - >दरपण

हिंदी ब्लौग-जगत में गीत-ग़ज़ल-नज़्म-कविता लिखने-पढ़ने वाले ब्लौगरों को मैं दो हिस्सों में बाँटता हूँ- एक, जिन्होंने दरपण की इस नज़्म संदूक को पढ़ा है और दूसरा, जिन्होंने इस नज़्म को नहीं पढ़ा है। मैं पहले हिस्से में हूँ और फिर उस रात मुझे सौभाग्य मिला उन्हीं की जुबान में इस दुर्लभ नज़्म को सुनने का। दरपण की उम्र का अभास उनकी रचनाओं से नहीं होता। जेनेरेशन वाय {y} का प्रतिनिधित्व करने वाला ये युवा इतना संज़ीदा हो सकता है जिंदगी के प्रति और इश्क को लेकर कि हैरानी होती है...और साथ ही सकून भी मिलता है। खैर आप ये नज़्म सुनिये दरपण की आवाज में{कहीं गुलज़ार का धोखा हो तो बताइयेगा} और पूरी नज़्म पढ़ने के लिये >यहाँ क्लीक करें।




पोस्ट कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया है। तो अपनी भद्‍दी आवाज़ न सुनाते हुये, आपलोगों को आखिर में मुफ़लिस जी की एक और ग़ज़ल सुना देता हूँ। दीक्षित दनकौरी द्वारा संपादित "ग़ज़ल...दुष्यंत के बाद, भाग ३" में छपी इस ग़ज़ल को पढ़कर इसका दीवाना तो पहले से ही हो चुका था, उस दिन उनकी मधुर अदा के साथ उनकी आवाज में सुनना दीवानगी को अपने चरम पर ले गया। पूरी ग़ज़ल >यहाँ पढ़ें और सुने उनकी जादुई आवाज में नीचे:-

शौक दिल के पुराने हुये - मुफ़लिस




...सुबह तीन बजे तक चलता रहा ये दौर। कुछ और दुर्लभ रिकार्डिंग शेष पड़े हैं अभी मेरे पास, जो निकट भविष्य में सुनाऊँगा। फिलहाल इतना ही। ये पोस्ट और इस पोस्ट पर लगी तमाम आडियों-क्लिपिंग्स के लिये अनुजा >कंचन को विशेष रूप से शुक्रिया और >कुश को भी जिसके सुझाव से मैं ये कर पाया।

68 comments:

  1. पढ़कर सुनने की उत्सुकता पराकाष्ठा को पहुँच गयी है....जल्दी ही सुनती हूँ....आज नेट साथ नहीं दे रहा....

    बहुत बहुत आभार आपका.

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  2. भाई वाह बहुत खूब्म्ह्फिल जमी ....मजा आ गया ...सारे ऑडियो सुने मजा आ गया

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  3. ऐसा लगा कि सामने बैठे मुशायरा सुन रहे हैं..वाह वाह!! रिकार्डिंग लगा कर तो मस्ती ही ला दी. शाम को इत्मिनान से फिर सुनुंगा..और प्रस्तुत करो.

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  4. आपकी पोस्ट कहाँ है जी...?
    एक नया वारेंट जारी किया जाए,,,???

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  5. waah, gazab ka mushayara..//
    mahfil ki vo rounak agar in nangi aankho se dekhta to..baat hi kyaa thi.//
    aapki dosti, aapka aadarbhaav,aour aapke gurubhaiyo ki is bethak ki kalpanaa kar rahaa hoo...///hame to ye sab naseeb nahi hota ji..//chahte he kintu chaht knhaa kabhi kisi ki poori hui jo hamaari hogi..//
    kher..
    manuji ne sahi likhaa he, aapki post knhaa he???????

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  6. ्रिशीजी आपका किस तरह धन्यवाद करूँ कि आपने इस नायाब तोहफे ने मुझे कितनी खुशी दी है ये तो मैं जानती थी कि अर्श गाता बहुत अच्छा है मगर आज सुन कर मन भीग गया दर्पण जी की नज़्म पहले पढी जरूर थि मगर उनकी आवाज़ मे सुन कर बहुत अच्छी लगी मनु जी और मुफलिस जी लाजवाब हैं आपको सुनने की तमन्ना तो अधूरी रह गयी कंचनजी और कुशजी का भी बहुत बहुत धन्यवाद सभी बच्छों को मेरा आशीर्वद अगली पोस्ट मे आपकी आवाज़ जरूर हो हाँ तनया को बहुत बहुत प्यार और आशीर्वाद

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  7. माफी चाहती हू जल्दी मे देख नहीं पाई बच्चों की जगह बच्छे लिखा गया क्या करूं उम्र का तकाज़ा है आभार्

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  8. वाह बहुत ही लाजवाब रिपोर्टिंग की मुशायरे की. अब आज रात को आराम से आपकी दी हुई रिकार्डिंग सुनेगे. वाकई आप्ने ऐसा अदभुत तोहफ़ा दिया है कि आपको तहेदिल से शुक्रिया कहते हैं.

