छंदबद्ध और छंदमुक्त...? बहस शायद अनंत-काल तक चलती रहे। पिछली दो पोस्टों के जरिये कुछ विज्ञजनों के अप्रतिम विचारों ने मेरे गिने-चुने ज्ञानतंतुओं को खूब हिलाया-डूलाया। आप सब का आभार। इन बहसों से परे आईये मिलते हैं छंद की एक सशक्त हस्ताक्षर से। अंतरजाल पर फैले कविता के अथाह समंदर में डूबकी लगाने वाले शार्दुला नोगजा के नाम से भली-भाँति परिचित होंगे। मुझे उन्हें दीदी कहने का सौभाग्य प्राप्त है...नहीं महज इसलिये नहीं कि वो भी मिथिलांचल से हैं, मैं भी "झा" हूँ और विवाह-पूर्व वो भी "झा" थीं। पिछले साल उस सितम्बर महीने में की मुझे वो गोली लगने वाली घटना यूँ तो दुर्भाग्यपूर्ण थी, किंतु उसी बहाने कुछ बेहद ही अज़ीज नये रिश्तों का आगाज हुआ। शार्दुला दी का वो चिंतित, परेशान इ-मेल और फिर ये "दीदी" और "प्यारेलाल" का
ये प्यारा-सा रिश्ता। जी हाँ, वो मुझे प्यारेलाल कह कर पुकारती हैं उधर उतनी दूर सात समंदर पार सिंगापुर से...। इसी क्रम में उनकी कविताओं और गीतों को पढ़ने का मौका मिला तो हैरत से मैं शब्दों के इस जादुई संगम में डूबता-उतराता उन्हें अपना ब्लौग बनाने की जिद करने लगा। किंतु वो नहीं मानीं...ब्लौग का माहौल, व्यर्थ के उभरते विवाद उन्हें रास नहीं आ रहे। फिर मैंने सोचा कि उनकी कवितायें "पाल ले इक रोग नादां..." के नियमित पाठकों और अपने मित्रों के हवाले करुँ और आप सब से अनुग्रह करुँ कि शार्दुला दी को ये बताया जाये कि ब्लौग का माहौल इतना भी दुषित नहीं हुआ है। चलिये, देखते हैं पहले उनकी एक सामयिक रचना...एक अनूठी कविता जो कुछ अद्भुत प्रतिकों के जरिये अभी हाल ही में संपन्न हुई विवादास्पद Copenhagen Summit पे क्या कुछ कह जाती है:-
एक सपना टूटता है
आज चुप्पी मूढ़ता है
एक सपना टूटता है
एक हरियाली मेरे जंगल से नोटों तक चली
सालों से बोरी में लिपटी शायरी अब पक चली
फल पका अब फूटता है
एक सपना टूटता है
भाग पातीं अब न गलियाँ, ट्रेफिकों ने पाँव छीने
एक ही मंज़र दिखातीं थक गयीं ये ट्रेड मशीनें* (*Treadmills)
कुछ न पीछे छूटता है
एक सपना टूटता है
क्रेन, पोतों, टेंकरों के बीच सूरज क्या करेगा
अब कहाँ पानी में जा कर आस्मां डुबकी भरेगा
क्षितिज पल-पल रूठता है
एक सपना टूटता है
अमन के हैं मायने क्या वो बताएँगे हमें अब
छत ज़मीनें जा लगीं और रास्ते छलनी हुए जब
शहर छाती कूटता है
एक सपना टूटता है
...और अब पढ़िये एक खूबसूरत प्रेम-कविता, चंद अनछुये बिम्बों से सजी-संवरी:-
सच कहूँ तेरे बिना
सच कहूँ तेरे बिना ठंडे तवे सी ज़िंदगानी
और मन भूखा सा बच्चा एक रोटी ढूँढता है
चाँद आधा, आधे नंबर पा के रोती एक बच्ची
और सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है !
आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन
और मंदिर में रहें ज्यों देव का श्रृंगार बासी
बिजलियाँ बन कर गिरें दुस्वप्न उस ही शाख पे बस
घोंसला जिस पे बना बैठी हो मेरी पीर प्यासी !
सच कहूँ तेरे बिना !
पूछती संभावना की बुढ़िया आपत योजनायें
कह गया था तीन दिन की, तीन युग अब बीतते हैं
नाम और तेरा पता जिस पर लिखा खोया वो पुर्जा
कोष मन के और तन के हाय छिन छिन रीतते हैं
सच कहूँ तेरे बिना मेरी नहीं कोई कहानी
गीत मेरे जैसे ऊंचे जा लगे हों आम कोई
तोड़ते हैं जिनको बच्चे पत्थरों की चोट दे कर
और फिर देना ना चाहे उनका सच्चा दाम कोई !
सच कहूँ तेरे बिना !
