31 July 2012

चाँद उगा फिर अम्बर मालामाल हुआ...

अपनी कोई ग़ज़ल सुनाये लंबा अरसा हो गया था....और अभी अपने ब्लौग पे नजर डाला तो मालूम हुआ कि चार साल हो गए आज मेरे इस "पाल ले इक रोग नादां..." को  :-) 

तो अपने ब्लौग की चौथी वर्षगांठ पर, मेरी ये ग़ज़ल झेलिये :- 

धूप लुटा कर सूरज जब कंगाल हुआ 
चाँद उगा फिर अम्बर मालामाल हुआ 

साँझ लुढ़क कर ड्योढ़ी पर आ फिसली है 
आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ 

ज़िक्र छिड़ा है जब भी उनका यारों में
ख़ुशबू-ख़ुशबू सारा ही चौपाल हुआ 

उम्र वहीं ठिठकी है, जब तुम छोड गए
लम्हा, दिन, सप्ताह, महीना साल हुआ 

धूप अटक कर बैठ गई है छज्जे पर
ओसारे का उठना आज मुहाल हुआ 

चुन-चुन कर वो देता था हर दर्द मुझे 
चोट लगी जब खुद को तो बेहाल हुआ 

छुटपन में जिसकी संगत थी चैन मेरा
उम्र बढ़ी तो वो जी का जंजाल हुआ 

{त्रैमासिक लफ़्ज़ और मासिक अहा ज़िंदगी में प्रकाशित }

 

18 comments:

  1. सब से पहले ब्लॉग का चौथा जन्मदिन मुबारक हो ,,ये ब्लॉग कामयाबी की सारी बलंदियाँ तय करे


    उम्र वहीं ठिठकी है, जब तुम छोड गए
    लम्हा, दिन, सप्ताह, महीना साल हुआ

    बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल !!

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  2. साँझ लुढ़क कर ड्योढ़ी पर आ फिसली है
    आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल है गौतम जी. ब्लॉग के सालगिरह की बधाई स्वीकारें..

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  3. चार वर्ष की शुभकामनायें, उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..

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  4. चार वर्ष होने की बधाई .... गजल बहुत खूब काही है

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  5. चुन-चुन कर वो देता था हर दर्द मुझे
    चोट लगी जब खुद को तो बेहाल हुआ !
    वाह ...
    चार वर्ष पूर्ण होने की बहुत बधाई !

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  6. शानदार गजल के साथ चार वर्ष पूर्ण होने पर बधाई।

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  7. साँझ लुढ़क कर ड्योढ़ी पर आ फिसली है
    आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ

    bahut sundar..

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  8. चार वर्ष पूरे होने की बधाई.यूँ ही सुन्दर गीत गजल लिखते रहिए.
    घुघूतीबासूती

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  9. .
    .
    .

    साँझ लुढ़क कर ड्योढ़ी पर आ फिसली है
    आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ

    शानदार !

    चार साल पूरे करने की बधाई भी...


    ...

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  10. चुन-चुन कर वो देता था हर दर्द मुझे
    चोट लगी जब खुद को तो बेहाल हुआ

    छुटपन में जिसकी संगत थी चैन मेरा
    उम्र बढ़ी तो वो जी का जंजाल हुआ

    बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल. चार साल के लंबे सफर के लिये बधाई.

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  11. चार साल पूरे होने की बधाई । गज़ल बहुत खूबसूरत है ।


    धूप लुटा कर सूरज जब कंगाल हुआ
    चाँद उगा फिर अम्बर मालामाल हुआ

    साँझ लुढ़क कर ड्योढ़ी पर आ फिसली है
    आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ

    वाह ।

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  12. साँझ लुढ़क कर ड्योढ़ी पर आ फिसली है
    आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ

    उम्र वहीं ठिठकी है, जब तुम छोड गए
    लम्हा, दिन, सप्ताह, महीना साल हुआ

    पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है पर ये अशआर खास पसंद आए।

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  13. चार वर्ष पूरे हुए.....यूँ ही चालीस हों...
    आप लिखें हम मालामाल हों.
    :-)
    सुन्दर गज़ल के लिए शुक्रिया
    अनु

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  14. बुरा नहीं हुआ जो 'पाल ले इक रोग नादाँ' मेरे मोबाइल पर नहीं खुल सका..
    वरना गरीब मोबाइल को फेसबुक के अलावा वही पुराना रोग दोबारा लग जाता...

    दूसरा इस बहाने मनु-उवाच के भी दर्शन हो गए..

    उम्र वहीं ठिठकी है, जब तुम छोड गए
    लम्हा, दिन, सप्ताह, महीना साल हुआ

    वही ग़ज़ल है जिसे पढने के लिए भरी गर्मी में 3 किलोमीटर की दौड़ की थी.
    :)

    ब्लॉग की सालगिरह मुबारक हो..एकाध महीने में शायद मेरी भी है..

    :):)

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  15. पाल ले... को सालगिरह मुबारक और आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई। कुछ नया भी लिखते रहिए...

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  16. राजरि‍शी‍ जी, आपकी ग़ज़ल पढ़ी. आपके ब्‍लॉग का पता ‘हंस’ के नवंबर अंक में प्रकाशि‍त आपकी कहानी के साथ छपे आपके व्‍यक्‍ति‍-परि‍चय से मि‍ला। कहानी आप की ग़ज़ल पर कहानी कुछ ज्‍यादा ही भारी पड़ी है। हो सकता है कि‍ कहानी थि‍र होकर-थम कर लि‍खी गयी और इतनी मंज गयी। स्‍वागत है- अभि‍नंदन है आपका.यह जान कर और भी अच्‍छा लगा कि‍ आधुनि‍क तकनीक और सुवि‍धाओं का बेहतर उपयोग आप लैसे लोग पूरी शालीनता के साथ कर रहे है। संतोष होता है यह देखकर कि‍ जब आज की युवा पीढ़ी की अधि‍कतम ऊर्जा गलीज सोच और व्‍यवहार के गि‍र्द पतंगे की भॉंति‍ बदहोश नाच रही है, ठीक उसी दौर में आप जैसे लोग सलीके से इन इलेक्‍ट्रॉनि‍क सुवि‍धाओं को रचनात्‍मकता की उड़ान दे रहे हैं।
    (पुरुषोत्तम कुमार गुप्‍ता) राजभाषा वि‍भाग,पूर्व रेलवे,आसनसोल.
    email : purushottamkumargupta@gmail.com

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