23 June 2010

गुमशुदा मैं और चंद लापता कविताओं का पता...

गुमशुदा हूँ कब से-खुद से, सब से...और इस गुमशुदगी में मिलता है चंद लापता कविताओं का पता। कटी-छँटी पंक्तियों में बँटी अनर्गल से अलापों के ड्राफ्ट में लापता कुछ कवितायें जैसे अर्थ देती हों इस गुमशुदगी को। पसीजी मुट्ठी में दबोच कर सहेजी गयी एक टुकड़ा दोपहर-सी जिंदगी चाहती है कोई एक कविता लिखना...

एक कविता जो चीड़-देवदार के घने जंगलों में बौरायी-सी घूमती है दिनों-रातों का भेद मिटाते हुये...एक कविता जो बारूद की फैली गंध में भी मुस्कुराती हुई उस पार दूर बहुत दूर अपने मुस्कान की खुश्बू भेजती रहती है...एक कविता जो नाशुक्रों की पूरी जमात को अब भी अपना हमसाया मानती फिरती है...एक कविता जो चिलचिलाती धूप में जाकर खड़ी हो जाती है कि सूरज की तपिश कुछ तो कम होगी एक उसके जलने मात्र से...एक कविता जो बारिश बन टपकती है कब से ऐंठे तने हुये उन पहाड़ों के थके कंधों पर...

एक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हँसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...

एक कविता जो बेतकल्लुफ़ी से धूप के जले गालों को पकड़कर हिला देती है और सहसा ही बादल उमड़-घुमड़ आते हैं खुली-सी एक छोटी बालकोनी में...एक कविता जो ठिठक कर बैठ जाती है फिर कभी न उठने के लिये असम के वर्षा-वनों से उखाड़े गये जंगली बाँसों को तराश कर बुने हुये किसी सोफे पर...एक कविता जो किचेन के स्लैब पर चुपचाप निहारती है चाय के खौलते पानी से उठते भाप को...एक कविता जो भरी प्लेट मैगी को पेप्सी में घुलते हुये देखती है...एक कविता जो तपती दोपहर की गहरी आँखों वाली पलकों पर काजल बन आ सजती है...एक कविता जो पुराने एलबम की तस्वीरों में अपना बचपन ढूंढ़ती है धपड़-धपड़...

एक कविता जो अपनी किस्मत पर इतराती है, इठलाती है और फिर जाने क्यों रोती है...


ऐसी कितनी ही कविताओं का ड्राफ्ट शायद ताउम्र ड्राफ्ट की ही शक्ल में कैद रहे अगली बार फिर से कहीं गुम हो जाने तलक :-)

50 comments:

  1. जय हिंद सर जी,
    एक लम्बी चुप्पी के बाद आपसे यही उम्मीद थी.................. बेहद उम्दा अभिव्यक्ति!
    बहुत बहुत आभार इस पोस्ट के लिए और अपनी चुप्पी तो तोड़ने के लिए !
    परिवार के साथ आपकी छुट्टियाँ खूब मौज मस्ती से भरी हो यही शुभकामनाएं है !

    ReplyDelete
  2. गौतमजी, बहुत दिन से गुमशुदा की तलाश थी आज कविता के आंगन में मिले। आपका चुप रहना खलता है। बस लिखते रहिए।

    ReplyDelete
  3. बहुत डूबकर लिखा है आपने .........

    ReplyDelete
  4. एक कविता जो बारूद की फैली गंध में भी मुस्कुराती हुई उस पार दूर बहुत दूर अपने मुस्कान की खुश्बू भेजती रहती है...
    बारूद की फैली गंध में मुस्कान की खुसबू फैलाने वाली कवितायें गम नहीं हुआ करतीं...

    ReplyDelete
  5. *खुसबू- खुशबू, गम- गुम

    ReplyDelete
  6. गौतम जी नमस्ते,

    पोस्ट पढ़ी

    आपने पोस्ट को सोच की जिन गहराईयों में डूबकर लिखी, पढ़ कर मैं भी उन गहराईयों में पहुंच गया

    एक कविता में किसी को पच्चीसों कविता पढनी हो तो कोई यह लेख पढ़ ले :)

    बहुत दिन बाद घर पहुचे हैं ये तो होना ही था, जब मैं सिहोर से लौट कर आया था तो मेरा भी कमोबेश यही हाल था

    कल और आज मैं आपको बड़ी शिद्दत से याद कर रहा था, अगर कार्यक्रम बदला ना होता तो कल और आज आप इलाहाबाद में होते| और मेरा २ साल पुराना सपना पूरा हो रहा होता

    ReplyDelete
  7. एक कविता
    जो बहा ले जाती है कितनी दूर तक..
    एक कविता
    जो अहसास कराती है लहरों पर तैरते हिचकोले का..
    एक कविता
    जो खो जाती है दिल की गहराईयों में कहीं...

