28 December 2009

टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके...

कुछ टिप्पणियाँ वाकई संवाद के नये रास्ते खोलती हैं। अभी पिछली पोस्ट पर जो अपनी ग़ज़ल सुनायी थी आपलोगों को मैंने, उस पर वाणी जी की एक टिप्पणी ने मन को छू लिया। उन्होंने लिखा था - "एक काम्प्लेक्स सा आ जाता है ...कहाँ हम वही काल्पनिक प्रेम वीथियों में अटके रहते हैं और आप लोग जमीनी हकीकत से जुड़े रहते हैं .....!!" तो हमने सोचा कि भई ऐसी क्या बात है, आज आपलोगों को अपनी एक खालिस रोमांटिक ग़ज़ल सुना देते हैं। वैसे भी पूरा साल लड़ते-झगड़ते गुजर गया, अब इन आखिरी क्षणो में तो कुछ इश्क-प्रेम की बातें हो जाय। कुछ पाठकों ने यूँ तो इस ग़ज़ल को गुरुजी के दीवाली-मुशायरे में यहाँ पढ़ ही लिया होगा, शेष बंधुओं के लिये पेश कर रहा हूँ एक इश्किया ग़ज़ल:-

रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे

इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे

टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे

शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे

टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
बारहा तुम हमें याद आते रहे

कोहरे से लिपट कर धुँआ जब उठा
शौल में सिमटे दिन थरथराते रहे

मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे

जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे

...बहुत ही प्यारी बहर है ये। अनगिनत गाने याद आ रहे हैं जिनकी धुनों पर मेरी ये ग़ज़ल गायी जा सकती है। रफ़ी साब का वो ओजपूर्ण देशभक्ति गीत "ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम" या फिर महेन्द्र कपूर का गाया "तुम अगर साथ देने का वादा करो" या फिर लता दी का गाया "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिये"। एक-से-एक धुनें हैं इस बहर के लिये। अरे हाँ, वो किशोर दा जब जम्पिंग जैकाल जितेन्द्र के लिये अपने अनूठे अंदाज में "हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम" गाते हैं तो इसी बहरो-वजन पर गाते हैं। लेकिन इन धुनों की चर्चा अधुरी रह जायेगी अगर हमने जानिसार अख्तर साब के लिखे फिल्म शंकर हुसैन के गीत "आप यूं फासलों से गुजरते रहे" की चर्चा नहीं की तो, जिसे अदा जी सुनवा रही हैं अपने ब्लौग पर यहाँ


आपसब को आने वाले नये साल की समस्त शुभकामनायें...

71 comments:

  1. आनन्द तो फिर आया ही!!

    जय हो!!



    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

    ReplyDelete
  2. गौतम भाई,
    आप यूं फ़ासलों से गुज़रते रहे... ये वाला गीत अदा जी ने मेरी फरमाइश पर सुनवाया था...अब उनसे कहिए...शंकर हुसैन का ये वाला गीत संतोष जी से सुनवाएं...कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी...कश्मीर की वादियों में इस गीत को सुनने का आनंद बस अलौकिक ही होगा...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  3. "...बहुत ही प्यारी बहर है ये"

    ReplyDelete
  4. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे...
    जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
    शेर सारे मेरे जगमगाते रहे...

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...अदा जी से प्रार्थना करुँगी इसे अपनी मधुर आवाज़ में सुनाएँ ...!!

    ReplyDelete
  5. है चाहत सुमन की की सुनें बैठकर
    और गौतम जी गाकर सुनाते रहे

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
    शेर सारे मेरे जगमगाते रहे

    बहुत खूब गौतम. आखिरकार तुम्हारे अशआर की जगमगाहट का राज़ फाश हो ही गया.

    ReplyDelete
  7. वाह वाह.........मैं तो बस इतना कहूँगी .......
    बहुत बहुत आशीर्वाद तुम ऐसे ही लिखते रहो !!

    ReplyDelete
  8. टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे

    शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
    काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे

    " वाह वाह वाह " बहुत शानदार मन को भा गयी..."
    regards

    ReplyDelete
  9. गौतम जी आपकी ये ग़ज़ल जब जब पढ़ी है हमेशा नयी सी लगती है...इस ताजगी भरी ग़ज़ल से नए साल का इस्तेकबाल करना अच्छा लगा...
    शंकर हुसैन का गाना..." आप यूँ फासलों से...."गायन और लेखन की दृष्टि से लाजवाब है....
    नीरज

    ReplyDelete
  10. Gazal ka punrpath poorvat anand de raha hai....saadhuwad...

