उधर कई दिनों से >संजीव गौतम जी की ब्लौग पर अनुपस्थिति और फोन पर बात किये हुये एक लंबा अर्सा बीत जाना एकदम से चिंतित कर गया था कि जनाब ठीक तो हैं। फोन लगाया तो उनके कहकहों ने आश्वस्त किया और पता चला कि छुट्टी मनायी जा रही है। बातों ही बातों में वो लगे मेरी एक अदनी-सी ग़ज़ल की तारीफ़ करने जो अभी हाल ही में मुंबई से निकलने वाली त्रैमासिक युगीन काव्या के जुलाई-सितंबर वाले अंक में छपी थी। अब तारीफ़ सुन कर मेरा फुल कर कुप्पा हो जाना तो लाजिमी था...तारीफ़ अपने ग़ज़ल की और वो भी ग़ज़ल-गाँव के एक श्रेष्ठ शायर से। आहहाsssss!!!
...तो सोचा आपलोगों को वही ग़ज़ल सुनाऊँ आज। तकरीबन दो साल पहले लिखी थी। तब शेर कहना सीख ही रहा था। नोयेडा में एक अकेले वृद्ध की हत्या उन्हीं के नौकर द्वारा किये जाने की खबर थी अखबारों में तो यूं ही दो पंक्तियाँ बन गयी{वो "खादिम का किस्सा" वाला} और फिर जिसे बढ़ा कर पूरी ग़ज़ल की शक्ल देने की कोशिश की। ग़ज़ल को सँवारने की जोहमत विख्यात शायर >हस्ती मल हस्ती साब ने की है जो युगीन काव्या के संपादक भी हैं। पेश है:-
जब छेड़ा मुजरिम का किस्सा
चर्चित था हाकिम का किस्सा
जलती शब भर आँधी में जो
लिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
सुन लो सुन लो पूरब वालों
सूरज से पश्चिम का किस्सा
छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
गायेगा जालिम का किस्सा
जलती बस्ती की गलियों से
सुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा
बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से खादिम का किस्सा
कहती हैं बारिश की बूंदें
सुन लो तुम रिमझिम का किस्सा
...इस बहरो-वजन पर >नासिर काज़मी साब ने कुछ बेहरतीन ग़ज़लें कही हैं। अभी वर्तमान में >विज्ञान व्रत और >डा० श्याम सखा ने भी धूम मचा रखी हैं इस बहर की अपनी ग़ज़लों से।
चलते-चलते संजीव गौतम जी की दो बेमिसाल ग़ज़लें पढ़िये >यहाँ।
बूढ़े मालिक का शव बोले
ReplyDeleteदुनिया से खादिम का किस्सा
ग़ज़ल के कई शे’र दिल में घर कर गए।
ज़ल-गाँव के एक श्रेष्ठ शायर तारीफ कर ही चुके हैं तो हमारी कौन औकात....
ReplyDeleteगजब लिखे हो भाई... :)
जलती बस्ती की गलियों से
ReplyDeleteसुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा
अच्छा है गौतम जी। बहुत खूब लिखा है आपने।
शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ज़ल-गाँव = गज़ल-गाँव
ReplyDelete"जब छेड़ा मुजरिम का किस्सा
ReplyDeleteचर्चित था हाकिम का किस्सा"
मुझे तो शुरुआत ने ही मुग्ध कर दिया ! गजब का विधान ! शानदार ।
संजीव जी की प्रशंसा के बाद हम क्या कहें !
मेजर साहब,
ReplyDeleteकिसी ने सही कहा है...शब्दों में बारूद से भी ज़्यादा मार होती है...बारूद का असर थोड़ी देर ही रहता है लेकिन शब्द ताउम्र भेदते रहते हैं...अच्छा पढ़वाने के लिए आभार
जय हिंद...
दुश्मन को मारने लिए गजले ही होनी चहिये... बड़े कातिल शेर है..
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल!
ReplyDeleteयुगीन काव्य छाप दिहिस अब काव्य मंजूषा का बोले....
ReplyDeleteखुशदीप साहब भी ग़ज़ल के बारूदी धमाके को जिकिरिया दियें हैं...
