देहरादून को विदा कहने का वक्त आ गया। ये आखिरी पोस्ट है उत्तराखंड की इस मनोरम वादी से। तो आज आपका परिचय करवाता हूँ एक अनूठे गीत से। इस गीत के बोल और धुन पर भारतीय सैन्य अकादमी से पास-आउट होने वाले भारतीय सेना के समस्त जांबाज आफिसर कदम-से-कदम मिलाते हैं और वतन पर मर-मिटने की सौगंध लेते हैं। गीत को जावेद अख्तर साहब ने अपने शब्द दिये हैं और धुन पे सजाया है राजु सिंह व अनु मलिक जी ने। अकादमी में प्रशिक्षणरत लगभग सोलह सौ जेंटलमैन कैडेट्स जब इस गीत को अपनी बुलंद आवाज़ में गाते हुये ड्रम की थाप पर कदम मिलाते हुये परेड करते हैं, तो मजाल है कि किसी के जिस्म का रोआं-रोआं न खड़ा हो जाये और वो नजारा तो शब्दों की वर्णन-क्षमता से परे होता है। चाहता तो था कि आप सब को इस गीत की रिकार्डिंग भी सुनवाऊँ, किंतु वो फिर कभी। फिलहाल इस गीत के बोल पढ़वाता हूँ:-
...इति। अगला पोस्ट मुल्क के सुदूर उत्तरी कोने से लिखना होगा। तब तक के लिये विदा।
गौतम जी देहरादून की वादी से आपने जाते जाते बहोत ही बढ़िया गीत पढ़वाया जो हो सकता है हमने सिर्फ टी.वि. पे ही सुना या देखा होगा... शब्दों पे गौर नहीं किया होगा ... भारत माता की जय हो ...
ReplyDeleteआपको भी ढेरो बधाई..
अर्श
" so loving and touching song to read...."
ReplyDeleteregards
फूल कहीं भी हो उसकी महक तो वही होती है वीर कहीं भी रहे उसकी वीरता वही होती है । देहरादून हो या कहीं ओर हो गौतम की चमक तो वही रहेगी जो है । अच्छे गीत के लिये आभार ।
ReplyDeleteपंकज भाई ने जो कहा उसमें थोड़ा जोड़्ना चाहता हूँ कि जिस शहर में आप जाएँगे वह महक उठेगा वैसा ही जैसा उतराखण्ड महकता हुआ छोड़कर आप जा रहे हैं। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है गौतम भाई।
ReplyDelete** Bows to your spirit and junoon for the nation **
ReplyDeleteI have had a hint of this Jazbaa you've mentioned in your post when I was in NCC. Can imagine the magnitude of your feelings ..!
God bless you .. and our country ..
RC
मुझसे पहले की गई टिपण्णिओ मे सब कुछ कहा जा चुका है,सभी से मै सहमत हूं,मेरे लिये आपकी तारीफ़ के लिये अलग से शब्द नही है।आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
ReplyDeleteअलविदा उत्तराखंड...
ReplyDeleteआशा करता हूँ कि इस राज्य और शहर में आपका tenure सुखद रहा होगा,
(भई ! मेज़बान होने के नाते इतना पूछने का हक तो बनता ही है चाहे छोड़ आये हम वो गलियां...)
और आपका ये अलविदा कहने का अंदाज़ सुहाना लगा.
एक एक शेर में जान हलक तक आ जाती है और रोआं रोआं खडा हो जाता है
आपके उज्जवल भविष्य कि कामना करते हुए,
..... वन्दे मातरम् !
बहुत बढ़िया ढंग से आपने नए स्थान जाने की बात कही ..सुन्दर गीत है यह ..आपके उज्जवल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं ... वन्दे मातरम्
ReplyDeleteनमस्कार गौतम जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत है ये, जोश और जूनून से भरा हुआ.
आपके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनायें.
