विगत दस-एक सालों में, जब से ये हरी वर्दी शरीर का एक अंग बनी है, इन आँखों ने आँसु बहाने के कुछ अजब कायदे ढ़ूंढ़ निकाले हैं। किसी खूबसूरत कविता पे रो उठने वाली ये आँखें, कहानी-उपन्यासों में पलकें नम कर लेने वाली ये आँखें, किसी फिल्म के भावुक दृश्यों पे डबडबा जाने वाली ये आँखें, लता-रफ़ी-जगजीत-मेहदी-ब्रायन एडम्स की आवाजों पर धुंधला जाने वाली ये आँखें, हर छुट्टी से वापस ड्यूटी पर आते समय माँ के आँसुओं का मुँह फेर कर साथ निभाने वाली ये आँखें---- आश्चर्यजनक रूप से किसी मौत पर आँसु नहीं बहाती हैं। परसों भी नहीं रोयीं, जब अपना ये "यंगस्टर" सीने में तेरह गोलियाँ समोये अपने से ज्यादा फ़िक्र अपने गिरे हुये जवान की जान बचाने के लिये करता हुआ शहीद हो गया।
शौर्य ने एक नया नाम लिया खुद के लिये- ऋषिकेश रमानी । अपना छोटु था वो। उम्र के 25वें पायदान पर खड़ा आपके-हमारे पड़ोस के नुक्कड़ पर रहने वाला बिल्कुल एक आम नौजवान, फर्क बस इतना कि जहाँ उसके साथी आई.आई.टी., मेडिकल्स, कैट के लिये प्रयत्नशील थे, उसने अपने मुल्क के लिये हरी वर्दी पहनने की ठानी। ...और उसका ये मुल्क जब सात समन्दर पार खेल रही अपनी क्रिकेट-टीम की जीत पर जश्न मना रहा था, वो जाबांज बगैर किसी चियरिंग या चियर-लिडर्स के एक अनाम-सी लड़ाई लड़ रहा था। आनेवाले स्वतंत्रता-दिवस पर यही उसका ये मुल्क उसको एक तमगा पकड़ा देगा। आप तब तक बहादुर नहीं हैं, जब तक आप शहीद नहीं हो जाते । कई दिनों से ये "शहीद" शब्द मुझे जाने क्यों मुँह चिढ़ाता-सा नजर आ रहा है...!!! छः महीनों में तीन दोस्तों को खो चुका हूँ...पहले उन्नी, फिर मोहित और आज ऋषि ।
सोचा कुछ तस्वीरें दिखा दूँ आप सब को इस unsung hero की, शौर्य के इस नये चेहरे की:-
भारतीय सेना अपने आफिसर्स-कैडर्स पर गर्व करती है, जिन्होंने हमेशा से नेतृत्व का उदाहरण दिया है। स्वतंत्रता के बाद की लड़ी गयी हर लड़ाई का आँकड़ा इस बात की कहानी कहता है... चाहे वो 47 की लड़ाई हो, या 62 का युद्ध या 65 का संग्राम या 71का विजयघोष या फिर 99 का कारगिल और या फिर कश्मीर और उत्तर-पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ़ चल रहा संघर्ष।
हैरान करती है ये बात कि देश के किसी समाचार-पत्र ने ऋषि के इस अद्भुत शौर्य को मुख-पृष्ठ के काबिल भी नहीं समझा...!!! सैनिकों के दर्द की एक छोटी-सी झलक देखिये प्रियंका जी की इस खूबसूरत कविता में।
i salute you, Rushikesh !
शौर्य ने एक नया नाम लिया खुद के लिये- ऋषिकेश रमानी । अपना छोटु था वो। उम्र के 25वें पायदान पर खड़ा आपके-हमारे पड़ोस के नुक्कड़ पर रहने वाला बिल्कुल एक आम नौजवान, फर्क बस इतना कि जहाँ उसके साथी आई.आई.टी., मेडिकल्स, कैट के लिये प्रयत्नशील थे, उसने अपने मुल्क के लिये हरी वर्दी पहनने की ठानी। ...और उसका ये मुल्क जब सात समन्दर पार खेल रही अपनी क्रिकेट-टीम की जीत पर जश्न मना रहा था, वो जाबांज बगैर किसी चियरिंग या चियर-लिडर्स के एक अनाम-सी लड़ाई लड़ रहा था। आनेवाले स्वतंत्रता-दिवस पर यही उसका ये मुल्क उसको एक तमगा पकड़ा देगा। आप तब तक बहादुर नहीं हैं, जब तक आप शहीद नहीं हो जाते । कई दिनों से ये "शहीद" शब्द मुझे जाने क्यों मुँह चिढ़ाता-सा नजर आ रहा है...!!! छः महीनों में तीन दोस्तों को खो चुका हूँ...पहले उन्नी, फिर मोहित और आज ऋषि ।
सोचा कुछ तस्वीरें दिखा दूँ आप सब को इस unsung hero की, शौर्य के इस नये चेहरे की:-
भारतीय सेना अपने आफिसर्स-कैडर्स पर गर्व करती है, जिन्होंने हमेशा से नेतृत्व का उदाहरण दिया है। स्वतंत्रता के बाद की लड़ी गयी हर लड़ाई का आँकड़ा इस बात की कहानी कहता है... चाहे वो 47 की लड़ाई हो, या 62 का युद्ध या 65 का संग्राम या 71का विजयघोष या फिर 99 का कारगिल और या फिर कश्मीर और उत्तर-पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ़ चल रहा संघर्ष।
हैरान करती है ये बात कि देश के किसी समाचार-पत्र ने ऋषि के इस अद्भुत शौर्य को मुख-पृष्ठ के काबिल भी नहीं समझा...!!! सैनिकों के दर्द की एक छोटी-सी झलक देखिये प्रियंका जी की इस खूबसूरत कविता में।
i salute you, Rushikesh !
