30 January 2009

एक हरी वर्दी जो पहनी, दिल मेरा हिन्दुस्तान हुआ...

गणतंत्र-दिवस के विहंगम परेड के दौरान बँटे विभिन्न पुरूस्कारों को देखते हुये मन में कई भाव उठे। तमाम पुरूस्कार विजेताओं की बहादुरी पर कोई शक नहीं। किंतु यहाँ अपने मुल्क़ में शौर्य, वीरता, दुश्मनों से भिड़ना-अपनी जान की परवाह किये बगैर, अपने साथियों की जान बचाने के लिये खुद को गोलियों के समक्ष बेझिझक ले आना---इन तमाम बातों के अलावा ये भी जरूरी है कि आप ये सब कारनामा कहाँ दिखा रहे हैं। कभी-कभी लगता है कि "जगह" ज्यादा महत्वपूर्ण है।

खैर...एक और अपनी गज़ल आप सब के समक्ष रख रहा हूँ इस्लाह के लिये। त्रुटियाँ,कमियाँ बताकर अनुग्रहित करें।

4 X 22 के वजन पर बिठाने का प्रयास है:-

उनका हर एक बयान हुआ
दंगे का सब सामान हुआ

नक्शे पर जो शह्‍र खड़ा है
देख जमीं पे बियाबान हुआ

झोंपड़ ही तो चंद जले हैं
ऐसा भी क्या तूफ़ान हुआ

कातिल का जब से भेद खुला
हाकिम क्यूं मेहरबान हुआ

कोना-कोना घर का चमके
है जब से वो मेहमान हुआ

आँखों में सनम की देख जरा
कत्ल का मेरे उन्वान हुआ

एक हरी वर्दी जो पहनी
दिल मेरा हिन्दुस्तान हुआ


....विदा,अगली मुलाकात तक के लिये !!!

29 comments:

  1. बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है.

    'पहन...दिल हिंदुस्तान हुआ'...बहुत खूब!

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  2. लाजवाब जी. आनन्द आ गया..दिल मेरा हिन्दुस्तान हुआ. बहुत बधाई.

    रामराम.

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  3. वाह गौतम जी वाह ...
    एक हरी वर्दी जो पहनी
    दिल मेरा हिन्दोस्तान हुआ ..


    क्या बात कही है आपने बहोत बढ़िया ग़ज़ल भाई साहब ढेरो बधाई कुबूल करें.....

    आपका
    अर्श

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  4. वाह.. अच्छा कहा है.. गौतम जी बधाई....

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  5. बहुत सुंदर कहा आपने ..दिल मेरा हिन्दोस्तान हुआ ..

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  6. देशभक्ति से ओत-प्रोत

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  7. mera beta is tasweer me hai,mera dil bhi hindustaan hai....
    bahut hi achha laga padhkar

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  8. काश हर भारतीय ऐसा सोचे।

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  9. फ़ोजी भाई बहुत सुंदर कविता के रुप मै आप ने अपने दिल की बात कह दी.
    धन्यवाद

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  10. waha gautam ji .. kya baat kahi aapne ..

    एक हरी वर्दी जो पहनी
    दिल मेरा हिन्दोस्तान हुआ ..

    poori post padhkar maza aa gaya ..

    aapko badhai ..

    meri nai post awashay apadhe..

    aapka
    vijay

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  11. सुभान अल्लाह सच में खास अंदाज है तुम्हारा .खास तौर से वो शेर .कातिल का जब से भेद खुला....वालाह

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  12. खूबसूरत ग़ज़ल है गौतम जी....बहर के बारे में एक बार पंकज जी से जरूर पूछ लें...
    आप के ब्लॉग पर आने से मन्दिर में जाने सा सुकून मिलता है...एक से बढ़कर शायरों के दीदार जो हो जाते हैं यहाँ...जो पूरे ब्लॉग जगत में और कहीं नहीं होते...
    नीरज

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  13. ab ke kaafi kam ..par fir bhi kuchh/.................


    ATKAA........

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  14. एक हरी वर्दी जो पहनी ,
    दिल मेरा हिंदुस्तान हुआ

    अच्छी ग़ज़ल ...
    गौतम जी बधाई
    हेमंत कुमार

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  15. सुंदर रचना.

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  16. "इतने पाकीज़ा शेर कहे ,
    ये हम सब पर एहसान हुआ.."

    हर बार की तरह ख्यालात की उम्दा परवाज़
    लबो-लहजा भी अपना-अपना-सा
    अच्छे इज़हार पर ढेरों बधाई .......!
    ---मुफलिस---

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  17. गौतम जी
    आनंद आ गया आपकी गज़लें पढ़ कर...........पंकज जी के ब्लॉग से आपका नाम पहले से ही जाना पहचाना था ..........आज जानने का भी मौका मिल गया. मुझे लगा मैं कुछ देर से आया...........पर देर आए दुरुस्त तो आए...........ब्लॉग पर आना जाना लगा रहेगा

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  18. जी गौतम जी, मेरा भाई इंडियन नेवी में था... मेरा हमउम्र...
    पिछले साल १३ अक्टूबर को एक प्लेन को रिपेयर करते समय ब्लास्ट हो जाने से उसकी जान चली गयी...
    एक बात कहूं आप मुझसे जुड़े रहना....
    मीत

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  19. Sher no 2,3 and last 2 Sher .. awessome!

