अभी उसी दिन तोरूपम जी ने अपने ब्लौग पर एक बड़ी ही प्यारी गज़लनुमा कविता सुनायी थी अपनी नन्हीं बेटी की बाल-कारगुजारियों पर.पढ़ कर एक अपना शेर याद आया.सुनाना चाहता हूँ.लेकिन साथ में शेष गज़ल भी सुननी होगी.
बहर है:- बहरे हज़ज मुसमन सालिम
वजन है:- १२२२-१२२२-१२२२-१२२२
उठेंगी चिलमनें अब तो यहाँ तू देख किस-किस की
चलो खोलो किवाड़ें,दब न जाये कोई भी सिसकी
जलूँ जब मैं, जलाऊँ संग अपने लौ मशालों की
जलाये दीप जैसे जब जले इक तीली माचिस की
सितारे उसके भी,हाँ,गर्दिशों में रेंगते देखा
कभी थी सुर्खियों में हर अदा की बात ही जिस की
उसी के नाम का दावा यहाँ हाकिम की गद्दी पर
फ़सादें जो सदा बोता रहा है, यार चहुँ दिस की
हवाओं के परों पर उड़ने की यूँ तो तमन्ना थी
पड़ा जब सामने तूफां,जमीं पैरों तले खिसकी
अगर जाना ही है तुमको,चले जाओ,मगर सुन लो
तुम्हीं से है दीये की रौशनी औ’ हुस्न मजलिस की
...और अंत में मेरी बेटी तनया{मेरी इकलौती मुकम्मल गज़ल} के लिये
जरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
थकन सारी मैं भूलूँ यक-ब-यक दिन भर के आफिस की
{मासिक पत्रिका "आजकल" के जून 2010 वाले अंक में प्रकाशित}
पुत्री के प्रति भाव बहुत सुन्दर है ! शेष , गोतम जी हम इस हुनर के बारे मे बिल्कुल अनाडी हैं ! आपकी गजल कहने की भावना से ही हमको तो ये लाजवाब लगी बाकी फ़ैसला तो गुरुजी के हाथ ही है !
ReplyDeleteराम राम !
इस सुंदर गजल के लिये आप का धन्यवाद
ReplyDeleteBACHCHE KI MUSKURAHAT SE DIL DIMAG KO SUKUN OR NAI URJA MILTI HAI. KASH ! WO HANSE RAHEN BAS. NARAYAN NARAYAN
ReplyDeleteआख़िरी शेर सबसे सुंदर :-)वज़न-बहर सब दुरुस्त मेरे अपने ख़्याल से।
ReplyDeleteबहुत ज़्यादा समझ तो नही है,मगर आपकी रचना बहुत अच्छी है।
ReplyDeletebehad khoobsoorat. khas taur se aakhiri sher.
ReplyDeleteगौतम जी /दब न जाए कोई भी सिसकी बिल्कुल आज की जरूरत है /अब तो सभी को मसालें जलानी होंगी /अदा भी आखिर कब तक सुर्खियों में रहेगी खोटे काम होंगे तो सितारे गर्दिश में होंगे ही ""जैसे करनी वैसी भरनी ""/वाकई ऐसा ही हो रहा है वो ही जज और वही फरियादी भी/पैरों तले जमीन खिसके गी ही आखिर कब तक ऊँट पहाड़ के नीचे नहीं आएगा /जब शमा की रौशनी उनसे है तो भला क्यों जायेंगे / बिल्कुल सही है तेरे पास आके मेरा वक्त गुजर जाता है दो घड़ी के लिय गम जाने किधर जाता है और फिर बिटिया हंस कर देख ले तो उस वक्त इन्द्रासन को भी ठोकर मारने को जी करे
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने ..
ReplyDeleteबेटी वाले शेर के साथ दो लोगो की याद आई एक अपनी niece की दूसरी अपने बाबूजी की.....!
ReplyDeleteजबरदस्त ग़ज़ल है.. वाकई
ReplyDeleteसच में बहुत खूब......कभी मैंने भी अपने बेटे पर कुछ लिखा था....
ReplyDeleteनन्हा शायर
वाह... गौतम जी, वाह.. बधाई और हां व्यस्तता लगभग खत्म हैं. आपका भेजा धनादेश व हिंदुस्तान दोनों मिल गये. कल परसों में कोरियर भेज रहा हूं.
ReplyDeleteShe'r number 3, 4 and 6 are great!!
ReplyDeleteनमस्कार गौतम जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने, हर शेर अपने हिस्से की कहानी कह रहा है मगर आखिरी शेर ने क़यामत ढा दी है.
bahut sundar..........
ReplyDeleteswati
वाह राजरिशी भाई वाह
ReplyDeleteज़रा सा मुस्कुरा कर मेरी बेटी मुझे देखे,
थकन भूलूं मैं यक-ब-यक दिन भर के ऑफिस की।
सारे शेर मुकम्मल हैं लेकिन आखिरी वाला कमाल
बिटिया हमारी ख़ुश रहे।
आला ग़ज़ल है - शुरू से आखिर तक।
ReplyDeleteएक दो जगह बहुत छोटी सी बातें हैं जिन्हें नज़रअन्दाज़ भी किया जा सकता है। फिर भी आपको ईमेल में भेज दूंगा।
बिटिया को हमारी तरफ़ से ढेर सारा प्यार।
गौतम जी आप की पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है...हर शेर लाजवाब...लेकिन हासिल-ऐ-ग़ज़ल शेर तो बेटी वाला ही है...इश्वर उसे हमेशा खुश रखे...
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छा लिखा है .और ऊपर से भावनाएं सोने में सुहागा का काम कर रही हैं ,
ReplyDeleteबधाई .
huzoor ! ek bahot hi kaamraab ghazal pr mubarakbaad qubool farmaaeiN. itne mushkil, nayaab aur ghair.shaayrana qaafiye kis khoobsurti se nibhaye haiN aapne !
ReplyDeleteAur iss radeef "ki" ko anjaam dena
to bs aap hi ka kamaal hai.
Ye aapke liye...
"khyaalo.lafz maanakhez haiN,
parvaaz umdaa hai ,
k 'gautam' tk pahunch jaae,
yahi aawaaz 'muflis' ki "
---MUFLIS---
ज़रा सा मुस्कुरा कर मेरी बेटी मुझे देखे,
ReplyDeleteथकन भूलूं मैं यक-ब-यक दिन भर के ऑफिस की।
आपकी बेटी को ढेरों आशीष....!!
वैसे तो पूरी गजल ही सुंदर है पर बेटीवाला शेर तो लाजवाब है। इतने दिनों बाद आना हुआ पर आनंद आ गया।
ReplyDeleteभाई बहुत सुंदर,
ReplyDeleteमाचिस की तीली वाला शेर और बिटिया वाला शेर बहुत पसंद आया.
आपको बढ़िया लिखने हेतु शुभकामनाएं और तनया को ढेर सारा स्नेह.