सचमुच हाल तो यही है। आपके दर्द को इस आलेख के माध्यम से समझा जा सकता है। ऐसे वीरों के लिए-
ReplyDeleteनमन मेरा है वीरों को, चमन को भी नमन मेरा।
सभी प्रहरी जो सीमा पर, है उनको भी नमन मेरा।
नहीं लगते हैं क्यों मेले शहीदों की चिताओं पर,
सुमन श्रद्धा के हैं अर्पण, उन्हें शत शत नमन मेरा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
गौतम भाई,
ReplyDeleteआपके जाँबाज़ और बहादुर दोस्तोँ के लिये,
बहुत दूर देस से,
भारत मेँ जन्मी इक बहन ,
श्रध्धा सुमन भेज रही है.
स्वीकार कीजियेगा
आपका आक्रोश जायज है.
जिस देश मेँ ,
झूठ मूठ के सिपाही बने नायकोँ के पीछे
दुनिया पागल हो जाये
और सच्चे सैनिक के शहीद
होने को
अनदेखा किया जाये
तब निराशा और आक्रोश होगा ही !
मुझे भी , दुख है . :-(
ये आज़ादी इन्हीँ रणबाँकुरोँ के रक्त से बची हुई है ..
..मेरे पूज्य पापा जी का गीत लतादी ने गाया है शायद आपने भी सुना हो..
" विजय के फूल खिल रहे हैँ,
फूल अधखिले झरे,
उनके खून से हमारे,
खेत, बाग बन हरे,
ध्रुव हैँ क्रान्ति गान के,
शूरवीर आन के,
जो समर मेँ हो गये अमर ,
मैँ उनकी याद मेँ,
गा रही हूँ, श्रध्धा - गीत,
धन्यवाद मेँ " ...
मेरी प्रार्थना है कि,
आज जो मेरी भारत माता की सीमाओँ की
रक्शा मेँ जुटे हुए हैँ,
ईश्वर उन्हेँ दीर्घायु करेँ ..
विनीत,
- लावण्या
आपके दर्द में हम सब शामिल हैं. हमारी पहचान इसी से है कि हम अपनी रक्षा के लिए अपनी जान देने को तैयार खड़े वीरों के प्रति हम कितने कृतज्ञ हैं. २५ वर्ष की आयु में अपने माँ-बाप को अकेला छोड़ चल पड़ने वाले मेजर ऋषिकेश रमानी को नमन.
ReplyDelete"वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा"
जय हो....... इस वीरत्व को नमन......
ReplyDeleteआपकी इससे पूर्व की पोस्ट पर मैंने कोई टिप्पणी नहीं की थी कि वह साहित्य के मक्कारों के प्रति बेहद तल्ख़ होती.
ReplyDeleteइस बार भी पोस्ट उसी से मिलती जुलती है हालाँकि परिदृश्य और पृष्ठभूमि बदले हुए हैं. दोनों ही जगह अपने मठाधीश हैं जिन्होंने स्वर्ण सिंहासनों से हुक्मनामे जारी किये और उन पर मिट जाने वालों को नदी में बह कर आये पत्थर से अधिक सम्मान नहीं मिला. सच में फौजी की ज़िन्दगी भी ग़ज़ल सी ही है इसमें कितने शेर कहे जायेंगे पता नहीं है और कोई हुस्ने शेर हम तक पहुँचते-पहुँचते रेगिस्तान या किसी वादी में खो जायेगा. उस वीर नौजवान को सेल्यूट बजा लाता हूँ.
फिर आपकी उस पोस्ट को पढ़ते समय एक ऐसा वाक्य याद आया जिसे आप ब्रह्म वाक्य में शामिल करने की सिफारिश कर सकते हैं इसे मैंने पिछले बीस सालों में हर साल पढ़ा है और हंस में ही पढ़ा है "हंस चला कोवे की चाल" कई बार सोचता हूँ प्रेमचंद जी की आत्मा हर महीने इस पत्रिका के प्रकाशित होते ही जरूर विचलित होती होगी.
सलाम ........ऋषिकेश रमानी
ReplyDeleteमुझे भी इस शहीद श्ब्द से चिढ होने लगी है।छत्तीसगढ मे इस शब्द का आये दिन प्रयोग होता है।बहुत बुरा लगता है मगर कुछ समझ मे भी नही आता क्या करें।देश पर अपनी जान न्योछावर करने वाले भारत मां के सच्चे सपूत ॠषिकेश रमानी को सेल्यूट करता हूं।लिखना तो बहुत कुछ चह्ता हूं पर हिम्मत नही हो रही है।
ReplyDeleteमैं आपके एक एक शब्द से सहमत हूं. मेजर ऋषिकेश रमानी को नमन.