    कहीं वो यही तो नहीं...

    बहुत खूब!!! बहुत दिन बाद आये और बहा ले गये.

    ReplyDelete
  8. कविता की खोज में कविता! ...कविता लिखने की तलब को परत दर परत खोलती, उधेड़ती और बुनती सी...

    ReplyDelete
  9. तुड़े मुड़े कागजों में , चंद लफ़्ज़ों में , एहसासों में ...
    लापता हुई कविताओं का पटा मिला इन अल्फाजों में ...

    ReplyDelete
  10. वापसी का स्वागत है!
    शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  11. कविता की तलाश भी कविता से कम नहीं..मैं भी सोच रहा था कि आखिर आप कहाँ हैं..!

    ReplyDelete
  12. कविता के इतने रूप!!!!!!!!!!!!!
    ये तो कभी सोचा ही नहीं था,
    कमाल की भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    वाह!बहुत ख़ूब!

    ReplyDelete
  13. अनर्गल से अलापों के ड्राफ्ट में लापता कुछ कविताओं के मध्य
    एक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हंसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...

    गौतम जी
    दुआ है ,
    मासूम की हंसी को नई खनक और कविता को उसकी धुन मिलने की अवधि सुदीर्घ हो इस बार …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  14. मुझे बहुत अच्छा लगा आपको देख कर..... कई बार आपका फ़ोन भी ट्राई किया..... लेकिन नौट रीचेबल जा रहा था.... फिर शिवम् भाई से भी कहा की अगर कोई खोज खबर मिलती है.... तो ज़रूर बताना.... फ़िक्र भी लग गयी थी आपकी.....कल ही शिवम् भाई ने खबर दी... की आप ठीक -ठाक हैं.... और.... एक माइल्ड सा ब्रेक लिया है.... मैं एक फौजी का मन समझ सकता हूँ.... मैंने एक पोस्ट भी लिख कर रखी है.... जिसमें आपको याद किया था.... उसे पोस्ट नहीं कर पाया क्यूंकि थोड़ी सी एडिटिंग रह गयी थी..... और फिर एडिट करने का टाइम नहीं मिल पाया .... आजकल ब्लॉग्गिंग करने का टाइम नहीं मिल पाता है.... अगर हो सके तो कॉल करियेगा..... आपसे अटैचमेंट जो है उससे बहुत आपको अपने करीब पाता हूँ.... बहुत ख़ुशी हुई आपको .... रिलैक्स देख कर....

    --
    www.lekhnee.blogspot.com


    Regards...


    Mahfooz..

    ReplyDelete
  15. Bahut dinon baad aapne yah gumshuda psot likhi...aur zarre,zarre me kavita bhar dee...!
    "Bikhare Sitare" to ab aakhari kisht pe hai..kabhi 'Simte Lamhen" pe nazar daalen to khushi hogi.

    ReplyDelete
  16. एक कविता जो मौत के मिथ से भी उसी तरह जुडी है ...जिस तरह जीवन के यथार्थ से.....एक कविता जो कल्पनाओं में डूबना उतरना चाहती है ....पर जिम्मेवारियो की उंगुली थामे .....एक कविता जिसके सीने पर जिरह बख्तर है......पर जो किस बच्चे की खिलखिलाहट से मुस्करा उठती है.....एक कविता जो दास्तानों में छिपी है ..पर किरदारों से गुफ्तगू करना नहीं चाहती ...एक कविता जो आवारा भी है साधू भी.......एक कविता जो बागी भी है ओर समझौता परस्त भी ......एक कविता जो कई सिरों के दरमिया बैठी है....

    इंतज़ार में हूँ .......के कब कोई सूरत इख्तियार करे ......फिर गुम होने तलक......

