06 March 2009

है मेरी प्यास का रूतबा, जो दरिया में लहर दे है...

बस गिनती के दिन शेष रह गये हैं यहाँ इस खूबसूरत उत्तराखंड की वादियों में मेरे। शहर जैसे इस देहरादून में तनिक आराम देने के लिये भेजे गये इस पोस्टिंग की अवधि समाप्त होती हुई और मन है कि बस उड़ कर दूर उस ’कर्मभूमि’ में पहुँच जाना चाहता है। खैर तो आज पेश है मेरी एक छोटी बहर वाली कोशिश।

वो जब अपनी खबर दे है
जहाँ भर का असर दे है

चुराकर कौन सूरज से
ये चंदा को नजर दे है

है मेरी प्यास का रूतबा
जो दरिया में लहर दे है


कहाँ है जख्म औ मालिक
यहाँ मरहम किधर दे है

रगों में गश्त कुछ दिन से
कोई आठों पहर दे है

जरा-सा मुस्कुरा कर वो
नयी मुझको उमर दे है

रदीफ़ों-काफ़िया निखरे
गजल जब से बहर दे है
{द्विमासिक आधारशिला के जनवरी-फरवरी 09 अंक में प्रकाशित}

...इति। आखिरी शेर के काफ़िये में थोड़ा-सा कष्ट है, किंतु शब्द-विशेष के प्रचलित उच्चारण को ध्यान में रखते हुये ये धृष्टता की है। आशा है गुरूजन और उस्ताद क्षमा करेंगे। हमेशा की तरह त्रुटियों से अवगत करा कर अनुग्रहित अवश्य करें।

44 comments:

  1. वाह जी बहुत बढ़िया, अच्छों की संगति में शेअर अच्छे होते जा रहे हैं, बधाई हो!

    ReplyDelete
  2. प्रारंभिक दौर में जब उर्दू का चलन प्रारंभ हो ही रहा था उस समय के शायर इसी प्रकार की खड़ी बोली में मीठी ग़ज़लें लिखते थे । मीर साहब की कई ग़ज़लों में खड़ी बोली के सुंदर शब्‍द आते हैं । जैसे दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके, पछताओगे सुनो हो ये बस्‍ती उजाड़ कर । इस में जो 'सुनो हो' आ रहा है वो पूरे शेर की सुंदरता बढ़ा रहा है । या फिर ये '' ये चश्‍म आईनादारे-रू थी किसू की, नज़र इस तरफ़ भी कभी थी किसू की '' या कि '' क्‍या लड़के दिल्‍ली के हैं अय्यार और नटखट , दिल ले हैं यूं कि हर्गिज़ होती नहीं है आहट '' । गौतम सारे शेर आपके आनंद दायक हैं । आपने जो दे है का प्रयोग किया है उसमें भाखा का आनंद है भाषा का नहीं । इस बार की आधारशिला मुझे मिल नहीं पायी है अन्‍यथा मैं पहले ही बधाई देता ।

    ReplyDelete
  3. वाह गौतम। ये तो बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है। हर शेर क़ाबिले तारीफ़।

    ReplyDelete
  4. हर एक शेर बहुत पसंद आया ..बहुत सुन्दर ..लगा यह ..है मेरी प्यास का रुतबा ...जो दरिया में लहर दे

    ReplyDelete
  5. टिप्पणियाँ आप ही बरसे
    गज़ल जो इस तरह दे है.

    -बहुत खूब!!

    ReplyDelete
  6. है दिल में खलबली सी,
    ग़ज़ल ऐसा असर दे है।

    जलन सी हो रही हमको,
    कौन आपको ये हुनर दे है।

    राजरिशी के ये बानगी,
    एक खनक मेरे भीतर दे है।

    अहा वाह""""""" जीओ भाई जीओ!!!!!!!!!!

    ReplyDelete
  7. एक से बढ्कर दूसरा शेर,क्या बात है,बहुत सुंदर्।

    ReplyDelete
  8. बहुत प्यारी और खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...गुरूजी ने जो बात कही वो कबीले गौर है...ये खड़ी बोली की मिठास अपने आपमें ही कमाल है...बधाई .

    नीरज

    ReplyDelete
  9. bahut sunder likha hai...
    zazbe se bhara hua...
    seene mein ek josh bhar gaya hai...
    meet

    ReplyDelete
  10. इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने वाह जी वाह ... छोटी बहर के उम्दा गज़लों मेसे एक ... कमाल कर दिया गौतम जी आपने तो... और तो और गुरु जी बही पधारे है गुरू जी को सादर परनाम.. आपकी शिकायत दूर करदिया प्रभु ने ... आपके प्यास के रुतबा का पता लगाना मुश्किल है नहीं नामुमकिन है साहब... ढेरो बधाई उफ्फ्फ्फ्फ़ आपके अंदाज में ...

    अर्श

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर गजल. शुभकामनाएं

    रामराम.

