{मासिक पत्रिका "हंस" के जनवरी 2011 अंक में प्रकाशित कहानी}
एसएमएस आये कितना वक्त बीत चुका था उसे कुछ पता नहीं। एसएमएस को पढ़ते ही वो तो विचलित मन लिये घर से बाहर निकल गया था पापा का क्लासिक लेम्बरेटा स्कूटर उठाये। लाजिमी ही था...उन आँसुओं को छिपाने के वास्ते, विशेष कर दीपा से उन आँसुओं को छुपाने के वास्ते।...और अब शहर की तमाम सड़कें-गलियाँ लेम्बरेटा से नाप लेने के बाद वो बैठा हुआ था उस नन्ही परी के घर वाली गली में पान की दुकान पर सिगरेट के कश पर कश लगाता हुआ। उसे अपने-आप पर हैरानी हो रही थी कि कैसे उसने पिछले बीस-एक दिनों से सिगरेट पीना छोड़ा हुआ था। उसकी वो नन्हीं परी तो वहाँ से हजारों किलोमीटर दूर अपने ससुराल में थी। इधर इस शहर में संध्या का धुंधलका गहराता हुआ...वो लेम्बरेटा की लंबी सीट पर उँकड़ू-सा बैठा उस नन्ही परी की तस्वीर हाथ में लिये कई साल पीछे जा चुका था।
एसएमएस आये कितना वक्त बीत चुका था उसे कुछ पता नहीं। एसएमएस को पढ़ते ही वो तो विचलित मन लिये घर से बाहर निकल गया था पापा का क्लासिक लेम्बरेटा स्कूटर उठाये। लाजिमी ही था...उन आँसुओं को छिपाने के वास्ते, विशेष कर दीपा से उन आँसुओं को छुपाने के वास्ते।...और अब शहर की तमाम सड़कें-गलियाँ लेम्बरेटा से नाप लेने के बाद वो बैठा हुआ था उस नन्ही परी के घर वाली गली में पान की दुकान पर सिगरेट के कश पर कश लगाता हुआ। उसे अपने-आप पर हैरानी हो रही थी कि कैसे उसने पिछले बीस-एक दिनों से सिगरेट पीना छोड़ा हुआ था। उसकी वो नन्हीं परी तो वहाँ से हजारों किलोमीटर दूर अपने ससुराल में थी। इधर इस शहर में संध्या का धुंधलका गहराता हुआ...वो लेम्बरेटा की लंबी सीट पर उँकड़ू-सा बैठा उस नन्ही परी की तस्वीर हाथ में लिये कई साल पीछे जा चुका था।
नहीं, गणित में कभी कमजोर नहीं रहा वो। लेकिन इस दिनों, महीनों और सालों के हिसाब से अभी फिलहाल बचना चाहता था। वर्षों पहले की कहानी की वो नन्हीं परी अभी कुछ दिनों पहले अपने पँख फैलाये आयी थी उसकी जिंदगी में और ले गयी थी उसे चाँद-सितारों की दुनिया में। अभी भी याद आता है वो स्कूल के दिनों वाले दिन...उस परी का नीले रंग वाला स्मार्ट-सा स्कूल-यूनिफार्म और पूरे रस्ते उसका सर झुका कर चलते जाना। बार-बार बजती साइकिल की घंटी क्या सचमुच वो नहीं सुनती थी? सुनती तो थी, ये अब जाकर पता चला है। अब...इतने सालों बाद, जब उस नन्हीं परी को शादी किये हुये नौ साल बीत गये हैं और खुद उसकी अपनी दुनिया दीपा के साथ बसाये हुये पाँच साल।
विगत तीन महीने से वो सितारों की ही दुनिया में तो था उसी परी के साथ। हाँ, इन तीन महीनों के सारे दिन, हफ़्ते, घंटे वो अभी के अभी ऊँगलियों पे गिन सकता है। गणित में कभी कमजोर था कहाँ वो। अपने इस शहर का पहला टापर था वो आई०आई०टी० की प्रवेश-परिक्षा में। इतने बरस बीते- बीस से ऊपर ही तो, लेकिन फिर भी वो हरेक साल के हर महीने का हिसाब रखे हुये था। पुरानी चीजों को जतन से सँभाल कर रखना उसकी आदत थी- अब चाहे वो पापा की तीस साल पुरानी लेम्बरेटा हो या उसका अपना बीस साल पुराना इश्क। इतने बरस बीते, लेकिन वो अब भी वैसी की वैसी है- नन्ही सी। बस उस नीले स्कूल यूनिफार्म को पहनाने की जरूरत है। आठवीं कक्षा की बात होगी, जब पहली बार देखा था उसे। नहीं, देखने से पहले तो सुना था उसके बारे में। माँ जिक्र कर रही थी किसी से। सबसे पहले माँ ने ही तो उसे नन्हीं परी कह कर बुलाया था और तब से वो उसके लिये नन्हीं परी ही होकर रह गयी। उसने अपना नाम उस नन्हीं परी के नाम के साथ जुड़ते सुना था...