कुछ अनूठे और आधुनिक बिम्बों का अपनी कविता, त्रिवेणी, क्षणिका और इन दिनों अपनी कहानी में भी इस्तेमाल कर, दर्पण ने कम समय में ही अपना एक बहुत ही खास स्थान बना लिया है हिंदी ब्लौग-जगत में। वहीं दूसरी तरफ अपने इश्किया शेरों और नाज़ुक ग़ज़लों को लेकर अर्श की पहचान किसी परिचय की मोहताज नहीं रह गयी है। आज प्रस्तुत है दोनों की जुगलबंदी- जहाँ दर्पण की एक प्यारी-सी ग़ज़ल को एक बहुत ही खूबसूरत धुन और अपनी दिलकश आवाज़ से सँवारा है अर्श ने।
दिल्ली में हाल ही में संपन्न हुये विश्व पुस्तक मेला के एक भ्रमण के बाद जमी बैठकी में ये जुगलबंदी साकार हुई, जहाँ सम्मोहित-सा बैठा मैं कुछ यादें चुराता रहा अपने कैमरे में और अपनी एक छोटे से आडियो-रिकार्डर में। पेश है ये खास जुगलबंदी:-
मुस्कुराते रहे दिल लुभाते रहे
बात कुछ और थी, तुम छुपाते रहे
दर्द जैसा मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
लोग सदियों इसे गुनगुनाते रहे
इस कदर मुफ़लिसी का चढ़ा है जुनूं
अपने अहसास भी हम लुटाते रहे
एक शोखी नयी, इक नया-सा सुकूं
इस भरम में ही पीते-पिलाते रहे
खैर दुनिया तो हमने भी देखी नहीं
हाँ, मगर एक दुनिया बनाते रहे
जिंदगी रूठ जाने की हद हो गयी
जिंदगी भर तुझे हम मनाते रहे
तुम चले भी गये औ’ गये भी नहीं
होंठ में स्वाद से याद आते रहे
आज जाकर मुकम्मल हुई इक ग़ज़ल
आज अपना ही लिक्खा मिटाते रहे
...ग़ज़ल तो खैर खूबसूरत है ही, इस लाजवाब धुन ने और मोहक आवाज ने इसकी खूबसूरती और बढ़ा दी है। कहीं-कहीं जो अर्श गाते हुये अटक रहे हैं, तो दोष दर्पण की लिखावट का है। बहरो-वजन को तौलते हुये तुरत-फुरत धुन बना कर गा देना, अर्श के ही सामर्थ्य की बात थी। इस बहरो-वजन का जिक्र पहले ही कर चुका हूँ मैं, इसी जमीन पर लिखी मेरी एक ग़ज़ल को जब आप सब के साथ साझा किया था।
फिलहाल इतना ही। अगली पोस्ट पर मिलता हूँ जल्द ही...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
ReplyDeleteआनन्द आ गया सुन पढ़ कर...उम्दा प्रस्तुति!
ReplyDeleteजबरदस्त जुगलबंदी.. अर्श मियां की आवाज़ तो कमाल है.. शोखी नयी पर हमारी भी दाद शामिल कर लीजियेगा.. आयर तुम चले भी गए और गए भी नहीं पर दर्पण को शाबाशी की डाल पकड़ा दीजियेगा.. और तकनीक के सही इस्तेमाल के लिए आपको १०० नंबर..
ReplyDeleteवैसे दर्पण के लिखे को गाने में मज़ा ही अलग है.. हम तो ये काम पहले ही कर चुके है.. उनकी 'अब मुसाफिर थक गया तो सो रही है मंजिले.. ' को रिकोर्ड करके...
आपने तो मंडे फंडे बना दिया... आई होप कोई इसे नापसंद नहीं करेगा.. :) (इमेजिन कीजिये मुस्कुराते हुए आँख मार रहा हूँ..)
हमजोलियों की यह गजल संध्या तो बहुत जोरदार रही
ReplyDeleteदर्द , जैसे मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
ReplyDeleteलोग सदियों इसे गुनगुनाते रहे .....
