06 December 2013

ऊँगली छुई थी चाय का कप थामते हुये...

मेरी ऐं वें सी एक ग़ज़ल को अर्चना चावजी ने अपना मखमली स्वर देकर कुछ खास ही बना दिया था अभी कुछ दिनों पहले ही तो...तो पहले वो ग़ज़ल, फिर अर्चना जी की आवाज़ :-

करवट बदल-बदल के ही, आँखों में ही सही
कमबख़्त रात ये भी गुज़र जायेगी सही
उट्ठी हैं हिचकियाँ जो बिना बात यक-ब-यक
तो सोचता है मुझको कोई.. वाक़ई… सही
ऊँगली छुई थी चाय का कप थामते हुये
दिल तो गया ही, जान भी निकली रही-सही
तौहीन बादलों की ज़रा हो गई तो क्या
निकला तो आफ़ताब दिनों बाद ही सही
छूटी गली जो उसकी तो अफ़सोस क्या करें
रास आ रही है क़दमों को आवारगी सही
दिन-रात कितनी सीटी बजाऊँ, तुम्हीं कहो
आओ भी बालकोनी में ख़ुद …सरसरी, सही
भूल आपको गये, न किया फ़ोन हमने गर ?
‘अच्छा ये आप समझे हैं ! अच्छा यही सही’
तारें उदास बैठे हैं अम्बर की गोद में
अब आ भी जा ऐ चाँद ! कि हो तीरगी सही
आयी अभी तलक न वो, ऐ यार क्या करूँ
सिगरेट ही पिला दे ज़रा अधफुंकी सही
सब कुछ सही, इस उम्र का अंदाज़ ऐसा है
वहशत सही, जुनूँ सही, दीवानगी सही

8 comments:

  1. बहुत सुंदर.लाजबाब रचना.

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  2. क्या खूब सही कही :)

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल

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  4. खुद को यहाँ पाकर आनन्द से भर गई हूँ, मुझे बिलकुल भी ज्ञान नहीं है गाने का न ही गज़ल/ कविता की ही कोई समझ ....
    बस मन किया और गुनगुनाया .... आपने जो सम्मान दिया ब्लॉग पर जगह देकर ... आभारी हूँ .... मेरे ब्लॉग पर भी पोस्ट करना चाहूंगी ......मना नहीं करेंगे ...यही आशा है ....

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    1. सम्मान तो मेरी अदनी सी ग़ज़ल को आपने दिया है मैम ... और मेरी हिमाकत कि मैं आपके ब्लौग पर इसे पोस्ट करने की रजामंदी न दूँ ? :)

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  5. वाह.....
    अर्चना दी की खूब बुराई करती हूँ,उन्हें खिजाती हूँ खूब!!! पर इस बार नहीं....
    बहुत सुन्दर !!!!
    अनु

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  6. वहाँ सुनकर आ रहे हैं, आनन्द आ गया।

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