एक रोज माँ कह रही थी पापा से और पापा के एक दोस्त से कि जब वो बड़ा होगा तो उसकी शादी उस नन्हीं परी से कर दी जायेगी। पापा के उसी दोस्त की बेटी थी वो। कितनी उम्र रही होगी उसकी अपनी उस वक्त? शायद बारह साल। नहीं, तेरह का था वो। टीन-एज के उस रहस्यमयी दरवाजे के अंदर आया ही तो था वो उस साल। वो साल उसकी जिंदगी के लिये सबसे अहम साल साबित हुआ। उस साल उसकी दोस्ती फैंटम, मैंड्रेक, पराग, सुमन-सौरभ और राजन-इकबाल से इतर शरतचंद, आरके नारायण, धर्मवीर भारती, अमृता प्रितम और प्रेमचंद से हुई...उस साल उसे रोजी के लिये राजु गाइड का पागलपन भाया और उसी साल उसे पारो के लिये देवदास की दीवानगी अपनी-सी लगी...उस साल उसने मैथ्स में पूरे स्कूल में टाप किया...उसी साल उसने सिगरेट पीना शुरू किया...उस साल ने उससे उसकी पहली कविता लिखवायी थी- नन्हीं परी के नाम पर। वो साल- उसकी वो आठवीं-नौवीं कक्षा वाला साल एक क्रांतिकारी साल था उसकी आनेवाली जिंदगी के लिये। तेरह कोई उम्र होती है इश्क करने की? सोचता हुआ वो उन विषाद के क्षणों में भी बरबस मुस्कुरा उठता है। वो साल उसकी जिंदगी में उस नन्हीं परी को लेकर आया था, जो फिर सदा के लिये उसकी जिंदगी में रह गयी। लेकिन क्या सचमुच? फिर दीपा??
कितनी यादें! कितने किस्से!! नन्हीं परी की उस ब्लैक-एन-व्हाइट तस्वीर में डूबा सिगरेट के धुँयें के गिर्द। अभी-अभी हासिल हुई वो श्वेत-श्याम तस्वीर। नन्हीं परी ने ये एक तस्वीर उसकी जिद पर मानो तरस खाकर घर के पुराने अलबम से निकाल कर दिया था उसे अभी कुछ दिनों पहले ही तो। उसे बस एक तस्वीर चाहिये थी पुरानी स्कूल के दिनों वाली। उसकी वो नन्हीं परी अब इसी समाज की एक प्रतिष्ठित महिला थी, एक खूब प्यार करने वाले पति की आदर्श पत्नि थी और दो फूल से बेटे-बेटी की प्यारी-सी मम्मी थी। ...थी?...या है? एक दिन छम से अचानक आयी वो अपने पंख फैलाये और उसे दोस्ती की बाँहों में उठाये ले गयी चाँद-तारों के पार। सब कुछ कितना स्वप्न समान था! या सपना ही था उसका ये सब??..और अचानक उसे याद आया कि कैसे जब वो ग्यारहवीं कक्षा में था तो उसके दोस्तों ने मिलकर मुहल्ले में सरस्वती-पूजा का आयोजन किया था। पूरा आयोजन बस इसलिये था कि विगत तीन सालों से उस नन्हीं परी से कुछ भी कहने की हिम्मत न कर सकने वाला उनका ये दोस्त इसी बहाने इस आयोजन में निमंत्रण देने के लिये नन्हीं परी को निमंत्रण-कार्ड देगा और दो बातें करेगा। लेम्बरेटा को घेरे वो विषाद के क्षण एक बार फिर से मुस्कुरा उठते हैं बचपन के उन बेढ़ंगे रोमांटिक प्रयासों को सोचकर।...और जब सचमुच में सरस्वती-पूजा के लिये निमंत्रण-कार्ड देने का अवसर आया, तो स्कूल के रास्ते में उसका वो हड़बड़ा कर नन्हीं परी के सामने साइकिल से उतरना, घबड़ा कर उसकी तरफ देखना, आँखों में एकदम से उतरता हुआ वो स्मार्ट-सा नीला यूनिफार्म...और कार्ड देते हुये कुछ अस्पष्ट-सा बुदबुदाना। "आईयेगा जरूर" जैसा कुछ। कितना बड़ा डम्बो था वो ! कितनी फटकार पड़ी थी दोस्तों से उस शाम। उस शाम वो दोस्तों के बीच तमाम-मददों-से-परे घोषित हो चुका था| ...कहाँ हैं वो सब-के-सब कमबख्त दोस्त? आज जरूरत है उसे तो कोई नहीं मिल रहा। एक वो भी दिन थे, जब दोस्तों को बस कहने भर की जरूरत होती कि "यार जहन्नुम चलना है" और जवाब आता तुरत कि "एक मिनट ठहर, कपड़े बदल कर आते हैं"। कोई उनमें से यकीन करेगा इस कहानी पर कि उसने अपनी नन्हीं परी से बात की है और खूब बातें की और कि उनका ये चुप्पा दोस्त और वो नन्हीं परी अब एक अच्छे दोस्त हैं। दोस्त हैं?...नहीं, थे। उसी दोस्ती के खात्मे का फरमान लेकर तो आया था वो एसएमएस।
