उधर इलाहा्बाद में वो ब्लौगर-संगोष्ठी क्या संपन्न हुयी, विवादों के नये पिटारे खुल गये हैं। समझ में नहीं आता कि हम सबलोगों ने हर चीज का सकारात्मक पहलु देखना बंद क्यों कर दिया है। एक व्यर्थ की तना-तनी के लिये सब कोई कमर कसे तैयार बैठे रहते हैं। एक पहल हुई है, एक प्रशंसनीय शुरूआत है...उसकी सराहना करने के बजाय हम सब जुटे हुये हैं उसके तमाम कमजोर पहलुओं को बेवजह का मुद्दा बनाने में।
खैर, ...अपनी एक ग़ज़ल पेश करता हूँ फिलहाल, इस प्रार्थना से साथ कि अपने इस दुलारे हिंदी ब्लौग-जगत में सौहार्द का माहौल कायम रहे सदा-सदा के लिये।
खुद से ही बाजी लगी है
हाय कैसी जिंदगी है
जब रिवाजें तोड़ता हूँ
घेरे क्यों बेचारगी है
करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
दर-ब-दर भटके हवा क्यूं
मौसमे-आवारगी है
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है
{मासिक पत्रिका ’वर्तमान साहित्य’ के अगस्त 09 अंक में प्रकाशित}
...बहरे रमल की इस दो रूक्नी मीटर{मुरब्बा सालिम} पर अपने ब्लौग-जगत में बिखरे चंद ग़ज़ल रूपी हीरे-मोती-पन्ने ढ़ूंढ़ने की कोशिश में कुछ लाजवाब ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं। श्रद्धेय प्राण साब की इसी बहरो-वजन पर एक बेहतरीन ग़ज़ल पढिये नीरज जी के ब्लौग पर यहाँ। आदरणीय सर्वत जमाल साब की दो लाजवाब ग़ज़लें इसी बहरो-वजन पर पढ़िये यहाँ और यहाँ। दीपक गुप्ता जी की एक नायाब ग़ज़ल इसी बहर में पढ़ें यहाँ। युवा शायर अंकित सफ़र की एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल जो इसी बहरो-वजन पे बुनी गयी है को पढ़ने के लिये यहाँ क्लीक करें।...और चलते-चलते वीनस केसरी का कमाल देखिये इस बहर पे लिखी हुई सबसे छोटे मीटर{एक रूकनी} वाली ग़ज़ल यहाँ।
पुनःश्च :-
हास्पिटल के सफेद-नीले लिबास से निजात पाये तीन दिन हो चुके हैं। काफी सुधार है। हाथ में कुछ अजीब सी पट्टियाँ बाँधे रखने का आदेश दिया है डाक्टरों ने और डेढ़ महीने बाद वापस बुलाया है। अभी फिलहाल अपने बेस हेड-क्वार्टर में हूँ और पाँच दिनों बाद जा रहा हूँ चार हफ़्ते के अवकाश पर।...तो अगली पोस्ट कोसी-तीरे बसे बिहार के एक सुदूर गाँव से।
...अरे हाँ, इन सब बातों में डाक्टर अनुराग तो रह ही गये! नहीं, उन्होंने मना किया है इस खासम-खास मुलाकात पर कुछ भी लिखने से।
श्रीनगर की उस शाम-विशेष के लिये ढ़ेरम-ढ़ेर शुक्रिया डाक्टर साब...!!!
जानकर अच्छा लगा कि आप अब पूर्ण रुप से स्वस्थ है...पट्टी सट्टी तो हमारे बहादुर का गहना है.
ReplyDeleteगज़ल तो पहले शेर में ही पूरी है:
खुद से ही बाजी लगी है
हाय कैसी जिंदगी है
घर में सबको हमारा यथोचित कहना.
गौतम राजऋषि जी!
ReplyDeleteआप स्वस्थ हो गये हैं।यह जानकर अच्छा लगा।
अस्पताल के बेड पर आपने गज़ल बढ़िया लिखी है।
बधाई!
अब आप ब्लागिरी में अपनी शुभेच्छाओं के साथ लौटे हैं स्वस्थ हो कर ! अच्छा लगा !
ReplyDeleteआपका सर्वे भद्राणु पश्यन्ति की इन्गिति इस श्लोक का ही याद दिला गयी
शौर्य - संत ह्रदय का संगम !
अस्पताल से मुक्ति मिली! यह बड़ी राहत है। कुछ दिन घर गांव में बीतेंगे यह सकून है। ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteतुम अपने पाँव
ReplyDeleteजब उस कोसी तीरे गाँव में रखोगे
दरवाजे उस गाँव के
लोटे में पानी और
थाल में तिलक लिए खड़ी होंगी
हाथ-पाँव धोये जायेंगे
और तिलक लगाये जायेंगे
और जाने कौन सा भाव होगा उनके मन में
पर वे गीले जरूर होंगे...
mujhe khas taur se pahla sher "jab riwajen todta hun..." haasile ghazal laga....orkut ब्लॉग की sidebar में
ReplyDeleteरोया जब तन्हा वो तकिया
ReplyDeleteरात भर चादर जगी है
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है
Umda sher !!
