विगत कुछ दिनों से ब्लौग से एक अपरिभाषित-सी दूरी बन गयी है। मोह-भंग, कुछ अपनी व्यस्ततायें, वादी में गर्माता माहौल, ब्लौग-जगत की अजीबो-गरीब लीलायें...तमाम वजहें हैं, लेकिन वो कहते हैं ना कि शो मस्ट गो ऑन तो इसी कहन के हवाले से पेश है एक गीत। पिछले साल नवगीत की पाठशाला के लिये लिखा था मैंने इसे। वहाँ इस गीत पर चर्चा करते हुये गुरूजनों और विशारदों की आलोचनात्मक टिप्पणियों से ज्ञात हुआ कि गीत स्पष्ट नहीं कर रहा कि आखिर ये किससे संबोधित है। अब आपसब के समक्ष है। जरा पढ़ के बताइये कि क्या सचमुच इतना अस्पष्ट है कि किससे मुखातिब है ये रचना:-
सुख की मेरे पहचान रे !
तेरी सहज मुस्कान रे !
कहता है तू
तुझको नहीं
अब पूछता मैं इक जरा
इतना तो कह
है कौन फिर
इन धड़कनों में अब बसा
ले, सुन ले तू भी आज ये
तू ही मेरा अभिमान रे !
हर राग में
तू है रचा
सब छंद तुझसे ही सजे
सा-रे-ग से
धा-नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे !
आया जो तू,
लौ्टे हैं अब
जीवन में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे
ये सब महीने तेरे बिन
हर पल रहे तू साथ में
अब इतना ही अभियान रे !
....मुख्यतया ग़ज़ल-वाला हूँ तो गीत और कविता अपने सामर्थ्य की बात नहीं लगती। ये गीत भी उर्दू की एक बहर(बहरे-रज़ज) पर ही लिखा गया है। इस बहर पर बशीर बद्र की लिखी हुई एक बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है जिसे जगजीत-चित्रा के सम्मिलित स्वर ने नया ही आयाम दिया- "सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा-सुना कुछ भी नहीं"। एक इब्ने इंशा की भी लिखी हुई ग़ज़ल याद आती है इस बहर पर- "कल चौदवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा"। ...और चलते-चलते यशुदास का गाया हुआ एक बहुत ही प्यारा गीत याद आ गया, जो इसी बहरो-वजन पे है- "माना हो तुम बेहद हसीं, ऐसे बुरे हम भी नहीं"।
फिलहाल इतना ही।
सुख की मेरे पहचान रे !
तेरी सहज मुस्कान रे !
कहता है तू
तुझको नहीं
अब पूछता मैं इक जरा
इतना तो कह
है कौन फिर
इन धड़कनों में अब बसा
ले, सुन ले तू भी आज ये
तू ही मेरा अभिमान रे !
हर राग में
तू है रचा
सब छंद तुझसे ही सजे
सा-रे-ग से
धा-नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे !
आया जो तू,
लौ्टे हैं अब
जीवन में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे
ये सब महीने तेरे बिन
हर पल रहे तू साथ में
अब इतना ही अभियान रे !
....मुख्यतया ग़ज़ल-वाला हूँ तो गीत और कविता अपने सामर्थ्य की बात नहीं लगती। ये गीत भी उर्दू की एक बहर(बहरे-रज़ज) पर ही लिखा गया है। इस बहर पर बशीर बद्र की लिखी हुई एक बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है जिसे जगजीत-चित्रा के सम्मिलित स्वर ने नया ही आयाम दिया- "सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा-सुना कुछ भी नहीं"। एक इब्ने इंशा की भी लिखी हुई ग़ज़ल याद आती है इस बहर पर- "कल चौदवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा"। ...और चलते-चलते यशुदास का गाया हुआ एक बहुत ही प्यारा गीत याद आ गया, जो इसी बहरो-वजन पे है- "माना हो तुम बेहद हसीं, ऐसे बुरे हम भी नहीं"।
फिलहाल इतना ही।
गीत में भी आपके दिल की ही आवाज है तो भला प्यारी क्यों न हो!
ReplyDeleteहाँ, मुझे अंतिम पंक्ति में 'अभियान' शब्द कुछ कम जम रहा है जहाँ प्रेम है वहाँ अभियान क्या!
कुछ ऐसा हो तो कैसा रहे..?