जय हिंद
रोएं रोएं तो हमारे भी खड़े हो गये गौतम जी.....! खुद पर गुरूर होता है कि आभासी दुनिया में ही सही मगर आप जैसा एक मित्र हैं हमारे पास, जो सरहदों पर वो काम कर रहा जिसे करने के बाद ईश्वर से नज़र मिलाने का आत्मविश्वास बढ़ जाता है।
ReplyDeleteआप किसी भी दिशा में जायें, हमारी दुआयें आप के साथ रहेंगी।
एक बहुत बड़ी चिट्ठी लिखने का मन हो रहा है आपको...! बहुत सी भावनाएं उमड़ आईं
फिलहाल......!
वंदेमातरम
परिवार के दो लोग सेना में है गौतम .ओर एक इस वक़्त कश्मीर बॉर्डर पर....इसलिए इस गीत से परिचित हूँ
ReplyDeleteवन्दे मातरम.....इस रोमांच को मैंने महसूस किया है और आपके विचारों से
ReplyDeleteशत-प्रतिशत सहमत हूँ....यूँ भी जब वन्दे मातरम की गूंज होती है तो
सर झुक जाता है........
gautam ji , naye sthan par posting aapko shubh aur lucky ho meri shubhkaamnayen hai. geet padhkar hi rongte khade ho gaye hain maine apni patni ko bhi padhvaya. mere bete ki bhi posting vizag se kochhin ho rahi hai wo april men report karega.sangeet badh geet ki recording sunne ki prateekshamen.
ReplyDeleteवन्दे मातरम्....जय हो गौतम जी...रोमांचित कर दिया आपने...देहरादून छोड़ के जहाँ जाएँ वहीँ खुश रहें और अपनी ग़ज़लों से हमें नवाजते रहें...आमीन...
ReplyDeleteनीरज
गौतम जी !
ReplyDeleteआपके इस नेक और सादिक़ जज्बे को
सलाम करता हूँ ....
आप जहां भी रहे , खुश रहे , सुखी रहे ....
और इसी भावना के अनुसार
अपने कर्त्तव्य से जुड़े रहें
हम सब की नेक ख्वाहिशात
हमेशा-हमेशा आपके साथ ही हैं
और रहेंगी.....
जय भारत
और जय भारत-देश के महान वीर-सैनिक .
---मुफलिस---
naye mukam par pahunch kar soochit karne kee kripa karen
ReplyDeleteगौतम जी
ReplyDeleteकई बार पढ़ा ये गीत हर बार आपका मोहक चैहरा याद आ गया. लगता है जैसे आपसे कोई रिश्ता सा बन गया है. आशा है आपको सुदूर की पहाड़ियाँ भाएँगी, आप के जाने से वो गुलशन भी महक उत्तेगा देश प्रेम का जज़्बा पुर देशमें महकेगा.
वन्दे मातरम्
इतनी जोशीली और देशप्रेम की रचना सुनवाने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteनाज़ है सभी को अपने वीरों पर। आपकी हिम्मत और ताक़त देश हित में लगे, ऊँचाई छूने में लगे-दुआ है।
भाई आप जैसा कवि जहां भी रहेगा वो जगह तो महक ही ऊठेगी. बहुत शुभकामनाएं आपको नई जगह जाने की. और हमारे पास कब आरहे हैं.
ReplyDeleteवैसे मेरा मन कहता है कि आप जल्द ही mhow आ रहे हैं. आपका इन्तजार करेंगे हम.
रामराम.
फ़ोजी भाई कही भी रहो, खुश रहो, ओर हमे भी अपनी पोस्ट से खुश रखॊ, आप को सेल्यूट.
ReplyDeleteवन्दे मातरम्... जय भारत माता की, ओर ज्य हमारे फ़ोजी जवानो की, ओर ज्य हमारे गोतम भाई की.
चलिये अब जल्दी से नयी जगह समभाले ओर फ़िर एक नयी पोस्ट..
