{मासिक पत्रिका "पाखी" के मई 2010 अंक में प्रकाशित कहानी}
पीर-पंजाल की बर्फीली चोटियों को पार करते हुये सेना के लिये चार्टड वो एयर-इंडिया का छोटा-सा हवाई-जहाज एक सघन एयर-पाकेट में फँस कर बुरी तरह लड़खड़ाया था.....एक रुके से क्षण में जहाज में बैठे उन तमाम वर्दीधारी सैनिकों के मुँह से हल्की एक सिसकारी निकलते-निकलते थम गयी....मौत के उस अहसास में भी हरी वर्दी की गरीमा का ख्याल। दिल्ली के इंदिरा गाँधी हवाई-अड्डे से उड़े डेढ़ घंटे से ज्यादा का वक्त हो चला था और जब उस पतली-दुबली परिचारिका ने अपने यंत्र-चालित किंतु मोहक आवाज में श्रीनगर हवाई-अड्डे पर विमान के उतरने की उद्घोषणा की तो उन तमाम वर्दी वालों की आँखें विमान के अंदर की हल्की रौशनी में एक मिला-जुला अजीब-सा कोलाज़ बनाने में जुटी हुई थीं। पीछे छोड़ आये अपने प्रियजनों की स्मृतियों का कोलाज। अन्य आफिसरों के साथ विमान की आगे वाली कतार में बैठा वो, अपनी आँखों में बसी छुटकी खुशी के गोल चेहरे को उसी कोलाज़ में कहीं चिपकाने की कोशिश कर रहा था। सवा साल की होने को आयी है खुशी और शायद ये पहली दफा होगा इस सात साल के सैन्य सेवा-काल में कि इधर वैली में पोस्टिंग आते समय वह कुछ आशंकित-सा था। तीन सालों बाद वापस आ रहा है वैली में। दूसरी पोस्टिंग इस जलती-सुलगती कश्मीर वैली में। तड़के सुबह घर से निकलने का दृश्य मम्मी के आँसुओं से अभी तक भीगा हुआ-सा था। पापा हमेशा की तरह मुस्कुरा रहे थे, किंतु चेहरे की वो मुस्कान आँखों में खिंची चिंता की लकीरों को छिपाने में एकदम असमर्थ थी। ...और छुटकी खुशी को तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे इतनी सुबह-सुबह उठा क्यों दिया गया है। नेहा की गोद में सिमटी-सी वो कैसे अजीब नजरों से देखे जा रही थी।
कल ही तो प्रोमोशन हुआ है उसका। कैप्टेन से मेजर। नेहा की प्रतिक्रिया अजीब-सी थी। अजीब-सी, किंतु बेहद प्यारी।
"तुम तो कैप्टेन ही ठीक थे। ये मेजर तुम्हारे नाम के साथ अच्छा नहीं लगता।" -वो कहती है।
"क्या मतलब?"
"देखो ना।कैप्टेन मोहित सक्सेना...आहहाहा! कितना अच्छा लगता है सुनने में।...और मेजर मोहित सक्सेना? छिः ! बकवास! तुम वापस कैप्टेन नहीं बन सकते?"
नेहा की बातें सोचकर मुस्कुराता हुआ उठता है अपने यूनिफार्म को ठीक करता हुआ। हवाई-जहाज लैंड कर चुका था।
श्रीनगर का एयर-पोर्ट। कितना कुछ बदल गया है। अब तो ये अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा बन गया है। बरसों पहले- बासठ बरस पहले इसी एयर-पोर्ट की रक्षा के लिये तो सोमनाथ शर्मा ने अपनी छाती अड़ा दी थी कबाइलियों की गोलियों की बौछार को रोकने के लिये। एयर-पोर्ट के मुख्य द्वार से निकलते ही सामने ही भव्य प्रतिमा दिखती है शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा की और विमान से उतरने वाले सब-के-सब वो हरी वर्दीधारी उस प्रथम परमवीर चक्र विजेता की प्रतिमा को सैल्युट कर आगे बढ़ते जाते हैं।
"कितनी अजीब-सी लेगैसी छोड़ गये हैं मेजर सोमनाथ भी" - चौहान कानों में फुसफुसाता-सा कहता है।
आशीष- आशीष चौहान, है तो दो साल जुनियर, लेकिन अक्सर दार्शिनिक-सी बातें कर खुद को परिपक्व दिखाने में लगा रहता है। देहरादून से साथ ही आ रहा है वो यहाँ पोस्टिंग पर।
" ओय चौउ, कितना टाइम लग जायेगा यहाँ से अपने बेस पर पहुँचने में?"
"तीन घंटे तो कम-से-कम, सर। आय होप, हमें लेने कोई गाड़ी-वाड़ी आ रही है।"
"तू पूछ रहा है कि बता रहा है? वो उधर देख, शायद अपनी ही गाड़ी हैं वो!"