    रामराम.

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  10. kahan hai wo "riksha"?

    kahan hai wo raat ko nepthya se aati aawaz?


    :(

    dokha !! gautam ji dhoka !!

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  11. वाह गौतम जी............. एक से बढ़ कर एक ग़ज़ल चली हैं............... लगता है दिल को चीर कर निकल गयीं सब की सब............ मुफलिस जी, मनु जी, दर्पण जी अर्श जी............. और आपने अपनर को क्यूँ छोड़ दिया जनाब.............हम तो बेताब हैं आपकी आवाज़ को भी............. बार बार आपकी पोस्ट पर आ कर............ देहरादून को ताजा करता हूँ.......... सा लगा कि सामने बैठे मुशायरा सुन रहे हैं

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  12. bus itna hi kahoonga ki pehli baar intzaar itna lamba laga,

    it was worthwile tough,

    fir waapis aata hoon....

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  13. मुशायेरे का लुत्फ़ आ गया.
    सभी आवाजों को सुना.सभी की रचनाएँ उनके स्वर में बहुत अच्छी लगीं.
    धन्यवाद गौतम जी इतनी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए.
    *अर्श जी की आवाज़ ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ की याद दिलाती है.
    *दर्पण जी के लिखे में गुलजार साहब की झलक मिली.
    आप ने अपनी आवाज़ में कुछ नहीं सुनाया.
    अगली पोस्ट में बाकि दुरलभ रिकॉर्डिंग को भी बांटिएगा.
    ** छुट्टियाँ ख़तम होने लगती हैं तो एक दिन के २४ घंटे भी कम लगते हैं...घरवालों के लिए भी और आप के लिए भी.

    best wishes

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  14. अभी तो पढ रह हूं, फ़िर टिपण्णी देने से पहले सब की टिपण्णीया भी पढी, बहुत अच्छा लेख लिखा ओर सब ने टिपण्णियां भी खुब बढिया दी चलिये अब सब की आवाज मे गजले सुनते है, सब को राम राम
    आप क धन्यवाद

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  15. बहुत अच्छा लेख..jaldee jaldee likha kariye..

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  16. बहुत अच्छा लेख..jaldee jaldee likha kariye..

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  17. बहुत अच्छा लेख..jaldee jaldee likha kariye..

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  18. बहुत अच्छा लेख..jaldee jaldee likha kariye..

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  19. गौतम जी, आपकी पोस्ट ११ बजे की देख ली और पढ़ भी ली मगर रिकार्डिंग सुनने के लिए फिर से अब २ बजे लौटा हूँ और सभी रिकार्डिंग सुनी
    खूब महफ़िल जमाई आपलोगों ने

    मुफलिस जी और अर्श ने तरन्नुम में गा कर समा बाँध दिया
    इश्क मुहब्बत आवारापन, साथ हुए जब छूटा बचपन
    वाह क्या बात है

    और गहराईयां अब बख्श न हसरत मुझको
    कितने सागर तो समेटे है ये सागर मेरा
    मनु भाई के इस शेर ने तो दिल जीत लिया



    क्या ये रिकार्डिंग मुझे मिल सकती है ? प्लीज़ .....
    venuskesari@gmail.com
    बाकी की रिकार्डिंग भी जल्दी से सुनवाइये
    वीनस केसरी

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  20. बहुत बहुत शुक्रिया इस दावते मुशायरे के लिए मगर मियाँ आप अपना कलाम पेश करने से क्यों रह गए ?
    सबकी सुनायी और अपनी बारी आयी तो चल दिये
    यह तो सरासर नाइंसाफी है हम तो आपको सुनने की आस में सारी पोस्ट पढ़ और सुन लिए
    मगर अंत में मायूसी ही मिली !
    इश्क मुहब्बत आवारापन, साथ हुए जब छूटा बचपन
    बस इसी ने कुछ राहत अता की

