इधर वादी में सर्दी की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है और साथ ही बढ़ गयी है हमारी व्यस्तता। एक बार बर्फ गिरनी शुरू हो जाने पर, एक तो मेहमानों का आना कम हो जायेगा और दूसरे जो रहे-सहे आयेंगे भी तो उनकी आव-भगत में तनिक परेशानी होगी।...तो इसलिये इन दिनों ब्लौग-जगत को कम समय दे पा रहे हैं।
फिलहाल जल्दबाजी में फिर से अपनी एक हल्की-सी ग़ज़ल ठेल रहे हैं। अपनी रचनाओं को अच्छी पत्रिका में छपे देखने पर जो सुख रचनाकार को मिलता है, वो अवर्णनीय है। प्रस्तुत है ये एक छोटी बहर की मेरी ग़ज़ल जो वर्तमान साहित्य के अभी अगस्त वाले अंक में मेरी तीन अन्य ग़ज़लों के संग छपी है:-
ये तेरा यूँ मचलना क्या
मेरे दिल का तड़पना क्या
निगाहें फेर ली तू ने
दिवानों का भटकना क्या
सुबह उतरी है गलियों में
हर इक आहट सहमना क्या
हैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
है तेरी रूठना आदत
मनाना क्या बहलना क्या
{मासिक पत्रिका ’वर्तमान साहित्य’ के अगस्त 09 अंक में प्रकाशित}
...बहरे हज़ज की ये मुरब्बा सालिम ग़ज़ल 1222-1222 के वजन पर है। हमेशा की तरह इस बार इस रुक्न पर कोई ग़ज़ल या गीत याद नहीं आ रहा। आप में से किसी को कुछ याद आता है तो अवश्य बतायें| ग़ज़ल में जो कुछ अच्छा है, गुरूजी का स्नेहाशिर्वाद है और त्रुटियाँ सब की सब मेरी।
इस व्यस्तता में भी साहित्य को समय देना अत्यंत जीवटता का काम है। पहले तो ’वर्तमान साहित्य’ में छपने के लिये ढेरों बधाई!!
ReplyDeleteहुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
अहा!! सुबह का सुंदर आगाज़ हो गया इसे पढ़कर आज तो, तालियां...और हां अगली पोस्ट वाली रोचक घटना का इंतज़ार रहेगा।
सुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या
-जबरदस्त!! वाह भाई, बहुत खूब!!
गुड है जी। सुबहै-सुबह सुना दिये गजल।
ReplyDeleteहुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
पढ़कर अपने वासिफ़ मियां की गजल याद आ गयी:
साफ़ आइनों में चेहरे भी नजर आते हैं साफ़।
धुंधला चेहरा हो तो धुंधला आइना चाहिये॥
बाकी दो गजलें भी पढ़वाओ भाई!
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
BAHUT KHOOB GAUTAM JI, LAJAWAAB. BADHAI.
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
बहुत खूब गौतम जी। मजा आ गया पढ़कर। व्यस्तता के बाध भी साहित्य सृजन - क्या कहने। एक तुकबंदी मेरी ओर से भी-
गमों से सामना जब हो
चिड़ियों का चहकना क्या
सुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या.....
...................................
इतना खूबसूरत लिखते हैं आप कि समझ नहीं आता कमेंट क्या करुं..एक शब्द है लाजवाब...जो आपके लिए परफेक्ट है...
ब्लॉग की ये दुनिया बड़ी अजीब है....एक फौजी(आप),एक डॉक्टर(डॉ.अनुराग) और अलग अलग लोगों की अलग अलग किस्म की संवेदनाओं से भरी रचनाएं और उन्हीं में बसता ये संसार....
बड़ा अच्छा लगता है इसमें डूबना....!!
हैं राहें धूप से लथ-पथ
ReplyDeleteकदम का अब बहकना क्या
में गहराई है।
इक प्यारी सी गजल -शुक्रिया !
ReplyDeletegazal achchi thi..
ReplyDeletelekin ye 1222-1222 ka funda meri samjh se bahar hai..
सच कहा आप ने ..अच्छी पत्रिका में छपना ख़ुशी देता है.ग़ज़ल छपने की बधाई.
ReplyDeleteआशा है दूर वादियों में तनहा कुछ नयी ग़ज़लों का सृजन अधिक हो पायेगा..:)
-ग़ज़ल पूरी की पूरी ही अच्छी लगी एक या दो शेर क्या बताऊँ?
शुभकामनायें.
गज़ल बहुत शानदार है।अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteसुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या
बहुत लाजवाब जी, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या
हैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या
waah lajawab, har sher jabardast.
बहुत खूब ! ऐसी रचनाएँ लिखने वाले भी क्या तनहाई में जीते हैं ?!