तीन सालों बाद आ रहा था वो वापस वैली में। बहुत कुछ बदल गया है। आशीष ड्राइव कर रहा था और वो बगल वाली सीट पर बैठा श्रीनगर शहर को निहारता सोच रहा था। कितनी यादें..कितनी घटनायें...जिंदगी के कितने ही अहम हिस्से इस जगह से जुड़े हुये हैं, जो वो किसी को बता नहीं सकता, जो कोई समझ भी नहीं पायेगा। एक टीस-सी सीने की गहराइयों में।
अभी परसों ही तो राहुल छोड़ गया है हम सब को। यहीं इन पहाड़ियों पर कुछ हरामजादों से लड़ते हुये। शहीद कहलाने को।
"शहीद.....हुः !!!" एक विद्रुप-सी हँसी फैल जाती है मेरे होंठों पर। आप तब तक बहादुर नहीं हैं, जब तक कि आप शहीद नहीं हो जाते...!!!
विगत दो दिनों से देख रहा है वो....जिस मुल्क के लिये राहुल ने जान दी, जिस मुल्क के लिये वो यूँ कथित रूप से शहीद हुआ है, वो उसका मुल्क या तो किसी सरफिरे नेता के भाषण की विडियो-क्लिपिंग की सच्चाई जानने में व्यस्त है या फिर एक किसी क्रिकेट-टूर्नामेंट का आयोजन यहाँ न हो पाने पर शोकाकुल है। राहुल के इस मुल्क को उसके लिये रुक कर शोक मनाने की फुरसत कहाँ है? वैसे भी इस महान मुल्क की कथित बहादुर मीडिया अपने बहादुरी के कारनामे पेप्सी-कोक पीते हुये किसी ताज या किसी ओबेराय या किसी संसद-भवन के इर्द-गिर्द चल रहे आपरेशन को ही कवर करने में दिखा सकती है....उनके कैमरों में अब इतने अत्याधुनिक लैंस कहाँ से आयेंगे कि वो देख सकें पहाड़ों पर इन चीड़-देवदार के जंगलों में इन बेवकूफ़ राहुलों को खून बहाते हुये। आप बहादुर हैं या नहीं, ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपने जो अपनी बहादुरी दिखाते हुये लड़ाइयाँ लड़ी हैं, वो जगह कहाँ है। कई बार लगता है कि शायद जगह ज्यादा महत्व रखता है। राहुल का यही युद्ध अभी अगर मुम्बई या दिल्ली के किसी इलाके में हुआ होता तो अभी तक हीरो बना होता वो। किंतु उसका ये हीरोइज्म अब तो न्यूज-चैनलों के स्क्रीन के नीचे दौड़ती पट्टी पर रहने भर के काबिल है। "...कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों में मुठभेड़...सेना ने दो आतंकवादी मार गिराये...सेना का एक मेजर भी शहीद"। न्यूज-चैनल के दौड़ते टिकर्स...इतनी-सी हैसियत है बस हमारी।
"क्या सोच रहे हो, सर?"- आशीष की आवाज चौंका देती है उसे।
"कुछ नहीं यार, बस अपने राहुल की याद आ गयी थी"
"पता चला सर। आपदोनों बैच-मेट थे ना?"
"मोर दैन दैट।...अब तो बड़ा हो गया वह।शहीद हो गया ना!"
"कूल इट सर।...लो आ गया अपना कैंप।"- आशीष समझ रहा था उसकी खीझ।
तम्बुओं की कतार। कँटीले तारों से घिरा। यही तीन बटा डेढ़ किलोमीटर की परीधि में फैला छोटा सा ये कैम्प उसकी कर्मभूमि है अब अगले ढ़ाई- तीन सालों तक के लिये। संध्या का सूरज सामने की बर्फीली पहाड़ों के पीछे छुप कर एकदम से अँधेरा कर गया और श्नैः ही कँटीले तारों पर लगे तमाम सेक्यूरिटी लाइट्स स्वमेव जल उठे। एक विचित्र-सी अनुभूति जैसे कि वो कब से यहीं हो। मेस में औपचारिक रूप से आमंत्रित थे वो दोनों आज की रात वेलकम डिनर के लिये। ...और उसी डिनर के दौरान कमांडिन्ग आफिसर ने उसे उसकी नयी ड्यूटी का ब्योरा समझा दिया था। कल सुबह सामने वाले पहाड़ पर स्थापित एक छोटे-से पोस्ट की कमान सँभालनी थी उसे। सुदूर एकांत चौकी। सरहद पार से होने वाले इंफिलट्रेशन पर नजर और नीचे से गुजरने वाली सड़क की सुरक्षा के लिये।
"वाह! मजा आयेगा!!" -मुस्कुराया सोच कर। हमेशा से हेड-क्वार्टर से अलग-थलग दूर-दराज की चौकी पर रहना उसे पसंद है।
"इंडिपेंडेन्ट कमांड, दैट्स व्हाट ही लाइक्स...मजा आ गया!" लगभग हँस पड़ा था वो खुशी से।
"..और मोहित, कहाँ के रहने वाले हो? हू आल आर देयर इन योर फैमिली?" -कमांडिन्ग आफिसर उससे पूछ रहे थे डिनर-टेबल पर।
"यूपी का रहने वाला हूँ, सर। बनारस का।" -अपने खुशफहम खयालों से बाहर आता हुआ वो बास के सवाल का जवाब देता है।
"घर में माँ-पापा हैं, सर। और नेहा, माय वाइफ। एक बेटी है-सवा साल की। खुशी।"
"एंड यू आर कमिंग हेयर इन वैली फौर दी सेकेंड टाइम इन योर सेवन यियर आफ सर्विस?" -कमांडिन्ग आफिसर उसे एट-इज करने की कोशिश में थे।
"यस सर।" - मन-ही-मन मुस्कुराता है वो।
"दैट्स ग्रेट! तो कल सुबह की तैयारी कर लो तुम ऊपर पोस्ट पे चढ़ने की। बी एलर्ट देयर और अपना और अपने जवानों का ख्याल रखना...!" कमाडिंग आफिसर ने तनिक स्नेहिल आवाज में चलते-चलते कहा उसे।
वह सोने की तैयारी कर रहा था, जब चौहान धड़धड़ाता हुआ "गज़ब सर ! गज़ब !!" की रट लगाता हुआ दखिल हुआ उसके कमरे में।
"अबे क्या हुआ? सोना है मुझे। कल जल्दी उठना है...ऊपर वाली पोस्ट पे जाना है।" कुछ खिझी आवाज में पूछा मैंने।
"सर, आपके बड़े चर्चे हो रहे हैं यहाँ तो..." - चौहान मुस्कुराता हुआ कहता है।
"हुआ क्या?"