    ReplyDelete
  11. उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे


    हाय रे कंगन की किस्मत ?


    आपको भी नव-वर्ष की शुभकामनाये !

    ReplyDelete
  12. जब इश्क की चलती हैं बातें
    तो सरहदों पे कोयल भी कूक उठती है

    ReplyDelete
  13. टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
    बारहा तुम हमें याद आते रहे
    किन किन शक्लों में यादें लिपटीं चली आती हैं..बड़ी प्यारी सी ग़ज़ल है

    ReplyDelete
  14. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
    भई दिल में एक अलग सा एहसास जाग उठा इसे पढ़ कर...
    मीत

    ReplyDelete
  15. वाह गौतम जी .......... आज किसी भी एक शेर का चुनाव नही करूँगा ......... पूरी ग़ज़ल बहुत मस्त, बेमिसाल कश्मीर की वादियों में बरबस खींच रही है ........... बहुत बेमिसाल. मैं तो गा रहा हूँ इसे आप यूँ फांसलों से गुज़रते रहे ..... की तर्ज पर ...
    आपको और आपकी पूरी बटालियन को नव वर्ष की शुभकामनाएँ ............

    ReplyDelete
  16. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे

    मेजर मेरी जान ....काहे सेंटी कर रहे हो !!!!!

    ठण्ड अपने शबाब पर है ...तुम्हारा दिया हुआ कुछ .रोज आवाज देता है ...हमने कहा ...३१ की रात को मिलेगे.....अब जाते साल कोई कसम खानी छोड़ दी है ...क्यूंकि कोई निभती नहीं थी ...नन्हीपरी को स्नेह ओर प्यार ..!!!!

    ReplyDelete
  17. बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  18. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
    मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे


    bahut hi gahre ahsaas.........shandar gazal, dil ko chhoo gayi...........aap yun faslon se.........shayad hi koi hoga jiski pasand na ho ye gana...........bahut hi meetha ahsaas liye.

    navvarsh ki hardik shubhkamnayein.

    ReplyDelete
  19. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
    ... छोड़ आये हम यह गलियां

    बहरहाल रोशनदान से अब भी गर्द उड़ते हैं...


    विविध भारती पर "आप यूँ... " सुन कर कई बार सोया हूँ... तो कई बार जगा भी हूँ"

    और आप कहाँ कहाँ से क्या लाते हैं... हैरान हो जाता हूँ...

    ReplyDelete
  20. राजरिशी जी !
    दुरुस्त-सी गजल मनभावन लगी ..
    हम तो यहीं लट्टू हो गए ---
    '' रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे| ''
    आगे एक से बढ़कर एक भाव !
    अंत में गजल की धुन-गत संभावनाओं को भी
    आपने प्रस्तुत कर दिया , जो आपकी व्यापक
    जानकारी का भान कराता है ..
    पता नहीं मेरा जवाबी-मेल आपको मिला कि नहीं ?
    नए साल की शुभकामनायें ...
    .......... आभार ,,,

    ReplyDelete
  21. क्या गजल है सर!! वाह! वाह!

    ReplyDelete
  22. गौतम भाई,
    देरी से आने की माफ़ी चाहता हूँ पर आपके खजाने से मैं कुछ नहीं छोड़ता हूँ.तफसील से आपकी पिछली चार पोस्ट पढ़ी और अब लगा हूँ टिपियाने...मेरी मजबूरी रहती है कि या तो मैं अपने ब्लॉग पर कुछ लिखूं या फिर अपने पसंदीदा ब्लॉग पढ़ लूं...दोनों काम एक साथ करने का वक्त नहीं मिलता...
    पहले तो 'वादी में रंगों की लीला में' कर्नल विवेक भट्ट साब की निकोन डी ६० से ली बेहद खूबसूरत तस्वीरों ने मोह लिया...कर्नल सा को हमारी तरफ से बधाई...!फिर फिकर करे फुकरे में आपका उद्धृत टायसन का कथन प्रभावित कर गया...और ''फिकर तो गम का पापा है...''क्या कहना.पर ब्लॉग की कचरेबाजी पर कुछ भी कहना मेरी रुचि का विषय नहीं है.इसलिए यह पोस्ट पढ़कर मुझे ज्यादा मजा नहीं आया.
    मुझे सच्चा आनंद आया आपकी गजल जो युगीन काव्या में छपी है...''हाकिम का किस्सा''पढ़कर.
    जलती शब भर आँधी में जो
    लिख उस लौ मद्‍धिम का किस्सा