    ReplyDelete
  17. एक कविता जो चिलचिलाती धूप में जाकर खड़ी हो जाती है कि सूरज की तपिश कुछ तो कम होगी एक उसके जलने मात्र से...एक कविता जो बारिश बन टपकती है कब से ऐंठे तने हुये उन पहाड़ों के थके कंधों पर...
    बेहतरीन ख्यालात्………………कविता का पूरा दर्द उतार दिया……………कविता का सफ़र किन किन रह्गुजारों से गुजरता है बडी शिद्दत से बयाँ कर दिया।

    ReplyDelete
  18. कविता मेरे सुख का उद्गार, दुख की अभिव्यक्ति व जीवन का अनिवार्य अंग है । साथ बैठता हूँ तो उतराने लगता हूँ विचारों के उन्मुक्त समुन्दरों में, जहाँ न पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण, न सूरज की तपन । हर बार नया अनुभव है मेरी कविता ।

    नया ब्लॉग प्रारम्भ किया है, आप भी आयें । http://praveenpandeypp.blogspot.com/2010/06/blog-post_23.html

    ReplyDelete
  19. is shubhkamna ke sath ki sare draft kavita me tabdiil hon.

    ReplyDelete
  20. ऐसी कितनी ही कविताओं का ड्राफ्ट शायद ताउम्र ड्राफ्ट की ही शक्ल में कैद रहे अगली बार फिर से कहीं गुम हो जाने तलक ...abhi to sab nazar aa raha

    ReplyDelete
  21. बहुत दीनो से आप भी गुमशुदा की तरह से थे ... आज उस कवि से मुलाकात हो गयी ... आपकी संवेदनाओं भारी पोस्ट भी तो कविता का ड्राफ्ट ही है ... जीवन की कविता का ... जो चीड़-देवदार के घने जंगलों में बौरायी-सी घूमती है ....

    ReplyDelete
  22. बहुत ही खूबसूरत शब्दों और बिम्बो से बुनी रचना है ..कुछ पंक्तियों का उल्लेख करना चाहती थी पर चुन ही नहीं पाई सब की सब कितनी सुन्दर हैं.

    ReplyDelete
  23. नाशुक्रों की पूरी जमात... को सौ नंबर..

    ऐसी कितनी ही कविताओ के ड्राफ्ट भरे पड़े है.. सोचता हु मैं भी कभी निकालू बाहर

    ReplyDelete
  24. यूं तो जानता हूं कि हर वर्दी के नीचे जो दिल छुपा होता उसमें सबके पास कई कहानी , कई फ़साने , कितनी ही कविताएं गज़लें सब छुपी होती हैं , और समय समय पर फ़ौजी इसकी तस्दीक भी करते रहते हैं । शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  25. कमाल है! कल ही आपको याद कर रही थी, बल्कि दो- तीन मित्रों से आपकी चर्चा भी की, इस उम्मीद में कि कुछ जानकारी मिल सके, और आज आपकी ये महकती हुई पोस्ट आ गई. आभार.

    ReplyDelete
  26. एक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हँसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...

    अब हाल चाल पूछने की हिम्मत नहीं है मुझे.

    ReplyDelete
  27. चलो इस गुमशुदा कविता की तलाश के बहाने ही सही आपका अता पता तो मिला
    वाह आप तो आते ही छा गए

    ReplyDelete
  28. पसीजी मुट्ठी में दबोच कर सहेजी गयी एक टुकड़ा दोपहर-सी जिंदगी चाहती है कोई एक कविता लिखना...
    कितना गहरे डूब कर लिखा है
    सही मे आदमी की व्यस्तता और विवशता मे कितनी कवितायें दम तोड देती हैं।-- जन्म लेने से पहले ही मर जाती हैं। बहुत अच्छी लगी कविता बहुत बहुत आशीर्वाद।

    ReplyDelete
  29. क्या खूब टेलीकास्टेड कविता लिखी भैया....

    ReplyDelete
  30. गौतम भाई नमस्कार
    सब ठीक तो है?
    आज की पोस्ट पढ़कर हरजीत जी का एक शेर याद आ रहा है-
    इतने लागों से कैसे मिल पाते.
    हम जो शायरी नहीं करते.
    नया ब्लाग बना लिया है

    ReplyDelete
  31. कविता के विभिन्न रूपों की बानिगी परोसने के लिए सादर साभार धन्यवाद्

    ReplyDelete
  32. लाख भाव भरी बातें कर लो..पर सबसे पहले तो झाड ही पड़ेगी...ऐसे कोई गुम होता है भला.....एकदम से चिंतित कर दिया...

    अरे कुछ नहीं तो बीच बीच में अपना या उन चीड देवदारों का फोटो ही लटका दिया करो पोस्ट रूप में...यह जान संतोस कर लेंगे की व्यस्त हो...

