कुछ टिप्पणियाँ वाकई संवाद के नये रास्ते खोलती हैं। अभी पिछली पोस्ट पर जो अपनी ग़ज़ल सुनायी थी आपलोगों को मैंने, उस पर वाणी जी की एक टिप्पणी ने मन को छू लिया। उन्होंने लिखा था - "एक काम्प्लेक्स सा आ जाता है ...कहाँ हम वही काल्पनिक प्रेम वीथियों में अटके रहते हैं और आप लोग जमीनी हकीकत से जुड़े रहते हैं .....!!" तो हमने सोचा कि भई ऐसी क्या बात है, आज आपलोगों को अपनी एक खालिस रोमांटिक ग़ज़ल सुना देते हैं। वैसे भी पूरा साल लड़ते-झगड़ते गुजर गया, अब इन आखिरी क्षणो में तो कुछ इश्क-प्रेम की बातें हो जाय। कुछ पाठकों ने यूँ तो इस ग़ज़ल को गुरुजी के दीवाली-मुशायरे में यहाँ पढ़ ही लिया होगा, शेष बंधुओं के लिये पेश कर रहा हूँ एक इश्किया ग़ज़ल:-
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
बारहा तुम हमें याद आते रहे
कोहरे से लिपट कर धुँआ जब उठा
शौल में सिमटे दिन थरथराते रहे
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे
...बहुत ही प्यारी बहर है ये। अनगिनत गाने याद आ रहे हैं जिनकी धुनों पर मेरी ये ग़ज़ल गायी जा सकती है। रफ़ी साब का वो ओजपूर्ण देशभक्ति गीत "ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम" या फिर महेन्द्र कपूर का गाया "तुम अगर साथ देने का वादा करो" या फिर लता दी का गाया "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिये"। एक-से-एक धुनें हैं इस बहर के लिये। अरे हाँ, वो किशोर दा जब जम्पिंग जैकाल जितेन्द्र के लिये अपने अनूठे अंदाज में "हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम" गाते हैं तो इसी बहरो-वजन पर गाते हैं। लेकिन इन धुनों की चर्चा अधुरी रह जायेगी अगर हमने जानिसार अख्तर साब के लिखे फिल्म शंकर हुसैन के गीत "आप यूं फासलों से गुजरते रहे" की चर्चा नहीं की तो, जिसे अदा जी सुनवा रही हैं अपने ब्लौग पर यहाँ।
आपसब को आने वाले नये साल की समस्त शुभकामनायें...
आनन्द तो फिर आया ही!!
ReplyDeleteजय हो!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
गौतम भाई,
ReplyDeleteआप यूं फ़ासलों से गुज़रते रहे... ये वाला गीत अदा जी ने मेरी फरमाइश पर सुनवाया था...अब उनसे कहिए...शंकर हुसैन का ये वाला गीत संतोष जी से सुनवाएं...कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी...कश्मीर की वादियों में इस गीत को सुनने का आनंद बस अलौकिक ही होगा...
जय हिंद...
"...बहुत ही प्यारी बहर है ये"
ReplyDeleteमैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे...
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे...
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...अदा जी से प्रार्थना करुँगी इसे अपनी मधुर आवाज़ में सुनाएँ ...!!
है चाहत सुमन की की सुनें बैठकर
ReplyDeleteऔर गौतम जी गाकर सुनाते रहे
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
ReplyDeleteशेर सारे मेरे जगमगाते रहे
बहुत खूब गौतम. आखिरकार तुम्हारे अशआर की जगमगाहट का राज़ फाश हो ही गया.
वाह वाह.........मैं तो बस इतना कहूँगी .......
ReplyDeleteबहुत बहुत आशीर्वाद तुम ऐसे ही लिखते रहो !!
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
ReplyDeleteनाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
" वाह वाह वाह " बहुत शानदार मन को भा गयी..."
regards
गौतम जी आपकी ये ग़ज़ल जब जब पढ़ी है हमेशा नयी सी लगती है...इस ताजगी भरी ग़ज़ल से नए साल का इस्तेकबाल करना अच्छा लगा...
