छुट्टी खत्म हुये और ड्यूटी पे आये गिन के छः दिन बीते हैं, लेकिन यूं लग रहा है कि कब से यहीं हूँ मैं। उस दिन जब हवाई-जहाज ने श्रीनगर हवाई-अड्डे पर लैंड किया तो परिचारिका की उद्घोषणा ने चौंका दिया। बाहर का तापमान 39* सेल्सियस...??? मुझे लगा हवाई-जहाज दिल्ली से उड़कर वापस दिल्ली तो नहीं चला आया। किंतु श्रीनगर वाकई तप रहा था। वो बख्तरबंद फौजी जीप जब मुझे मेरे गंतव्य की ओर लेकर चली, तो राष्ट्रीय राजमार्ग 1A मानो गर्मी से पिघल रहा था। विगत ग्यारह सालों में डल लेक के इस शहर को यूं तपता-जलता पहली बार देख रहा था। ...और इस खूबसूरत शहर के इस तरह तपने की वजह पे गौर करने लगा तो कई विकल्प उभर कर सामने आये। क्या हो सकती है यहाँ इतनी गर्मी की वजह? ...महबूबा मुफ़्ती का बचपना ? ओमर अब्दुला का बेवक्त जज्बाती होना? सड़कों पर तंग कपड़ों में कुछ खूबसूरत सैलानियों का घूमना-फिरना? पिघलती बर्फ़ से सरहद-पार मेहमानों का भटकना? या फिर वही अपना ग्लोबल-वार्मिंग वाला फंडा???
...खैर साढ़े चार घंटे की ड्राइव के पश्चात मैं इस तपने-जलने की चिंता से मुक्त अपने बेस में था। चीड-देवदार और शीतल हवाओं वाले बेस में। एकदम से लगा कितना कुछ मिस कर रहा था मैं अपनी इन छुट्टियों में...कितना कुछ!!! चलिये कुछ झलकियां दिखाता हूँ, मैं जो मिस कर रहा था:-
मेरा महल
मेरा साम्राज्य
मेरे सहचर
...और अब कुछ झलकियाँ जो यहाँ आने के बाद मिस कर रहा हूँ:-
मेरी धड़कन
मेरी दुनिया
मेरा वज़ूद
...और खबर मिली है फोन पर कि ये तस्वीर वाली छोटी परी विगत तीन-चार दिनों से हर कमरे में जा-जा कर अपने पापा को ढूँढ़ रही है और नीचे गली में आते-जाते हर टी-शर्ट पहने हुये युवक को पापा पुकारती है और रोने लगती है।
इधर एक ये गाना अजीब ढ़ंग से जुबान पर आकर बैठ गया है, उतरने का नाम ही नहीं ले रहा...सोचा आप लोगों को भी सुना दूँ:-
सौ दर्द हैं
सौ राहतें
सब मिला दिलनशीं
एक तू ही नहींsssssssssssss
तस्वीरें सब बयां कर रही है ...
ReplyDeleteसौ दर्द भी ...सौ रहतें भी ...!!
गौतम जी ,मन बोझिल हो गया !
ReplyDeleteऐसी संवेदनशीलता भी अच्छी नहीं !
शायद !
