अमूमन हफ़्ते में एक ही पोस्ट लगाता हूँ मैं, लेकिन आज इस पोस्ट को लगाने की एक खास वजह है। विगत तीन दिनों से मन की विचलित हालत सबकुछ अस्त-व्यस्त किये हुये थी। ...और मन की ये विचलित हालत थी इस एक रिपोर्ट की बिना पर। गौरव सावंत एक बहुत ही सम्मानित और भरोसेमंद रिपोर्टर हैं इंडिया टूडे ग्रुप के और मैंने हमेशा उनकी रिपोर्टिंग फौलो की है। विशेष कर उनकी लिखी डेटलाइन कारगिल का मैं फैन रहा हूँ।
इंडिया टूडे ग्रुप की ही चर्चित हेडलाइन टूडे का अपना एक ब्लौग है Hawk Eye जिसके मुख्य कंट्रीब्युटर हैं हेडलाइन टूडे के स्टार कौरेस्पांडेन्ट गौरव सावंत । इसी ब्लौग पर उनकी 25 सितम्बर की प्रविष्टि है, जिसके बारे में मुझे जानकारी बस परसों ही मिली थी। किंतु उनकी ये प्रविष्टि बेसिर पैर की और इधर-उधर की सुनी-सुनाई बातों पर है। अब जिस घटना पर गौरव साब ने इतना कुछ लिखा है, उस घटना को मुझसे ज्यादा करीब से तो किसी ने देखा ही नहीं होगा। खुद वो सृष्टि-निर्माता सर्वशक्तिमान ने भी नहीं । ...और अब जो मैं अपने कमेंट के तौर पर इस स्टार रिपोर्टर की कथित सनसनिखेज प्रविष्टि पर कुछ लिखता हूँ उनके कमेंट बक्से में जाकर तो वो छपता ही नहीं। अपनी सैन्य नजदीकीयों और पारिवारिक पृष्ठ-भूमि का फायदा उठा कर सेना से जुड़े चंदेक खास शब्दों और टर्मिनौलोजी का इस्तेमाल कर लेने से रिपोर्टिंग भारी-भरकम और आकर्षक तो जरूर बन जाती है, लेकिन सत्य से परे होना कई लोगों के लिये दुख और पीड़ा का कारण बन जाती है- इस बात से गौरव साब को क्या मतलब हो सकता है भला।
मुझे नहीं लगता की मेजर सुरेश की दिवंगत आत्मा या पल्लवी या मुझे और मेरे संगी-साथियों को इस गलत और बेबुनियाद रिपोर्टिंग से पहुँचे कष्ट और व्यथा की खबर तक पहुँचेगी गौरव साब को। हिंदी कहाँ पढ़ते होंगे श्रीमान जी???...और मेरी इंगलिश में लिखी टिप्पणियों को उनका ब्लौग स्वीकार नहीं कर रहा। वैसे लिखने को तो ऐसी कई प्रविष्टियाँ मैं इंगलिश में भी लिख सकता हूँ और गौरव साब से कहीं बेहतर इंगलिश में, लेकिन न तो इतना समय है मेरे पास और न ही इच्छा-शक्ति।
चलते-चलते, गौरव साब से बस इतनी-सी इल्तजा है कि get your facts and figures straight sir before writing such reports. for you it may be just the matter of sensationalisation and increased TRP...whereas for others it may be pride-honour as well as pain & death !
उन्हें जज्बातों से परे खबर बेचने की जल्दी रहती है और वो ही नजर में रहता है.
ReplyDeleteज़नाब, इसका नाम हैडलाइन टूडे के बजाय मैडलाइन टूडे होना चाहिये था...
ReplyDelete्जानते हैं गौरव...हिंदी से अन्य भाषाओं में ब्लोग लिखने का एक ये फ़ायदा भी होता है ..जो मन में आए लिखे जाओ। कभी अपनी फ़िल्म प्रमोशन के लिये, तो कभी अपनी टीआरपी बढाने के लिये। किंतु जब इन तथाकथित स्वंयंभू स्टार ब्लोग्गर्स को देखता हूं ये सब करते हुए तो तरस ही आता है। हां किसी सैनिक कार्यवाही, जिसमें देश पर जान देने के लिये हमारे अपने तैयार हों , उसके बार में भी , कुछ भी लिख डालना , मुझे गुस्सा दिलाता है। शायद इसलिये कि परिवार में अभी भी फ़ौजी ही भरे पडे हैं। न जाने क्यों लगता है ऐसे लोगों के कारण ही ये नियम बन जाना चाहिये हर घर से एक , फ़ौज में जरूर होगा। कम से कम इन जैसों को कुछ एहसास तो होगा। लिंक से मैं भी पहुंच कर देखना चाहूंगा कि क्या लिखा है। दीवाली पर बच्चों को स्नेह, साथियों को नमस्कार कहना और अपना ख्याल रखना।
ReplyDeleteगलती हम लोगों की भी है जो ऐसे रिपोर्टरों को उनके सिर्फ कुछ अच्छे लेख के पढ़ लेने के बाद विश्वसनीय बना देते हैं. ये भी उन्ही लोगों में से हैं जो सड़क पे खड़े होके चिल्लाते हैं-''आइये साब, आइये साब...हमारे होटल(हकीकत में ढाबे) में तशरीफ़ लाइए यहाँ का खाना सबसे अच्छा है.''
