तारीख: 27 जनवरी 10
जगह: जम्मु-नगरौटा में कहीं एक सैन्य हेलिपैड।
दोपहर के चार बजने जा रहे हैं। दिन भर की जद्दो-जहद के बाद कुहासा चीरते हुये आखिरकार सूर्यदेव मुस्कुराते हैं। चुस्त स्मार्ट युनिफार्म में आर्मी एवियेशन के दो पायलट, एक मेजर और एक कैप्टेन, वापस लौटने की तैयारी में हैं कश्मीर के अंदरुनी इलाके में कहीं अवस्थित अपने एवियेशन-बेस में, अपने हेलीकाप्टर को लेकर। करीब सवा घंटे की यात्रा होगी। परसों ही तो आये हैं दोनों यहाँ इस एडवांस लाइट हेलीकाप्टर "ध्रुव" को लेकर पीरपंजाल की बर्फीली श्रृंखला को लांघते हुये, छब्बीस जनवरी को लेकर मिले अनगिनत धमकियों के बर-खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करने के लिये। हेलीकाप्टर के पंखे धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ रहे हैं। मेजर एक और सरसरी निरिक्षण करके आ बैठता है काकपिट में और कैप्टेन को अपने सिर की हल्की जुंबिश से इशारा देता है। फुल थ्रौटल। धूल की आँधी-सी उठती है। पंखों के घूमने की गति ज्यों ही 314 चक्कर प्रति मिनट पर पहुँचती है, वो बड़ा-सा पाँच टन वजनी हेलीकाप्टर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण को धता बताता हुआ हवा में उठता है। कुछ नीचे मंडराते हुये आवारा बादलों की टोली मेजर के माथे पर पहले से ही मौजूद चंद टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं में एक-दो रेखाओं का इजाफा और कर डालती हैं। बादलों की आवारगी से खिलवाड़ करते हेलीकाप्टर के पंखे तब तक हेलीकाप्टर को एक सुरक्षित ऊँचाई पर ले आते हैं। सामने दूर क्षितिज पे नजर आती हैं पीरपंजाल की उजली-उजली चोटियाँ, जो श्नैः-श्नैः नजदीक आ रही हैं। बस इन चोटियों को पार करने की दरकार है। फिर आगे वैली-फ्लोर की उड़ान तो बच्चों का खेल है। उधर पीरपंजाल के ऊपर लटके बादलों का एक हुजूम मानो किसी षड़यंत्र में शामिल हो मुस्कुराता है उस हेलीकाप्टर को आता देखकर। कैप्टेन तनिक बेफिक्र-सा है। इधर की उसकी पहली उड़ान है शायद। किंतु मेजर के माथे पे एकदम से बढ़ आयीं उन टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं के दरम्यान यत्र-तत्र पसीने की चंद बूंदें कुछ और ही किस्सा बयान कर रही हैं। हेलीकाप्टर की रफ़्तार बहुत कम है कोहरे और बादलों की वजह से। आदेशानुसार साढ़े पाँच बजे शाम से पहले बेस पर पहुँचना जरुरी है। इस कपकंपाती सर्दी में दिन को भी भागने की जल्दी मची रहती है और रात तो जैसे कमर कसे बैठी ही रहती है छः बजते-बजते धमक पड़ने को। कहने को है ये बस एडवांस हेलीकाप्टर। रात्री-उड़ान क्षमता तो इसकी सिफ़र ही है।
तारीख: 27 जनवरी 2010
स्थान: पीरपंजाल के नीचे कहीं कश्मीर वादी का एक जंगल।
सुबह के साढ़े नौ बज रहे हैं। पीरपंजाल के इस पार वादी में जंगल का एक टुकड़ा गोलियों के धमाके से गूंज उठता है अचानक ही। पिछली रात ही बगल वाली एक सैन्य टुकड़ी को जंगल में छिपे चार आतंकवादियों की पक्की खबर मिलती है और सूर्यदेव का पहला दर्शन मुठभेड़ का बिगुल बजाता है। दो आतंकवादी मारे जा चुके हैं और दो को खदेड़ा जा रहा है। सात घंटे से ऊपर हो चुके हैं। पीछा कर रही सैन्य-टुकड़ी जंगल के बहुत भीतर पहुँच चुकी है और शेष बचे दो में से एक आतंकवादी मारा जा चुका है। दूसरे का कहीं कोई निशान नहीं मिल रहा है। एक साथी घायल है। लांस नायक। पेट में गोली लगी है। प्राथमिक उपचार ने खून बहना तो रोक दिया है, किंतु उसका तुरत हास्पिटल पहुंचना जरुरी है। सबसे नजदीकी सड़क चार घंटे दूर है। हेलीकाप्टर बेस को संदेशा दिया जा चुका है।