कल तक रहा कंगाल मैं
अब हो गया धनवान रे
--अनाधिकार चेष्टा के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ मन हुआ सो लिख दिया।
आया जो तू,
ReplyDeleteलौ्टे हैं अब
जीवन में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे
ये सब महीने तेरे बिन
गौतम जी ग़ज़ल में तो सिद्धहस्त हैं ही बाकी रचनाएँ भी बेहतरीन होती है....बधाई देना चाहूँगा प्रस्तुत रचना बहुत बढ़िया लगी.
शो मस्ट गो ऑन
ReplyDeleteAmen!! गौतम जी ये सफ़र ऐसे ही चलता रहे.. :)
उपस्थित। फारसी बहरों की समझ नहीं है लेकिन आप के दिए उदाहरणों से लय का पता चला।
ReplyDelete'अभियान' वाकई खटक रहा है। तुक बैठाने के लिए 'न' से अंत होता और भाव को पूरित करता शब्द न मिले तो बस मात्राओं की तुक मिलाता शब्द डाल दीजिए।
'लघु लघु गुरु लघु (। । S |)' या 'लघु गुरु लघु ( । S |)'
योद्धा का 'मोह-भंग' महाभारत में अच्छा लगता है, इतर नहीं।
रचना को पढ़ते समय रचनाकार का कद आवश्यक रूप से अपने व्योम में पाठक को खींच ले जाता है. आपने इतने खूबसूरत शेर कहे हैं कि वे मन में जमा हो गए है. आपकी योग्यता के कारण ही पढने वाला "ये दिल मांगे मोर" के संक्रमण से पीड़ित हो जाता है. गीत पर कैसी टिप्पणियां आई होंगी उन्हें एक पंक्ति में समझा नहीं जा सकता फिर भी हर विधा में साध के लिए अनगिनत प्रयास जारी ही रहते हैं.
ReplyDeleteआप संवेदनशील इंसान हैं मगर इन भावनाओं से खुद को आहत ना करिए, ये तो खुद को संवारने की चीज है. व्यस्तता बनी रहे और आपका नायब लेखन भी. शुभ कामनाएं.
अगर ये नाजानकारी है तो सिध्हहस्तता किसे कहते होंगे ??
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है .. आपको बधाई
ReplyDeleteविगत कुछ दिनों से ब्लौग से एक अपरिभाषित-सी दूरी बन गयी है। मोह-भंग, कुछ अपनी व्यस्ततायें, वादी में गर्माता माहौल, ब्लौग-जगत की अजीबो-गरीब लीलायें...तमाम वजहें हैं.... गौतम भाई.... बिलकुल कुछ-कुछ ऐसा ही यहाँ भी है. यहाँ ब्लॉग जगत से काफी मोह-भंग हुआ है.... जिन्हें अपना समझा... वो कभी अपने थे ही नहीं... जिनका बुराई में भी साथ दिया.... उन्होंने ख़ुद यहाँ हम ही से बुराई कर दी... शायद हम ही गलत थे.... इंसां समझने में गलती हो ही जाती है...सबको अपना नहीं समझना चाहिए कभी.... अब तो बस पढ़ते हैं ब्लॉग पर... टिप्पणी(यों) से भी मोह-भंग हो गया है.... और उलटे-सीधे पोस्ट पढने से अच्छा है कि अपने सृजनआत्मक कामों में बिज़ी रहा जाए. अरे! यह क्या आज क्या मैं सेंटी हो रहा हूँ....? शायद हाँ! कभी-कभी कोई दोस्त ही मन की बात कह जाता है.... जो हम कहना चाहते हैं....
ReplyDeleteबहरहाल, आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी.... आपकी ग़ज़लों के लिए तो हम आपको सलाम करते ही हैं.... और कविता /गीत भी आप बहुत अच्छा करते हैं.
Have a nice day.....
आपके खींचने पर हम तो लौट आये और आप है कि नदारद है.. खैर शो मस्ट गो ऑन कह ही दिया है आपने तो हमें कोई शंका नहीं.. ग़ज़ल में तो आपकी मास्टरी है ही गीत में भी गजलिया रंग ले आये आप..
ReplyDeleteसा-रे-ग से
धा-नी तलक
क्या कह दिया है इस पंक्ति में आपने.. सेल्यूट मार लु तो बुरा तो नहीं मानोगे ना सर..? :)
मुझे लगता है कि यह गीत किसी नौनिहाल को सम्बोधित है। गीत सुंदर है।
ReplyDeleteमुझे यह रचना/गीत बहुत भली लगी.
ReplyDeleteहर पल रहे तू साथ में
अब इतना ही अभियान रे !
यह पन्क्तियाँ मुझे और आकर्षित कर गयी. इसमें साथ रहने की इच्छा है और प्रयास दीखता है.