ReplyDeleteशंकर हुसैन का गाना..." आप यूँ फासलों से...."गायन और लेखन की दृष्टि से लाजवाब है....
नीरज
आनंद आ गया
ReplyDeleteGazal ka punrpath poorvat anand de raha hai....saadhuwad...
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
ReplyDeleteहाय रे कंगन की किस्मत ?
आपको भी नव-वर्ष की शुभकामनाये !
जब इश्क की चलती हैं बातें
ReplyDeleteतो सरहदों पे कोयल भी कूक उठती है
टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
ReplyDeleteबारहा तुम हमें याद आते रहे
किन किन शक्लों में यादें लिपटीं चली आती हैं..बड़ी प्यारी सी ग़ज़ल है
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
भई दिल में एक अलग सा एहसास जाग उठा इसे पढ़ कर...
मीत
वाह गौतम जी .......... आज किसी भी एक शेर का चुनाव नही करूँगा ......... पूरी ग़ज़ल बहुत मस्त, बेमिसाल कश्मीर की वादियों में बरबस खींच रही है ........... बहुत बेमिसाल. मैं तो गा रहा हूँ इसे आप यूँ फांसलों से गुज़रते रहे ..... की तर्ज पर ...
ReplyDeleteआपको और आपकी पूरी बटालियन को नव वर्ष की शुभकामनाएँ ............
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
मेजर मेरी जान ....काहे सेंटी कर रहे हो !!!!!
ठण्ड अपने शबाब पर है ...तुम्हारा दिया हुआ कुछ .रोज आवाज देता है ...हमने कहा ...३१ की रात को मिलेगे.....अब जाते साल कोई कसम खानी छोड़ दी है ...क्यूंकि कोई निभती नहीं थी ...नन्हीपरी को स्नेह ओर प्यार ..!!!!
बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
bahut hi gahre ahsaas.........shandar gazal, dil ko chhoo gayi...........aap yun faslon se.........shayad hi koi hoga jiski pasand na ho ye gana...........bahut hi meetha ahsaas liye.
navvarsh ki hardik shubhkamnayein.
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
... छोड़ आये हम यह गलियां
बहरहाल रोशनदान से अब भी गर्द उड़ते हैं...
विविध भारती पर "आप यूँ... " सुन कर कई बार सोया हूँ... तो कई बार जगा भी हूँ"
और आप कहाँ कहाँ से क्या लाते हैं... हैरान हो जाता हूँ...
राजरिशी जी !
ReplyDeleteदुरुस्त-सी गजल मनभावन लगी ..
हम तो यहीं लट्टू हो गए ---
'' रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे| ''
आगे एक से बढ़कर एक भाव !
अंत में गजल की धुन-गत संभावनाओं को भी
आपने प्रस्तुत कर दिया , जो आपकी व्यापक
जानकारी का भान कराता है ..
पता नहीं मेरा जवाबी-मेल आपको मिला कि नहीं ?
नए साल की शुभकामनायें ...
.......... आभार ,,,
क्या गजल है सर!! वाह! वाह!
ReplyDeleteसुंदर.
ReplyDeleteगौतम भाई,
ReplyDeleteदेरी से आने की माफ़ी चाहता हूँ पर आपके खजाने से मैं कुछ नहीं छोड़ता हूँ.तफसील से आपकी पिछली चार पोस्ट पढ़ी और अब लगा हूँ टिपियाने...मेरी मजबूरी रहती है कि या तो मैं अपने ब्लॉग पर कुछ लिखूं या फिर अपने पसंदीदा ब्लॉग पढ़ लूं...दोनों काम एक साथ करने का वक्त नहीं मिलता...
पहले तो 'वादी में रंगों की लीला में' कर्नल विवेक भट्ट साब की निकोन डी ६० से ली बेहद खूबसूरत तस्वीरों ने मोह लिया...कर्नल सा को हमारी तरफ से बधाई...!फिर फिकर करे फुकरे में आपका उद्धृत टायसन का कथन प्रभावित कर गया...और ''फिकर तो गम का पापा है...''क्या कहना.पर ब्लॉग की कचरेबाजी पर कुछ भी कहना मेरी रुचि का विषय नहीं है.इसलिए यह पोस्ट पढ़कर मुझे ज्यादा मजा नहीं आया.
