उम्र का ये पड़ाव बड़ा ही विचित्र-सा है। ये वो पड़ाव है जब "बड़प्पन" की तलाश में भटकती उम्र अचानक से अपने "लड़कपन" को बचाये रखने की मुहिम में बौखलायी फिरने लगती है। फिर भी ये पड़ाव इतना तो सुरक्षित है ही कि आज इस प्रेम-चतुर्दशी के इस उत्सव पर मैं ये घोषणा कर सकूँ कि डायना मेरा पहला प्यार थी।...थी??? ...या है??? नहीं, महज "पहला" कहकर चुप हो जाना अनुचित होगा, क्योंकि मामला तो अव्वलो आखिरश दरम्यां-दरम्यां वाला है। विगत एक हफ़्ते से विभिन्न दिनों को नये-नये नाम से मनाते हुये देखता है जब ये "लड़कपन", तो फिर कमबख्त "बड़प्पन" अपनी कुछ प्रेमिकाओं के नाम गुनगुनाने बैठ जाता है। एक लंबी-सी फ़ेहरिश्त बन जाती है उन नामों को गुनगुनाते...उन प्रेमिकाओं का नाम गुनगुनाते-गुनगुनाते। चलिये उम्र के इस पड़ाव पर खुद को अब बिल्कुल सुरक्षित मानते हुये मैं इस फ़ेहरिश्त को आप सब के संग साझा करता हूँ। फ़ेहरिश्त की क्रमवार सूचि में भले ही ढ़ेरों दुविधायें हों, किंतु पहले स्थान पर निर्विवाद रूप से डायना थी, है और रहेगी- अनंत काल तक।
नहीं, मैं प्रिंस चार्ल्स वाली ब्रिटेन के राजघराने वाली डायना की बात नहीं कर रहा यहाँ। मैं बात कर रहा हूँ डायना पामर । जी हाँ, फैंटम उर्फ वेताल उर्फ अपने चलते-फिरते प्रेत की प्रेयसी डायना की बात कर रहा हूँ। इक्कीसवाँ फैंटम जब पहली बार मिला था कांगो गणराज्य के अमेरिकी दूतावास में डायना से, तब से लेकर अब तलक चल रही इस प्रेम-कहानी का सिलसिला उम्र-दर-उम्र नये अफ़साने गढ़ता चला जा रहा है। ये बिल्कुल ही पहली नजर के पहले प्यार वाला किस्सा था डायना के संग। उधर वेताल को हुआ, इधर मुझे भी। इंद्रजाल कामिक्स के उन पन्नों में मंडराती किसी स्वप्न-सुंदरी सदृश ही डायना एकदम से दिन का चैन और रातों की निंदिया उड़ा ले गयी थी उन दिनों। ये उन दिनों की बात है, जब अपने फैंटेसी की मनमोहक दुनिया बसाया हुआ बचपन सहर्ष ही किट और हेलोइश जैसे प्यारे-प्यारे जुड़वां बेटे-बेटी का पिता कहलाने को तैयार था। हवा-महल के उन सुहाने दिनों में, बौने बंडारों के जहर बुझे तीरों के सुरक्षा-घेरे में, खोपड़ीनुमा गुफा की उन ठंढ़ी तलहटियों में, शेरा और तूफान के संग वाली सैरों में और वेताल के साथ-साथ ही मंडराती चुनौतियों के खिलाफ़ छेड़ी हुई जंगों में...खिलखिलाती मचलती हुई डायना ...उफ़्फ़्फ़्फ़!!! ...और जब अपने मि० वाकर उर्फ चलते-फिरते प्रेत ने प्रणय-निवेदन किया था हमारी डायना से और फिर डायना का उस निवेदन को सहर्ष स्वीकारना...आहहा! कैसा माहौल था वो खुशनुमा!! मानो डायना ने हमारा प्रणय-निवेदन ही स्वीकारा हो प्रत्यक्षतः.... :-) शायद याद हो आपसब को कि शादी में सुदूर ज़नाडु से चलकर अपना प्यारा जादूगर खुद मैण्ड्रेक भी आया था समारोह में हिस्सा लेने।
...और मैण्ड्रेक के साथ ही याद आती है प्रिसेंज नारडा। नारडा के ही महल के बगीचे में मैण्ड्रेक का इजहार अपने प्यार का राजकुमारी नारडा के प्रति और फिर
नारडा का ज़नाडु में स्थानंतरित होना लोथार और मोटे बटलर का साथ देने, शायद इंद्रजाल कामिक्स की दुनिया का एक और शो-केस इवेंट था। इसी फ़ेहरिश्त में यूं तो बेला भी शामिल थी, लेकिन बीतते वक्त के साथ उसकी तस्वीर तनिक धुमिल हो गयी है। बेला...बहादुर की बेला। कहानी के प्लाट में तमाम विविधतायें होते हुये भी बेला का तनिक रफ और टफ व्यक्तित्व मुझे ज्यादा रास नहीं आता। कराटे में वैसे तो डायना भी ब्लैक-बेल्ट थी, लेकिन फिर भी उसकी नजाकत और उसके जिस्म का लोच एक अलग ही अफ़साना बयान करते थे।
फ़ेहरिश्त में आगे चंद और विदेशी नायिकाओं का आगमन होता है। यकीनन लुइस लेन मेरे लिये डायना के समक्ष ठहरती है। डेली प्लानेट के सौम्य और मृदुभाषी रिपोर्टर क्लार्क केंट की दोस्त और प्रेयसी जब क्लार्क केंट को सुपरमैन के ऊपर तरजीह देती है, एक झटके में मेरा दिल ले जाती है। बात उन दिनों की है जबअचानक से इंद्रजाल कामिक्स का प्रकाशन बंद हो गया था और विदेश से आनेवाले मेरे एक रिश्तेदार मेरे कामिक्स-प्रेम को देखते हुये मेरे लिये चंद डीसी और मार्वल कामिक्स का पूरा सेट उपहार में लेकर आये थे। उन दिनों जब डायना दिखनी बंद हो गयी थी, लुइस लेन आयी थी एक बहुत ही मजबूत विकल्प बन कर। सुपरमैन की प्रेयसी किसी भी मामले में कहीं भी सुपरमैन से कम नही थी(है)...याद आता है मुझे क्लार्क कैंट और लुइस का विवाह और उन दिनों किसी कारणवश सुपरमैन अपनी सारी शक्तियाँ खो चुका था, तब तमाम विपदाओं से लड़ती हुई लुइस लेन ने अकेले ही क्लार्क कैंट को मुसिबतों से निकाला था।