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  21. चलिए मान लेते हैं...
    होता ही है के सबसे ख़ास प्रस्तुति के लिए ऐसे ही इन्तेजार करवाया जाता है...
    असल में हमें इस पोस्ट का बेसब्री से इन्तेजार था, पहले कभी कोई मुशायरा देखा/सुना नहीं था न...?
    :)
    सो दिन में कई बार आपका ब्लॉग खोलते ...और खोलते ही सामने तनया शरारत भरी मुस्कान लिए मिलती ....( फिर आ गए अंकल...? ज़रा सब्र कीजिये अंकल .... अभी शो में टाइम है..)
    :)

    वो मस्ती तो खैर कभी भी नहीं उतरेगी,,,पर जो आपने विस्तार से जीवंत वर्णन किया है ...उसे पढ़ कर एक एक पल को फिर से जी लिए हम,,,सच में आपके लेखन में कुछ है जो सबसे अलग करता है आपको ,,,आपका हर चीज को देखने ,,महसूस करने का तरीका ,,और उसे कागज़ पर और फिर दिलों में उतार देने का हुनर...के पढने वाला उसी को जीने लगता है...
    जब से हम इस पोस्ट के पात्र बने हैं...
    आपकी पिछली सभी पोस्टें .. . सभी कहानियों की याद आ रही है,
    :)
    कंचन जी का और कुश जी का बहुत बहुत आभार
    इन्हें सच में काफी मेहनत करनी पड़ी होगी... उस मस्ती और शोर-शराबे के बीच से एडिटिंग करते वक्त,,,,,
    haan arsh kam boltaa "tha"...
    jab tak darpan se nahi milaa tha...
    :}

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  22. Encore!
    मज़ा आ गया भाई, आपने तो पूरी महफ़िल ही जमा ली, बात की बात में. बहुत दिनों के बाद दिल्ली मिस किया मैंने.

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  23. आपने तो आज पूरी महफ़िल ही जमा दी...

    लीजिये बताइए इत्ती सी बात पर आप शुक्रिया कहने लगे.. :)

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  24. "मेहनत भी खूब, और इनायत भी खूब है
    तोहफा दिया है आपने,लेकिन कमी के साथ"

    जी हाँ ! हुज़ूर !!
    ना-मुकम्मिल सी बात
    खूबसूरत सा दगा
    ना-गवार सी आपकी मर्ज़ी

    क़ुबूल नहीं ,,, क़ुबूल नहीं ,,,क़ुबूल नहीं

    आसमान लाख सितारों से जड़ा हो ,,,,
    खूबसूरत चाँद के बिना सब अधूरा रहता है

    आप को कोई हक़ नहीं बनता
    कि आप अपनी दिलफरेब आवाज़
    अपने चाहने वालों से छिपा कर रक्खें

    वो नायाब अल्फाज़ ....
    और वो पुर-कशिश तरन्नुम ,,,,,

    मैं .....
    अपने सभी ब्लॉगर साथियों के साथ
    इंतज़ार कर रहा हूँ
    बे-सब्री से . . .

    ढेर सी दुआओं के साथ
    ---मुफलिस---

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  25. गुरु भाई ये तो सरासर गलत बात है ..आपने अपनी मोहना वाली बात सभी से छुपाली क्या ये इंसाफी है आपके लहजे में भी... अगर मुझे इस पोस्ट का इंतज़ार था तो केवल इस बात से के मैं वो फिर से मोहना वाली ग़ज़ल आपकी आवाज़ में सुन सकूँ... दर्पण मनु भाई और मुफलिस जी का दिल तो ना तोडिये कमसे कम ... मेरी बात ना हो ना सही मगर सारे ब्लोगेर को सुनाने का ये हक़ तो बनता ही है .... इतनी खुबसूरत गलती के लिए मैं भी माफ़ नहीं करता और ना ही कोई करेगा... आप जल्द से जल्द दूसरी पोस्ट डालें...बस यही गुजारिश है .... तभी मैं इस पोस्ट पे भी कमेन्ट दूंगा....

    आपका
    अर्श

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  26. tum waakai galat kar rahe ho john......

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  27. john to main hoon robert galat kar rahein hain...

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  28. Taiyyar ho jao Manuji, Arsh ji, Muflis ji protest karne ke liye....
    ........
    aaj ya to gautam ji ki post chapegi ya 140 comments ka famous record tootega....


    mere 4 pehle hi ho chuke hain...


    wapis aata hoon aap teeno ke baad !!

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  29. गौतम जी,

    शुक्रिया उस तिलस्माती रात के जिकरे का। बस इतना कहूंगा कि " ये ना थी हमारी किस्मत दीदार-ए-यार होता "।

    मनु जी का विशेष तौर पर धन्यवाद कि उन्होंने इस रात के लिये आमंत्रण दिया था।

    अब तो सुनना है, और किसी दिन मुलाकात करना है।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  30. आटो में बैठकी भी बकायदा बहरो-वजन में थी। 2122 के वजन में। हा हा हा आप भी खूब हो....!