ऊपर नीचे के पैरा से स्पष्ट होता है, अपने संतान के प्रति अभिव्यक्ति है.
हर पल चले तू साथ में
अब इतना ही अभियान रे ! (यह थोडा अधिक गतिमान लगता है)
भाव मर्म स्पर्शी हों तो गीत ग़ज़ल नज़्म सब अच्छी लगती है...इनमें फर्क भी नहीं रह जाता..आप की ये रचना भी बहुत भावपूर्ण है...हमेशा की तरह आपके भाव और शब्द कौशल से सजी...वाह...ब्लॉग जगत में ऐसा कुछ अज़ब नहीं हो रहा है जो इस के बाहर के जगत में होता है...तो फिर मोह भंग क्यूँ? बाहर भी तो अच्छे-बुरे सब तरह के लोग मिलते हैं...बुरों को भुलाएँ और अच्छों को गले लगायें तो मोह भंग नहीं होगा.... ना ब्लॉग जगत से और ना ही इसके बाहर वाले जगत से....:))
ReplyDeleteलिखते रहें और हम जैसों को अपना लिखा पढने का मौका देते रहें...क्यूँ की हमें आपका लिखा पढ़ कर आनंद आता है...
नीरज
हर पल रहे तू साथ में
ReplyDeleteअब इतना ही अभियान रे !
........सुंदर ।
तुम्हे मिस कर रहा था पिछले दिनों ....खास तौर से अपनी पोस्ट पर तुम्हारे कमेन्ट के बाद ....जगजीत की एक गजल सुनी थी सुबह..".अपनी आग को जिंदा रखना कितना मुश्किल है ".....बाकि रस्मो की बाते तुमसे क्या करूँ.....
ReplyDeleteअब इतना खुल्ले रूप से आप पूछेंगे तो हम जैसा मुंहफट तो कहेगा ही कि " गौतम जी कविता में वाकई कुछ टेक्नीकल समस्या है, कुछ उलझे हुए से शब्द हैं और अश्पष्टता दिख रही है... {कहता है तू, तुझको नहीं, अब पूछता मैं इक जरा}
ReplyDeleteऔर
अंतिम का अभियान तो वाजिब रूप से भटका रहा है...
ध्यान देने वाली बात यह है की ऐसा मुझे लग रहा है जो अपने कम ज्ञान स्तर के बल पर बोल रहा हूँ.
इसके अलावा,
सा-रे-ग से
धा-नी तलक
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे !
यह बातें शानदार हैं... बड़े दिनों बाद दिखे (दोनों :))
Rachana me ek purkashish goodhta zaroor hai par shayad wahi iska aakarshan hai...chand-se mukhpe jheena-sa ghoonghat!
ReplyDeleteMai na to lekhak hun na kavi,to zyada kuchh kahne ka ikhtiyar nahi rakhti..
lekhni kabhi n ruke, garm mahaul bhi tham jaye iske aage
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteदेर आमद , दुरुस्त आमद !
ReplyDeleteजय हिंद !
:-)......naina
ReplyDeleteशिल्प की मुझे समझ नहीं है मगर भाव मुग्ध कर गए !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
:(
ReplyDeleteफिर से आते हैं :)
ज्यादा समय की दरकार है
भाव स्पष्ट हैं......समझने में भी कोई मुश्किल पेश नहीं आ रही......
ReplyDeleteगीत सीधे सीधे दिल को स्पर्श करता है.....
फिर आप कुछ भी लिखें हम तो फैन हैं ही आपके
हा.....ब्लॉग पर देर से आने पर मेरी नाखुशी को ज़रा सीरयसली लीजियेगा.
मिलन का सुख विरह की गाथा को भुला देता है । बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी ये प्रस्तुती भी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ... वैसे हम जैसे गंवारों को सुर-ताल-लय-छंद के बारे में उतना ज्ञान नहीं है ...बस आपके सवाल के जवाब में कहना चाहूँगा कि कविता के भाव से लगता तो है कि किसी बच्चे के लिए लिखा गया है पर एक जगह
ReplyDeleteआया जो तू,
लौ्टे हैं अब
जीवन में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे
ये सब महीने तेरे बिन
ये पंक्तियाँ थोड़ी सी उलझा रही हैं !
माफ कीजियेगा...आपके सवाल के जवाब में लिख दिया ...पर यदि आपको बुरा लगे तो मेरा यह कमेन्ट ज़रूर delete कर दीजियेगा.