ReplyDeleteआपके इस जज़्वे को सलाम है कि इन विपरीत परिस्थितिओं मे भी आपकी ज़िन्दादिली कायम रहती है । बहुत सुन्दर गज़ल है
ReplyDeleteहैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
सुबह उतरी है गलियों में
हर इक आहट सहमना क्या
लाजवाब । आपने अब अगली पोस्ट के लिये उत्सुकता बढा दी है । बहुत बौत शुभकामनायें और आशीर्वाद्
है तेरी रूठना आदत
ReplyDeleteमनाना क्या बहलना क्या
bahut khub ..bahut pasand aayi yah gajal shukriya
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
बस हाज़िर होते रहिएगा...
अच्छा लगता है...
मीत
ताबड़तोड़ ग़ज़ल के बाद आप कौनसी घटना लाने वाले है.. आपने तो दिल की धधकने बढा दी है
ReplyDeleteएक एक लफ्ज़, एक एक शेर लाजवाब....तारीफ़ किस किस की करूँ. उफ्फ्फ्फ्फ्फ!!!!
ReplyDeleteसुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या
खूब..जिस दिन की शुरुआत इस शेर से हो वो खुद ब खूद खूबसूरत हो जाता है।
हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
क्या बात है....! क्या खूब कहन है...! विचारो ने क्या उड़ान भरी
है तेरी रूठना आदत
मनाना क्या बहलना क्या...!
बहुत खूब....! बहत खूब....! इस शेर के लिये तो बहुत कुछ कहना चाह रही हूँ.. मगर शब्द धोखा दे रहे हैं...।!
और सुनिये ये मेहमानों का आना और मेहमाननवाज़ी..सब ठीक है मगर घर वालों का भी खयाल रखियेगा और उनका खयाल रखने के लिये अपना खयाल रखियेगा...!
ईश्वर आपको बहुत लंबी उमर दें...!
आपकी
अनुजा
बहुत ख़ूब!
ReplyDelete--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
बहुत स्क्रॉल करना पड़ता है भाई कुछ ब्लोग्गेर्स को कमेन्ट करने के लिए... हैरत यह है की सभी एक स्तर पर व्यतिगत नेटवर्क से भी जुड़े हैं, शायद येही वज़ह है की आप सभी लगातार अच्छा करते रहते हैं... बहरहाल बहुत दिनों बाद छोटे-छोटे प्रशन अच्छे लगे...
ये तेरा यूँ मचलना क्या
ReplyDeleteमेरे दिल का तड़पना क्या
बहुत ही खुब भाई......आपका भी जवाब नही!
भाई मजा आ गया....ग़ज़ल पढ़कर
ReplyDeleteहम तो डूब ही जाते हैं
patrika me khud ko dekhkar kaisa laga hoga,main mahsoos kar sakti hun.....mera aashirwaad
ReplyDeleteaur itni pyaari rachna ke liye badhaayi
हुआ मैला ये आईना
ReplyDeleteयूँ अब सजना-सँवरना क्या
bahut ki sudar kaha hai
-Sheena
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
हासिले ग़ज़ल शेर है ये...लाजवाब....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने गौतम जी...वाह.
नीरज
हैं राहें धूप से लथ-पथ
ReplyDeleteकदम का अब बहकना क्या
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
आपकी व्यवस्तता समझ में आती है गौतम जी .............. उस दिन आपसे बात कर के बहूत ही मज़ा आया, दिल को सुकून आ गया ..... आपका हँसता हुवा चेहरा सामने आ गया ............ आपकी ग़ज़ल पढ़ कर लग रहा है मैं आपके करीब ही बैठा हुवा आपसे सुन रहा हूँ ...........
लाजवाब है हर शेर इस ग़ज़ल का ........
hain राहें धूप से लथ-पथ
ReplyDeleteकदम का अब बहकना क्या
wow !!
captivating couplet
this is right from 'cafe'
atmosphere...not favorable
jarring music and all that..??
filhaal CONGRATS
phir aata hooN
---MUFLIS---
बह'रे हजाज मेरे सबसे चाहिती बह'रों में है .. खुद इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता जीस तरह से इसने अपने मोह पास में मुझे जकड रखा है ... वेसे सच कहूँ तो मुझे भी बहुत आनंद आता है इसके साथ... वर्त्तमान साहित्य के लिए बधाई मेरे तरफ से भी वेसे आपकी गज़लें सारी छोटी की पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती है ... और हो भी भला क्यूँ नहीं जिस तरह से आप साहित्य सृजन कर रहे है ... मैं अगर कहूँ के आप दो चीजो की रक्षा कर रहे हैं तो गलत ना होगा एक तो हिंद और दूसरी हिंदी की ...
ReplyDeleteग़ज़ल के सरे ही शे'र बेहद खुबसूरत भावः के साथ है हर शे'र आपने आप में स्थान रखता है ... एक खुबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से ढेरो बधाई...