घर से, अपनों से दूर रहना किसे अच्छा लगता है पर हम जो भी करते हैं उन्हीं के लिये करते हैं, मुझे मेरी आपबीती याद आ गई मैं भी ३ साल अपने बेटे से दूर रहा हूँ, हालांकि लगभग हर सप्ताहांत पर मैं घर जाता था पर जो थकान रोज होती है उसे रोज उतारने के लिये परिवार का पास होना बहुत जरुरी है, खासकर आपके वजूद का, अब मैं लगभग पिछले एक साल से परिवार के साथ हूँ और बहुत सुकून महसूस कर रहा हूँ।
ReplyDeleteआपने दर्देदिल का बयान शब्दों में उकेर दिया है। व्यथित है मन क्योंकि मैं इस प्रकार के दौर से गुजर चुका हूँ।
आपका महल और साम्राज्य देखकर सर सजदे में झुक गया। आप हम सब के परिवारों की सुरक्षा के लिए वहाँ हैं, अपने परिवार से दूर। आज अधिकांश लोग अपने केरियर के लिए घर परिवार से दूर हैं लेकिन आप इस देश के लिए परिवार से दूर है, यह हम सबके लिए अभिमान का विषय है। आपकी सेवाओं को नमन।
ReplyDeleteवाकई बहुत ही शिद्दत से आपने हर चीज को महसूस किया और उसको ज्यों का त्यों शब्दों मे उतार दिया. श्रीनगर का ३९ डिग्री तापमान सोचकर ही हैरान हूं..आपका राजमहल देखकर तो रश्क हुआ..किस्मत वाले और कलेजे वालों का ही हो सकता है ये ठाठ तो. और बेटी तनया की तस्वीरे देखकर तो आनंद आगया..पहले से काफ़ी बडी लगने लगी है..हां पिता और पुत्री की भावनाओं के बारे कुछ नही कहुंगा..आप दोनों का निजी मामला है..:) बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
अपने भाई पर गर्व और अपनी बेटी की सोचकर आंखों में आंसू हैं. मैं तीन साल पहले सैफई(सपा मुखिया के गांव) चार दिन ड्यूटी पर था दूसरे दिन घर फोन किया तो छोटी बेटी ने जिस आवाज़ में ये कहा कि 'पापा जल्दी आ जाओ' मैं ही जानता हूं कि मेरी क्या हालत थी. वैसा ही इस समय प्यारी तनया की पढकर महसूस कर रहा हूं. लेकिन दोस्त यही ज़िन्दगी है. करोडों लोग ऐसे ही अपने घर परिवार से दूर तमाम मह्त्वपूर्ण कार्यों को अंज़ाम दे रहे हैं. वे सब हैं तो हम हैं. हां एक धारणा खंडित हुई जो कर्नल अपूर्व त्यागी जी के आलीशान रहन-सहन को देखकर बना ली थी. ख़ैर
ReplyDeleteये दिन भी कट जायेंगे
सबसे सुनता रहता हूं.
सब जान गये...कुछ न कहो!!!
ReplyDeletezindgi imtehaan leti hai...........
ReplyDeleteवारिस शाह की मैनियों की भागभरी जितना बड़ा दिल [ बकौल अमृता प्रीतम ] की ही तर्ज पर आपकी पोस्ट कम शब्दों में इतना विस्तार लिए होती है. इसमें यादों की तवील नज्में और बेपनाह उल्फत एक साथ जामे रहते हैं अपने मुबारक रंगों में. तनया की तस्वीरें देख कर अपनी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी " जब भी उसे सामने नहीं पाता हूँ मैं/ गुस्से से उबल जाता हूँ मैं/ सारी दुनिया से बगावत कर के सो जाता हूँ मैं/ जैसे रो-खीज कर सो जाता है पहाड़/ मेरे सो जाने पे/ गीली हो जाती हैं नदियाँ/ जो अब तक मुस्कुराती थी झूठ-मूठ..." संगी साथियों के चहरे पर हज़ार अचम्भे नाच रहें हैं और आपका महल तो लाजवाब है इसमें आपके पलंग के पास दीवार में जो चमक रहा है क्या वो एक स्टील ग्लास है ? अगर हाँ तो क्या उसे पेड़ के कोटर का आश्रय मिला है ? दुष्यंत पूछता है अंकल के के इस अजूबे बिस्तर की चेन कौन खोलता और बंद करता है जब आप सो जाते हैं ? क्या इसमें दो लोग सो सकते हैं ? इस बार की टिप्पणी को फिर से पढा तो लगा कि ये प्रश्नावली हो गयी है.
ReplyDeleteसौ दर्द हैं
ReplyDeleteसौ राहतें
सब मिला दिलनशीं
एक तू ही नहींsssssssssssss
" दिल की बेबसी और अपनों के साथ ना होने का दर्द ब्यान करती ये पंक्तियाँ भावुक कर गयी..."
regards
@किशोर जी,
ReplyDeleteपिकासो दुष्यंत की जानकारी के लिये, ये महल बांस और मिट्टी से बना है। दरअसल ये ऊँचे पहा़ड़ों पर गड़ेरियों की झोपड़ी है जिसे यहाँ कि लिंगो में ढ़ोक या बहक कहते हैं...और छत की ऊँचाई इतनी है कि बस दुष्यंत साब ही सीधा खड़े हो सकते हैं और जहाँ तक स्लिपिंग बैग का सवाल है तो उसका चेन बंद करके यदि सोया जाये तो ये कड़ाके की ठंढ़ में भी पसीना निकाल दे। उसका चेन खुला रख कर आम कंबलों की तरह ओढ़ा जाता है...और आपकी पारखी निगाह ने स्टील के ग्लास को सही पहचाना, लेकिन वो कोटर मिट्टी का ही बना है....