मुझे सच्चा आनंद आया आपकी गजल जो युगीन काव्या में छपी है...''हाकिम का किस्सा''पढ़कर.
जलती शब भर आँधी में जो
लिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
जलती बस्ती की गलियों से
सुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा
शेर ख़ास तौर पर झन्नाटेदार लगे...अब तारीफ़ की तारीफ़ क्या करूं ..शायद अब तो वह स्टेज आगई है कि आपका लिखा नापसंद हो ही नहीं सकता खास कर गजल के मामले में....(थोडा ऊपर लिखे शब्दों को कोंट्राडिक्ट कर कर रहा हूँ)
नासिर काजमी साहब की तो गजल अपनी धुन में रहता हूँ ...जगजीत सिंह की आवाज में सुनी थी.
विज्ञानं व्रत और श्याम साहब कि गजले पढ़ी अच्छी लगी...
संजीव गौतम साहब कि गजलें तो आज की गजल पर पढ़ी थी..कुल मिलाकर इस पोस्ट पर तो एक के साथ चार फ्री का ऑफर था जो मजा आ गया.
अब इस पोस्ट पर आता हूँ..वैसे तो मुशायरे में यह गजल पढ़ ली थी पर शीर्षक से पता ही नहीं लगता है कि इस पोस्ट पर कोई गजल रखी है...
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
मेरे पसंदीदा शेर है..!
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
इ बतावल जावे की चाँद जी रीझीं की नहीं...की खाली कंगने घुमाते रहे महराज..
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे
आग और पानी...अह्ह्ह इहो नजारों में एक नज़ारा है...
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
अच्छा !! मेजर की इ दुर्गति करी...बाप रे सोलिड पार्टी है भाई...!!
शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
काफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
अब इतनी खूबसूरत ग़ज़ल का राज भी तो यही है न...काफ़िया काफ़िया में आँख मटका चल रहा है ...अब का कहें..
पूरी ग़ज़ल खूबसूरत खूबसूरत और खूबसूरत....
हमरो बिलाग में आज ट्राफिक जाम है हजूर...तभी से वोही कंट्रोल में लगे हैं...सैलूट... ...
आपकी गज़ल पर मैं क्या कहूँ पंकज जी के किसी भी शिश्य की गज़ल देखती हूँ तो सोच मे पड जाती हूँ क्या कहूँ? पहले भी कई बार पढी थी आज भी मगर कुछ कहने की स्थिती मे नहीं। हैरान जरूर हूँगोलियो की गडगडाहट मे कोई इतनी अच्छी गज़ल कैसे कह सकता है? अपके जज़्बे को सलाम है। बहुत खूबसूरत गज़ल है हर शेर लाजवाब । सीख रही हूँ आपको पढ कर । बहुत बहुत आशीर्वाद
ReplyDeleteवाह बहुत खूब .बहुत अपनी अपनी सी गजल लगी यह ...रूमानी एहसास देते हुए सीधे दिल में उतर गयी ..शुक्रिया
ReplyDeleteक्या गैप-ए-जेनरेशन है! रात भर हम भी जगे; पर स्पॉण्डिलाइटिस के दर्द से! :(
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=G1e0E_WOwUQ&NR=1&feature=fvwp
ReplyDeleteBus itna hi.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteटौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
ReplyDeleteबारहा तुम हमें याद आते रहे
Awesome !!!!!!
Ye ghazal aur us tarhi mushaire ko padh ke hi wo ghazal likhi thi Daajyu, haan par sach Ustaad (Aap)...
Ustaadon ke ustaad(Pankaj Sir,
Aur chele(Main) mein koi to difference hoga na.
Pichli post aur is post ke baaki she'r ke liye:
Shukr hai, Shukrvaar hai.