...उफ़्फ़्फ़! चाँद को आधे नंबर पा के रोती सी बच्ची और सूरज को ऊँघता-अनमना टीचर बनाने वाली इस विशिष्ट रचनाकार को उतनी ही दिलकश आवाज का भी देव-उपहार मिला हुआ है। उन्हीं की आवाज में सुनवाता हूँ उनकी अपनी ही एक रचना "हमको ऐसी मिली जिंदगी..." :-
उनकी कुछ रचनायें कविता-कोश पर भी उपलब्ध हैं जिसे यहाँ क्लीक करके पढ़ा जा सकता है। आपसब की हौसलाअफ़जाई शायद शार्दुला दी को ब्लौग-जगत तक खींच लाये, इसी उम्मीद के साथ अगली पोस्ट में मिलता हूँ अपनी एक ग़ज़ल के साथ।
शार्दुला जी को पढ़ता आया हूँ. उन्हें पढ़ना हमेशा सुखकर रहा.आज सुनना भी हो गया आपके माध्यम से..बहुत स्नेह है आप पर प्यारेलाल बन...जानकर बहुत अच्छा लगा. बड़ो का आशीष मिलता रहे और क्या चाहिये जीवन में...तो आप सौभाग्यशाली हैं...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति लगी. अनेक शुभकामनाएँ आपको!!!
pyarelal ji, avashya laiye inko blogging ki duniya men, hamen bhi inko padhne ka saubhagya prapt hoga, donon rachnayen behatareen, aabhaar.
ReplyDeleteआज क्या दिन है जी...??
ReplyDeleteगौतम ,
ReplyDeleteतुम हो ही इतने प्यारे कि किसी भी बहन को तुमपर नाज़ होगा .
तुम्हारे इस प्रस्तुति के लिए शुभकामनाएँ !! सच शार्दुला जी के छंद बहुत प्यारे हैं , उनकी रचनाओं को पहली बार सुनने और पढ़ने का मौका मिला . बहुत अच्छे लगे !!
एक हरियाली मेरे जंगल से नोटों तक चली HAI
ReplyDeleteसालों से बोरी में लिपटी शायरी अब पक चली HAI
फल पका अब फूटता है
गौतम जी...
पहले कमेन्ट के लिए माफ़ी....
बस वार देख कर दे दिया था...
और प्लीज आप शार्दूला जी की कवितायें एक एक करके ही डालें...बहुत अच्छा लग रहा है पढ़कर...
ये जानकर और भी अच्छा लगा के ब्लॉग नहीं बनाना चाहतीं....
कृपया मेरी इस बात का गलत अर्थ ना लिया जाए.....
आपसे एक गुजारिश जरूर करूंगा....
के समय समय पर उनकी एक कविता आप अपने ब्लॉग पे डाला कीजिये....
ये चार फ़ायलातुन में तो मजा ही आ गया..
प्यारे तो हम भी कह देते हैं आपको...
ReplyDeleteलेकिन प्यारे लाल कहने की हिम्मत अभी नहीं जुटा पा रहे हैं...
अगर आपने नहीं साधा है तो कह सकते हैं..
ReplyDeleteकुदरती बह्र ...
शार्दुला नोगजा की कवितायें निःशब्द करती हैं -मैं तो इन पंक्तियों पर व्यामोहित और स्तब्ध सा भी हूँ -
ReplyDeleteसच कहूँ तेरे बिना मेरी नहीं कोई कहानी
गीत मेरे जैसे ऊंचे जा लगे हों आम कोई
तोड़ते हैं जिनको बच्चे पत्थरों की चोट दे कर
और फिर देना ना चाहे उनका सच्चा दाम कोई !
दीदी की कविताएं पढ़ना तुम्हारे ब्लाग पर अच्छा लगा । मेरे विचार में उनका ब्लाग नहीं बनाने का निर्णय बिल्कुल ठीक है । मुझे भी कभी कभी ऐसा लगता है कि ब्लागिंग के कारण बहुत सी वो ऊर्जा जो साहित्य सृजन में लगनी थी नहीं लग पाती । चाँद आधा, आधे नंबर पा के रोती एक बच्ची
ReplyDeleteऔर सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है !
गुलज़ार साहब को छूते हुए निकल गई हैं ये पंक्तियां । आवाज की क्या कहूं सुधा दीदी और शार्दूला दीदी इन दोनों की आवाज़ का रहस्य जानने को उत्सुक हूं कि क्या वास्तव में ही इन दोनों अग्रजाओं की आवाज़ इतनी मीठी है या कोई साफ्टवेयर डाला हुआ है इन्होंने मोबाइल में आवाज को मीठा करने वाला । गन्ने के रस में थोडा़ शहद और थोड़ी मिश्री मिलाई जाएं तो ऐसी आवाज़ बनती है । गौतम ये फोटो कहां से मिल गया दीदी का तुमको मेरे पास तो एक ही है उसे ही बार बार लगाना पड़ता है । गौतम तुम्हारी ''त्रासदी पुरानी डायरी के पन्नों की,चंद ब्लौगरी-संकल्प और एक कविताई शंका'' ये पोस्ट भी बहुत अच्छी थी किन्तु किसी कारण कमेंट नहीं कर पाया । उसे मैंने कई बार पढ़ा है ।
गौतम जी , ठीक सुबह-सुबह आपका आभारी हूँ....आदरणीया शार्दूला जी से मै परिचित नही था...आभारी हूँ कि अब यह लाईन कहीं और नही लिखनी पड़ेगी....!