ReplyDeleteऐसे जाहिलों को बेनकाब करने के लिए बधाई गौतम सर और जल्दी ही आप अस्पताल से बाहर आयें :)
दीवाली की शुभकामनायें.
जी हाँ!
ReplyDeleteऐसा करने से ही तो अखबारी कारोबार फलता-फूलता है।
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
आप खुद उस ऑपरेशन का हिस्सा होकर इतनी संयमित पोस्ट लिख रहे हैं।
ReplyDeleteवहीं दूसरी ओर बैसिरपैर की रिपोर्टें देने वाले रिपोर्टरों की चिंता यह नहीं हैं कि अब उस शहीद का घर कैसे चलेगा, बल्कि उनकी चिता यह है कि यदि वह सब कूडा कचरा न लिखें तो उनका घर कैसे चलेगा।
आखिर कुछ तो संवेदनशीलता का परिचय देते गौरव सावंत।
शर्म शर्म ,एक बार कोई ऐसा ओपरेशन इन्हें हैंडल करने को दे दिया जाय अपनी औकात समझ में आ जायेगी ! मैं इन घटनाओं की अखबारी रिपोर्टों पर ध्यान नहीं देता !
ReplyDeleteसार्थक सटीक चिंतनमयी संवेदी मगर संयमित पोस्ट के लिये साधुवाद
ReplyDeleteना चाहते हुए भी पिछले दिनों चुनावों में व्यस्त रहा इक्का-दुक्का किसी के लैपटाप पर बैठने का चांस मिला तो आपकी खबर मिल गयी थी दो-तीन बार रात के समय पर ९ से पहले फोन किया तो मोबाइल स्विचआफ ही मिला फिलहाल तो यह जान कर कर तसल्ली है कि आप सकुशल हैं स्वास्थ्य लाभ पर हैं शुभकामनाएं
Good that you cared to check media nonsense!मैं सिर्फ़ इतना ही कहुंगा,बकौल दुश्यन्त कुमार:
ReplyDelete’ये खतर्नाक सच्चाई नही जाने वाली,
इस देहलीज़ से ये काई नही जाने वाली.
तू परेशां बहुत है,परेशां न हो,
इन खुदाओं की खुदाई नही जाने वाली.’
अभी गौरव की रपट पढ़ी। हमको अपने यहां के डिसास्टर मैनेजमेंट की कवायदें याद आती हैं। लोग बड़े-बड़े धांसू-धांसू उपाय बताते हैं कि ये हुआ तो ऐसे करेंगे, वो हुआ तो वैसे करेंगे। लेकिन जब कुछ होता है तो वे सब हकबकाये से देखते हैं- बताओ अब क्या करें?
ReplyDeleteई सब डिसआस्टर मैनेजमेंट के मैनुअल और समझाइस जो गौरव बता रहे हैं उनका जबाब कर्नल रमन ने दिया है। आप मस्त रहिये जी।
गौरव की रपट बांचकर अनायास नंदन जी की लाइने याद आती हैं:
अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी
किरणें ऐसे करें गवाही जैसे परदेशी
सरेआम नीलाम रोशनी ऊंचे भाव चढ़े
भरी धार लगता है जैसे बालू बीच खड़े।
"Content blocked by your organization "
ReplyDeleteThis is what i get when i click Provided link sitting in my office, So not able to see the (25sept) link thus can't comment.
However (in general) all the 4 pillers of nation are seems to be affected by dampness. It's just the matter of time whne they will fall and how ....
The big Q. is which will fall first?
Gautam sir i have written a 'treveni' yesterday , may be it would have some relevance with this post:
"थोडा सा नमक और डाल दिया पतली सी दाल में,
खुशबू के लिए दो लॉन्ग और इलायची,
'प्रस्तुत है आज की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट'."
Wiil comment on Gaurav's post after I reach Home.
ReplyDeleteRegards.
John !
PS: are you done with 'secret' then let me recommend you one more book...
'Shantaram.'
नीचे बैठकर ऐसी बाते करना आसान है.. ऊपर वादियों में हर पल सोच बदल जाती है.. गौरव सावंत की एक बात से तो सहमत हूँ कि देश के सिपाहियों की जान बेशकीमती है.. लेकिन वहा क्या होता ?कैसे होता है ?किस सिचुएशन को किस हिसाब से फेस किया जाता है..? इन सब बातो के बारे में ज्यादा नहीं जानता.. इसलिए इस पर कोई भी टिपण्णी करना मुनासिब नहीं होगा.. वैसे इन लोगो के पास इतनी डिटेल आती कहाँ से है ?