दुष्यंत की अगली पेंटिंग्स के लिये बेकरार हूँ।
Aapki pari behad khubsoorat hai.
ReplyDeleteAap jis jeevan ko jeete hain, uska to mai kalpana bhi nahi kar sakti.
God bless you and your family.
सौ दर्द हैं
ReplyDeleteसौ राहतें
सब मिला दिलनशीं
एक तू ही नहींsssssssssssss...........
Gulzaar !!
तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्जी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूं तो
ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूं तो
Gulzaar Reloaded !!
दिल में कुछ अजीब सा हो गया
ReplyDeleteअभि गाना सुन रही हूँ...! और साथ में क्या कर रही होऊँगी आप जानते हैं....!!!
ReplyDeleteइसलिये अबी कमेंट नही...।!
इसे बादशाहियत ही कहेंगे.. जिस नज़र से आप जिंदगी को देखते है.. जाते जाते इमोशनल करने लगे.. आप तो.
ReplyDeleteपिछले रविवार दिल्ली में था...आते जाते होटल की लोबी में नीचे हेड लाइन देखी..कुपवाडा में मुठभेड़ .चार आतंकवादी मारे गए एक जवान शहीद ...रात तक घर पहुंचा .सभी चैनल उलट पुलट कर देखे हिंदी अंग्रेजी के की शायद कोई डिटेल मिल जाए ..कही नहीं...राखी के स्वन्व्यर में मीडिया बिजी था ....अगले दिन का अखबार टाईम्स ऑफ़ इंडिया.दैनिक जागरण...कही कोई खबर नहीं...एक हफ्ता बीत गया ...बस मन में एक सवाल उठ रहा था .की उस जवान के कोई भाई बहन होगे .माँ बाप होगे .शाम को उसके केम्प में उसके बाजू में सोने वाला उसका दूसरा साथी उस रात क्या सोचता होगा ?क्या किसी इन्सान का ओहदा ओर समय भी उसकी शहादत की अहमियत रखता है .....आज दस तारीख है ..तीन दिनों बाद लोगो में देशभक्ति का फीवर शुरू हो जायेगा .हर तरफ..लोग पोस्ट लिखेगे.चैनल "मेरे देश की धरती सोना उगले "बेक ग्रायुंड में बजा कर इमोशंस को घटाएंगे बढायेंगे ...मन गया १५ अगस्त....
ReplyDeleteतुम्हारा बिस्तर देखकर कल रात को हिंदी तहलका में पढ़ा एक लेख याद आया जिसके मुताबिक ...सियाचिन में ९० प्रतिशत मौते ठण्ड के कारण होती है ....ओर इस बार भी जिन जकेटो का ऑर्डर टेंडर से पास हुआ है वे दस डिग्री से नीचे तापमान में काम नहीं करेगी...
क्या देशभक्ति सिर्फ बन्दूक थामने में है....हर इंसान अगर अपना काम अपने सिमित सरोकारों में रहते इमानदारी से करे वो देशभक्ति नहीं होगी ?क्या एक जवान की मौत एक खबर के लायक नहीं है ..कम से कम उसका नाम तो पता हो देश को....?
मुआफ करना तुम्हारे पोस्ट पे ये सब लिख गया .पर बहुत दिनों से दिल में कुछ उमड़ रहा था .....
मेरी दृष्टि तो बस धड़कन,दुनिया,वजूद तक रह गयी....इन्हें मिस क्या करना ,ये तो महल,साम्राज्य में साथ होते हैं....धरती जले या टेप,या ठंडी हो.....इनका नम साथ होता है.....
ReplyDeleteमेरा आशीष इस वजूद को
सौ दर्द हैं
ReplyDeleteसौ राहतें
सब मिला दिलनशीं
एक तू ही नहीं....
इस गीत ने poori daastaan bayaan कर दी........... सच है एक fouji के seene में भी dhadakta हुवा दिल होता है......... याद होती है, दर्द होता है.......... जो kashish आपके दिल में है vahi kashish bitiya को भी तो sataa रही होगी.......... वो तो मन को halkaa भी नहीं कर पा रही होगी.............. लाजवाब मन को choone waali daastaan लिख दी है आपने......