ReplyDeleteएक संजीदा प्रस्तुति..वो भी छंद मे....सुंदरतम...!
ok, thanks
ReplyDeleteशार्दुला जी और उन के रचनाकर्म से पहला परिचय है। पर कह सकता हूँ। कि उन के रचनाकर्म में बहुत कुछ विशिष्ट है। रवानी है, दर्द और अभाव हैं और प्यार भी बेशुमार है।
ReplyDeleteओह! तुम्हारी डायरी वाला पोस्ट अभी पढ़ा। बिल्कुल यही बात मैं भी कहती हूँ< गद्य को तोड़ कर पद्य बना कर लिख दें तो क्या कविता हो जायेगी? और ईकविता पर तो काफ़ी बवाल मचा, (मैंने ही मचाया :-) )
ReplyDeleteख़ैर, तुम्हारे विचार जानकर अच्छा लगा।
गौतम जी, आदाब
ReplyDelete'प्यारेलाल' और 'दी' के पवित्र रिश्ते जैसी
रचनाएं पेश की हैं आपने....
आपकी पसंद, परख, चयन, खोज की
जितनी भी तारीफ की जाये, कम है
कितनी गहराई पैदा की गई है, अदभुत, अद्वितीय
और वह शब्द,
जो श्रेष्ठतम रचनाओं के लिये प्रयोग होते हैं,
सभी आप जोड़कर चलें, क्योंकि
या तो हमारे पास हैं नहीं,
या इन रचनाओं के लिये छोटे पड़ रहे हैं
शार्दुला जी तो इस लेखन के लिये बधाई की पात्र हैं ही,
हमारी ओर से प्रस्तुति के आपको मुबारकबाद
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
Behtreen prastuti...jiyo
ReplyDeletebahut hi adbhut aur shandar rachnayein hain aur aisi shakhsiyat ka blog jagat se door rahna to bahut hi galat hai.........hum bhi padhna chahenge aisi beshkimti rachnayein.....swagat hai blogjagat mein unka.
ReplyDeleteगौतम भाई आप सही हैं... उन्हें ब्लॉग बनाना ही चाहिए...
ReplyDeleteयार इतना खूबसूरत लिखा है... दिल खुश हो गया पढ़कर... बस कई बार, बार बार पढने को दिल करता है...
कविता करने का अंदाज़ बेहद ही जबरदस्त है...
"शार्दूला दी" कह सकता हूँ न? अरे गौतम जी भी तो मेरे भाई हैं...
आप ब्लॉग बना ही लीजिये..
मीत
भाग पातीं अब न गलियाँ, ट्रेफिकों ने पाँव छीने
ReplyDeleteएक ही मंज़र दिखातीं थक गयीं ये ट्रेड मशीनें* (*Treadmills)
कुछ न पीछे छूटता है
एक सपना टूटता है
वक़्त हर जगह एक सा बिहेव करता है आदमी के साथ !!!
क्रेन, पोतों, टेंकरों के बीच सूरज क्या करेगा
अब कहाँ पानी में जा कर आस्मां डुबकी भरेगा
क्षितिज पल-पल रूठता है
एक सपना टूटता है
ओर इसे पढ़कर जावेद साहब का एक शेर याद आ गया ........
"ऊँची इमारतो से मेरा मकां गिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज खा गए "
यक़ीनन ...गर रोजमर्रा की जद्दोजेहद इस तरह कागजो पर उतरेगी तो बहुत से पढने वालो को सकूं मिलेगा .....उनसे कहियेगा के कुछ पढने वाले भी है यहाँ ....
सच कहा गुरु जी ने शार्दूला दी ऐसे ही अच्छी हैं। हम लोगो की दी बन कर...! कितनी प्यारी आवाज़ है उनकी कितनी मिठास..!
ReplyDeleteदीदी बहुत साफ स्वच्छ व्यक्तित्व की है। प्रेम से परिपूर्ण और ये कविता...पहले डूबने से बचूँ तो तारीफ करूँ। हर बिंब कैसा अनूठा है। कितना अपना सा, मगर हम सब छू भी नही सकते ऐसा।
अद्भुत...! अद्भुत...!
और हाँ कितनी सुंदर भी तो....!!! आगे की बातों के लिये दी को पर्सनल मेल लिखना होगा।
इस गीत की भी इबारत लगाते तो और अच्छा होता
ReplyDeleteशार्दुला जी को पढ़ना और सुनना बहुत ही अच्छा लगा ......... एक कसक सी है उनकी रचनाओं और आवाज़ में भी ....... शुक्रिया आपका बहुत बहुत इस परिचय का .........