ReplyDeleteसंवेदन-शून्य हो चुके लोगों की असलियत को उजागर करने के लिए जो आपने यह रचना की है वह आपके बेख़ौफ चेतना का प्रमाण देती है।
ReplyDeleteदुष्यंत कुमार की दो पंक्तियां कहना चाहूगा इस पर
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
हम सब आपके साथ हां।
आप सकुशल वापिस आ गए हैं, बहुत अच्छा लगा दीपावली के लिए शुभकामनाएँ
ReplyDeleteखाली एक लाइन...
ReplyDelete"चिरकुट है सब."
उन्हें बस अपनी टी.आर.पी. की जल्द बाजी से मतलब रह गया है...किसी की जिंदगी के पहलुओं पर वो बस अपनी नज़र बयाँ करते हैं...कभी कभी बहुत गुस्सा आता है
ReplyDeletehamara media tantra pure business karne laga hai sir.. unhein is baat se kya matlab ki unki khabar se unpar kya asar padega jo is khabar se seedhe taur par jude hain (udaharan ke liye aap)..
ReplyDeleteअब जिस घटना पर गौरव साब ने इतना कुछ लिखा है, उस घटना को मुझसे ज्यादा करीब से तो किसी ने देखा ही नहीं होगा। खुद वो सृष्टि-निर्माता सर्वशक्तिमान ने भी नहीं । ...
aapki baaton se lag raha hai ki aap bhi us operation mein shamil the..
phir bhi aap itni shalinta ke sath apni baat rakh rahe hain.. aur gaurav sahab apne india today group ki ya shayad apni publicity ke liye bina purna satya jaane likhe ja rahe hain.. sharm aani chahiye unhein..
संबंधित आलेख में कल्पनाएँ बहुत है। यह भारत में आम बीमारी है कि अधिकांश निष्कर्ष मनोवादी तरीके से प्रस्तुत किए जाते हैं। आप को अधिक परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।
ReplyDeleteमुझे तो नही लगता कि कोई बुद्धिजीवी व्यक्ति गौरव टाईप पत्रकार की बात पर ध्यान देगा.... जब पहले भी गौरव जी की इस पोस्ट को पढ़ा था तब भी सिर्फ पल्लवी जी का ही ध्यान आया था। क्योंकि उन्होने जो खोया है उसके बाद हैंडल विथ केयर की ज़रूरत है कुछ दिन....! ऐसी भड़काऊ चीजें खुद और परिवार को संभालती उस महिला की मानसिक स्थिति को हिला देगी.. बस ये कष्ट था।
ReplyDeleteभावनात्मक वाक्यों के तड़के लगाने के पहले पत्रकार ने ये नही सोचा।
कर्नल साहब का कमेंट इस लिये पब्लिश कर दिया उन्होने क्योंकि उस आपरेशन से उनका कोई संबंध नही था.... जिस कल्पना को बंधु लिख रहे हैं, उसे मेजर राजरिशी ने आँख के सामने देखा नही है खुद पर झेला है। अब उनका कमेंट कैसे पब्लिश कर सकते हैं भला...????
आप का तनाव में आना लाज़मी है .......!!!
गोतम जी, ऎसे लोगो को ना तो शर्म आती है, ना न्ही देश से प्यार बस अपनी पोजिशन बढाने के लिये देश ओर देश के रखवालो की भावनाओ से खेलते है. आप ने इब्न्की पोल खोल दी वरना तो जनाब तीस मारखा ही बने रहते.
ReplyDeleteअब केसे है आप , अगर आप का फ़ोन ना० होता मेरे पास तो जरुर आप से बात हो जाती. आप का धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को दीपावली की शुभकामनाये
क्या कहें मेजर साब खुद को गाली देने को मन करता है,खबर बेचने के चक्कर मे पता नही हम क्या-क्या बेच देतें है।
ReplyDeleteहादसे इतने है शहर मे मेरे,
कि अख़बारो को निचोड़ो तो,
खून टपकता है।
वो केवल पैसा कमाने में लगे हैं...
ReplyDeleteओर शायद उन्हें इसी बा का गौरव है....
पर आप चिंता ना कीजिये गौतम भाई...
हमारा गौरव तो आप हैं...
ओर इस गौरव को जिस दिन सरहद पे भेज दिया ना और एक-दो गोली इनके कान-वान के पास से गुज़र गई तो इन्हें पता लग जायेगा की सच क्या है ओर जो वो छाप रहे हैं वो क्या है...
मीत
क्या कहेंगे ऐसे लोगो की मानसिकता को ..अपनी बात को कहने के लिए किस किस तरह से यह पेश करते हैं ..और जो ऐसा लिखते हैं वह क्या समझेंगे किसी के दर्द को ..अफ़सोस होता है ..
ReplyDeleteइसलिए तो कहता हूँ आकाशवाणी सुनिए जनाब... जो कहता है संप्रभुता से कहता है... मन उतना तेज़ नहीं है लेकिन खबर पक्की होती है... शायद रैना जी सुन रहे हों... की पोस्टिंग हो गया ?
ReplyDeleteआपसे सहमत.
हर्बरिया रिपोर्टिंग जी... ! बॉस को खुश करे खातिर...
