25 June 2009
बिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी...
तीन महीने बाद वापसी सभ्यता में। छुट्टी पे हूँ। एक लंबित प्रतिक्षित छुट्टी पर। ...इस दौरान छुटकी तनया साढ़े तीन महीने और बड़ी हो गयी अपने पापा के बगैर, लेकिन जब अपने पापा से मिली इतने दिनों बाद तो सबको आश्चर्यचकित करते हुये एकदम से अपने पापा की गोद में आ गयी। तो एक शेर बना था कुछ यूं कि
बिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी
दिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
पूरी ग़ज़ल फिर कभी सुनाऊँगा...
कश्मीर की ठंढ़ के बाद इस गर्मी में खौलते-उबलते छुट्टी के दिनों की बात ही कुछ और है। खैर नवगीत की पाठशाला से उठाया हुआ एक प्रयास मेरा नवगीत पर आपलोगों की नज्र कर रहा हूँ:-
जरा धूप फैली जो चुभती कड़कती
हवा गर्म चलने लगी है ससरती
पिघलती सी देखी
जो उजली ये वादी
परिंदों ने की है
शहर में मुनादी
दरीचे खुले हैं
सवेर-सवेरे
चिनारों पे आये
हैं पत्ते घनेरे
हँसी दूब देखो है कैसे किलकती
ये सूरज जरा-सा
हुआ है घमंडी
कसकती हैं यादें
पहन गर्म बंडी
उठी है तमन्ना
जरा कुनमुनायी
खयालों में आकर
जो तू मुस्कुरायी
ये दूरी हमारी लगे अब सिमटती
बगानों में फैली
जो आमों की गुठली
सँभलते-सँभलते
भी दोपहरी फिसली
दलानों में उड़ती
है मिट्टी सुगंधी
सुबह से थकी है
पड़ी शाम औंधी
सितारों भरी रात आयी झिझकती
....और छुट्टी की शुरूआत हुई थी दिल्ली में आयोजित एक नन्हे-से नशिस्त से, जिसमें मुफ़लिस जी, मनु जी, प्रकाश अर्श जी, दरपण जी और खाक़सार शामिल थे। अच्छी धूम मची इन ब्लौगर शायरों से दरपण जी के निवास-स्थान पर और भेद खुला दरपण के प्राची के पार का। रचनाओं की प्रस्तुति और विस्तृत रपट के साथ जल्द ही हाजिर होता हूँ।
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गयी फ़ुरसत / हमें गुनाह भी करने को जिंदगी कम है...
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हम तैयार हैं पढने को आगे भी और फिर कभी भी !
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...क्या बयाँ किया है ..सचमुच फौजीयों के बच्चे यूँ ही बड़े होते हैं...आपकी अगली पोस्ट..अगली ग़ज़ल..अगले हर एक पल की प्रतीक्षा है...और हाँ आज से हमने भी ये रोग पाल ही लिया....
ReplyDeleteचि. तनया बिटिया को आशिष !
ReplyDeleteउनकी मम्मी जी को शाबाशी
और आपका नवगीत
अति उत्तम लगा गौतम भाई !
अब आगे के बयान का इँतज़ार है ..
-- लावण्या
geet pyaara laga, agla lekh padhne ki intzaar men.
ReplyDeleteबिटिया की फ़ोटॊ देखकर जी खुश हो गया। बेटी के बारे में शेर पढ़कर और अच्छा लगा। खास शख्स से मुलाकात के विवरण का इंतजार है। नवगीत अच्छा लगा। जमाऊ। छुट्टियां मुबारक!
ReplyDeleteबिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी
ReplyDeleteदिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
-रुला ही दोगे क्या मेरे भाई. तुमको सलाम करता हूँ...किस जज्बे के साथ पैदा होते हो. बस, सोचता रह जाता हूँ.
बड़ी प्यारी बच्ची है आपकी !
ReplyDeleteबड़ी प्यारी बच्ची है आपकी !
ReplyDeleteवाह बहुत खूब....
ReplyDeleteएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
तनया बहुत क्यूट है ..गीत बहुत पसंद आया ..शुक्रिया
ReplyDeleteमुझे आपका लिखा हमेशा ही अच्छा लगता है. आप शायरी मे भी बात करते हुये से नजर आते हैं. अपने को ज्यादा समझ नही है. पर कुछ खास तो है इस फ़ौजी मे, जो बेटी को इतने दिन बाद गोद मे उठाते ही इतना लाजवाब शेर दाग दे.
ReplyDeleteबिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी
दिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
पूरी गजल का ईंतजार रहेगा.
रामराम.
नज़र ना लगे किसी की प्यारी-प्यारी भतीजी को।मेरी भी एक भतीजी है युती बिल्कुल तान्या जैसी मगर अब वो थोडी बड़ी हो गई है।इंतज़ार रहेगा गौतम भाई आपको पढने का आनंद ही कुछ और है।
ReplyDeletejitni pyari aapki rachna hoti hai utni hi pyari hai aapki bitiyaa,TANAYA . bilkul doll ki tarah .
ReplyDeletejitni pyari hoti hai aapki rachna utni hi pyari hai aapki bitiya !TANAYA.bilkul doll ki tarah .
ReplyDeletenaina
jitni pyari hoti hai aapki rachna utni hi pyari hai aapki bitiya !TANAYA.bilkul doll ki tarah .
ReplyDeletenaina
नमस्कार गौतम भैय्या,
ReplyDeleteदिल छु लेने वाला शेर कहा है आपने, तनया को ढेर सारा प्यार.
गीत बहुत सुन्दर है, कश्मीर की वादियों को मैं इसमें महसूस कर रहा हूँ. उनमे प्रयोग किये कुछ शब्द तो एक अलग आनंद की अनुभूति देते हैं, जैसे कुनमुनाई. ये बंद
"उठी है तमन्ना
जरा कुनमुनायी
खयालों में आकर
जो तू मुस्कुरायी"
........क्या कहने है इसके.
तनया की फोटो उतनी ही सुंदर जितना तनया पर लिखा गया शेर...! औड़ कविता सहज प्रवाहमयी..!
ReplyDeleteवो बातें जो रह गईं उनके पूरा होने का इंतज़ार...!
बेटियां होती ही ऐसी हैं जैसी प्रिय तनया है । हमेशा अपने पापा को सबसे जियादह प्यार करने वाली । तनया की आते आते रुकी मुस्कान काफी कुछ कह रही है । जो अच्छा नहीं लगा वो ये कि 'बिन बाप' कहना मुझे ठीक नहीं लग रहा । पिता से दूर रह कर कहा जाये तो ठीक है । बिन बाप कहना मुझे ठीक नहीं लग रहा । पिता से दूर रहना एक अलग बात है और बिन पिता का होना एक अलग बात है । ईश्वर दुनिया की किसी बेटी को बिन पिता का न करे । सार्वजनिक स्थान पर इसलिये डांट रहा हूं कि कोई भी अग्रज नहीं चाहता कि उसका अनुज इस प्रकार की बातें करें ।
ReplyDeleteचलो अब ये बताओ कि ये अज़ीज शख्स कौन है । बहूरानी से डर नहीं लगता तुमको । क्या घर में सारा खाना माइक्रोवन में पकता है, कहीं कोई बेलन या चिमटा नहीं है क्या ।
नवगीत ठीक है ।
और हां नशिस्त में तो मैं विर्चुअली शामिल हुआ ही था । सुना है सुबह के तीन बजे तक चली थी ।
छुटिटयों के लिये शुभकामनाएं ।
शेर तो आपके इशारों पर जान दे देते हैं और नवगीत की पाठशाला में अध्ययन व्यर्थ नहीं जा रहा है. सबसे ज्यादा पसंद आई तनया पहली नज़र में पापा की बेटी लगती है किसी की नज़र न लगे.बाकि पंकज जी ने कह दिया दिया है उसके साथ इतना जोड़ लें... लव यू तनया
ReplyDeleteगौतम जी छुट्टियों की बधाई...घर वाले साथ हों तो सर्दी गर्मी का ख्याल भला किसे रहता है...तनया बिटिया को देख मन बहुत खुश हुआ...इतनी प्यारी बिटिया से दूर रहना भी हौसले का काम है....और कितना मुश्किल है मैं समझ सकता हूँ...मिष्टी जब फोन पर कहती है "दादा घर कब आओगे ?" तो मन करता है लात मार इस नोकरी को उड़ कर जयपुर पहुँच जाऊँ...लेकिन जो काम हाथ में ले रक्खा है वो बिना किये जाना मुझे कर्तव्य से पलायन वाली बात लगती है....