ReplyDeleteशार्दुला नोगजा जी कई कवित बहुत सुंदर लगी धन्यवाद
ReplyDeleteगौतम जी
ReplyDeleteइन दिनों में नवगीत खूब लिखे जा रहे हैं, लेकिन शार्दुलाजी के ये नवगीत काबिले तारीफ हैं। एक-एक छंद वाह-वाह के लायक है। आपने एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व से मिलाकर बहुत उपकार किया। कुछ लोग ब्लाग जगत पर नहीं आना चाहते, समय की बर्बादी मानते हैं। मैं भी मानती हूँ कि समय जाया होता है लेकिन यदि ब्लाग पर नहीं आते तो फिर आप से और शार्दुला जी से परिचय कैसे होता?
bahas ke baad ki itani sukhad thandi../ didi aour pyarelal ke sneh se nikali rasdharaa me ham sab ko aapne nahalaa diya. kyaa baat he../
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया इन सुन्दर रचनाओं को पढवाने के लिए गौतम जी ..
ReplyDeleteAapke ek ek shabd aur anurodh me main apna sur milati hun....
ReplyDeleteAhaha...jaisa mugdhkari lekhan hai,waisa hi komal swar...ekdam abodh balika ki bhanti...
Mana ki blog jagat me gandgiyan bhi hain,par isi me kuchh kamal bhi hain aur aaj ki to param aawashykta hi yah hai..gandgi se naak bhoun sikodne se kaam na chalega,yah palayanwaad hoga....
wo kahte hain na ki ek lakeer ko bina kaate chhota uske bagal me bada lakeer kheenchkar aasanee se kiya ja sakta hai...hame to bas milkar wahi karna hoga...aadarniya shardula di se namra nivedan karungi ki we antarjaal par hindi ko pratishthit karne me apna yogdaan awashy den...
goutam ji,kripaya di ka mail id mujhe dijiye na....
सालों से बोरी में लिपटी शायरी अब पक चली
ReplyDeleteभाग पातीं अब न गलियाँ...
सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है !
-------sab achchha hai...
is parichayatmak charcha ke liye aabhaar...
बहुत सुन्दर कविताएं हैं शार्दुला जी को मैने इ कविता में भी बहुत पढ़ा हैं सौभाग्य से उनसे मिलना भी हुआ था, वो एक कुशल रचनाकार ही नही खूबसूरत व्यक्तित्व की धनी भी हैं, गौतम जी उनकी रचनाओं से एक बार फ़िर रूबरू करवाने के लिये आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteशहर छाती कूटता है
ReplyDeleteएक सपना टूटता है
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चाँद आधा, आधे नंबर पा के रोती एक बच्ची
और सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है
...शार्दुला नोगजा जी की कविओं में दिखने वाले ये प्रयोग वास्तव में अनोखे हैं.
मेजर साहब हम आपके ब्लॉग में आकर खो गए कभी कविता/अकविता की बहस में तो कभी यहाँ..
धन्यवाद.
"ईमानदार और बेबाक टिप्पणी दें."
ReplyDeleteमेजर साहब, आपके उपरोक्त आदेश का हमेशा पालन होगा - सादर.
शार्दुला नोगजा जी के बारे मैं जानकारी और रचनाएँ पढवाने तथा सुनवाने के लिए धन्यवाद्. मैंने भी अक्टूबर 2005 में (जब मेरी 5 रचनाएँ पहली बार अनुभूति में प्रकाशित हुई थीं) सोचा था कि ब्लॉग की दुनियां में कदम रखूं - असमंजस में ही रहा और लगभग ४ साल बाद आखिर आ ही गया - कहाँ तक जाता हूँ समय के गर्त में छुपा है. शार्दूला जी क्या चाहती हैं वो निर्णय करें? मुझे तो उनकी दोनों कवितायेँ बहुत अच्छी और उनको सुनना कर्णप्रिय लगा. आपसे अच्छा राश्ता उन्हें कोई नहीं दिखा सकता.
शार्दूला जी की रचनाएं पढ़ती रही हूँ वो इ कविता और कविताकोश दोनों पर ही पढने को मिल जाती है
ReplyDeleteउनकी कलम की मैं भी बहुत बड़ी फेन हूँ
हर शब्द दिल को गहराईयों से छूता हुआ
प्रखर कल्पना शक्ति और चीज़ों को देखने का नजरिया सभी अद्भुत है
गौतम जी आपने उनकी कवितायें पढवाई बहुत शुक्रिया
कुछ रिश्ते दौलत के जैसे होते हैं आप किस्मत वाले है तो इतना स्नेह मिलता है
पॉडकास्टिंग अच्छी लगी! धन्यवाद।
ReplyDeleteश्रदुला दी की मीठी आवाज़ और ताल देती उनकी चुटकियाँ वाह
ReplyDeleteगौतम भाई आपने कमाल ही कर दिया इस बेमिशाल आवाज़ से मिलाकर
जानता और पढता तो पहले से ही हूँ इनको मगर आज आवाज़ से भी
रूबरू होगया ... आभार आपका ... और दीदी को प्रणाम... बिहार की
हैं यह सुन और अच्छा लगा ... और झा हैं... झा जी लोगों से पुराना
रिश्ता रहा है .. बधाई ...