"मैं अभी ऐसे ही हेड-क्वार्टर का चक्कर लगा रहा था। एक जगह चार-पाँच जवानों का एक ग्रुप बैठ कर गप्पें लगा रहा था। उन्होंने मुझे देखा नहीं था अँधेरे में। बातचीत के दौरान मुझे आपका नाम सुनाई दिया, तो मैं ठिठक कर सुनने लगा। आप तो बड़े फेमस हो, सर...!!"
"अबे, पूरी बात बतायेगा !" - सोने के लिये उतावला जरूर था, लेकिन अपने बारे में जवानों की बातें सुनने की उत्कंठा छुपा नहीं पा रहा था।
"आपके बारे में एक कह रहा था कि ये जो नये मेजर मोहित सक्सेना साब आये हैं बड़े खुर्राट हैं। बहुत ही सख्त और गुस्से वाले हैं। जरा ध्यान से रहना। ड्यूटी पे ढ़िलाई तो उन्हें जरा भी पसंद नहीं। जिसको भी ढ़ीला पकड़ लेते हैं, बहुत पनिसमेंट देते हैं...."
"अच्छा? और क्या कह रहे थे?" – वो अपनी हँसी रोक नहीं पा रहा था।
"ये सुनने पर एक ने कहा कि अच्छा है वो यहाँ नहीं रह कर उधर ऊपर वाले पोस्ट पर जा रहे हैं। तो तीसरे ने कहा कि उस पोस्ट पे अपने यार-दोस्तों को आगाह कर देना कि कसाई मोहित आ रहा है, संभल के रहे..." - आँखें नचाते हुये चौहान ने "कसाई" को कुछ इस तरह उच्चरित किया कि दोनों ही ठहाका लगा कर हँस पड़े।
"हमसे पहले हमारी रूसवाई के चर्चे गये..... हा ! हा !!" – उसने हँसते हुए एक शेर मारने की कोशिश की।
"चलो सर। सो जाओ आप। ऊधर ख्याल रखना अपना। गुड नाइट !" - सैल्युट मार कर चौहान चला गया।
विगत चार दिनों से लगातार बारिश हो रही है। बारिश पसंद है । बहुत पसंद है। एक हफ्ते से ऊपर होने को आये हैं अपनी इस पोस्ट पर और लगने लगा है कि जाने कब से यहीं रह रहा है वो। बारिश जाने कितनी स्मृतियाँ एकदम से ले आयी हैं संग अपने।
बारिश पसंद है, लेकिन छुट्टियों में। नेहा के संग वाली बारिश। वो जानबूझ कर मोटरसायकल पर दोनों का भीगते हुये देहरादून की तमाम सड़कों पर चक्कर लगाना। या फिर दो बड़े मगों में काफी भर कर दो पैकेट मैगी पका कर एक ही प्लेट में वो ड्राइंग-रूम के फर्श पर बिस्तर लगाना और कोई फिल्म देखना टीवी पर। कितनी सारी स्मृतियाँ... इस छोटे से बहक* में रंग-बिरंगा एक कोलाज बनाते हुये। तापमान बिल्कुल गिर कर शून्य को छूने की होड़ में है। लगातार चौथा दिन...बारिश है कि थमने का नाम नहीं ले रही। दूर उस चोटी से सरकती हुई बर्फ़ की चादर मेरे बहक* की छत पे पहले से ही बिछी पतली बर्फिली चादर पर इक और परत बिछाने को उतावली है। बारिश का यूँ बदस्तुर बरसते जाना मुझे ख्यालों, स्मृतियों की दुनिया से बाहर नहीं निकलने दे रहा।
...लेकिन ऐसे ही मौसम में तो ज्यादा चौकस रहने की जरूरत है। बाहर निकलता है वो - बहक की थोड़ी-सी कम सर्दी से "सब ठीक-ठाक है" देखने की नियत लिये बाहर की कंपकपाती सर्दी में। नीचे सर्पिली घुमावदार पतली सी सड़क। मेड-इन-जर्मनी का टैग लिये सरकार द्वारा सप्लाई की हुई ये पावर दूरबीन बड़ी जबरदस्त है। तमाम घोटालों और तमाम स्कैम के बावजूद कुछ अच्छी चीजें भी मिल जाती हैं हमें आयात होकर। जैसे कि ये पावर दूरबीन। चुस्त-सतर्क आँखें इस शक्तिशाली दूरबीन के लैंस के जरिये उस पतली सड़क की सुरक्षा में खड़े अपने जवानों की मुस्तैदी को परखती हैं... धान सिंह, सूबे, लक्षमण, मोहन चंद, प्रमोद, होशियार सिंह, तरसैम, ---एक-एक पर फिसलती आँखें। सही स्टांस सबका। मजबूत पकड़ राइफल के कुंदे पर। सतर्क निगाहें चारों ओर मुस्तैद। ---महिपाल, दूसरा वाला धान सिंह, दानू, तारा चंद---दूरबीन घूमती हुई---श्रीराम, भूप सिंह, लालाराम, पूरण चंद....पूरण चंद...चौंक कर फिर से वापस दूरबीन घूम कर ठिठकती है। पूरण चंद। लांस नायक पूरण चंद।... कमबख्त कैसे खड़ा है। लम्बे स्लींग के सहारे राइफल गले से कंधे पे होते हुये उपेक्षित-सा लटका हुआ बांयी ओर। वो खुद एक पेड़ के सहारे दांये कंधे का टेक लिये। दोनों हाथ यूनिफार्म के ट्राउजर की जेब में। ...ब्लडी इडियट!!! दूरबीन ज़ूम होती है...चेहरे का भाव...एक मधुर स्मीत सी मुस्कान फैली है पूरण के मुख पर।
पूरणssssssssssssssssssssssss....!!!