...और इसी जारी प्रेम-प्रसंगों की एक सबसे प्रबल प्रतिभागी है मेरी जेन। जी हाँ, अपने नेक्स्ट डोर नेबर पीटर पार्कर उर्फ स्पाइडर मैन की मेरी जेन । दि बोल्ड एंड सेन्सुअस मेरी जेन...उफ़्फ़्फ़! उन तमाम बनते-बिगड़ते रिश्तों की उलझनें, उन तमाम विलेनों के संग की उठा-पटक, उन तमाम रातों की चिंतित करवटें जब पीटर पार्कर अपने स्पाईडी अवतार में दुश्मनों की बैंड बजा रहा होता है...मैंने मेरी जेन का साथ निभाया है। इस लिहाज से मैं कई बार उलझन में भी पड़ जाता हूँ। उलझन में कि मेरी जेन या डायना पामर...?? डायना या मेरी...??? और इस उलझन में डायना का पलड़ा भारी करने हेतु मैं कभी इंटरनेट पे तो कभी कबाड़ियों और पुरानी दुकानों के गर्द पड़ चुके कोनों में फैंटम कामिक्सों को तलाशते रहता हूँ। इंद्रजाल कामिक्स के लुप्तप्राय हो जाने के बावजूद अब भी जुड़ा हुआ हूँ येन-केन-प्रकारेन फैंटम की दुनिया से...तो डायना का पलड़ा हमेशा भारी ही रहता है।
इसी फेहरिश्त में कहीं पर सेलिना भी है। सेलिना....कैट वोमेन...बैटमेन की प्रेमिका। वैसे शायद प्रेमिका कहना अनुचित होगा। क्योंकि सेलिना का अपराधिक-चरित्र और बैटमैन का अपराध को समूल नाश करने का लिया गया वचन इस प्रसंग को आगे बढ़ने से रोकता है। किंतु अपने अल्टर-इगो में ब्रुस वेन कहीं-न-कहीं सेलिना के प्रति झुकाव तो महसूस करता ही है और उसी झुकाव की वजह से हम बैटमैन के चाहनेवाले भी दिलोजान से कामना करते रहते हैं कि ये खूबसूरत सेलिना छोड़ क्यों नहीं देती है चोरी-चकारी के धंधे।
फ़ेहरिश्त यहाँ तक तो बिल्कुल ही स्पष्ट थी, किंतु इसके बाद से तनिक गड्ड-मड्ड होने लगती है। सिलसिलेवार नहीं रह पाती। इसमें कहीं पर विलियम वर्ड्सवर्थ की लुसी शामिल हो जाती है तो कहीं गुलज़ार की सोनां। कहीं राजेन्द्र यादव की वो धोती में लिपटी हुई प्रभा का नाम आता है तो कहीं मन्नु भंडारी की वो प्रेम-त्रिकोण में उलझी हुई दीपा। कभी आर०के० नारायण की रोजी आ जाती है छम्म से तो कभी जैनेन्द्र की सुनिता। इसी फ़ेहरिश्त में जहाँ गैब्रियल मार्केज की फर्मिना डाज़ा भी शामिल है, वहीं सिडनी शेल्डन की ट्रेसी व्हीटनी भी...और सुरेन्द्र मोहन पाठक{?} की रेणु से लेकर वेदप्रकाश शर्मा{??} की सोनाली भी। मार्गरेट मिशेल की स्कारलेट ओ’हारा तो यकीनन है इस फ़ेहरिश्त में और एरिक सिगल की जेनिफर भी। कुछ और नाम स्मृति-अहाते पर आहट करते आते हैं...जैसे कि धर्मवीर भारती की सुधा, अमृता प्रीतम की मीता और सुरेन्द्र वर्मा की वर्षा वशिष्ठ। फ़ेहरिश्त तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही और पोस्ट बहुत लंबी होती चली जा रही है। चलिये फिलहाल फ़ेहरिश्त को समेटता हूँ एक आखिरी नाम के साथ...अंजलि। अंजलि को नहीं पहचाना आप सब ने? अरे अपनी अंजलि जोशी...जिसकी पीली छतरी कई बार एक तितली बन कर उड़ जाती है...अपने उदय प्रकाश की अंजलि।
...तो फिलहाल इतना ही। प्रेमिकाओं की ये लंबी फ़ेहरि्श्त अभी खत्म नहीं हुई है। खत्म? अभी तो सच पूछिये आधे तक भी नहीं पहुँचे हैं हम। फिर कभी चर्चा करुंगा...और हाँ इस "प्रेमिका" शब्द से धोखा मत खाइये आप सब। ये सब-के-सब पूर्णतया एकतरफा प्यार के मामले हैं। वो चचा ग़ालिब ने कहा है ना:-
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