हम्म्म्म्...! अब आई हूँ दोबारा....! सब से पहले आपके कमरे में आई देखा कि सब बिखरा पड़ा है...! यूँ कमरे का आधा ही फोटो आया है मगर काम भर की चीजें है...! इधर उधर नजरे घुमा कर एक धागा ढूँढ़ रही थी मगर मिला विल्स का पैकेट और माचिस....! ये ढेर सारे डिब्बे कैसे है ..??? ये राख...!!! निकलते निकलते मन अजीब सा हो गया...! जब आवाज़ सुनती हँ तो लगता है कि कोई ए.सी. में बैठ कर ठाठ से बतिया रहा है...! Heads off again
ReplyDeleteऔर आपके साम्राज्य और सहचर पर एक उड़ती निगाह डाल कर प्रकृति देखने लगी...! ये किस चीज के पेड़ है..???
धड़कन, दुनिया और वजूद....! तीनो प्यारे जिसकी फोटो नही लगी, वो भी प्यारी जो आपकी इस धड़कन, दुनिया और वजूद को उधर संभाल रही है।
और फिर से सुना ये गाना....!
सौ दर्द हैं
सौ राहतें
सब मिला दिलनशीं
एक तू ही नहींsssssssssssss
जो अजीब ढंग से चढ़ा है इधर भी....!!!
zindagi yun hui basar tanha, kaafila saath aur safar tanha....
ReplyDeletekabhi kabhi hum zindagi bitane ke liye munasib wajeh talashte hain aur woh yun hi basar ho jaati hai ...pehli baar padha aapka blog !! umda likhte hain aap...
आपकी यह पोस्ट अत्यंत भावुक कर गयी महल ...सम्राज्य ...दुनिया ...धड़कन .एक अजब सा एहसास दिया इन लफ्जों ने हर बार अलग अलग अंदाज से ..पढ़ते पढ़ते कुछ याद आगया ...मैं था तनहा एक तरफ /और ज़माना एक तरफ /सौ बार मिला मैं ज़िन्दगी से /पर पहला लम्हा एक तरफ ..
ReplyDeleteजय हो। शानदार पोस्ट!
ReplyDeleteप्रिय गौतम,
ReplyDelete९५ से २००० तक मैं भी था फौज में,जिसमें दो साल लोलाब में बिताये। याद रखो हमें कमीशन मिलता है ड्राफ्ट नहीं किया जाता। तुम गज़ल बढ़ी खूबसूरत लिखते हो...पर ये बार बार परिवार से अलगाव का रोना...और फिर उसे सार्वजनिक करना...फौज की जिन्दगी की मुश्किलों को बयां करना...मेरी राय में फौजी को शोभा नहीं देता।
मैं ज्यादा OG तो नहीं हो गया..क्या ?
प्रिय गौतम,
ReplyDelete९५ से २००० तक मैं भी था फौज में,जिसमें दो साल लोलाब में बिताये। याद रखो हमें कमीशन मिलता है ड्राफ्ट नहीं किया जाता। तुम गज़ल बढ़ी खूबसूरत लिखते हो...पर ये बार बार परिवार से अलगाव का रोना...और फिर उसे सार्वजनिक करना...फौज की जिन्दगी की मुश्किलों को बयां करना...मेरी राय में फौजी को शोभा नहीं देता।
मैं ज्यादा OG तो नहीं हो गया..क्या ?
ज़बरदस्त
ReplyDelete---
राम सेतु – मानव निर्मित या प्राकृतिक?
आपकी पोस्ट पढ़ कर सेना और सेना वालों के प्रति गहरे आदर और श्रद्घा का भाव उपजता है.साथ ही मन भर भी आता है.
ReplyDeleteहम श्रीनगर के राजनैतिक रूप से तो गरमाने के आदी हो चुके हैं. लेकिन भौगोलिक रूप से गरमाना चिंताजनक है.
नहीं, प्रवीण जी आप ज्यादा OG बिल्कुल नहीं हुये अपने कथन से....मैं जिस पलटन से वास्ता रखता हूँ, वो पूरी आर्मी में OGiest होने के नाते जानी जाती है और मुझे जानने वाले जानते हैं कि अपनी दस साल की सर्विस में बार-बार वोलेंटियर होकर इधर ही आया हूँ...तो ये "रोना" तो कहीं से नहीं है। बस बाहर वालों को बताने का बहाना मात्र है कि आर्मी का आफिसर कैडर भी उसी मुश्किलों में जीता है जिसमें एक जवान...वर्ना आप ऊपर संजीव जी की टिप्पणी में एक कर्नल साब की शानो-शौकत के बारे में पढ़ ही लिया होगा... और हाँ, अपने कमिशनिंग के दौरान मेरिट में उस स्थान पर था कि कुछ भी आप्ट कर सकता था और जो आप्ट करता वो ही मिलता। फिर भी इंफैन्ट्री चुना....