ReplyDeleteरामराम.
नमस्कार गौतम जी,
ReplyDeleteऋषिकेश रमानी की शहादत को सलाम और नमन.
ये ही हमारे देश का कड़वा सच है की जो सच्चा नायक है उसे वो सम्मान नहीं मिलता जिसका वो हक़दार होता है, मगर सच ये भी है जो वीर होते हैं उन्हें इनकी ज़रुरत भी नहीं होती वो तो निस्वार्थ भावः से अपना कर्त्तव्य करते जाते हैं.
भारतीय सेना उसी समर्पण की एक अनूठी मिसाल है और ये देश प्रेम ही है जो उन्हें अपनी जान पे भी हस्ते हस्ते खेल जाने के लिए प्रेरित करता है.
कल १३ जून को आईएमए में पस्सिंग आउट परेड है, कल और जवान इस देश की रक्षा के लिए अपनी अपनी कमान सम्हाल लेंगे और जुट जायेंगे निस्वार्थ सेवा के लिए.
जय हिंद, जय भारत
इस देश में राष्ट्रभक्तों के लिए कोई जगह नहीं है। मरनें वाला हिन्दू है तब तो कदापि नहीं। हाँ मीड़िया में प्रचार मिल रहा हो तो भीड़ लग जायेगी। नम आँखों से इतना ही कह सकता हूँ वो तो मानों मेरा ही बेटा चला गया। उस परिवार जिसका जवान बेटा शहीद हुआ है को साँत्वना देनें के लिए मेरे पास ऎसा कोई शब्द नहीं जो ढ़ाढ़्स बंधा सके।
ReplyDeleteआज सबसे पहले आपका ब्लाग की पोस्ट पढ़ी और दिल भर आया ..एक एक लिखा अक्षर सही है . किस तरह के यह नोजवान हैं न, जो हंसते हंसते चले जाते हैं और कोई इनके जाने की खबर देना भी जरुरी नहीं समझता ..न अखबार ,न कोई न्यूज़ चेनल ..अफ़सोस होता है ...आपके इस दर्द में हम सब बराबर शामिल हैं ...मेजर ऋषिकेश रमानी की शाहदत को सलाम ..न जाने यह अनकहा ,अनचाहा युद्घ कब ख़त्म होगा ..
ReplyDeleteमैं एक एक शब्द पढ़ रहा हूँ और मेरे रोयें खड़े हो रहे हैं.... एक अजीब सी हरकत हो रही है शरीर में .... जिस देश में सिर्फ क्रिकेट और फिल्म वालों को ही सब कुछ समझा जाये ...और मीडिया की तो बात ही न करें....वो कौन सी खबर का क्या करती है सब जानते हैं ...
ReplyDeleteमेरा ऋषि जी की जाबांजी, बहादुरी को सलाम ... आप लोगों की वजह से ही देश सुरक्षित है....वरना नेतागीरी के चक्कर में तो कसाब अब तक मेहमान बना हुआ है
कही कोई दुनिया नहीं रूकती मेजर.....फौजी का क्या है मरने के लिए ही तो है....रोज मरते है फिर काहे को अखबार में छापे .काहे को चैनल वाले दिखाये...कौन इंटरेस्ट लेता है अब इन सब में .......रेप वाली खबर ज्यादा सनसनी फैलाती है ...सडको पे लोग उमड़ आते है ....देखो कश्मीर में क्या हो रहा है ....वैसे भी अब कश्मीर की पड़ी किसको है.....खामखाँ उन पहाडियों पे अपनी जान गवां रहे हो...रोज के रोज.....चैनल वाले दिखा भी देंगे तो लोग दो मिनट में हाय बड़ा गलत हुआ जी....कहकर रिमोट से चैनल बदलकर रियल्टी शो देखेंगे ....कश्मीर ओर मौत ....अब बोर हो गए है ....वैसे भी कश्मीर इतनी दूर...हमारा क्या लेना .....फिर सबका काम है जी ...उनका काम है मरना ....
ReplyDeleteअपने दोस्तों को बोलो ...देशभक्ति से कुछ नहीं मिलने वाला ...
इन मुई गोलियों का कोई मजहब नहीं होता
कोई आम आदमी भी इस दर्द से गुजरता है मेजर साहब ...
मुंबई स्प्रिट ?
तुम कहते हो बेबाकी से लिखूं ...ईमानदारी से लिखूं...क्या लिखूं...कितनी उम्र होगी तुम्हारे दोस्त की २४ साल २५ ...ये तो कोई उम्र नहीं होती जाने की.....देखो एक ओर लड़का कर्ज चढा गया देश पर....
