26 December 2017

कुहरे की मुस्तैद जवानी जैसे सैनिक रोमन...उफ़

[ कथादेश के दिसम्बर 2017 के अंक में प्रकाशित "फ़ौजी की डायरी" का दसवाँ पन्ना ]

कुहरे की तानाशाही शुरू हो चुकी है | सूरज की सत्ता को चुनौती देने की दिसम्बर की साजिश आख़िरकार रंग ले ही आई | कमबख्त़ दिसम्बर को कतई गुमान नहीं कि सूरज को चुनौती देने के फेरे में यहाँ सरहद के बाशिन्दों की चुनौतियाँ कितनी बढ़ गयी हैं | हाथ भर आगे ना दिखाई देना नियंत्रण-रेखा के कँटीले तारों पर सरफिरे जेहादियों की घुसपैठ के बरख़िलाफ़ चौबीसो घंटे मुस्तैद खड़े सीमा-प्रहरियों के लिए कितनी मुश्किलें बढ़ा देता है...काश कि शब्दों में उसका बयान हो पाता | इस तेरह हज़ार फीट की रेजर शार्प श्रृंखला और इसके तीव्र उतार-चढ़ाव चप्पे-चप्पे पर प्रहरियों की तैनाती को दुश्वार बनाते हैं | ये लो...इस ‘चप्पे-चप्पे’ से एक बड़ी ही दिलचस्प बात याद आ गयी |

अभी दो-एक महीने पहले पड़ोस की बटालियन के जिम्मेदारी वाले इलाके से मिली संदिग्ध घुसपैठ की ख़बर पर नीचे वादी में तहलका-वहलका जैसा कुछ मचा हुआ था | मीडिया की बेसिर-पैर की ख़बरों और अटकलों को नेस्तनाबूद करने की गरज से स्थानीय पुलिस ने प्रेस-कॉन्फ्रेंस बुलाने का इरादा किया | शहर के एसपी को नियुक्त किया गया था पत्रकारों के सवालों का जवाब देने के लिए | बड़ा ही प्यारा सा युवक आया हुआ यहाँ का एसपी नियुक्त होकर...बिहार के समस्तीपुर जिले का...आँखों में और सीने में जोश, उमंगें और मजबूत इरादों की टोकरियाँ भरे हुए | अक्सर फोन करते रहता है इधर ऊपर के हालात की जानकारी लेने के लिए तो अच्छी दोस्ती हो गयी है उस से | प्रेस-कॉन्फ्रेंस शुरू होने से कुछ देर पहले संभावित प्रश्नों की सूची से गुज़रते हुए और अपने जवाबों की तैयारी करते हुए एक सवाल पर अटक गए एसपी साब | करियर के पहले प्रेस-कॉन्फ्रेंस के निर्वहन का सहज नर्वसनेस और उस अटपटे सवाल के सटीक जवाब की तलाश में जाने कैसे तो कैसे उसे इस ऊँचे पहाड़ वाले मित्र की याद आयी | फोन पर तनिक उत्तेजित आवाज़ में पहले तो उसने अपने प्रेस-कॉन्फ्रेंस की संक्षिप्त सी जानकारी दी भूमिका स्वरुप और फिर उस अटके हुए सवाल को दुहराया | बड़ा ही बेतुका सा सवाल था...रगों में दौड़ते-फिरते खून में उबाल लाने वाला सवाल...”नियंत्रण-रेखा की सुरक्षा में जब चप्पे-चप्पे पर फ़ौज तैनात है तो फिर घुसपैठ कैसे हो जाती है ?” | कौन समझाए इन खबरचियों को यहाँ की ज़मीनी बनावट की मुश्किलें ! काश कि उन्हें अपने कैमरे के साथ यहाँ चप्पे-चप्पे पर खड़े करने की स्वतंत्रता होती हमारे पास ! फिर पूछता उलट कर उनसे ये सवाल कि उनके कैमरे का जूम-लैंस क्या-क्या कवर कर पा रहा है | खैर...फोन के उस तरफ़ उत्तेजित एसपी सटीक जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था | इस बेतुके सवाल के जवाब में नियंत्रण-रेखा की परेशानियाँ, इन तंग पहाड़ों के ख़तरनाक उतार-चढ़ाव और मौसम की बेरहमी की व्याख्या करने का कोई तुक नहीं बनता था | इस अनर्गल बेतुके से सवाल का जवाब भी कुछ इसी के वेब-लेंग्थ पर मगर पूरे तुक के साथ दिया जाना चाहिए था | उधर एसपी ने फिर से सवाल दोहराया, इधर स्वत: ही मेरे मुँह से निकला...