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे।
--पूरी गज़ल बेहतरीन है इस शेर ने मन मोह लिया।
इस गज़ल पर तो पहले ही जान लुटाये बैठे हैं। और कुछ कहते न बनता है। वैसे एक बात है, लगे हाथ इसे अपनी आवाज भी दे देनी थी। गुनगुना रहा हूं शेरों को....
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे।
वाह, बेहतरीन शेर.
.
वाह...बहुत ही खूबसूरत शेर..ग़ज़ल की हर पंक्ति लाज़वाब बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..बढ़िया लगा ..धन्यवाद गौतम जी!!
ReplyDeleteक्यूँ जान लेने पे तुले हो आप? अभी तक तो शादी भी नहीं हुई है मेरी ..इस ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ आपका अंदाज़ चुरा रहा हूँ यह के बिछ गए मियाँ हम तो ... हा हा हा ... कुछ दिनों से ब्लॉग से दूर रहा कुछ रचनाएँ छुट चुकी हैं फिर से आता हूँ ... एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से फिर से ढेरो दाद और बधाईयाँ कुबूलें..
ReplyDeleteअर्श
हद हो गई भई... दशहरे की छुट्टियों से शुरु किया था, अब नया साल आ गया, कितनी बड़ाई करवायेंगे....!
ReplyDeleteहमारा मुँह मत खुलवाइये, प्लास्टर चढ़े हाथ से जो कंगन घुमाये, वो भौजाई के तो थे नही, जाने किसको इमोशनली ब्लैकमेल किया, अपनी बहादुरी के किस्से सुना के और फिर गोली खाया हाथ दिखा के।
और मल्हार राग गाने का मन था सो गा रहे थे, वर्ना आग ठंडी करने भर की तो सर्दी अक्टूबर में पड़ने ही लगती है कश्मीर में।
बाइ द वे ये नन्ही परी है कौन ? जिसपे अनुराग जी भी स्नेह और प्यार लुटा रहे हैं नये साल पर ?????
भाईजान नये साल पर अनुजा का मशविरा
नादान जवानी का जमाना गुज़र गया,
अब आ गया बुढ़ापा, सुधर जाना चाहिये।
अब टाटा स्काई के एड्वरटाइज़ की तरह ये ना पूँछना कि "बूढ़ा कौन ?"
हा हा हा
रात के २ बजे हैं, नींद नही आ रही थी सोचा चलो आपसे कर आते हैं....!!!!!
गौतम जी, कम से कम शब्दों में
ReplyDeleteक्या मतला कहा है-
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
लाजवाब!
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
टुकड़ों का कितनी खूबसूरती से इस्तेमाल किया है.
मुबारकबाद..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
आपके समस्त परिवार को ,
ReplyDeleteनव - वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
ये ग़ज़ल ,
पहले भी पसंद आयी थी और आज भी ..
स्नेह आशिष सहीत,
- लावण्या
बड़ी प्यारी रोमांटिक ग़ज़ल कही है आपने। इसे पढ़कर परवीन शाकिर की एक नज़्म याद आ गई जो ऐसी ही रूमानी खयालातों से लबरेज़ है। आशा है आपकी भी पसंदीदा होगी
ReplyDeleteसब्ज़ मद्धम रोशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक
सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक
बाज़ूओं के सख्त हल्क़े में कोई नाज़ुक बदन
सिल्वटें मलबूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलायम उँगलियों की छेड़ छाड़
सुर्ख़ होंठों पर शरारत के किसी लम्हें का अक्स
रेशमी बाहों में चूड़ी की कभी मद्धम धनक
शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात
दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी एक सदा
काँपते होंठों पे थी अल्लाह से सिर्फ़ एक दुआ
काश ये लम्हे ठहर जायें ठहर जायें ज़रा
बहुत खूब राज साहब जोरदार ग़ज़ल हर शेर बेहतरीन लेकिन ये शेर कुछ खास है
ReplyDeleteटीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
धन्यवाद स्वीकार करें
स, आवारगी, रतजगे, बेबसी
ReplyDeleteनाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
bahut khubsurt gjal .
dono ka sath muskrana mumkin nahi ?
