एक गज़ल पेश है। कई दिनों से उलझी-पुलझी पड़ी सी थी कोने में। "मुफ़लिस" जी की नजर पड़ी तो साफ-सुथरी हो कहने लायक बन पड़ी है।
बहर है--> बहरे रमल मुसमन महजूफ़
वजन है--> २१२२-२१२२-२१२२-२१२ {३ X फ़ायलातुन + १ X फ़ायलुन}
कितने हाथों में यहाँ हैं कितने पत्थर, गौर कर
फिर भी उठ-उठ आ गये हैं कितने ही सर, गौर कर
आसमां तक जा चढ़ा संसेक्स अपने देश का
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
जो भी पढ़ ले आँखें मेरी, मुझको दीवाना कहे
तू भी तो इनको कभी फुर्सत से पढ़ कर गौर कर
शहर में बढती इमारत पर इमारत देख कर
मेरी बस्ती का वो बूढा कांपता 'बर', गौर कर
यार जब-तब घूम आते हैं विदेशों में, मगर
अपनी तो बस है कवायद घर से दफ्तर, गौर कर
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नहीं
मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोरचे पर, गौर कर
....आभारी हूँ आप सब के सतत स्नेह और शुभकामनाओं के लिये। त्रुटियों से अवगत करा कर अनुग्रहित करें।
(जोधपुर से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका "शेष" के जुलाई-सितंबर 09 अंक में प्रकाशित)
हर शेर उम्दा गौतम।
ReplyDeleteयार जब तब घूम आते हैं विदेशों में मगर
अपनी तो बस है कवायद घर से दफ़्तर ग़ौर कर
:-)
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, ग़ौर कर...क्या बात है।
गुजरी है 'मुफलिस' की नज़रों से जो 'गौतम' की ग़ज़ल ,
ReplyDeleteवज़्न-ओ-बहरें छोड़ दे बस तू कथन पर, गौर कर.
जब मुफलिस जी की गलियों से होकर आई है तो बेशक बेखटका ग़ज़ल ही है.........
ख्याल आपके दुनिया जहां से अलग होते ही हैं......जिनसे हम लोग बेहद अपनेपन के साथ जुड़ जाते हैं..हर शेर में नया बयान.....नयी चिंगारी....मतले से लेकर आखिर तक उम्दा ख्यालों की रवानी ......सुबह सुबह लाजवाब तोहफा मेरे लिए.....
... बहुत-ही प्रभावशाली व प्रसंशनीय गजल है,कुछ पंक्तियाँ तो बेजोड हैं।
ReplyDeleteयार जब तब घूम आते हैं विदेशों में मगर
ReplyDeleteअपनी तो बस है कवायद घर से दफ़्तर ग़ौर कर
umdaa sher hai.
बहुत अच्छे गौतम भाई,बहुत अच्छे।दिल को छू गई आपकी गज़ल्।
ReplyDeleteजो भी पढ़ ले आँखे मेरी मुझको दीवाना कहे
ReplyDeleteतू भी कभी इनको कभी फुर्सत से पढ़ कर गौर कर
बहुत खूब हर एक शेर ..यह बहुत पसंद आया शुक्रिया
राग रागनियों से नाबकिफ ,केवल शब्द और अर्थ तक ही सीमित हूँ /(१) दरवाजों के शीशे न बदल बाइए नजमी ,लोगों ने अभी हाथ के पत्थर नहीं फैंके /(२) इनके पैबंद लगे कपडे ये गवाही देते ,इनके आदर्शों में पैवंद नहीं ;होते है /(३) मुमकिन है कल ,जुबानों कलम पर हो बंदिशें ,आँखों को गुफ्तगू का सलीका सिखाइए /(४) कांपता बर से मेरी समझ में "बरगद "का ब्रक्ष आरहा है संभवत आपका कोई और अर्थ हो /देश अहित के लिए अब तो किसी पोषक विशेष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता /मोर्चे पर डट जाने के बाद अब कुछ नहीं बदल सकता इसी दृढ निश्चय की आज अत्यंत आवश्यकता है
ReplyDeleteउनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
ReplyDeleteहै जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
" bhut sundr or shi abivykti..."
Regards
बहुत लाजवाब गौतम जी. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
गज़ल तो बढिया है ही.