कुश बाबू भी कहिये दिए कि ग़ज़ल में एतना पावरफुल है कि दो-चार दुश्मन तो धहिए देगा...
हमहूँ कहना चाहते हैं कि बउवाल लिख दिए हैं...
सैलूट....!!!
छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
ReplyDeleteगायेगा जालिम का किस्सा
bahut khuub..
बहुत सुंदर लगी ग़ज़ल....
ReplyDeleteबहर को साधने की कोशिश तो की ही गयी है ..
ReplyDeleteभाव भी अच्छे हैं ..
सुन्दर ..
बढ़िया रहा तराना!
ReplyDeleteशब्दों का है खज़ाना!!
अच्छी किस्सागोई
ReplyDeletesaare hi sher achchhe ban pade hain...!
ReplyDeletealag se kuchh nahi kahane ko
क्या कमाल ग़ज़ल कही है गौतम जी आपने...और वो भी दो साल पहले जब आपने लिखना शुरू ही किया था वाह...याने पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ गए थे...सारे के सारे शेर बब्बर हैं...छोटी बहर में ग़ज़ल कहना आसान अन्हीं होता और आपमें तो ये हुनर जैसे कूट कूट कर भरा हुआ है...
ReplyDeleteजलती शब भर आँधी में जो
लिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
गायेगा जालिम का किस्सा
बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से खादिम का किस्सा
आपके ये शेर देर साथ रहने वाले हैं...बेहतरीन...जलती शब् भर आंधी में जो...से मुझे एक बेहद पुराना लेकिन मेरी पसंद का शेर याद आ गया...सुनिए...शायर का नाम अभी याद नहीं आ रहा:
ऐ शमः तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह
हमने तमाम उम्र गुजारी है इस तरह
नीरज
गौतम साब
ReplyDeleteजब छेड़ा मुजरिम का किस्सा
चर्चित था हाकिम का किस्सा
जलती शब भर आँधी में जो
लिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
कहती हैं बारिश की बूंदें
सुन लो तुम रिमझिम का किस्सा
बेहतरीन मतला और उस पर पूरी ग़ज़ल को क्या खूब सूरती से निभा गए आप!
.........................मज़ा आ गया पहले तो आपकी ग़ज़ल के जादू से ही नहीं बाहर आ पाए थे ..............इसी बीच आपने संजीव गौतम से भी तआर्रुफ़ करा दिया.....!
जलती बस्ती की गलियों से
ReplyDeleteसुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा ...
गौतम साहब ......... धूम तो आपने भी मचा दी आज ........... बेहतरीन ग़ज़ल वो भी २ साल पहले लिखी ......... आपके फ़ौजी तेवर का कमाल है ये .......... बहुत मज़ा आया पढ़ कर .........
आनंद आ गया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल है।बधाई।
ReplyDeleteहम आपके फैन ऐसे ही थोड़े हैं :)
ReplyDeleteदूर किसी शहर में हुए हादसे से यूं दुःख का इस तरह जुड़ना .इस समाज में आदमी होने की कड़ी को माजबूत करता है ....ओर ये शेर शायद उसकी हलफबयानी करता है
ReplyDelete"बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से खादिम का किस्सा"
Bahut sundar dil ko choone valee gajal....
ReplyDeleteHemantkumar
बहुत खूब दर्द को कैसे महसूस किया जा सकता है आपकी लिखी पंक्तियाँ यां ब्यान करती है .शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर जी
ReplyDeleteजब छेड़ा मुजरिम का किस्सा
ReplyDeleteचर्चित था हाकिम का किस्सा
बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से खादिम का किस्सा
-सुन्दर.
आभार जोरदार कविता और कड़ियों के लिए
ReplyDeleteछोड़ो तो पिंजरे का पंछी
ReplyDeleteगायेगा जालिम का किस्सा
--वाह मेजर साहब, पूरी गज़ल बेहतरीन है! यह शेर तो याद करनी है इसलिए उतार दी।
कहती हैं बारिश की बूंदें
सुन लो तुम रिमझिम का किस्सा
--हमेशा जवान रहने वाले शेर हैं!