    क्या बढ़िया मुशायरा...! सब की तरफ से धन्यवाद वीर जी...!

    और ये अर्श वाक़ई कम बोलता है क्या...?? सभी कहते है...?? तो मुझसे जो इतनी ज़िद करता रहता है वो कौन है...?? बताता तो खुद को अर्श ही है । :) मगर एक बात का तो धन्यवाद देना ही पड़ेगा आपको इस की इतनी प्यारी आवाज़ सुनवाने का। क्या उतार चढ़ाव हैं इसकी आवाज़ में। माँ सरस्वती यूँ ही आशीष बनाये रखें तुम पर अर्श।

    मुफलिस जी की गज़ले यूँ भी बहुत गहरी होती हैं। एक सुनी अभी दूसरी गज़ल और मनु जी और दर्पण जी की आवाजें सुननी हैं। सुन कर फिर उनके बारे में बताती हूँ।

    और ये छोटा सा शुक्रिया रखे रहो अपने पास वीर जी। हमारा मौसम आ रहा है,अगस्त में,राखी का मोटी रक़म वसूलूँगी,आप तो बस ऐसे ही छुट्टी पा लेना चाहते हो।:)

    और आपकी आवाज़ के लिये जनता इतनी डिमांड कर रही है तो क्यों भाव ले रहे हैं? क्या चाहते हैं? कि अपने मोबाइल में ड़िकॉर्ड कर के लगा दूँ..??? :) :)

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  31. खूब महफिल जमी आप सबकी बढ़िया रही यह रिपोर्टिंग

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  32. इस पोस्ट के जरिये गौतम भाई कितना बड़ा एहसान किया है आपने हम जैसों पर जो इस मुशायरे में शरीक नहीं हो सके...आप सब को सुन कर, देख ना पाने का गम जाता रहा...बहुत खूबसूरती से समेटा है आपने सारे मुशायरे को...अब किसका जिक्र करूँ किसको छोडूं इस उलझन में हूँ...सभी उस्ताद हैं, दिल से कहते हैं और दिल से सुनाते हैं...कौन कम है कौन ज्यादा की बात ही बेमानी है...एक गुजारिश है अगर आप इन सभी ग़ज़लों को को एक सी. डी. में कैद कर के भेज सकें तो लुत्फ़ आ जाये...फिर इसे जब चाहे जहाँ चाहे सुना जा सकेगा...उम्मीद है आप मेरी इस अर्जी पर गौर फरमाएंगे...
    नीरज

    Address:

    Neeraj Goswamy
    C/O Bhushan Steel Ltd.
    608, Regent Chambers
    Nariman Point
    Mumbai-400021
    M:9860211911

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  33. कैसी शानदार महफिल रही होगी। उस महफिल की रिकार्डिग कर उसको ही लगाते तो और मजा आ जाता। एक बेहतरीन प्रस्तुति।

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  34. अबा बाकी सब भी सुन लिये... बहुत अच्छे ..! बीच बीच में जो वाह वाह.. और अहा..क्या बात है जैसे शब्द आ रहे हैं उन्हे सुन कर आनंद दोगुना हो रहा है।

    मुफलिस जी की स्वर की भी पकड़ बहुत अच्छी है..! और संदूक वाली कविता के मामले में मै दूसरे वर्ग में आती थी आज से पहले आज से पहले वर्ग में आ गई..! क्या संवेदनाएं हैं, इस कविता में। मनु जी की रुक्न वाली कविता..! क्या कहने..!

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  35. वाह क्या खूब जमी महफ़िल !

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  36. आपका संस्मरण पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी... लेकिन आप दिल्ली आये और हमें नहीं बताया...
    हम भी आपका दीदार करते....
    खैर कोई बात नहीं...
    मीत

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  37. वाह कितनी मजेदार महफ़िल थी!!

    मुफ़लिस जी - धीर ,गंभीर आवाज़ में स्थिरता का भाव लिए उन्मुक्त ग़ज़ल सुन के मन खुश हो गया

    मनु जी - ठीक कहा राजरिशी जी ने आप की ग़ज़ल का अपना एक निराला अंदाज़ है , जैसे अनजाने में लिखी ,शानदार ग़ज़ल !

    अर्श जी - ग़ज़ल तो बहुत शानदार थी ही पर आपकी आवाज़ ने उसे चार चाँद लगा दिए ..कितनी मधुर कितनी मीठी !!

