ए-मेजर पे अटकी हुयी है ऊंगलियाँ...जाने कब से, एक सदी से ही तो | न, नहीं खिसक रही हैं...जैसे तीनों स्ट्रींग को बस उन्हीं फ्रेट से इश्क़ हो | छिलीं, कटीं, खून बहा...मगर न, वहीं ठिठकी रहेंगी | वो कौन सी धुन थी ? सुनो तो...
ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चाँद है, सितारों पर ख़ुमार है
नसों में जैसे धीमे-धीमे बज रहा गिटार है
मकाँ की बालकोनी की वो धड़कनें बढ़ा गई
अभी-अभी जो पोर्टिको में आयी नीली कार है
धुएं में इसके अब कहाँ वो स्वाद है तेरे
बिना
चला भी आ कि दिन हुये, जला नहीं सिगार है
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
वो कब की सैर कर के जा चुकी शिकारे से मगर
न जाने क्यों अभी भी डल में चुप खड़ा चिनार
है
जो मॉनसून अब के इस तरफ़ न आए, ग़म नहीं
तेरी हँसी ही मेरे वास्ते हसीं फुहार है
सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें
और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो ज़ार-ज़ार है
गये वो दिन कि तेरे तीरे-नीमकश में बात
थी
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है*
{त्रैमासिक "नई ग़ज़ल" के जुलाई-सितम्बर 2013 अंक में प्रकाशित}
(*चचा ग़ालिब से क्षमा-याचना सहित ये शेर)
वाह, जहाँ पर भी राग स्थापित हो जाये।
ReplyDeleteबड़े ही मॉर्डन शेर हैं :-)
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
ReplyDeleteनशे में तब से चाँद है, सितारों पर ख़ुमार है...........excellent, superb
बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
ReplyDeleteन भाये अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है
<3
too good !!!
anu
सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलायें और
ReplyDeleteकुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो ज़ार-ज़ार है
बहुत खूब !
bahut bahut hi badhiya ultimate superb bhaiya..prashant mishra
ReplyDeletebehtareen sir jee !
ReplyDeleteवाह क्या बात है .
ReplyDeleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteप्यार और इंतजार----कहीं भी,किसी भी मौसम में,----
बस ठंडी बया र है---इंजार है----पूरी कायनात को.