गौतम कहां फिजूल इन पत्रकारों के बारे में लिख कर अपनी क़लम को गंदा कर रहे हो । ये बात मैं कह रहा हूं जबकि मैं स्वयं पत्रकारिता से जुड़ा हूं । लेकिन ये बात बिल्कुल सही है कि आजकल जो कुछ हो रहा है वो पत्रकारिता तो है ही नहीं । इसलिये फिजूल में अपनी क़लम की पवित्र स्याही को गंदे नाले में मत बहाओ, नाले का कुछ नहीं होगा किन्तु हमारी ऊर्जा तो व्यर्थ होगी ही । जानते हो न ये वो ही लोग हैं जो पिछले साल ये भूलकर कि होटल ताज का सीधा प्रसारण आतंकियों की मदद कर रहा है, एक्सक्लूसिव दिखाने में जुटे थे । यदि मेरे हाथ में कुछ होता तो मैं अजमल कसाब के साथ साथ सारे टीवी चैनलों और उनके पत्रकारों पर भी राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाता । सबको सजा दिलवाता । किन्तु हम तो उस युग में जहां बकौल हरिओम पंवार ' बौने लोग पर्वतों को डांटते हैं क्या करें, हंसों को उपाधि गिद्ध बांटते हैं क्या करें ।
ReplyDeletebahut sahi kiya,kalam ko hathiyaar nahi banaya to desh ki aan-baan-shaan ko trp me jodnewalon ki sankhya anginat hoti jayegi......is virodh ka main samman karti hun.....
ReplyDeleteकामनाओं की वर्तिका जलानी है .....
कुछ दीये खरीदने हैं,
कामनाओं की वर्तिका जलानी है .....
स्नेहिल पदचिन्ह बनाने हैं
लक्ष्मी और गणेश का आह्वान करना है
उलूक ध्वनि से कण-कण को मुखरित करना है
दुआओं की आतिशबाजी ,
मीठे वचन की मिठास से
अतिथियों का स्वागत करना है
और कहना है
जीवन में उजाले - ही-उजाले हों
गौतम,
ReplyDeleteकुछ लोग होते है जो बिना हल्मेट के मोटरसाइकिल पर १०० kmph की स्पीड से चलते हुए कान के बगल से गुजरती हुयी हवा की आवाज़ की सरसराहट और किसी ज़ंग के मैदान में कान के बगल से हवा को चीरती हुयी निकलती गोली की आवाज़ की सरसराहट को एक ही समझते है !
एसे लोगो को किसी भी फौजी ऑपरेशन पर भेज दीजिये, धमाको की आवाज़ तो फ़िर भी आएगी पर बमों के फटने की नहीं कुछ और फटने की .................... आशा है आप समझ गए होगे !
अपने देश की यह बहुत बड़ी समस्या है, जो सब जानता है वो कुछ बोलता नहीं, जो कुछ नहीं जानता वो बहुत बोलता है !
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
GET WELL SOON, BUDDY !
इंडिया टुडे पर मैं भी काफी भरोसा रखता था किसी ज़माने में .......... ख़बरों में अधिकतर उसको ही सुनता था ..... पर पिछले १ वर्ष से उनके इकतरफा प्रसारण को देख कर उनकी विश्वसनीयता से दिल उठ गया है ........ अपनी टी.आर.पी. बढाने और निजी फायदे के चलते ये कुछ भी कह सकते हैं .......
ReplyDeleteसिर्फ़ और सिर्फ़ शर्मनाक.
ReplyDeleteआपको दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
मैं गौरव जी से इतना कहना चाहूँगा की आप पत्रकारिता से जुड़े हैं और आप को कुछ लिखने से पहले मुद्दे की तह तक जाना ज़रूरी है. मेरी जहाँ तक जानकारी है कोई भी ऑपरेशन केवल कुछ हलके सबूतों के आधार पे नहीं कर दिया जाता खासकर एक संवेदनशील जगह में, जहाँ पे हर चीज़ के पीछे पुख्ता सबूत और वजूद होता है. सवाल उठाना अच्छा है मगर बिना कुछ सोचे समझे हालातों को जाने बिना ये बेवकूफी ही कहलायेगा पत्रकारिता नहीं. कोई भी चीज़ लिखने में बहुत आसान होती है की घर को उड़ा देना चाहिए था मगर अगर ये किया जाता और दुर्भाग्यवश नागरिक उसमे होते और वो मारे जाते तब आप ही इस लेख की बजाय दूसरा लेख लिख कर इस प्रयास की आलोचना कर रहे होते.
ReplyDeleteये बेचने के लिए कुछ भी लिखते हैं.. कुछ भी ! मुझे लगता था कि अपनी आर्मी कम से कम इतनी छुट नहीं देती होगी इन्हें. वैसे जब मनगढ़ंत ही लिखना है तो क्या किया जा सकता है.
ReplyDeleteआपके बारे में खबर सुनने के कुछ दिनों बाद ही अपने एक मित्र की खबर सुनी.. वह वायुसेना में फाईटर पायलट थे.. उनकी मौत मिग 21 उड़ाते वक्त दुर्घटना में हुई.. उस दुर्घटना के बारे में भी जो बातें समाचार चैनलों पर सुना-पढ़ा, वह कहीं से भी उससे मेल नहीं खा रहा था जैसा कि उनके परिवारजनों ने बताया.. क्या कहें इन टी.आर.पी. के भूखों को?