    जलती बस्ती की गलियों से
    सुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा

    शेर ख़ास तौर पर झन्नाटेदार लगे...अब तारीफ़ की तारीफ़ क्या करूं ..शायद अब तो वह स्टेज आगई है कि आपका लिखा नापसंद हो ही नहीं सकता खास कर गजल के मामले में....(थोडा ऊपर लिखे शब्दों को कोंट्राडिक्ट कर कर रहा हूँ)
    नासिर काजमी साहब की तो गजल अपनी धुन में रहता हूँ ...जगजीत सिंह की आवाज में सुनी थी.
    विज्ञानं व्रत और श्याम साहब कि गजले पढ़ी अच्छी लगी...
    संजीव गौतम साहब कि गजलें तो आज की गजल पर पढ़ी थी..कुल मिलाकर इस पोस्ट पर तो एक के साथ चार फ्री का ऑफर था जो मजा आ गया.

    अब इस पोस्ट पर आता हूँ..वैसे तो मुशायरे में यह गजल पढ़ ली थी पर शीर्षक से पता ही नहीं लगता है कि इस पोस्ट पर कोई गजल रखी है...
    इक विरह की अगन में सुलगते बदन
    करवटों में ही मल्हार गाते रहे

    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे

    मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे

    मेरे पसंदीदा शेर है..!

    ReplyDelete
  23. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
    इ बतावल जावे की चाँद जी रीझीं की नहीं...की खाली कंगने घुमाते रहे महराज..

    इक विरह की अगन में सुलगते बदन
    करवटों में ही मल्हार गाते रहे
    आग और पानी...अह्ह्ह इहो नजारों में एक नज़ारा है...

    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
    अच्छा !! मेजर की इ दुर्गति करी...बाप रे सोलिड पार्टी है भाई...!!

    शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
    काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
    अब इतनी खूबसूरत ग़ज़ल का राज भी तो यही है न...काफ़िया काफ़िया में आँख मटका चल रहा है ...अब का कहें..

    पूरी ग़ज़ल खूबसूरत खूबसूरत और खूबसूरत....
    हमरो बिलाग में आज ट्राफिक जाम है हजूर...तभी से वोही कंट्रोल में लगे हैं...सैलूट... ...

    ReplyDelete
  24. आपकी गज़ल पर मैं क्या कहूँ पंकज जी के किसी भी शिश्य की गज़ल देखती हूँ तो सोच मे पड जाती हूँ क्या कहूँ? पहले भी कई बार पढी थी आज भी मगर कुछ कहने की स्थिती मे नहीं। हैरान जरूर हूँगोलियो की गडगडाहट मे कोई इतनी अच्छी गज़ल कैसे कह सकता है? अपके जज़्बे को सलाम है। बहुत खूबसूरत गज़ल है हर शेर लाजवाब । सीख रही हूँ आपको पढ कर । बहुत बहुत आशीर्वाद

    ReplyDelete
  25. वाह बहुत खूब .बहुत अपनी अपनी सी गजल लगी यह ...रूमानी एहसास देते हुए सीधे दिल में उतर गयी ..शुक्रिया

    ReplyDelete
  26. क्या गैप-ए-जेनरेशन है! रात भर हम भी जगे; पर स्पॉण्डिलाइटिस के दर्द से! :(

    ReplyDelete
  27. http://www.youtube.com/watch?v=G1e0E_WOwUQ&NR=1&feature=fvwp

    Bus itna hi.

    ReplyDelete
  28. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  29. टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
    बारहा तुम हमें याद आते रहे
    Awesome !!!!!!

    Ye ghazal aur us tarhi mushaire ko padh ke hi wo ghazal likhi thi Daajyu, haan par sach Ustaad (Aap)...
    Ustaadon ke ustaad(Pankaj Sir,
    Aur chele(Main) mein koi to difference hoga na.


    Pichli post aur is post ke baaki she'r ke liye:
    Shukr hai, Shukrvaar hai.