    दर्पण जी - आपने भी तरन्नुम मैं क्यू नहीं गया दर्पण जी ..? पर आवाज़ में दर्द लिए माँ को याद करके भावुक कर गए ...बहुत अद्भुत फलसफा है रचना का !

    गौतम जी का आभार कुछ झलकियाँ दिखाने का ..

    इन लोगों की बातों से लग रहा है की कुछ तो छूट गया आपसे ..

    उस पर क्या कुछ इन्टरटेनमेंट टैक्स ज्यादा मांग लिया था सरकार ने ....??:)P
    Thanx for sharing !!

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  38. ji sehar ji...

    chaand ka tukda tha ek...
    ...chouth nahi gaya...
    ...toot gaya !!

    ...socha tha ki aasman ko ke dete hain...

    ...hum to door se hi...

    ...par aasman bula laya baadalon ko !!

    gautam ji hamara chaand ka tukda hamein wapas chahiye...

    ..badal main chupa chaand kaise hum chakaron ka dil ka dard sun paiyega apni band aankhon se...

    ...wo raat ki aawaz mujhe chahiye...

    ...baaki sab ke saath !!

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  39. ha..ha..ha..ha.....

    kanchan ji,

    aap ko raakhi ki rakam apne I.D. se likhne pe hi di jaayegi....
    :)

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  40. गौतम जी
    अपना निवेदन फिर से दोहरा रहा हूँ मुझे सारी रिकार्डिंग चाहिए
    कृपया मेल में अटैच करिए या डाउनलोड के लिए विकल्प दीजिये

    और फोटो भी तो ली होगी आपने उसे भी प्रदर्शित कीजिये
    venuskesari@gmail.com
    वीनस केसरी

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  41. मैं समर्पण करता हूँ...नशिस्त के दूसरे भाग के साथ जल्द ही उपस्थित होता हूँ।

    तुम बड़े जिद्‍दी हो john !

    और नीरज जी व वीनस भाई आपदोनों की फरमाईशें जल्द पूरी करता हूँ।

    नशिस्त के दूसरे भाग का प्रकाशन जल्दी करूँगा, फिलहाल प्रतिक्षा है एक बहुत ही खास शख्स के कमेंट की....

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  42. par hamein koi jaldi nahi hai robert...
    abhi comments poore nahi huye hain,...
    :0

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  43. amitabh bachchan ka sharaabi waalaa dilogue hai na....

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  44. वाह क्या खूब जमी महफ़िल !

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  45. ओम जी के समाचार के कारण कल इस बेहतरीन मुशायरे को नहीं सुन पाया । आज सुना अच्‍छी प्रस्‍तुति है ।

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  46. john ki tarah aap bhi kam jiddi nahi ho, bhaiyya . ye kya baat hui aapne sab ki recording sunai aur apni nahi. man liya aap kitna bhi bhadda gatein hoon per sunne ka hak hai hame . jald hi aapni doosri post lagaiye warna ek tippni to kam ho hi jayegi aapkihamesha ke liye .
    naina

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  47. छुट्टी बीतती जा रही है। समय की गति भी अबूझ है। जब मैं चाहता हूँ कि ये एकदम कच्छप गति में चले, मुआ घोड़े की सरपट चाल में दौड़ा जा रहा है।
    bhaag lo bhaiyiya mere saath....o sorry...tanyaa ke saath....aapko meri-hamari-sabki shubkaamnaayen...!!

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  48. मुफलिस जी, अर्श, मनु, दर्पण से खूब मिलवाया है. दोस्तों के इस मुशायरे पर कोई टेक्स बनता था तो वो आपने चुका दिया है, दर्पण के कमरे का माहौल जो उस नशिस्त से पहले रहा होगा शायद उसी के बारे में कभी डॉ. बशीर बद्र साहब ने कहा था "जमी है देर से कमरे में गीबतों की नशिस्त, फज़ा में गर्द है माहौल में कदूरत है" फिर दर्पण के कमरे में गूंजती वाह वाही ने गर्द को हवा कर दिया होगा. !" मियां अपनी आवाज़ को छुपा क्यों गए हैं ? हम रेडियो वालों के लिए तो मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे...

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  49. lajvab riport,bdhiya post bas pdhte hi rhe gjal to abhi nhi suni khul hi nhi rhi hai khair pdh bhi lege aur sun bhi lege .abhi to tippniya pdhne me hi bhut mja a rha hai khatm hi nhi ho rhi hai.aur sach batau mujhe to bas apki pyri si beti ko hi dekhne me mja aata hai. mai kaibar usko dekhti hoo .use khub pyar aur ashirwad .
    aisi mhfile sajti rhe aur aap hme pdhate rhe.
    dhnywad

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  50. wo khaas hai kaun.........????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????