ReplyDeleteखबर ऐसी लिखी गयी है जैसे की वहीं मौजूद थे...क्या कोई प्रतिबन्ध नहीं है सेना की कार्यवाही के बारे में ऐसे लिखने पर? कलम उठा कर लिखना बहुत आसान होता है, असल में हालत कैसी होती है सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में अपनी सेना पर ऊँगली उठा कर क्या हासिल करना चाहते हैं ये लोग...सिर्फ गन्दी टीआरपी. मैंने तो टीवी देखना ही बंद कर दिया है, अख़बार में कुछ पढ़ती हूँ या गूगल न्यूज़...उसपर भी भरोसा नहीं होता...१५ मं ऑफ़ फेम बस.
ReplyDeleteसिर्फ टी आर पी बाढाने के लिये ये लोग कुछ भी कर सकते है ............इसके अलावा.....राज भाटिया जी के बातो मै बी सहमत हूँ......दीपावली की ढेरो शुभकामनाये !
ReplyDeleteक्या कहूँ गौतम जी आज का मीडिया बहुत ही बदल गया है ये साँप को रस्सी और रस्सी को साँप बनाने की कला जान गया है और उस कला को बेचता है। और इसी बेचने की कला के कारण लोगो का विश्वास इनके ऊपर से कम होता जा रहा है पर अपने जाँबाज फौजियों पर विश्वास आज भी बना हुआ है। इनकी कही बात पर आप काहे परेशान होते है। पर आपकी पीड़ा को भी समझता हूँ। बस अपना ध्यान रखिए।
ReplyDeletegautam ji , main pankaj subir ji ki baat se sahmat hun , bekar ki baton men mat ulajhiye.
ReplyDeletedeepawali aur dhanteras ki hardik shubhkaamnayen ishwar apke hriday ko adhyatm ke deepak ke prakash se prakashit karen.
काश, गौरव सावंत ने भी कोई शपथ ली होती कि बिना पूरी जानकारी के और बिना तथ्यों कि अच्छी तरह जांच किये,वह कोई रिपोर्ट नहीं लिखेंगे तो पाठक इस भ्रामक रिपोर्ट से बच जाते...पर पत्रकारिता में तो खुली छूट है....जो मन चाहे लिखो, वाहवाही बटोरो और दूसरों को अपने शपथ की याद दिलाओ.अपने सुसज्जित ए.सी.कमरे में बैठकर सुनी सुनाई बातों पर रिपोर्ट लिखना और जान की बाजी लगानेवालों को निर्देश देने की कोशिश से कोई ओछी बात हो ही नहीं सकती...शर्मनाक है यह स्थिति..
ReplyDeleteजानकर कोई हैरानी नहीं हुई...हमारे शहर की एक दो घटनाओ को नेशनल न्यूज़ चैनल ने जिस तरह से प्रसारित किया था सरे फेक्ट गडबडा गए थे ...प्रसून जी के ब्लॉग पे एक साल पहले मैंने लम्बी चौडी टिपण्णी की थी ....दरअसल बाईट की हड़बड़ी इतनी ज्यादा रहती है की कई बार खबर की सत्यता को भी नहीं परखा जाता ...
ReplyDeleteमुझे याद है आज से कुछ साल पहले एक न्यूज़ चैनल ने दिल्ली के एक सज्जन को अपनी भांजी के रेप का गुनाहगार घोषित कर दिया था ...उन्होंने आत्महत्या कर ली...दो दिन बाद पता चला लड़की अपने प्रेमी के साथ भाग गयी थी .इसलिए इल्जाम लगा या था दुःख की बात थी उसके मामा ने उसे पाल पोसकर बड़ा किया था ..
लेकिन देश की सुरक्षा से जुड़े ..जवानो के मनोबल से जुड़े मसलो पर ..कही तो कोई संपादन होना चाहिए ....अख़बार में तो फिर भी खेद होता है ...इलेक्ट्रोनिक मीडिया में......?
मैं गुरु जी की बात से २०० प्रतिशत समत हूँ ... पत्थर आसमान में उच्चाले जाते है , इशारा काफी है आपके लिए ... हमारे मैनेजमेंट पे पढाया जाता है सेल्स और मार्केटिंग दो तरह के होते है सेल्स में आपको सामान बेचना होता , चाहे जैसे भी हो इसमें आपको कस्टमर के तरफ से नहीं सोचना होता है उसके सतिस्फाच्शन के बारे में नहीं सोचते जबकि मार्केटिंग में आप कस्टमर को खुश करते हो अपने प्रोडक्ट से ... आज के इस प्रजातान्त्रिक देश में मीडिया भी सिर्फ सेल्स करती है अपने घटिया प्रोडक्ट का और कैश करती है .. कल किसी चॅनल पे मैंने देखा पत्रकार महोदय खिलाडिओं के कमाई के बारे में बात कर रहे है के कौन कितना कमाता है साल में मगर अपनी कमाई के बारे में कभी नहीं कहते के कितने पैसे लेते है ये लोग ... मुझे या शो देख हसी आई और मैं उठ के चल दिया ,.. तो वाजिब है सारी चीजे आजकल सेल्स की जाती है मार्केटिंग नहीं ... इसलिए इस तरफ ध्यान देने की बात नहीं है ... भाभी जी की बात का ध्यान दो और वो बुलेट और टाँके संभाल के रखो ... और मुझे भी बताना के आखिर उन्होंने इसे ही कुन माँगा .. अगर मुझे जानने का हक़ है तो मेरे दिमाग में उस दिन से ये चल रहा है ... सेहत की बेहतरी के लिए दुआएं ...