ReplyDeleteऔर ब्लौग मेरे लिये जरिया है सेना के बारे में श्नैः-श्नैः बहुत सी भ्रांतिओं को दूर करने का...
मेजर साहब, आपकी 'नन्हीं परी' बहुत प्यारी है... :)
ReplyDeleteबस कुछ कहा नहीं जायेगा आप अपनी ऐसी पोस्ट पर लिख दिया करें कि औरतें इस पोस्ट को ना पढेम उन्हें तो रोने के लिये बहाना चाहिये होता है फिर ये तो एक हकीकत है। अपने परिवार से दूर रहना ही कितना कठिन होता है बाकी बातें तो आदमी फिर भी सह लेता है और वो नान्हीं सी जान ---- उसे याद कर के ही आँख नम हो जाती है नमन है उन सब वीरों को जो हम लोगों की रक्षा के लिये इतनी तकलीफें सह रहे हैं
ReplyDeleteतस्वीरे बहुत सुन्दर हैं और गीत ाउर भी भावुक कर देने वाला बहुत बहुत आशीर्वाद्
प्रिय गौतम,
ReplyDeleteक्या Manekshaw's own से हो... मुझे आज भी उस पलटन वालों का हेयर स्टाइल याद है।
पर अपनी बात पर अभी भी कायम रहूँगा।
एक बात अपने एक CO की दोहराउंगा "ये मत सोचो कि हम लड़ते हैं अपने मुल्क के लिये,हम जान की बाजी लगाते हैं सबसे पहले अपनी फिर अपनी पलटन/कोर या रेजिमेंट की इज्जत के लिये" जरा सोचो गुरखों का देश तो नेपाल है ना..
हो सकता है मैं गलत हूं पर मैं मानता हूँ कि फील्ड इन्ही दिक्कतों और उनके साथ काम चलाने की चुनौती ही तो है...
देखा भी है....सुना भी है...और अब पढ़कर आपके ज़रिए जानते हैं....कुछ भी हो....जो ज़िदगी आपको मिली है...मुझे रश्क़ होता है...देश के लिए जीना...और देश के लिए मरना...हर किसी को नसीब नहीं...और जिसे मिलती है उससे बड़ा नसीब वाला भी कोई नहीं....!!
ReplyDeleteमेजर साहब,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर अहसास हुआ कि, कुछ होने से पहले इंसान कितना कुछ होता है,,,,इतने रिश्तों को एक ही बार में फलांग कर एकदम से एक रिश्ते पर कायम हो जाना आसन नहीं होता है...
पढ़कर,, देखकर,,, अन्दर कुछ टूटा तो कुछ जुड़ भी गया....आपसे
एक रिश्ता... नींद का....
आप वहां हैं....तभी तो हम चैन से सो रहे हैं....
फिरभी मेजर प्रवीण कि बातों से लगा ज़रूरी है बचा कर रखना अपना दामन...पता नहीं कब, कहाँ, क्यूँ और कैसे कौन सी बात किस करवट बैठ जाए...
आपकी बिटिया तो बस मिस्री कि डली है....
आदरणीय गौतम भाई,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट भी पढ़ी ,और मित्रो की टिप्पणियाँ भी पढ़ी...भाव और संवेदनाएं ही सबसे शक्तिशाली होती है...उनके अभाव में न तो चरित्र,न दृढ़ता और न वीरता आ पाती है....इस मायने में डॉ मेजर प्रवीण शाह से असहमत हूँ...
और नन्ही परी को हमारी लाखों दुआएं अकीके सुर्ख बन उसे नजर गुजर से बचाए...और फौजी भाई..आपका गीत बहुत बार सुना आनंद आगया....पिछली पोस्ट नहीं पढ़ सका था...सो अब बधाई दे देता हूँ...