आनंद आ गया पढ़कर
आभार।
सर जी, आधा खजाना तो आपने इतना दिलकश काफ़िया ले कर लूट लिया..कि एक ही सांस मे पूरी ग़ज़ल गटक जाये आदमी..और बाकी का आधा आपके सारे शेर मिल कर लूट ले गये..सारे ही शेर इतने बेजोड़ हैं कि एक की ज्यादा तारीफ़ करना दूसरे के साथ नाइंसाफ़ी होगी..सो मैं यहां अपनी व्यक्तिगत पसंद की बात करूंगा..
ReplyDeleteजलती शब भर आँधी में जो
लिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
यह शेर साहित्य की सार्थकता और उसके उद्देश्य का बखान करता है..नेपथ्य के लोग जो अपनी तमाम कमजोरियों और सीमाओं के बावजूद उम्मीद का दामन नही छोड़ते और न संघर्ष का..उसी मद्धिम लौ की जिंदादिली का कहानी है यह शेर..
यह बहर भी मेरी फ़ेवरिट बहर है और नासिर साहब मेरे पसंदीदा शायर..सो उनके शेर का जिक्र भी रवायतन..आपकी ग़ज़ल की स्पिरिट से सुर मिलाता
इमारतें तो जल के राख हो गयीं
इमारतें बनाने वाले क्या हुए
ये आप हम तो बोझ हैं जमीं का
जमीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
वाह !
ReplyDeleteछोड़ो तो पिंजरे का पंछी
ReplyDeleteगायेगा जालिम का किस्सा
बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से खादिम का किस्सा
गहरी चोट करते शेर.
उम्दा!
बेहद प्रभावी ग़ज़ल.
पत्रिका में छपने पर बधाई.
शुभकामनाएँ.
behatareen.
ReplyDeleteमेजर साब, संजीव जी की चिंता और फिर शेर पढ़ कर एक धूसर सा मौसम उग आया है मेरे आस पास.
ReplyDeleteहमारे यहां बहुत सर्दी शुरू हो गयी है और आपके उम्दा शेर पढ़ कर कुछ राहत मिली -- बहुत खूब !!
ReplyDeleteजलती बस्ती की गलियों से सुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा
ReplyDeleteबूढ़े मालिक का शव बोले दुनिया से खादिम का किस्सा...
संवेदनाओं से भरपूर कविता ...एक काम्प्लेक्स सा आ जाता है ...कहाँ हम वही काल्पनिक प्रेम वीथियों में अटके रहते हैं और आप लोग जमीनी हकीकत से जुड़े रहते हैं .....!!
बधाई ...युगीन काब्य में छपने के लिए ...मुझे अभी तक मिली नहीं आज ही pn करती हूँ हस्तीमल जी को .....!!
ReplyDeleteजलती बस्ती की गलियों से
सुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा
वाह .....इसी हिंदू-मुस्लिम पर मेरी भी एक क्षणिका है ....!!
बूढ़े मालिक का शव बोले
दुनिया से खादिम का किस्सा
सोचती हूँ ये इंसान ही इंसान की हत्या करते वक़्त डरता क्यों नहीं है .....??
बहुत खूब अच्छी रचना
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें
कमाल है किस्से - किस्सों में हाले जहां बयान हो गया ...
ReplyDeletewah bhai wah...
ReplyDeleteवाह भाई बहुत खूब रचना से आपने परिचय करवाया है... बहुत शुक्रिया इतनी बेहतरीन नज़्म के लिए...
ReplyDeleteऔर हाँ भाई मैं स्केच तो बनता हूँ लेकिन वो जो मैंने पोस्ट पर लगाया है वो नेट से लिया है... कोशिश करूँगा कभी आपको कुछ बना कर भेजूं... वैसे आप मेरी अगली पोस्ट जरुर पढना उसमें मेरे भाई की स्कूल की एक किताब में छापी हुई रचना आपको पढने मिलेगी... उम्मीद है पसंद भी आयेगी...