इतनी दूर से ये आवाज उस तक कैसे पहुँचेगी भला?
दूरबीन का लैंस ज़ूम होकर पूरण के चेहरे को और करीब ले आता है...कैसी अजीब-सी मुस्कान है। नशे में डूबी-सी मानो। सपनीली।...परसों ही तो छुट्टी से आया है ये नामुराद। इसे तो अभी पूर्ण रिचारज्ड बैटरी की तरह अन्य जवानों की अपेक्षा और-और चाक-चौबंद मुस्तैद होना चाहिये।..मगर देख लो नालायक को !!! अभी सीधा करता हूँ इस इडियट को। गुस्से की अधिकता सर्दी की ठिठुरन को जैसे और बढ़ा दे रही थी।
"राधे--ओय राधे, जीप निकाल !"
"जी साब..."
ठंढ़ में सिकुड़ी-सी जीप भी खांस-खांस कर स्टार्ट होती है। हिचकोले लेकर आगे बढ़ती हुई जीप। चौकी के पतले से रास्ते पर होते हुये मुख्य सड़क की ओर अग्रसर होती है।
"ये बारिश कब तक चलेगी, साब?" -राधेश्याम, मेरा ड्राइवर। बातूनी। दो मिनट को भी चुप नहीं बैठ सकता।
"ज्यादा-से-ज्यादा परसों तक रहेगी ये बारिश। तू कहाँ का रहने वाला है राधे?"
"बागेशर का हूँ साब" – उसकी आवाज में व्याप्त क्रोध को भाँपता हुआ राधेश्याम थोड़ा सहम कर कहता है।
"ये पूरण चंद भी तो तेरे आस-पास वाला ही है"
"हाँ साब। बिल्कुल मेरे पास वाले गाँव का ही तो है। अभी-अभी तो शादी करके आया है, साब।"
"शादी करके आया है...???"...और भक्क से ज़ूम हुए दूरबीन के लैंस में पूरण के चेहरे की उस अजीब मुस्कान का रहस्य खुलता है।...कमबख्त ये पूरण का बच्चा ख्वाब में डूबा हुआ है अपनी नयी-नवेली दुल्हन के। जाने क्यों एकदम से नेहा का चेहरा याद आया। कितनी क्रूरता होगी ये ना...पूरण को उसके ख्वाब से जगाना।
किंतु ये क्रूरता तो करनी पड़ेगी। महज ड्यूटी या कर्तव्यपरायणता के ख्याल से ही नहीं...उस नयी-नवेली दुल्हन के सुरक्षित भविष्य के लिये भी तो। उस नयी दुल्हन की माँग हमेशा हरी रहे, इसलिये भी पूरण को ख्वाब से जगाना जरूरी है
जीप झटके से रूकती है।
"कैसे हो पूरण ?"
"जय हिंद, साब! ठीक हूँ साब!!"
एक कड़क सैल्यूट। घबड़ाया-सा। हड़बड़ाया-सा। राइफल पर उसकी पकड़ मजबूत हो जाती है।
"तू ने अपनी शादी की मिठाई तो खिलाई ही नहीं...."
ड्यूटी का एक और बारिश से भीगा हुआ, सर्दी से काँपता हुआ दिन सही सलामत निकल जाता है। मेरे कोलाज में पूरण की हरी हँसी जुड़ आती है। जीप वापस चौकी की तरफ चल पड़ती है। राधे आश्चर्य से अपने मेजर साब को गुनगुनाते हुये देखता है...
"हरी है ये जमीं हमसे कि हम तो इश्क बोते हैं
हमीं से है हँसी सारी, हमीं पलकें भिगोते हैं....."