अभी तीन महीने पहले वो नन्हीं परी उसे यूं ही मिल गयी थी एक दिन अचानक से इंटरनेट पर चैट करते हुये। नियति का करिश्मा ! इतने सालों बाद---एक युग ही तो बीत गया इस बीच। वो अपनी दुनिया में बस चुका था इस बीते चुके युग के दौरान। नन्हीं परी दिल से उतरी नहीं थी लेकिन कभी। दीपा के आ जाने के बाद भी ...और जब एक छोटी-सी परी खुद उसकी गोद में आयी उसकी और दीपा की बेटी बनकर तो उसे कोई दूसरा नाम सूझा भी नहीं था अपनी बेटी के लिये। उसी नन्हीं परी का नाम उसकी बेटी का नाम बन गया। वैसे भी दीपा से कुछ भी तो नहीं छुपाया था उसने। शादी के पहले के तमाम किस्से और समस्त जज्बातों की निशानियँ वो शेयर कर चुका था दीपा से। लेकिन दीपा से कभी कुछ भी नहीं छिपाने वाला वो जाने क्यों और कैसे नन्हीं परी से हुई इस नयी-नयी दोस्ती की बात छुपा गया था। इतने सालों बाद यूँ अचानक से नन्हीं परी का उसकी जिंदगी में वापस आना क्यों छुपा गया वो दीपा से, इस सवाल के जवाब से वो खुद को बचाता रहा है। लेकिन दीपा क्या इन तीन महीनों से उसकी अनमयस्कता भाँप नहीं रही है? अभी उसी दिन तो कह रही थी वो कि आजकल कहीं खोया रहता है वो। कैसा सकपका-सा गया था वो। बता क्यों नहीं देता है वो दीपा से कि उसकी अचानक से मुलाकात हुई नन्हीं परी से और फिर शुरू हुआ फोनों का सिलसिला और शुरू हुई एक रूहानी दोस्ती। सब कुछ अब स्वप्न समान लग रहा था उसे उस 70 की दशक वाली पापा के लेम्बरेटा पर बैठे हुये। पापा की तरह उसे भी पुरानी चीजों को संभाल कर रखने का शौक विरासत में मिला था। पापा की इस क्लासिक लेम्बरेटा को उसी ने बड़े अहतियाना रख-रखाव से बचाये हुये था अब तलक।...ठीक अपने पहले इश्क की तरह, उस नन्हीं परी की यादों की तरह!!! सुना है कि लेम्बरेटा वालों ने अब ये लेम्बरेटा स्कूटर बनाना बंद कर दिया है। खुदा ने भी तो फिर कोई नन्ही परी नहीं बनायी। नहीं, अभी-अभी तो खुदा ने उसे एक और नन्हीं परी दिया है...उसकी अपनी सवा साल की छुटकी। उसकी और दीपा की छुटकी। विषाद के वो क्षण एक बार फिर से मुस्कुरा उठते हैं छुटकी को याद करके। मुस्कुराहट जरा और विस्तृत हो जाती है वो तीन महीने पहले नन्हीं परी से हुई फोन पर पहली बातचीत को सोच कर और नन्हीं परी की उत्पन्न प्रतिक्रिया के बारे सोचकर जब उसने अपनी छुटकी का नाम नन्हीं परी को बताया था। कैसे चिहुँक उठी थी वो आश्चर्य और खुशी की मिली-जुली प्रतिक्रिया से। उसका अपना ये जन्म अचानक से सार्थक लगने लगा था नन्हीं परी की वैसी प्रतिक्रिया देखकर। वो पहला टेलीफोन और तब से लेकर गुजरे ये कल तक के तीन महीने...