इतने दिनों बाद मिले मन खुश हो गया जी। वैसे इतनी निराशा ठीक नही होती। और निराशा को दूर करने के लिए गीत सुनने और लिखने ही चाहिए। इतने बडे जानकार नही कि कुछ कह सके। आप आए बस दिल खुश हो गया जी:)
ReplyDeleteयाद आ रही थी आपकी..सोंच रहा था क्या हुआ...कई सोमवार गुजर गए...
ReplyDeleteचलिए सही कहा 'शो मस्ट गो ऑन'
किसको संबोधित है
ReplyDeleteअपने 'उनको '
(वैसे आपकी कल्पना भिन्न हो तो मेल में खुलासा कीजिएगा)
वैसे कवि हृदय जिस ओर हाथ लगाए औसत से बेहतर तो रहता ही है। हाँ ये जरूर है कि आपकी ग़ज़लों को पढ़ने में आनंद कुछ और आता है।
गीत की लय बद्धता, भावों का संप्रेषण और शब्दों का संचयन-सब अपने स्तर पर पूरा प्रयास करते हैं कि उम्दा रहे अगर वह गंभीरता से रच रहे हैं. सुझाव तो हमेशा ही आमंत्रित रहते हैं अन्यथा कोई भी अपनी रचना लोगों के सामने क्यूँ लाता. किन्तु सुझाव मात्र इसलिए कि सुझाव आमंत्रित हैं और वो भी उस स्तर पर कि रचना का मूल ही खारिज हो जाये बिना सरल विकल्प सुझाये, अक्सर ऐसे भाव दे जाता है.
ReplyDeleteरचना तो बहुत सुन्दर है. लोग सुझाव भी दे ही रहे हैं. सीखने योग्य विकल्प हमेशा सुकून देते हैं.
यह भी ज्ञात है कि मोह भंग का कारण जो भी हो, उससे हमेशा उबरा जा सकता है और बेहतर तरीके से राह प्रशस्त की जा सकती है. मेरी अनेक शुभकामनाएँ.
मैं चुप हूँ
ReplyDeleteऔर वो समझते हैं
मेरे दिल की हर बात को...
खोली जो जुबां
तो बुरा मान गये!!!
(इसमें भी स्पष्ट नहीं है कि किसे संबोधित है, हा हा!!)
Common on!!! You are so right- Show Must Go ON!!!
गौतम जी आदाब.
ReplyDeleteवैसे तो ग़ज़ल कहना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन गीत की रचना और भी मुश्किल होती है. ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में मुकम्मल होता है. जबकि गीत की आखिरी पंक्ति तक एक ही सूत्र में बंधी होती है. आपका यह प्रयोग पूरी तरह सफ़ल है. जिसके लिये आप बधाई के पात्र हैं.
Dukh aur sukh sab ki pehchaan chehre se hoti hai...
ReplyDeleteaapne shayad , dil mein base 'chehre' ko sambodhit kiya hai.
बन्धु! भविष्य में कभी भी सत्य जानना हो किसी भी रचना के बारे में तो उस पे से नाम और परिचय के आवरण हटा अकेले रास्ते पे छोड़ दें ! अभी तो आप ही बिम्बित हैं टिप्पणियों में !
ReplyDeleteगौतम जी ,
ReplyDeleteइस गीत में अस्पष्टता तो लेश्मात्र को भी नहीं ,हां सुंदरता ज़रूर महसूस हुई,
गीत लिखना आसान काम नहीं और इतना प्यारा गीत लिखना तो बिल्कुल नहीं,
बधाई के पात्र हैं आप जो इतनी कठिन स्थितियों में भी इतना कुछ दे रहे हैं साहित्य को.
क्या भैया आप भी ना!!
ReplyDeleteदुनिया भर में तो ऐसे लोग होते ही हैं..
जब चेन्नई आ रहा था तो कितने ही लोग बोले थे कि यहाँ के लोग अच्छे नहीं होते हैं, अब मैं उन्हें बोलता हूँ कि बुरे लोग कहाँ नहीं होते हैं.. मैं सिर्फ अच्छे लोगों से ही मेल-जोल बढाता हूँ..
कुछ-कुछ मोह भंग तो मेरा भी हुआ था, मगर फिर स्वांत सुखाय के तर्ज पर लिखता रहा.. किसी को पढ़ना हो तो पढ़े, गालियां देगा तो पढ़ कर डिलीट मार देंगे.. और क्या?
मुझे भी अक्सर लगता है कि आप व्यस्त होंगे सो फोनियाने में संकोच होता है.. कभी फ्री हों तो आप ही फोन कीजियेगा..
और हाँ, आजकल कविता पढ़ने का मूड नहीं हो रहा है, सो बुकमार्क करके रख लिए हैं.. आराम से कभी मूड में पढेंगे.. :)
हर पल रहे तू साथ में
ReplyDeleteअब इतना ही अभियान रे !