जी हाँ ,,, याद है आज भी,, अभी भी
उस दिन वहाँ ना होते हुए भी
मैं वहाँ ही तो था आप सब के पास
और फोन पर लगातार आप सुनवा भी रहे थे
वो आवाजें,,,वो स्वर,,,,वो आलाप,,,,
और वो सब वाह-वाही ...
सभी महफूज़ हैं जेहन में
और मेरे एस एम् एस भी आपने संजो के रक्खे या नहीं
दुबारा आना होगा.....
बधाई .
गजल सुनने के बाद गजल और अच्छी लगी। सुन्दर! बेहतरीन!
ReplyDeleteवो कितनी हसीं शाम रही होगी..जिसकी आहट ने इस सुबह को चौंका दिया , सबका आभार
ReplyDeleteवाह । अपना ही लिखा मिटाते रहे । यह सृजन की आवश्कता भी, आनन्द भी ।
ReplyDeleteवाकई अच्छी गज़ल है. अभी सुन नहीं सका.. फिर प्रयास करूंगा फुर्सत में।
ReplyDelete--आभार।
kaid lamhe , khyaal aur swar bahut achhe lage....
ReplyDeleteराजरिशी जी...........
ReplyDeleteदर्पण और अर्श की यह जुगलबंदी वाकई खूब जँची........किशोर कुमार स्टाइल में ( ..........वो शाम कुछ अजीब थी वाले अंदाज़ में ) अर्श ने जिस तरह गाया .....वो बड़ा सुखद रहा........... ग़ज़ल तो खैर अच्छी थी ही....अच्छी प्रस्तुति.....!
bahut khoob....Arsh gaate bhi achcha hai...iska pata aaj hi chala :-)
ReplyDeleteदोनों अद्भुत इंसान हैं, तारीफ करने को इनके लिए शब्द जुटाने पड़ेंगे.
ReplyDelete७ फरवरी २०१० की शुरुआत जब जब रात १२.०० बजे हुई तब हम भी शामिल हुए थे लखनऊ से डायरेक्ट इस सम्मेलन में। संयोग से अर्श मियाँ यही गज़ल गुनगुना रहे थे उस समय।
ReplyDeleteआवाज़ और शब्द दोनो का धनी बनाया है ईश्वर ने अर्श को।
और ये दर्पण.. ये तो हम सब बुजुर्गों की वाट लगाये पड़ा है। समझ नही आ रहा कितनी समझ डेवलप कर ली है इसने, जो हमारी खोपड़ी के ऊपर से गुजर जा रही है।
दोनो अनुजों पर नाज़ है और हमेशा आशीष इनके उत्तरोत्तर प्रगति हेतु।
इनके को इनकी पढ़ें
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti.........do sitaron ka hai zameen par milan aaj ki raat..........adbhut.
ReplyDeleteवाह .. ग़ज़ब की ग़ज़ल और उतनी ही खूबसूरत आवाज़ ... अर्श ने तो कमाल कर दिया ...
ReplyDeleteआपने तो यादें समेट लीं अब धीरे धीरे बाँटने का भी शुक्रिया गौतम जी ...
अब मुझे लगता है काश मैंने थोड़ी और कोशिश की होती .. कोई बहाना ही बना दिया होता !!!!!!
ReplyDeleteOMG! I am still missing.
बीच में आपकी जिंदादिल आवाज़ "क्या मिसरा है" सुनाई दी, लगा आपसे बात हो गयी.
जोशीले जवानों की त्रिवेणी को दाद देता हूं ।
ReplyDeleteअर्शजी की धुन और आवाज़ सुनने के लिए इस ओर आकृष्ट हुआ। बढ़िया है …
लेकिन
अर्शजी का भी यहां ध्यान कैसे नहीं गया ?
दर्द ' जैसा 'मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
लोग सदियों इसे गुनगुनाते रहे सदियों
दर्द जैसा नहीं, दर्द ; जैसे मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
होना चाहिए था ।
फ़िर …
'होंठ में ' स्वाद से याद आते रहे
जमा नहीं !