Aap ke swasthy kee mangal kamna kee saath !
मेजर साब हल्ला बेवजह का नहीं है
ReplyDeleteमुनीश जी ने जो सवाल उठाये थे वे सब न सही अधिकतर वजनदार थे, मुझे उस आयोजन से लगा कि हम अभी उन्हीं परिपाटियों पर चल रहे हैं जिन्होंने देश की ये गत बना रखी है. जिस विधा को क्रांतिकारी कहा जा रहा है उसकी फूंक निकलने ही वाली है. सुरेश चिपलूनकर जी ने इसी मुद्दे पर पर मयखाना पर कहा था कि "आपने सस्ते में निपटा दिया है" तो मैं बेसब्र हो कर उनकी पोस्ट का इंतजार कर रहा था. कल उसे भी देख लिया, उनकी गाड़ी के हार्न ने भी निराश ही किया मुझे. वहां वे ही सुर हैं जो पहले थे, वामपंथ और दक्षिणपंथ के अतिरिक्त एक किसी नजदीकी दोस्त के आहत मन की चर्चा के सिवा कोई ऐसी आवाज़ नहीं निकली जो राह में फैले कोहरे को दूर करती हो.
मेरे देश की संसद... कविता तो आपने पढ़ी ही होगी, बस यूं समझो कि वह सम्मलेन इससे इतर कुछ नहीं था. कुछ कहना तो मैं भी चाहता था उस विषय पर किन्तु वहां वडनेरकर जी जैसे साधू प्रवृति के निश्छल महात्म भी उपस्थित थे इसलिए चुप ही रहना उचित लगा. विश्व विद्यालय को अगर कोसना है तो तैयार रहिये और कोसने के लिए क्योंकि ऐसे आयोजन अब हर उच्च शैक्षणिक संस्थान की मजबूरी होने वाले है. इनोवेटिव प्रोग्रेम्स के नाम पर बलात्कार के लिए अब ब्लोगिंग विधा ही कम बासी माल है. सच कहूँ तो ब्लॉग दुनिया कचरे की दुनिया है और मेरी आदत में ये कचरा समा गया है. कभी ब्लॉग अग्रीगेटर पर आप जाते ही होंगे तब क्या ख़याल आते हैं मन में...
काम की बात अक्सर लफ्फाजी में पीछे छूट जाया करती है. ग़ज़ल के शेर... तारीफ, तारीफ और तारीफ के काबिल हैं. ज़मीन के, आसमान के और इंसान के वजूद के शेर हैं ये. इन पत्रिकाओं से जरा फासले से चलिए और कोशिश कीजिए कि किताब आ जाये. सेहतनामा पढ़ कर राहत है. और इस बात के आखिर में - घर पे तनया का कोई चेलेंज स्वीकार मत करना, वहां हार तय है.
तुम शिफाखाने से निकले
ReplyDeleteआज कितनी ताजगी है
अस्पताल के बिस्तर पर रहकर भी जितना लिख-पढ़ डाला है, उसकी सराहना अगर न करूं तो काफिरों में शुमार किया जाऊँगा. गजल बेहद खूबसूरत कह ली है, मुबारक. चार हफ्ते यानी पूरा एक माह घर-परिवार के साथ, यह एक सुखद समाचार है. गजल के साथ जो इतना शोध-अन्वेषण कर डाला है, मैं उसकी ज्यादा सराहना करता हूँ, वैसे भी गजल आपके बाएं हाथ का खेल है. नाचीज़ को आपने जो बेजा इज्जत बख्शी है उसके लिए शुक्रगुजार हूँ.
खुद से ही बाजी लगी है .. सच है, व्यक्ति की स्वयं से ही जंग है। बहुत ही उम्दा गजल, बधाई। बधाई इसलिए भी कि कुछ वक्त मिलेगा घर रहने का।
ReplyDeleteइस नायाब ग़ज़ल के लिए आपको धन्यवाद !
ReplyDeleteआपके स्वास्थ्य के लिए शुभकामनायें.......
antim do panktiyan bahut hi achchi lagi.. sawasth hone per badhai.. :)
ReplyDeleteapna khyal rakhiye. aur hindi jagat ko isi tarah ke pyare pyare tohfe dete rahiye..
"उधर इलाहा्बाद में वो ब्लौगर-संगोष्ठी क्या संपन्न हुयी, विवादों के नये पिटारे खुल गये हैं। समझ में नहीं आता कि हम सबलोगों ने हर चीज का सकारात्मक पहलु देखना बंद क्यों कर दिया है।"
ReplyDeleteKANCHAN JI NE BATAYA THA KI AAP KITNE COOL HAIN AUR VIVADON SE KITNA DOOR REHTE HAIN....
TO PHIR AAP YE KYA JAANE HUM LOGON KO NINDA , VIVAD, CONTROVERCIES MAIN KITNA MAZA AATA HAI?
AAP TO REJHNE HI DEIN JI BUS!!
HUM TO VIVAD KAREINGE...
...APPKE HONGE BAHUT SARE KAAM .