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  51. और जॉन,
    क्या वाकई तुम्हें लगता है के रॉबर्ट को मुझे तीन के वजन में लेना चाहिए...
    अरे मझे सोना बेल्ट ला कर दो..
    मैं वाकई मोटा हो गया हूँ,,

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  52. देर से आने के लिए मुआफी मेजर .कही जरूरी उलझा हुआ था..जिंदगी की रफ्तार में ...मुफलिस साहब की गजल के ये शेर पहले....

    अब चलो बाँट लें आपस में वो बीती यादें
    ग़म मेरे पास रहें, चैन उधर हो जाए


    ज़िन्दगी जब्र सही , फिर भी जिए जा 'मुफलिस'
    है नही काम ये आसान , मगर, हो जाए।
    सुभानाल्लाह.....

    पर मुई जिंदगी इत्ती आसन नहीं होती न........देखो वक़्त किस कदर बादल गया है .चार बेहतरीन लोग एक साथ मिले ..तो अपने आप मुशायरा हो जाता है ....टेक्नोलोजी उसे बाँट भी देती है....हम यारो ने कभी परसोनिक के टेप रिकॉर्डर पे एक रात इस तरह कैद करने की कोशिश की थी....फिर उसे कैसेट की शक्ल में यहाँ वहां बांटा था ..अमेरिका तक...आज भी मेरे पास वो रात जमा है....
    मनु जी का आखिरी शेर खूब है....
    ओर अर्श..वो लड़का जिसका अक्सर आखिरी शेर ही मुझे पसंद आया है.....सुना है कम बोलता है.....पर जब भी बोलता है खूब बोलता है....
    तीन बजे के ये दौर यूँ ही आबाद रहे....चलते रहे.....

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  53. arey ...yahan to bahut achhi post thii gautam...mainey dekhi nahi...bahut badhiya parstuti...thanks..

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  54. अब चलो बाँट लें आपस में वो बीती यादें
    ग़म मेरे पास रहें, चैन उधर हो जाए

    यह बात उन दिनो की है जब आपके ब्लॉग पर कोई फॉलोवर्स नही था... और इधर बंदा ब्लॉग पर नया... जानता नही
    था की आपको कैसे जोड़ा जाए.. आज आपके बहुत सारे फालोवेर्स हो गये है... देख कर अच्छा लगा..
    पहली बात तो आप जिस जिंदादिली से लिखते है मैं आपका कायल हू.... और उसपर इतनी विनम्रता... सोने पर सुहागा

    "आह निकली है जो यूं दाद के बदले उसकी
    कुछ तो समझा है मेरे शेर में मतलब मेरा "

    यह तो भोज की 'कर्ड' हो गई

    सुभानअल्लाह!!! काश ! मैं निज़ाम होता अपने गले के सारे कीमती हार सारे शेरो पर लूटा देता......

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  55. ओये होए ....सुभानाल्लाह .....!!

    गौतम जी खुमार है की आँखों से उतरता ही नहीं ......उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ .....कितनी कशिश है मुफलिस जी की आवाज़ में ....उनके ब्लॉग पे भी वो गजल पढ़ी थी पर तब वो मज़ा नहीं आना जो अब तरन्नुम में सुनकर आया ....मुझे इस वक़्त मुफलिस जी के ब्लॉग पे की गयी आपकी टिप्पणी याद हो आई ....

    "इस ग़ज़ल को उस दिन से सुने जा रहा हूँ...गुनगुनाये जा रहा हूँ....श्रीमति जी परेशान हो चुकी हैं। बकायदा धमकी मिल चुकी है कि ये ग़ज़ल अगर जबान से न उतरी तो वो आपको फोन लगायेंगी....!!!!

    अब तो मेरा भी यही दिल है के बार बार सुनती रहूँ ....एक एक शे'र में इतनी गहराई छिपी है की एक तरफ दर्द भी उठता है और दूजी ओर दाद भी देने का जी चाहता है .....ये शे'र तो गजब का है .....

    अब चलो बाँट लें आपस में वो बीती यादें
    ग़म मेरे पास रहे चैन उधर हो जाये"

    और ये .....
    दूरियाँ , और मजबूरियाँ
    उम्र भर के खज़ाने हुए

    कई गहरे राज़ छिपाए बैठा है अपने अन्दर .........