कितनी बातें, कितनी कहानियाँ वे दोनों ने एक-दूसरे के साथ शेयर कर चुके हैं। कितना आश्चर्य हुआ था जानकर कि उन दिनों में सब समझती थी वो। वो जानती थी कि उसे छुप-छुप कर देखा जा रहा है। खूब समझती थी कि वो लाल छोटी हीरो साइकिल उसके इर्द-गिर्द घूमती है सड़कों पर और उस साइकिल की घंटी जब-तब उसी के लिये बजती रहती है। उसे भी याद था वो सरस्वती-पूजा वाला आयोजन। कितनी डर गयी थी वो जब उस दिन अपनी उस लाल हीरो साइकिल को रोक कर सरे-रस्ते निमंत्रण-कार्ड दिया जा रहा था उसे। कितना छेडा था उसकी क्लास-मेट्स ने और कितना मुश्किल हुआ था उसे अपनी सहेलियों को समझाना कि वो महज पूजा का निमंत्रण कार्ड था। एक गहरी साँस लेकर रह गया था वो तो...काश कि ये सब कुछ वो तब जान पाता। ...और फिर वो समझाने लगती कि जो होता है अच्छे के लिये होता है...कि जोड़े तो ऊपर से बनकर आते हैं...कि दीपा कितनी अच्छी है...कि वो बहुत खुश है। फिर उन दोनों ने ये सोचा कि उसकी सवा साल की छुटकी और उसका पाँच साल का रोहन जब बड़े हो जायेंगे, तो वो आयेगा नन्हीं परी के घर अपनी छुटकी का रिश्ता लेकर। आहा...! कम-से-कम इस तरह से तो कुछ रह गये सपने पूरे होंगे और वो इतराने लगता अपनी इस दोस्ती पर, अपनी किस्मत पर !!! वो अपनी ऊँगलियों में दबी विल्स क्लासिक की सुलगती सिगरेट को घूरता हुआ आश्चर्य करने लगा महज तीन महीने पुरानी इस दोस्ती के चमत्कारों पर। विगत बीस सालों से लगातार सिगरेट पीता आया था वो। किसी के कहने पर छोड़ नहीं पाया था अपनी ये लत। खुद दीपा ने कितनी जिद की थी। कितना रोना-धोना हो चुका है इस सिगरेट के एपिसोड को लेकर, लेकिन कभी नहीं छूटी ये लत एक दिन के लिये भी। ...और विगत ढ़ाई महीने से उसने बिल्कुल छोड़ा हुआ था सिगरेट पीना। बस नन्हीं परी का एक बार कहना और...उसे खुद ही यकीन नहीं हो रहा था। दोस्ती तो ये वाकई इतराने के काबिल थी। लेकिन आज...
...और फिर अचानक आज का ये संदेशा? उसके पूरे वजूद को हिलाता हुआ। नन्हीं परी ने सीधे-सपाट शब्दों में लिख दिया था कि ये दोस्ती उसके लिये ठीक नहीं। उसकी प्रतिष्ठा, उसकी जज्बातों के लिये ठीक नहीं!! कह तो रही थी वो विगत कुछेक दिनों से कि वो खुद को बँटी पा रही है दो हिस्सों में। उसे ये सब ठीक नही लगता। वो अपना पूरा समय दिल से नहीं दे पा रही है अपने पति को, अपने बच्चों को। वो एक टीन-एजर सा व्यवहार करने लगी है। दिन भर उसकी बातें सोचती रहती है, उसके फोन का इंतजार करती है, हर आनेवाले एसएमएस पर चौंक पड़ती है। ये महज दोस्ती नहीं रह गयी है अब। शी जस्ट कैन नाट टेक इट एनि मोर । इट हैज टु इंड । ...तो हो गया "दि इंड" । नन्हीं परी के इस आज के एसएमएस ने समाप्त कर दिया एकदम से सब कुछ, ये कसम देते हुये कि अगर उसने सचमुच अपनी नन्हीं परी से प्यार किया है तो अब वो उससे कभी कोई संपर्क नहीं करेगा। ...और वो कैसे इस फ़रमान को नकार सकता है। फ़रमान ही तो जारी कर दिया उसकी नन्हीं परी ने उसे उसके इश्क का वास्ता दे कर।
दूसरे पैकेट की आखिरी सिगरेट खत्म हो चुकी थी।
वो मोबाइल हाथ में लिये मैसेज-बाक्स में लार्ड टेनिसन की पंक्तियाँ बार-बार टाइप कर और मिटा रहा था- ओ’ टेल हर ! ब्रीफ इज लाइफ, बट लव इज लांग ।
संदेशा भेज देने को व्याकुल मन बार-बार इस उम्मीद में रूक जाता कि अभी...शायद अभी तुरत एक और संदेशा आयेगा नन्हीं परी का और सब ठीक हो जायेगा।
पूरे शहर में रात उतर चुकी थी, लेकिन शाम का एक टुकड़ा विल्स क्लासिक के धुँयें में लिपटा उस गली में शहर की इकलौती क्लासिक लेम्बरेटा के इर्द-गिर्द अभी भी ठिठका खड़ा था उसके मोबाइल के स्क्रीन में झांकता हुआ...इंतजार में एक संदेशे के...