HUM TO VELLE LOG HAIN....
...SAMAY BITNE KE LIYE KUCH TO KARNA HI PADEGA...
MERA XBOX BHI KAHRAB HAI AUR SOLATIRE BHI BAHUT KEHL CHUKA HOON...
GHAZAL KE LIYE WAPIS AATA HOON...
(VELLA PERSON, YOU SEE !!)
अरे.! ये ओम आर्या जी ने कितनी सुंदर बात कही वीर जी..! आपकी गज़ल जितना ही वज़न लग रहा है इसमें भी...! बहुत खूब..बहुत संवेदनशील...!
ReplyDeleteरोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
हम्म्म्म्............ कहाँ की बात है ये ?? :)
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
मुझे ये शेर सबसे सुंदर लगा...! शायद अर्थ समझ में बहुत गहर आया मुझे..! नकारात्मक नही सकारात्मक..!
और विवाद पर विवाद कर के कल झेल चुकी हूँ....! अब बस...! आज तो छुट्टी भी नही कि मूड ठीक करने के लिये वेक अप सिड का सहारा लिया जाये :)
डॉ० साहब से मिलना मुबारक़ हम तो उस शाम घर में गुनगुना रहे थे दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात
खुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है
जब रिवाजें तोड़ता हूँ
घेरे क्यों बेचारगी है
बहुत गहरी बात कह दी इन शब्दों में....पर यही तो आपका अंदाज़ है...हर बार ही कहते हैं.
ख़ुशी हुई जानकर, अब आप स्वस्थ हैं...घर पे सब पलक पांवडे विछाये इंतज़ार कर रहें होंगे...ये ५ दिन जल्दी से कट जाएँ...
ये तो जुलुम हो गया जी, जिसके लिए हम पलकें-पांवरे बिछाये बैठे थे... बड़ा ही गोपनीय मुलाकात थी... लगता है 'शिष्टाचार' के नाते मिले थे :) दो बड़े दिग्गज... बिहार अपना इलाका है... अभी छठ पूजा मनाया गया है... नदी के तीरे-तीर आनंद आएगा...
ReplyDeleteहाँ आप स्वस्थ हो रहे है जानकार अच्छा लगा...
ReplyDeleteकरवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
... वाह! और पेशगी के बाद का ?
@ KISHORE SIR ONLY...
ReplyDeleteSir ye to nahi jaanta ki aap kaunsi kavita , kahani ya pustak ki baat kar rahein hain...
(Short term memory loss !!)
paar choonki is vivad ko bade nazdeek se follow kar raha hoon (vella person you see !!)
isliye aapki baat se poorntya sehmat hoon...
...aur haan wo kavita to nahi thi kahin 'sansad wali?'
nahi bhi thi to abhi badi contemporary hai...
".....wo teesra aadmi kaun hai?
Mere desh kisansad maun hai"
:)
आज ब्लागजगत पर अलग सी रोनक थी कारन समझ तब आया जब आपकी पोस्ट देखी। बहुत दिन से इन्तज़ार तो था ही। बहुत बहुत बधाई अस्पताल से घर आने की और इस लाजवाब गज़ल की हर शेर दिल को छूता सा है एक दो शेर की बात करने से पूरी गज़ल से अन्याय होगा । बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद
ReplyDeleteजानकार अच्छा लगा की अब आप स्वस्थ हो गए हैं
ReplyDeleteऔर ग़ज़ल के तो क्या कहने
वाह !!
गौतम जी क्या कहूँ लाजवाब कर दिया आपने...एक एक शेर हीरा तराश कर जड़ दिया हो जैसे इस ग़ज़ल हार में...वाह...
ReplyDeleteकरवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है
जैसे शेर बार बार पढने को जी करता है...इश्वर आपकी कलम की ये रवानी यूँ ही बनाये रख्खे...
अनुराग जी से हुई मुलाकात की बातें आप गोल कर गए ये उनके और आपके चाहने वालों के लिए बहुत अच्छी बात नहीं है...न इंसाफी है...मुझे उम्मीद है आप अनुराग जी को अपनी आपसी बातचीत को जग जाहिर करने के लिए मना ही लेंगे...और हम उस दिन का इंतज़ार करेंगे...
वैसे कहीं ये मुलाकात कहीं कबीर और बाबा फरीद की तरह तो नहीं थी जिसमें दोनों दो दिन बिना बोले एक दूसरे के साथ रहे थे और चेले अपलक उन्हें इस इंतज़ार में तकते रहे की कब उनके मुंह से फूल झड़ेँ और वो चुनने को लपकें...बाद में जब कबीर से उनके चेलों ने पूछा की "आपने बाबा फरीद से बात क्यूँ नहीं की" तो उन्होंने जवाब दिया "क्या कहते हो हम बिना बोले रहे कब...अनवरत बोलते रहे...आँखों से..."
नीरज
जानकार बहुत ख़ुशी हुई की आप स्वस्थ हो गए हैं
ReplyDeleteगज़ल पढ़कर दिल खुश हो गया
रोया जब तन्हा वो तकिया
ReplyDeleteरात भर चादर जगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
वाह वाह...
