बशीर बद्र साब का एक शेर जो मेरे पसंदीदा शेरों में से रहा है:-
यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फत्ह करने का
मेरी क़ाग़ज की कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं
और बद्र साब के इसी गज़ल का एक मिस्रा है "मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं"। इस मिस्रे पे एक तरही मुशायरे का आयोजन करवाया था गुरू जी ने। तो पेश है बद्र साब की इस जमीन पर मेरा प्रयास।
बहर है-->बहरे हज़ज मुसमन सालिम
वजन है-->१२२२-१२२२-१२२२-१२२२ {4 X मुफ़ाईलुन}
हरी है ये जमीं हमसे कि हम तो इश्क बोते हैं
हमीं से है हँसी सारी, हमीं पलकें भिगोते हैं
धरा सजती मुहब्बत से, गगन सजता मुहब्बत से
मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं
करें परवाह क्या वो मौसमों के रुख बदलने की
परिंदे जो यहाँ परवाज़ पर तूफ़ान ढ़ोते हैं
अज़ब से कुछ भुलैंयों के बने हैं रास्ते उनके
पलट के फिर कहाँ आये, जो इन गलियों में खोते हैं
जगी हैं रात भर पलकें, ठहर ऐ सुब्ह थोड़ा तो
मेरी इन जागी पलकों में अभी कुछ ख्वाब सोते हैं
मिली धरती को सूरज की तपिश से ये खरोंचे जो
सितारे रात में आकर उन्हें शबनम से धोते हैं
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
वो कोई और होंगे अपनी किस्मत पे जो रोते हैं
(भोपाल से निकलने वाली द्विमासिक पत्रिका "सुख़नवर" के जनवरी-फरवरी १० अंक में प्रकाशित)
बहुत अच्छा प्रयास है गौतम जी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत शेर हैं
बधाई .
मंज़र साहिब ,नमस्कार,,,,,,,,,किला सा फतह कर लिया आपने तो,,,,,,,,,पढ़ी और मज़ा आ गया,,,आज तो मुझे भी शब्द नही मिल रहे,,,,,,,,
ReplyDeleteआपकी इस जबरदस्त सफलता पर जो खुशी मिली है,,,,,बयान से बाहर है,,,
दोबारा भी आऊँगा इसी ग़ज़ल को पढने......
ankit walaa sher bhi shaandaar hai...unhe bhi badhaai kahnaa,,,,,,,,
ReplyDeleteaur dwiz bhaai bhi hamse pahle ,,,,bas do minat pahle aa gaye,,,,,,,,,namaskaar bhaaijaan,,,,,,,
सुबीर साहब और द्विज जी के बाद और कहने को क्या बचता है।
ReplyDeleteसबसे पसंद आया-
जगी है रात भर पलकें....
और ग़ज़लों के इंतज़ार में-
मानोशी
"jagi hain raat bhar palken" beautiful
ReplyDeleteवाह गौतम भाई,हम भी किस्मत पे रोने वालो मे से नही है।बहुत ही शानदार गज़ल है,जितनी तारीफ़ की जाए कम है,और हां अंकित भी बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteवाह गौतम भाई,हम भी किस्मत पे रोने वालो मे से नही है।बहुत ही शानदार गज़ल है,जितनी तारीफ़ की जाए कम है,और हां अंकित भी बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteनिस्संदेह अंकित ने बहुत ही बेहतरीन शेर निकाला है........ पर आप की मेहनत भी मुंह-बोलती है... अच्छे शेर हैं भाई.. शुभकामनाएं........
ReplyDeleteनमस्कार गौतम जी,
ReplyDeleteये गुरु जी, आपका और बड़े बुजुर्गों का का प्यार और आशीर्वाद है जो मेरा शेर इस जगह तक पहुँच पाया. मैं सभी की शुभकामनाओं को एक प्रेरणा के रूप में लेके आगे अच्छे से अच्छा लिखने की कोशिश करता रहूँगा.
बहुत सुंदर रचना है. खासकर अन्तिम दो शेर बहुत पसंद आए.