और हाँ अपना ख़याल हमारे लिए जरुर रक्खें,....
आपका
अर्श
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या..
goutamji...isame bahut kuchh chhipaa he aour mahaz do pankti me aapne poora vistaar de diya..aapki is khoobi me mujh jesa to deevana rahtaa hi he/ lazavaab/
दिवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
भाई जवाब नहीं आपकी इस ग़ज़ल का. हर शेर बेहतरीन है.
लाजवाब ग़ज़ल...
ReplyDeleteइस प्यारी सी कविता के लिये दिल से आभार
ReplyDeleteबहुत बढिया ग़ज़ल.
ReplyDeleteitni viprit pristhiyo me ati sundar
ReplyDeletesahity srjan .savednao ko nya aayam deti pyari si gjal .
badhai aur shubhkamnaye
हैं राहें धूप से लथ-पथ
ReplyDeleteकदम का अब बहकना क्या
क्या बात कही है..वैसे दोपहर मे बहकने वालॊं की तादात भी कम नही है..
शुभकामनाएं
गजल तीन बार पढी
ReplyDeleteपहली बार पढने के लिए
दूसरी बार फिर से आनंद प्राप्ति के लिए
और तीसरी बार रदीफ़ बदल कर "क्या" की जगह "उफ़" रदीफ़ का इस्तेमाल करके
आप भी पढियेगा :)
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
इस शेर ने बहुत प्रभावित किया
वीनस केसरी
Gautam sir aap vishwaas karein na kare par ye sacha hai ki apke blog main comment karne ka man nahi karta....
ReplyDelete...Baat itni si hai, ki wo nostalgia ka deja vu sa reh jaata hai.
:)
aur jab sochta hoon ki aaj kuch likhoon apki post ke baare main to itna kuch, bahut kuch likh deta hoon , bus post ki samiksha ke siwa.
aap nahi jaante saheb aap log mere jivan main kya mahatva rakhte hain...
....abhi to bus itna hi post pad chuka hoon, ghazal khod chuka hoon...
...par uske baare main comment karta hoon...
...baad main shayad 1/2 ghante baad.
aapka sadev.
log post ke bhaag copy paste karte hai par main aapke comment padh ke unhein paste kar raha hoon...
ReplyDeletearsh bhai ne kya khoob kaha hai...
मैं अगर कहूँ के आप दो चीजो की रक्षा कर रहे हैं तो गलत ना होगा एक तो हिंद और दूसरी हिंदी की ...
mufils sir:
"captivating couplet
this is right from 'cafe'
atmosphere...not favorable...."
Can really understand sir,one can not always get THAT "atmosphere"
HAHA...
amtaabh ji.yoon (plural) ko apka same sher pasand aaya...
...and what a co incidet dono ke comment bhi ek saath.
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या..
jeet hamesha Extrovert hoti hai saab, haar introvert !!
dig said...
"आपकी व्यवस्तता समझ में आती है गौतम जी .............. उस दिन आपसे बात कर के बहूत ही मज़ा आया, दिल को सुकून आ गया ..... आपका हँसता हुवा चेहरा सामने आ गया ............ आपकी ग़ज़ल पढ़ कर लग रहा है मैं आपके करीब ही बैठा हुवा आपसे सुन रहा हूँ ..........."
bold wali baat mujhe bhi lagti hai...
"बहुत स्क्रॉल करना पड़ता है भाई कुछ ब्लोग्गेर्स को कमेन्ट करने के लिए..."
sahi kaha sagar ji...
..But it's worthwhile.
"ईश्वर आपको बहुत लंबी उमर दें...!"
kancha di ke saath saaht meri bhi yahi dua....
saab nirmala ji ne baat to sahi kahi:
"आपने अब अगली पोस्ट के लिये उत्सुकता बढा दी है"
comment post se zayada bada na ho jaiye isliye chalta hoon...
waise bhi ye sher muh chida raha hai:
"हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या"
ग़ज़ल बहुत उम्दा है
ReplyDeleteवर्तमान साहित्य तक मेरी पहुँच जोधपुर जाने से ही बनती है, कोई जुगाड़ बिठाता हूँ ताकि बाकी दोनों गज़लें पढ़ी जा सके आपको बहुत बधाई !
"सुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या"
मैं ठहरा हूँ यहीं अभी तक । खूबसूरत पंक्तियाँ । आभार ।
सुबह उतरी है गलियों में
ReplyDeleteहर इक आहट सहमना क्या
हैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
..........
वाह गौतम भाई वाह !! लाजवाब !! एकदम लाजवाब !!
है राहें धुप से लथ पथ.....यह बिम्ब कमाल का लगा....