हासिले-ग़ज़ल शे'र है तो यह …
आज जाकर मुकम्मल हुई इक ग़ज़ल
आज अपना ही लिक्खा मिटाते रहे
लेकिन सृजनशील रचनाकारों से बहुत उम्मीदें हैं ।
शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
दर्पण और अर्श की जुगलबंदी...एक ने लेखन से और दूसरे ने गायन से चमत्कृत कर दिया है...वाह और क्या चाहिए...हम तो सुनते रहे गुनगुनाते रहे...आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ इस सोच में हूँ...लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteनीरज
बहुत इत्मीनान से सुना आज. लगा महफ़िल में शामिल हूँ. पहली बार सुना अर्श जी को.
ReplyDeleteदर्पण जी का ग़ज़ल ह्म्म्म आगे और सुनना पड़ेगा.
एक यादगार सूटिंग आपका. यहाँ बांटने के लिए शुक्रिया.
@ स्वर्णकार जी ग़ज़ल का शे'र :
ReplyDeleteदर्द जैसा मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
लोग सदियों इसे गुनगुनाते रहे
वाकई में
दर्द जैसे मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
लोग सदियों इसे गुनगुनाते रहे
ही है.
जैसा की गौतम दाज्यू ने कहा...
...दोष दर्पण की लिखावट का है।
BTW: आपकी टिप्पणी भाई.
@ गौतम दाज्यू मुझे अब भी याद है आपका इस शे'र में कमेन्ट कि लोग सदियों कि वजह से ये generlised हो गया है. और कुछ कुछ यही feeling मेरी भी थी इस शे'र को लेकर.
वापिस आता हूँ (सच में ! ). फुरसतें किश्तों में मिलती हैं आजकल. एक एस. ऍम. एस. किया था आपको, कॉल करने के बाद. उस वक्त नहीं मिला आपको, अच्छा ही हुआ.
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ReplyDeleteइस जुगलबंदी का भरपुर आनंद लिया जी। दर्पण जी के लेखन के हम पहले से कायल है और अर्श जी आज हम भी फैन हो गए।
ReplyDeletejugalbandi ka apnaa alag aanand he, shaastriya sangeet aour nrutyo ki jugalbandi bahut dekhi..aur jugalbandi ka aashiq ho gaya..idhar darpanji-arshji ki jugalbandi ko aapne saheja to yah tibalbandi ho gai., behatreen
ReplyDeleteअच्छी रही ये जुगलबंदी ! हम तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteआनन्द आ गया . अर्श की आवाज कमाल दर्पण क कलाम व्ह भी कमाल
ReplyDeleteतुम चले भी गये औ’ गये भी नहीं
ReplyDeleteहोंठ में स्वाद से याद आते रहे
दर्पण और अर्श की यह जुगलबंदी, अच्छी रही प्रस्तुति
''nice''
ReplyDelete..
.
badhiya
ReplyDeleteफुर्सत किश्तों में मिलती है आजकल...
ReplyDeleteसही कहा jhon .....
कल मिली भी थी.....
और सोच भी आप ही दोनों महानुभावों से मिलने की रहे थे.....
थे भी आधे रास्ते पर...
पर आखिर सोचते ही रह गए...फुर्सत वापस चली गयी...
रात में लौटे तो ये पोस्ट देखी...और पहला कमेन्ट बड़े फुर्सत में किया...
अभी हालांकि जाना है..इसीलिए ये दूसरा कमेन्ट ज़रा जल्दी में....
अब सुनिए उस ख़ास शे'र में क्या लुत्फ़ है......
असल में सब लोग सुनकर कमेन्ट दे रहे हैं....और हम सुन पाने से मरहूम...नहीं ....
महरूम हैं..
:)
अपना प्यारा मोबाइल जो पटक कर तोड़ दिया है....अब जाने कब सुन सकेंगे.....
मगर क्यूंकि हमने लाइव सुना है....वो धुन अभी भी यूं की यूं ज़हन में बसी हुई है...
सो ..हम समझ सकते हैं..कि.........
तुम चले भी गये औ’ गये भी नहीं
होंठ में स्वाद से याद आते रहे
अपने इधर जम रहा है ये शे'र...
ReplyDeletesimply amazing ...fantastic words wd melodious voice !
ReplyDeleteThankx gautam ji for sharing
Cheers !!
बहुत सुंदर प्रयोग ....और आपका चुराना भी सार्थक .बहुत बहुत बधाई .