तारीख: 27 जनवरी 2010
स्थान: पीरपंजाल के ठीक ऊपर।
शाम के पाँच बजने जा रहे हैं। मेजर ने कंट्रोल पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया है। कुछ क्षणों पहले तक बेफिक्र नजर आनेवाला कैप्टेन उत्तेजित लग रहा है। कुहरे और षड़यंत्रकारी बादलों के हुजूम से जूझता हुआ हेलीकाप्टर पीरपंजाल की चोटियों के ठीक ऊपर है। मेजर को बेस से संदेशा मिलता है रेडियो पर उसके ठीक नीचे चल रहे मुठभेड़ के बारे में और मुठभेड़ के दौरान हुए घायल जवान के बारे में। बेस अब भी आधे घंटे दूर है और अँधेरा भी। मेजर के मन की उधेडबुन अपने चरम पर है। कायदे से वो उड़ता रह सकता है अपने बेस की तरफ। उसपर कोई दवाब नहीं है। रूल के मुताबिक उसे साढ़े पाँच बजते-बजते लैंड कर जाना चाहिये बेस में मँहगे हेलीकाप्टर और दो प्रशिक्षित पायलट की सुरक्षा के लिहाज से। उसे याद आती है अपनी पुरानी यूनिट और अपने पुराने कामरेड। हेलीकाप्टर का रुख मुड़ता है पीरपंजाल के नीचे जंगल की तरफ। कैप्टेन के विरोधस्वरुप बुदबुदाते होठों को नजरंदाज करता हुआ मेजर बाँये हाथ को अपने पेशानी पे फिराता हुआ उन तमाम टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं को स्लेट पर खिंची चौक की लकीरों के माफिक मिटा डालता है।
तारीख: 27 जनवरी 2010
स्थान: पीरपंजाल के नीचे कहीं कश्मीर वादी के एक जंगल का सघन इलाका।
शाम के सवा पाँच बजने जा रहे हैं। जंगल के इस भीतरी इलाके में शाम तनिक पहले उतर आयी है। झिंगुरों के शोर के बीच रह-रह कर एक कराहने की आवाज आ रही है। उस घायल लांस नायक के इर्द-गिर्द साथी सैनिकों की चिंतित निगाहें बार-बार आसमान की ओर उठ पड़ती हैं। घिर आते अंधेरे के साथ दर्द से कराहते नायक की आवाज भी मद्धिम पड़ती जा रही है। झिंगुरों के शोर के मध्य तभी एक और शोर उठता है आसमान से आता हुआ। पेड़ों के ऊपर अचानक से बन आये हेलीकाप्टर के उन बड़े घूमते पंखों की सिलहट उम्मीद खो चुके लांस नायक के लिये संजीवनी लेकर आती है। सतह से कुछ ऊपर ही हवा में थमा हुआ हेलीकाप्टर पूरे जंगल को थर्रा रहा है। घायल लांस नायक और उसका एक कामरेड हेलीकाप्टर में बोर हो रहे मेजर और कैप्टेन का साथ देने आ जाते हैं। पेड़ों को हिलाता-डुलाता हेलीकाप्टर अँधेरे में अपनी राह ढ़ूंढ़ता हुआ चल पड़ता है बेस की ओर। घड़ी तयशुदा समय-रेखा से पंद्रह मिनट ऊपर की चेतावनी दे रही है।
तारीख: 28 जनवरी 2010
स्थान: कश्मीर वादी की एक सैनिक छावनी।
सुबह के सात बज रहे हैं। घायल लांस नायक काबिल चिकित्सकों की देख-रेख में पिछले बारह घंटों से आई.सी.यू. में सुरक्षित साँसें ले रहा है। मेजर अपने बिस्तर पर गहरी नींद में है। मोबाइल बजता है उसका। कुनमुनाता हुआ, झुंझलाता हुआ उठाता है वो मोबाइल-
मेजर:- "हाँ, बोल!"