ReplyDeleteसलाम उस जाबांज को...जिसकी वजह से हम यहाँ ए .सी में बैठे ऐश कर रहे है ...
aankh bhar aayi jab tasveer dekhi .ishwar unki atma ko shaanti de .....haan bahut dukhta hai jab in shaheedon ko koi mahtva ya samman ya yaad nahin karta , hum kitne swarthi ho gaye hain , kitne samvedan heen ki ek pal ruk kar in sapooton ko yaad nahin karte ...afsos !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteगौतम जी
ReplyDeleteनमस्कार ,
८ जून की सुबह खुशगवार थी जब तक की अख़बार उठा कर नही देखा था । सबसे पहले पृष्ठ पर वर्दी में एक नौजवान की तस्वीर के साथ एक दुखद घटना छपी थी, एक और माँ का बेटा इस देश पर न्यौछावर हो गया । देश के किसी और हिस्से में होती तो शायद अख़बार में ऐसा कुछ न देखा होता पर अख़बार के अहमदाबाद संस्करण ने मेजर रमानी के यहाँ के होने की कुछ लाज रख ली ।
यह और बात है की जब एक सैनिक के लिए पुरा देश उसका होता है तो फिर उसके त्याग की गाथा देश क्यों नहीं सुनता ,क्यों जब इस मिटटी को माँ मान कर वह उसकी रक्षा करता है तो उसके जाने पर आंसू सिर्फ़ उसकी माँ बहाती है? कल से लोकल गुजरती चैनल पर अलग अलग पार्टियों की शोक सभाएं देख रही हूँ , राजनैतिक व्यक्तव्य सुन रही हूँ ..दिल को सुकून कुछ भी नही पहुंचाता है क्योंकि जानती हूँ यह ओछी लोकप्रियता के हथकंडे हैं ।
लेख बहुत मार्मिक है और मैं उसका हर एक shabd ै महसूस कर सकती हूँ ।
आप ब्लॉग पर आए , अपने लेख में मुझे जगह दी बहुत धन्यवाद ! आप के साथ रिश्ता खास रहेगा
जय हिंद !
गौतम जी
ReplyDeleteनमस्कार ,
८ जून की सुबह खुशगवार थी जब तक की अख़बार उठा कर नही देखा था । सबसे पहले पृष्ठ पर वर्दी में एक नौजवान की तस्वीर के साथ एक दुखद घटना छपी थी, एक और माँ का बेटा इस देश पर न्यौछावर हो गया । देश के किसी और हिस्से में होती तो शायद अख़बार में ऐसा कुछ न देखा होता पर अख़बार के अहमदाबाद संस्करण ने मेजर रमानी के यहाँ के होने की कुछ लाज रख ली ।
यह और बात है की जब एक सैनिक के लिए पुरा देश उसका होता है तो फिर उसके त्याग की गाथा देश क्यों नहीं सुनता ,क्यों जब इस मिटटी को माँ मान कर वह उसकी रक्षा करता है तो उसके जाने पर आंसू सिर्फ़ उसकी माँ बहाती है? कल से लोकल गुजरती चैनल पर अलग अलग पार्टियों की शोक सभाएं देख रही हूँ , राजनैतिक व्यक्तव्य सुन रही हूँ ..दिल को सुकून कुछ भी नही पहुंचाता है क्योंकि जानती हूँ यह ओछी लोकप्रियता के हथकंडे हैं ।
लेख बहुत मार्मिक है और मैं उसका हर एक shabd ै महसूस कर सकती हूँ ।
आप ब्लॉग पर आए , अपने लेख में मुझे जगह दी बहुत धन्यवाद ! आप के साथ रिश्ता खास रहेगा
जय हिंद !
कुछ बूँद आँसुओं के सिवाय कुछ नही है भईया आज की पोस्ट पर कहने को। सच कहा था आपने He was just a kid. २५ साल कोई उम्र होती है मरने के लिये। दो दिन से महसूस कर रही हूँ। यहाँ क्या लिखूँ..? बस सोच रही हूँ कि उससे जुड़े लोगो का क्या होगा....!
ReplyDeleteआप ने कम से कम कुछ लोगो को तो जोड़ा उस बच्चे की बहादुरी को सैल्यूट करने को...!
आप जल्दी से वापस आ जाओ.....!
इस पोस्ट पर क्या कहूं ?
ReplyDeleteमेरा इकलौता भाई बी.एस .एफ़.में है .जिसकी चिंता की वजह से माँ को ब्लड प्रेशर एवं शुगर दोनों एक साथ हो गईं ...
shaheed rishi ko naman..
क्या बोलूं ...
ReplyDeleteक्या चाहना चाहिए ...
कुछ समझ में नहीं आ रहा ...
आया था यहाँ थोडा दिल बहलाने
अब क्या करूँ ???
इतनी देर से आपका ब्लॉग खुला हुआ है ....
मन नहीं करता कि इसे बंद करूँ ...
रस्म अदायगी भी नही हो पा रही मुझसे !
............!!!!!!!!!!!!!!!!
शहीद अशफाक उल्लाह खां ने बलिदान के पूर्व देश से एक सवाल पूछ था -
"मौत और जिन्दगी है दुनिया का इक तमाशा,
फरमान कृष्ण का था अर्जुन को बीच रन में !
जिसने हिला दिया था दुनिया को एक पल में,
अफसोस क्यों नहीं है वह रूह अब वतन में !!"
गुलामी के दिनों में पूछा गया सवाल आजादी के बाद आज लगता है खुद अपना जवाब बन गया है !
फिल्म अवार्ड .... ट्वेंटी-ट्वेंटी .... राजनीति चालीसा के बीच ऐसी खबरें क्या मायने रखती हैं .....
जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
ReplyDeleteजो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
कई बार सोचता हूँ ये जवान जो अपनी जान की परवाह नहीं करते, अपनी उम्र नहीं देखते, अधूरी हसरतों पे मलाल नहीं करते, मुश्किलों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं...किस लिए???ताकि हम लोग शांति के साथ जी सकें...लेकिन क्या हम लोग इस काबिल हैं की कोई हमारी खातिर अपनी जान देदे???? जरा दिल पे हाथ रख कर जवाब दीजिये...
बहुत सच्ची पोस्ट है आपकी...अन्दर तक हिला गयी...जरा सोचिये मरने वाला आपका / मेरा बेटा या भाई होता तो???
नीरज
सबसे पहले ऋषिकेश रमानी को मेरा सलाम। क्या उम्र थी उसकी ये सवाल बार पूछ रहा हूँ अपने आप से? बस 24 या 25 साल। क्या यही उम्र होती है इक इंसान के जाने की? ढेरों सवाल दिमाग में घूम रहे है। पर उनके जवाब नही मिलते है। हम यहाँ बेफ्रिक बैठे है अपने परिवार के साथ इन्हीं जवानों की बदौलत। पर अब उसके परिवार को कौन संभालेगा? आपकी एक एक बात से सहमत हूँ मैं। अदंर तक झकझोर गई आपकी बातें। काश दिल्ली में बैठे बडे लोगो को भी झकझोर जाए आपकी बातें।
ReplyDeleteअश्रुओं के अर्घ्य के सिवा कुछ नहीं और देने को.....
ReplyDeleteनमन ......नमन .......नमन......
major gautam beta...nihsandeh main badee hun, tumhar barfeeli,sulagti,dahakti zameen par hi rahti hun....maa hun na,fafak kar roti hun,....koi mukhprishth nahin milega,par saaf sachche dilon me ye naam har waqt rahenge...
ReplyDeleteApne bilkul sahi baat kahi hai...
ReplyDeletemaj. Rishikesh Ramani ko mera SALAM
सोच रहा की यदि आज आपकी ये पोस्ट नहीं पड़ता तो मुझे पता भी नहीं होता..क्या कहूँ..मेरा पूरा परिवार फौजी है..जानता हूँ की जिन्दगी और मौत के बीच फार नहीं समझते..पिता जी खुद १९७१ की लड़ाई में मौत के मुंह से वापस आये थे बचपन से आज तक उनके शरीर पर लगे गोली के निशाँ को देखते आये हैं...किस समाज को फ़िक्र है फौज की..अजी आरोप लगाने की बात होगी तो हैं न बहुत सारे लोग..मगर जब जान देने की बात आती है न..तो सरकार भी शहीदों के नाम पर पेट्रोल पम्प बाँट कर अपना फर्ज पूरा करती है..और उसके बहाने भी घटिया राजनीतिज्ञ कमाई ही करते हैं...कोई नहीं बाँट सकता..ये जज्बा..ये जीवन..ये गम..न ही इस कमी को कोई पूरा कर सकता है..अब ऋषिकेश के पूरे परिवार के सामने पूरी जिन्दगी में सिर्फ बेटे की यादें रह जायेंगी..और देश ..समाज..लोग ..पडोसी तक सब कुछ भूल जायेंगे..क्या कहूँ..
ReplyDeleteमेजर ऋषिकेश रमानी को नमन ! इस पोस्ट पर इसके अलावा कहने की हिम्मत ही नहीं बची. शायद इसे ही भावुक होना कहते हैं.
ReplyDeleteमौत की तुलना नही की जाती, पर किसी और के लिये मरने वाले अलग होते हैं. उसके लिये खुद से अलग हो कर सोचना और करना पड़ता है और छिछोड़ों की बात छोड़ दें तो बाकी लोग उन्हें श्रद्धा से देखते हैं.
ReplyDeleteभगवान उन्हें शान्ति दे.
कौतुक
दूसरी बार हिम्मत करके आया हूं टिप्पणी करने लेकिन शब्दों ने एक बार फिर से साथ छोड़ दिया है । ऋषिकेश रमानी 'अपना छोटु' के लिये कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा । 25 साल की जिंदगी में सब कुछ कर गया वो । और हम जैसे लोग भी हैं जो बस खा रहे हैं और सो रहे हैं । बड़ी बड़ी बातें करते हैं हम लोग लेकिन.............।
ReplyDeleteमेरी श्रद्धांजलि । अपनी ही एक वीर रस की कविता की कुछ पंक्तियां छोटू के लिये जो बहुत बड़ा हो गया ।
मेरी थाली में ना कोई अक्षत है ना कुमकुम है
मेरी थाली तो अपनी ही कायरता पर गुमसुम है
दूर किसी कोने से ही लेकिन मैं वंदन करता हूं
लो भारत की माटी को ही अब मैं चंदन करता हूं ।
मेरा भाई भी यूँ ही चला गया था...
ReplyDeleteआखिर कैसे बदले इसे...
ऑंखें नम हो गयी ये सब जन कर...
भगवान् आपको मेरी भी उम्र दे दे...