ReplyDeleteआप अगर अर्श से मेरी भी सिफारिश कर देज़ं तो अपनी भी कोई गज़ल संवर जाये। जितनी खूबसूरत गज़ल है उतनी ही आवाज़ पता नही क्यों आपनी इस खूबी को अर्श अपने पास लिये बैठा है क्यों उसे सब के सामने नही लाता ये तो वही जाने। ये जोडी यूँ ही बनी रहे दोनो को बहुत बहुत आशीर्वाद । और इस पोस्ट के लिये धन्यवाद आशीर्वाद्
ReplyDeleteसमझ नहीं पा रहा हूं कि "शिवा को बखानौं या बखानौं छत्रसाल को"। इस सम्म्होहन से उबरूं तो टिप्पणी करूं!!!
ReplyDeleteऔडियो फाइल मिल जायेगी क्या?
दो बिगड़े हुए लोगो के मिलने के बाद मौसम में सडन क्लाइमेटिक चेंज होते है .......ओर तीन के बाद तो शर्तिया ....अर्श ओर दर्शन दो हीरे है...आपकी संगत में शायद ओर तरश जायेगे ....
ReplyDeleteअगली महफ़िल की कोई डेट?
मेरा कुछ किया धरा नहीं है ये सब दर्पण और गौतम भाई का है !
ReplyDeleteऔर उसके मास्टर हैं मनु भाई उनकी तो पूछो मत बिच बिच में ठहाके और वाह उफ्फ्फ मेरी आवाज़ से कहीं बेहतर कशिश लिए हुए है , और मेजर साब का अहा वाला ठहाका ये दोनों शादी -शुदा लोग हमें अकेले छोड़ते ही नहीं अपनी हुनर से छा जाते हैं ... उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़
राजेंद्र स्वर्णकार जी की बात को सर आँखों पर ... वेसे भी बच्चे गलतियां तो करते ही हैं ना ...
बहन जी मेरी बात ना करो मेरे से कहीं खुबसूरत आवाज़ आपको अलाह मियाँ :) ने आपको बख्शी है ... पर दर्पण के बारे में ये सही है के कभी कभी हैरत में हो जाता हूँ उसकी बातों पर के आखिर ये अपने उम्र से बड़ा कैसे हो गया कहता तो है २५ या २६ या २...... का है मगर बातें तो ...
वो शाम वाकई हसीं थीं मगर हमारे एक उस्ताद जनाब मुफलिस जी नहीं रहे थे इसलिए कमी खल रही थी , मगर इन डैरेक्ट रूप से खलल :) :) मन को सुकून पहुंचा रहा था ...
और रवि भाई के टिपण्णी के तरीके का भी हम कायल है या खुदा इस इंसान को इतनी शुद्ध हिंदी क्यूँ देदी ...
और डाक्टर साहिब अगली तारीख आपको बता दी जाएगी मगर शर्त ये है के आप मौजूद होंगे जरुर... :)
और माँ आपकी ग़ज़ल सुनील डोगरा जी बढ़िया गाते हैं :)
आप सभी गुनी जनों का दिल से ढेरो आभार पसंद करने के लिए......
आप सभी का
अर्श
Filhaal sirf Ghazal padh payi hoon ... waqt kam tha to pehle Ghazal padhee ...
ReplyDeleteYah ashaar bahut pasand aaye ..
इस कदर मुफ़लिसी का चढ़ा है जुनूं
अपने अहसास भी हम लुटाते रहे
खैर दुनिया तो हमने भी देखी नहीं
हाँ, मगर एक दुनिया बनाते रहे
आज जाकर मुकम्मल हुई इक ग़ज़ल
आज अपना ही लिक्खा मिटाते रहे
God bless
RC
दो बिगड़े हुए लोगो के मिलने के बाद मौसम में सडन क्लाइमेटिक चेंज होते है .......ओर तीन के बाद तो शर्तिया ....अर्श ओर दर्शन दो हीरे है...आपकी संगत में शायद ओर तरश जायेगे ....