मैं:- "कैसा है तू?"
मेजर:- "थैंक्स बोलने के लिये फोन किया है तूने?"
मैं:- "नहीं...!"
मेजर:- "फिर?"
मैं:- "आइ लव यू, फ्लाय-ब्वाय!"
मेजर:- "चल-चल...!"
...और मोबाइल के दोनों ओर से समवेत ठहाकों की आवाज गूंज उठती है।
पुनश्चः
भारतीय थल-सेना को अपने एवियेशन शाखा पर गर्व है। कश्मीर और उत्तर-पूर्व राज्यों में जाने कितने सैनिकों का जान बचायी हैं और बचा रहे हैं नित दिन, आर्मी एवियेशन के ये जाबांज पायलेट - कई-कई बार अपने रिस्क पर, कितनी ही बार तयशुदा नियम-कायदे को तोड़ते हुये...मिसाल बनाते हुए। कोई नहीं जानता इनके बहादुरी के किस्से। शुक्रिया ओ चेतक, चीता और ध्रुव और इनको उड़ाने वाले जांबाज आफिसरों की टीम...!!!
मैंने अपनी ज़िन्दगी में इतनी खूबसूरत कविता नहीं पढ़ी जो किसी डायरी कि शक्ल में लिखी गयी हो. ये पोस्ट 360 डिग्री विजन कैमरे से बनी
ReplyDeleteऐसी फिल्म है.
वाह गौतम जी वाह
ReplyDeleteपुस्तक मेले में आपको सुना
उससे भी बेहतर आपने
शब्दों को यहां है बुना
लग रहा है हमें
हेलीकॉप्टर में हम
घूम झूम रहे हैं।
@ रात्री-उड़ान क्षमता तो इसकी सिफ़र ही है।
ReplyDeleteमनो रेलवे जैसी बात पलटन में भी है। हैं तो दुन्नो भारतीय ही। (रात्री नहीं 'रात्रि')
आप के गद्य की आत्मीयता और प्रवाह ईर्ष्यालु बनाते हैं। चुनिन्दा वाक्य तो खूब बन पड़े हैं।अभिव्यक्ति में यह बात गहन सम्वेदना से आती है। कभी किसी दिन मन घूमेगा तो इन ताज़गी भरे अल्फाज पर एक लेख लिखूँगा - बड़ा सा।
आगे क्या कहूँ? एक फाग का टुकड़ा अर्ज किया है-अपनी ताजी पोस्ट से (इस पर आप का गज टेप नहीं चलेगा)
दो कदम आए एक कदम जाए
करांति की खातिर कौमनिस्ट बुलाए
अरुणाँचल भी आए लद्दाख भी आए
ग़ायब मिठाई चीनी में ।
हुजूर की कमाई जी जी में
सुलगे सिपहिया बरफीली में
एंटी की लुंगी में गोंइठी दे।
जय हिन्द।
प्ले ब्वाय (धत्त तेरे की गूगल ने ये क्या लिख दिया ) आई मीन फ्लाय ब्याय को हमारा भी फुल सलाम .
ReplyDeleteगौतम जी सेना के बाद आप पटकथाएं लिखे फिल्मों के लिए और डाईरेक्ट भी करें -सारे दृश्य आँखों के आगे साकार हो गए हैं ,हेलीकाप्टर का उतरना और फिर चल पड़ना अँधेरे के धुंधलके के बीच ...भाई वाह !
आपका हुनर तो चमत्कृत करता है .लांग लिव !
इस का कोई जवाब नहीं।
ReplyDeleteहम तो कश्मीर की वादियों में हेलिकॉप्टर में घूम आये, बहुत ही अच्छा लिखा है बिल्कुल बाँध लिया है आपने, अपनी फ़ौजी की डायरी में।
ReplyDeleteसांस रोके पढ़ गई इन डायरियों के पन्नों को। आपकी पोस्ट का हमेशा इन्तजार रहता है। आज कितने ही ऐसे जांबाज हैं जो पर्दे में रहकर हमारी सुरक्षा में लगे हैं उन सभी को नमन।
ReplyDeleteगद्य और पद्य दोनों में बेजोड़ पकड़ हो रही है आपकी, सर :)
ReplyDeletejai ho. padhakar garv ki anubhuti hoti hai.
