उस दिन
>पारुल जी की एक खुबसुरत रचना "वर्षा वन" जाने कई यादें ताजा कर गयीं.कुछ तस्वीरों को उकेरने की कोशिश.ये कहीं से भी कविता नहीं.सच पूछिये तो इन छंद-मुक्त रचनाओं को कविता कहने का हक बस इनके सुत्रधार महाकवि निराला या फिर उनके समकक्ष के धुमिल,मुक्तिबोध,शमशेर..इन जैसे नामों को ही जाता है.फिलहाल एक तस्वीर किसी सुदूर वर्षा-वन की...
वर्षा-वन की तस्वीर कुछ यूं दिखाई
तुम ने उस दिन,
मन मेरा गया भटकने
एक और वर्षा-वन...
मौन निःशब्द
वन की निरवता को बरकरार रखने की चेष्टा में
कुछ भारी जुतों की पदचापें
आशंकित हृदय और नसों में
एड्रेनलिन की थापें
स्याह रातों का अंधेरा
जल-मग्न झाड़ियों में बसेरा
महसूस किया है तुमने कभी
चुभना पानी का भी
कभी भीगे हो तुम
बारिश और पसीने में संग-संग
जलाया है कभी तुमने
अपने बदन पे लिपटे
काले घिनौने जोंक को
अपनी सुलगती सिगरेट से...
झिंगुड़ों की झांय-झांय में
मच्छरों का कबिलाई राग
तीन दिनों की सूखी पुरियां
आह! वो अलौकिक स्वाद
चौथे दिन का ढ़लता सूरज
और गंध फ़िजा में बारूद की
चंद जिस्मों की मोक्ष-प्राप्ति
फिर वो उल्लास विजय की
...कुछ ऐसे ही रंग उभरते हैं
मेरे वर्षा-वन की तस्वीरों में...
विदा.जल्द ही मिलते हैं फिर
झिन्गुडो की झाँय झाँय में
ReplyDeleteमच्छरों का कबिलाई राग
तीन दिनों की सुखी पुरिया
आह ! वो अलौकिक स्वाद
भाई हमें तो ना छंदयुक्त का पता ,
और ना छंदमुक्त का !
पता सिर्फ़ इतना है की आपकी,
ये कविता बहुत पसंद आई !
आपकी संगत में ज्यादा रह गए,
तो छंद युक्त और मुक्त दोनों समझने लग जायेंगे ! :)
आपतो इसी तरह सुनाते रहिये !
बड़ा शुकून लगता है !
शुभकामनाएं !
चोथे दिन का ढलता सूरज
ReplyDeleteओर गंध फिजा में बारूद की
चंद जिस्मो की मोक्ष प्राप्ति ..
बहुत खूब.......ये पंक्तिया ख़ास पसंद आयी
vashaa van bahut dino tak yaad rehtey hain/rahasyon se bhare puure/shaant/sannaton ki avaazen...aur bhi kitna kuch!!!
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना लिखी हैं /मौन निशब्द बन की नीरवता /आपने वर्षा बन की तस्वीर खींची है मगर मुझे तो ऐसा लगा की जैसे बन में से कोई फोजी जा रहा हो / आपने हंस में दो पत्र छपने की बात लिखी है /बंधू मै ध्यान नहीं दे पाया /हंस के अंक वाबत लिखदेते /वैसे अक्टूबर का हंस तो मेरे पास आ चुका है नोम्बर का अभी आया नहीं है आपके प्रकाशित पत्र जरूर पढूंगा
ReplyDeleteक्या बात है.. वाह.. अच्छी रचना के लिये बधाई..
ReplyDeleteI am speechless!!
ReplyDeleteMujhe free-verse kavitaayein zyada pasand nahi. They dont look good unless they have a good punch.
These are awesome!!
बहुत खूब कविता कही है आपने, मुझे अपने IMA के दोस्तों के सुनाये हुए किस्से और कहानियाँ आंखों के सामने फ़िर से जीवित हो गए.
ReplyDeleteबड़ा जबरदस्त रच गये आप तो. बहुत ही सुन्दर-हर पंक्ति!!
ReplyDeleteहम भी ओरो की तरह से वाह वाह किये देते है, जब कि हमे कुछ ग्यान नही कविता का, लेकिन कुछ पक्तिया मन को भा गई सो वाह वाह दिल से निकली.
ReplyDeleteधन्यवाद
पानी का चुभना, बारिश और पसीने में एख साथ नहाना, जोंक को अपनी सिगरेट से जलाना ..नही किया तो नही कुछ भि इनमें से,.... लेकिन आज महसूस कर सकती हूं आपके माध्यम से कि कितना दुष्कर है ये सब..! बहुत खूब कह कर वज़्न कम नही करना चाहती..!
ReplyDeleteto main bhi pehli baar aap ke blog par aa hi gaya....bada hi khubsurat blog hain...mujhe khas kar ye shayar aur unke sher wala hissa behad pasand aaya...aur bhi padhunga aage...likhter rahiye...
ReplyDeleteBouth aacha post kiyaa aapne ji
ReplyDeleteShyari Is Here Visit Jauru Karo Ji
http://www.discobhangra.com/shayari/sad-shayri/
गौतम जी, अच्छा लिखते हैं आप। नये शब्दों का प्रयोग अच्छा लगा पर कविता दिल को नहीं छू पाई।
ReplyDeleteप्रयत्न जारी रखें। गजल भी अच्छी है पर कहीं सुधार की कमी रह गई।बधाई..
आपकी कविता को महसूस करके
ReplyDeleteमेरे मन में विचार आया कि ;
स्याह रातों का अँधेरा
जल मग्न झाडियों में बसेरा
कई दिनों तक ढूँढता रहा
खोया हुआ सबेरा
कभी भीगे हो तुम
बारिश और पसीने में संग-संग
देखे हैं कभी तुमने
ज़िंदगी के कई रूप एक संग
गौतमजी
ReplyDeleteअनूठी अभिव्यक्ति है आपकी--- महसूस किया है तुमने पानी का चुभना और साथ में पसीने के भीगना-- सच उमस भरी बारिशों की याद ताजा हो गई. बधाई स्वीकारें
बिल्कुल नए से भावों को शब्दों में पिरो दिया आपने तो.. बहुत बढ़िया कविता.
ReplyDeleteकंचन को मन से धन्यवाद देते हैं..
ReplyDeleteहम कभी भी ये अलौकिक रचना नहीं पढ़ पाते..
चंद जिस्मों की मोक्ष-प्राप्ति
फिर वो उल्लास विजय की
...कुछ ऐसे ही रंग उभरते हैं
मेरे वर्षा-वन की तस्वीरों में...
नवम्बर २००८...
हम काफी लेट मिले आपसे...