24 March 2014

नसों में जैसे धीमे-धीमे बज रहा गिटार है...

ए-मेजर पे अटकी हुयी है ऊंगलियाँ...जाने कब से, एक सदी से ही तो | न, नहीं खिसक रही हैं...जैसे तीनों स्ट्रींग को बस उन्हीं फ्रेट से इश्क़ हो | छिलीं, कटीं, खून बहा...मगर न, वहीं ठिठकी रहेंगी | वो कौन सी धुन थी ? सुनो तो... 

ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चाँद है, सितारों पर ख़ुमार है

भरी-भरी निगाह से ये देखना तेरा हमें
नसों में जैसे धीमे-धीमे बज रहा गिटार है

मकाँ की बालकोनी की वो धड़कनें बढ़ा गई
अभी-अभी जो पोर्टिको में आयी नीली कार है

धुएं में इसके अब कहाँ वो स्वाद है तेरे बिना
चला भी आ कि दिन हुये, जला नहीं सिगार है

बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है

वो कब की सैर कर के जा चुकी शिकारे से मगर
न जाने क्यों अभी भी डल में चुप खड़ा चिनार है

जो मॉनसून अब के इस तरफ़ न आए, ग़म नहीं
तेरी हँसी ही मेरे वास्ते हसीं फुहार है

सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो ज़ार-ज़ार है

गये वो दिन कि तेरे तीरे-नीमकश में बात थी

ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है*
{त्रैमासिक "नई ग़ज़ल" के जुलाई-सितम्बर 2013 अंक में प्रकाशित} 


(*चचा ग़ालिब से क्षमा-याचना सहित ये शेर)

10 comments:

  1. वाह, जहाँ पर भी राग स्थापित हो जाये।

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  2. बड़े ही मॉर्डन शेर हैं :-)

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  3. ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
    नशे में तब से चाँद है, सितारों पर ख़ुमार है...........excellent, superb

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  4. बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
    न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
    <3
    too good !!!
    anu

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  5. सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
    कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो ज़ार-ज़ार है
    बहुत खूब !

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  6. bahut bahut hi badhiya ultimate superb bhaiya..prashant mishra

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  7. बहुत खूब!!!
    प्यार और इंतजार----कहीं भी,किसी भी मौसम में,----
    बस ठंडी बया र है---इंजार है----पूरी कायनात को.

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