ReplyDeleteआते ही इतनी प्यारी नशिस्त में शिरकत का मौका भी मिल गया आपको...बड़े किस्मत वाले हो जो मुफलिस जी, मनु जी और अर्श जी जैसे नेक और प्यारे इंसानों के बीच कुछ सुनने सुनाने का मौका मिला...काश हम भी वहां होते...मुफलिस जी ने मनु जी से उस दिन बात तो करवाई थी लेकिन वो वहां महफिल सजाने वाले हैं ये नहीं बताया था...
दोनों शेर बहुत खूबसूरत हैं...और नव गीत ने मन मोह लिया...
छुटियाँ अगर मौका दें तो खोपोली चले आओ...बादल बरसने का मूड बना रहे हैं...
नीरज
सबसे पहले फूलों का फ्राक पहने तनया बेटी को खूब सारा प्यार और आशीर्वाद। और उस पर लिखे शेर पर आपको बधाई। दोनो शेर पढकर आनंद आ गया। गीत ऐसा की हम गुनगुनाने लगे। वैसे आपसे नाराजगी है। आप दिल्ली में है और मुलाकात हुई नही:-( सुना तो था कि आप दिल्ली आ रहे है पर कब ये पता नही।
ReplyDeleteये सूरज जरा-सा
ReplyDeleteहुआ है घमंडी
कसकती हैं यादें
पहन गर्म बंडी
क्या बात है मेजर......खूब कहा है...ओर हाँ नन्ही को प्यार ...स्नेह
गोतम जी सब से पहले तो आप को घर आने की बधाई, फ़िर आप की छुट्टियां खुब मजे से खुशी से बीते यह शुभकामनाये करता हौं,
ReplyDeleteबिटिया तनया तो बहुत सुंदर दिख रही है, फ़िर पापा जो इतना प्यार करते है,ओर शॆर भी बहुत भावुक लिखा, बिटिया को बहुत बहुत प्यार, चलिये अब छुट्टिया मनाये अपने परिवार के संग.
धन्यवाद
सुन्दर मन को महकाती है आपकी नवगीत रचना..............
ReplyDeleteतनया बिटिया का हमारा प्यार और आपको बधाई छुट्टी की .............
दिल्ली की गर्मी में जुटी आपकी महफ़िल लाजवाब रही होगी ............. आपकी रिपोर्ट का इंतज़ार है
पढ़कर प्रेम और आनन्द की अनुभूति हुई!
ReplyDeleteगौतम जी,
ReplyDeleteबिटिया तान्या को ढेरों आशीष।
वैसे मनु जी, और मुफलिस जी से मेरी बात हुई थी २० तारीख के गेट टूगेदर के बारे में। अफ्सोस कि मैं यह मौका चूक गया नही तो आप लोगों के साथ वो हसीं शाम गुजारने का मौका मिलता।
खैर, चलिये फिर कभी सही।
छुट्टियाँ, मुबारक हों।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
तनया बेटी को
ReplyDeleteबहुत
बहुत
बहुत
आर्शीवाद
---मुफलिस---
ना जी भर के देखा ना कुछ बात की ,
ReplyDeleteबड़ी आरजू थी मुलाक़ात की ......
ऊपर वाले ने मुझे कम बोलने वाला क्यूँ बनाया इस बात का मलाल हमेशा ही रहेगा ... क्युनके मैं ज्यादा आप सभी से बात नहीं कर सका... दिल कचोटता है मगर फिर भी आप सभी के साथ उस रौनके-हयात बज्म में शामिल होने का जो मौका मिला वो मेरे जिन्दगी भर ना भूल पाने जैसी एक जिन्दगी है .... उस शाम की हर एक पल अब भी आँखों में घूमता है और बस घूमता ही रहता है...