    ReplyDelete
  30. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे।
    --पूरी गज़ल बेहतरीन है इस शेर ने मन मोह लिया।

    ReplyDelete
  31. इस गज़ल पर तो पहले ही जान लुटाये बैठे हैं। और कुछ कहते न बनता है। वैसे एक बात है, लगे हाथ इसे अपनी आवाज भी दे देनी थी। गुनगुना रहा हूं शेरों को....

    ReplyDelete
  32. .
    .
    .
    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे।


    वाह, बेहतरीन शेर.


    .

    ReplyDelete
  33. वाह...बहुत ही खूबसूरत शेर..ग़ज़ल की हर पंक्ति लाज़वाब बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..बढ़िया लगा ..धन्यवाद गौतम जी!!

    ReplyDelete
  34. क्यूँ जान लेने पे तुले हो आप? अभी तक तो शादी भी नहीं हुई है मेरी ..इस ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ आपका अंदाज़ चुरा रहा हूँ यह के बिछ गए मियाँ हम तो ... हा हा हा ... कुछ दिनों से ब्लॉग से दूर रहा कुछ रचनाएँ छुट चुकी हैं फिर से आता हूँ ... एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से फिर से ढेरो दाद और बधाईयाँ कुबूलें..

    अर्श

    ReplyDelete
  35. हद हो गई भई... दशहरे की छुट्टियों से शुरु किया था, अब नया साल आ गया, कितनी बड़ाई करवायेंगे....!

    हमारा मुँह मत खुलवाइये, प्लास्टर चढ़े हाथ से जो कंगन घुमाये, वो भौजाई के तो थे नही, जाने किसको इमोशनली ब्लैकमेल किया, अपनी बहादुरी के किस्से सुना के और फिर गोली खाया हाथ दिखा के।

    और मल्हार राग गाने का मन था सो गा रहे थे, वर्ना आग ठंडी करने भर की तो सर्दी अक्टूबर में पड़ने ही लगती है कश्मीर में।

    बाइ द वे ये नन्ही परी है कौन ? जिसपे अनुराग जी भी स्नेह और प्यार लुटा रहे हैं नये साल पर ?????

    भाईजान नये साल पर अनुजा का मशविरा

    नादान जवानी का जमाना गुज़र गया,
    अब आ गया बुढ़ापा, सुधर जाना चाहिये।


    अब टाटा स्काई के एड्वरटाइज़ की तरह ये ना पूँछना कि "बूढ़ा कौन ?"

    हा हा हा

    रात के २ बजे हैं, नींद नही आ रही थी सोचा चलो आपसे कर आते हैं....!!!!!

    ReplyDelete
  36. गौतम जी, कम से कम शब्दों में
    क्या मतला कहा है-
    रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
    लाजवाब!
    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
    टुकड़ों का कितनी खूबसूरती से इस्तेमाल किया है.
    मुबारकबाद..
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    ReplyDelete
  37. आपके समस्त परिवार को ,
    नव - वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
    ये ग़ज़ल ,
    पहले भी पसंद आयी थी और आज भी ..
    स्नेह आशिष सहीत,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  38. बड़ी प्यारी रोमांटिक ग़ज़ल कही है आपने। इसे पढ़कर परवीन शाकिर की एक नज़्म याद आ गई जो ऐसी ही रूमानी खयालातों से लबरेज़ है। आशा है आपकी भी पसंदीदा होगी

    सब्ज़ मद्धम रोशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक
    सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक
    बाज़ूओं के सख्त हल्क़े में कोई नाज़ुक बदन
    सिल्वटें मलबूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ
    गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
    नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलायम उँगलियों की छेड़ छाड़
    सुर्ख़ होंठों पर शरारत के किसी लम्हें का अक्स
    रेशमी बाहों में चूड़ी की कभी मद्धम धनक
    शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात
    दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी एक सदा
    काँपते होंठों पे थी अल्लाह से सिर्फ़ एक दुआ
    काश ये लम्हे ठहर जायें ठहर जायें ज़रा

    ReplyDelete
  39. बहुत खूब राज साहब जोरदार ग़ज़ल हर शेर बेहतरीन लेकिन ये शेर कुछ खास है
    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
    धन्यवाद स्वीकार करें

    ReplyDelete
  40. स, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे

    bahut khubsurt gjal .
    dono ka sath muskrana mumkin nahi ?