ReplyDeleteanuraag ki tippni se behtar to kch ho hi nahi sakti .
gazal suni
जिंदगी रूठ जाने की हद हो गयी
जिंदगी भर तुझे हम मनाते रहे.
hmne khaas apne iye rkh liya hai .
bs aise hi khushnuma shaamen aap ki jindgi me baar -baar aayen is shbhkaamnaayon ke saath
गौतम जी कल से भटक रहे है
ReplyDeleteकल कई बार आये गजल सुनाने का लिंक दिखा ही नही सोचा नेट स्पीड स्लो होगी आज भी नहीं मिला :(
अगर मुनासिब समझें तो क्लिप मेल कर दे
एक साथ गजल और आवाज की तारीफ़ करेंगे
और हाँ वो पुराणी वाली फाईल भी भेज दें
अरे वही अर्श भाई की "इश्क मुहब्बत आवारापन"
उनसे माँगी तो कहा मेरे पास नहीं है गौतम जी से मांगो :)
भेज देंगे ना प्लीज़ :)
वाह! क्या जुगलबंदी है ...दर्पण की ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.और अर्श की प्रस्तुति भी.
ReplyDelete[@अर्श ,शब्द 'शोखी' को बहुत उछाला है आप ने!:)
'छुपाते'[२:५३ पर]-[४.००].[४:२८ ].बेचारे इस शब्द को भी नहीं बख्शा!]
:D बहुत आनंद आया सुनने में.
अर्श भाई और दर्पण जी ने तो समां बांध दिया है,
ReplyDeleteमुस्कुराते रहे दिल लुभाते रहे
बात कुछ और थी, तुम छुपाते रहे
अर्श आपकी मखमली आवाज़ ने घायल कर दिया और बीच-बीच में आपका वो "और" को खींचना तो जान ले गया.
दर्पण जी ये मिसरा "तुम चले भी गये औ’ गये भी नहीं" बहुत खूबसूरत निकला है, वाह वाह वाह
आप दोनों ने दिल जीत लिया, बहुत बहुत बधाई
गौतम भैय्या आप ने इस बेहतरीन प्रस्तुति को यहाँ पे लाकर सभी को कृतार्थ कर दिया.
shukriya share karne ke liye...
ReplyDeleteडायल अप कनेक्शन ने सुनने का सुअवसर तो अभी नहीं दिया है,पर पढ़कर जो आनंद आया क्या कहूँ....लाजवाब...सिम्पली ग्रेट !!!
ReplyDeleteजल्दी ही सुनने की जुगत लगती हूँ...
दर्पणजी और अर्शजी ,
ReplyDeleteसकारात्मक दृष्टिकोण आपका अतिरिक्त गुण है । मुझे ख़ुशी है कि मैंने अपनत्व भाव से बात समझने वालों के साथ मन की बात की । … नहीं नहीं , ग़लती जैसी कोई बात नहीं अर्श भाई !
आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं ।
मेरा ब्लॉग भी शीघ्रातिशीघ्र लॉंच हो रहा है !
शायद कल या परसों तक ही ! आप सभी "पाल ले इक रोग नादां..." से जुड़े मित्रों को आमंत्रण है …अवश्य ही पधारिएगा !
लिंक यह है
-http://shabdswarrang.blogspot.com
राजेन्द्र स्वर्णकार
पहाड़ और बिहार, दोनों पूरे देश पर भारी हैं. अर्श, दर्पण और राजरिशी, तीनों का कमाल देखा, सुना, सराहा. दर्पण को जब से जाना, उसका प्रशंसक हूँ. अर्श बहुत प्यारा बच्चा है. और बचे मेजर साब, "पाते हैं कुछ गुलाब पहाड़ों में परवरिश, आती है पत्थरों से भी खुशबू कभी कभी". सिर्फ दूसरों की प्रशंसा और अपनों का प्रचार कब तक? कभी अपने बारे में भी कुछ लिख मारा करो भाई.
ReplyDeleteमैं तुमसे नाराज़ होने की कल्पना शायद सपने में भी नहीं कर सकता. और फिर एक सवाल भी उठता है -क्यों? क्या किया है आपने मेरे खिलाफ? खेत-मेंड़- नाली-पानी, पट्टीदारी, वगैरह जैसा कौन सा लफड़ा हमारे बीच है?
यार, मैं किसी से नाराज़ होना जानता ही नहीं. कान पकड़ कर बोलता हूँ, मैं नाराज़ नहीं. अब मुर्गा बन कर विश्वास नहीं दिलाऊँगा.