मीत
sach maanen gautamji, ye lekh padhne ke baad mujhse kuchh nahin padha jaa raha, dil dhadak raha hai, aankhon ke aage dhundh hai aur ankhen nam, aapke lekh par aai comments hamesha padhta hun aaj himmat nahin kar pa raha.!!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteमेजर ऋषिकेश को मेरा शत शत नमन.और उनके जैसे हर वीर सिपाही को भी जो देश की खातिर सीमाओं पर अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं सिर्फ इस लिए कि हम चैन से खुली हवा में सांस ले सकें मगर बहुत अफ़सोस होता है जब भारत के अन्दर राज्यों में अन्दुरुनी झगडे बिना वजह होते हैं जहाँ एक तरफ ये सभी जाबांज बिना किसी भेद भाव के एक साथ भारतीय बन कर सीमा पर खडे हैं वहीँ अन्दर राज्यों में कुछ नेता क्षेत्रीयता की आग उगाल रहे हैं और देश के नौजवानों की क्षमता का गलत उपयोग अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में लगा रहे हैं.
ReplyDeleteमैं बस यही कहती हूँ...आप ने इन्हें याद किया और इनके बलिदान का परिचय दिया..हमें इस वीर से मिलवाया..
किसी भी देश को अपने शहीदों को कभी नहीं भूलना चाहिये.
कहते हैं--जिस राष्ट्र के लोग अपने शहीदों को भूल जाते हैं उस राष्ट्र की मृत्यु निश्चित है.
ईश्वर इस नौजवान जांबाज़ की आत्मा को शांति प्रदान करे और इनके परिवार को इस दुःख की घडी को सहने का साहस दे.
इस जाबांज हीरो को सलाम
ReplyDeletepehlae naman
ReplyDeletehamaari kayartaa ka natija haen yae asamay ki mautey
rachna
गौतम भाई, कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं। कभी एक कविता पढ़ी थी उसी के भाव समर्पित हैं-
ReplyDeleteअभिमन्यु का तन जल गया तत्कालज्वाला ज्वाल से
पर कीर्ति नष्ट न हो सकी उस वीवर की काल से
अच्छा बुरा बस नाम ही रहता सदा इस लोक में
धन्य है वो लीन हों जिसके लिये सज्जन शोक में
*वीवर= वीरवर
ReplyDeleteभाई गौतम जी आपको बताने की तनिक भी जरुरत नहीं के ये अपना भाई छोटू कितना बड़ा हो गया है मगर इस तरह से कब तलक हम अपने ही कलेजे के तुकडे को खोते रहेंगे और दिल को तस्सली उसके शाहीदी से देते रहेंगे ... हे प्रभु ये क्या वक्त है तुम्हे क्या हो गया है तू क्यूँ खौफ जादा है इस तरह से क्या मुझे मारने से तेरा पेट भर जायेगा तो भर ले ... फक्र तो है अपने भाई छोटू पे उसके इस अमर बलिदान पे मगर हम अपने भईयों को इस तरह कब तलक खोते रहेंगे... अब शांत हो जा प्रभु और इस तरह से बहनों की राखी , माँ की लोरी,, बाप की लाठी और किसी बीबी का सुहाग मत छीन किसी से .... ये विनती है तुमसे....
ReplyDeleteअर्श
bilkul sahi kaha aapne..
ReplyDeleteyu anaam .. desh ki khatir kurbaan hone walon k liye is desh ki media k paas thodi bhi fursat nahi..aur baki jo is desh ko barbaad me karne me lage hai.. jinko is desh ki achchai burai se koi lena dena nahi... bas unhi ke coverage me lagi rahti hai..
a heart felt salute to all such brave persons.. :)
maine apne latest post me apni ek purani poem ka link dala hai... if u get time.. read that.. may be some how it is related to my this post.. :)
आया आपको पढ़ा और कुछ कहे बिना जा रहा हूँ छमा करियेगा
ReplyDeleteवीनस केसरी
आया आपको पढ़ा और कुछ कहे बिना जा रहा हूँ छमा करियेगा
ReplyDeleteवीनस केसरी
गोतम भाई आप की बातो मे जो दर्द है, वही दर्द मुझे भी अंदर तक झंझकोर देता है, हम कितने मतलबी हो गये है कि किसी नेता के मरने पर पुरे प्रदेश मै छुट्टी मनायेगे, चाहे वो नेता कोई गुंडा ही रहा हो, फ़िर क्रिकेट के खिलाडियो कॊ सर आंखो मे बिठायेगे, ओर यह सरकार भी उसे अरबो रुपयो मे तोले की, फ़िर कई अन्य संस्थाये भी , टीवी चेनल भी यानि उन का सात पिढीयो का काम हो गया, ओर दुसरी तरफ़ एक शहीद जो हम सब की रक्षा , इस देश की रक्षा के लिये भरी जवानी मै , अपने मां बाप की बुढापे की लाठी, अपने छोटे छोटे बच्चो को बेसहारा छोड कर चला जाता है, ओर उस के लिये किसी के भी दिल कोई जगह नही आंखो मे कोई आंसू नही, उन के बच्चे उस के बाद कहा कहां की ठोकरे खाये गे कुछ पता नही, अगर गलती से इस देश ने उस के आश्रितो को कोई जमीन का टुकडा, कोई पेट्रोल पम्प भी दे दिया तो उस पर भी कब्जा तो इन्ही नेताओ का होगा, अब यह शहीद किस लिये हुआ, क्या उस के मां बाप चाहेगे कि इस देश पर अपने सारे बच्चे नोछाबर कर दे, जिसे के लिये यह शहीद अपनी जान दे रहे है उसी देश के निकम्मे नेता उसी देश को बेचने पर तुले हो....