ReplyDeleteअर्श
गौतम जी ,
ReplyDeleteये तो सरासर चोरी और सीनाजोरी वाली बात हुई ....रिपोर्टर है तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें कुछ भी लिखने का अधिकार मिल गया ....और उस पर आपकी टिप्पणी प्रकाशित न करना तथा अपनी गलत बयानी पर माफ़ी न माँगना उसके कृत्य को और घिनौना बनाता है .......इंडिया टू डे इस रिपोर्टर की सुध लेनी चाहिए ....आप इस बात को उन तक पहुँचायें ....वीर कभी झुकते नहीं सच्चाई को सीना तान के कहते हैं ......!!!
"Sources say - the officer sought permission to do the same. It was denied."
ReplyDelete.......
"Sources say, the para commandoes once again requested permission to "bring down the house". Again the army needs to inquire who turned down that request and why. The para commandoes went in and drew in heavy fire. Ultimately the two terrorists were killed. But at what cost."
who the f@#$ing this source is nyways !!
Gautam sir these discussions makes few things taken for granted....
.....The worst part of the entire story is "You giving the link of this blog"
(chota muh badi baat to nahi ho gayi na?It's just that what i feel)
-John.
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं ? कहाँ हैं ? कहाँ हैं ? कहाँ ..हैं ?
ReplyDeleteसिर्फ बातों से हिमालय सुरक्षित नहीं रहता --
गोलीयां सीने पर झेलिये फिर बातें कीजिये
शहीदों की चिताओं पर लगेंगें हर बरस मेले
वतन पे मरनेवालों का यही बाकी निशाँ होगा
सांच को आंच कहाँ ...........
आप स्वस्थ हो जाएँ बस !
- लावण्या
SAHI LIKHA AAPNE,YE BECHARE KYA KARE INKE UPAR BHI INKE ENGLISHPARAST AAQAON KA PRESSURE RAHTA HAI, JINKA INDIA AC DRAWING ROOM MAIN HAIN.....BAQI TO SABNE KEH HI DIYA HAI...
ReplyDeleteगौतम जी विचलित न हों । सनसनी वाले यहाँ भी हैं । ये लोग घटना का सिरा पकड़कर ताना बाना बुनने मे महारत रखते है । गोयबल्स के इन वंशजों को सिर्फ धिक्कारा जा सकता है ।
ReplyDeleteगौतम जी, अखबार और टी.वी की खबरों की विश्वसनीयता को मैं 5-6 पर रखती हूँ 1-10 स्केल पर । पर इंडिया टुडे वालों को तो अपनी विश्वसनीयता को बनाये रखना चाहिये । दुखद है ।
ReplyDeleteआप खुद शामिल थे उस दृश्य में इसलिये पत्रकारिता का सच हमें भी पता हो गया. अधिसंख्य पत्रकार यही कर रहे हैं. इसमें अचरज जैसी कोई बात नहीं. खैर तबीयत कैसी है? नीले/सफेद चोगे से बाहर आये या नहीं.
ReplyDeleteदीपोत्सव की कोटि-कोटि शुभकामनाएं
बढ़ा दो अपनी लौ
ReplyDeleteकि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
gotamji,
ReplyDeleteachhi tarah se jaanta hu me is baazaru, lobhmai aour khud ko star banane ki kavayad vali patrakarita../
isi biradari se hu me bhi. aour achhi tarah jaanta hu....खुद वो सृष्टि-निर्माता सर्वशक्तिमान se bhi jyada achchi tarah se../ afsos hota he/ kintu meri kalam filvaqt tak is dour se lad rahi he..garv he/
gourav saab ki report mene padhhi thi.., abhi fir padhhi..,zameer bech kar kaam karna bhi koi kaam he bhala./ kher..
un tak bhi pahuchani chahiye..ye aavaz.. me pryatn karunga.
-------
deep parva ki aatmiya shubhkamnaye.
गौतम जी आप के दुःख को अच्छी तरह समझा जा सकता है...टी.आर.पी. के इस गोरख धंदे ने पत्रकारिता को गर्त में पहुंचा दिया है...गुस्सा आता है... टेलीविजन ने इसका सबसे अधिक दुरुपयोग किया है...काश कोई तो ऐसा हो जो इन जैसे लोगों के चेहरों से नकाब उठा कर भरे बाज़ार में तमाचा मार दे...