आपकी मोहना वाली ग़ज़ल को जब भी याद करता हूँ आँखें खुद-बा-खुद नाम हो जाती है और जिस तरह से आपने उसे गया था उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ .....
आज के पोस्ट में खुबसूरत सी मासूम बेटी तनया को देख के मन प्रसन्न हो गया और हाँ गुरु जी ने सही कहा के बिन बाप कहना सरासर अनुचित है .... आपके शे'र के भावः को समझ रहा हूँ मगर वहाँ पर पिता से दूर वाली बात को किसी तरह से शामिल करें तो ज्यादा सही है ....
उस २५ वर्षीया शख्स के बारे में जानने के लिए दिल बेताब है ....
जब घर में हो तो क्या गर्मी और क्या शर्दी...माता पिता का प्यार चंचल और शरारती बिटिया के नाताखातापन उसकी शरारतें और परदे के पीछे बज बज कर...आमंत्रित करते है कंगन.... ये सारी चीजे जब साथ हो तो क्या गर्मी साहिब....
नवगीत में वाकई आपने कुछ एक ऐसे शब्द का समावेश किया है के वो इसकी खूबसूरती और बाधा रहे है .... आपकी छुट्टियाँ जिस तरह से शुरू हुई है उस्सी तरह से सारे दिन कटे यही चाहता हूँ...
उस मुक़द्दस शाम के बारे में जो भी कहूँ वो कम ही होता जायेगा.. ऐसा कदापि लग ही नहीं रहा था के हम सभी पांच लोग पहली दफा मिल रहे है .... बहोत बहोत बधाई शाहिब....
आपका
अर्श
गौतम भाई,
ReplyDeleteवैसे मैं आपका फैन हूँ....आज तक किसी हीरो हीरोइन या खिलाडी का फैन नहीं बन पर आपका फैन क्यूँ हूँ ?सिंपल आपकी सरलता और कर्तव्य निष्ठां के साथ जज्बाती विचारों से मैं अभिभूत हो जाता हूँ...चूँकि मैं बुद्धि से ज्यादा भावनाओं को महत्व देता हूँ इसलिए आप मेरे हीरो है.....रही बात आपकी लेखनी की उसका तो मैं मुरीद हूँ ....
कितना सुन्दर लिखा आपने...!
और प्यारी भतीजी तनया ...उसको तो हमारी उम्र लग जाए...!
आपकी छुट्टियों में व्यवधान नहीं डालेंगे.
पर आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा..
प्रकाश सिंह
गर्म बंडी..
ReplyDeleteक्या बात है... फुर्सत में बताइयेगा.. ये बेटिया कैसे बड़ी होती है
बिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी
ReplyDeleteदिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
behtreen baat ......betee ko bahut pyaar .....
छुटकी तान्या को ढेरों आशीष...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर शायद पहली बार कुछ लिख रहा हूँ.... पर आपकी बातें मुझे हमेशा ही प्रेरणा देती है.
छुट्टियों की खबर देते रहिएगा... तनया को प्यार और आर्शीवाद.
ReplyDeleteअपने तो कुछ और सोच केर ही लिखा होगा पर पहली नजर में ये 'बिन बाप की बेटी 'वाली बात सही नहीं लगी,,,, इश्वेर आप तीनो को हमारी उम्र भी दे,,,
ReplyDeleteसंजीता जी,
साहब की हर यात्रा पर आपकी सौतनों की तादाद बढ़ रही है,,,,, एक और लीजिये...जिनका हमें पता ही नहीं था... ( हमारा नाम तो आपने लिख ही रखा है न,,?
अपनी मुक्कमिल गजल को तो हम जब तब देखते ही रहते हैं,,,,, इसी की बदौलत तो हमें पता लगा है के चचा ग़ालिब का जन्मदिन २७ दिसम्बर १७९७ का है,,,,
मेजर साहिब ये शे'र अपना ठीक कर ही लेना,,,
( लीजिये चाय-वाली तक ने खारिज कर दिया..)
हमने सफाई भी देना चाहि थी पर....