ये तेरा यूँ मचलना क्या
ReplyDeleteमेरे दिल का तड़पना क्या
निगाहें फेर ली तू ने
दिवानों का भटकना क्या
सुबह उतरी है गलियों में
हर इक आहट सहमना क्या
हैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या
दिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
है तेरी रूठना आदत
मनाना क्या बहलना क्या
ऐसी ग़ज़ल की तारीफ कैसे की जाती हैं !!!!
हम नहीं जानते हैं .....
phone hi kareinge kabhi sahub
ReplyDeleteaapne kamal kiya hai..
badaa kamaal..
दीवारें गिर गयीं सारी
ReplyDeleteअभी ईटें परखना क्या
हुआ मैला ये आइना
यूँ अब सजना संवारना क्या
क्या खूब कहते हैं आप ....एक एक बात पढना अच्छा लगता है ...'वर्तमान साहित्य ' में छपने के लिए बधाई स्वीकार करें ....साथ ही ' मौन' को पसंद करने का आभार ...आपकी टिप्पणी से लगा सच कुछ अच्छा लिख पाई हूँ .....
ab jaldi se agli post chhaap maaro saahib...
ReplyDeleteuski jyaadaa be-chaini uth rahi hai..
:)
नमस्कार गौतम जी,
ReplyDeleteछोटे बहर में हमेशा ही कमाल होता है, अच्छी ग़ज़ल है.
बधाई आपको, इसके "वर्तमान साहित्य" में छपने के लिए.
कुछ शेर जो दिल को छु गए................
"है तेरी रूठना आदत
मनाना क्या बहलना क्या"
और .....
"हैं राहें धूप से लथ-पथ
कदम का अब बहकना क्या"
देर से आने के लिए मुआफी ...इधर भी जिंदगी कभी कभी घडी की सुइयों सरीखी हो जाती है ओर आदमी २४#७ में उलझा हुआ .पिछले दिनों हमारी भी ब्लॉग जगत से दूरी बनी रही ....
ReplyDeleteआपका ये शेर दिलचस्प है..
सुबह उतरी है गलियों में
हर इक आहट सहमना क्या
देखे कौन सी दिलचस्प दास्ताँ लेके उतरते है आप वादी से .ओर हाँ ओक्टोबर में हमारा आना तय है ....
भाईसाहब, आपकी ग़ज़ल पसंद आई.
ReplyDeleteभाईसाहब, आपकी ग़ज़ल पसंद आई.
ReplyDeletetaazaa post kaa badi besabri se intezaar hai..
ReplyDeletehuzoooooooooooor.......!!!!
:)
bahut besabri se...
एक शानदार ग़ज़ल को पढकर जी खुश हो गया।
ReplyDeleteहै तेरी रूठना आदत
मनाना क्या बहलना क्या
वाह जी वाह क्या बात है। आने वाली पोस्ट का इंतजार।
Bahut Pyara hai. Maza aa gaya :)
ReplyDeleteभाई तुम्हें तो रोज सुबह प्रणाम करने को मन करता है.
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है. खासकर ईंटों को परखने वाला शेर तो गज़ब का है.
वो नयी पोस्ट कहाँ रह गयी मेजर साहिब..?
ReplyDelete:)
AAne mein der hui .....sabse pahle Vartmaan Sahitya mein chapne ki bdhai ....Madam bhejtin hi nahin varna jarur dekhte ....!
ReplyDeleteGazal ke jankaron ne itani tarif kar di ki ab meri tarif bemani si hokar rah jayegi ....aapka to har she'r lajwaab hota hai ....!!
Aur idhar Dr. Sahib bhi kuch old monk ka program bnate dikh rahe hain ...chliye ek aur hansin sham ka intjaar rahega ....!!
Saarthak gazal.
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
दर्पण भाई,
ReplyDeleteमैंने आपका फोन नम्बर गलती से कई ऊट-पटांग लोगों को दे दिया है
मेरी बेवकूफी थी,
आज के बाद मैं किसी को भी किसी का फोन नंबर नहीं दूंगा....
देना भी नहीं चाहिए...
बहुत बेकार बात होती है ये....
हमें कोई हक़ नहीं के किसी को भी किसी का भी फोन नंबर दे डालें...!!
आप इस पोस्ट पे जरूर आओगे..
इस लिए यहाँ पे लिखा है..
आय एम सॉरी अगेन....!!!
बहुत देर से टिप्पणी कर पा रहा हूँ गौतम जी , आलसी हूँ निभा लीजियेगा ! पूरी की पूरी ग़ज़ल ही बहुत खूबसूरत बन पड़ी है
ReplyDeleteदिवारें गिर गयीं सारी
अभी ईटें परखना क्या
हुआ मैला ये आईना
यूँ अब सजना-सँवरना क्या
ये अशआर सोच की उन गहराइयों तक जाते है जहाँ से उबरने को भी जी नहीं चाहता ! बहुत खूब !