    ReplyDelete
  41. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
    इसी अंदाज में बिना काम की मसरूफियत बनी रही. आपके शेर कई बार पढ़े, लगभग सात दस बार तो पक्का, फिर इनकी उम्र सोचने लगा कि कितने पुराने होंगे ये ? कई बार पहले सुने हुए शेर, नए शेर के लिए स्थान नहीं देते हैं. बस कुछ ऐसा ही हाल था. सितारे क्या सामान लेते हैं यही पूछते रहे आपके शब्द अब तक.

    ReplyDelete
  42. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे


    जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
    शेर सारे मेरे जगमगाते रहे


    वाह !
    क्या कहने!
    माहोल को खुशगवार बना दिया!
    बहुत खूब ग़ज़ल कही है!

    ReplyDelete
  43. अंदाज़े बयान बेहद खूबसूरत है और इसका तो जवाब नहीं...

    मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे

    ReplyDelete
  44. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे

    जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
    शेर सारे मेरे जगमगाते रहे

    behatareen, anand dayak.

    ReplyDelete
  45. ...........
    .........
    ..............
    .......
    aur
    kayaa kahooN...
    bs..!
    HATS OFF !!

    ReplyDelete
  46. इक विरह की अगन में सुलगते बदन
    करवटों में ही मल्हार गाते रहे
    करवटों का यह मल्हार उस सावन को आमंत्रण देता है जो विरह की आग को बुझा सकता है. तो कभी सिर्फ़ एक बादल ही आ जाता है..अकेला..जो इस तपिश को और भड़का कर बह जाता है..आंखों के रास्ते...

    टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
    बारहा तुम हमें याद आते रहे
    जरूर बचपन की रंगीन जिल्द वाली किताब का कोई खूबसूरत पन्ना होगा..खुशबूदार!!

    और कंगन पे बड़ा खूबसूरत मशहूर शेर याद आया मोहानी साहब का
    बेरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्ताँ
    और कलाई मे तेरा कंगन ्घुमाना याद है.

    फिर आऊंगा..

    ReplyDelete
  47. अप्रतिम ग़ज़ल...

    पहले प्यार के अहसास के साथ फूलों की, पहले चुम्बन की, गेसुओं की खुशबू के ताउम्र सोल्डर हो जाने की तो तमाम बाते सुनी थीं, लेकिन टॉफी, कॉफी के जुड़ने की बात ज़रा नई सी लगी!!

    मज़ाक न लीजियेगा, लेकिन हमें तो पहले तसव्वुर की खुशबू अपने हेयर-जेल से आती थी जिसे लगाकर उस कोचिंग जाया करते थे, जहाँ उसे पहली बार देखा था..

    ReplyDelete
  48. अरे वाह, मेरी टिप्पणी पचासवीं थी..

    बैट उठाकर स्पेक्टेटर्स/ऑडियंस को एक्नॉलेज तो कर दीजिये..

    ReplyDelete
  49. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे

    हर शेर को कई कई बार पढने को मन करता है । लेकिन यह शेर अपनी सहजता की वजह से मुझे खास पसंद आया ।

    पूरी गजल पढकर आनंद आ गया । साथ में आप जो संबंधित गानों के नाम बताते है के वह बढिया है ।

    बधाई !

    ReplyDelete
  50. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
    pahle teer ne ghayal kar diya...
    मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
    aur isne dawa kar di...

    ise kahte hain gautam rajrishi TYPE ki ghajal...

    ReplyDelete
  51. anuraag jo ka comment dekh ke hamne bhi wahi sochaa jo gudiyaa kah rahi hai...
    ..
    .
    .
    .
    ...
    .
    .
    .
    .
    koi shakal nahin banaayeinge abhi..

    naa :(
    naa :)

    ReplyDelete
  52. मैं तो पहले शेर पर ही मुग्ध हूँ | बेहद ख़ूबसूरत गजल | आभार |

    ReplyDelete
  53. Aapko bhi nav varsh ki dher sari shubamnayen.

    ReplyDelete
  54. saalbhar...salbhar aapki rachnaao me jivan ke lagabhag saare aayaamo me safar kartaa rahaa...kaamanaaye he ki yeh safar aanevaale varsho tak jaari rahe...kabhi thame nahi, ruke nahi aour me chalataa rahu, chalataa rahu..

    bahut khub he gazal.../ nav varsh ki aatmiya shubhkamnaye.

