01 December 2008

मेजर उन्नीकृष्णन की यादें और तिरंगा अनमना निकला...

तमाम मिडिया,अखबारों और हिंदी ब्लौग पर / से उभरता ये आक्रोश...मेरे होंठों पे एक विद्रुप-सी हँसी फैल जाती है.एक विचित्र-सी उदासीन भरी तल्लीनता के साथ सारे पोस्ट पढ़े और एक पर भी टिप्पणी करने की इच्छा नहीं हुई.

"उन्नी" करीब था.जुनियर था,मगर करीब था मेरे.वो भी अन्य कितने ही सिपाहियों की तरह कहीं कश्मीर या असम-नागालैंड के सुदूर जंगलों में लड़ता धराशायी होता तो शायद किसी मेहरबान अखबार के तीसरे पन्ने के एक कोने में जगह पाता या कीड़ॊं की तरह गिजमिजाये खबरिया चैनल के स्क्रीन में नीचे दौड़ते टिक्कर पे जगह पाता.शुक्र है उसे अपनी बहादुरी और भारतीय सेना का जौहर दिखाने का मौका मुल्क के सबसे बड़े होटल में एक स्वप्न समान आपरेशन में मिला...कमबख्त फ़ौजियों को ढ़ंग से शोक तक मनाना नहीं आता.

चलिये एक गज़ल सुन लिजिये.आज ही मुकम्मल हुई है.

बहर है--> बहरे हज़ज मुसमन सालिम
वजन है--> १२२२-१२२२-१२२२-१२२२

परों का जब कभी तूफ़ान से यूँ सामना निकला
कि कितने ही परिंदों का हवा में बचपना निकला

गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला

न जाने कह दिया क्या धूप से दरिया ने इतरा कर
कि है पानी का हर कतरा उजाले में छना निकला

मसीहा-सा बना फिरता था जो इक हुक्मरां अपना
मुखौटा हट गया,तो कातिलों का सरगना निकला

जरा खिड़की से छन कर चांद जब कमरे तलक पहुँचा
दिवारों पर तिरी यादों का इक जंगल घना निकला

दिखे जो चंद अपने ही खड़े दुश्मन के खेमे में
नसों में दौड़ते-फिरते लहू का खौलना निकला

....और अंत में एक शेर "उन्नी" तेरे लिये

चिता की अग्नि ने बढ़ कर छुआ था आसमां को जब
धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला


(जोधपुर से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका "शेष" के जुलाई-सितंबर ०९ अंक में प्रकाशित)

31 comments:

  1. गौतम भाई,
    ग़ज़ल मार्मिक है.
    आपके होमपेज पर दानिशवरों की तसवीरें हैं कुछ जगह चंद नाम ग़लत टाइप किये गए हैं.ज़रा उन्हें ठीक कर दें तो बड़ी मेहरबानी:
    ज़िगर > जिगर

    फ़ैज >फ़ैज़

    फ़ाजली > फ़ाज़ली

    ज़ाफ़री > जाफ़री

    दुआएँ ढेर सारी और आपके प्यारे हमनवा उन्नीकृष्णन के लिये ख़िराजे अक़ीदत.

    ReplyDelete
  2. शहीदों को श्रद्धांजलि !

    ReplyDelete
  3. bahut marmik gazal,shahid krishnan sandeep ji ko naman.

    ReplyDelete
  4. ये बात तो है कि यदि कहीं दूरदराज के इलाके में संदीप को शहादत मिलती तो लोग संदीप को जान तक न पाते, लेकिन इसी बहाने संदीप ने एक अनोखा काम अपने शहीद होने के बावजूद कर दिखाय़ा। वह काम था लोगों में राजनितिज्ञों प्रति नफरत भरने का। संदीप की शहादत के बाद हुए राजनीतिक नफे-नुकसान को तौलते राजनितिज्ञों को अपने इस तरह बेआबरू होने की शायद उम्मीद नहीं थी, इसलिये संदीप के पिताजी द्वारा अपने घर से भगा दिये जाने पर केरल का CM अपना मानसिक संतुलन खो बैठा और उलूल-जुलूल बयान दे बैठा।.... संदीप के साथ संदीप के पिताजी ने जो अलख जगाई है वह अगले कई सालों तक याद की जायेगी।