नहीं, मैं प्रिंस चार्ल्स वाली ब्रिटेन के राजघराने वाली डायना की बात नहीं कर रहा यहाँ। मैं बात कर रहा हूँ डायना पामर । जी हाँ, फैंटम उर्फ वेताल उर्फ अपने चलते-फिरते प्रेत की प्रेयसी डायना की बात कर रहा हूँ। इक्कीसवाँ फैंटम जब पहली बार मिला था कांगो गणराज्य के अमेरिकी दूतावास में डायना से, तब से लेकर अब तलक चल रही इस प्रेम-कहानी का सिलसिला उम्र-दर-उम्र नये अफ़साने गढ़ता चला जा रहा है। ये बिल्कुल ही पहली नजर के पहले प्यार वाला किस्सा था डायना के संग। उधर वेताल को हुआ, इधर मुझे भी। इंद्रजाल कामिक्स के उन पन्नों में मंडराती किसी स्वप्न-सुंदरी सदृश ही डायना एकदम से दिन का चैन और रातों की निंदिया उड़ा ले गयी थी उन दिनों। ये उन दिनों की बात है, जब अपने फैंटेसी की मनमोहक दुनिया बसाया हुआ बचपन सहर्ष ही किट और हेलोइश जैसे प्यारे-प्यारे जुड़वां बेटे-बेटी का पिता कहलाने को तैयार था। हवा-महल के उन सुहाने दिनों में, बौने बंडारों के जहर बुझे तीरों के सुरक्षा-घेरे में, खोपड़ीनुमा गुफा की उन ठंढ़ी तलहटियों में, शेरा और तूफान के संग वाली सैरों में और वेताल के साथ-साथ ही मंडराती चुनौतियों के खिलाफ़ छेड़ी हुई जंगों में...खिलखिलाती मचलती हुई डायना ...उफ़्फ़्फ़्फ़!!! ...और जब अपने मि० वाकर उर्फ चलते-फिरते प्रेत ने प्रणय-निवेदन किया था हमारी डायना से और फिर डायना का उस निवेदन को सहर्ष स्वीकारना...आहहा! कैसा माहौल था वो खुशनुमा!! मानो डायना ने हमारा प्रणय-निवेदन ही स्वीकारा हो प्रत्यक्षतः.... :-) शायद याद हो आपसब को कि शादी में सुदूर ज़नाडु से चलकर अपना प्यारा जादूगर खुद मैण्ड्रेक भी आया था समारोह में हिस्सा लेने।
...और मैण्ड्रेक के साथ ही याद आती है प्रिसेंज नारडा। नारडा के ही महल के बगीचे में मैण्ड्रेक का इजहार अपने प्यार का राजकुमारी नारडा के प्रति और फिर
नारडा का ज़नाडु में स्थानंतरित होना लोथार और मोटे बटलर का साथ देने, शायद इंद्रजाल कामिक्स की दुनिया का एक और शो-केस इवेंट था। इसी फ़ेहरिश्त में यूं तो बेला भी शामिल थी, लेकिन बीतते वक्त के साथ उसकी तस्वीर तनिक धुमिल हो गयी है। बेला...बहादुर की बेला। कहानी के प्लाट में तमाम विविधतायें होते हुये भी बेला का तनिक रफ और टफ व्यक्तित्व मुझे ज्यादा रास नहीं आता। कराटे में वैसे तो डायना भी ब्लैक-बेल्ट थी, लेकिन फिर भी उसकी नजाकत और उसके जिस्म का लोच एक अलग ही अफ़साना बयान करते थे।
फ़ेहरिश्त में आगे चंद और विदेशी नायिकाओं का आगमन होता है। यकीनन लुइस लेन मेरे लिये डायना के समक्ष ठहरती है। डेली प्लानेट के सौम्य और मृदुभाषी रिपोर्टर क्लार्क केंट की दोस्त और प्रेयसी जब क्लार्क केंट को सुपरमैन के ऊपर तरजीह देती है, एक झटके में मेरा दिल ले जाती है। बात उन दिनों की है जबअचानक से इंद्रजाल कामिक्स का प्रकाशन बंद हो गया था और विदेश से आनेवाले मेरे एक रिश्तेदार मेरे कामिक्स-प्रेम को देखते हुये मेरे लिये चंद डीसी और मार्वल कामिक्स का पूरा सेट उपहार में लेकर आये थे। उन दिनों जब डायना दिखनी बंद हो गयी थी, लुइस लेन आयी थी एक बहुत ही मजबूत विकल्प बन कर। सुपरमैन की प्रेयसी किसी भी मामले में कहीं भी सुपरमैन से कम नही थी(है)...याद आता है मुझे क्लार्क कैंट और लुइस का विवाह और उन दिनों किसी कारणवश सुपरमैन अपनी सारी शक्तियाँ खो चुका था, तब तमाम विपदाओं से लड़ती हुई लुइस लेन ने अकेले ही क्लार्क कैंट को मुसिबतों से निकाला था।
...और इसी जारी प्रेम-प्रसंगों की एक सबसे प्रबल प्रतिभागी है मेरी जेन। जी हाँ, अपने नेक्स्ट डोर नेबर पीटर पार्कर उर्फ स्पाइडर मैन की मेरी जेन । दि बोल्ड एंड सेन्सुअस मेरी जेन...उफ़्फ़्फ़! उन तमाम बनते-बिगड़ते रिश्तों की उलझनें, उन तमाम विलेनों के संग की उठा-पटक, उन तमाम रातों की चिंतित करवटें जब पीटर पार्कर अपने स्पाईडी अवतार में दुश्मनों की बैंड बजा रहा होता है...मैंने मेरी जेन का साथ निभाया है। इस लिहाज से मैं कई बार उलझन में भी पड़ जाता हूँ। उलझन में कि मेरी जेन या डायना पामर...?? डायना या मेरी...??? और इस उलझन में डायना का पलड़ा भारी करने हेतु मैं कभी इंटरनेट पे तो कभी कबाड़ियों और पुरानी दुकानों के गर्द पड़ चुके कोनों में फैंटम कामिक्सों को तलाशते रहता हूँ। इंद्रजाल कामिक्स के लुप्तप्राय हो जाने के बावजूद अब भी जुड़ा हुआ हूँ येन-केन-प्रकारेन फैंटम की दुनिया से...तो डायना का पलड़ा हमेशा भारी ही रहता है।
इसी फेहरिश्त में कहीं पर सेलिना भी है। सेलिना....कैट वोमेन...बैटमेन की प्रेमिका। वैसे शायद प्रेमिका कहना अनुचित होगा। क्योंकि सेलिना का अपराधिक-चरित्र और बैटमैन का अपराध को समूल नाश करने का लिया गया वचन इस प्रसंग को आगे बढ़ने से रोकता है। किंतु अपने अल्टर-इगो में ब्रुस वेन कहीं-न-कहीं सेलिना के प्रति झुकाव तो महसूस करता ही है और उसी झुकाव की वजह से हम बैटमैन के चाहनेवाले भी दिलोजान से कामना करते रहते हैं कि ये खूबसूरत सेलिना छोड़ क्यों नहीं देती है चोरी-चकारी के धंधे।