अर्श
शार्दुला जी को सुनने का सौभाग्य मुझे भी सुलभ रहता है क्योंकि ईकविता समूह की वह एक वरिष्ठ सदस्या हैं। आज आपने बहुत रोचक ढंग से उन्हे यहाँ प्रस्तुत किया। देख कर अच्छा लगा। एतदर्थ धन्यवाद!
ReplyDeleteनए अंदाज में कही गईं कविताऍं बहुत अच्छी लगीं ।
ReplyDeleteशार्दुला नोगजा जी की कविताओं से परिचय कराने का शुक्रिया ।
एक सपना टूटता है...मुझे इन सबमें सबसे बेहतरीन रचना लगी। उनकी काव्य शैली तो मन को सोहती ही है, बौद्धिक धरातल पर भी उनके विचार पुख्ता लगे। शार्दुला जी की रचनाओं को यहाँ प्रस्तुत करने का आभार।
ReplyDeleteकविता अच्छी है , यह अब अलग से कहने की बात नहीं है ...
ReplyDeleteबेशक ब्लॉग जगत का माहौल अधिक संवेदनशील के लिए
स्वस्थ नहीं है , पर संवेदनशील ही पल्ला झड़ने लगेंगे तो क्या होगा ..
अतः एक अच्छे ब्लोगर को ब्लॉग जगत में लाना वैसे ही है
जैसे , '' आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन '' वाली आस को
लाना , आपको यह कार्य करना चाहिए ... आभार ,,,
आदरणीया शार्दूला जी से आप ने परिचय कराया.
ReplyDeleteआभार.
बहुत ही अच्छी कविताएँ हैं.
'सच कहूँ तेरे बिना मेरी नहीं कोई कहानी
गीत मेरे जैसे ऊंचे जा लगे हों आम कोई
तोड़ते हैं जिनको बच्चे पत्थरों की चोट दे कर
और फिर देना ना चाहे उनका सच्चा दाम कोई !'
-ये पंक्तियाँ बेहद प्रभावी लगीं.
-उनको सुनना भी मन भाया.
एक बेहतरीन रचना... एक सपना टूटता है ...
ReplyDeleteमेजर साब, एक ज़ोरदार सेल्यूट मारने को जी चाहता है. शार्दुला जी को पढ़वाकर जो एहसान किया है, उसे शब्दों में नहीं बाँध सकता. गीत, जाने कितने सुने-पढ़े,रचे और जाने कितने पढूंगा-सुनूंगा लेकिन अजब करिश्माई रचनाएं हैं शार्दुला जी की.
ReplyDeleteकुछ लोग जन्मजात रचनाकार होते हैं और कुछ सीख कर हो जाते हैं. शार्दुला जी, मेरे ख्याल से जन्मजात हैं ही, अपने अनुभवों, दृष्टि और ज्ञान के सामंजस्य से उन्होंने साहित्य को जो बुलंदी प्रदान की है, उसकी प्रशंसा न की जाए तो अपना लिखना पढ़ना सब बेकार है.
शार्दुला जी को पेश करके एहसान किया हम सभी पर और आईना भी दिखा दिया है. बहुत निचली पायदान पर खड़ा देख रहा हूँ खुद को.
मैं तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आपके एहसान का.
अपने इस पोस्ट में शार्दुला दीदी जी से परिचय करा आपने एक उत्तम कार्य किया है. एक सच्चे साहित्य सेवक की भूमिका आपने छोटे भाई की तरह निभाई है.
ReplyDeleteदीदी की रचनाये विलक्षण है. संवेदनशील बिम्बों के साथ छंद पूरी कहानी बयां कर रहा है. बहुत सुखद लगा आज यहाँ पढ़कर.
प्रस्तुत की गयीं तीनो ही कविताएं मैंने इ-कविता के सौजन्य से पहले भी पढ़ी है. और उनका कविता पाठ भी सुना है. इ-कविता पर उन्हें प्रायः पढता रहता हूँ. बहुत ही सरस और प्रांजल भाषा का प्रयोग करती हैं. उनकी कविताएँ बिम्बों और उपमाओं से सजी रहती है. कविताओं में कथ्य की गहराई और शब्द-संयोजन सदैव मन मोहता है. श्रृंगार लिखने में तो वे बेजोड़ हैं. इस प्रस्तुति के लिए आपको धन्यवाद.
ReplyDeletekisi bhi pratibha ki apni vaichariki hoti hai. unka swayam ka man nahi badale to un par dabav dalana ya imotional karana uchit nahi hai.