हूं! कहनी शुरू से आखिर तक रहस्य के आवरण में लिपटी हुई है और इसे सच मानने का मन होता है। बड़े भाई, आप गद्य पद्य दोनों में कमाल का लिखते हैं। सुंदर कहानी/हकीकत है।
ReplyDeleteवो मोबाइल हाथ में लिये मैसेज-बाक्स में टेनिसन की पंक्तियाँ बार-बार टाइप कर और मिटा रहा था- "o' tell HER, life is short...but love is long!"
ReplyDeletelove indeed is everlasting....
..Forever !!
कहानी की यह "गौतमी" शैली कमाल की है -यह पाठक को एक आत्मसंस्मरणात्मक अभिव्यक्ति का भान करती है -झूंठ या सच यह तो कहानीकार ही जाने ! कहानी बहुत प्रभावशाली है -जज्बाती प्यार की त्रासद परिणति /नियति और असहायता की पीडा भरी अनुभूति को संप्रेषित करती ! पढ़कर शायद हर पाठक विछोह के विस्मृत पलों को याद कर असहज सा हो जायेगा -यह तो बड़ी ज्यादती है !
ReplyDeleteघर से बाहर निकल गया था पापा का क्लासिक लेम्बरेटा स्कूटर उठाये। लाजिमी ही था...उन आँसुओं को छिपाने के वास्ते।
ReplyDeleteलेम्बरेटा को घेरे वो विषाद के क्षण एक बार फिर से मुस्कुरा उठते हैं
सब कुछ अब स्वप्न समान लग रहा था उसे उस 70 की दशक वाली पापा के लेम्बरेटा पर बैठे हुये।
शाम का एक टुकड़ा उस गली में उस क्लासिक लेम्बरेटा के इर्द-गिर्द अभी भी ठिठका खड़ा था.
रिश्तों को संभाल कर रखने या फिर एक रूमानियत को अहसासों का पोषण देता हुआ चरित्र स्थापित करता है आपका स्कूटर. कथा को आपने बहुत कम्प्रेस किया है वजह क्या है आप जानते होंगे पर पिछली कहानी की ही तरह कुछ सूत्रों को पकड़ने के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं. कहानी वही है जिसको सब शक की निगाह से देखे कि ये सच तो नहीं ? मुझे नहीं लगता कि गौतम जी इस बार भी ऐसे सवालों से बचने वाले हैं. मेरे से कहीं ज्यादा तो तिलिस्म आपके यहाँ बिखरा होता है जैसे उस नन्ही परी का नाम अपनी बेटी का नाम बन गया कहते हुए आप, आधारभूत तथ्यों को कथा साबित करने का प्रयास करते हैं, है न तिलिस्म.... मैं तो आपके जाल में फंस ही गया हूँ. नायिका मुझे मिलती तो कहता यार एक बार गले से लगा कि ज़िन्दगी भर के लिए उस नीली स्कूल यूनीफोर्म की गर्मी बनी रहे दिल के भीतर.
वैसे इस पर आप सलाम कुबूल कीजिए कि हर फ़न के उस्ताद हैं आप !!
कहानी में कुछ क्लासिक चीजे बड़ी खूबसूरती से शुमार की गयी है.. जैसे लेम्ब्रेटा, सुमन सौरभ, फेंटम, देवदास, राजू गाइड,
ReplyDeleteये कहानी के बैकग्राउंड एक मजबूती देती है... कमाल का फ्लो है कहानी में..
आप कुछ भी नही छुपा पाते हैं वीर जी....! देखो ना सभी शक की निगाह से देख रहे हैं। :) :) सोचती हूँ कि ये शख्स अगर फौज में रह कर दुनिया के सब से क्रूर सच से रोज रू-ब-रू ना हो रहा होता तो कैसा होता....!
ReplyDeleteऔर फिर ये भी सोचती हूं कि उस नन्ही परी का क्या हुआ होगा जो कहानी भी नही लिख पा रही, जो घंटी सुन कर उठने वाली अपनी धड़कनों को सीने में जज़्ब किये सिर झुकाये ऐसे चली जा रही है जैसे उसने कुछ सुना ही नही। कोई उससे पूँछे कि सायकिल की घंटी की आवाज़ का शोर कैसे उसे रात भर सोने नही देता होगा। वो जिसने कल भी किसी की प्रतिष्ठा के लिये अपने जज़बातों को कत्ल कर दिया था और आज भी....!