ReplyDeletemezar saahib sahit sabhi ko,,,,,,,,
ReplyDeleteprem diwas ki badhaai,,,
जगी हैं रात भर पलकें, ठहर ऐ सुबह थोड़ा तो
ReplyDeleteमेरी इन जागी पलकों में अभी कुछ खाब सोते हैं ..
बहुत प्यारा शेर कहा है भाई ....आफरीं......
पूरी ग़ज़ल चुस्त और रवानी में है ....
ख्यालात का इज़हार बड़े सलीके से किया गया है
बधाई स्वीकारें ......
और...ये आपके लिए .......
"ख्यालो-लफ्ज़,एहसासात,इल्मो-फन,अदाकारी ,
क़लम जब तुम उठाते हो,ये सब सिजदेमें होते हैं"
फिर से मुबारकबाद ..........
---मुफलिस---
lakire apne haatho ki banana hamko aata he..
ReplyDeletevo koi aor honge apni kismat par rote he..
waaaaaaaaah.
kya kahu..bahut khoob.
dil karta he bas padhte jaao aour nazm khatm naa ho.
खूबसूरत शेरों का प्यारा कलेक्शन किया है आपने, बधाई।
ReplyDeleteder si badhai saheb .. do baar padh chuka hoon ..
ReplyDeletebaad me kuch sochkar comment doonga . abhi to shabd nahi mil rahe hai
बहुत सुंदर !!
ReplyDeleteप्रिय गौतम, "क्रियेटिव कामन्स" का मतलब है "हरेक को इसके पुनरुपयोग का अधिकार दिया जाता है"
जरा जांच लेना
सस्नेह -- शास्त्री
वाह भाई...दिल खुश हो गया. एक एक शेर लाजवाब...पर हमें तो ये वला सबसे पसंद आया
ReplyDeleteकरें परवाह क्या वो मौसमों के रुख बदलने के
परिंदे जो यहाँ परवाज पर तूफ़ान ढोते हैं.
क्या तेवर हैं, क्या जज्बा...हम तो इसी रुख के कायल हैं. अंकित को भी बधाई दीजियेगा हमारी तरफ़ से.
गौतम भाई
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया, आपने अपने व्यस्त कार्यक्रम में मुझसे मिलने का समय निकाला, आपसे मिल कर इतना अच्छा लगा की मैं बयां नही कर सकता, थोड़े से वक़्त में ही आपने मुझे बहुत बहुत सारी यादों से सरोबर कर दिया, आपका व्यक्तित्व आपके अनुरूप ही है, फौज में रहते हुवे भी आपके मन की कोमलता, आपके दिल का विस्तार बहुत ज्यादा है. आपके साथ बिताये कुछ पल हमेशा हमेशा के लिए मेरे स्मृति पटल पर महकते रहेंगे.
आपकी ग़ज़लों के तो हम दीवाने हैं ही, अब आपके भी दीवाने हो गए.
आपको दुबई आने का मेरा निमंत्रण है.