ReplyDeleteनीरज
मैं तो सिर्फ इतना कहूँगी कि धिक्कार है ऐसे पत्रकारों पर और खबरिया चैनलों पर । ये लोग लाशों के ढेर से भी पैसे कमाते हैं बाकी बातें तो अलग हैं। आप विचलित न होईये। अगर पल्लवियाँ इनकी अपनी माँबहन बेटियाँ होती तब इन्हें पता चलता । आपको दीपावली की शुभकामनायें और् ढेरों आशीर्वाद्
ReplyDeleteमैं तो सिर्फ इतना कहूँगी कि धिक्कार है ऐसे पत्रकारों पर और खबरिया चैनलों पर । ये लोग लाशों के ढेर से भी पैसे कमाते हैं बाकी बातें तो अलग हैं। आप विचलित न होईये। अगर पल्लवियाँ इनकी अपनी माँबहन बेटियाँ होती तब इन्हें पता चलता । आपको दीपावली की शुभकामनायें और् ढेरों आशीर्वाद्
ReplyDeleteगौतम जी..
ReplyDeleteआपको और सभी पढने वालों को दिवाली मुबारक...
हम बड़े हैरान थे, इतना लंबा चौडा अंग्रेजी में लिखा लेख देख कर...
पहले नरमी से हिंदी में..फिर जैसे तैसे अंग्रेजी में....
और आखिर हार मान कर अपनी वाली " शुद्ध हिन्दी " में..... कई बार कमेन्ट देना चाहा हमने उस पर....
पर जनाब एकदम से अपने मकान की भीतर से कुण्डी चढाये बैठे रहे ..और बस..बैठे ही रहे...
जो गुस्सा आया हम ही जानते हैं....
बाद के ''शुद्ध हिंदी '' वाले कमेंट्स तो खैर शायद छपने ही नहीं थे...
:)
लेकिन बड़ा अजीब लगा ये रवैया...
जो मन में आये
कुछ भी छाप दो अपने ब्लॉग पर
फिर लगा दो मोदिरेशन ......!!!!!
कमाल की बेहूदगी है
जो एक कमेन्ट तक बर्दाश्त नहीं कर सकते , उन्हें क्या हक़ है किसी को कुछ भी कह देने का....???
जब आप एक पोस्ट लिख रहे हैं .. सब के लिए...तो किस लिए सब लोग उस पर अपनी राय नहीं दे सकते,,,,??
आज बस सीधे सादे शब्दों में ही कहना है...
गौरव सावंत जैसे पत्रकार ...
आदमियत के नाम पर ,पत्रकारिता के नाम पर, साहस के नाम पर, लेखन के नाम पर,
और
ब्लोगिंग के नाम पर..
धब्बा हैं.. धब्बा हैं,,
और बस धब्बा हैं.....!!!
शुक्रिया मेजर...ये पोस्ट डालने का...हमने बहुत तड़प के आपकी पिछली पोस्ट पे कमेन्ट दिया था....
manu said...
nayee post dal do mejar saahib...!!!
ham kai baar padh chuke is post ko...
har jagah kahaan chhapte hain hamaare comments.....?????
ap ke alaawaa aur kaun sunegaa hamaari...??
kaun manegaa hamaari zid ko...??????
sab ke sab ...darpok hain...!!!
14 October, 2009 11:35 PM
Meri ciggrette pe nazar lagane wale....
ReplyDeleteTu bhi Ek-ek Drag ko tarse !!
bade khush ho rahe the aap na ki galiyon main hi ho pa raha hai ....
...'Vishwast sutron'(Sources Says !!) dwara gyat hua hai ki aap bhi.....
...Wo 5-6 baar nahane jaana !!
...Wo 10-12 baar wash room jaana....
...Wo karna daaton ko ghadi ghadi Saaf !!
Raaz ki baat agar keh doon to !!
('Secret' Complete ho gayi?)
Diwali ki hardik shubhkaamnaiyen !!
Aapko aur aapke saare pariwaar walon ko !!
Aur haan kal accha gana chal raha tha....
"Koi Sapno ke deep jalaiye"
-With Due respect forgive me for any 'Chota muh badi baat !'
आपका क्रोध जायज है गौतम जी , इस भयानक आपाधापी और अराजकता के दौर पत्रकारिता महज़ टीआरपी बटोरने के सनसनीखेज़ हंगामे में बदल गयी है ! सारे कुए में ही भांग पड़ी है किस किस पर गुस्सा उतारोगे ! फिल्म प्रहार का मेजर चौहान बरबस याद आ जाता है ! मैं सुवीर जी से सहमत हूँ कि अपनी कलम को गन्दा मत करो ,सूर्य पर फेंकी धूल देर से ही सही खुद के मुंह पर ही गिरती है !
ReplyDeleteअंततः आपको दीपावली की शुभकामनाएँ ,नवल दीपमालिका आपको और आपके परिवार को जगर मगर करे यही कामना है !