और हाँ, आज तक शे'र सिर्फ मन में गुनगुनाये थे, सो ठीक से बोले नहीं गए,,,
आप एडिट कर दीजयेगा प्लीज ,,,,
एक बार फिर मुलाक़ात के इंतज़ार में,,,
बिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी
ReplyDeleteदिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो
बहुत सुन्दर! ऐसे ही अच्छे दो चार और कवि सैनिक बन जाएँ तो देखिये कैसे हम आम लोगों की सोच परिपक्व होती है.
बिटिया को बहुत आर्शीवाद!
really very nice poem..
ReplyDeletewaiting for other 2..
bin baap ke kaise hoti hai betiya badi...
jaldi post kijiyega.. :)
ये सूरज जरा-सा
ReplyDeleteहुआ है घमंडी
कसकती हैं यादें
पहन गर्म बंडी....tanya beti ko aashirwaad
aapne us ajeej sakhs ke liye jo panktiyan likhi hain unhe wo jaroor pasand aayega.kuchh dino tak bahar jane ki wajah se aapke blog nahi padh paongi lekin asha hai ki laut kar aane tak kuchh aur achha padhne ko milega.
ReplyDeletenaina
aapne us ajeej sakhs ke liye jo panktiyan likhi hain unhe wo jaroor pasand aayega.kuchh dino tak bahar jane ki wajah se aapke blog nahi padh paongi lekin asha hai ki laut kar aane tak kuchh aur achha padhne ko milega.
ReplyDeletenaina
apka sher pada,
ReplyDeleteSundar hai....
ati sundar....
par muaff kariyega apki beti se zayada nahi...
apka navgeet to aur bhi acha laga...
...par aoki beti us din jo phone main NAV-geet(bilkul hi naya) ga rhai thi uske samne aise kai navgeet nayochawar....
pyari si tanya ko khoob khoob pyar aur aashirwad.
ReplyDeleteaapko chutti ke liye shubhkamnaye.
Gautam Ji,
ReplyDeleteI salute you and all your buddies....
You all give up so much and get so little in return!!!!
My sincere thanks to you all.
Great post.
And even better Kavitaa!
Jay Hind,
~Jayant
एक बार फिर आया था ..मुक्कमिल गजल को देखने..
ReplyDeleteतो दरपन भाई का कमेंट पढ़ कर हंसी आ गयी..
उस दिन फोन पर बिलकुल ही नया नव-गीत....हो..हो..हो..हो..
तुम सचमुच बहुत क्यूट हो....तनया.....
वाकई ...क्यूट..
आपकी पोस्ट सीधे दिल में उतर जाती है
ReplyDeleteबिटिया को प्यार.. बहुत सारा प्यार... नवगीत भी अच्छा लगा. बधाई मेरे भाई..
ReplyDeleteकोई विधा छोडेगे या नहीं आप .....अब नवगीत भी इतना बढिया ....!!
ReplyDeleteपिघलती सी देखी
जो उजली ये वादी
परिंदों ने की है
शहर में मुनादी
दरीचे खुले हैं
सवेर-सवेरे
चिनारों पे आये
हैं पत्ते घनेरे
वाह....वाह......!!!!
अब तो आप तारीफ से ऊपर होते जा रहे हैं ....पूरे साहित्यकार बनने की तैयारी है ....!!
अब दिल्ली में जमी महफ़िल की पोस्ट का इंतजार है .....!!
पिघलती सी देखी
ReplyDeleteजो उजली ये वादी
परिंदों ने की है
शहर में मुनादी
waah ! kya baat hai!
navgeet bahut achcha laga.
Tanya bahut hi pyari hai ,mera sneh tanya ko dijeeyega.