    और ये ....

    आँख ज्यों डबडबाई मेरी
    सारे मंज़र सुहाने हुए

    ये दो पंक्तियाँ उनकी एक नज़्म की याद दिला गयीं.....

    कहीं कुछ घट-सा गया है....
    जिसे तलाशने की कोशिश
    आज भी की थी उसने.....
    दरवाजों पर लटकी बड़ी-बड़ी बेमाअना सी
    झालरों के निष्प्राण रंगों में..
    यहाँ वहाँ सजावट के लिए रक्खे
    मंहगे-मंहगे बनावटी फूलों में..

    और इसी गम से उबरने की कोशिश में ये शे'र.......

    खिल उठी फूल-सी हर शाखे तमन्ना दिल की
    अब तो उनसे भी मुलाक़ात अगर हो जाए

    और ये मेरी तरफ से ....

    ज़िन्दगी जब्र सही , फिर भी जिए जा 'मुफलिस'
    है नही काम ये आसान , मगर, हो जाए।

    इस कमेन्ट का इनाम आज तो वो ग़ज़ल सुन कर रहूंगी ......

    क्रमश :

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  56. मनु जी ,
    आप तो खामखा डर रहे थे ...अच्छा हुआ गौतम जी ने आपकी बात नहीं मानी और हमें आपकी ग़ज़ल भी सुनने को मिली ....ये बात और है की आप पर ओल्ड मौंक का या रेड लेबल का असर भी दिखाई नहीं देता ....लेकिन हमने मज़ा तो खूब लिया ....बीच बीच में ये हंसने की आवाज़ ...और गहराईयाँ ......और गहराईयाँ ....खूब मज़े लुटे आपने ....दाद के बाद एक बार फिर जोश से ........वाह...वाह....हम तो वहाँ के माहौल से यहीं मज़े लिए जाते हैं ....उस पर आपका ये शे'र .....

    और गहराईयां अब बख्श न हसरत मुझको
    कितने सागर तो समेटे है ये सागर मेरा

    वाह ..वाह....गौतम जी ने सही लिखा है.......

    " कई बार उन्हें खुद ही नहीं पता होता कि वो कितनी बेमिसाल ग़ज़ल कह गये हैं। "
    और ये तो बहुत ही लाजवाब है .....

    आह निकली है जो यूं दाद के बदले उसकी
    कुछ तो समझा है मेरे शेर में मतलब मेरा

    और अब गौतम जी की टोपी वाली बात ने हंसी ला दी चेहरे पे .......

    " उस रात को बार-बार बंद होते पंखे{स्पष्ट रिकार्डिंग के लिये} के साथ उतरती उनकी कैप का नजारा अद्‍भुत था।" ...हा...हा....हा....

    क्रमश :

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  57. अर्श ज्यादा बोलते नहीं, लेकिन जब गाते हैं तो साक्षात सरस्वती विराजती हैं उनके गले में। आह ! क्या आवाज पायी है मेरे गुरूभाई ने...! उस रात हमने उनकी लरज़ती आवाज में डूबी कई बंदिशें और मेहदी हसन व ग़ुलाम अली के गाये कुछ शानदार ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाया।

    गौतम जी तो हमें उसका लुफ्त क्यों नहीं उठाने दिया ....???? मुफलिस जी ने भी कहा अर्श तो गज़ब का गाते हैं ...और आपने हमें एक ही ग़ज़ल सुनाई ....अगर रिकार्डिंग हो तो अगली पोस्ट में वो भी सुनाइए ......!

    अर्श जी, बड़ी नाइंसाफी है यह ....हमें तो एक ग़ज़ल के सिर्फ तीन ही शे'र सुनने को मिले ...आप तो अपने ब्लॉग पे भी गाकर ही पोस्ट डाला करो .....हाँ आपने तहत में जो ग़ज़ल पेश की है वो भी लाजवाब लगी ....!!

    क्रमश :

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  58. दर्पण जी ,

    आपके ब्लॉग पे जाकर आपकी कविता को फिर पढ़ा ...गौतम जी शब्दों के साथ जोड़ कर भी पढ़ा .....उस मुशायरे के साथ जोड़ कर फिर पढा ....और अंत में उस माँ के साथ जोड़ कर फिर पढ़ा जिसने उपहार में हमें ये दर्पण दिया ....!

    सच कहूँ तो न जाने कितनी देर इस नज़्म की गहराई में डूबती रही ....इतनी बढ़िया ...इतनी उम्दा ....तारीफ के शब्द भी बेजुबां हो गए .....