खुबसूरत कहानी....!।
पता नही क्या है?गद्य है पद्य है,कहानी है या आत्मसंसमरण है?सच है झूठ है?साहित्य है या सिर्फ़ पोस्ट है?जो भी है,मगर है लाजवाब है।जियो गौतम भाई जियो।लेखन को जीने की कला आपसे सीखनी चाहिये।
ReplyDeleteदिल खुदगर्ज है...थोडा सा बेईमान भी.....सब कुछ ठीक चलती ज़िन्दगीमे भी कभी कभी यूँ ही उचककर पुरानी गली में झाँकने लगता है ...की कैसा होगा वो अतीत .....लाजिमी है ऐसा होना .. पर १३ का प्यार अचानक सामने आ जाये तो ...?जिंदगी ऐसी ही है ...इत्तेफाक के मोड़ पर टिकी.....कहानी पर क्या कहूँ ...तुम्हे पढना कभी निराश नहीं करता ....कभी लिखा था .आज तुम्हे नजर कर रहा हूँ
ReplyDelete"ये भी क्या कम इत्तेफाक हुआ है मेरा साथ
हर शै मिल जाती है इत्तेफकान वो नहीं मिलता ."
गौतम जी .................आप जो भी लिखते हैं वो दिल को choo जाता है......... कितनी बार आपका chehraa याद aa जाता है....... सच में लिखना तो कोई आप से seekhe ........... इतनी लाजवाब और rahasy may रचना बस padhte जाओ........ और मन ही मन daad दिए जाओ...........
ReplyDeleteअरे वाह आपकी तो कहानी कहने की विधा में भी पकड़ उतनी ही मजबूत है जितनी की शायरी की विधा में...लेम्ब्रेटा स्कूटर... तेरह साल की उम्र...एक परी....आपने तो हमें सालों पीछे धकेल दिया...फरक सिर्फ इतना है की हमारी कहानी में स्कूटर की जगह एटलस साईकिल थी और हाँ...एक फरक और हमने उस परी को कहीं और नहीं जाने दिया...अभी वो हमारे साथ है...
ReplyDeleteबहुत अच्छा और कमाल का लेखन...बधाई...
नीरज
एक और संदेशा और सब ठीक ......... आस बनी रहती है
ReplyDeleteमैं तो कहानी में कहीं खो गया ...और ना जाने कब मैंने खुद को कहानी के नायक से जोड़ लिया ....बेहतरीन ...बेहतरीन
ReplyDeletekahani bahut achhi bani hai.
ReplyDelete"nanhi padi ki kahani"... per kahani ladke ke ird gird ghoomti hai. Aaj jo bhi mein likhoongi,wo hogi us nanhi padi ki taraf se. " Nanhi padi " kitna achha naam diya hai aapne ."Nanhi Padi" jise us ladke ne itna pyaar kiya aur phir chhor diya , ho jane di uski saadi kahin aur? Aapni maa se suna tha pahli baar ki wo saadi karengi bete ki us nanhi padi se. Per jab sadi ka wakt aaya to kisi ko yaad hi nayi aayi us padi ki. Pari karti bhi to kya...? Kiska karti intejar...?
Phir uski saadi hui.Kho gayi thi wo apne is nayi jindagi mein.Poorane baaton ko to wo bilkul bhool chuki thi.Ki achanak ek din kahan se woh phir aaya uski jindagi mein. Nanhi padi phir beh gayi uski baaton mein...uski bhavanao mein... bahut sametne ki koshish ki usne aapne aapko per sab...bekar. Kuchh dino baad bhram toota uska.Dhyan aaya ki wah kya kar rahi thi? Usne dabaya apni bhavanaon ko . Ye aasan nahi tha uske liye per shayad yahi sahi bhi tha dono ke liye. Nanhi padi aisi hi thi hamesha se . Uske liye uski bhawanayen kam mahatwa rakhti thi. Wah ab bhi utni hi achhi dost hai. Utna hi pasand karti hai apne dost ko ,per apne dost ke sath udd nahi sakti. Pari chahati hai ki uska dost kabhi roye na kyonki wo royega to pari royegi ...wo jalega(dhuen se )to wo jalegi ...
Pari ab nanhi nahi rahi . Nanhe bachon ki ma hai wo. Kisi ki patni hai... adarsh patni hai wo. Aur wo bhi to hai ... ek aadarsh pati... ek aadarsh pita...