मानसिक रूप से आप व्यथित रहे हैं, जानती हूं. लेकिन परिस्थियों को उनके यथारूप स्वीकारना भी तो पड़ता ही है न? बहुत सुन्दर कविता है. शिल्प की आपने जानकारी दी, मेरे जैसे कई लोग लाभान्वित हुए होंगे. आभार.
गौतम!
ReplyDeleteआपके लेखन में अतुल संभावनाएँ हैं, शैली भी क़ाबिले-तारीफ़ है, आपको अच्छा लिखने के अवसर भी हैं। बिना संघर्ष के अच्छा लेखन नहीं हो पाता, और आप तो यथार्थ संघर्ष से जुड़े हैं, सिर्फ़ भावनात्मक ही नहीं। आपके इस तपे हुए सोने की चमक देखने का अवसर हमें मिलता रहे, ऐसी कामना है।
ग़ज़ल वाले गीत में पिछड़ते नहीं, जो भी लिख रहे हैं, उसमें सिद्धहस्त होने के लिए थोड़ा रियाज़ तो चाहिए ही होता है न!
मैंने ख़ुद आज तक गीत केवल एक ही रचा है, मगर ये फ़र्क़ ध्यान रहे कि ग़ज़ल कही जाती है और गीत रचा जाता है। जैसे ही ये बात समझ में आ जाएगी, गीत भी रचे जाने लगेंगे, उसी सहजता से जिससे ग़ज़ल कही जा रही है।
इससे ये मतलब क़तई मत निकालिएगा, कि आपके गीत को कहीं कम आँका है, बस अपने बुज़ुर्गियत के एहसास में मश्वरा दे बैठा हूँ।
शुभकामनाएँ,
गौतम जी मुझे तो ये गीत अच्छा लगा ..अपनी समझ से यही कह सकती हूँ कि अपने प्रिय के लिए लिखा गया गीत है.
ReplyDeleteऔर भावों को स्पष्ट अभिव्यक्त कर रहा है...
यहाँ तक कि अब उस का साथ बनाये रखने के प्रयास को 'अभियान 'तक कह जाता है!
-
जि दिल ने भाव मे आ कर गया वही असली गीत है बस यूँ ही गाते गुनगुनाते और हमे सुनाते रहिये। जल्दी मे हूँ बहुत बहुत आशीर्वाद।
ReplyDeleteजि दिल ने भाव मे आ कर गया वही असली गीत है बस यूँ ही गाते गुनगुनाते और हमे सुनाते रहिये। जल्दी मे हूँ बहुत बहुत आशीर्वाद।
ReplyDeleteइन समस्त बेबाक टिप्पणियों के लिये आप सबका शुक्रिया...काश कि अपना ब्लौग-जगत यूं ही बगैर झिझक के आलोचना कर पाये हर पोस्ट पर। वीनस की मेल में आयी टिप्पणी की बेबाकी देखते ही बनती है:-
ReplyDeleteFrom: venus kesari
To: Gautam Rajrishi ; Gautam Rajrishi
Sent: Mon, 26 April, 2010 11:18:17 PM
Subject: मै जानता हूँ आप बुरा मानने वालों में से नहीं है :)
गौतम जी नमस्ते,
आपकी नई पोस्ट पढ़ी
हालांकि मुझे नई कविता,, छंद मुक्त गीत लिखना बिलकुल भी नहीं आता इस लिए जल्दी मै इन पर कमेन्ट भी नहीं करता
मगर आज आपकी पोस्ट के बाद कुछ कह रहा हूँ
आपकी गजल मुझे जितना पसंद आती हैं यह गीत उतना पसंद नहीं आया हालाकि बात ये भी है कि बार बार पढ़ने के बाद भी मै ज्यादा गहराई पर नहीं उतर सका
मूझे समझ ही नहीं आया कि इस कविता में क्या गूढ़ अर्थ छिपा है
और कविता मेरे लिए एक पहेली ही साबित हो रही है
बहरे रजज से पढ़ने पर तो और भी भाव बिखर जा रहे है
किशोर जी की कही बात से मै भी सहमत हूँ कि ,,
रचना को पढ़ते समय रचनाकार का कद आवश्यक रूप से अपने व्योम में पाठक को खींच ले जाता है. आपने इतने खूबसूरत शेर कहे हैं कि वे मन में जमा हो गए है. आपकी योग्यता के कारण ही पढने वाला "ये दिल मांगे मोर" के संक्रमण से पीड़ित हो जाता है. गीत पर कैसी टिप्पणियां आई होंगी उन्हें एक पंक्ति में समझा नहीं जा सकता फिर भी हर विधा में साध के लिए अनगिनत प्रयास जारी ही रहते हैं.