बाकी बाते तो सभी ने कह ही दी वो भी मेरी तरफ़ से... खुश रहो वीर जवान
गौतम जी इस गीत के बोल पहली बार पढ रहा हूँ और सुनने का मौका कभी मिला नहीं पर एक गीत है जिसे सुनकर बचपन में भी आँखे नम हो जाती थी और आज भी उसे सुनकर आँखे नम हो जाती है। बिल्कुल उसी प्रकार का अनुभव हुआ इस गीत को पढकर । गाने के बोल है - ऐ मेरे प्यारे वतन फिल्म काबुली वाला।
ReplyDeleteगौतम जी
ReplyDeleteइस जोशीले गीत की रिकार्डिंग भी जल्द ही सुनवाइये तो आनंद दुगना हो जाये
वीनस केसरी
सेना का जवान जहाँ भी रहे वह छावनी ही उस का घर होती है..चाहे वह उत्तराखंड हो या सुदूर उत्तर का कोई कोना.
ReplyDeleteआप सेना के कडे अनुशासन वाली दिनचर्या में से समय नेट के लिए निकलते हैं यह बहुत बड़ी बात है.
आप जैसे जिंदादिल इंसान उस कठीन माहोल को भी खुशगवार बना देते होंगे.जहाँ रहीये खुश रहीये..यही शुभकामनायें हैं..सेना के कार्य काल में तब्दाले होना नया नहीं..कहते भी हैं न सेना में दोस्ती बस स्टेशन तक होती है..
आप ने एक बेहद जोश भरा गीत पढ़वाया..उम्मीद है इसे सुनवायेंगे भी जल्दी.बल्कि साइड बार स्थाई लगा दिजीये.
नयी जगह और नया माहोल बहुत अच्छा मिले [खासकर मेस का खाना :)]शुभकामनाओं सहित.
नये स्थान, नई वादियाँ, नये लोग, नई फिजा में पहुँच कर कुछ नया आप लिखें जिसे पढकर मन प्रसन्नचित हो यही आशा है, शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गीत है। और आप कहीं भी रहें....इसी तरह हंसते खिलखिलाते यूं ही हमसे जुड़े रहें...वैसे भी कहते हैं-
ReplyDeleteजहां रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग का अपना मकां नहीं होता
ऐसी जोश भरी कविता कि रोंगटे खड़े हो गए। उस दृश्य की कल्पना करते ही कि जिसकी धुन पर भारतीय सेना के जांबाज़ मर-मिटने की सौगंध ले रहे हों, ड्रम की थाप पर कदम मिलाते हुए परेड कर रहे हों तो हृदय स्वत: ही कह उठता है कि रोम रोम में देश-भक्ति की भावनाओं से ओत-प्रोत इन जांबाज़ वीरों के सामने शत्रु की क्या मजाल है कि आंख भी उठा ले।
ReplyDeleteइस ओजस्वी कविता ने तो मेरे जैसी बूढ़ी धमनियों में भी एक नई ऊर्जा सी पैदा कर दी।
आपको और अपने सेनानियों को शत शत नमन।
आप कहीं भी जाएं, सब देश-विदेश में रहने वाले भारतीयों की शुभकामनाएं सदैव आपके साथ रहेंगी।
वन्दे मातरम!
गौतम बाबु...
ReplyDeleteएक रोग तो आपने देश सेवा का पाल रखा है.. और एसा रोग जिस पर हर किसी को गर्व हो... फिर ये दूसरा रोग भला किसलिए....
इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई और नयी जगह के लिये शुभकामनाएं..
ReplyDeleteवाकई में जोशीला गीत है,,,,,,
ReplyDeleteआपके हाथ छूकर देखना चाहता हूँ,,,
Goutam ji .
ReplyDeleteswagat hai hmare state me....!!
geet sunwaiyega kabhi...!!