    ReplyDelete
  5. आपका लेख पढ़कर कुछ कहना शायद सही न होगा । किन्तु इतना कह सकती हूँ कि मरना तो हम सबको एक ना एक दिन है ही, परन्तु एड़ियाँ रगड़ रगड़ कर मरने से तो शहीद होना लाख दर्जे बेहतर है । यह केवल कहने के लिए नहीं है, हम तो जीवन ही व्यर्थ गंवाते हैं परन्तु ऐसे वीरों की तो मौत भी व्यर्थ नहीं जाती । माना कि सरकार व समाज केवल तभी सम्मान देती है जब यह सब नाटकीय तरीके से होता है, सड़क दुर्घटनाओं में भी तो युवा मारे जाते हैं परन्तु उन्नीकृष्णन व हजारों वे शहीद जिनका जिक्र शायद समाचार पत्र के किसी कोने में भी नहीं होता ये तो जानते हैं कि न उनका जीवन व्यर्थ गया न उनकी मृत्यु ।
    जहाँ तक मंत्री जी का प्रश्न है तो कठिन समय में मनुष्य का चरित्र सामने आता है । उन्नीकृष्णन व उनके साथियों ने अपना दिखाया मंत्री जी का भी सामने आया । चाँद पर थूकने का दुस्साहस करने से उनका चेहरा उनके ही बदबूदार थूक से भर गया ।
    गजल जितनी मैं समझ सकती हूँ बहुत बढ़िया व हृदयस्पर्शी है ।
    कुछ अधिक या गलत कहा हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ । कठिन समय है न, हम सबकी कलई खुल रही है ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  6. उन्नीकृष्णन को हमारा भी सलाम

    ReplyDelete
  7. मेजर संदीप उन्‍नीकृष्‍णन और उन जैसे वीर सपूत को जन्‍म देनेवाले उनके माता-पिता को शत शत नमन्।
    मुझे लगता है फौजी भाइयों को देशहित में कुछ दूसरे रास्‍तों के बारे में भी सोचना चाहिए। आखिर भ्रष्‍ट बदइंतजामी में आप कब तक यूं ही प्राण गंवाते रहेंगे।

    ReplyDelete
  8. शहीद मेजर और उनके जज्‍बे को नमन

    ReplyDelete
  9. बहुत ही सुंदर ग़ज़ल. सहीद उन्नि को श्रद्धांजलि.अपने मित्रों में से किसी को खोना कितना दुखदायी होता है.
    http://mallar.wordpress.com

    ReplyDelete
  10. अमर शहीद मेजर संदीप को शत-शत नमन्।

    ReplyDelete
  11. नमस्कार गौतम जी,
    मेजर उन्नीकृष्णन, हवलदार गजेन्द्र सिंह को शत शत नमन.
    आपने जो एक बात कही है की "कमबख्त फौजियों को ढंग से शोक मानना तक नही आता", उसपे कुछ कहना चाहता हूँ. फौजी बलिदान गाथा कहना जानते हैं, शोक मनाने का तो उन्हें वक्त ही नही मिलता. कुछ ग़लत कहा हो तो छमा चाहता हूँ.
    ग़ज़ल बहुत ही अच्छी है, खासकर मतला, और आखिरी के तीन शेर मुझे बहुत पसंद आए.

    ReplyDelete
  12. गौतम मैं सदमे में हूं पिछले दिनों से । उस पर नकवी, केरल का वो घटिया सा मुख्‍यमंत्री, पाटिल, देशमुख, रामगोपाल वर्मा ऐसा लग रहा है कि मैं भी इन सबको ..... खैर तुम्‍हारी ग़ज़ल का मकता बहुत मर्मस्‍पर्शी है । उन्‍नी को मेरी ओर से श्रद्धांजलि ।

    ReplyDelete
  13. पिछले ४ दिनों से कुछ लिखने का मन नही था ,गुस्सा ओर आक्रोश तब भी हुआ था जब बाटला काण्ड के शहीद मोहन चाँद शर्मा पर उंगुली उठी थी .....लेकिन लगा देश इस बार चेतेगा .२९ साल के नौजवान ओर उसके साथी की शाहदत पर लोग एक आंसू जरूर बहायेगे.पर अफ़सोस ......यहाँ ये साबित होता है की इस देश की सत्ता नपुंसक ,ओर मुर्ख ओर कायर लोगो के हाथ में है ..जो अहसानफरामोश भी है
    मेजर उन्नीकृष्णन, हवलदार गजेन्द्र सिंह को शत शत नमन.

    ReplyDelete
  14. एक ब्लॉगर. एक गज़लकार, एक साहित्यिक अभिरुचि के व्यक्ति के रूप में आप के लिये मन मेंस एक विशेष स्थान था, मगर आज वो स्थान बहुत ऊपर रख दिया है। क्योंकि पहले सारे काम मैं करने की कोशिश कर सकती हूँ..मगर वो जो आप कर रहे हैं हम चाह कर भी नही कर सकते...!

    हम जो कह रहे हैं, वो आप वक़्त आने पर कर दिखाएंगे...!

    heads off to you, heads off to Indian Army and heads off to Unni

    काश हमें भी ऊपर वाले ने ऐसी किस्मत दी होती।

    ReplyDelete
  15. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  16. Blog, bhaashan, vilaap chhodiye. Ye bataiye hum common-men kya kar sakte hain? Sabhi ka khoon khauk raha hai aur sabhi kuchh karna chaahte hain. Magar ye nahin samajh mein aata kya karein. Aur iseemein thode dinon mein zindagi aam sadak per aa jaati hai.