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{*बहक-ऊँचे पहाड़ों पर गड़ेरियों के द्वारा बनायी हुई छोटी झोपड़ी}
बहादुरी के जज्बे को सलाम! शहीद मोहित को श्रद्दांजलि।
ReplyDeleteनयी कर्मभूमि ज़रा मुश्किल है मेजर साब,पर आपके चाहने वालो की दुआएं हमेशा आपके साथ हैं,,,पहली बार आपके ब्लॉग पर आया तो सोचा भी ना था के इतना ज्यादा अटैचमेंट,,,
ReplyDeleteखैर,,,, आप वो शे'र कबूल फरमाए,,,,जो उस वक़्त होना शुरू हुआ था जब आप हमारे बिखरे कागज़ के पुर्जे हमें संभालने कर रखने की हिदायत दे रहे थे,,,वो पल भी बड़ा मीठा था,,,
वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन,
वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में,,,
ये नै फोटो है तो प्यारी मगर देखने के लिए थोडा कष्ट होया है,,,एक क्लोज अप जरूर,,,,लगाए,
गौतम, तुम्हें नये कर्मभूमि पर काम की अनेकों शुभकामनायें और मोहित को दिल से श्रद्धांजलि। तनया को मेरा खूब सारा प्यार पहुँचाना।
ReplyDeletevir mohit ko shradhaanjali,aur gautam bhaaee aapko naee karmabhoomi ki shubhkaamanayen...
ReplyDeletearsh
" nyi jgh pr tanati ki shubhkamnaye....or virro ko shardhanjli.."
ReplyDeleteRegards
शहीद मोहित को सलाम. सही है आपकी कर्मभूमि को हमने घूमने के लिये लिहाज से ही देखा है. और ५ स्टार मे बैठकर बात करना और हकीकत को फ़ेस करना, दोनों मे जमीन आसमान का फ़र्क है.
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं आपको और आपके सभी साथियों को.
रामराम.
गौतम जी जिस नयी चुनोती भरी पोस्टिंग की जगह पर आप गए हैं.हमारी शुभकामनायें हैं कि वहां हर फ्रंट पर आप खरे उतरें.
ReplyDeleteप्राकृतिक सुन्दरता से भरे उस स्थल पर आप का और आप के सभी साथियों ka समय खूब अच्छे से बीते.
मेजर मोहित की शहादत को सलाम.
मिडिया तो टी आर पी से आगे सोचती ही नहीं.
शहीद मोहित को हमारा सलाम। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी प्राथमिकता है कुछ ओर , पर होनी चाहिए थी कुछ ओर। खैर.... हमारी शुभकामनाएं आप और आपके साथियों को।
ReplyDeleteगौतम हर युग में एक क्रांतिक अवस्था आती है जब लोग संवेदना विहीन हो जाते हैं । वे उन चीजों को महत्व देने लगते हैं जो महत्व की नहीं हैं और उन चीजों को महत्व नहीं देते जो महत्व की हैं । मेरे परिचित कवि आलोक सेठी की सुंदर कविता है
ReplyDeleteहमें बताया गया था कि
चीजें इस्तेमाल करने के लिये होती हैं
और इन्सान प्यार करने के लिये
किन्तु
हम समझने में भूल कर गये
हम चीजों से प्यार करने लगे
और
इन्सानों का इस्तेमाल
ये कविता आज के दौर को पूरी तरह से व्यक्त करती है । किन्तु ये क्रांतिक अवस्था भी बीतेगी और फिर से हम परिवर्तन को देखेंगें । दरअस्ल में हम अपने बच्चों को अब इन्सान नहीं बनान चाहते हम उनको एटीएम मशीन बना रहे हैं । एटीएम मशीन जिसमें उनके बच्चे और पत्नी जब चाहे कार्ड फंसा कर पैसा निकाल सकें । और एटीएम मशीन को क्या मतलब कि कौन था मोहित उसे तो मतलब है मोदियों से, क्योंकि ये मोदी ही तो एटीएम में पैसा भरते हैं । अगर इन्सान हों तो निसंदेह वो मोहित को ही जानना चाहेगा । किन्तु यकीन मानो अभी भी इन्सान जिन्दा हैं । भले ही हमारे चारों ओर बहुत सी चलती फिरती एटीएम मशीनें घूम रहीं हों किन्तु कहीं कहीं इन्सान भी हैं ।
नई जगह इतनी दुश्वार परिस्थितियों से भरी है ये जानने पर तुम्हारे लिये चिंता तो हुई किन्तु मुझे पता है कि मेरा ये अनुज कमजोर नहीं है, कवि तो वैसे भी कभी कमजोर नहीं होता । बहुत पहले एक गीत लिखा था शायद पन्द्र
ह साल पहले उसकी कुछ पंक्तियां अब पूरी तरह से याद तो नहीं पर कुछ यूं थीं
अंदर का साहस ही कविता बनकर बाहर आता है
इसीलिये तो कोई कायर, कवि नहीं बन पाता है