मुझे दुःख है मगर मै इस कमेन्ट से भी कुछ कुछ सहमत हूँ
बन्धु! भविष्य में कभी भी सत्य जानना हो किसी भी रचना के बारे में तो उस पे से नाम और परिचय के आवरण हटा अकेले रास्ते पे छोड़ दें ! अभी तो आप ही बिम्बित हैं टिप्पणियों में !
बेबाक टिप्पडी दी क्योकि मै जानता हूँ आप बुरा मानने वालों में से नहीं है :)
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आपका वीनस केसरी
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और अंत में नैना, आपको अलग से खास शुक्रिया कि आपको पता है ये गीत किसको संबोधित है... :-)
जहाँ तक मेरा अल्प ज्ञान कार्यरत है, उसके प्रकाश में मैं यही कहता हूँ कि यह भरपूर गीत है. 'अभियान'शब्द ने इस गीत को एक नई ख़ूबसूरती दी है. प्रेम को मिशन बनाना एक अनूठा प्रयोग है और आप को इस प्रयोग के लिए बधाई अवश्य मिलनी चाहिए. हो सकता है बहुत से लोगों को कुछ और भी शब्द अटपटे लगें लेकिन गीत के शिल्प एवं शास्त्र का जिसे भी, हल्का सा भी ज्ञान होगा, वो इसे सराहेगा अवश्य.
ReplyDeletea=kavita apki nanhi si pyari si beti ko sambodht hai.
ReplyDeleteagar sahi hoon to batayeega jaroor.
satya
जब किसी चीज कि अधिकता होती है तो उसकी एकरसता से मन भर जाता है, जैसे आम का इंतजार दर साल रहता है और आम कि ज्यादा बहार आने पर फिर मन उब जाता है |लगता है आपके साथ ऐसा ही हुआ है इसे ब्लाग जगत से मोह भंग न कहिये और अपनी सुन्दर रचनाओ ,संस्मरणों ने हमे वंचित करने कि भूमिका न बनाइए |
ReplyDeleteज्यादा भावुक होने से निराशा सी आ जाती है |खूब लिखिए |आप ही तो कह रहे है "शो मस्ट गो ऑन "
ग़ज़ल गीत नवगीत ... अच्छा लिखा हमेशा अच्छा ही लगता है ... और दोस्तों का लिखा तो दिल से अच्छा लगता है ...
ReplyDeleteअजीबो-गरीब लीलाओं से दूर भी कई लोग हैं... और फिर धीरे-धीरे ऐसे ही कुछ लोगों पर हम कन्वर्ज होते जाते हैं. फिर क्या सोचना... और हाँ 'कल चौदहवी की रात' अपनी फेवरेट में से है.
ReplyDeleteराजरिशी जी,
ReplyDeleteअपरिभाषित दूरी और मोहभंग ! .. यह ठीक नहीं .. मत कहा कीजिये ..
ये क्षण ही तो रचनाकार की पूंजी बनते हैं .. अन्वेषण के दुःख सहिये , लहिये
भाव और गहिये शब्द ! .. बुद्धि के सारथी को आगे रखिये '' ब्लौग-जगत की अजीबो-गरीब
लीलायें...'' झेलते वक़्त ! और क्या कहूं --- एक चौपाई याद आ रही है , तुलसीदास जी की ---
'' अधिक बुझाय तुम्हहिं का कहहूँ |
परम चतुर मैं जानत अहहूँ || "
...................
हर राग में
तू है रचा
सब छंद तुझसे ही सजे
सा-रे-ग से
धा-नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे !
------------ सबसे पसंदीदा लगीं ये पंक्तियाँ .. इसके पूर्व में ऐसा कसाव नहीं है .. टूटन है ..
बाकी रूप-पक्ष पर क्या कहूँ ? आपका अंतिम गद्य-अनुच्छेद मेरा भी ज्ञानवर्धन करा रहा
है , आभार इसका !
पर कविता में अस्पष्टता तो नहीं दिखी मुझे !
बहुत सुन्दर ..। हम तो इस पाठशाला के पहली कक्षा के छात्र है . और क्या कहें ।
ReplyDeletehi sir......... you rock !!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर! आनंद आया। हम तो गीत, ग़ज़ल के श्रोता और पाठक मात्र हैं।
ReplyDeletekal hindi me type karke badee si tippani laya tha lekin mere comment ko lene se hi post ne inkaar kar diya ;) yani post hi jane kaise gayab ho gayi aur kafi mashakkat ke baad bhi nahin khuli.. yahi aaj dopahar me bhi hua..