मीत
पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है गौतम जी,
ReplyDeleteखास तौर से ये दो शेर दिल को छूने वाले हैं-
छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
गायेगा जालिम का किस्सा
जलती बस्ती की गलियों से
सुन हिंदू-मुस्लिम का किस्सा
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
"बूढ़े मालिक का शव बोले
ReplyDeleteदुनिया से खादिम का किस्सा"
आप इस अंदाज में शे'र कहेंगे पता नहीं था...
वैसे ये बहर मुझे बहुत पसंद है.. जल्द ही कुछ ऐसी पोस्ट करूँगा..(दुरुस्त बहर में कहना मुश्किल होगा.)
सुलभ
hasti malji apni patrika me koshish karte he behatreen rachnaaye lene ki, aapki rachnaa ko unhone prakashit kiya...yah udaharan bhi saamne aa gayaa/
ReplyDeletevese itani taareef pahle hi tippanikaar kar chuke he so taareef to nahi karunga..hnaa yah jaroor kahungaa ki-
"ab jab bhi padhhta hu koi gazal
yaad aataa he goutamji ka kissa"
छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
ReplyDeleteगायेगा जालिम का किस्सा
पूरी की पूरी गज़ल ही बढिया है पर ये शेर खास मन को भाया ।
Gautam ji,
ReplyDeleteMain bhi yugeen kaavya ke is ank ko dekhna chahta tha, par Hasti saab ke do baar bhejne pe bhi main yah ank dekh nahi paya hoon.
par aapne ye gajal yahan pesh karke achchha kiya...
छोड़ो तो पिंजरे का पंछी
ReplyDeleteगायेगा जालिम का किस्सा
... अतिसुन्दर !!!
kyaa baat hai mezar saab.........
ReplyDeletecomputer band kiyaa to aapka comment box najar aayaa hai....
ha ha ha ha ha ha ha ha......
ab ..ghazal...
blog...
mail ..
sab kuchh band hai....
hindi mein likhne ki suvidhaa bhi....
:(
Email follow-up comments to manu2367@gmail.com
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shukra hai...
kam se kam anaam comment to nahi jaayegaa.......
bahut haulnaak she'r lagaa..
boodhe maalik kaa shav bole...
duniyaa se khaadim kaa kissaa....
saath saath NOIDA kaa nithaari kaand bhi yaad ho aayaa....
हस्तीमल हस्ती साहब के साथ काव्या का ज़िक्र एक पुराने मित्र की याद दिला गया जो उन दिनों मुंबई में ही रहता था और इस बेहद खूबसूरत प्रयास की अक्सर तारीफ़ करता था.
ReplyDeleteग़ज़ल यूँ सामने आती है जैसे शाम को बैठे-ठाले दिन भर के रंग याद से गुज़रते हैं.
जलती शब भर आँधी में जो
ReplyDeleteलिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
कवि का संवेदनशील मन हर घटना पर उद्वेलित हो उठता है...साक्ष्य है ये ग़ज़ल..सारे शेर एक से बढ़कर एक...
ये पत्रिका मुंबई में बुक स्टाल पर उपलब्ध है क्या?
मैं तो हैरान हूँ कि मैने इस पोस्ट पर कमेन्ट दिया था मगर शायद लिख कर पोस्ट करना भूल गयी होऊँगी आज कल बच्चे आये हैं बीच मे से आवाज़ लगा लेते हैं। आपकी गज़ल उस दिन भी कई बार पढी थी। पढ कर सीखती रहती हूँ। अब तारीफ क्या करूँ सभी ने बता ही दिया है। संजीव जी की गज़ल भी बहुत अच्छी लगी। बहुत दिनों बाद उन्हें पढा । आपलो और संजीव जी को नये साल की शुभकामनायें आशीर्वाद
ReplyDeleteyun to puri gajal shandaar hai, par ye lines to simply superb...
ReplyDeleteजलती शब भर आँधी में जो
लिख उस लौ मद्धिम का किस्सा
honth sile hote na to kahta.
ReplyDeletetere julmo_shitum ka kissa.
purushottam vishavkarma
LADARAYA NAGOUR RAJ