गौतम जी आपकी पोस्ट और ब्लोग्गेर्स के कमेन्ट पढ़े
ReplyDeleteगाना भी सुना
मैं स्वीकार करता हूँ की अपनों से दूर जाने का दुःख क्या होता है मुझे नहीं पता
सीधी सी बात है की मै अपने घर से दूर कभी गया ही नहीं २-४ दिन का टूर हो तो बात अलग है
बस एक बार होली के दिन इलाहाबाद से दूर इंदौर में था तब कैसा कैसा मन हो रहा था बस आपकी पोस्ट पढ़ कर वही याद आ गया
वीनस केसरी
अच्छा लगा आपकी दुनिया देखकर. बचपन में कभी उस राज्य में रहा था, आज भी उन जगहों पर वापस जाने की दिली तमन्ना है, न जाने कब पूरी हो. नीचे की पंक्तियाँ पढ़कर आँख की कोर गीली हो गई:
ReplyDelete"चार दिनों से हर कमरे में जा-जा कर अपने पापा को ढूँढ़ रही है और नीचे गली में आते-जाते हर टी-शर्ट पहने हुये युवक को पापा पुकारती है और रोने लगती है।"
@ mejar parween---
ReplyDeletekyaa aap bhi ghazal likhte hain....?
देश के इस जांबाज़ सिपाही को
ReplyDeleteऔर तमाम साथियों को
मेरा प्यार भरा सलाम ....
आप सब का एक-एक क़दम
एक-एक अदा
हमारे गौरवमयी इतिहास
का हिस्सा बनते जा रहे हैं
खुश रहो .....
---मुफलिस---
'सौ दर्द हैं
ReplyDeleteसौ राहतें
सब मिला दिलनशीं
एक तू ही नहीं!
यही है जीवन..कुछ राहतें कुछ दर्द कुछ मजबूरियां कुछ दुश्वारियां..कुछ खुशियाँ..
क्या मिला क्या नहीं...कितना हिसाब किताब रख सकते हैं hum??
-अच्छा लगा की आप में अपनी इन भावनाओं को सब के साथ बाँटने का साहस है.
- तान्या बहुत ही प्यारी है ईश्वर उसे हर ख़ुशी दे.
best wishes
यूँ जो मै कहने आई थी वो दूसरी तरह से मनु जी ने कह दी मगर मैं किसी और से कुछ क्यों कहूँ मैं आपसे ये कहने आई थी कि डॉ० मेज़र प्रवीण जी की बातों का बुरा मत मानियेगा। वो देश के लिये गहरा जज़्बा रखते हैं।
ReplyDeleteबस उन्हे ये नही पता कि आप फौजी के साथ साथ शायर भी हो। जैसे भगत सिंह थे, जैसे विस्मिल थे, जैसे आज़ाद थे। पता ही होगा कि आज़ाद की एक महबूबा थी। जिसके लिये उन्होने दर्द भरे नगमे भी लिखे थे। वो एक अलग फीलिंग थी उस शख्स के लिये। देश पे मरने से वो फीलिंग न रोकती है ना कोई रुकता है।
पता है ना कि भगत सिंह फूट के रो पड़े थे माँ के सामने और माँ ने जब शांत कराया तो उन्होने कहा था " मैं इस लिये रो रहा हूँ क्योंकि मुझे अगले जनम में माँ के रूप में तुम नही मिलोगी।"
ये सब एक अळग बात थी देश के लिये जज़्बा अलग बात।
आपकी समस्या ये है कि ऊपर वाले ने आपको शायर और फौजी एक साथ बना दिया और दोनो पूरा पूरा बना दिया...! मैं भी तो पूँछ लेती हूँ कभी कभी आप से "गोली कैसे चला लेते हैं ?" और फिर कभी "शायरी कैसे कर लेते हैं ?"
और डॉ० मेज़र प्रवीण जी ये भी नही जानते कि मै आपके ओजी होने से कितनी परेशान रहती हूँ
गौतम जी,
ReplyDeleteआपके और सारी भारतीय सेना के जज्बे को मेरा सलाम। खुदा लम्बी उम्र अता करें।
आपका महल, आपके सहचर, आकी दुनिया में झांकने का मौका मिला, रोमांच से भरा अनुभव रहा पढ़ना और देखना।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
main bhi to kahtaa hoon..
ReplyDeleteye thaak--thaak kaa sangeet aap hi nikaalte hain kyaa....?
;;))
aapki parian bahut pyaari hain , ek aur vyakti jo aap miss kar rahe hain aur jo shayad sankoch vash likh nahin paye mujhe vishwas hai , in parion ki mummy. yadi sach hai to kahen HAN.