ReplyDeletekhair gurubhai ji baat itni si hai ki geet hai to achchha par guruon ki ray mujhe bhi sahi lagi.. haan kuchh shabd badal dene bhar se baat ban sakti hai. aapko salaah dene layak nahin hua abhi bhaia par raay to bata hi sakta hoon na.. :)
गीत का विश्लेषण करना मेरे सामर्थ्य से बाहर है हाँ गद्द ने कुछ पुरानी यादे ताज़ा की हैं हाथों ने सी डी से धूल साफ़ की है ...
ReplyDelete:)
ReplyDeletemanu
गौतम भैय्या,
ReplyDeleteआप ग़ज़ल ज्यादा अच्छी कहते हैं, ऐसा इस गीत को पढ़कर मुझे लग रहा है मगर ये गलत भी हो सकता है आगे आने वाले आपके गीतों में.
हर राग में
ReplyDeleteतू है रचा
सब छंद तुझसे ही सजे
सा-रे-ग से
धा-नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
निकले जो सप्तक तार से
तू ही वो पंचम तान रे
अच्छा लगा यह गीत!
सीखो आंखें पढना साहिब ,
ReplyDeleteहोगी मुश्किल वरना साहिब|
संभल कर इलज़ाम देना
उसने खद्दर पहना साहिब |
तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हाथ न साहिब |
पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब|
सबको दूर सुहाना लगे
ढोलों का बजना साहिब |
कितनी कायनातें ठहरा दे
उस आँचल का ढालना साहिब |
:)
ReplyDeleteकहता है तू
ReplyDeleteतुझको नहीं
अब पूछता मैं इक जरा
kuchh khaas hai yahaaN...
jahaaN ham pahinch nahin paa rahe haiN....
:)
सच कहूँ तो कई बार पढ़ कर भी कविता का संबोधन स्वर स्पष्ट तो होता है मगर फिर भी लक्षणा की पूरी गुंजाइश भी छोड़ जाता है..पूरी कविता मे प्रेयसी के मनुहार के भाव ध्वनित होते हैं..लेकिन साथ ही आरंभिक पंक्तियाँ..
ReplyDeleteसुख की मेरे पहचान रे !
तेरी सहज मुस्कान रे !
अपने अर्थबोध मे सार्वत्रिक सी हैं..किसी बच्चे की दंतिल मुस्कान के लिये भी उतनी ही सटीक..
और कविता मे ’अभियान’ शब्द का प्रयोग मुझे तो बिल्कुल सही लगता है..अभिनव और रचयिता के सिग्नेचरी स्टैम्प सा...लीक से इधर-उधर पाँव रखने का साहस ही किसी रचना के भावों को पारंपरिक से इतर कलेवर देता है...बाकी कविता अच्छी लगी..मगर सच कहूँ तो..कविता बायें हाथ से लिखी गयी प्रतीत होती है...क्योंकि आपका स्केल इससे बहुत ज्यादा है..सो अपेक्षाएं भी..!
हाँ यह पंक्तिया खास लगीं
सा-रे-ग से
धा-नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे
सात सुरों की इस मंजूषा मे ही जीवन की सारी धुनें बसती हैं..जिनको ’उसकी’ पहचान दे देना जीवन मे किसी के ’होने’ को जीवन का ’सुरीला’ होना बतलाता है..
..सो लेट दि शो कन्टीन्यू....
:-)
udhar to modertion thaa mezar saab.....!
ReplyDeleteso udhar ka comment idhar chipkaa rahe hain...
गौतम जी....
मात्रा गिराने में छूट ....!!!
छूट जैसी बात ही अजीब लगती है.....
ईश्वर ने जो जबान दे रखी है ...वो बखूबी जानती है कि क्या गिराना है और क्या नहीं....
हाँ, इस गिराने उठाने कि वाट उन लोगों ने लगा रखी है जो इसे सहजता से ना लेकर लेखन में भी दर्शाना चाहते हैं....
मसलन...मेरा ..( मिरा )
तेरा ....( तिरा )
कभी.....( कभू )
कोई... ( कुई )
यहाँ पर आकर जबान अपनी सहजता खोने लगती है..और सवाल उठते हैं कि उर्दो ग़ज़ल में ऐसा ..और हिंदी गीत में वैसा....
और फलां गीत है..और फलां नवगीत है....सब बनावटी बातें हैं...एकदम कोरी बनावटी ....