“चप्पे-चप्पे के बीच में हायफ़न भी तो होता है |”

रिसीवर के उस पार जवाब सुनकर एसपी साब की क्षणिक ख़ामोशी के पश्चात उठे एक कर्णभेदी ठहाके ने जवाब के मुकम्मल होने की मुहर लगा दी थी | पता चला प्रेस-कॉन्फ्रेंस ज़बरदस्त हिट रहा और कुछ स्थानीय अखबारों ने इस ‘हायफ़न’ वाले वक्तव्य को ही हेड-लाइन बनाया |

किन्तु अखबारों के हेड-लाइन से इन रेजर शार्प श्रृंखलाओं पर मौजूद ‘हायफ़न्स’ का उपचार तो नहीं हो पाता ना और ना ही इस जालिम दिसम्बर की करतूतों पर कोई अंकुश लगता है | वैसे दिसम्बर से कुछ ख़ास यादें जुडी आती हैं हमेशा...पासिंग आउट की यादें | बीस साल हो गए अब तो | एकेडमी के प्रशिक्षण-काल को भी गिनूँ तो चौबीस साल...उफ़ ! एक युग ही नहीं बीत गया इस बीच ! कितना कुछ तो बदल गया इन चौबीस सालों में | मुल्क भी... फ़ौज भी | बारहवीं के पश्चात आई०आई०टी० की देश भर में तथाकथित रूप से सम्मानित प्रवेश-परीक्षा निकालने के बाद भी नेशनल डिफेन्स एकेडमी(एन०डी०ए०), खड़गवासला को चुनने वाला वो लड़का कभी इसी काया का निवासी हुआ करता था, अब सोच कर हँसी आती है | एन०डी०ए० के जुनून का सर चढ़ने का श्रेय जाता भी है, तो कमबख्त़ एक फ़िल्म को | वर्षों पहले...नौवीं या दसवीं कक्षा के वक़्त की बात होगी शायद | घर में उस छोटे-से अपट्रौन टेलीविजन के ब्लैक एंड व्हाईट स्क्रीन पर देखी गयी एक अतिसाधारण सी फ़िल्म ‘विजेता’ टीनएज मानस-पटल पर इस कदर असाधारण सा प्रभाव डालेगी, कोई सोच भी सकता था क्या ! फ़िल्म के मुख्य किरदार ‘अंगद’ की एक सामान्य युवा से लेकर विशिष्ट योद्धा बनने तक की यात्रा इतनी कौतुहलपूर्ण और झकझोरने वाली थी कि उस नन्हे से अपट्रौन टीवी के स्क्रीन को घूरता हुआ वो चौदह-पंद्रह साल का लड़का किसी जादू-टोने से सम्मोहित हुआ-सा स्क्रीन पर जीवंत अंगद हो जाना चाहता था...एन०डी०ए० के विस्तृत भव्य प्रांगण में कठोर प्रशिक्षण लेता हुआ कैडेट अंगद हो जाना चाहता था वो वहीं के वहीं, ठीक उसी वक़्त | दुनिया ही तो बदल गयी थी उस लड़के की इस फ़िल्म को देखने के बाद | जुनून-सा कोई जुनून था जैसे सर पर सवार, जो हर लम्हा बस “एन०डी०ए०-एन०डी०ए०” की ज़िद उठाये रखता था और फिर उसने ख़ुद को तैयार करना शुरू किया सचमुच का “कैडेट अंगद” बनने के लिए...जबकि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित होने वाली प्रवेश-परीक्षा और उसमें बैठ पाने की योग्यता में अभी तीन साल से भी ज़्यादा की दूरी थी | नियति इसी को कहते हैं क्या...डेस्टिनी ? उसके जन्म के सात साल बाद रिलीज हुई फ़िल्म जिसे उसने फ़िल्म की रिलीज के सात साल बाद देखा, वो भी चौदह इंच की टीवी के झिलमिलाते श्वेत-श्याम स्क्रीन पर और फिर उस ‘देखने’ ने पूरी पृथ्वी ही तो अपने ध्रुव पर उसके लिए उलट दिशा में घुमा कर रख दिया | हाँ, शायद ! यही तो नियति है...अपने विशालतम अवतार में ठहाके लगा कर हँसती हुई नियति ! डायरेक्टर गोविन्द निहलानी साब और प्रोड्यूसर शशि कपूर साब को तो भान तक ना होगा कि उनकी बनायी एक किसी फ़िल्म ने एक लड़के की ज़िन्दगी ही बदल कर रख दी है |