To ye ho gayi kahani us nanhi peri ki taraf se. Meri hindi achhi nahi , aapke padhne layak to bilkul bhi nahi. Per aapki post padhte padhte baatein banana jaroor seekh gayi hoon. Mujhse raha nahi gaya. Kisi ko to khara hona hi tha us peri ki taraf se... ek sirf kanchan ji ne hi to sanjha use. Aap bahut... achha likhte hain...
NAINA.
गौतम जी परी तो होती ही ख्वाब लेने के लिये है मगर शैली और शिल्प ने बान्धे रखा कल्पनाओं के पर ना होते हुये भी कितनी ऊँची उडान भर लेती हैं और भावुक मन से ऐसे शब्द बिखरते हैं कि ऐसी अद्भुत रचना का जन्म होता है बहुत ही भावमय रचना आपकी बहुयायामी प्रतिभा को नमन आभार्
ReplyDeleteगौतम जी परी तो होती ही ख्वाब लेने के लिये है मगर शैली और शिल्प ने बान्धे रखा कल्पनाओं के पर ना होते हुये भी कितनी ऊँची उडान भर लेती हैं और भावुक मन से ऐसे शब्द बिखरते हैं कि ऐसी अद्भुत रचना का जन्म होता है बहुत ही भावमय रचना आपकी बहुयायामी प्रतिभा को नमन आभार्
ReplyDeleteगौतम जी परी तो होती ही ख्वाब लेने के लिये है मगर शैली और शिल्प ने बान्धे रखा कल्पनाओं के पर ना होते हुये भी कितनी ऊँची उडान भर लेती हैं और भावुक मन से ऐसे शब्द बिखरते हैं कि ऐसी अद्भुत रचना का जन्म होता है बहुत ही भावमय रचना आपकी बहुयायामी प्रतिभा को नमन आभार्
ReplyDeleteगौतम जी परी तो होती ही ख्वाब लेने के लिये है मगर शैली और शिल्प ने बान्धे रखा कल्पनाओं के पर ना होते हुये भी कितनी ऊँची उडान भर लेती हैं और भावुक मन से ऐसे शब्द बिखरते हैं कि ऐसी अद्भुत रचना का जन्म होता है बहुत ही भावमय रचना आपकी बहुयायामी प्रतिभा को नमन आभार्
ReplyDeleteयह कहानी है या आप की diary के पन्ने!बहुत मुश्किल है इनमें अंतर कर पाना..या जो आप कथानक में जीते हुए लिखते हैं या कथानक से गुजरे हुए हैं..
ReplyDeleteकुछ भी है ...कहानी अंत तक बांधे रखती है...
कहानी बडी मार्मिकता से अपने साथ साथ बहाये ले जाती है. ये शायर और कहानीकार का अद्भुत मिलन है. किसी की रचना पढते हुये ही यह भ्रम होने लगता है कि ये आपबीती होगी..पर मेरी समझ से ये ज्यादती होगी लेखक से. ..बस काहानीकार की रचना का आनंद लिया जाना चाहिये. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
भाई मैंने आपकी दो कहानियां पढीं हालांकि पहली कहानी मेज़र वाली ज़्यादा पसन्द आयी थी लेकिन इन दोनों कहानियों से एक बात तो बहुत स्पष्ट है कि अपनी शैली विकसित करने में जहां कहानीकारों को सालों लग जाते हैं वो आपके पास अभी से है. ढेरों शुभमनायें
ReplyDeleteनन्हीं परी के बहाने आपके कथाकार रूप से परिचय हुआ और एक भावुक कहानी पढने को मिली.
ReplyDeleteshayad ye aapka pehla prayas hai??
ReplyDeleteyaa phir kahaniya pehle bhi likh chuke hai?? jo bhi ho.. wakai lajawab hai.. kahani padhte padhte man me jo uske ant ke prati jigyasa utpanna hoti hai wahi use aur interesting banati hai..
must say.. it is really beautiful.. :)
प्रिय गौतम जी खुश रहो |अभी अभी मै पढ़ रहा था की पिछले दिनों दिल्ली में श्री दर्पण शाह के घर पर हुई गोष्ठी में आपने तरन्नुम में ग़ज़ल गाकर अन्य शायरों को आनंदित किया |मुझे पढ़ कर बेहद खुशी हुई |मैंने पहले भी निवेदन किया था की आपकी गजल आपकी आवाज़ में मैं सुन नहीं पा रहा हूँ जाने कहाँ गलती हो रही है की सुनते समय ऐसी आवाज़ आती है जैसे कोई बहुत जल्दी जल्दी कुछ कह रहा हो (बहुत फास्ट )
ReplyDeleteबेहतरीन! काश नन्ही परी के भी कुछ बयान सुन पाते!