    ReplyDelete
  12. कहाँ ज़ख्म कहाँ मरहम है मालिक...
    कितने गहरे अर्थभरे भावों को शब्द दिए हैं,
    बहुत ही अच्छा लगा .....
    जहाँ भी जाएँ देहरादून से,अपना भारत ही होगा........संपर्क
    यह ब्लॉग है ही.....मृगांक बिल्कुल ठीक है

    ReplyDelete
  13. गौतम जी
    छोटी बहर की खूबसोरत ग़ज़ल, जब जब आपकी ग़ज़ल पढता हूँ आपका चेहरा याद आता है और लगता है आप पढ़ कर सुना रहे हैं, कौन से शेर को ख़ास चुनु समझ नहीं आ रहा सब के सब दिल के करीब हैं, फिर भी

    रगों में गश्त कुछ दिन से
    कोई आठों पहर दे है

    ReplyDelete
  14. pahale to gazal ke prakashit hone ki shubhkamanaen....!

    fir gazal ki "JAY HO" ka buland nara

    bahut achchhe ...!

    ReplyDelete
  15. sach kahu,,aapme apne gurujano aadi ke prati jesi bhavnaye he thik vesi hi sundar aapki rachnaaye he, ye prataap kiska he aap khud jaante honge..
    itani taareef ki gai he, mere paas kyaa bachata he? itana hi kahunga ki
    LAAZAVAAB..

    ReplyDelete
  16. Wonderful Ghazal again!
    I liked this one too much ! चुराकर कौन सूरज से ... यह शे'र तो जानलेवा लगा! !
    Second fav शेर - है मेरी प्यार का रुतबा. ज़बरदस्त!

    सारे शेर अच्छे हैं कुल मिलाकर.

    ओके, तारीफ बहुत हुई, अब प्रश्न।

    मतले में आपने काफिया लिए 'ख़बर/असर' जहाँ ख और अ अकारान्त हैं |
    "किधर दे है" का कि इकारान्त है | सवाल आप समझ गए होंगे !

    "रदीफों-काफिया" - रदीफों या रदीफो? या तो अनेकवचन हो या "ओ" हो ... ? (Pulral will make it Kaafiye?) पता नहीं, आप देख लीजिये!
    मैं तो "चुराकर कौन सूरज से" शे'र घर ले जा रही हूँ आज! (अभी ऑफिस में हूँ!)

    Badhai
    RC

    ReplyDelete
  17. बिलकुल खुश्गावार कर दिया आपने .... पहले दो शेर खास लगे ...तुम्हारे व्यक्तित्व की झलक तुम्हारे लिखे में देखने की कोशिश करता हूँ...अल्हाड़ पन.जिंदगी से भरपूर....जियो

    ReplyDelete
  18. क्या बात है गोतम जी बहुत ही सुंदर.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  19. दिल को छूती लाइने जिनको पढ कर सुकून मिला

    एक अच्छी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
    वीनस केसरी

    ReplyDelete
  20. आज तो गौतम साहब ग़ज़ब कर डाला आपने ! अ हा ! किस तराने से बात कह दी भई ! वाह वाह !

    ReplyDelete
  21. behad khubsurat gazal,khas kar pehle 2 sher waah.

    ReplyDelete
  22. नमस्कार गौतम जी,
    इतने आसान लफ्जों में बहुत गहरी बात कह दी है आपने, उम्दा ग़ज़ल है, मुकम्मल ग़ज़ल है...................
    आप देहरादून छोड़ के कब जा रहे हैं, मैं सोच रहा था इस बार जब घर आया तो आप से मुलाक़ात हो जायेगी.

    ReplyDelete
  23. छोटे बहार में ग़ज़ल कहना अपने आप मुश्किल काम है.
    यह ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत बन गयी है.
    आधारशिला में छपना मुबारक हो.

    'रगों में गश्त कुछ दिन से
    कोई आठों पहर दे है'

    वाह!
    उम्दा ग़ज़ल,बधाई!

    ReplyDelete
  24. ... सागर से "मोती" निकाल कर लाये हो, बधाई... जय हिन्द!!!

    ReplyDelete
  25. गौतम जी,
    बधाई। आपकी लेखनी की धार दिन ब दिन बढ़ती जा रही है बहुत खुशी की बात है। सारे शेर मन-प्राणों को आनंदित करनेवाले हैं।

    ReplyDelete
  26. behad khubsoorat gazal, sarahna ke kabil. holi ki shubhkaamnaon sahit badhai.