अब सोचता हूँ...इतने सालों बाद कि उस रोज़ जो उस फ़िल्म के दर्शन ना हुए होते, तब भी क्या मैं इस ऊँचे पहाड़ पर सरहद की निगहबानी में यूँ बैठा होता..यूँ ही इस दिसम्बर की कुहरे में डूबी साजिश के परखच्चे उड़ाने की जुगत कर रहा होता !!! 

कुहरे की इस मनमानी का इकलौता उपाय अब बर्फ़बारी ही है...बस | किन्तु चिल्ले कलां (कश्मीर की सर्दी का सबसे क्रूर हिस्सा जो तकरीबन चालीस दिनों का होता है...दिसम्बर के उतरार्ध से ले जनवरी के आख़िर तक) से पहले बर्फ़ कहाँ गिरने वाली और चिल्ले कलां के शुरू होने में अभी कम-से-कम दो हफ़्ते और शेष हैं | तब तक मुस्तैदी अपना चरम माँगती है समस्त प्रहरियों से | इस कमबख्त़ दिसम्बर पर कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं कभी | सुनेगी ओ डायरी मेरी ? सुन :-

ठिठुरी रातें, पतला कम्बल, दीवारों की सीलन...उफ़
और दिसम्बर जालिम उस पर फुफकारे है सन-सन ...उफ़

बूढ़े सूरज की बरछी में ज़ंग लगा है अरसे से
कुहरे की मुस्तैद जवानी जैसे सैनिक रोमन...उफ़

हाँफ रही है धूप दिनों से बादल में अटकी-फटकी
शोख़ हवा ऐ ! तू ही उसमें डाल ज़रा अब ईंधन...उफ़

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6 comments:

  1. सम्मोहित कर लिया...देश की सीमाओं पर डटे आप फौजी भाई हमेशा मेरे दिल के करीब रहते हो...काश,मेरे पास ऐसे अभेद्य कवच होते जो मैं आप सब को पहना देती! काश,कोई ऐसा मन्नत का धागा होता जिसे बाँधने से आप सबकी सलामती का आश्वासन मिल जाता...कभी एक कविता लिखी थी, समय मिलने पर पढ़िएगा -
    https://meenasharmma.blogspot.in/2016/10/blog-post.html?m=1

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  2. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"

    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में

    गुरूवार 28-12-2017 को प्रकाशनार्थ 895 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।

    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।

    सधन्यवाद।

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  3. प्रिय गौतम -- सलाम है जीवट से भरे इन योध्याओं को -- जिन पर नाज़ है हमें |मुझे बड़ा अरमान था कि मेरा बेटा देशसेवा की वर्दी पहने -- पर ऐसा हो ना सका | बिटिया जरुर इस राह पर चलने के लिए प्रतिबद्धता दिखाती है -- खूब जोश है उसमे -- मैं प्रतीक्षा में हूँ | ये चीजें पढकर आँखें नम हो जाती है -
    दुआ है वो सब सलामत रहें जिन्होंने वैभवशाली जीवन त्याग इस संघर्ष भरे जीवन का सहर्ष वरन किया है | नमन है उन्हें पल -पल - आभार आपका शब्दों के माध्यम से एक सही चित्र दिखाने के लिए |

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  4. आपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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