ReplyDeleteApka aur unka
Abhar
ओफ आपकी इतनी पोस्ट आ गयी और मैं सोई ही रही
ReplyDeleteकुछ दिन तो नेट से दूर रही मगर आने पर भी ब्लाग लिस्ट नहीं देखी। आज प्यारे लाल को देखा शर्दुला जी के साथ तो पता चला कि मैं बहुत कुछ पीछे छोड आयी हूँ बहुत अच्छा लगा उनके बारे मे पढ कर । आज अभी अभी एक ब्लाग पर आपको समर्पित कविता पढ कर आयी हूँ आप हैं ही इतने अच्छे कि हर किसी को आप पर नाज़ है तो फिर शर्दुला जी तो शायरी के हीरों की बहुत परख रखती हैं। उन्क़की शायरी के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं बस बधाई और शुभकामनायें
ये पोस्ट नहीं पढ़ता तो सच में एक अच्छी कवि से वंचित रह जाता।
ReplyDeleteयह सच है कि छंद का सब मुझे आकर्षित नहीं करता। छंद में लिखा भी है पर हमेशा लगा कि बंधने-बांधने में बहुत कुछ छूट जाता है। पर जो लोग लिख रहे हैं उनमें यश भाई जैसे मस्तमौले भी हैं। शार्दूला जी को भी पढ़कर अच्छा लगा।
आपका पाठक अद्भुत है!
क्रेन, पोतों, टेंकरों के बीच सूरज क्या करेगा
ReplyDeleteअब कहाँ पानी में जा कर आस्मां डुबकी भरेगा
क्षितिज पल-पल रूठता है
एक सपना टूटता है
कितनो का दर्द बयाँ कर गयीं ये पंक्तियाँ...
आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन
और मंदिर में रहें ज्यों देव का श्रृंगार बासी
बहुत सुन्दर...शुक्रिया इतनी सुन्दर रचनाएं पढवाने के लिए....आप ही पढवाते रहें उनकी रचनाएं...ब्लॉग बनाना एक जिम्मेवारी का काम तो है, creativity पर असर पड़ता है, no doubt (ये मेरे अपने निजी विचार हैं)
शार्दूला जी की रचनाओं से वाकिफ कराने का शुक्रिया...इतनी बेहतरीन रचना और रचनाकार पर कोई टिप्पणी किया जाना मेरे क्षेत्राधिकार के बाहर है.वैसे सही ही कहा है कि ब्लॉग भी कोई उपयुक्त अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है है...
ReplyDeleteअमन के हैं मायने क्या वो बताएँगे हमें अब
छत ज़मीनें जा लगीं और रास्ते छलनी हुए जब
शहर छाती कूटता है
एक सपना टूटता है
पूछती संभावना की बुढ़िया आपत योजनायें
कह गया था तीन दिन की, तीन युग अब बीतते हैं
नाम और तेरा पता जिस पर लिखा खोया वो पुर्जा
कोष मन के और तन के हाय छिन छिन रीतते हैं
ऊपर लिखी पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया..
शार्दूला जी को पढ़ा तो है लेकिन सुना आज आपके ब्लॉग पर...उनकी रचना पढ़ कर जो आनंद मिलता है उस से अधिक उन्हें सुन कर मिला...आनंद जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता...ऐसे ऐसे कमाल के बिम्ब हैं... विलक्षण...क्या कहूँ...वाह...बहुत देर से पहुंचा आपकी पोस्ट पर लेकिन इसका नुक्सान भी मुझे ही हुआ...ख़ुशी इतने दिनों बाद जो मिली...लेकिन जब मिली भरपूर मिली...आप उनका लिखा पढवाते रहें...
ReplyDeleteनीरज
गौतम जी एक कमाल की शब्दों की थाप पर सुरीली सी पोस्ट लगा दी। वैसे हमारा इनसे पहले परिचय नही था पर इनके लेखन को पढने के बाद लगा कि अगर ये भी ब्लोग बनाकर पोस्ट करेगी तो हम बगैर पढे नही रह पाऐगे। अनुराग जी ने सही कहा।
ReplyDeleteगौतम जी,
ReplyDeleteदेर से आप के ब्लॉग पर आई, पर बहुत बड़ा सरप्राईज़ मिला.शार्दूला जी को मैं ईकविता और कविता कोष में पढ़ती हूँ,बहुत ही अच्छा लिखती हैं, हर रचना हृदय को छूकर निकलती है,
इनके द्वारा दिए गए बिम्ब याद रहते हैं..
पर इस रचना ने मेरी ही हालत बयाँ कर दी ...
भाग पातीं अब न गलियाँ, ट्रेफिकों ने पाँव छीने
एक ही मंज़र दिखातीं थक गयीं ये ट्रेड मशीनें* (*Treadmills)
कुछ न पीछे छूटता है
एक सपना टूटता है
और
सच कहूँ तेरे बिना ठंडे तवे सी ज़िंदगानी
और मन भूखा सा बच्चा एक रोटी ढूँढता है
चाँद आधा, आधे नंबर पा के रोती एक बच्ची
और सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है !
क्या बिम्ब दिए हैं-बधाई.
गौतम जी
ReplyDeleteफिर एक बार आपने कमाल कर दिया........शार्दुला जी से जिस तरह आपने तार्रुफ़ कराया है वो काबिले दाद है.......शार्दुला जी ने खी बेहतरीन लिखा है दोस्त....!
चाँद आधा, आधे नंबर पा के रोती एक बच्ची
और सूरज अनमने टीचर सा खुल के ऊंघता है !
वह क्या इमेजिनेसन है.....क्या पोर्टेट है कविता में.......
बस यही कहूँगा यह कविता है कोई,or कविता का आभाष देता हुआ पोर्टेट.........