और आप जल्द ही फिट एंड फाइन हो जायेंगे...
भगवन आपके पास है...
मीत
अर्थ शब्दों का जो समझो
ReplyDeleteदोस्ती माने ठगी है..बहुत खूब
बहुत शुकुन मिला आपकी स्वस्थता की कहब्र जानकर, हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत बहुत बधाई - घर जा रहे हो !! अपना ख्याल रखना !
ReplyDeleteबाकी ग़ज़ल बहुत उम्दा है !
बहुत बहुत शुभकामनाएं !
रोया जब तन्हा वो तकिया
ReplyDeleteरात भर चादर जगी है...
shandaar hai sir.. baaki vivaadon ka kya hai.. wo to chalte rahte hain..
yah awkaash us dahashat mahaul ki yaadon se alag ek masoom sukun degi.......
ReplyDeleteजानकार बहुत अच्छा लगा की आप स्वस्थ हो गए हैं, मेरे लायक कोई सेवा हो तो जरुर बताये, आज जब आप का ब्लांग पढा ओर आप के बारे पढा तो लगा आज असली दिपावली है, क्योकि हमारा शॆर आज फ़िर से तेयार है, नाज है गॊतम जी आप पर बस अब जल्दी से बच्चो से मिल ले, वो कितने बेचेन होगे..... घर पर भी को मेरी तरफ़ से बधाई दे, बच्चो को प्यार
ReplyDeleteरोया जब तन्हा वो तकिया
ReplyDeleteरात भर चादर जगी है
इस शेर पर सब निसार...सेहत का ख्याल रखिये...वैसे तो समीर जी कह ही गए हैं पट्टी तो बहादुर का गहना है :)
सबसे पहले तो ये जानकार खुशी हुई कि आपको अस्पताल से छुट्टी मिल गई। और आप स्वस्थ है। और रही पटटियों की बात तो वो भी उतर जाऐगी। और अब बात करते है आपकी गजल की तो जी वो बहुत बेहतरीन है। खासकर ये शेर।
ReplyDeleteखुद से ही बाजी लगी है
हाय कैसी जिंदगी है
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
वैसे दोस्ती माने ठगी है जरा दिमाग पर जोर लगा कर समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
और हाँ घर जाकर हमारी बेटी को खूब सारा प्यार और आशीर्वाद देना हमारी तरफ से। हो सके तो एक चाकलेट ले जाना जी हमारी तरफ से। हमें अच्छा लगेगा।
मुझे तो रीडर में आपकी अनरीड पोस्ट दिखी तो लगा जरूर डॉक्टर साब से मुलाक़ात की बात होगी. उस मामले में निराशा हाथ लगी... इस पर पुनर्विचार किया जाय :)
ReplyDeletehame to kisi halle gulle ki aavaz isliye bhi nahi sunaai deti ki ham kisi balave me padhte hi nahi, aavaaz uthaaye ki achhi achhi rachnaye padhhkar apni shudha shaant kare///
ReplyDeletekhud se hi baazi lagi he ,
haai kesi jindagi he....
is sher me aour us sangoshthi ke vivaad me mel karke dekhane ka pryatn kar rahaa hu...kher..
aapki rachnaye..ab jiska me kaayal hu usaki taarif to barbas hi nikalegi na.../
Dr. anuragji se baatchit????kya kabhi hame padhhne ko milegi?
tabiyat me sudhaar..., ishvariya krapa..../
gautam ji , aapkeswasth hone par badhaai.bahut achcha laga jaankar ki hospital se izaat mili.
ReplyDeleteकरवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
ye sher bahut pasand aaye, behatareen. shubhkaamnayen.
छोटी बहर में गजब की बातें कही हैं।
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
गौतम जी ........ आपकी शायरी भी कमाल की है ........ हर शेर को कमाल का निभाते हैं आप ...... अच्छा लगा जान कर आप छुट्टियाँ ले रहे हैं ......... कुछ नयी ग़ज़लें पढने को तो मिलेंगी ....
ReplyDeleteकरवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
ये पेशगी एक आशिक को बहुत महंगी पढ़ती है अक्सर ......
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
किस एहसास से रंग है आपने इस शेर को ....... बस कल्पनाओं में डूब जाता है मन ....
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
जीवन का दर्शन है इस शेर में .............
इलाहाबाद के विवाद को यह मानते हुए कि संगम में उसकी अस्थियों का विसर्जन ससम्मान कर दिया जायेगा आपकी ग़ज़ल की चर्चा करता हूं. हर ग़ज़ल कुछ न कुछ नयी बात दे जाती है. नयी अंट्च्ड ताज़गी.
ReplyDeleteइश्क ने दी पेशगी है
क्या बात है सर सुभान अल्लाह.
और ये
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
क्या बात है! बहुत ख़ूब!
दर-ब-दर भटके हवा क्यूं
ReplyDeleteमौसमे-आवारगी है
Best couplet of this Ghazal.
RC
मेजर साहिब,
ReplyDeleteसैलूट,
फिर छाप दिए न धमाकेदार गजल...