ReplyDeleteहैरान करती है ये बात कि देश के किसी समाचार-पत्र ने ऋषि के इस अद्भुत शौर्य को मुख-पृष्ठ के काबिल भी नहीं समझा, ओर मुझे परेशान करती है यह सब बाते, दिल करता है .....
मेरे उस बच्चे को सलाम जिस ने हम सब के लिये अपनी जान खो दी
कभी कभी शब्द गौण और भावनाएं मुखर हो जाती है
ReplyDeleteक्या कहूँ ..कहने को शब्द नही हैं.
मन में बहुत कुछ आ रहा है..पर लिख नहीं पा रहा हूँ.क्या वीर और शहीद शब्द पर्याप्त है....???क्या यह कहने से कि 'शहीदों की चिताओं पे लगेंगे हर बरस मेले...'से हम सब के कर्तव्य पूरे हो जाते है?और क्या कभी वास्तव में कहीं मेले लगे है?हम शायद ही जान पाएं कि जो फौलाद हमारे जवानों ने अपने सीने पर रोका है,अगर वो न रोकते तो हमारा क्या होता...?हमारे मीडिया के ठेकेदार जो ख़बरों के रूप में सडांध पेश कर के अपने को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते है वो जानते ही नहीं कि अपनी अभिव्यक्ति की आजादी,लोकतंत्र और सारा भारत आज सोमालिया सा जल रहा होता अगर मेजर ऋषिकेश तेरह गोलिओं को अपने सीने से न रोक देते..हवा और पानी की तरह आजादी भी अगर सुलभ हो तो हमें वह तुच्छ लगती है..इनकी कीमत उन लोगों को ही पता होती हैं जिनसे ये छीन लिए जाते है...आज मेरे देश के वीरों के साथ आम जनता है..सरकार नेता पत्रकार तो क्या है यह हम अपने दिल में सुनते है...
ReplyDeleteऋषिकेश की शहादत के मायने है...
मेरे बच्चे सुरक्षित है और रोज स्कूल जाते है , क्योंकि उन्होंने इस के लिए जान दी है,
मैं आजाद हूँ अभी तक, क्योंकि मेरी आजादी बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योच्छावर करने के लिए मेजर ऋषिकेश थे...
मैं स्वात के लोगों की तरह शरणार्थी नहीं हूँ ,क्योंकि उन्होंने मेरे वतन में पहला नापाक कदम रखने से पहले ही आक्रान्ताओं को जमींदोज कर दिया था.
मैं रोज सुबह अपने बगीचे में फूलों के बीच बैठता हूँ क्योंकि वो रात और दिन बारूद के बीच बैठा करते थे...
मेरे कसबे में आये दिन उत्सव और उल्लास होते रहते है क्योंकि उन्होंने अपना घर और परिवार इसलिए छोडा था कि किसी भी कसबे की खुशियों को नजर न लगे...
मेजर ऋषिकेश रमानी का वीरगति को प्राप्त होना मेरी और मेरे जैसे सौ करोड़ भारतियों की अत्यंत निजी क्षति है...आशा करता हूँ कि कोई नेता,कोई पत्रकार, कोई बुद्धिजीवी,कोई अफसर, या कोई भी व्यक्ति जो अपने आप को आम भारतीय से भिन्न समझता है, मेरे और मेरे परिवार कि संवेदनाओं के बीच आकर दुःख नहीं पहुंचाएगा....
हाँ,मेरे लिए ऋषिकेश के जाने से बहुत फर्क पड़ता भले ही मैं उन्हें जनता नहीं था.
एक आम भारतीय
(प्रकाश सिंह )
मेजर ऋषिकेश रमानी को नमन.क्या कहूँ!!
ReplyDeleteमेजर ऋषिकेश रमानी की वीरता एवं बलिदान को नमन है मेरा. क्या कहूं कुछ समझ नहीं आ रहा, शब्द साथ छोड़ रहे हैं.......
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
पढ कर आँख के आँसू थम नहीं रहे ऐसी कितनी ही प्रतिभायें हम से विछुड गयी आज मुझे ये रचना कैप्टन अमोल कालिया की याद दिला गयी जिसे बचपन से पल पल देखा खिलाया था व्प हमारे पडोसी थे मगर कारगिल मे मारा गया आज भि वो दृश्य जब उसकी लाश शहर मी आयी थी दिल चीर देता है 1अपका दर्द बाखुबी समझ आता है 1मेजर रमानी जी को सादर नमन व श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ आभार्
ReplyDeleteगौतम जी,
ReplyDeleteआपका दर्द समझ में आता है............ आप जैसे संवेदनशील ह्रदय की भावना मैं समझ सकता हूँ मेरा मन भी कुछ उदास हो गया.
