अपनी एक पुरानी गज़ल पेश कर रहा हूँ.मीटर पर कहीं-कहीं कसाव ढ़ीला हो गया है.फिलहाल जैसा भी है,आपके समक्ष है:-
आईनों पे जमी है काई, लिख
झूठे सपनों की सच्चाई, लिख
जलसे में तो सब खुश थे वैसे
फिर रोयी है क्यूं शहनाई, लिख
रेतों पर और कभी पानी पर
जो भी लिक्खे है पुरवाई, लिख
तेरी यादों में धुली-धुली-सी
अब के भीगी है तन्हाई, लिख
तारे शबनम के मोती फेंकें
हुई चांद की मुँह-दिखाई, लिख
क्या कहा रात ने जाते-जाते
क्यूं सुबह खड़ी है शर्माई, लिख
रूहों में उतरे बात करे जो
अब ऐसी भी इक रूबाई, लिख
{मासिक पत्रिका कादम्बिनी के अक्टूबर 08 अंक में प्रकाशित}
और अंत में ये एक और शेर...
पोथी पढ़-पढ़ कर पंडित बन ले
फिर तू प्रेम के अक्षर ढ़ाई, लिख
....ये आखिरी शेर की जमीन विख्यात शायर और बालकवि श्री शेरजंग गर्ग जी ने एक पोस्ट-कार्ड पर लिख भेज सुझाया है.
शेष आप सब पाठकों पर है.त्रुटियां----और हो सके तो दाद भी...
प्रेम के अढ़ाई अक्षर पहले भी पढ़े जा सकते हैं। उन के बिना तो पोथी पढ़ना भी बेकार है। अच्छी रचना है.
ReplyDeleteवाह भाई वाह खूब लिखा ! बहुत शुभकामनाएं !
ReplyDeleteचाँद और रूह पे सब तो लिख डाला
ReplyDeleteयूं अब मेरी होगी जगहंसाई ,लिख
तेरी याद में .....वाला शेर खूब है.....लिखते रहे .
ReplyDelete" good composition..."
ReplyDeleteRegards
तेरी यादों में धुली-धुली सी
ReplyDeleteअब के भींगी है तन्हाई लिख
वाह!!! मजा आ गया।
For me this is your best of Gazals I have read!! Each couplet is wonderful but I loved most the sand-and-water wala couplet!! Behr ka gyaan nahin hai mujhe, na ye pata hai yahan Behr kya hai, just giving an example ...
ReplyDelete"kyon subah khadi hai sharmaii" ko "kyon hai subah sharmaii" ya "kyon dubah khadi sharmaii"
.. aise karne se dekho agar theek hoti hai ?
Garg ji ka She'r bhi khoobsoorat hai. Kabeer ke aise hi dohe ki yaad dila gaya .. pothi padh padh jag mua pandit bhayo na koy ... dhaai aakhar prem ke padheso pandit hoy !
Congrats once again,
RC
lajawab gazal
ReplyDeletebehtreen hai bhai
ReplyDeleteमीटर की बात तो गुरूजी बताएँगे अलबत्ता बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...वाह...
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही सुंदर गजल कही आप ने .
ReplyDeleteअढ़ाई अक्षर ....
धन्यवाद
क्या बात है भाई. बहुत खूब.
ReplyDeletebahut achi rachna ha bahut-bahut badhai..
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है.
ReplyDeleteअच्छी बात यह है कि आप ग़ज़ल प्रेमी हैं.
ReplyDeleteयूँ ही शे’र कहते रहिेए.
धीरे-धीरे मीटर भी ठीक हो जाएगा.
आप को श्री शेरजंग गर्ग जी ने अपने शेर के माध्यम से आपको सही बहर सुझा दी है.
एक शे’र मुझे भी सूझा है:
"तेरे भीतर ही तेरी तुझ से
होती है जो रोज़ लड़ाई ,लिख."
द्विजेन्द्र ‘द्विज’
भाई गौतम जी
ReplyDeleteनमस्कार
एक सुंदर ग़ज़ल के के
लिए बधाई स्वीकारें
"" गौतम जी हम कलमकारों की
यही है बस कमाई, लिख ""
आपका
विजय
सुंदर रचना. अंतिम दो पंक्तियोने हमें कन्फ्यूज़ कर दिया. आभार.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
मीटर पर भले ही कसाव ढीला हो, लेकिन अभिव्यक्ति पर कसावा ठीक है. आगे मीटर भी देख लेना.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
अपना डाक पता शीघ्र भेजें
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर प्रेम का ढाई अक्षर देख-पढ़कर मन अभिभूत हो गया। शुक्रिया।
ReplyDeleteप्रिय गौतम जी /त्रुटियों वाबत लिख कर क्यों शर्मिन्दा कर दिया जहाँ तक दाद का सवाल है आप यदि मंच पर पढ़ रहे होते तो हम कितनी बार पढ़वाते बार बार वो कहकर क्या कहते हैं हाँ मुकर्रर इरशाद
ReplyDeleteभाई वाह, अब क्या कहें आज पहली बार आपके ब्लाग पर आए हैं और एक एक कर के पोस्ट्स पढ़ रहे हैं. हमको तो पता ही नहीं था की आपकी रचनायें कादम्बिनी में छपती हैं, भाई हमनें तो जब भी भेजीं सदा खेद सहित वापस आ गयीं :-).
ReplyDelete'रोई क्यों शहनाई लिख,' बहुत सुंदर लगा ये शेर..
gautam ji
ReplyDeletenamaskar
aapki tippaniyan prapt hoti rehti hain par main shama chahta hoon ki vyastaon ke karan jawab nahi de paata...........aapke dwara mere janamdin ki shubhkamnayein prapt huin uske liye bhi dhanyawad.............aapki ghazals ka collection vakai shandar hai.....badhai
kabhi hamari website bhi dekhin..........www.kavideepakgupta.com
aapka contact nos bhi mail karein.
kavideepakgupta
9811153282
aapki rachna padhkar maza aa gaya
ReplyDeleteतारे शबनम के मोती फेंकें
ReplyDeleteहुई चांद की मुँह-दिखाई, लिख
जो पढने पे फिर फिर पढ़े आदमी
हमेश ही ऐसी लिखाई, लिख
दाद के साथ
देवी नागरानी