झूठो-मूठो हॉस्पिटल का बात करते हैं आप....आपका सब कारस्तानी पढ़ लिए हैं ....
वो नरेस-उरेस वाला.... बीमार आदमी ग़ज़ल लिखता है का ???
और उ भी टोप क्लास.....
अब यही देखिये जो आप छापे हैं....
खुद से ही बाजी लगी है
हाय कैसी जिंदगी है
अब बड़-बुजुर्ग ऐसे थोड़े ही न बोले हैं की जुआ-उवा मत खेलो....बाज़ी लगाएगा तो हाय-हाय करबे न कीजियेगा न...
अब मत लागाएगा....ठीक..!!
जब रिवाजें तोड़ता हूँ
घेरे क्यों बेचारगी है
हई देखो, जब भी कोई से कुछो टूट जाता है तो बेचारा जैसे मुंह बनिए जाता है...इसमें कौन बड़ी बात है.....धुत..!!
करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
इ बात हमको नहीं बुझाया है ...झूठ काहे बोले....अडवांस बुकिंग लोग करता हई...लेकिन हम तनी कमजोर हैं गणित में....
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
एही न गड़बड़ है....तकिया तो तनहा नहीं न रखना चाही......चादरवा पर रख के देखिये....कैसन दोनों मुस्की मारेंगे.......अह्ह्ह्ह
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
हाँ तो अब ठगी माने ...राह्जानी नहीं न है.....दोस्ती-प्यार में तो आदमी ठगा सा रहिये जाता है.....आप भी बुड्बके हैं...
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है
करना पड़ता है भाई.....न करें तो पकडाने का चानस ज्यास्ती है....
जय हिंद...
गौतम साहब
ReplyDeleteफ़ायलातुन-फ़ायलातुन} ...बहरे रमल की इस दो रूक्नी मीटर{मुरब्बा सालिम} पर अपने वाकई लाजवाब ग़ज़ल लिखी है...जिन लोगों का ज़िक्र आपने किया था उन्हें तो मैं नहीं पढ़ पाया पर आपकी ग़ज़ल के लिए मेरे पास शब्द नहीं है.....कौन कहता है की ग़ज़ल का भविष्य अँधेरे में है.....आप लोग अलम उठाये है तो कोई चिंता नहीं....
मुझे जो शेर अच्छे लगे .....
करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
भाई वाह वाह ! क्या कहने......
क्या मेरा कुछ कहना बाकी है अब ., ग़ज़ल तो सुबह ही पढ़ चूका था मगर सभी लोगों की टिप्पणियां पढ़ने के लिए अपने आपको रोके रक्खा था ... किसी एक शे'र की तारीफ करूँ तो इसकी इजाजत आप खुद ही दें किसकी करूँ और किसकी नहीं ... अहाँ ता बड निक ग़ज़ल कहैछी हे ... हा हा हा ज्यादा नहीं जानता ... :) घर में छुट्टियाँ उफ्फ्फ्फ़ वाली बात है , मगर ये जो आप छुपा रहे हो डाक्टर साहिब से मुलाक़ात वाली बात वो सही नहीं है ,.. इस चीज की छुट नहीं दी गयी है आप दोनों को अभी तक के अकेले ही हसी ठिठोली कर बैठो.. बात पुरजोर तरीके से सामने आणि ही चाहिए ... क्यूँ ...??? वरना पिहू से शिकायत कर दी जायेगी ....
ReplyDeleteअर्श
हमने भी सवेरे ही पढ़ ली थी...
ReplyDeleteऔर कमेन्ट हम अभी भी नहीं दे रहे
एक एक शेर उम्दा है..गजल किसे कहते है यह इस गजल को पढ़कर सीख पा रहा हूँ.
ReplyDeleteखुद से ही बाजी लगी है..
जब रिवाजें तोड़ता हूँ...
रोया जब तन्हा वो तकिया ..
अर्थ शब्दों का जो समझो ..और
क्या कहें क्या सादगी है ..
सारे के सारे शेर मन को मदहोश कर देने वाले है...
गजल के अशआर कहूं या
जाम पे जाम पेश किये है
ये मदहोशी ये नशा उफ़!तूने
मयखाने तमाम पेश किये है
svsth hone aur sudur ganv jane ki badhai .
ReplyDeleteखुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है
.
जब रिवाजें तोड़ता हूँ
घेरे क्यों बेचारगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है
टिप्पणी करने में हमेशा ही पीछे रह जाता हूँ गौतम जी ! कुछ जन्मजात संस्कार है पीछा नहीं छोड़ते ! मतले पर तो सचमुच बिछ जाने का मन होता है ! आपकी बेचारगी और सादगी के क्या कहने ,तीनों शे'र लाज़बाब हैं ! ' शस्त्र ' और ' शास्त्र ' दौनों को एक साथ कुशलता से साधने वाले मेरे इस साधक को ईश्वर हर बदनीयती से बचाए ! ये चार हफ्ते बिटिया तनया और परिवार के साथ बहुत आनंद से गुजारें ! शुभकामनाएँ !