कवि होना अपने आप में एक विशिष्ट स्थिति है, ये वो ही जानते हैं जो कवि नहीं हैं । और जानते हो कवि होना ये नहीं है कि तुक या काफिया मिलाना आता हो, कवि होने का अर्थ ये है कि समाज में देश में जहां अंधेरा हो उसे अभिव्यक्ति दो, होते रहें बाकी लोग कायर किन्तु हम नहीं क्योंकि हम तो कवि हैं हमें तो कहना ही होगा कि अरे ! राजा तो नंगा है । तुक और काफिया मिलाने वाले तो बहुत हैं किन्तु कवि तो हर युग में एकाध ही होता है । दिनकर जी कहते हैं कि हर युग अपने कवि की प्रतीक्षा करता है और दुर्भाग्य शाली होता है वो समाज जिसको अपना कवि ठीक समय पर नहीं मिलता ।
कवि ही तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खतरे उठाता है । वो कवि ही कहता है कि सिंहासन खाली करो के जनता आती है । जो हुस्न इश्क, जामो मीना, शराबो शबाब को लिख रहे हैं क्या वे कवि हैं ? नहीं वे कवि नहीं हैं वे भांड मिरासी हैं जो राजाओं को खुश करने के लिये कविताएं लिखते थे । स्व हरिशंकर परसाई जी ने कहा था कि जब आग लगी हो तब कवि को राग जै जै वंती नहीं गाना चाहिये । हमारी कविता उन सबका प्रतिनिधित्व करती है जो अपना स्वयं का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते । हम तो समाज के हरकारे हैं हमें ये जो कवि की उपाधि मिली है ये समाज की ओर से आवाज लगाने की मिली है । इसका हमें अपने जीते कोई प्रतिफल भी नहीं मिलना है जो मिलना है वो बाद में ही मिलना है । इसलिये याद रखो जो कलम मशाल नहीं बन पा रही हो उसे तोड़ कर फैंक दो ।
अब तुम एक ऐसी जगह हो जहां पर असली परीक्षा होनी है । अच्छी पुस्तकों का साथ बनाये रखना । तनया शायद मेरी भतीजी का नाम है । बहू और तनया दोनों को पता है की योद्धाओं की पत्नी या बेटी होने का अर्थ क्या होता है । क्या वहां परिवार को साथ रखने की इजाजत नहीं है जहां तुम गये हो । वस्तुत: तुम किस स्थान पर हो वहां का पूरा डाक पता भेजना ।
आगे से किसी पोस्ट में निराशा की बातें मत लिखना । ये दुनिया तो ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो माहित जैसे लोगों को टेकन एस ग्रांटेड मानते हैं, किन्तु कुछ लोग हैं जो मानते हैं कि मोहित हो जाना कितना मुश्किल काम है । और इन मुट्ठी भर लोगों में से ही पैदा होते हैं ब़द्ध, महावीर, गांधी, हिटलर, नेपोलियन, कृष्ण......।
तुम्हारा बड़ा भाई
सुबीर
गौतम जी,
ReplyDeleteसबसे पहले शहीद मोहित को हमारा सलाम.....!!
दूसरे आप यूनीफोरम मे बहुत जॅंच रहे हो .....!!
तीसरे हमारे इलाक़े मे आपका स्वागत है
और अब एक अच्छी सी ग़ज़ल क़ा intjar है...!!
अंदर का साहस ही कविता बनकर बाहर आता है
ReplyDeleteइसीलिये तो कोई कायर, कवि नहीं बन पाता है
Subir ji ki ye paktiyan ghr kr gayin....sach kha hai subir ji kavi hona itana aasan nani aur sach much kavi veer hote hain...slam aapko bhi....!!
मोहित को श्रद्धांजलि और आपके जज़्बे को सलाम्।
ReplyDeleteसच कहा .ये देश अब ऐसे ही लोगो से भरा पड़ा है जो रिमोट की तरह अपनी भावनाए तुंरत बदल लेते है .कश्मीर की अब कोई खबर हलचल पैदा नहीं करती .हलचल अगर होती है तो फौजी के घर या आस पास ...कोई नंदिता उस पर मूवी नहीं बनाती ....क्यूंकि फौजी का मरना तो आम खबर है .....शहीद होना है ....होना ही चाहिए ...उसके बाद किसी दूसरे फौजी की पोस्टिंग होगी फिर तीसरे...एक खूबसूरत एंकर समाचार देते वक़्त भी शहीद नहीं बोलेगी क्यूंकि उसकी स्क्रिप्ट में नहीं लिखा हुआ है .ओर ..अगले एक मिनट बाद मुस्कराते हुए आई पी एल के लिए गम मनाते शाहरुख़ खान ओर प्रीटी जिंटा पर लगातार ५ मिनट की खबर देगी जिनका मानना है की आई पी एल के बाहर जाने से देश की प्रतिष्टा को धक्का लगेगा ....चैनल बदलते ही कश्मीर भी पीछे रह जायेगा ...ओर लोग इंडियन आइडल के लिए आंसू बहायेगे....कुछ एस एम् एस करके अपने फेवरेट को बचायेगे .एम् टी वी पर लड़के लड़किया ये सिखायेंगे की आपने कैसे १० लड़कियों के बीच एक लड़की को पटाना है जिंदगी चलती रहेगी......मोहित जैसे लोग खामखाँ अपनी जान देते है ...कश्मीर का क्या है वहां तो रोज बम फूटते है .