मैंने तुम्हारा ये लिंक गौरव के ब्लाग पर कमेंट के रूप में भेजा है। देखते हैं अप्रूव होती है कि नहीं।
ReplyDeletegoatmji
ReplyDeleteaapka dard samjh skte hai .aapne bajaru ptrkarita ke virodh me aavaj uthai hai aur ye avaj dooor tak jayegi aisi kamna karte hai aur aapke sath kai log khde honge .
abhar
aap sheeghra svsth ho .deepavali manglmy ho .
गौतम साहब
ReplyDeleteऊँड़स ली तू ने जब साड़ी में गुच्छी चाभियों वाली
हुई ये जिंदगी इक चाय ताजी चुस्कियों वाली
कहाँ वो लुत्फ़ शहरों में भला डामर की सड़कों पर
मजा देती है जो घाटी कोई पगडंडियों वाली
भाई क्या कहने
मतला तो इतना बेहतरीन है की क्या कहने......नए मिजाज की ग़ज़ल कहने का आपका हौसला दाद के काबिल है.
गौतम साहब
ReplyDeleteऊँड़स ली तू ने जब साड़ी में गुच्छी चाभियों वाली
हुई ये जिंदगी इक चाय ताजी चुस्कियों वाली
कहाँ वो लुत्फ़ शहरों में भला डामर की सड़कों पर
मजा देती है जो घाटी कोई पगडंडियों वाली
भाई क्या कहने
मतला तो इतना बेहतरीन है की क्या कहने......नए मिजाज की ग़ज़ल कहने का आपका हौसला दाद के काबिल है.
Hi Sir this is what i have posted to gaurav
ReplyDeleteHi Gaurav
First and the foremost I must ask you a question. What was the aim of your blog?
1. To show how the operation was ill planned?
2. Or to show how the top brass of army is not concerned of their forces?
3. Or to show the inefficiency in training and conduct of our brave soldiers?
4. Or to just gain popularity since this time the death of a martyr was covered well by most of the TV channels?
5. Or to increase the agony of her wife by blaming the entire incident to the superiors of army?
I must appreciate the the amount of homework you would have done to get the facts and figures of the incident and there are definitely lessons to be learnt but you must realize that even Major Suri would have criticized your blog had he been alive.He was a brave soldier and died a death which every soldier and officer of Indian army is prepared to die while serving in J&k.
So we as Indians at this critical juncture where the militancy/insurgency/naxalism is on rise must not lose faith in the intent of our brave army since this is not going to help to the morale and future of the forces.We should be more responsible and think Big.
At the same time I would like you(MEDIA) to play a vital and motivating role for the Army.Nothing can be achieved without sacrifices.We are at war since 1989 ,but the only difference that it is only affecting the lives of armymen and their families.How does it bother a common man,a software engineer,a lawyer,a politician,a beurocrat,a student of what the situation in J&k is?Ya only to an extent that they cannot come here to enjoy the beauty of mountains in summers…..Nothing more than that.
So let those 0.14% of our true countrymen who are in business decide what is the best means to tackle the enemy rather than doing the postmortem of a particular incident and doubting their ability.
Hi Sir this is what i have posted to gaurav
ReplyDeleteHi Gaurav
First and the foremost I must ask you a question. What was the aim of your blog?
1. To show how the operation was ill planned?
2. Or to show how the top brass of army is not concerned of their forces?
3. Or to show the inefficiency in training and conduct of our brave soldiers?
4. Or to just gain popularity since this time the death of a martyr was covered well by most of the TV channels?
5. Or to increase the agony of her wife by blaming the entire incident to the superiors of army?
I must appreciate the the amount of homework you would have done to get the facts and figures of the incident and there are definitely lessons to be learnt but you must realize that even Major Suri would have criticized your blog had he been alive.He was a brave soldier and died a death which every soldier and officer of Indian army is prepared to die while serving in J&k.
So we as Indians at this critical juncture where the militancy/insurgency/naxalism is on rise must not lose faith in the intent of our brave army since this is not going to help to the morale and future of the forces.We should be more responsible and think Big.
At the same time I would like you(MEDIA) to play a vital and motivating role for the Army.Nothing can be achieved without sacrifices.We are at war since 1989 ,but the only difference that it is only affecting the lives of armymen and their families.How does it bother a common man,a software engineer,a lawyer,a politician,a beurocrat,a student of what the situation in J&k is?Ya only to an extent that they cannot come here to enjoy the beauty of mountains in summers…..Nothing more than that.
So let those 0.14% of our true countrymen who are in business decide what is the best means to tackle the enemy rather than doing the postmortem of a particular incident and doubting their ability.
बहुत तकलीफ होता है ये सब देखकर... किस पर कैसे क्या बोलूं... आप सर, लिखते रहिये
ReplyDeleteGuatam ji,
ReplyDeleteFirst of all...
Thanks for sharing your thoughts and making things clear for us.
Why don't you write a detailed account or your counter article for this crap from Mr Sawant??
These are the same kind of people who will cry foul if a 'house is brought down' and later it is found that some innocent people had died....
I do not get it... they some how or other will find a way to curse, either Army, or it's leadership!!!
Jay Hind!!
Jayant