    ReplyDelete
  27. gautam ji,,
    aakhiri sher me kyaa dikkat lag gai aapko,,,,,
    mujhe to sahi lagaa ,,,,radefon,,,waali n ki bindi to yoonhee lag gai hogi ,,,bade bade ustaado ki typing mistake dekhi hai aapne bhi ,,,,aur hamne bhi,,,
    iske alaawa aapko kahaaan aur kyoon dikkat lagi,,,?? jo aapne safaai pesh ki,,,?

    hame to har lihaaj se khoobsoorat lagi ,,,,baaki nuktaacheen waale bataay,,,

    ReplyDelete
  28. Bhai Gautam ji
    Apki chhoti bahar ki sunder ghazal padane ko mili. iske liye bahut bahut badhai.Antim sher men waise to apne safaai dee hai, agar 'Radeefon'men se bindi hataa dete to sahi ho jata kahin koi kami nahi hai.
    'Radeefo-kaafiya nikhare,
    ghazal jab se bahar de hai.'
    Holi ki shubh kaamnaaon sahit,
    Chandrabhan Bhardwaj

    ReplyDelete
  29. कहे है जब ग़ज़ल गौतम

    सुहाना-सा सफ़र दे है

    ReplyDelete
  30. बहुत दिलकश ग़ज़ल लगी। छोटी बहर का कुछ और ही मज़ा है।
    'कर्मभूमि' में पहुंचने में तो और भी नए नए उनवान मिलेंगे, नए ख़याल आयेंगे, ग़ज़ल में निखार आएगा। साहित्य और देश दोनों की सेवा होगी।
    मेरी ओर से शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  31. bahut hi sunder gazal gautam ji

    khas kar aapke ye teen sher bahut pasand aaye

    hai meri pyaas ka rutba

    Kaha hai zakham

    ragon mein gasht


    bahut hi sunder gazal

    badhayi ho aapko

    ReplyDelete
  32. हुज़ूर ! हाज़िर हो सकता हूँ ??
    सिर्फ , और सिर्फ 'वाह' कह देना
    ना-मुनासिब सा लगेगा ........
    लेकिन.... बे-लफ्ज़ भी तो हूँ ............
    इतना उम्दा, मेआरी और पुख्ताकलाम .....
    और..... मेरी कम-इल्मी ....!?!

    "रगों में गश्त कुछ दिन से ,
    कोई आठों पहर दे है..."
    दिल की बात ....
    सीधी दिल तक उतर जाने वाली बात ......

    आपकी क़लम का जादू इस बात की निशाँ-देही करता है कि आपकी शाईरी तरक्की ki मंजिलें तय करते हुए नुक़ते-उरूज तक पहुँच रही है .....
    मुक्तलिफ़ तज्राबात के ज़ेरे-असर अश`आर खुद बातें करते हैं ....
    और ये बात... दी गयी हर तन्कीदो-तब्सिरे से भी ज़ाहिर हो रही है ...
    मुबारकबाद कुबूल फरमाएं .....

    और ये.. आपकी इस उम्दा तख्लीक़ के लिए . .
    "मुकम्मिल बहर , पुर-लहजा ,
    ग़ज़ल सारी, असर दे है . "
    "निखर जाये कलाम उसका ,
    जिसे भी 'वो' 'नज़र' दे है ."
    ---मुफलिस---

    ReplyDelete
  33. आपको, आपके परिवार एवम इष्ट मित्रों सहित होली पर्व की बधाई एवम घणी रामराम.

    ReplyDelete
  34. गौतम जी,
    आपको ,,,परिवार को होली बहुत बहुत मुबारक हो,,
    नन्ही सी मुक्कमिल ग़ज़ल को प्यार और आशीष,,,,,,

    ReplyDelete
  35. "रगों में गश्त कुछ दिन से ,
    कोई आठों पहर दे है..."


    kya koi kum ilm ka banda kisi zayada wale ki taarif kar sakta hai?

    aap ki ye gahzal patani q baar baar zehan mein ghoomti hai....

    .....3-4 baar padhi laut laut ke aaya ...
    ...comment dene ka man nahi hua
    yu hi laga jaise chota muh badi baat ho....
    isliye ki ap roz apna 'bar raise' khud hi kar rahein hain. Jab lagta hai ki isse badhiya nahi likha ja sakte,
    apka jawab aa jata hai.....
    ......kamal !! Kamal!!

    ReplyDelete
  36. जियो मेरे भाई, जियो....
    बढ़िया.. बहुत बढ़िया.....
    कसम से मैं बहुत देर से इस ग़ज़ल के नशे में हूं.. वाह...

    ReplyDelete
  37. प्यारी ,खूबसूरत और सुंदर

    ReplyDelete
  38. 'है मेरी प्यास का रूतबा
    जो दरिया में लहर दे है.'
    - सुंदर.

    ReplyDelete
  39. kya baat hai! ati sunder aur apke blog per visit kar meine kya paya us parmatma ke ilawa shayad hi koi jaan pae.. shukriya...

    ReplyDelete
  40. जरा सा मुस्कुरा कर वो
    नयी मुझको उमर दे है......आपको नयी उमर यूँ ही मिलती रहे....और आप सरहदों
    पर यूँ ही हमें ग़ज़लें सुनाते रहें....अब किधर की पोस्टिंग है...???

    ReplyDelete
  41. है मेरी प्यास का रूतबा
    जो दरिया मेँ लहर दे है


    वाह... वाह...

    ReplyDelete

ईमानदार और बेबाक टिप्पणी दें...शुक्रिया !