ReplyDeletekya delhi vishv pustak mele men ho aaye?
gautam जी ,आप की डायेरी के ये पृष्ठ इतना कुछ समेटे हुए हैं अपने आप में कि हर बार कुछ और कि तृष्णा बढ़ जाती है ,आपसे जितना भी अधिक जान पाती हूँ अपने जवानों के बारे में ,उन सैनिकों के बारे में जिनके कारन आज हम चैन कि नींद सो रहे हैं तो श्रद्धा और बढ़ जाती है ,नमन करती हूँ आप को और आप जैसे उन सारे वीरों को जिनके लिए देश सर्वोपरि है .
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा...पढ़ कर...
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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प्रिय गौतम,
शानदार लिखा है, आर्मी एवियेशन के साथियों को सलाम!
कहने को है ये बस एडवांस हेलीकाप्टर। रात्री-उड़ान क्षमता तो इसकी सिफ़र ही है।
ऐसा ही हाल अपने एमबीटी अर्जुन, एलसीए तेजस और इन्सास का भी है...क्यों है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
काश एयरफोर्स के कुछ एसओपी को अपनी गीता मानने वाले भी पढ़ पाते, इन्फैन्ट्री वाले की यह पोस्ट!
मेजर गौतम, ये हुई न बात.
ReplyDeleteगुस्ताखी माफ़... भैया अचानक मुंह से निकल गया.
एडवांस हेलिकोप्टर बनाम मिग ...?? जो कितने सैनिकों को बिना युद्ध लड़े ही शहीद बना चुके हैं ...
ReplyDeleteआपको सेल्यूट के सिवा क्या कहा जा सकता है ....आपके सुरक्षित यशस्वी लम्बे जीवन की बहुत शुभकामनायें ...!!
कोई नहीं जानता इनके बहादुरी के किस्से। शुक्रिया ओ चेतक, चीता और ध्रुव और इनको उड़ाने वाले जांबाज आफिसरों की टीम...!!!
ReplyDeleteअब लोग जान रहे हैं न.
अपने दिल की सुनकर अक्सरहां बहुत चैन मिलता है.. है ना भैया?
ReplyDeleteओह... तभी शाम को फोन पर कहा था कि "अरे मैं अचानक व्यस्त हो गया था। २६ जनवरी थी ना।"
ReplyDeleteपहले तो आपको ही सैल्यूट जो इतने तनाव में भी मुझ से बिलकुल सामान्य बाते करता है। एक मैं हूँ कि दाल जलने से भी टेंशन में आ जाती हूँ और आपका फोन आने पर बिना ये सोचे कि आप तो रोज ही जाने क्या क्या झेलते हैं, अपनी गाने लागती हूँ।
इस पोस्ट की भाषा शैली जो आपने चुनी वो बहुत ही प्रभावशाली है।
दिन भर की जद्दो-जहद के बाद कुहासा चीरते हुये आखिरकार सूर्यदेव मुस्कुराते हैं।
पंखों के घूमने की गति ज्यों ही 314 चक्कर प्रति मिनट पर पहुँचती है, वो बड़ा-सा पाँच टन वजनी हेलीकाप्टर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण को धता बताता हुआ हवा में उठता है।
कुछ नीचे मंडराते हुये आवारा बादलों की टोली मेजर के माथे पर पहले से ही मौजूद चंद टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं में एक-दो रेखाओं का इजाफा और कर डालती हैं।
बादलों की आवारगी से खिलवाड़ करते
इस कपकंपाती सर्दी में दिन को भी भागने की जल्दी मची रहती है और रात तो जैसे कमर कसे बैठी ही रहती है छः बजते-बजते धमक पड़ने को।
ये प्रवाह अच्छा लगा।
उन फ्लाय ब्वाय को भी कड़क सैल्यूट....!! ये जज़्बे भाते हैं दिल को....!
अद्भुत पोस्ट थी ये। हम से लोगो को अहसास दिलाने के लिये कि सैनिकों को जो सुविधाएं देख कर हम फैसिनेटेड होते हैं, वे उस का मोल अपनी हथेली पर रखी जान से चुकाते हैं.....!!