ReplyDeleteसमझ सकता हूँ इसके पीछे छिपे दर्द को। बेटी जब नानी के जाती है रोज जबतक बात नही कर लेता हूँ तब तक चैन नही आता है। सच बच्चें होते ही इतने प्यारे है। आपकी पोस्ट मेरे जैसे आदमी को भावुक कर गई। आपका महल देखा तो पता नही क्या क्या सोचने लगा। फिर छोटे भाई को बुलाया उसे दिखाया। कि देख ये है फोजियों का महल। उसे फौज बहुत पसंद है। फिर आपका साम्राज्य भी देखा, साथी भी देख लिये। और दूसरी स्टाईलिश बेटी भी देख ली। ये भी नैना सी शैतानी और प्यारी बातें करती होगी। ढेर सारा प्यार दूसरी स्टाईलिश बेटी के लिए।
ReplyDeleteabhi hind yugm se tumhen padhkar aa rahee hu...yahee zindagee hai..
ReplyDeleteजितनी अच्छी पोस्ट, कमेण्ट्स भी उतने ही रोचक। तस्वीरों ने सब कह दिया।
ReplyDeletegoatm bhai
ReplyDeleteaapki ye post padhakar to shabd hi chook gye .
bitiya ko khoob pyar aur ashirwad .
aapko aur apke jaise hjaro jvan bhaiyo ko kakho prnam .
गौतम जी आपके ज़ज्बे को सलाम...बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन शायद कह नहीं पाउँगा...अभी नहीं...फिर कभी...खुश रहें.
ReplyDeleteनीरज
आपकी बिटिया में मुझे मिष्टी दिखाई देती है...वो भी मेरे मुंबई आने के बाद कमरों में चक्कर लगाती हुई दादा दादा की आवाजें लगाती है...ज़िन्दगी ऐसी क्यूँ है?
ReplyDeleteनीरज
प्रिय छोटे अपने बड़े भाइयों को यूं नहीं रुलाया करते । किसी बहुत ही व्यक्तिगत कार्य के कारण कम्प्यूटर से पिछले सात दिनों से दूर हूं और शायद आने वाले दस पन्द्रह दिन भी रहूंगा । छोटे एक बात याद रखो यदि हम सहीं हैं तो हमारे साथ भी सब कुछ सही ही होगा ।
ReplyDeleteतुम्हारा भैया
सुबीर
Ye jiwan bhi ek ajib falsafa hai....kabhi hansta hai, kabhi rulata hai. Behad bhavuk post !!
ReplyDeleteOn Tue, 11/8/09, प्रकाश सिंह "अर्श" pro.singh@gmail.com wrote:
ReplyDeleteFrom: प्रकाश सिंह "अर्श" pro.singh@gmail.com
Subject: Arsh
To: "gautam rajrishi" gautam_rajrishi@yahoo.co.in, "Gautam Rajrishi" gautamrajrishi@gmail.com
Date: Tuesday, 11 August, 2009, 10:28 PM
प्रिय गुरु भाई,
हलाकि मैं कम से कम इस पोस्ट पे कमेन्ट नहीं करना चाहता था ,पढ़ तो बहोत पहले ही लिया था मगर पता नहीं सोचा लिखते समय ज्यादा भावुक ना हो जाऊँ, यह पोस्ट वाकई गहरी भावुकता लिए है ... आपके सभी पोस्टों से बिलकुल अलग है पहले तो आपके महल ,पड़े हुए अंडे नमक वगैरह मगर आप तस्वीर लेते वक्त जो चीज छुपा रहे थे ओल्ड मोंक की बोतल भी मुझे दिख रही है ,,,,नीले आसमान के निचे सारा कुछ तो आपका ही साम्राज्य है...आपके लिए आपका है आपके द्वारा है यही कहूँगा ,हमारी बेफिक्र की नींद आपके उडे हुए नींद के बनिस्पत ही तो है ...आपके सहचरों के बारे में कुछ भी तो नहीं कह सकता बस सलाम कर सकता हूँ उनको...
