एक अरसा ही तो बीत गया जैसे ब्लौग पर कोई ग़ज़ल लगाए...तो इस 'एक अरसे' का अंत यहीं एकदम तुरत ही और एक ताज़ा ग़ज़ल:-
आधी बातें, आधे
गपशप, क़िस्सा आधा-आधा है
इसका, उसका, तुम
बिन सबका चर्चा आधा-आधा है
जागी-जागी आँखों में हैं
ख़्वाब अधूरे कितने ही
आधी-आधी रातों का अफ़साना
आधा-आधा है
तुमसे ही थी शह्र की गलियाँ, रस्ते
पूरे तुमसे थे
तुम जो नहीं तो, गलियाँ
सूनी, रस्ता आधा-आधा है
इश्क़ उचक कर देख रहा है, हुस्न
छुपा है ज़रा-ज़रा
खिड़की आधी खुली हुई है, पर्दा
आधा-आधा है
उन आँखों से इन आँखों के बीच
है आधी-आधी प्यास
झील अधूरी, ताल
अधूरा, दरिया आधा-आधा है
ग़ुस्से में तो फाड़ दिया था, लेकिन
अब भी अलबम में
जत्न से रक्खा फोटो का वो
टुकड़ा आधा-आधा है
बाद तुम्हारे जाने के ये भेद
हुआ हम पर ज़ाहिर
रोना तो पूरा ही ठहरा, हँसना
आधा-आधा है
[ jankipul.com में प्रकाशित ]
इश्क़ उचक कर देख रहा है, हुस्न छुपा है ज़रा-ज़रा
ReplyDeleteखिड़की आधी खुली हुई है, पर्दा आधा-आधा है
उम्दा ! बहुत ही प्रभावी रचना आदरणीय ,आभार। ''एकलव्य''
आहा ..पढ़ कर आनंद आ गया सुबह सुबह . शेयर कर रही हूँ
ReplyDeleteबढ़िया।
ReplyDelete'जागी-जागी आँखों में हैं ख़्वाब अधूरे कितने ही
ReplyDeleteआधी-आधी रातों का अफ़साना आधा-आधा है' आह हा आह हा...
ग़ुस्से में तो फाड़ दिया था, लेकिन अब भी अलबम में
ReplyDeleteजत्न से रक्खा फोटो का वो टुकड़ा आधा-आधा है
बाद तुम्हारे जाने के ये भेद हुआ हम पर ज़ाहिर
रोना तो पूरा ही ठहरा, हँसना आधा-आधा है
वाह!!
हाय कितनी प्यारी ग़ज़ल.....
ReplyDeleteफोटो का आधा टुकड़ा....अहा !!
जियो जियो बंदूकधारी....