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  20. Dear Sir,
    Thanks for coming to my blog.
    I hate the advertiesment concept in bloging. But what i hate more is that people only read one or few latest blog.I However do vice versa,i've already gone through the entire blog of four people(manu,muflis,dwij and the fourth is the one from himanchal//name not in mind right now). And i was lucky that i did.I want to do the same in your blog. Sometime in 'fursat'. since it's high time to sleep.
    But trust me it's unconditional. You need not to rome in my blog, obviously. Coz i'm here for learning not showing. May be i can think of that after 4-5 years. Right now thanks to manu ji, muflis ji, himancha ji(sorry for not remembring the name), dwij ji and you. No comments on your post right now....
    ....will be doing it shortly.

    Thanks once again.

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  21. behad khoobsurati se byaa kiye hai haalat aapne.phool to hai saath kaanto ke jaise

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  22. गौतम भाई
    आप में गजलियत है और आप अच्छा लिख रहें हैं ,|कुछ बरस पहले जनाब अमीन जोधपुरी ने मुझे सलाह दी थी 'डाक्टर साहिब ग़ज़ल लिख कर १५ दिन के लिए रख देन फिर इसे दुश्मन की नज़र से देखें'यानि यह ग़ज़ल दुशमन ने लिखी है और मुझे इसमे गलतियाँ ढूंढनी हैं .वाही सलाह आप को सौंप रहा हूँ
    अब आपकी ग़ज़ल पर
    उनका बस एक बयान हुआ
    दंगोंका सब समान हुआ
    या दंगे का सब
    नक्शे पर कल शहर कहदा था
    देखो आज बियाबान हुआ [वैसे इस शे`र पर और गौर की जरूरत है
    झोंपडियाँ ही चंद जलीं बस
    ये भी कैसा तूफ़ान हुआ
    कातिल का जब था भेद खुला
    हाकिम क्यों मेहरबान हुआ [वैसे मेहरबान का वजन खटक रहा है यहाँ
    दिल मेरा महका महका है
    जब से वो [तू ]मेहमान हुआ
    जबसे पहनी हरियल वर्दी
    जबसे पहनी फौजी वर्दी
    दिल मेराहिन्दुस्तान हुआ

    उंका हर एक बयान हुआ कहने से बात यहीं ख़त्म हो जाती आगे बढ्ने को कुछ नहीं रहता झोपडियां वजन पुरा कर रहीं हैं फ़िर झ्पंद क्यों लिखे जो ग्राम्य शब्द हैनाक्षे पर शर खड़ा है माने शर तामीर ही नहीं हुआ तो जो पहले ही बियाबान था अब नहिंबना तो बिया बन ही रहेगा हाँ आप शायद कहना चाह रहे हैं किआज की भ्रष्ट तत्र ने शर्बनाए की रकम हजम कर ली मगर वह भावः स्पष्ट नहीं होता
    वैसे यह मेरी निजी राय है इसमे जो अच्छी लगे कबूल कर लें शेष को फैंक दे
    aaj hari vardi jo pahni ka bahv kuch aisa lagata hai ki vardi utarne se dil badal jayega jabki jab se ek permanent bhav deta hai
    koyee bat buri lage to muaafi
    आपका
    श्याम सखा `श्याम'

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  23. अच्छी ग़ज़ल है, बहर पर भी थोड़ी कोशिश करनी होगी। वैसे श्याम सखा जी की सलाह के बाद कुछ कहने को रहता ही नहीं। यह तो साफ़ है जैसा कि श्याम जी ने कहा है कि
    आप में ग़ज़लियत है।

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  24. आखिरी शेर क्या कमाल का लिखा है उफ्फ्फ्फ्फ़....चाह रहे हैं कि कुछ एक अध् पन्ने में तारीफ़ करें, मगर आश्चर्य है कि शब्द ही नहीं सूझ रहे. शायद सबसे अच्छी चीज़ों कि तारीफ़ हो ही नहीं सकती...मूक हूँ...समझ जाइए इसी में .

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  25. With reference to the old comment:

    Naam yaad aa gaya: 'Prakash badal' hai shayad. Badal to last name hai hi for sure....

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  26. प्रिय गौतम, इस आलेख द्वार एक महत्वपूर्ण प्रश्न हम सब के मनों में जागृत हो गया है!!

    सस्नेह -- शास्त्री

    -- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

    महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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