फ़ेहरिश्त यहाँ तक तो बिल्कुल ही स्पष्ट थी, किंतु इसके बाद से तनिक गड्ड-मड्ड होने लगती है। सिलसिलेवार नहीं रह पाती। इसमें कहीं पर विलियम वर्ड्सवर्थ की लुसी शामिल हो जाती है तो कहीं गुलज़ार की सोनां। कहीं राजेन्द्र यादव की वो धोती में लिपटी हुई प्रभा का नाम आता है तो कहीं मन्नु भंडारी की वो प्रेम-त्रिकोण में उलझी हुई दीपा। कभी आर०के० नारायण की रोजी आ जाती है छम्म से तो कभी जैनेन्द्र की सुनिता। इसी फ़ेहरिश्त में जहाँ गैब्रियल मार्केज की फर्मिना डाज़ा भी शामिल है, वहीं सिडनी शेल्डन की ट्रेसी व्हीटनी भी...और सुरेन्द्र मोहन पाठक{?} की रेणु से लेकर वेदप्रकाश शर्मा{??} की सोनाली भी। मार्गरेट मिशेल की स्कारलेट ओ’हारा तो यकीनन है इस फ़ेहरिश्त में और एरिक सिगल की जेनिफर भी। कुछ और नाम स्मृति-अहाते पर आहट करते आते हैं...जैसे कि धर्मवीर भारती की सुधा, अमृता प्रीतम की मीता और सुरेन्द्र वर्मा की वर्षा वशिष्ठ। फ़ेहरिश्त तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही और पोस्ट बहुत लंबी होती चली जा रही है। चलिये फिलहाल फ़ेहरिश्त को समेटता हूँ एक आखिरी नाम के साथ...अंजलि। अंजलि को नहीं पहचाना आप सब ने? अरे अपनी अंजलि जोशी...जिसकी पीली छतरी कई बार एक तितली बन कर उड़ जाती है...अपने उदय प्रकाश की अंजलि।
...तो फिलहाल इतना ही। प्रेमिकाओं की ये लंबी फ़ेहरि्श्त अभी खत्म नहीं हुई है। खत्म? अभी तो सच पूछिये आधे तक भी नहीं पहुँचे हैं हम। फिर कभी चर्चा करुंगा...और हाँ इस "प्रेमिका" शब्द से धोखा मत खाइये आप सब। ये सब-के-सब पूर्णतया एकतरफा प्यार के मामले हैं। वो चचा ग़ालिब ने कहा है ना:-
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
are waah bhaia Diana, Narda, Merrie aur Lucie grey to common hain.. jenifer jaroor bakwaas lagi thi..
ReplyDeleteye theek nahin dono ek hi jagah line maar rahe the... :)
बड़ी शानदार फ़ेहरि्श्त है भई आपकी प्रेमिकाओं की..हम ही अलग हो लेते हैं..वैसे डायना का तहलका तो हमारे जमाने में भी था. :)
ReplyDeleteबहुत उम्दा पोस्ट!!
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
ReplyDeleteअगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता nice
जब शीर्षक की खबर आयी, तभी समझ गया किन प्रेमिकाओं की बात होने वाली है । हाँ, कॉमिक्स के दिनों की रोमांचक याद दिला दी आपने ।
ReplyDeleteगहरा सम्मोहन है इन प्रेमिकाओं का ।
आपकी फेहरिस्त बाप रे बाप ! अगोलो से लेकर सोना ौर सोनाली तक । ह..................म्म ।
ReplyDeleteश्रम से बचने के लिए अन्यत्र की गयी टिप्पणी ही चेप रहा हूँ -
ReplyDeleteमेजर गौतमं साब आपका बहुत बहुत शुक्रिया -इतने दिनों से जो मैं समझ नहीं पा रहा था
आपकी इस पोस्ट ने इक झटके से झट से समझा दिया -मेरी भी पहली प्यार डायना ही थी ..
कामिक्स पढ़ते हुए बार बार बजरिये फैंटम उसका सानिध्य पाने को मन मचलता रहता था
वह प्रतिनिधि थी अल्हढ अनगढ़ प्रेम और फैंटम सरीखे बलिष्ठ पुरुष की अंक शायिनी.की .हम भी क्या किसी "ही मैंन" से कम थे उन दिनों (और आज भी! )
कितनी मधुर मधुर स्मृतियाँ जगा दीं आपने आज इस प्रेम दिवस पर -
और हाँ नारडा का नम्बर दूसरा ही था ऊ कराटे जो जानती थी और जादूगर मियां के प्रेम में वह कसाव भी
भी कहाँ था ?
फिर उन दिनों इक निष्ठी प्रेम का जज्बा था-इक मन ही तो था उन दिनों जो डायना में लग गया था फिर नारदा की ओर
कहाँ झुकाव हो पाता और मंद्रेक तथा नारडा का प्रेम न जाने क्यूं बनावटी लगता था ...
और भी तो कईं आगे आयी थीं मेजर बलवंत की सोनिया भी ...मगर तब तक तो वह रूमानी महल ध्वस्त होने लग गया था
कहाँ की बात छेड़ दी आपने आज ....मन भारी हो गया -अब क्या करून ? आप भी .....आज के ही दिन छेडना था यह सब साब!
रहम नहीं आयी -अभी अपने उन्मुक्त साब भी आते होंगे -उन्हें भी इस संसार ने डुबाया था खुद में
आज की आपकी इस पोस्ट पर बलि जाऊं !
