19 January 2009

झगड़ा है कैसा आखिर,जब दिल्ली-सा लाहौर बना है...

आप सबों को गणतंत्र-दिवस की सहस्त्रों मुबारकबाद। आप सब का दिल से आभारी हूँ,मेरी इस गज़ल की दाद देने के लिये। कुछ कमी थी बहरो-वज़न और रिदम में। शुक्रगुजार हूँ खास तौर पर अज़ीज़ मानोशी जी, आदरणीय योगेन्द्र जी, आदरणीय मुफ़लिस जी और बगैर तक्ख्ल्लुस वाले मनु जी का जिन्होंने बड़ी विनम्रता से कमियों की तरफ इंगित किया। और शुक्रगुजार हूँ परम आदरणीय श्री महावीर जी का जिन्होंने इस गज़ल के जरिये छंद का नया सबक सिखाया। किंतु ये गज़ल के रूप में अब आयी है तो बस श्रद्धेय गुरूजी श्री पंकज सुबीर जी की सड़ाक-सड़ाक पड़ती बेंतों और उसमें छुपे आशिर्वादों से।

अब के ऐसा दौर बना है
हर ग़म काबिले-गौर बना है

उसके कल की पूछ मुझे,जो
आज तिरा सिरमौर बना है

चांद को रोटी कह कर घर में
फिर खाना दो कौर बना है

बंद न कर दिल के दरवाजे
ये हम सब का ठौर बना है

तेरी-मेरी बात छिड़ी तो
फिर किस्सा इक और बना है

इसकूलों में आये जवानी
बचपन का ये तौर बना है

झगड़ा है कैसा आखिर,जब
दिल्ली-सा लाहौर बना है

यूं ही हौसला बढ़ाते रहिये और सिखाते रहिये मुझे....शुक्रिया !!!


(मासिक पत्रिका "वर्तमान साहित्य" के अगस्त 09 अंक में प्रकाशित)

36 comments:

  1. बहुत सुन्दर, बदलते युग के अच्छे-बुरे को ख़ूब पकड़ा और संजोया है, सराहनीय!

    लाजवाब रचना है, लिखते रहें

    ---
    गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र

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  2. Bahut sundar kavita....

    Regards...

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  3. वाह! गौतम, ये गज़ल अच्छी है।

    मैं भी अभी सीख ही रही हूँ, मगर मुझे लगता है कि बहर में कुछ कहीं ठीक नहीं- (mathematically वज़न की बात नहीं कर रही हूँ... but again I may be completely wrong) ...किसी जानकार से पूछ लो।

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  4. बहुत बढ़िया लिखे हैं..

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  5. बहुत खूबसूरती से शब्दों और भावों को बाँधा है ब्धाई

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  6. बात चिदी है जब तेरी मेरी
    एक किस्सा और बना है

    बहुत खूब .बहुत बढ़िया लिखा आपने

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  7. फिर चंदा को रोटी कह...
    उम्दा शेर!

    बहुत ही सुंदर ग़ज़ल...

    [ग़ज़ल में वजन आदि की कमियां तो सिर्फ़ जानकर ही बता सकतेहैं.]

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  8. सुंदर अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद.

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  9. गुरु देव के आशीर्वाद का फल साफ़ दिखाई दे रहा है...बहर ,काफिये और रदीफ़ तो सही है ही...ख्यालात भी पुख्ता हैं...बहुत खूब....भाई...बहुत खूब...
    नीरज

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  10. छोटे बहर में लिखना ज्यादा मुश्किल ओर चुनोती भरा है...अगली गजल में ओर बेहतरी की उम्मीद होगी...

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  11. .बहुत खूब....जी ...बहुत खूब, लाजवाब.

    रामराम.

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  12. फ़ोजी भाई बहुत सुंदर सच लिखा आप ने
    फिर चंदा को रोटी कह... हां भाई अब एक गरीब के लिये तो रोटी भी चांद जेसी ही हो गई है, जिसे छुने की खाविश लिये ही वेचारा मर जाता है.
    धन्यवाद

    भाई गजल के बारे है कूछ नही पता कहा पंसेरी डालनी है कहा दो शेर. बस भाव समझ मै आ जाये काफ़ी हे.

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  13. gautam ji , bahut sundar gazal hai , aur specially :
    phir se chanda ko roti kahkar ghar mein do khana do kaur bana hai ... these are ultimae ..
    badhai sweekar karen ...
    maine bhi kuch likha hai . dekhiyenga

    vijay

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  14. "फिर से चंदा को रोटी कह कर....."
    वाह वाह !!
    जदीद शायरी का उम्दा नमूना....
    और वो भी इस सादगी से ....
    ग़ज़ल के भाव और आपके मन कि परवाज़ बहोत अच्छे हैं !
    और हाँ ! कुछ अच्छे मशविरे आए हैं, गौर फरमाएं.....
    ---मुफलिस---

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  15. गौतम जी ,कमी तो लग रही है ..क्या है ..मालूम है पर समझा नहीं सकता...कारण कभी सीखा नहीं हूँ.... आप को कम से कम ये तो पता है के ये छोटी बहर है.... मुझे तो बहर भी बाहर वाले ही बताते हैं ...मुझे असल में १२१२ २१२१ करके पता नहीं चलता ...जो जबान पे अटके ..तो उसी से पता चलता है........पर....
    जो चन्दा को रोटी कह कर ...घर के दो कौर से जोड़ा है...कमाल है....
    बाकी हम "खुश ख्याल " रहे है....
    खुश हाल नहीं....बड़ा फर्क है दोनों में ...