आपकी धड़कन और आपके वजूद के बारे में भी कुछ कहने लिए शब्द नहीं है मियाँ ... इस लाडली मासूम ,खुबसूरत मह्सुसियत के बारे में कुछ भी तो नहीं कह सकते हम कौन समझता होगा इसकी बेचैनी को , इसकी भावनावों को , इसकी बेचैन निगाहें जब आपको धुन्धती होगी तो कैसे वो अपने आपको संभालती होगी ... जिसके पास अभी पूरी तरह से सारे शब्द भी नहीं है भावनावों को ब्यक्त करने के लिए... कौन इसके दर्द को समझता है कोई तो नहीं ... और समझ के भी कुछ नहीं कर सकते...कुछ नहीं कह सकता भाई कुछ भी नहीं ... बस एक she'र इस लाडली के लिए मेरे तरफ से आप के पास...
तेरे शिकवे बहोत नाजुक है ,इन्हें महफूज रखता हूँ
मुद्दतों बाद ये मुझको बड़ी मुश्किल से मिलते है ...
सलाम
अर्श
गौतम जी आपके ज़ज्बे को सलाम...आपकी सेवाओं को नमन।
ReplyDeleteआपकी कही अनकही बातों ने तो ऐसे भावुक कर दिया की कुछ कहने लायक ही नहीं रही मैं....
ReplyDeleteसही कहा.....सौ दर्द हैं ,सौ राहतें......जिन्दगी यही है...
अहर्निश हमारी रक्षा में सजग प्रहरी के सम्मुख नतमस्तक हूँ...
Gautam ji na milne ya pas na hone ke bad hi kisi chij ki ahmiyat ka ehsaas hota hai.Mil jaye to 'poetry' 'prose' me badal jati hai...
ReplyDeleteI'd love to address u with ur rank sir ! Anyway, there was a time when writers and poets (full timers) used to describe the hard life of a soldier. In today's literature a soldier is non-existent . I do not know of any recent mainstream literary creation which deals with the life of a soldier . People have a great respect for them and want to know about them ,but the pseudo-marxists weilding the rod in the world of literature don't let them do it .
ReplyDeleteSo, it is in fitness of things if people learn about them from themselves . A moderate distance from civvies , however, is recommended!
Aapne to zarozaar rula diya..
ReplyDeleteमेरा महल
ReplyDeleteमेरा साम्राज्य
मेरे सहचर.......gazab....adbhut....ap sabon ke jazbe ko mera saiyoot...!!
Major Gautam..pari aap ki bahut pyaari hai aur jahan tak baat hai vaadi ki to jis vaadi ko apna batane valen log mike phenkne main ya pehle jazbaati hone aur phir river rafting karne main mashgool hai us vaadi ko in rajsi vanshjon aur unke mahlon ki jagah aap jaise yuvraj aur unke mahlon ki jarurat jyada hai..
ReplyDeletekanchan ji puch leti hain aap se ki goli aur gazalsaath main kaise rakhte hain par mujhe aascharya nahin..kyonki jaanti hun ki gazal ek fauji se acchi koi samajh hi nahi sakta..
surakshit rahen,apna dhyaan rakhein...Jai Hind!!
आपकी परी का दर्द महसूस कर आँखें भर आयीं ...शब्द ने साथ देने से मना कर दिया है ...आपकी नन्ही परी , आपकी दुनिया को ढेर सा प्यार दीजियेगा ...बहुत प्यारी है
ReplyDeletepadh kar is post ko bus shabad nahi hai .........
ReplyDeletepari shayad ab tak samjh gayi hogi ki papa kahin chale gaye hain......
yaa shayad dhoondh rahi hogi ab bhi ....
महबूबा मुफ़्ती का बचपना ? ओमर अब्दुला का बेवक्त जज्बाती होना? सड़कों पर तंग कपड़ों में कुछ खूबसूरत सैलानियों का घूमना-फिरना? पिघलती बर्फ़ से सरहद-पार मेहमानों का भटकना? या फिर वही अपना ग्लोबल-वार्मिंग वाला फंडा......?
ReplyDeleteअब क्या कहूँ ....आप तो हमेसा लाजवाब कर देते हैं ....कहाँ से लाते हैं ऐसी सोच ......!!
आपका महल देखा , आपका साम्राज्य देखा , आपके सहचर और आपकी धड़कन ने तो आँखें नम कर दीं ....उसका वजूद आपकी धड़कन में हमेशा यूँ ही कायम रहे .....!!
तनया को मानसी आंटी का खूब सारा प्यार पहुँचाना।
ReplyDeleteइन छोटी सी राहतो के लए तो हज़ार दर्द भी सह लेंगे...
ReplyDeleteमीत
बड़ी प्यारी बिटिया है, क्या नाम है?
ReplyDelete