एक अजीब ख़ूबसूरती का अहसास है इस सुन्दर जुगलबन्दी में, गौतम भाई। बहुत आनंद दिला दिया आपने। दर्पण जी ने तो बेहतरीन ग़ज़ल रची और अर्श। अहा क्या कहना है हमारे इस प्यारे भाई का! बहुत ख़ूब।
ReplyDeleteदर्पण चमक रहा है हर ओर..पर रोशनी तो सूरज की है..अर्श पर!..मजा आया सुन कर..गज़ल तो पहले पढ़ी ही थी..हम तो वैसे भी पढ़ने वालों मे हैं..कि फ़िल्मी लिरिक्स भी पढ़ कर आइडिया ले लेते हैं बस गाने का..मगर अर्श साहब की आवाज ऐसी जैसे गोरी को मखमल का पैरहन पहना दिया हो..शब-ए-महशर रही होगी वह तो.. जिसे बहुत बारीकी से मिस किया मैने..
ReplyDelete..और अब तो ’आपको’ भी पढ़ने का इंतजार लंबा हो चला है..
तुम चले भी गये औ’ गये भी नहीं
होंठ में स्वाद से याद आते रहे
दर्द , जैसे मुसलसल ग़ज़ल हो कोई
ReplyDeleteलोग सदियों इसे गुनगुनाते रहे .....
bahut shaandaar sher hai ....
kamaal ki jugalbandi
meri to badi khwahish hai ki kabhi Sakha meri bhi gazal gunguna den
magar kaha aise naseeb hamare ...... :-(
Goutam ji shukriya itni achchi gazal padhwane aur sunane ke liye
खैर दुनिया तो हमने भी देखी नहीं
ReplyDeleteहाँ, मगर एक दुनिया बनाते रहे
जिंदगी रूठ जाने की हद हो गयी
जिंदगी भर तुझे हम मनाते रहे
मैयारी शायरी पेश की है गौतम जी....
दर्पण जी और प्रकाश अर्श जी को बधाई.
बहुत ही खूबसूरत रचना की है हरबार की तरह
ReplyDeleteआभार ...........
जिंदगी रूठ जाने की हद हो गयी
ReplyDeleteजिंदगी भर तुझे हम मनाते रहे
Aah! Bas itnahi kah sakti hun..
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ReplyDeletewow kya baat hai.. jaane kab se downloaded thi, aaj sunne ka samay nikaal paya.. sachmuch shaandaar
ReplyDeleteगज़ल भी सुंदर और गायकी भी ।
ReplyDeleteअंतिम शेर तो कमाल का है ।
आज जाकर मुकम्मल हुई इक ग़ज़ल
आज अपना ही लिक्खा मिटाते रहे ।
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ReplyDeletemonday night...
ReplyDelete''paaal le ik rog naadaan'' ko dekhne aaye the mezar saahib.....
dekhnaa jaroori lagaa...
mon day thaa naa...!
:)
दर्पण भाई की प्रतिभा का कायल हूँ ! दर्पण हम नौजवानों की रचना-शक्ति के सहज दर्पण हैं ! हम अकेले दर्पण को खड़ा कर आश्वस्त हो सकने की स्थिति में युवाओं की ओर से !
ReplyDeleteगज़ल और उसकी गायकी- दोनों ने मन मोहा !
दर्पण और अर्श-दोनों भाईयों का आभार !
Phir ekbaar lutf utha liya!
ReplyDeletegood morning sir...
ReplyDelete:)
:)
उस हसीं शाम से हमारी सुबह खूबसूरत हो गयी ... जितनी अच्छी ग़ज़ल उतना अच्छा प्रस्तुत किया अर्श ने ...
ReplyDeleteSab kuchh theek thaak to haina? Aapko pichhali 3 kadiyonme 'Bikhare sitarepe' nahi dekha!Warna aap chookte nahi the..is malika ka 3ra aur antim adhyay bas shuruhi honewala hai...
ReplyDeleteAakhari kadime synopsis likh diya hai..Aapka hamesha intezaar rahta hai..
behad sunder.
ReplyDeleteit's good dude..
ReplyDeletei like dis