    Aap shayad koi sujhaav de sako ke ek aam aadmi kis tarah se haath bataa sakta hai.

    ReplyDelete
  17. उन्नी जी को हमारी श्रधांजलि...काश उनका बलिदान व्यर्थ न जाए...
    आप की ग़ज़ल कमाल की है और मकता...क्या कहूँ रोंगटे खड़े करने वाला है...जय हो...
    नीरज

    ReplyDelete
  18. गौतम
    क्या कहें! उन्नीकृष्ण और अन्य शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजली!
    ख़ूबसूरत ग़ज़ल है और हो भी क्यों ना हो, पंकज सुबीर जैसे अनुभवी उस्ताद की शागिर्दी में यही तो लाभ है। हिंदी-साहित्य से जुड़े हुए ग़ज़ल-प्रेमी पंकज सुबीर के ऋणी हैं। उर्दू और रोमन में ग़ज़ल की पाठशाला मैंने देखी हैं। लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत में इस क़िस्म की पाठशाला पंकज भाई ने ही शुरू की थी।
    वो बात अलग है कि कुछ लोग बीच में ही छोड़ गये और अधूरे ज्ञान की वजह से ग़लत ग़ज़लें लिखीं और पंकज भाई की रहनुमाई का ज़िक्र करते रहे जो ठीक नहीं था।
    जहां आपकी बात है, साफ़ दिखाई देता है कि मेहनत की है और मुझे पूरा यक़ीन है कि आप इस मंझे हुए गुरू का नाम पैदा करोगे।
    उम्र अब इस क़ाबिल नहीं रही कि तुम्हें कुछ सलाह दे सकूं पर फिर भी यह कहूंगा कि
    टिप्पणियों के नंबर बढ़ाने के चक्कर में अपनी रचनाओं का स्तर कभी भी नीचे मत गिराना।
    टिप्पणियों के नंबर की बजाय ग़ज़ल के तख़्खयुल और तग़ज़्ज़ुल दोनों पर ध्यान रखना।
    महावीर शर्मा

    ReplyDelete
  19. क्या बात है है। आपकी गज़ल के क्या कहने। कम मिलती है सही गज़ल (व्याकरण की दृष्टि से भी) पढ़ने को ब्लाग पर।

    ReplyDelete
  20. गौतम जी, आपकी गजल दिल को छू गई...कमाल क लिखते हैं आप। शहीद मेजर साहब को शत शत
    नमन, आपने ब्‍लाग में अपना परिचय नहीं दिया आपके बारे में जानने की जिज्ञासा है...

    ReplyDelete
  21. ... हम भी सबके साथ मौन खडे हैं।

    ReplyDelete
  22. बेहतरीन शेर निकाले हैं आपने...
    आपकी संवेदनाऒं को नमन.....

    ReplyDelete
  23. kya kahun...par is naujawan ka ye rang jo aapne dikhaya hai, yakin nahin hota ki ek jaljala aaya aur gujar gaya. jaane kitni tabahi le kar aaya aur kitno ki aankhein umr bhar sooni rahengi.
    shaheedon ko naman. aajkal thoda incoherent ho jaa rahi hun, samajh nahin aata kya likhun.

    ReplyDelete
  24. nice blog......

    or sach mein hume acha lagega agar aap meri website (www.sunehrepal.com) par bhi join kare .... aapki joining ka intzaar rahega...

    take care

    ReplyDelete
  25. भाई गौतम जी

    बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया
    .

    इस ग़ज़ल का मक़्ता मर्मस्पर्शी है.


    आपको पढ़ बहुत-सी जागती हैं

    यादों का इक घना जंगल वाला शेर भी पसन्द आया.

    द्विज्

    ReplyDelete
  26. आपको पढ़ कर बहुत- सी आशायें जागती हैं.

    ReplyDelete
  27. आप भारतीय सेना में हैं, मुझे इसका पता यह पोस्ट पढ़ कर हुआ. जो मुंबई में हुआ वो बहुत दुखद था. ईश्वर भारत मां के उन सभी लालों को सद्गति प्रदान करे जो की देश हित में बलिदान हुए हैं.

    'हवा में बचपना निकला' , जवानी आसमानों में,
    करेंगे याद उनको हम हमेशा दास्तानों में.

    ReplyDelete
  28. अमर शहीद मेजर संदीप को शत-शत नमन्।
    जय हिंद !!

    ReplyDelete
  29. अमर शहीद मेजर संदीप को शत-शत नमन्।
    जय हिंद !!

    ReplyDelete
  30. Dear Sir, its great to go through your posts..
    very touching and inspiring
    its indeed a great gift you have to express feelings so perfectly, which are close to the hearts of many.
    looking ahead to many more
    cheers to you!!!

    ReplyDelete

ईमानदार और बेबाक टिप्पणी दें...शुक्रिया !