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
इसी अंदाज में बिना काम की मसरूफियत बनी रही. आपके शेर कई बार पढ़े, लगभग सात दस बार तो पक्का, फिर इनकी उम्र सोचने लगा कि कितने पुराने होंगे ये ? कई बार पहले सुने हुए शेर, नए शेर के लिए स्थान नहीं देते हैं. बस कुछ ऐसा ही हाल था. सितारे क्या सामान लेते हैं यही पूछते रहे आपके शब्द अब तक.
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे
वाह !
क्या कहने!
माहोल को खुशगवार बना दिया!
बहुत खूब ग़ज़ल कही है!
अंदाज़े बयान बेहद खूबसूरत है और इसका तो जवाब नहीं...
ReplyDeleteमैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे
behatareen, anand dayak.
...........
ReplyDelete.........
..............
.......
aur
kayaa kahooN...
bs..!
HATS OFF !!
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
ReplyDeleteकरवटों में ही मल्हार गाते रहे
करवटों का यह मल्हार उस सावन को आमंत्रण देता है जो विरह की आग को बुझा सकता है. तो कभी सिर्फ़ एक बादल ही आ जाता है..अकेला..जो इस तपिश को और भड़का कर बह जाता है..आंखों के रास्ते...
टौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
बारहा तुम हमें याद आते रहे
जरूर बचपन की रंगीन जिल्द वाली किताब का कोई खूबसूरत पन्ना होगा..खुशबूदार!!
और कंगन पे बड़ा खूबसूरत मशहूर शेर याद आया मोहानी साहब का
बेरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्ताँ
और कलाई मे तेरा कंगन ्घुमाना याद है.
फिर आऊंगा..
अप्रतिम ग़ज़ल...
ReplyDeleteपहले प्यार के अहसास के साथ फूलों की, पहले चुम्बन की, गेसुओं की खुशबू के ताउम्र सोल्डर हो जाने की तो तमाम बाते सुनी थीं, लेकिन टॉफी, कॉफी के जुड़ने की बात ज़रा नई सी लगी!!
मज़ाक न लीजियेगा, लेकिन हमें तो पहले तसव्वुर की खुशबू अपने हेयर-जेल से आती थी जिसे लगाकर उस कोचिंग जाया करते थे, जहाँ उसे पहली बार देखा था..
अरे वाह, मेरी टिप्पणी पचासवीं थी..
ReplyDeleteबैट उठाकर स्पेक्टेटर्स/ऑडियंस को एक्नॉलेज तो कर दीजिये..
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
हर शेर को कई कई बार पढने को मन करता है । लेकिन यह शेर अपनी सहजता की वजह से मुझे खास पसंद आया ।
पूरी गजल पढकर आनंद आ गया । साथ में आप जो संबंधित गानों के नाम बताते है के वह बढिया है ।
बधाई !
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
pahle teer ne ghayal kar diya...
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
aur isne dawa kar di...
ise kahte hain gautam rajrishi TYPE ki ghajal...
anuraag jo ka comment dekh ke hamne bhi wahi sochaa jo gudiyaa kah rahi hai...
ReplyDelete..
.
.
.
...
.
.
.
.
koi shakal nahin banaayeinge abhi..
naa :(
naa :)
मैं तो पहले शेर पर ही मुग्ध हूँ | बेहद ख़ूबसूरत गजल | आभार |
ReplyDeleteAapko bhi nav varsh ki dher sari shubamnayen.
ReplyDeletesaalbhar...salbhar aapki rachnaao me jivan ke lagabhag saare aayaamo me safar kartaa rahaa...kaamanaaye he ki yeh safar aanevaale varsho tak jaari rahe...kabhi thame nahi, ruke nahi aour me chalataa rahu, chalataa rahu..
ReplyDeletebahut khub he gazal.../ nav varsh ki aatmiya shubhkamnaye.
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
ReplyDeleteइक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
......
बेहतरीन लाइन दिल को छू गईं..