ReplyDeleteगौतम अच्छी कहानी है संवेदनाओं से भरी हुई किन्तु ये कहानी नहीं है ऐसा क्यों लग रहा है । कहानी लिखते समय अपने को कहानी से दूर रखना सबसे कठिन काम है, किन्तु उसे करना ही होता है । कहीं से मिल पाये तो मेरी एक पुरानी कहानी मुट्ठी भर उजास और अतीत के पन्ने पढ़ना । इसलिये क्योंकि ये दोनों ही कहानियां तुम्हारी इस कहानी के आस पास हैं ।
ReplyDeleteहर प्रेम कहानी अपनी सी क्यों लगती है? शब्दों से ऐसे बाँधा कि जब आखिए शब्द आया तो पता चला कि ये तो आखिर शब्द है। सच आपकी लेखनी का जवाब नही। सच कहा आपने। life is short...but love is long!" पढकर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDelete'गौतमी शैली' कहकर आपके रचनाकर्म को अरविन्द मिश्राजी ने सही परिभाषित किया है..पूरी कहानी एक सांस में पढ़ गया.क्या लिखा कैसा लिखा के फेर में तो मैं पड़ता नहीं पर मुझे पढ़कर मजा आगया.कहीं कहीं मासूम कल्पनाए और छोटे छोटे सच मिलकर मन में रूमानियत को इस कदर पसरा देते है कि उससे बाहर आने का जी नहीं चाहता.
ReplyDeleteबहुत अच्छी...!
प्रकाश पाखी
आपकी इस रचना ने दिल से आह... और वाह... दोनों को एक साथ निकला है...
ReplyDeleteमीत
आपकी कहानी और नैना जी की टिपण्णी मिलकर वस्तुतः एक पूरी कहानी बनी है......
ReplyDeleteकिशोर वय के मासूम कोमल स्नेह आकर्षण और दशकों बाद पुनः संपर्क से मन में उठे भावों को आपने जिस सजीवता से अपनी इस कथा में उकेरा है.........बस क्या कहूँ.....
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर !!!!
कोमलता से मनोभूमि को स्पर्श करने और विभोर करने में सक्षम इस कथा के लिए आपको ढेरो बधाईयां ....
phle pyar ki dhkan sanso me bsaye ,
ReplyDeletejeevan ki phli cheejo ko antr me bhigaye bhut sundar kahani hai .aur ye bhi utna hi sach hai agar ye sab kuch sath rhta to andar tk judta kya?
rochakta se bharpur sahityik drshti se bhi mhtvpurn khani.
badhai .
shubhkamnaye
Main is blog pe kaise pahuchi nahin pata...par bahut khush hoon ki aa paayi.
ReplyDeleteitna achcha vivaran bachpan teenage k dinon ka......suman saurabh, phantom, rajan iqbal, amrita pritam :)
Samay beet jaata hai yaadein nahin......bahut hi khoobsurat rachna!
namskaar gautam bhaiyaa,
ReplyDeletekya kahoon aur kya likhoon.
bas padte rahoon yahi man kar raha hai.
@ Anonymous said...
ReplyDeleteshukriya aapkaa naina ji,
gautam ke saath saath hamein bhi samjhaa diyaa aapne....!!!!!
raju duide aur raajen-ikbaal ke saath jaane kahaan kahaan kho gaye the ham...
ye comment box aaj hi dekhaa hai..kahaani pahle padh li thi...
kyaa karein ,,,dil hi nahi thaa koi comment dene kaa...
बहुत सुन्दर!
ReplyDeletegautam bhai , bahut dino baad aapke dwaar aaya , maafi chahunga ... aap to bhai katha bhi badi jordaar likhte hai .. kahani padhkar kisi ki yaad aa gayi ji ..
ReplyDeletebadhai
regards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
इश्क जितना पुराना होता है.. और भी रवा होता है..
ReplyDeleteवो SMS नहीं आने वाला... स्त्रियॉं की तमाम खूबियों/कमियों मे से एक...यद्यपि हाले दिल उधर भी यूँ ही होंगे कुछ
ReplyDeleteडूब गई इस कहानी में ... अतीत में लौटना और पुन: उन पलों को जीना स्वार्थ हो सकता है ..पर ये वर्जित स्वार्थ अपना आकर्षण रखता है ना
ReplyDeleteगौतम, कहानी बहुत सुंदर, कोमल व मोहक है.पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आज रिफरेंस मिला और इतना दुख कि इतनी देर से पढ़ी यह कहानी....
ReplyDeletekahani bahut meethii lagii . sundar aur sahaj bhaasha hai.prem ki saari samvedanaaon ke saath ..
ReplyDeleteकहाँ लिए जा रहे हो साहेब ! अब आगे बढ़ने से डर लग रहा है.....
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