ReplyDeleteपीर पंचाल की यह चोटियां जहाँ अपनी और आकर्षित अपनी खूबसूरती से करती हैं वहीँ बहादुर सैनिकों के किस्से भी ब्यान करती है ....मोहित को श्रद्धांजलि आपके लिए दिल से ढेरों शुभकामनाएं ..और सलाम
ReplyDeleteगौतम जी आपकी पोस्ट और उस पर गुरूजी की टिप्पणी पढ़ी और मन में विचारों का सैलाब सा उमड़ आया। कवि के बारे में तो वैसे गुरूजी लिख ही चुके हैं मैं बस गोपाल सिंह नेपाली जी की कुछ पंक्तियाँ जोड़ता हूँ-
ReplyDelete"हम धरती क्या आकाश बदलने वाले हैं
हम तो कवि हैं इतिहास बदलने वाले हैं"
फ़िर से उन्ही की पंक्तियाँ-
" उन सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
इमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता"
नहीं चाहिये हमें मानवीय मूल्यों को ताक पर रखकर धन के ढेर लगाना! साथ ही अवश्यंभावी परिवर्तन की उम्मीद में....
"जलाते चलो ये दीये स्नेह भर-भर
कभी तो धरा का अंधेरा मिटेगा"
काश! वह शुभ घड़ी जल्दी आए।
पिछले साल पीर पंजाल की इन्ही पहाड़ियो के बीच रहकर आयी थी..आर्मी बेस कैंप में..बहुत करीब से देखा है....इन्हे वो सब करते जिसे आम इंसान सोचकर भी वक्त बर्बाद करना नही चाहता....देखा है यूंही घंटो एक ही पोस्ट पर किसी चौकन्ने बाज़ की निगाहें रखें....बिना रुके बिना थमे...देखा वो म्यूज़ियम भी जिसमें शहीद होने के बाद एक बुत खड़ा किया जाता है...लेकिन जिससे आम आदमी का कोई सरोकार नहीं....किसी को फुर्सत नही मिलती कि कोई एक लम्हा भी ये सोच ले...आज हम जिस चैन की नींद के साथ है....वो किसी जांबाज़ की जान की वजह से मिलती है....
ReplyDeleteजी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
ReplyDeleteजो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
गौतम जी हमें ऐसे शायर पर फक्र है जो अपनी शायरी से हमारी सोच को और हिम्मत से हमें सलामत रखता है. आपकी बात पर गुरु देव पंकज जी ने जो लिखा है उसके बाद कुछ और कहने को रह ही नहीं जाता...मैं बस उनकी सोच और विचारों का दिल से समर्थन करता हूँ...
उम्मीद है की आप जल्द ही निराशा को छोड़ एक नयी ग़ज़ल से हमें रूबरू होने का मौका देंगे...
नीरज
saheed ke jajbe ko salaam .. aapke blog par p0ahli baar aaya .. achcha laga.........
ReplyDeleteआपने बिलकुल सच लिखा ....उस वीर को सलाम
ReplyDeletegautam ji, major mohit ko bhavbhini, ashrupurna shradhanjali.
ReplyDeleteparampita se prarthna hai ki wo is nai karmbhumi men aapka hausla buland rakhe aur kadam -kadam par aapki raksha karen. all the best.
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ReplyDeletegautam bhai !
ReplyDeleteaaj baat hui,
khairiyat maloom hui to sukoon haasil hua...
aapke liye aur aapke sabhi saathiyon ke liye hm sb ki dheron kaamnaaein aur prarthanaaein hamesha-hamesha aap sb ke saath hain....
GOD BLESS.
---MUFLIS---
गौतम जी
ReplyDeleteआप के दिल का दर्द समझ आता है .......
हम लोग इतने संवेदनहीन हो गए हैं, हमारा मीडिया अपने आप को जिम्मेवार मानता है, पर जिमेदारी उठाता नहीं, बस वो ही दिखलाता है जो सनसनी है.
mohit aur tanya ko mera aashirwaad.....aur gautam ji aapki profile pic bahut achhi lagi, vardi dekhte hi aankhon me chamak aa jaati hai.....
ReplyDeleteबड़ी दुखद स्थिति है। ऍसी खबरों को हम हाशिए पर ले जाते हैं जिनके बारे में सोचने और चिंतन मनन की जरूरत है कि ऍसा क्यूँ हो रहा है..हम इससे निबटने के लिए क्या कर रहे हैं। और जनता में जागरुकता तभी आएगी जब मीडिया उस मुद्दे को उभारे
ReplyDelete............
ReplyDeleteगौतम जी,
ReplyDeleteसवेरे आपके ब्लॉग को बगैर पढ़े ही कमेंट कर दिया था,,,,,सुभा ड्यूटी जल्दी जाना था,,,
अब आकर पढा ब्लॉग ,,
और कमेंट भी,,,,,
बहुत लिखा भी समझने की कोशिश की
,,,,और जो कुछ ना लिखा वो ,,,, तो,,,,,
सीधा सीधा समझ लिया ,,,
निराशा,,,,कायरता जैसी बातें कुछ ज़्यादा समझ नहीं आईं,,,
जाने किस के लिए हैं,,,,किस वजह से हैं,,,
पर मोहित के बारे में पढ़कर दुःख हुआ ,,,
फिर वो अजीब सा आदमी याद आ गया,,,,जो मेट्रो में अपने छोटे स बच्चे को किसी अलग सी जगह पर ले जाकर ,,,,,जाने कैसे अजीब ढंग से चुप करवा रहा था,,,,,हम दोनों ही उसे एकटक देखे जा रहे थे,,,,,
मगर अपनी अपनी सोच के साथ,,,,,
फिर जब मेट्रो से उतर कर हमने आपस में अपने अपने ख्याल ( उस आदमी और बच्चे के बारे में ) आपस में बांटे तो मुझे बड़ी ही हैरत हुई,,,,,
एक ही चीज पर दोनों की नजर,,,मगर ,,,सोचने का ढंग,,,!!!!!!!!!!!!!!!