    बंद कर देता हूँ,
    सोच के...
    जैसे ही संदूक रखा,
    देखा,
    यादें तो,
    बाहर ही छूट गई,
    बिल्कुल धवल,
    Fitting भी बिल्कुल सही
    ...लगता था,
    aaj के लिए ही,
    खरीदी थी
    us 'वक्त' के बजाज से जैसे,
    कुछ लम्हों की...
    कौडियाँ देकर
    चलो,
    आज फिर,
    इसे ही...
    पहन लेता हूँ !

    सदी की सबसे बेहतरीन नज़्म .......!!!!!!!!

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  59. गौतम जी ,

    अब आपकी बारी ....ये नाइंसाफी नहींचलेगी ...नहींचलेगी ....इतने दिनों से मुफलिस जी से पूछ पूछ कर तसल्ली कर रही थी की गौतम जी कैसे और क्या गया ....और मुफलिस जी भी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते थे ....और आपने अपनी ही आवाज़ नहीं डाली .....बहुत गलत बात है ये ....!

    आपने जिस रोचकता से इस पोस्ट को तैयार किया काबिले - तारीफ है ये .....

    " 20 जून की वो संध्या अजब-सी उमस लिये हुये थी। दिल्ली की संध्या। कश्मीर के बर्फीले चीड़-देवदार के बीहड़ों में रास्ता ढ़ूंढ़ना कहीं आसान जान पड़ा बनिस्पत दिल्ली की उस भूल-भूलैय्या ट्रैफिक में। ...और फिर मेट्रो रेल का विस्तार देख कर इंसान की असीम शक्ति का आभास हुआ। "
    छोटी छोटी बातों को भी आपकी कलम ने इतनी तहजीब बख्शी है की विवरण जिवंत हो उठा है ....और फिर आपका बड़ों को सम्मान देने का गुर आपका स्थान कई गुना ऊपर उठा देता है ....

    " उनके चरण-स्पर्श के लिये झुके मेरे हाथों को बीच में ही रोक कर उनका मुझे गले से लगा लेना अविस्मरणीय कर गया उस पल को। "

    और
    ये एक छोटी सी चुटकी लेने का अंदाज़ भा गया आपका .....

    देहलीज़ के बाहर जुते-चप्पलों का अंबार लगा देख मुफ़लिस जी के मुख से बेसाख्ता निकला ये जुमला- "वाह! मुशायरे की पूरी तैयारी है...!!"

    बहुत- बहुत शुक्रिया ये नायब तोहफा पेश करने के लिए .....!!!!!

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  60. जॉन,
    वाकई तुम खुशकिस्मत हो...
    सदी की सबसे बेहतरीन नज़्म ...!!

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  61. waah ..
    aap fir se..?
    is baar hamein gautam ji kaa hi kalaam sunne ko milne waalaa hai hakeer ji,,

    ba-tarannum......
    ek khaas comment ka mujhe bhi intezaar hai..
    :)

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  62. HEY LILI AB TUMHE KIS KHASAMKHAS KE COMMENT KA INTAZAAR HAI .... KYA BATAWOGEE MUJHE.... AUR YE ROBERT BILKUL GALAT KAR RAHAA HAI... MAINE KAL HI RICHARD SE BAAT KI THI ... ROBERT KE AGALE NASHISHT KA INTAZAAR KARUNGA MAIN BHI LILI... YE TO WAKAI ADBHOOT HAI ....


    TOM

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  63. Bhai aap mujhe bhi inform kar dete ami delhi me hi rahta hoo , mai bhi rat ka aanand leta..mujhe bhi recording bhejane ki kripa kare...achchha laga aap logon ka milna...aur satha satha kam karna..

    Regards..
    DevPalmistry : Lines Tell the Story Of ur Life

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  64. intzaar....
    intezaar....
    ab aur na tarsaao....

    @Harkarit ji apke comment ke liye dhanyavaad.

    tom mujhe lagta hai hi apke aur lily ke kehne se jo baat nahi bani wo "KISI" aur se ban gay.


    John.

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  65. दिल्ली की बारिश का मजा दुगना हो गया जी। बाहर बारिश संगीत बजा रही है अदंर महफिल में शेर कहे जा रहे। और इधर हम भी वाह वाह किए जा रहे है।

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  66. आप के शुक्रगुजार हैं हम की आपने अपनी महफिल में हमसबको शामिल किया, एक से बढ कर एक उम्दा ग़ज़ल सुनने को मिली, मनु जी की चुटकियों के साथ..
    दिल बाग़-बाग़ हो गया..

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