उम्मीद को उमीद बाँधने वाले शायर से कहा इक रोज़ उसने... सुनो
आधे काटे हुए 'म' की भरपाई किसी शेर में उदासी को उद्दासी बना कर कर दो कि उदासी का वज़्न उम्मीद
से ज़्यादा रहना चाहिए हर वक़्त, हर लम्हा ।
शायर नाराज़ है उस रोज़ से...उस से !
( तेरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को )
छू लिया जो उसने तो सनसनी उठी
जैसे
धुन गिटार की नस-नस में अभी-अभी
जैसे
डोलते कलेंडर की ऐ ! उदास तारीख़ों
रौनकें मेरे कमरे की हैं तुम से ही जैसे
पागलों सा हँस पड़ता हूँ मैं यक-ब-यक
यूँ ही
करती रहती है उसकी याद गुदगुदी जैसे
जैसे-तैसे गुज़रा दिन, रात की
न पूछो कुछ
शाम से ही आ धमकी, सुब्ह
तक रही जैसे
तुम चले गये हो तो वुसअतें सिमट
आयीं
ये बदन समन्दर था अब हुआ नदी जैसे
सुब्ह-सुब्ह को उसका ख़्वाब इस
क़दर आया
केतली से उट्ठी हो ख़ुश्बू चाय
की जैसे
राख़ है, धुआँ
है, इक स्वाद है कसैला सा
इश्क़ ये तेरा है सिगरेट अधफुकी
जैसे
धूप, चाँदनी, बारिश
और ये हवा मद्धम
करते उसकी फ़ुरकत पर लेप मरहमी
जैसे
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 17 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteडोलते कलेंडर की ऐ ! उदास तारीख़ों
ReplyDeleteरौनकें मेरे कमरे की हैं तुम से ही जैसे
वाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteधूप, चाँदनी, बारिश और ये हवा मद्धम
ReplyDeleteकरते उसकी फ़ुरकत पर लेप मरहमी जैसे...
खूबसूरत पंक्तियाँ
Kya kahu bas.. jee gaya...
ReplyDeleteJo pyala bhara tha... Use pee gaya...
Ab to masti hai.. Aapke bayaan-e-andaaz ki...
Masti me kuchh kah diya.. Aur masti me hi masti ko masti se jee gaya....!!
Bahut sundar...!!