18 July 2017

इश्क़ उचक कर देख रहा है, हुस्न छुपा है ज़रा-ज़रा...

एक अरसा ही तो बीत गया जैसे ब्लौग पर कोई ग़ज़ल लगाए...तो इस 'एक अरसे' का अंत यहीं एकदम तुरत ही और एक ताज़ा ग़ज़ल:- 

आधी बातें, आधे गपशप, क़िस्सा आधा-आधा है
इसका, उसका, तुम बिन सबका चर्चा आधा-आधा है

जागी-जागी आँखों में हैं ख़्वाब अधूरे कितने ही
आधी-आधी रातों का अफ़साना आधा-आधा है

तुमसे ही थी शह्र की गलियाँ, रस्ते पूरे तुमसे थे
तुम जो नहीं तो, गलियाँ सूनी, रस्ता आधा-आधा है

इश्क़ उचक कर देख रहा है, हुस्न छुपा है ज़रा-ज़रा
खिड़की आधी खुली हुई है, पर्दा आधा-आधा है

उन आँखों से इन आँखों के बीच है आधी-आधी प्यास
झील अधूरी, ताल अधूरा, दरिया आधा-आधा है

ग़ुस्से में तो फाड़ दिया था, लेकिन अब भी अलबम में
जत्न से रक्खा फोटो का वो टुकड़ा आधा-आधा है

बाद तुम्हारे जाने के ये भेद हुआ हम पर ज़ाहिर
रोना तो पूरा ही ठहरा, हँसना आधा-आधा है


[ jankipul.com में प्रकाशित ] 

6 comments:

  1. इश्क़ उचक कर देख रहा है, हुस्न छुपा है ज़रा-ज़रा
    खिड़की आधी खुली हुई है, पर्दा आधा-आधा है
    उम्दा ! बहुत ही प्रभावी रचना आदरणीय ,आभार। ''एकलव्य''

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  2. आहा ..पढ़ कर आनंद आ गया सुबह सुबह . शेयर कर रही हूँ

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  3. 'जागी-जागी आँखों में हैं ख़्वाब अधूरे कितने ही
    आधी-आधी रातों का अफ़साना आधा-आधा है' आह हा आह हा...

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  4. ग़ुस्से में तो फाड़ दिया था, लेकिन अब भी अलबम में
    जत्न से रक्खा फोटो का वो टुकड़ा आधा-आधा है

    बाद तुम्हारे जाने के ये भेद हुआ हम पर ज़ाहिर
    रोना तो पूरा ही ठहरा, हँसना आधा-आधा है

    वाह!!

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  5. हाय कितनी प्यारी ग़ज़ल.....
    फोटो का आधा टुकड़ा....अहा !!
    जियो जियो बंदूकधारी....

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