मेरा यह मानना है के एक वाचक होने के नाते उसे यह तय कर लेना चाहिए के वह किस इरादे से ब्लॉग पढ़ रहा है सो टिपण्णी भी उसी हद तक हो | मैं सिर्फ लेखक की रचना पढना चाहूंगी और टिपण्णी की हद लगभग लेखक की रचना तक ही रखना चाहूंगी ... और यदि कोई व्यक्तिगत टिपण्णी करनी ही हो तो इमेल है ही ! मगर यदि मुझे रचना पढनी है तो मैं सिर्फ रचना पढूंगी ... भले लेखक ने निजी तौर पर और भी कुछ लिखा हो ...
ReplyDeleteएक लेखक होने के नाते भी ऐसा ही कुछ सोचती हूँ | यदि मेरा ब्लॉग कथा/कविता के लिए है तो सिर्फ कथा-कविता पोस्ट करूंगी | यदि मैं निजी हादसे बांटना चाहूंगी तो मुझे शायद यह भी ध्यान रखना होगा के मैंने अपना दायरा बढाया है और वाचकों का भी | इसमें कोई बुरी बात नहीं है .... बस तैयार रहने वाली बात है |
अब दायरा बढाने पर टिप्पणियाँ/इमेल तो हर तरह के आ सकते हैं | होली खेलने उतरे हैं और सिर्फ गुलाल से ऐसा तो हो नहीं सकता ना! आप तो हर रंग में रंग दिए जाओगे !
बस रंगने वाले को यह तय करना है के कौनसा रंग रखना है और कौनसा छूट जाना चाहिए !
अब यह तो हुई मेरी निजी टिपण्णी और वह भी आपके ब्लॉग पर (ना के इमेल में) | ख़ुद ही उसूल बनाओ और तोड़ो भी!!? मैं टिपण्णी करना तो नहीं चाहती थी लेकिन आपको इस पोस्ट मे ज़रा सा विक्षुब्ध देखा ... और आपका समर्पित 'फोलोवेर' होने के नाते लगा के यह ज़रूरी है |
You are right. The Show must go on.
इस बार दायरा निजी टिपण्णी तक ! अगली बार गीत/कविता पर टिपण्णी करूंगी | इजाज़त है? :-)
और आपका समर्पित 'फोलोवेर' होने के नाते लगा के यह ज़रूरी है |
ReplyDeleteYou are right. The Show must go on.
:)
aap kaise hain mezar saab...
ReplyDeletepost daalne ko nahin kah rahe ham....
bas..haal jaannaa thaa...!
manu
रचना और भाव तो बहुत सुन्दर है..
ReplyDeleteबधाई..
नियमितता रखें ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
'आया जो तू,
ReplyDeleteलौ्टे हैं अब
जीवन में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे
ये सब महीने तेरे बिन'
- वह जो भी है महत्वपूर्ण है और उसकी उपस्थिति ने सारे शिकवे, सारी उदासी और सारा अभाव दूर कर दिया है.
गीत में दिल की आवाज होती है और यही इसमें भी नजर आ रही है। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete--------
बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
moh bhang...///
ReplyDeleteआया जो तू,
लौ्टे हैं अब
जीवन में सारे सुख के दिन
कैसे कहूँ
कैसे कटे
ये सब महीने तेरे बिन...
wah...
ReplyDeleteMOHBHANG stutya hai..sach me...
"सा-रे-ग से
ReplyDeleteधा-नी तलक
सुर में मेरे तू ही बसे"
Gautam Ji,
Meri bhi kuchh aapke hi jaisee dashaa hai... Moh-bhang aur vyastataa ke baare men.. Baaki waadi ke baare men aapane jo likhaa hai.. sun ke buraa lagaa..
Aashaa karataa hun aage sab theek hogaa.
Aapki kavita sunad lagi... bahut gahari hai.
Jayant
मोह-भंग, कुछ अपनी व्यस्ततायें,...ब्लॉगजगत की लीला नहीं माया ....
ReplyDeleteजो लिखने और पढने यहाँ आते हैं ....उनका मन तो खट्टा होता ही रहता है ...मगर यही ब्लॉग दुनिया है ..है जो है ...
कविता /गजल सहज लगी ....कविता के व्याकरण की समझ नहीं है ...कोशिश कर रही हूँ समझने की ...!!
hello sir, this is CHIRAG from Jaipur
ReplyDeletewe have never met till yet, but i know u, i have heard a lot about you from Rashmi aunty, hope we will meet someday. i m also one of the member of your blog, and i always keep a touch with u and your poems through your blog.
bye sir.
take care