आपका तो कायल हूँ मेजर साब.......नयी ग़ज़ल का बेसब्री से इन्तिज़ार है!
आवाज अभी ही सुन सके है हम......
ReplyDeleteऔर अब और अधिक जोरदार शब्दों में कह सकते हैं.......
के ये ब्लोगिंग में ना ही पड़ें तो ज्यादा सही रहेगा...
भले ही समीर लाल जी कनाडा से इंडिया आकर हमारी वाट लगा दें...
:)
:))))
वाह .....!!
ReplyDeleteतेरे छूने भर से चाँद खिल कर मुस्कुराने लगे
अपनी इस अदा पे भी ले कर कबूल दाद मेरी...!!
क्या बोलूँ सर जी..कहाँ था यह खजाना आजतक..
ReplyDeleteकविता का यह विस्फ़ोट..कल से पढ़ रहा हूँ और जेहन घायल पड़ा है..समझ नही आ रहा था कि क्या कहूँ..हद है यह!!
बेतहाशा दौड़ते हुए वक्त के छिले हुए पाँवों का सच..
आज चुप्पी मूढ़ता है
एक सपना टूटता है
दुनियादारी की भागम-भाग मे जहाँ भरी सड़कों पर कोई किसी के लिये रास्ता छोड़ने के लिये तैयार नही है..अपाहिज खयालों के पाँव बस कागज/कीबोर्ड की ट्रेडमिल्स पर ही चल पाते हैं..
भाग पातीं अब न गलियाँ, ट्रेफिकों ने पाँव छीने
एक ही मंज़र दिखातीं थक गयीं ये ट्रेड मशीनें
और जब..
शहर छाती कूटता है
..तब समझ नही आता कि शहर अपने हाल पर रो रहा है या हमारी हालत पर..
नाउम्मीदी के गहराते अंधेरे के बीच जब हमारी बेचैन ख्वाहिशें हमारे ही खिलाफ़ षड़यंत्र रचती हैं..तब पते का वह खोया पुर्जा तिनके के सहारे सा याद आता है..
पूछती संभावना की बुढ़िया आपत योजनायें
कह गया था तीन दिन की, तीन युग अब बीतते हैं
नाम और तेरा पता जिस पर लिखा खोया वो पुर्जा
कोष मन के और तन के हाय छिन छिन रीतते हैं
और ठंडे तवे सी जिंदगानी की बात पर इस जिंदगी पर नही वरन् ठंडे तवे पर रोना आता है..जो भूखे बच्चे से मन को बातों से बहला भी नही सकता..
कुँअर बेचैन साहब को भूल रहा हूँ मैं..
अंतर्जाल पर कविता के समंदर मे अपनी तैराकी के कच्चेपन पर अफ़सोस कर रहा हूँ..
...खैर शार्दुला जी की और रचनाओं से मेरे जैसे तमाम पाठक वंचित न रहें उसकी जिम्मेदारी अब एक मेजर साहब की ही है :-)
शुक्रिया प्यारेलाल जी :-)
अमन के हैं मायने क्या वो बताएँगे हमें अब
ReplyDeleteछत ज़मीनें जा लगीं और रास्ते छलनी हुए जब
शहर छाती कूटता है
एक सपना टूटता है!
Kewal ye rachna nahee poora aalekh tatha prem kavitabhi behtareen hai!
Haath kangan ko aarsee kya..tippaniyonka ambaar sab kuchh kahta hai!
बहुत सुन्दर लगा यह पढना और शार्दूला जी को सुनना भी
ReplyDeleteआपका आभार गौतम भाई और इसी तरह , " प्यारे भाई " बने रहियेगा :)
स स्नेह,
- लावण्या
शार्दूला जी की कविताओं और उनकी मधुर आवाज़ से परिचय करवाने के लिए आभार.परिचय इसलिए कि मेरे लिए उनका नाम नया था. और कवितायेँ तो एक अनूठे,पहली बार हुए अनुभव की सृष्टि करने वालीं थीं.
ReplyDeleteगौतम जी
ReplyDeleteशार्दुला जी से परिचय करने के लिए धन्यवाद
आपके द्वारा उनकी रचनाएँ पढने को मिलीं
बहुत बहुत आभार
प्यारेलाल जी,
ReplyDeleteशुक्रिया... छंदबद्ध बहुत दिनों बाद पढ़ा... और एक अलग ही मज़ा आया... खासकर इसे बोलकर पढना
अमन के हैं मायने क्या वो बताएँगे हमें अब
छत ज़मीनें जा लगीं और रास्ते छलनी हुए जब
शहर छाती कूटता है
एक सपना टूटता है
शुक्रिया...
एक अनूठी कविता
ReplyDeleteकविता में इक ऐसी सुंगंध है जिससे मन महक से भर गया.जब भी वक़त मिलता है २ दिन से इस कविता को पढ़ रही हूँ.इक अजीब सी कशिश है इस लाइन में .
इक सपना टूटता है.