उन लॉंसनायक को शीघ्र स्वस्थ्य होने की शुभकामनाएं।
BEHTARRRRRRRREEEEEEEENNNNNNNN major.
ReplyDeletearvind ji ke directon aur movie banaane ke sujhaavon par jaroor gaur farmaayen .
GOD BLESS U
aaj laga kisi fauji ki diary padh rahi hun.
ReplyDelete"एक सैनिक की डायरी" इसको जरूर छपवाना जी, सैनिक नाम से वैसे भी मुहब्बत है... आर्मी वाले तो लड़कियों /महिलाओं के दिल पर भी राज़ करते हैं, बच्चों के रोल मॉडल होते हैं... और हम जैसे काहिल युवाओं के लिए रोज का होमेवोर्क जैसा लेसन...
ReplyDeleteहम "प्राची के पार" से एक हसरत अधूरी लिए हुए लौटे... एक सच्ची बात कहूँ बांटे रहिये ऐसी व्यस्तता और जानकरियां कुछ अलग फ्लेवर मिले तो पता है ना कैसा लगता है ?
ओ जी गौतम साहब जी तुसी ग्रेट हो और ग्रेट ही लिखते हो। क्या जज़्बा होता है भाई फ़ौजियों में वतन के लिए। बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteये वो दिन हैं जिन्हें शांतिकाल के हिस्से में लिखा जायेगा फिर सोचिये कि हम कैसा इतिहास पढ़ते हैं.
ReplyDeleteआपकी भाषा प्रभावी है. बहुत सहज होते हुए भी रोमांच का सागर जितना गहरा अनुभव होता है. एक अच्छी ग़ज़ल कहने वाला कभी इस तरह की संवेदनशील डायरी से भी हतप्रभ कर सकता है. मैं कुछ वाक्यों को उद्धृत ना करते हुए इसी बार से सहमति रखूँगा कि वाकई ये एक लम्बी कविता... एक खूबसूरत कविता. बाकी ज़िन्दगी है तो लड़ाई भी है. दुआएं.
Simply
ReplyDeleteWow !
ऐसा लिखा है कि सब आँखों के सामने जैसे हो रहा है ..
ReplyDeleteसहज - सजल - सरल
डायरी लिखना कोई आपसे सीखे और जीना भी .. निहारना भी .. निरखना भी ..
अच्छा है उन की वीरता को आप जन तक पहुंचा रहे हैं , जो निःस्वार्थ हैं
और सत्ता - मुखापेक्षी नहीं हैं ,,,
............. आभार !
मेजर...आप के लेखन और ज़ज्बे का जवाब नहीं...लाजवाब....वाह
ReplyDeleteनीरज
gautam ji.. mujhe indian army par naaz hai .. aur bhi kuch kahna chahta hoon , lekin abhi kuch shabd nahimil rahe hai .. mera ek salaam apne major dost ko bhi pahuncha dijiyenga pls...
ReplyDeleteaapka
vijay
Salute to Major ,Lance Nayak,you and every indian soldier who are standstill for the nation in front of all the difficulties and enemies !!
ReplyDeleteJai Hind !!
Wonderful elaboration
सच कहा आपने...इन बहादुरियों का हिसाब रखने और इतिहास लिखने की फुर्सत किसी को नहीं...
ReplyDeleteआप सब को मेरा श्रद्धा नमन....जय जवान....जय हिंद !!!
Kishor Chaudhry ji ki baat ko hi meri maniyega.. aaj ek aisi khabar padh lee ki Jai HInd nahin bola ja raha....
ReplyDeleteओह! डैम गुड राइटिंग इण्डीड!
ReplyDeleteमेज़र साहब...
ReplyDeleteवक़्त जरूरत पर ये नियम कायदे तोड़ने की बीमारी तो हमें भी है..
चाहे अपने ऑफिस में...
जिंदगी में...
या ग़ज़ल में.............
लेकिन कोशिश रहती है के सही बात के लिए ही तोड़े जायें नियम......
एक बात और मिली..जो हम में मिलती है...
ओह्ह सांस रोके ही पूरा पढ़ गयी जैसे....एकदम सजीव विवरण...वो कुहरा...उजली चोटियाँ..... बादल का टुकड़ा...घिरता अँधेरा..पेशानी पर उभरती रेखाएं और जंगल में घायल साथी...सब कुछ ही समेट लिया... सारे ही दृश्य जीवंत हो उठे...