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  16. अरे भाई गौतम साहब, ये ग़ज़ल की ग्रामर वामर साथ लेकर न चला कीजिए। साहित्य मत पढ़िए बस ब्ला॓ग पढ़िए।
    "बंद न कर तू दिल के दरवाज़े ये हम जैसों का ठौर बना है"। आपकी ये लाइनें ही सारा मतलब और मक्सद साफ़ किए देती है । बहुत ख़ूबसूरत बन पड़ी है बात। कोई ज़रूरत नहीं मात्राओं में बाँधने की इसको। क्या कहना! बंद न कर.....अहा! गहरी बात कह दी आपने। बहुत ख़ूब!

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  17. बहुत सुन्दर गजल. खूब अच्छी लगी. अब आपको पढ़ने की जरूरत महसूस होने लगी है. धन्यवाद.

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  18. huzoor ! i am there with my contact no: at your previous post !

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  19. रचना बहुत उत्तम /आज का दौर -काबिले गौर /उसका कल हमारा सिरमौर /अष्टमी का चंदा आधी रोटी ,पूनम की पूरी -अमावस को क्या कीजियेगा /हम जैसों का ठौर न बन जाए और फ़िर एडवर्स पजेशन जैसी कोई बात पैदा न हो इसीलिये दरवाजे बंद किए हैं /.....शिक्षा और विज्ञापनों ने बचपन को जवानी में परिवर्तित कर दिया है /""बात छिडी जब तेरी मेरी -फिर किस्सा कुछ और बना ""यह तो होता ही आया है /

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  20. बहुत सुंदर.
    झगडा है ये आखिर कैसा
    जब दिल्ली सा लाहोर बना है ।
    काश वो भी समझ जायें ।

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  21. huzoor ! aapka to shiddat se intzaar tha....na baat-cheet, na hello-shello 098722.11411
    pehle nazar nahi parhi shayad jnaab ki.......
    aur kuchh lafz bhi haiN jo aapki tvajjo chahte haiN.....
    ---MUFLIS---

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  22. बात छिडी तेरी मेरी जब भी
    इस किस्सा फ़िर कुछ और बना है....
    हम तो भई इस शेर पर निसार हो गए, बहुत अच्छा लिखा है आपने.

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  23. aapke yahaaN diye gye saare comments aap hi ke liye haiN...
    pehla, doosra, teesra, aur ab ye chauthaa bhi....
    aapko yaad dilaya tha k aapki previous post pr maine apna phone no: likha tha, jo shayad aapki paarkhi nazar se chook gya....
    ---MUFLIS---

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  24. मुफलिस जी के ब्‍लाग पर आपकी टिप्‍पणी देख भागी चली आई कि कौन सी टिप्‍पणी मेरे लिए थी...?
    पर यहाँ आकर देखा कि ताऊ जी के ब्‍लाग की तरह काफी गडबड घोटाला चल रहा है... अल्‍पना
    की तरह मुफलिस जी बार बार अपना ब्‍यान बदल रहे हैं...खैर आपकी नई गजल बहोत पसंद आई
    भई वाह....! फिर से एक अच्‍छी गज़ल....?? ये शे'र तो बहोत ही
    पसंद आया-फिर से चंदा को रोटी कहकर/घर में खाना दो कौर बना है.....वाह क्‍या बात है...!!

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  25. बहुत सुंदर!
    गौतम, आपको आपके परिवार, सहकर्मियों एवं मित्रों को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई!

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  26. भाई अधिकतर शेर प्रशँसनीय! मज़ा आगया वाह वाह।

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  27. आखिरी पंक्तिओं को समझ नहीं पाया, लाहौर वाली।

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  28. pahle comment nahi diya tha. kyonki lay me kuchh nahi aa raha tha, par galati bhi samajh me nahi aa rahi thi. lekin ab bahut achchhe kahs kar chanda wala sher...!

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  29. आपने तो समाँ बाँध दिया गौतम जी. सच में बहुत ही सुंदर रचना है. बस इसी तरह लिखते रहिए.

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  30. dear gautam.i have updated my blog
    gazal k bahane.blogspot.com with some more facts about gazal.
    i have started a new blog
    chhan patak छान-पटक.blogspot.com where i will try to doछान-पटक of first 2 gazals posted every week,week starts from monday next,thanks for your comments,
    shyam skha

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