वर्तमान साहित्य मे प्रकाशित इस गज़ल के लिये बधाई । यह पत्रिका मेरे पास भी आती है ।
ReplyDelete"खुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है"
"करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है"
Do jagah comment karna bahut mushkil hota hai
1)jahan bahut dher saare comment hon...
2)jahan bahut kum comment ho !!
bus aapki jis sher' main aah wah nikal rahi hai wahi ctrl+c ctrl+v kar raha hoon....
Kya Dilli aana hoga?
agar main 4 baar please kahon ?
बढ़िया कहा है भाई पर टिप्पणियां और भी बढ़िया है बहरहाल घर भर में सभी को यथायोग्य कहें...
ReplyDeleteक्या कहें क्या सादगी है ..!
ReplyDeleteमै पूजा/तमन्ना ..क्षमा के बनाये blog URL का ही इस्तेमाल कर रही हूँ ...मैंने आपके दिए सारे comments पढ़े....... ...मन से शुक्र गुज़ार हूँ ..पता भी चलता है ,की , आप पढ़के comment कर रहे हैं ....हम दोनों ( मै और क्षमा ) लेखक नही , लेकिन अच्छा लेखन पढ़ के समझ तो सकते हैं ..जी करता है , उपरोक्त ग़ज़ल चुरा लूँ तो कैसा रहे ? कोशिश नाकाम रहेगी ...जानती हूँ ..आपके इतने सारे पाठक /प्रशंसक मुझे धर दबोचेंगे !
पढ़ा की, आप अस्पताल में हैं....और उस वारदात के बारेमे भी..बड़ा दुःख हुआ..अब आप घर आ चुके हैं या अस्पताल में ही हैं?
snehadar sahit
Poojaa/Tamanna
You have written that its been 3 days since you been relieved from the hospital clothes...does that indicate that you are back home or still in MH?
ReplyDeleteसोचो के एक बेचारे ऐसे आदमी को जो अखबार के संडे संस्करण में भी किसी कविता का पन्ना नहीं पलटता अपने दोनों के साथ कुछ घंटे गुजारना कैसा होता .... खालिस नॉन किताब बांचू. .तो उन्हें हमने कुछ यूं तैयार किया के भाई फौजी आदमी है ..इत्ती दूर इस वीराने में दिन रात बंदूको के साथ रह रहा है .शौकिया शायर है ....थोड़े बहुत शेर भी कह सकता है .....उस बेचारे डॉ की समझ नहीं आया ..के टेरेरिस्ट से लड़ने वाला घायल मेजर .इतनी रात गए शेर क्यों कहेगा...खैर बेचारा शरीफ आदमी है .....जो हमारे साथ कुछ घंटे झेल गया .....
ReplyDeleteगोया के वो पौने तीन घंटे रूबरू खूब गुजरे ..वो जगजीत ओर चित्रा की एक गजल है ..जो मुझे बेहद पसंद है ...यार को मैंने मुझे यार ने सोने न दिया.......उसमे एक शेर है न........"तंगिये वक्ते मुलाकात ने ...वही अपने साथ हुआ .....
"यूं भी आपकी जिंदगी में कई किस्म के लोग होते है एक वो जिन्हें आप बेहद पसंद करते है ...पर जिनके करीब जाकर आप शायद उतना पसंद नहीं करते दूसरे वो जिन्हें करीब से जानकार आप ओर ज्यादा पसंद करने लगते है .तुम दूसरे वाले हो......
हमारे होटल ओर गाडी का इंतजामात करने वाले एक सरदार जी थे ..दिलचस्प गर्मजोशी से भरे हुए ...ढेरो किताबे पढ़े हुए ..उन्हें भी इस महफ़िल में शरीक करना चाहता था ..पर उनकी बहन पंजाब से उस दिन घर आ गयी थी ....तुम्हारे आने से पंद्रह मिनट पहले उन्होंने मुझसे कहा .सर पिछले तीस सालो से श्रीनगर में हूं ..इत्ते सालो से आर्मी वालो को बस बन्दूक थामे बिना किसी एक्सप्रेशन के खड़े देखा है ...ये आपके मेजर साहब वाकई गजल लिखते है.?.....
बाई चांस नसीरुद्दीन शाह भी उसी होटल में थे..ओर उस रात पोएट्री ओर सूफी गीत की महफ़िल भी थी....सोचा था तुम रात भर रुकोगे तो उसी किताब पे सुबह एक उनका ऑटोग्राफ लेकर तुम्हे थमा देगे ........
पर कश्मीर की खूबसूरती में एक बड़ी खूबसूरत बात ये रूबरू होना भी रहा .....
तुम्हारे जाने के बाद मेरा डॉ दोस्त मुझे पूछता है .साले तुम पहली बार मिल रहे हो .मुझे तो लगा बचपन के दोस्त हो......
.
गोया
गुलज़ार की वही नज़्म आज मैंने गाडी में तीन बार सुनी है .....तेरे उतारे हुए दिन अब भी टंगे है लॉन पर......
बाते बहुत सी है ..सिलेवार लगाकर कहना बड़ा मुश्किल है ...वो कहना अर्श का बेवजह की मसरूफियत ...खैर ...