ReplyDeleteबहर और वज़न के बारे में विस्तार से सिखाने वाले लेख ज़रूर लिखियेगा - ऐसी लेखमाला की बहुत दरकार है - ऐसा कंटेंट उपलब्ध नहीं है.
क्या बिना उर्दू सीखे [यानी लिपि सीखे बिना] बहर और वज़न की समझ पाई जा सकती है?
बहुत ख़ूब ज़िन्दगी पिरो दी अल्फ़ाज़ में
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
ReplyDeleteहै जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
बहुत ही सुंदर लगी आप की यह कविता, खास कर एक फ़ोजी के हाथो लिखी कविता, ओर आप ने सच उडेल दिया, अपनी इस कविता मै.
धन्यवाद
उनके हाथों से देखो बिक रहा हिंदुस्तान...
ReplyDeleteहै जिन्होंने दल रखा तन पे खद्दर, गौर कर...
बहुत सुंदर...
अंतिम पंक्तियाँ बहुत असरदर हैं...
तुम्हारे भाई जैसा
मीत
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
ReplyDeleteहै जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
वाह वाह गौतम जी
शान दार ग़ज़ल, हर शेर में कुछ नयापन है, सची बात कहता हुवा है हर अल्फाज़ आपका. रही त्रुटी की बात........मैं तो मानता हूँ नया ख्याल, नयी चीज, नए विचार में कोई त्रुटी हो ही नहीं सकती, और आप तो माहिर हैं इस फन के. बेहतरीन अल्फाज़ है इस ग़ज़ल के, बहुत बहुत बधाई इस के लिए. आपसे मुलाक़ात याद आ गयी.
aap likhte hain bahut hi khoobsurat gaur kar,
ReplyDeletehumko aise ainon ki
hai zaroorat gaur kar
ek se badh kar ek umda.
बहुत खूब!
ReplyDeleteवाह क्या लिखा हैं।
ReplyDeleteगौतम जी देर से आया माफ़ी चाहूँगा ,अब तक इतनी बेहतरीन ग़ज़ल से महरूम रहा जुल्म है जैसे पाप किया हो.हर शे'र जैसे खुद में एक ग़ज़ल हो .. किस शे'र पे क्या दाद हूँ समझ नहीं आरहा है मुझे तो... हर शे'र मुकम्मल जनाब ... बस ढेरो बधाई कुबूल करें.....
ReplyDeleteअर्श
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
ReplyDeleteहै जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
satya vachan
आपका venus kesari
बहुत अच्छी ग़ज़ल है गौतम जी। 'रमल' मेरी भी मनपसंद बहर है। बड़े आला और निराले ख़यालों से सजी ग़ज़ल
ReplyDeleteपढ़ने में आनंद गया।
त्रुटिया है या नहीं है ये देखना उनका काम होता है जिन्हें ग़ज़ल का रस नहीं लेना है, बस चीरफाड़ करनी होती है. मुझे तो गौतमजी रस लेना है. आनंद लेना है, ..फिर आपकी ही पंक्ति है.
ReplyDelete"एक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नहीं..." जो लिख दिया सो लिख दिया ..
जो लिखा है वो लाज़वाब है..मज़ा आगया ग़ज़ल का रसपान करने में.
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
ReplyDeleteहै जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नहीं
मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोरचे पर, गौर कर
.....aaina rakh diya desh ke aage vartmaan ka......bahut jabardast
गौतम भाए कमाल की ग़ज़ल कही है। बहुत ही बढिया तेवर नज़र आए हैं। लगता है इन दिनो पूरी फॉर्म में है अच्छी रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteआसमां तक जा चढा सेंसेक्स अपने देश का
ReplyDeleteचीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर गौर कर.
गौतम भाई...ऐसा शेर कहने के लिए बरसों की तपस्या चाहिए...क्या कमाल किया है आपने...वाह भाई वा...ग़ज़ल पढने जरा देर से पहुंचा लेकिन सच कहूँ मजा आ गया...बधाई मुफलिस साहेब को जिनकी रहनुमाई में आप इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कह पाए...
नीरज
Great rhythm and makta is simply amazing! Congrats!