ReplyDeleteआगे भी इंतज़ार रहेगा,डायरी के किसी पन्ने का..
बहुत खूब मेजर साब, वर्दी के कड़क अनुशासन के पीछे भी हिलोरें मारता मानवीयता का सगर देखकर सुखानुभूति हुई...
ReplyDeleteशौर्य फिल्म की याद आ गई..
यार तुम्हें पढने के बाद कुछ लिखना सिर्फ़ समय जाया करने जैसा लगता है , इससे अच्छा तो होगा कि दोबारा तुम्हें ही फ़िर से पढा जाए , यार ऐसा कम ही होता है कि एक ही पोस्ट पढने पर हर बार अलग अलग स्वाद दे ॥
ReplyDeleteअजय कुमार झा
सैल्यूट ! कथ्य और तथ्य दोनों को ।
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDeleteलाजवाब
वीनस केशरी
थल सेना के जांबाज सिपाहीयों के साथ देने में लगे हवाई सेना के सिपाहीयों को
ReplyDeleteऔर चालक
" ध्रुव" चेतक, चीता " के
" फ्लाय ब्योज़ " को भी सलाम
और
आप सभी की सलामती के लिए
मेरी Prayers और दुआएं शामिल हैं ..बेहतरीन और अनोखा आलेख ..
और लिखिए ..
और फिल्म निर्माण का आईडीया भी ,
भविष्य के लिए ,
सुरक्षित कर लें :)
...
जय - हिंद !
स स्नेहाशिष
- लावण्या
प्यारेलाल,
ReplyDeleteजानते, कश्मीर की वादी क्यों इतनी खूबसूरत
था पता उसको वहाँ अशआर तुम एक दिन लिखोगे
भुनभुनाएगी वो थोड़ा, मुस्कुराएगी वो थोड़ा
और उसकी सलवटों पे "प्यार" तुम एक दिन लिखोगे!
---
जीते रहें आप सब ... ख्याल रखियेगा बच्चे!
दीदी
Hats off for such writing bade bhai..
ReplyDeleteaaj din bhar man to nahin kiya kahne ka Jai Hind lekin ab kah hi deeta hoon aapke liye..
Jai Hind...
गुलमर्ग के हिमस्खलन की खबर है अखबारों में...
ReplyDeleteप्रकृति भी न....उफ्फफ्फ्फ़
जिंदगी तो चलती रहती है, जैसे कह रही हो 'आपां तो ऐसे हीं चलेंगे'
और कहते रहेंगे "आइ लव यू, फ्लाय-ब्वाय!"
अद्द्भुत संस्मरण.
ReplyDeleteआपकी भाषा-शैली काफी रोचक है....जैसा जीते हैं वैसा लिखते हैं इसलिए ..शब्द-शब्द में इमानदारी झलकती है ..आपकी नायब ग़ज़लों से भी बेहतरीन पोस्ट है यह.
ईश्वर आपको लंबी उम्र दे.
कल रात से बाहर बारिश है ...सो लाईट भी गायब है ....टाइम्स का स्पेशल एडिशन बतलाता है .के भारत ने अफगानिस्तान पर अब तक ३०० बिलियन डालर खर्च कर दिए है .. रात साडे दस बजे गुलमर्ग की खबर कान में पड़ी थी....पहले सोचा एक एस एम् एस ठेल दूँ....फिर लगा शायद बर्फ ने तुम्हे न रोका हो ओर फ्लाईट पकड़ ली हो......
ReplyDeleteहंस या चेतक को शुक्रिया कहना कितना छोटा शब्द है न......
....गुलमर्ग में बर्फ में लापता लोगो के नाम देश के इस हिस्से को नहीं पता ............इंडिया क्रिकेट में अभी भी जूझ रहा है ....शाहरुख़ ने अपना स्टेंड नहीं बदला है ...ओर अमिताभ बाल ठाकरे के घर रन की स्पेशल स्क्रीनिंग के लिए जाने वाले है ..दुनिया चल रही है इस हिस्से में उसी रफ़्तार से ....बेलगाम.........
प्रिय गौतम ,
ReplyDeleteतुमको ढेरों आशीर्वाद !!
बहुत ही खूबसूरत ढंग से डायरी लिखी है . पढ़ते पढ़ते लग रहा था मानों सारा कुछ आँखों के सामने हो रहा हो .