उसी कमीनी जिंदगी में वापसी हो गयी है.....आज दूसरा दिन है
will be meet next time with more time in hand.....
बेहद खुबसूरत अंदाज है यह लिखने का ..लाजवाब शुभकामनाएं ...खुश रहे स्वस्थ रहे यही दुआ है
ReplyDeletetippni...wo mein kaise karoon,khud to kuchh likh nahi paati. bas itna
ReplyDeletekahoongi ki aapki likhi hai to mujhe ajij hai ...
naina
"खुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है"
umda!
-gazal बहुत achchee लगी.
हर sher अपने आप में बहुत sundar है.
-Gazal ke prakashit होने par badhaayee.
-hospital से chhutti मिल गयी,jaankar santosh हुआ.
-आप ने anuraag जी से अपनी mulaqat का jikar न किया हो,मगर मैं देर से post पर pahunchi हूँ तो anuraag जी के comment में ही सब पढ़ लिया.
-हमारी भी यही शुभकामनायें हैं के blog jagat vivaadon से hat कर sakratmak disha में आगे badhe.
और sahyog और sadbhavna bani रहे.
क्या कहूँ गौतम भाई,मैं तो सीधे सादे से दिखने वाले इन शेरों के पेंचों में उलझ ठगी खड़ी रह गयी...
ReplyDeleteक्या लिखा है आपने ...वाह !! वाह !! वाह !! लाजवाब !! बेहतरीन !!
आपका यह संक्षिप्त अवकाश सुखमय हो..शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें... शुभकामनायें...
रोया जब तन्हा वो तकिया
ReplyDeleteरात भर चादर जगी है
ओये होए ...तकिया और चादर ......क्या मिसाल दी है ....!!
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी है
गौतम जी आप तो ग़ज़ल के मास्टर हो गए अब ....??
चेला गुरु से भी आगे निकल गया यूँ लगता है ....!!
अभी तो " ऊँड़स ली " ही मुंह से छूटा नहीं था और यहाँ फिर कत्ल कर मुस्कुराने लगे ....????
वागर्थ में छपने की बहुत बहुत बधाई ....!!
डाक्टर साहब से मुलाकात राज़ ही रह गई .....कुछ तो बताते ...हम तो इन्तजार कर रहे थे कोई लम्बी- चौड़ी पोस्ट होगी उन पर .....!!
नीरज जी हमें भी शक है कहीं ऐसी ही मुलाकात न हो .....खुलासा तो करना ही पड़ेगा ....!!
आ....हा..... ....डाक्टर साहब की टिप्पणी पर तो अब नज़र गई ....."सर पिछले तीस सालो से श्रीनगर में हूं ..इत्ते सालो से आर्मी वालो को बस बन्दूक थामे बिना किसी एक्सप्रेशन के खड़े देखा है ...ये आपके मेजर साहब वाकई गजल लिखते है.?.....".....हा...हा....हा.....
".....तेरे उतारे हुए दिन अब भी टंगे है लॉन पर......" ओये ...होए ...ये तो गज़ब की है ...मैं नहीं सुनी .....!!
इलाहा्बाद में नये पिटारे क्या खुल गये ....?
nahi..
ReplyDeletekoi comment nahi...
abhi aur jalnaa hai..
Dr. saahib ke mukkaddar se...
Aapke swasth hone par meri aur se shubhkamanayen !!Aapki gazalen aachi hai,pad kar maza aata hai Inhe jari rakhen !
ReplyDeleteDeepak
टेम्पलेट का नया रंग रूप सुंदर है !
ReplyDeleteअनुराग जी की का कमेन्ट पढ़ कर जो आनंद मिला है उसे लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता...मेरे लिए ये दोनों (अनुराग जी और गौतम भाई) इस दुनिया के इंसान नहीं लगते...उस खूबसूरत दुनिया के लगते हैं जिसकी सदियों से महज़ कल्पना ही की जाती रही है....ऐसी कल्पना जो शायद हकीकत बन पाए... अगर इन दोनों जैसे दस बीस और हो जाएँ...
ReplyDeleteनीरज
मेरे गरीब खाने पर दस्तक देने के लिए शुक्रिया, इस बहाने आपके महल का रास्ता मालूम चला उसकी दीवारों और दरवाजों से बरसते फूलों ने इस तरह स्वागत है कि अब यहाँ से लौटना फिर से वापस आने के लिए ही होगा...
ReplyDeleteरोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
शब्द, अर्थ, चादर, तकिया, सब गीले ही गीले.. फिर भी जिंदगी सूखी!
Sach kaha, sameer ji, ne gazal pahli 2 panktiyon me mukammal hai!
ReplyDeleteAapko wapasee( apne ghar) bahut mubarak ho!
Ye blog Kshma ne kewal is jeewani ke liye banaya tha..dua karen ki, lekhan sahi dhang se khatm ho ....jo, jo ghatnayen mere jeevan me ghat rahi hain,mujhe nahee maloom ki, kahani aage badhte hue, kya hoga un rahon me..!kya anjaam hoga..
Pooja/Tamanna
स्वस्थ्य होने पर शानदार आलेख
ReplyDeleteकहां भेजूं तारीफ़ का शिलालेख ?