सपने सुबह सुबह के टूटते है.रात के पहले पहर देखे सपने याद भी नहीं रहते तो टूटे कैसे?
क्षितिज का रूठना अनूठा सा बिम्ब है.
ज़िन्दगी के ठन्डे तवे पे मन को रोटी की आस जैसे मन हारना नहीं चाहता.
रोपने का इक समय होता है,
फल के पकने का भी और टूटने का भी समय होता है.
पत्थर फैंक देने का भी इक समय होता है.
कह गया था तीन दिन की, तीन युग अब बीतते हैं.इंतज़ार के लम्हे भी अजीब होते है.बजाय सीने के आँखों में दिल धडकता है.
shukriya aapka ek acchi rachnakar se parichay karaane ke liye..
ReplyDeleteek achhi ghajal ka intazar hai aapke blog par... kab tak purane posts padh kar dil bahlayein..
ReplyDeleteऐसे अदभुत, अनछुए बिम्ब और अलभ्य कल्पनाशीलता का दर्शन करा दिया आपने कि न पूछिये । हैरान हूँ ।
ReplyDeleteई-कविता से जुड़ा हूँ अभी-अभी ! अब सौभाग्य मिल सकेगा पढ़ने को यह अमूल्य कृतित्व ।
मैं शार्दुला जी की लेखनी के उस अन्तस्तत्व का अनुमान कर रहा हूँ जिससे इन रचनाओं में एक नूतन-सी सजीवता, हृदय में एक अनिर्वचनीय चमत्कृति-सी, एक आत्मविभोरतास-सी सहज ही संचरित हो रही है ।
आभार ।
आदरणीय आप सभी,
ReplyDeleteआप सब के स्नेह और प्रोत्साहन के आगे नतमस्तक हूँ.
पर ये बखूबी समझती हूँ कि इसमें मेरी कोई कारगुज़ारी नहीं; ये तो गौतम भैया के प्रति आप सब के प्रेम की रसधार है, जिसके कुछ छींटे आज मुझे भी भिगो गए हैं.
सच्चे दिल से आप सबका धन्यवाद!
सादर शार्दुला
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प्यारेलाल, आपने ये तो बताया ही नहीं कि आपका ये नामकरण हुआ कैसे :)
चूंकि गौतम भैया बहुत प्यारे हैं और भारत माता के सच्चे लाल हैं, सो वे हुए हमारे प्यारेलाल :)
दीदी :)
सच कहूँ तेरे बिना मेरी नहीं कोई कहानी
ReplyDeleteगीत मेरे जैसे ऊंचे जा लगे हों आम कोई
तोड़ते हैं जिनको बच्चे पत्थरों की चोट दे कर
और फिर देना ना चाहे उनका सच्चा दाम कोई !
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बढिया
अमन के हैं मायने क्या वो बताएँगे हमें अब
ReplyDeleteछत ज़मीनें जा लगीं और रास्ते छलनी हुए जब
शहर छाती कूटता है
एक सपना टूटता है
Good one !
सच कहूँ तेरे बिना ठंडे तवे सी ज़िंदगानी
ReplyDeleteऔर मन भूखा सा बच्चा एक रोटी ढूँढता है
नाम और तेरा पता जिस पर लिखा, खोया वो पुर्जा
कोष मन के और तन के हाय छिन छिन रीतते हैं
मुझे लगता था कि गीत आजकल सिर्फ फिल्मों के लिये लिखे जाते हैं।
बधाई
शार्दूला दीदी को पढ़ना और सुनना दोनों ही विलक्षण अनुभव हैं। आवाज और रचना दोनों इतनी सुंदर हैं कि मेरे शरीर के अन्य सभी अंगों को मेरे कानों से ईर्ष्या हो रही है। ऐसी पोस्ट लगाते रहिये।
ReplyDeleteभाई साहब, क्या ज़बरदस्त पोस्ट लगाई है आपने. शर्दुलाजी की कविताएं मुझे भी बहुत अच्छी लगती हैं. उनका सरल शब्द संयोजन और अनूठा अंदाज़ किसे न भाता होगा.
ReplyDeleteमनु जी की टिपण्णी की रफ़्तार देख कर लग रहा है...अंगूर की बेटी सर पर ता थईया कर रही थी....हा हा हा
ReplyDeleteशार्दूला जी से आपने परिचय करवाया..बहुत ख़ुशी हुई.....
शार्दूला दीदी के बारे में गुरु जी से सुना और अब यहाँ पे उनकी रचनाओ से परिचय हो गया है,
ReplyDeleteउन्होंने अपनी कविताओं में हर लफ्ज़ इतना अच्छा निखारा है की उसकी खूबसूरती देखते ही बनती है, चाहे वो "एक सपना टूटा है.." में हो या फिर "सच कहूँ तेरे बिना. में.
उनकी आवाज़ के बारे में सुन चुका हूँ जैसे की गुरु जी ने कहा है की दीदी आखिर कौन सी चोक्लेट खाती है या कोई साफ्टवेयर डाला हुआ है ये पता लगाना होगा.
दीदी की ijazat से dono रचनाओ ko copy paste kar raha हूँ.