आह... इतना सजीव चित्रण की सांस लेने के लिए रुकने का भी मन नहीं करता....hats off to you
ReplyDeleteअद्वितीय ! अदभुत !
ReplyDeleteआपकी भावनाओं और जिन्दादिली को सलाम है बस बहुत बहुत आशीर्वाद
ReplyDeleteआभार इस विलक्षण गद्य को हमारे सामने लाने के लिए.
ReplyDeleteउस मेजर को सलाम जिसने चॉपर को बेस की बजाय जंगलों में मोड़ दिया.... और उस मेजर को भी सलाम जिसने बेहद आत्मीयता से ये बात हम तक पहुंचाई.
bahut achcha laga padh kar , dil ko chhoote alfaz.
ReplyDeleteपढ़ते हुए ऐसा लग रहा था जैसे चलचित्र देख रहा हूँ. एक ग़ज़लकार की क़लम से जज़्बात भरे इस लेख को पढ़कर खुदबखुद सलाम करने को दिल करने लगता है.लाजवाब.
ReplyDeleteमहावीर शर्मा
"....गुलमर्ग में बर्फ में लापता लोगो के नाम देश के इस हिस्से को नहीं पता ............इंडिया क्रिकेट में अभी भी जूझ रहा है ....शाहरुख़ ने अपना स्टेंड नहीं बदला है ...ओर अमिताभ बाल ठाकरे के घर रन की स्पेशल स्क्रीनिंग के लिए जाने वाले है ..दुनिया चल रही है इस हिस्से में उसी रफ़्तार से ....बेलगाम........."
ReplyDeletekuch aur rah nahi gaya hamare liye kahne ko..
फौज कि दुनिया को अक्सर फिल्मों में देखते और कभी कभी टी,वि पर समाचार में देख लेते है कितु जबसे आपका ब्लॉग पढना शुरू किया है इन अमर सच्चाइयों से रूबरू होने का सुअवसर प्राप्त हुआ है |ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगी आपको और आपके जैसे अनेक वीरो को अपने कार्यो में अनंत शक्ति दे |उन जाबांज सिपाहियों को सलाम |
ReplyDeleteआशीर्वाद शुभकामनाये |
इस डायरी को पढ़ते हुए ज़िन्दगी का एक नया पहलू नज़र आता है ।
ReplyDeleteआपने तो इस घटना को हमारे लिये सजीव कर दिया । लग रहा था जैसे आंखो देखी हो । लांस नायक को बचाने के लिये मेजर साहब का बहुत बहुत शुक्रिया । और इतनी ओघवती भाषा में हम तक इसे पहुंचाने के लिये आपका धन्यवाद ।
ReplyDeleteहम तो भाव विभोर हैं। पूरा दृश्य आँख के सामने नाच गया। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteआपकी तरह भावनाएं कीबोर्ड से उड़ेल नहीं पाऊंगा... बट इतना जरूर कहूँगा: 'वी लव यू गायस !'
ReplyDeleteमेजर साहिब,
ReplyDeleteसैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट, सैलूट,
अंगुलियाँ कैसे कैद करती हैं जिंदगी शब्दों में..
ReplyDeleteदेर तक आती हैं खुशबू पन्नो से...
aap jab bhi kuch likhte ho
ReplyDeletewo seedha dil se nikal dil tak jata hai
kayi sawal kayi soch ko janam deta hua
aapki Diary padhna achcha lag raha hai
soch rahi hun ki Dairy likhna itna achcha hota hai kya ?
तुसी ग्रेट हो गौतम. पुस्तक मेले में झंडे गाड़े. इस पोस्ट में तो कमाल कर दिया. डायरी के पन्नों ने तो आंखन देखी जैसे हालात पैदा कर दिए. आपको पता है, आज 'हिंदुस्तान' अख़बार में आपकी रचना प्रकाशित हुई है. ७ फरवरी को मैं दिल्ली में था लेकिन अफ़सोस, मिलना लिखा नहीं था. खैर फिर कभी.
ReplyDeleteशार्ट में बोलूँ तो 'भई वाह'।
ReplyDeleteजय हिन्द ... जय हिन्द की सेना !
ReplyDelete.........
ReplyDelete....O....
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aapko sallute.