क्या बात है मेजर साहब बडे रोमान्टिक मूड में हैं । उनके हाथों का कंगन घुमानकर चांद को रिझाने की बात वाकई मन को लुभा गई ।
ReplyDeleteटीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
ये वाला भी बहुत पसंद आया ।
उम्दा गज़ल ।
गज़ब....गज़ब....गज़ब........आज तो तारीफकरने लायक भी नहीं छोड़ा गौतम जी .......
ReplyDeleteरात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
ओये होए .....ये हाथों का कंगन .....???
इक विरह की अगन में सुलगते बदन
करवटों में ही मल्हार गाते रहे
बारिश हुई या नहीं ....??
टीस, आवारगी, रतजगे, बेबसी
नाम कर मेरे, वो मुस्कुराते रहे
उनकी इस अदा से ही तो दम निकले ....!!
कोहरे से लिपट कर धुँआ जब उठा
शौल में सिमटे दिन थरथराते रहे
वाह....वाह....!!
मैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
तौबा .....जले तो नहीं ....??
जब से यादें तेरी रौशनाई बनीं
शेर सारे मेरे जगमगाते रहे
क्यूँ न जगमगायें .....आप लिखने ही ऐसा हैं .....!!
आपके दिए गानों पर गुनगुनाने की कोशिश की कुछ कुछ सफल भी हुए .....!!
happy new year ji..
ReplyDeleteटौफियाँ, कुल्फियाँ, कौफी के जायके
बारहा तुम हमें याद आते रहे
ye toffi...kulfi..gullak sandook....
jaane kyun darpan ki yaad dilaate hain.....
वाह... वाह... वाह.... और क्या लिखूं!!! वो एक शेर है- "हम मोत्किदे - मीर नहीं हैं, खता मुआफ ऐसी भी क्या गजल जो कलेजा निकाल ले". मैं चेष्टा कर रहा था कि काश, गलती निकालने का का कोई मौक़ा हाथ आ जाए. लेकिन नाकामी हाथ आनी ही थी. तबीयत खुश कर दी.
ReplyDeleteनए साल की हार्दिक शुभकामाएं.
खुबसूरत रचना आभार
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
अरे, हमें भी तो आवाज दी होती।
ReplyDeleteनव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
--------
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
naye saal ki bahut bahut shubkaamnaaye
ReplyDelete-Sheena
शेर जुड़ते गये, इक गज़ल बन गयी
ReplyDeleteकाफ़िया, काफ़िया वो लुभाते रहे
आपके तमाम पाठकों की ओर से..
लम्हे जुड़-जुड़ के इक साल यूँ बन गये
और ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल वो लुभाते रहे.
साल कब सो गया कुछ खबर ना हुई
हम तो सुनते रहे, वो सुनाते रहे.
नये साल की आपको मुबारकबाद के साथ हमारी उम्मीद है कि यह अंजुमन यूँ ही जाविदाँ रहेगी..साल-दर-साल!!
कल एक अलग ही मिजाज में घूम रहा था। और आज जब आपकी इश्किया गज़ल पढी तो इश्किया मिजाज होने लगा जी। पर....। खैर आपकी ये गज़ल बहुत ही इश्कियाना लगी। और हमें पसंद भी बहुत आई। पहला ही शेर दिल उड़ा ले गया।
ReplyDeleteरात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
उनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
कुछ पल के लिए सोचने लगा :)
और हाँ नववर्ष की आप और आपके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं।
रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे
ReplyDeleteउनके हाथों का कंगन घुमाते रहे
Very beautiful Sher !!
गौतम, बहुत कोमल सी, प्यारी सी ग़ज़ल है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
हम तो कंगन घुमाने वाली लाइन के इर्द गिर्द ही बड़ी देर घूमते रहे. क्या खूब रिझाया आपने.
ReplyDeletebahut acchi ghazal hai...padhkar maza aa gaya
ReplyDeleteपहली बार आया हूँ,
ReplyDeleteमैं पिघलता रहा मोम-सा उम्र भर
इक सिरे से मुझे वो जलाते रहे
बार-बार आऊंगा इस वादे के साथ जा रहा हूँ.
नव वर्ष २०१० मंगलमय हो.