ऋषिकेश रमानी जी की शहादत को सलाम और नमन. ये कडुवा सच है की हम संवेदन हीन हो गयी हैं.......... मीडिया, नेताओं और इस चकाचोंध भरी दुनिया ने मानवी रिश्तों और संवेदनाओं को मर दिया है.........ऐसे वीर सेनानी जो देश और हम लोगों के लिए कुर्बान होते है.......... उनका नमो निशाँ कंही नज़र नहीं आता............मीडिया वो ही छापता है जो मसालेदार हो, फिर एक सेनानी की मौत की क्या कीमत उनके लिए.............
गौतम जी,
ReplyDeleteशहीद ऋषिकेश रमानी को सलाम......
नम आँखों से
मुकेश कुमार तिवारी
गौतम जी ,
ReplyDeleteआपने एकदम सही लिखा है ...हम ऐसे देश में रह रहे हैं जहाँ फिल्म स्टार्स ,क्रिकेटर्स ,खद्दरधारियों को तो मुख्य पृष्ठ ..हेड लाइंस में रखा जा सकता है ..पर देश के लिए बलिदान होने वाले जांबाजों को
वहां जगह नहीं मिलती ....मेरा इन सभी शहीदों को सलाम ...और इनके माता पिता को भी जिन्होंने ऐसे वीरों को जन्म दिया .
हेमंत कुमार
मेजर साहब
ReplyDeleteआपकी इस रचना ने तन मन को झ्क्झोकर रख दिया |मै नत मस्तक हुँ उन सैनिकों के लिए जो हमे चैन की जिन्दगी जीने देते है|
मुझे राष्ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदीजी की एक कविता की कुछ पंक्तिया यद् आरही है ;
पुष्प की अभिलाषा
चाह नही सुरबाला के घनो में गुंथा जाऊ
चाह नही सम्राटो के शव पर सजा जाऊ
मुझे फेक देना वनमाली
उस पथ पर
जिस पर जाते वीर अनेक
हो सकता है शायद इस कविता के शब्दों में मेरे लिखने में कोई कमी रह गई हो तो माफ़ी चाहती हुँ |
आपकी बात में दम है ।
ReplyDeleteहम जो भी कहें शहीदों के लिये कम है ।
श्याम
मेजर ऋषिकेष को भावभीनी श्रद्धांजलि। तुम जैसे सभी सिपाहियों को नमन।
ReplyDeleteबहुत दिनों से है ये सिलसिला सियासत का
ReplyDeleteकि जब जवान हों बच्चे, तो क़त्ल हो जायें
साहिर
आपके तीनो दोस्तों "ऋषि, उननी और मोहित " के शहीद होने की दास्तान सुनकर दिल थोड़ा काँपा तो .. पर अपने आँसुओं पर काबू किया और दिल ही दिल मे इन
ReplyDeleteशहीदों को सेलयूट किया ....देश के समाचार पत्रो की तो बात ही छोड़ दीजिए ...वो सिर्फ़ नेताओं के किस्से और चोरी , लूटमार की कहानियाँ ही छपते हैं ...इन शहीदों के शोर्य के क़िस्से हमारे दिलों पर छपे हैं ...इन्हे किसी समाचार पत्र की आवश्यकता नही हैं .....एक बार फिर आपके दोस्तों को नमन .
kuchh esa hota he jnha shabd nahi bante aour hraday boltaa he/ hradaya kaa bolna uska roodan aawaaz viheen hota he/// yeh sunaai use hi dega jiskaa hraday vishudhdha bhavnaao se vyaapt ho/
ReplyDeletemera naman// bhaavna ese bhi vyakt ki jaati he...
aapki iske pahle vaali post par mera vechaarik man kuchh likh rahaa he...jise apne blog par post karne ki soch rahaa hoo/
रखा चूम कर फूल तेरे क़दमों पे
ReplyDeleteभुला न पायेगें शहादत तेरी जवानी की ....!!
We are proud of our army and commanders like u.
ReplyDelete_____________
अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.
इस नन्हे मेजर को हमारा भी सलाम
ReplyDeleteआपने ग़मगीन कर देने वाली पोस्ट लिखी है और कई चुभने वाले प्रश्न पूछे हैं
ओह,
ReplyDeleteकुछ भी लिखना मुश्किल है,,,,
इस छोटू के बारे में,, पढ़कर ,, सुनकर,,, और आपकी खोयी आँखों में देख कर भी,,
ctrl+c ctrl+v ----> manu ji ka comment !!
ReplyDeletei salute you guys !!
times and over !!
मोबाइल पर आपकी गजल सुन रहा था,,,
ReplyDeleteवो चीड के जंगल का जो मंज़र आँखों के आगे खिंच गया है उसी का प्रभाव बार-बार ले आता है ,,
जाने क्या कर गुजर जाने का जूनून साफ़ नजर आ रहा है ,
आपके इस छोटू की आँखों में,,, जिंदगी से लबरेज़ मुस्कान में,,,रात को देर तक सुना,,
और इस नौजवान के कारनामे कल्पना में घुमते रहे,,,
m.
ReplyDeleteनमन
ReplyDeleteI salute the martyrs ! I have been a witness to the saga of summer '99 !
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