बहुत अच्छा और बेहतरीन लिखा है
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें
बहुत अच्छा और बेहतरीन
ReplyDeleteबधाई
दिनांक 16.02.2009 कें मैथिली मंडनक तत्वावधान में 'मैथिली युवा लेखन दशा आ दिशा' विषय पर शहीद भगत सिंह कॉलेज, नई दिल्ली में एक टा संगोष्ठीक आयोजन कयल गेल. एहि अवसर पर देशक विभिन्न भाग स' आयल टटका पीढीक सक्रिय भागीदारी रहल. बनारस से आयल 'नवतुरिया' केर संपादक अरुणाभ, कटिहार (बिहार) से रोहित झा, दिल्ली से अलोक रंजन, मिथिलेश कुमार राय, फिरदौस, धर्मव्रत चौधरी, देवांशु वत्स, सेतु कुमार वर्मा प्रमुख वक्ता छलाह. ऑडियो कोंफ्रेंसिंग के जरिये गाजियाबाद से मैथिली आ हिंदीक प्रख्यात कथाकार - संपादक अनलकांत ( गौरीनाथ ) आ सहरसा सं चर्चित युवा कथाकार - कवि अखिल आनंद सभा स' जुड़लैथ. संगोष्ठीक संचालन युवतम रचनाकार कुमार सौरभ केलैथ. एहि अवसर पर नवतुरक रचनाकार सबहक क्षोभ एकटा पर्चा पर देखल गेल जे सभा में उपस्थित करीब एक सौ रचनाकार पाठकक बीच वितरित कयल गेल
ReplyDeleteभाई राजरिशी
ReplyDeleteसबसे पहले तो क्षमा माँगता हूँ कि पिछले दिनों से आ न सका और अब आया तो आपकी एक और बेहतरीन गज़ल पढ़ने को मिली वाह वाह वाह
मज़ा आ गया।
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
ReplyDeleteवो कोई और होंगे अपनी किस्मत पे जो रोते हैं।
अहा वाह मज़ा आ गया राजरिशि भाई!
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
ReplyDeleteवो कोई और होंगे अपनी किस्मत पे जो रोते हैं।
अहा वाह मज़ा आ गया राजरिशि भाई!
bahut sunder gautam ji sabhi sher bahut pasand aayye, kyun na hon likhe hi bahut achche hain. bahut-2 badhaai.
ReplyDeleteगौतम जी आप का मेरे ब्लॉग पर आना और तारीफ के दो शब्द कहना ....इस नाचीज़ के लिए बहुत ही खुशगवार रहा,बहुत अच्छा लगता है जब आप सरीखे साहित्य साधक हम जैसे नासमझों को दाद देने आते है ,
ReplyDeleteलकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
वो कोई और होंगे अपनी किस्मत पे जो रोते हैं।
बहुत सुंदर और प्रभावशाली शेर,अंकित जी का शेर भी काबिले तारीफ है
मोहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं.
ReplyDeleteसौ फ़ीसद इत्तिफ़ाक रखता हूँ मैं आपकी बात से. जो ख़ूबसूरत न हो, भला उससे मोहब्बत करने का कोई मतलब है क्या?
gautam ji
ReplyDeletekya khoob likha hai ye gazal , wah ji wah
maza aa gaya padhkar
aapko shivraatri ki shubkaamnaayen ..
Maine bhi kuch likha hai @ www.poemsofvijay.blogspot.com par, pls padhiyenga aur apne comments ke dwara utsaah badhayen..
गौतम जी , दस फरवरी की पोस्ट और हम अब आ रहे हैं ...? पता नही ये चुक कैसे हो गई .... और इस बार तो आपने कमल कर दिया हर एक शेर उम्दा ....पता नही कहाँ कहाँ से ढूंढ कर लाते हैं इतने गहरे और दिल को छु लेने वाले शेर ....
ReplyDeleteहरी है ये ज़मीं हमसे कि हम इश्क बोते हैं
हमी से है हँसी साडी ,हामी पलकें भिगोते हैं
और ये देखिये ....
मिली धरती को सूरज कि तपिश से ये खरोंचे जो
सितारे रत में आकर उन्हें शबनम से धोते हैं
सुभान अल्लाह गौतम जी.....
और फ़िर ये ......
लकीरें अपने हाथों की बनाना हमको आता है
वो कोई और होंगे अपनी किस्मत पे जो रोते हैं।
ek fouji sher .....naman hai aapko...!!
हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम इश्क बोते हैं
ReplyDeleteहमी से है हँसी साडी ,हामी पलकें भिगोते हैं
Bahut gahari aur bhav purn kavita..
Hamesh ki tarah es bar bhi man ko chho gayi...
Regards
...bahut khoob!!!
ReplyDeleteमिली धरती को सूरज कि तपिश से ये खरोंचे जो
ReplyDeleteसितारे रत में आकर उन्हें शबनम से धोते हैं
बहुत-सुन्दर लगा आपका अन्दाज़ मेजर साहिब
श्याम सखा ‘श्याम