अरे कोई है नोटिस लेने वाला -इसे प्रिंट मीडिया में भी छापो भैया ...मेरे जैसे और कई लोगों का भला हो जो आभासी संसार में नहीं आ पाए .....
सलाम इस पोस्ट के लिए! असली दाना दिख गया आज .....आपमें जिसकी तलाश थी .....
sach men aapki premikaon ke bare men jaankar maza aya. agli fehrist ki intzar men.
ReplyDeleteवाह-वा !!
ReplyDeleteअपने लिए
एक साथ --इतना कुछ ....
"मय, सब में न हो तक़सीम,
तो अपना भी उलट दे पैमाना ,
ये कुफ्र है क़ैफ़-ए-रिंदी में,
साक़ी से अकेले जाम न ले "
GOD BLESS .
यह सूची रखना तो समझा जा सकता है - सुरक्षित जो है. असली सूची किधर है? वैसे पहले दो पात्रों की याद तो मुझे भी हैं.
ReplyDeleteक्या खूब फेहरिश्त है... मिलकर अच्छा लगा
ReplyDeleteआपकी प्रेमिकाओं की लंबी सूची देख रहा हूँ फिर समय के साथ धकेल गये अपने पीछे के वे दिन देख रहा हूँ और मुस्कुराए जा रहा हूँ ...
ReplyDeletekuch asli naam bhi ho jaaye sir ji ..to valentine ballle balle ho jaaye ...
ReplyDeleteसुरक्षा के हिसाब से यह सूची बेहद सुरक्षित है। ईर्ष्या व नाराजगी से बच गए आप!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
प्रेमिकाओं की फेहरिश्त कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गयी राजरिशी जी........एक बात कहूं बुरा मत मानियेगा इनमे से कुछ के साथ तो अपना भी एकतरफा चक्कर रहा है.......! मतलब यह कि रामधारी सिंह दिनकर ऐसा बोलते तो हैं तो ठीक ही कहते हैं....
ReplyDelete"यह अलग बात है कि कोई समृद्धि में है कोई अभाव में है
मगर जहाँ तक मन की बात है तो दोनों एक ही नाव में हैं......!" ( हारे को हरिनाम )
अच्छा है भगवती चरण वर्मा की रेखा का नाम आपकी लिस्ट में नहीं है.
रोचक पोस्ट लिखने और राज शेयर करने का शुक्रिया....!
ये तो गजब कर दिया. इतना सच नही कहना चाहिये. हर आदमी अपना अक्श देख रहा है.
ReplyDeleteरामराम.
इतनी लाबी फेहरिश्त में सिर्फ सुधा और वर्षा से परिचय है मेरा। जिसमें कि वर्षा के बारे मे तो अपनी पोस्ट पर लिख ही चुकी हूँ कि बड़ी मुश्किल से सखी बना पाई थी उसे।
ReplyDeleteबाकी भौजाईयों से अनभिज्ञ ही हूँ मैं....! :)
:)क्या बचाव फेरिस्त लिख डाली है ..सही है इन को पढ़ते हुए न जाने कितनी बार इन में बसे चरित्रों में खो जाते हैं ....दिल यह नादान है ..बच्चा है फिर भी बहुत सच्चा है :)
ReplyDeleteचलिए आप हमारी बिरादरी के ही निकले....यहाँ मुंबई में जन्मी,पली,बढ़ी सहेलियां बहुत चिढाती हैं...और आश्चर्य से मुहँ फाड़(literally) कर पूछती हैं... U never really had a crush ?? और फिर मेरा मजाक भी बनाती हैं कि She had a crush on characters like Darcy...Headley ...चंदर, शेखर... चलिए आपका पोस्ट पढ़ कर सुना दूंगी उनलोगों को...कि हम नॉर्थ वाले तो ऐसे ही होते हैं :)
ReplyDeleteकिताबी पन्नो से निकाल कर जिसने इन हसीनाओं को ज़िन्दगी का खुश फहम हिस्सा नहीं बनाया समझिये उसने अपना जीवन बर्बाद ही किया है...हमारी लिस्ट में कुछ सिने तारिकाएँ भी हैं...जिनका जिक्र नहीं हुआ है, सच कहा आपने अगर उनकी फेहरिश्त बनानी शुरू कर दी तो पुरानी कहावत के हिसाब से धरती को कागज़ और समंदर को सियाही बनाकर लिखें तो भी कम पड़ेगी...पुरानी यादों को जिंदा करने का शुक्रिया...
ReplyDeleteनीरज
मेजर साहब, कॉमिक्स और उपन्यासों की दुनिया से बाहर निकलकर सच्चाई बताओ। खामखां हमें बेवकूफ ना बनाओ। ऐसे लिखने वाले और सोचने वाले की शाहरुख की तरह न जाने कितनी प्रेमिकाएं होंगी? उनका वर्णन करो। हम भी गर्व से अपना कद बढा लें कि देखो हमारे सैनिक को, जितनी गोलियां झेली हैं उतनी ही प्रेमिकाएं भी जेब में है। बहुत ही बढिया पोस्ट, आनन्द आ गया।
ReplyDeletehahahahahahaahahaahaahahahahahahha
ReplyDeletelove u gautam, ये उन दिनो की बात है जब हवाएं कुछ ज़्यादा ही घुँघराली थीं. और हम सब कुछ उन के हवाले कर देने को व्याकुल रहते थे....फिर एक लोलिता भी आ जाती थी. और हम" बिगड़ " जाया करते......
ReplyDeleteमुहब्बत ज़िन्दाबाद!
तौबा- तौबा... उफ्फफ्फ्फ़...
ReplyDeletehum phir aayenge.
डायना और नारडा ...........पुरानी यादे ताज़ा कर दी .लेकिन उस समय वेलैंटाईन का लफ़डा नही था .
ReplyDeleteक्या खूब फेहरिश्त है... मिलकर अच्छा लगा
ReplyDeletewaah.......badee achhi yaaden hain
ReplyDeleteअंत में डिस्क्लेमर क्यों? प्रेम एक तरफ़ा हो या दो तरफ़ा! वर्चुअल हो या रीयल! बस है तो है!