    ReplyDelete
  55. मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
    ......

    बेहतरीन लाइन दिल को छू गईं..

    ReplyDelete
  56. क्या बात है मेजर साहब बडे रोमान्टिक मूड में हैं । उनके हाथों का कंगन घुमानकर चांद को रिझाने की बात वाकई मन को लुभा गई ।
    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
    ये वाला भी बहुत पसंद आया ।
    उम्दा गज़ल ।

    ReplyDelete
  57. गज़ब....गज़ब....गज़ब........आज तो तारीफकरने लायक भी नहीं छोड़ा गौतम जी .......

    रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे

    ओये होए .....ये हाथों का कंगन .....???

    इक विरह की अगन में सुलगते बदन
    करवटों में ही मल्हार गाते रहे

    बारिश हुई या नहीं ....??

    टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
    नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे

    उनकी इस अदा से ही तो दम निकले ....!!

    कोहरे से लिपट कर धुँआ जब उठा
    शौल में सिमटे दिन थरथराते रहे

    वाह....वाह....!!

    मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे

    तौबा .....जले तो नहीं ....??

    जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
    शेर सारे मेरे जगमगाते रहे

    क्यूँ न जगमगायें .....आप लिखने ही ऐसा हैं .....!!

    आपके दिए गानों पर गुनगुनाने की कोशिश की कुछ कुछ सफल भी हुए .....!!

    ReplyDelete
  58. happy new year ji..

    टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
    बारहा तुम हमें याद आते रहे

    ye toffi...kulfi..gullak sandook....

    jaane kyun darpan ki yaad dilaate hain.....

    ReplyDelete
  59. वाह... वाह... वाह.... और क्या लिखूं!!! वो एक शेर है- "हम मोत्किदे - मीर नहीं हैं, खता मुआफ ऐसी भी क्या गजल जो कलेजा निकाल ले". मैं चेष्टा कर रहा था कि काश, गलती निकालने का का कोई मौक़ा हाथ आ जाए. लेकिन नाकामी हाथ आनी ही थी. तबीयत खुश कर दी.
    नए साल की हार्दिक शुभकामाएं.

    ReplyDelete
  60. खुबसूरत रचना आभार
    नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................

    ReplyDelete
  61. अरे, हमें भी तो आवाज दी होती।

    नव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
    आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
    आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
    रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
    --------
    2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
    साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।

    ReplyDelete
  62. naye saal ki bahut bahut shubkaamnaaye

    -Sheena

    ReplyDelete
  63. शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
    काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे

    आपके तमाम पाठकों की ओर से..

    लम्हे जुड़-जुड़ के इक साल यूँ बन गये
    और ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल वो लुभाते रहे.

    साल कब सो गया कुछ खबर ना हुई
    हम तो सुनते रहे, वो सुनाते रहे.

    नये साल की आपको मुबारकबाद के साथ हमारी उम्मीद है कि यह अंजुमन यूँ ही जाविदाँ रहेगी..साल-दर-साल!!

    ReplyDelete
  64. कल एक अलग ही मिजाज में घूम रहा था। और आज जब आपकी इश्किया गज़ल पढी तो इश्किया मिजाज होने लगा जी। पर....। खैर आपकी ये गज़ल बहुत ही इश्कियाना लगी। और हमें पसंद भी बहुत आई। पहला ही शेर दिल उड़ा ले गया।
    रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे

    कुछ पल के लिए सोचने लगा :)
    और हाँ नववर्ष की आप और आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  65. रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
    उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे

    Very beautiful Sher !!

    ReplyDelete
  66. गौतम, बहुत कोमल सी, प्यारी सी ग़ज़ल है।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  67. हम तो कंगन घुमाने वाली लाइन के इर्द गिर्द ही बड़ी देर घूमते रहे. क्या खूब रिझाया आपने.

    ReplyDelete
  68. bahut acchi ghazal hai...padhkar maza aa gaya

    ReplyDelete
  69. पहली बार आया हूँ,
    मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
    इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
    बार-बार आऊंगा इस वादे के साथ जा रहा हूँ.
    नव वर्ष २०१० मंगलमय हो.

    ReplyDelete

ईमानदार और बेबाक टिप्पणी दें...शुक्रिया !