ReplyDeletePRAKAASH JI,
ReplyDeleteINHE MAT KAHIYE KE IN DINO POORI FORM ME HAIN....IN KI FORM ALAG HI HOTI HAI.....PATAA LAGE KI PADOSI MULK KI SARHAD PAR JAAAKER ......
HA..HA...HA...HA..
PATAAA NAHIN BAAROOD SE KHELNE WAALE ITNAA KAISE SOCH LETE HAIN...
हर शेर बेहद उम्दा लगा.
ReplyDeleteग़ज़ल की तारीफ में यही कहुन्फी आप को पढना सुखकर लगा.
ख्यालों में ताजगी और रवानगी खूब है!बधाई
हर शेर उम्दा है. आख़िरी शेर दृढ मनोबल का परिचायक है.साधुवाद.
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल है भाई गौतम जी.... इस बार तो हो जाये कुछ..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletekai ghazals to aapki pehle hi padh li thi par aaj fursat se poora blog padha......,abhi har post main tipyana shuru kar raha hoon....
ReplyDelete.....maza aa gaya.....
meri fitrat kya rahi ab kya kahein kya na kahein?
per ke hi naap si buni thi chadar,gaur kar.
kashtiyon main jaana kabhi seekha nahi galib magar ,
kaise jayein ishq-e-dariya mein tere ter kar,gaur kar.
tiri nazmo ki 'gautam' ye nacheez kya misaal de?
har sher khud hi keh raha hai,gaur kar,gaur kar.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूं बहुत ही खूबसूरत गज़ल पढ़वाई आपने। धन्यवाद
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूं बहुत ही खूबसूरत गज़ल पढ़वाई आपने। धन्यवाद
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आई
ReplyDeleteबेहतरीन अल्फाज़ है ...
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
....
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, ग़ौर कर...क्या बात है।
यार जब तब घूम आते हैं विदेशों में मगर
ReplyDeleteअपनी तो बस है कवायद घर से दफ़्तर ग़ौर कर
-क्या कहने..बहुत खूब!!
Gautam ji ,
ReplyDeletebahut achchhee gajlen likhte hain.ye gajal bhee achchhee banee hai.badhai.
रोज ही लारा लप्पा देना, हमको नहीं कबूल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मुबारक,,,,
ReplyDelete१३ मार्च
aaj anaam tippanni kaa mood ban gayaa,,
जो भी पढ़ले आँख मेरी मुझको दीवाना कहे,
ReplyDeleteतू भी तो इन को कभी फुरसत से पढ़ कर गौर कर
क्या बात है...!
कुछ देर हो गई..! क्षमा,,!
जो भी पढ़ ले आँखें मेरी,मुझको दीवाना कहे
ReplyDeleteतू इनको कभी फुर्सत से पढ़ कर गौर कर
वाह वाह ...गौतम जी इस शेर को पढ़ कर तो एक गीत याद आ गया...आँखें ही मिलाती हैं जमाने में दिलों को
अन्जान हैं हम तुम अगर अनजान हैं आँखें ....
इक तेरे न कहने से अब कुछ बदल सकता नहीं
मैं सिपाही सा डटा हूँ मोर्चे पर गौर कर ...ये हुई न फौजियों वाली बात ....बहोत खूब....!!
वाह वाह जी
नमस्कार गौतम जी,
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल है.................
कुछ शेर मुझे बहुत बहुत अच्छे अलगे जैसे...............
"जो भी पढ़ ले.....", "..........मैं सिपाही सा. .." और सेंसेक्स वाला...............
waah !
ReplyDeletebahut hi achha lehjaa...aapka
bahut hi umdaa andaaz...aapka
bahut hi steek khyaal...aapka
bahut hi murassa lafz...aapke
ek bahut achhi gazal....aapki
meri jaanib se to bs dheroN duaaeiN
aur khaaaas badhaaaaaeeeee...!
---MUFLIS---
बहुत सुंदर! देर से पढ़ा पर आनंद इतना आया कि पूछिये मत। हर शेर लाजवाब!
ReplyDeleteI am new here, glad to join you.
ReplyDeleteबहुत जानकारीपूर्ण पोस्ट . समय लेने के लिए हमें के साथ अपने विचार साझा करने के लिए धन्यवाद .
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