ReplyDeleteकिताबों से बाहर की फेहरिस्त का इंतज़ार रहेगा... वो भी इतनी लम्बी होगी? :-)
इस लिस्ट से अगर भाभी नाराज हो जाए और आपके कॉमिक्स, किताबें कबाड़ी वगैरह को देना चाहे तो हमारा एड्रेस हाज़िर है :)
ReplyDeleteकल भी आयी थी आपके बलाग पर मगर सही मे प्रेमिकाओं की इतनी बडी लिस्ट देख कर भाग गयी कि मेरी बहु को पता चल गया कि मैं भी शाबास दे रही हूँ तो मुझे जरूर कोसेगी कि बेटे को शह दे रही है इस लिये भाग गयी --- वैसे सच कहूँ हर माँ खुश होती है कि उसका बेटा भी किसी हीरो से कम नही जब हीरो से कम नही त्प प्रेमिकायें तो होगी ही
ReplyDeleteबहुत बहुत आशीर्वाद। वैसे मैने कामिक्स पढे नही है इस लिये आज ही जाना इनके बारे मे ।
डायना और नारडा तो हमारी फ़ेरहिस्त में भी शामिल हैं उसके बाद के बहुत सी मिलती जुलती या बदलती हुई लगती हैं ...... वैसे आपकी भाभी के नाम आने के बाद कोई नाम आ ही नही पाया नही तो ज़रूर लिख देता यहाँ ......
ReplyDeleteबचपन के कई पन्ने खोल गयी आपकी पोस्ट मेजर साहब ...... जय हिंद ...
इतने सारे नाम और विवरण यदि उफ्फ्फ्फ़ और आःह्ह के साथ याद रहे...तो कोइशक नहीं कि कैसा जबरदस्त प्रणय सम्बन्ध है आपका.... एकतरफा है तो क्या हुआ..प्रेम तो प्रेम ही होता है....
ReplyDeletetabhi main sochun ke mujhe aakhir koi mil kyun nahi rahaa hai , are mkt me stoke hi nahi hai to koi kaise milega ... sab to aap loot chuke ho... kamaal hai yaar .. besharmi ki had paar kar chuke ho yahnaa koi nahi aur wahaan sabhi... agar kuchh bacha hai to dekhlo mere liye ...
ReplyDeletearsh
इंद्रजाल कामिक्स में मैड्रेक और फैंटम का किरदार मुझे भी बहुत भाता था। फैंटम का वो घूँसा जो कोपलों पर खोपड़ी का निशान बना देता था, वर्षों तक स्मृतियों से वाहर नहीं गया। पर आपकी तरह में इन सुंदरियों के चक्कर में पड़ने से वंचित रह गया। बहरहाल कॉमिक्स के इन किरदारों की याद दिलाने का शुक्रिया !
ReplyDeleteये सब तो ठीक है..समझ आ गया..अब असली लिस्ट भी दे डालिए हा हा हा हा ..हमारा बचपन भी रानीखेत केंट में गुजरा है थोडा बहुत फौजी कल्चर से तो हम भी वाकिफ हैं :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट, इनमें से कुछ पर तो हमलोग यानी लड़कियां भी फिदा थे।
ReplyDeleteतीन बातें ...
ReplyDeleteएक- आपने काफी पढ़ा है और इतनी सारी प्रेमिकाओं को अपनी यादयाश्त में जगह देना बिलकुल भी आम नहीं है..
दो- 'शशि' (शेखर) को इस अधूरी फेहरिश्त में जरूर से शामिल करना था, मैं खोज रहा था उसे
तीन- हम चाहते हैं कि आज से ३० वर्ष बाद कोई ऐसा पोस्ट लिख सके...तो क्या उसके लिए क्या ऐसी प्रेमिकाएं तैयार हो रही हैं ????
सुंदर पोस्ट. आपने मृत किशोर को जागृत कर दिया.
ReplyDeleteगौतम जी, आदाब
ReplyDeleteआप तो कामिक्स की फैंटेसी की दुनिया में वापस ले आये.
बहरहाल
अंदाज़े-बयां लाजवाब रहा है. बधाई
डायना और नारडा अब तो यह दादी नानी बन गई होगी?:)
ReplyDeleteआपका तो हर अंदाज निराला है
ReplyDeleteये अंदाजेबयां भी हमेशा के तरह मुतासिर कर गया
...सुरेंदर मोहन पाठक को भूल गये ...? वैसे शुक्र है अपने को इन मोहतरमायो से मोहब्बत नहीं हुई....एक ओर कोमिक्स ने जरूर हमें पागल बनाया था .उसमे कोई हिरोइन नहीं थी .वो थी एस्ट्रिक्स ओर ओबेलिक्स की सीरिज ......हाय वो जादुई काडा.ओर रोम वालो की धुलाई ...
ReplyDeleteशीर्षक देखकर हमें लगा ...लो मेजर ने गर सच्ची में कन्फेशन कर दिया तो ??...शुक्र है कम्पूटर ने ज्यादा सेंटी नहीं किया ....तेरा लाख लाख शुक्रिया ए ब्राडबेंड !!!
पुनश्च :तुम्हारी उस कविता का क्या हुआ जो तुम लिखने वाले थे ...जिस शीर्षक कुछ यूँ था ."तुम फोन क्यों नहीं उठाते हो ..."
वाह!एक नया अंदाज़ !
ReplyDeleteसभी से मिल कर बहुत खुशी हुई...कवियों की यही तो ख़ासीयत है कि बेजान चरित्रों ,चित्रों से भी दिल लगा बैठते हैं.
असली नाम गोल कर गए ? खैर...
ReplyDeleteहम तो ज्यादा इ टाइप वाला किताबे नहीं पढ़े... (कैसा पढ़ते थे, ये कविता में मिलिए गया होगा) सो कुछ कह नहीं
असली नाम गोल कर गए ? खैर...