छोटी बहर में गजल लिखना वाकई कठिन होता है। और आपने इसमें कमाल किया है। बधाई।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ग़ज़ल को ग़ज़ब ढा गई...बहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteAchchi lagi aapki ye ghazal ye sher khas taur se
ReplyDeleteकरवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
jald hi poorntah swasth hone ki shubhkaamnaon ke sath.
गौतम जी,
ReplyDeleteवाकई अच्छी ग़ज़ल है।
ये शेर ख़ास तौर पर पसंद आये
करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
अर्थ शब्दों का जो समझो
दोस्ती माने ठगी है
दर-ब-दर भटके हवा क्यूं
मौसमे-आवारगी है
कत्ल कर के मुस्कुराये
क्या कहें क्या सादगी
सादर
अमित
तुम शिफाखाने से निकले
ReplyDeleteआज कितनी ताजगी है
बस, यही कह सकता हूं। अब तक चुपचाप पढ़ता रहा,
पहली बार आवाज निकाली है।
सुदूर अंचल से कोई चुप्पी तोड़ती सी चीज़ सुनने की इच्छा है। मगर पहले स्वास्थ्य का ख्याल रहे।
शुभकामनाएं।
abhi kaise hain aap?? swasthya laabh lete rahiye.. meri taraf se dher saari duayen aur ye smile :)
ReplyDeleteखुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है ।
बेहेतरीन । आप जल्दी ही पूरी तरह स्वस्थ हों ।
बस जरा हवा खाने के लिये टहल रहा था इधर..और देख कर अचरज हुआ कि मेरा नाम कमेंट्स लिस्ट मे नही दिखा..और कोफ़्त भी..आया तो पहले भी था कुछ लिखने..(दिमाग मेरा जवाब देने लगा है जब-तब..चाइनीज मेड निकला )
ReplyDeleteआपके मअतले को तीन परतों की विडम्बनाओं मे खोलना चाहूँगा बस..
खुद से ही बाजी लगी है
हाय कैसी जिंदगी है
पहली..खुद से ही कम्पटीशन की आइरॉनी..जिसमे आप किसका पक्ष लेंगे..किस पर बेट करेंगे..!! ..दूसरी..जुएं की बाजी की बिसात पर बैठे होने की आइरॉनी..जहाँ पर फ़ैसला आपके स्किल्स, टैलेंट्स, अनुभव के हाँथ नही वरन् किस्मत के हाँथ है..तीसरी..दाँव पर जिंदगी के होने की आइरॉनी..जिसमे एक बार हारने के बाद दोबारा मे बाजी लगा कर नुकसान की भरपाई का कोई चांस नही..नॉक-आउट !!..और मदर ऑफ़ आइरॉनी यह कि तराजू के जब दोनो पलड़ों पर आप बैठे हैं..तो आप ही जब ऊपर जाओगे..आप ही नीचे आओगे..एक की हार तो तय ही है..और वो भी आप ही हो..
मुआफ़ कीजियेगा..कुछ उलटे-सीधे खयालात् आये तो लिख मारे!!
सारे शेर ही इतने खूबसूरत हैं कि अगर चोर आये चुराने तो चक्कर मे पड़ जाये..
करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
इस शेर की शिद्दत के लिये बस कुछ स्पीचलेस.......
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ReplyDeleteवो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गयी फ़ुरसत / हमें तो गुनाह करने को जिंदगी कम है...
ReplyDeletebahut sunder parichay se aagaz hua hai!!
दर्दे-दिल की लौ ने रौशन कर दिया सारा जहाँ
इक अंधेरे में चमक उट्ठी कि जैसे बिजिलियाँ
देवी नागरानी
खुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है...
wo Shahrukh baba ki baat yaad ho aie...
main jeeta hoon kyunki mera competition khud se hai...
par yahan pe to lagta hai ki main hara kyunki main haarna nahi chahta...
"Weired abstract but intersting"
Wo "Midnight's children" main dadaji ki naak ki tarah...
खुद से ही बाजी लगी है
ReplyDeleteहाय कैसी जिंदगी है...
wo Shahrukh baba ki baat yaad ho aie...
main jeeta hoon kyunki mera competition khud se hai...
par yahan pe to lagta hai ki main hara kyunki main haarna nahi chahta...
"Weired(comment, she'r nahi), abstract but intersting"
Wo "Midnight's children" main dadaji ki naak ki tarah...
रोया जब तन्हा वो तकिया
रात भर चादर जगी है
koi 'Heer' hogi chadar bhi....
(Best she'r of the ghazal)
करवटों में बीती रातें
इश्क ने दी पेशगी है
Peshgi? hmmmm....
"Iftda e ishq hai....."
जब रिवाजें तोड़ता हूँ
घेरे क्यों बेचारगी है
"Chor de hum aaj hi viez magar to ye bata...."
waise lagta hai poori ghazal bahut bade 'antradwand' se ubhri hai,
"So, Talking about only 'Bhav paksha': Musalsal ghazal (and yes i know what is the real meaning of musalsal ghazal)"