-Ghar Vacations mein aayen hain to khoob enjoy kareeye...garami to is baar har jagah aaag ugal rahi hai--
--23 saal baad jin se mile us mulaqat ke bare mein bhi share kareeye ..aur blogger meeting ke bare mein bhi..prachi ke paar--kya secrets hain??
goutamji,
ReplyDeletetanya ko papa mile ya papa ko beti mili..., jo bhi hua he..sukhad he,hamesha sukhad ho/ aatmiya shubhkamnaye/
sher sochne ko mazaboor karataa he kintu is moke par kabhi nahi jab aap mahino baad beti se mil rahe ho// bin baap..../ nahi ji..ye gale utarne jesa nahi lag rahaa he// kher../ navgeet pasand aaya. ab intjaar aapke khaas shkhs ka..//
shighra ye intjaar samapt kare/
मैं भी कई दिनों के बाद नेट पर बैठा हूं. नन्हीं परी को देखकर जी खुश हो गया. मेरा आदाब कहियेगा. नवगीत बहुत अच्छा है. पाठशाला में प्रकाशित होते ही आभास तो हो गया था लेकिन गोपनीयता भंग करना ठीक नहीं लगा.
ReplyDeleteTanya ko dher sara pyar aur ashish.
ReplyDeleteहूं!! खबर तो पक्की है लखनउवाली। छुट्टियां अच्छे से व्यतीत कीजिये ताकि सृजन के लिये खूब मैटर इकट्ठा हो सके। नवगीत और तनया दोनों मोहक हैं।
ReplyDeleteराज जी आपकी इस महफिल की खबर तो
ReplyDeleteउसी दिन मिल गयी थी मगर मैं कुछ व्यस्त रही इस लिये आपको मुबारकवाद ना दे सकी आपकी बिटिया तो बहुत सुन्दर है उसे मेरा आशीर्वाद जरूर दें और अपकी गज़ल के टुकडों ने पूरी गज़ल सुनने की कसक बढा दी है आपकी गज़लों की तो फैन हूँ ही बहुत बहुत बधाई अगली पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा
इस कवि ह्रदय सैनिक, ह्रदय पर असर करने वाले शेर और सुंदर नवगीत को सलाम.
ReplyDeleteपिघलती सी देखी
ReplyDeleteजो उजली ये वादी
परिंदों ने की है
शहर में मुनादी
वाह वाह वाह क्या बात कह दी गौतम साहब।
फ़ौज में यह फ़ितरत कितनी बेहतर जान पड़ रही है भाई, क्या कहना !
"बिन बाप के होती हैं कैसे बेटियाँ इनकी बड़ी
ReplyDeleteदिन-रात इन मुस्तैद सीमा-प्रहरियों से पूछ लो"
मार्मिक पंक्तिया...
आप की बात एकदम सही है....देश की सेवा में कई जरूरी पल जीवन में छूट जाते हैं मगर और कोई रास्ता भी तो नहीं है....आप के साथ साथ सभी देश के प्रहरियों को बार बार नमन......
Ghar loutna kitna achha lagta hai
ReplyDeleteus par jab itni pyaari bachhci intezaar kar rahi ho
apni chhutiyan abhut enjoy kare
nazm abhut khoobsurat hai
lekin mera man aapke pahile hi sher par rah gaya
puri gazal ka intezaar rahega
आपके लिए मेरे ब्लॉग मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति की नयी पोस्ट पर एक अवार्ड है. कृपया आप अपना अवार्ड लें और उसके बारे में जाने.
ReplyDeleteक्या बात है गौतम साहब! कितने ही अपनेपन से लबरेज़ बातें लिख दिया करते हो भाई आप। हमारा प्यारा सैनिक इतना अदीब है, इतना संजीदा है, हमें फ़ख़्र हो रहा है । तान्या बिटिया को हमारा दुलार दीजिएगा।
ReplyDelete---आपका दोस्त बवाल
तलाश है,,,
ReplyDeleteएक मेजर की,,,
जो दिल्ली आया ... मुशायरे में हमें पकाया....
सुबह राजा नल की तरह हम दमयंतियों को सोते छोड़ कर निकल लिया...
सुंदर चेहरा ,आकर्षक व्यक्तित्वा,,, भोली मुस्कान ,,, मासूमियत से निहारती आँखें,,,,
(ओल्ड-मोंक का विशेष शौकीन....)
जहां भी किसी को मिले ...सूचित करे..
काफी लोगों का चैन लूट कर फरार है...
सूचित करने वाले को
उचित
धन्यवाद दिया जाएगा...