हम तो ज्यादा इ टाइप वाला किताबे नहीं पढ़े... (कैसा पढ़ते थे, ये कविता में मिलिए गया होगा) सो कुछ कह नहीं सकते. हाँ रियल लाइफ में तो ढेरे नाम है, गिनाये का ? २-४ उधर भी है ... हाँ - हाँ वहीँ जहाँ आप अक्सर पकड़ाते थे ... बाईपास वाले रोड पर .).).)
कुछ फिल्मों के किरदार उठाते तो नाम और गिना सकते थे... खैर चलिए... ऐसे मौके पर बस दूसरे का सुनना अच्छा होता है... सकते. हाँ रियल लाइफ में तो ढेरे नाम है, गिनाये का ? २-४ उधर भी है ... हाँ - हाँ वहीँ जहाँ आप अक्सर पकड़ाते थे ... बाईपास वाले रोड पर .).).)
कुछ फिल्मों के किरदार उठाते तो नाम और गिना सकते थे... खैर चलिए... ऐसे मौके पर बस दूसरे का सुनना अच्छा होता है...
...दर्पणों, अपूर्वों और सागरों की भीड़ में खिसयायी-सी बौखलायी फिरती है।
ReplyDeleteमेरे फूफाजी रिटाएरड सूबेदार हैं, बोलते हैं...
"फ़ौज का आदमी बूढ़े होने के बाद भी जवान ही रहता है"
तो आपके खिसयायीness को २०-२२ साल बाद के लिए बचा के रख लेता हूँ.
२१ फैंटम तक तो हम पहुँच भी नहीं पाये.
तो हमारे प्रथम-एकतरफा-प्रेम की तो भ्रूण हत्या ही हो गई.
और राजकुमारी नारडा ? सुना है कोकेगन में अब उसके भाई का राज है, तो वहाँ जाना भी खतरे से खाली नहीं.
एक मेरा...
मुझे कार्टून कैरक्टर 'ओलिव', 'पालकों' से ज़्यादा स्फुर्तिवर्धक लगती थी (है)
ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
ReplyDeleteअगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता
मरने के बाद भी शायरी वो भी इस दर्जे की ग़ालिब चाचा ही कर सकते हैं...
या तो आपसे थोड़ी देर के बचपने के कारण या 'काउ बेल्ट' के कारण हमारे प्रिय कैरक्टर थे...
ReplyDeleteध्रुव, नागराज, बांकेलाल (सबसे प्यारा), डोगा, परमाणु.
हम तो कुछ और सोच के पढने आये थे... चाचा ग़ालिब एक बार फिर पसंद आ गए.
ReplyDeleteहां,
ReplyDeleteदिल तो सबसे पहले डायना पर ही आया था अपना भी...
पर हमारे लिए तो बस आप रोजी को छोड़ दीजिये..
बाकी को आप ही संभालिये..............
बहुत बचपन से एक चीज सोचते थे....
वहीदा रहमान का नाम हमें पसंद नहीं था...कई बार सोचा के कुछ और नाम रख डालें..पर आज तक नहीं रखा गया...
वहीदा आज भी रोजी है हमारे लिए.....
मुश्किलें दिल पे बार बार आयीं...
दिल फकत (......) बार तो आया....
ज़्यादा नहीं साब.....!!
बस दो-तीन बार ही आया है......!
३ दिन से आता हूँ इस पोस्ट पर..पर कमेन्ट आज किया है..वो भी काफी काट छांट करने के बाद...
:)
मज़ा आ गया मेजर यह पोस्ट पढ़कर ..मैं होता तो इनमे अज्ञेय के नदी के द्वीप की रेखा का नाम भी जोड़ लेता । यह सही है कि हम इन पात्रों की तरह के व्यक्तित्व अपने जीवन में तलाशते रहते हैं ..कभी कभी कोई मिल भी जाता है । शुभकामनायें ।
ReplyDeleteबहुत खूब...लाजवाब ..लम्बी फेहरिश्त...बधाई.
ReplyDeleteऐ भाई, किस दुनिया के इन्सान हो कितना किलो पुलाव पकाया है. लगे रहो मुन्ना भाई अ ह हा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeletevery intresting sir :)
ReplyDeleteएक ग़लती सुधार दूं मेज़र साहब
ReplyDeleteउदय की पीली छतरी वाली लड़की अंजलि वर्मा नहीं अंजलि जोशी थी। और उस कहानी के पाठक जानते हैं कि उसका जोशी होना यूं ही नहीं था।
agar aap bhul gaye ho to me yaad dila deta hu u r married ......
ReplyDeleteaab bite zamane ke bate kyo kerte hai gaye wo din..........
hehehehe mujhe to laga tha ki aap shareef hai
ReplyDeletehahaha
@अशोक भाई,
ReplyDeleteये तो ब्लंडर था। बहुत-बहुत शुक्रिया आपका। गलती सुधार दी है। age is certainly catching up now... :-)
एक कहावत है हाथी के दाँत देखावे के और खाने के और...
ReplyDeleteई नारडा डायना...??
असली लिस्त्वा कहाँ है ???
अच्छा झांसा दिया जा रहा है सबको...हमको का...झांसा देवे वाले दे रहे हैं खावे वाले खा रहे हैं...हाँ नहीं हो..
हमको तो भई लोथार पसंद है ...खोपड़ी नुमा घर भी..:)
Bahut achha laga aapka blog...
ReplyDeleteAapki yaaden umda hain....
Bahut shubhkamnyen
:) हैप्पी वेलेंताईन्ज़ डे गौतम भाई क्या बढ़िया फ़ेहरिश्त बनायी है आपने - एकदम धाँसू !