यही फर्क होता है,
आप क्या लिख रहे हैं,,,,,क्या कह रहे हैं,,,
और क्या जी रहे हैं,,,,,
ये समस्या मेरे साथ पैदाइशी ही जुडी हुई है,,,किसी भी चीज को उन आयामों से देखने की ,,,,,
जो अक्सर किताब वाले नहीं देख पाते,,,,,चाहे कितनी ही बार उलट पलट के सोचना पड़े,,,
मगर सोच टिकती है आदमियत पर ही जाकर,,,,,,
आप को मैंने कभी सबसे पहले लिखा था के मुझे ' प्रेम पुजारी ' की याद आ गई,,,,,
आपसे हाथ मिला कर शायद ये बात साबित सी हो गई,,,,,आप सबसे पहले एक आदमी हैं,,वो भी भले आदमी,,,
उपरोक्त वर्णित "" अवगुण " यदि आपमें हो भी तो मैं इन्हें आपके
विशेष गुण मानूंगा,,,,,,,,,,,,,,,,
aapka kahna sahi hai...kashmir ke jungalon mein ek fauji desh ke liye jaan ki baazi laga jata hai, aur desh nano ke launch ka jashn manane mein mashgool. kam se kam 23 march ko sabhi news channel dekh kar tto yahi laga. Par hum sabhi jo yahan Mohit ko salam kar rahe hain un sab ko ye bhi zimmedari uthani chahiye ki Nano ke jashn aur Varun gandhi ke video mein vyast mulk ki atma jagayein aur wo apne real heroes ko salam kare. Sirf dhikkarne se kucch nahi hoga.
ReplyDeleteमेजर गोतम राजरिशी को मेरा सलाम, फ़िर प्यारी बिटिया तनया को बहुत बहुत प्यार, गोतम साहब यह देश हम सब का घर है, ओर हम सब इस घर मै रहने वाले एक परिवार के रुप मै है, ओर अब इस परिवार मै कई बच्चे नालायक ओर उदंड से हो गये है जिस से इस घर के बिखरने के आसार नजर आते है, लेकिन देश के रक्षक बाहर के हमलो से तो इस परिवार की रक्षा कर सकते है लेकिन इन नालायक ओलाद से केसे निपटे?? जो देश के दुश्मनो से भी ज्यादा खतर नाक है.लेकिन आप उदास न हो, दिल को समझाये, हमे मान है आप पर.जय जवान
ReplyDeleteमोहित को हमारी तरफ़ से श्रद्धांजलि.
धन्यवाद
APNA EK SHER YAAD HO AAYA:
ReplyDeleteMere is mulk ke saare hi neta saaf dikhte hai,
suna hai gang ka paan abhi bhi paap dhota hai,
Hazaroon sakdon ki bheed main ek aur kam hoga,
magar maa baap ka apne wahi to ek-lauta hai,
यह देख कर दिल को सुकून हुआ की लोग वरुण गांधी प्रकरण और आई पी एल के मैचो की खबर के बीच मोहित के बारे में पढ़ कर ज्यादा द्रवित हैं मगर सोचने की बात तो यह है की क्या जब मैच और चुनाव शुरू होंगे तब तक हम मोहित को याद रख पायेंगे
ReplyDeleteआपका वीनस केसरी
मोहित के बारे में बताने हेतु धन्यवाद. मोहित की शहादत को प्रणाम
ReplyDeleteसही कहा गौतम - अगर हम शहीदों के और शहादत की तमन्ना रखने वालों के शुक्रगुजार होते तो हमारा वर्तमान भी उतना ही गौरवमय होता जितना हमारा भूत था. कितने भारतीय अपने बच्चों को हँसी-खुशी सेना में भेजते हैं? सच में बहादुरी की कविता लिखना और बात है और देश पर कुर्बान रहने की तयारी बिलकुल दूसरी ही बात.
ReplyDeletedear gautam,
ReplyDeleteaaj ye post padha to man bheeg gaya .. kal hi main muflish se aapka number maang raha tha ..
sabse pahle to shahid mohit ko salaam .. aur un saare jaabanjo ko bhi .. jo desh ke liye mar mitate hai ..
aap jahan posted ho ,wo duniya ki sabse acchi jagah thi ..kabhi . aaj jo jung ka maidan bana hua hai ..
meri duayen aapke saath hai , is desh ke saath hai ..
aur kya likhun bhai.. bus apne number mujhe sms kar dena .. main baaten karna chahta hoon..
vijay
hyderabad
09849746500
आज एक बेहतरीन ब्लाग और ब्लागर से परिचय हुआ,
ReplyDeleteइतने दिनों तक न पढ़ पाने की भरपाई में
आज अपने को टिप्पणी करने से वंचित रखता हूँ..
यह कोई कम हल्की सज़ा नहीं है !
ye din bhi yun kaa yun yaad hai...
ReplyDeletepahle 14 th march ko khwaab mein aanaa...
ReplyDeletefir 21st ko haqeekat mein...