ReplyDeleteना जाने क्यूं लोग मुहब्बत किया करते हैं , दिल के बदले, में दर्दे दिल लिया करते हैं
आप की जोड़ी व परिवार हमेशा मुस्कुराता रहे , ये दुआ है मेरी
स - स्नेह,
- लावण्या
जब हमने "मुझे चाँद चाहिए" पढा था तो हम भी वर्षा के फैन हो गए थे। और हद तो तब हो गई जब विनोद भारदाज जी की लिखी एक कहानी पढी तो नायिका के मुरीद हो गए और विनोद जी को फोन कर बधाई भी दे डाली थी और पूछ भी डाला था कि यह सच की कहानी है? खैर लिस्ट हमारी भी लम्बी है। वैसे आपने इस बहाने खूब लिखा। और एक अलग ही रुप में इस दिन मनाया। ये अदा हमको भा गई जी आपकी।
ReplyDeletemohabbat bade kaam ki cheez hai... aapki post se bhi mohabbat si ho gayee...:-)
ReplyDeleteगौतम भाई,
ReplyDeleteपिछली पोस्ट .आई लव यु फ्लाई बॉय !पढ़ कर आ रहा हूँ...एक अलग अंदाज में एक जिन्दगी सी बयां की है..
पर अब इस पोस्ट को पढ़कर तो हैरत में पड़ गया हूँ,कमाल की प्रतिभा है...पढने के लिए पुस्तक पढना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है जीने के लिए पढ़ना--!आपने यही किया है..बहुत कम लोग ऐसा कर पाते है...
कोमिक के पात्रों को दिल के कोने में इस तरह से बसा कर रखना अद्भुत लगा--
पर आपने अनजाने ही एक अत्याचार कर डाला है,कई लोग जो जिन्दगी भर एक अदद पहले प्यार के लिए तरसते रहे उनलोगों ने डायना पामर वाकर से प्रेम किया था..पर आपने तो ऐसे लोगों (जिनमे हम भी शामिल है )की प्रेमिकाओं का सूपड़ा साफ़ कर दिया ...बची खुची आपकी बाकी रही लिस्ट में होंगी...?तो फिर हम क्या करें...
चलो ग़ालिब चचा से पूछते है..!:)
चलो आप तो एश करो...हम ट्रे में रह गए!
ऐश....!
ReplyDeleteट्रे...?
जहां हम ठहरते हैं ..वहाँ तो ऐश ही ऐश ..और ट्रे ही ट्रे होती हैं...
ये जो मर्ज़ है न आपका अध्ययन करने का, बस इसीका प्रताप है जो इतनी प्रेमिकायें बन गईं। और कई सारी ज़ेहन में कैद हैं। क्या बेहतरीन रोग है पढ्ने का भी। वाह। हम कायल है जनाब आपके। मेज़र हैं आप, लेकिन पहले हमारे दिल, हमारे 'रोगभाई' भी हैं। सैल्युट। कामिक्स की दीवानगी हमे भी इतनी थी कि परीक्षाओं मे सब अपनी किताबे कुंजी आदि ले जाते थे, रिवीजन के लिये। हम थे कि वेताल, मैंड्रेक्स की कामिकबुक लेजाते और उसे पढते थे। पर मज़ाल कि कोई हमे फेल कर देता, अव्वल तब भी आया करते रहे। कैसे..मैंड्रेक्स का मैज़िक चलता होगा शायद। खैर..बहुत सलिके से लिखी गई फेहरिस्त है। क्या बात
ReplyDeleteBahut badhiya lagee apakee yah post....shubhakamanayen.
ReplyDeletePoonam
अरे इतनी लंबी लिस्ट!!! बहुत धनी हैं सरकार आप तो!
ReplyDeleteऔर हां, गुरूदेव के होली-पात्र सी बी सक्सेना की तरह लंबी लिस्ट देखकर लगता है आपकी भी गणित में विशेष अभिरूचि है...मान लिया कि वो संख्या अ है....आखिर सब मानने का ही तो खेल है, मानो तो देव नहीं तो पत्थर।
ReplyDeleteबड़े छुपे रुस्तम है आप भी ...इतनी लम्बी लिस्ट प्रेमिकाओं की ....
ReplyDeleteमुझे तो महिलाओं का लिखा साहित्य ही ज्यादा पसंद आता है ...इसलिए अतिथि(शिवानी ) की जया , नागमणि(अमृता प्रीतम ) की अलका , और बंगाल साहित्य की नायिकाएं (चाहे उसके लेखा पुरुष ही क्यों ना हो ) ही याद आती हैं ....!!
बहलाना/’गोली देना’ तो कोई आप से सीखे जी..बच्चों को कॉमिक कैरेक्टर्स मे उलझा दिया..और काम की बात गोल कर गये..सफ़ाई से..
ReplyDeleteवैसे काल्पनिक प्रेमी या प्रेमिकाओं से इश्क भी क्या गजब होता होगा..कोई नुक्स जो नही होता उनमे..सर्व-गुण-सम्पन्न..और सिर्फ़ आपके लिये..प्रेम की आइडियल शर्तों पर फ़ुल्ली-क्वालिफ़ाइड...’हम भी देखेंगे तजुर्बा कर के’;-)
खैर आपकी इन अनगिन किताबी/खयाली नायिकाओं से कामना-ए-वस्ल पर यही शेर नजर कर सकता हूँ
एक ही आग मे ताउम्र जले हम दोनों
जमीं पे तुम न मिले आस्माँ पे हम न मिले
वैसे इन अपूर्वों की गुस्ताखी समझ न आयी..;-)
मजेदार पोस्ट है.............
ReplyDeleteइनमे से कुछ किरदार नहीं पढ़े हैं, हाँ मगर जो पढ़े हैं वो फिर से तारो ताज़ा हो गए.
mujhe to bachpan mein ' billu" achcha lagta tha....fir pachpan khambe laal deewaren ka "neel" pyara laga aur gunahon ka devta ka " chandar' bhi...mast kahani hai aapki.
ReplyDeleteयह यादें कमबख्त पीछा कहाँ छोडती है इतनी आसानी से ... और वो आज जैसे दिन ... सवाल ही पैदा नहीं होता ... अपना ख्याल रखना 'मेजर' ... दर्द तो खैर बहुत होगा आज सीने मे ... सह लेना !
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