    खैर,अभी जो लिखा है तुमने ,उसे पढ़ ध्यान में एक ही चीज आ रहा है..."तीस्ता नदी"...
    और क्या कहूँ...
    लाजवाब सुपर्ब....

    ReplyDelete
  33. दिल अगर फूल सा नहीं होता......

    कभी इस पर हम सब ने तरही मुशायरे पर हिस्सा लिया था...
    काश, इसी का एक दूसरा शे'र इस में कहना होता तो...शायद कोई कुछ नहीं कह पाता...


    कुछ तो मजबूरियाँ रहीं होंगी..
    यूं कोई बेवफा नहीं होता...

    काफी समय से खुद के ब्लोगर होने पर कब से शक था हमें...
    और अब...!!

    ReplyDelete
  34. बड़ा बेईमान है मन .. कविता बनकर इठलाता है .. फुसफुसाकर कानों में कुछ पल कुछ लम्हे , जाने कहाँ गुम हो जाता है .. कभी ख्याल आता है मेरा मन ही कविता है और कभी कविता ही मेरा मन बन जाती है .. बस यही मेरी थाती है ..

    ReplyDelete
  35. पूरी रस्म अदायगी... इस लेख के जरिये कविताओं केलिए .... ये लाइन पिहू के लिए ...एक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हँसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...
    कल मिलते हैं ...

    शायद कुछ और कवितायेँ बनें ...
    अर्श

    ReplyDelete
  36. हां कवि‍ ही आने वाली कवि‍ता के अंदाजों से वाकि‍फ होता है, जोर जर्बदस्‍ती करने वाले के हाथ तो क्‍या आना है ....

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, आपने तो गद्य और पद्य का भेदभाव मिटा दिया !

    ReplyDelete
  38. एक कविता जो जो गौतम रजर्षि के ब्लॉग पर गद्य की तरह चस्पाँ है..... कौन कहता है यहाँ लय नहीं ?


    सुन्दर पोस्ट.

    ReplyDelete
  39. Tasleem.
    Kaafi dinon baad yahan aana hua. Kaafi dinon baad khud ke blog per aana hua, to yahan aana laazmi tha.
    :-)
    Kuchh dinon ki doori Kavya se. Masroofiyat.Na ke 'gumshuda'. :)
    God bless
    RC

    ReplyDelete
  40. अरसे बाद बरामद हो ही गए गौतम जी, एक अदद पोस्ट के साथ.....! पोस्ट बहुत विस्फोटक है... फिर भी उनकी पुरानी पोस्टों को देखते हुए उन्हें इस शर्त के साथ बाइज्ज़त रिहा किया जाता है कि वे हर सप्ताह अपनी हाजिरी "पाल ले एक रोग नादाँ" नामक ब्लॉग पर एक पोस्ट के मार्फ़त देते रहेंगे.
    यार ......इतनी गुमशुदगी ठीक नहीं.....!
    फिलहाल छुट्टी मुबारक हो सरकार.......!

    ReplyDelete
  41. पद्यनुमा गद्य (?)
    ... सिर्फ कविता ही नहीं कई 'विचार' भी तो ड्राफ्ट में ही रह जाते हैं !

    ReplyDelete
  42. पूरे जीवन का ड्राफ्ट हैं कविता। कविता....या यू कहें जीवन ही कविता है..बहना बहते जाना बह कर कहीं मिल जाना..अनंत............................।

    ReplyDelete
  43. अब कुमार विश्वास ने भी तो कह दिया कि हम कविता कहते हैं मगर आप जी रहें हैं और क्या कह दे कोई....

    भावुक कर गई ये सारी की सारी कविताएं

    ReplyDelete
  44. bahut dino bad apki kvita ki mhk bhut achhi lgi .

    ReplyDelete
  45. ..ताउम्र अपने एग-शेल को तोड़ बाहर की दुनिया देख पाने को कसमसाते अनगिनत कविताओं के ड्राफ़्ट..
    और ..हमें गुनाह करने को भी जिंदगी कम है..
    जिंदगी इसी आइरॉनी की तरह कट जाती है और कविता जिंदगी की इसी कसी रस्सी पर चलते कलाकार के हाथ के बाँस की तरह होती है...जो रस्सी पर उसको बैलेंस बनाये रखने मे मदद देती है..न जाने कितनी कविताएं, कितनी दास्तानें जिंदगी के घने बीहड़ों मे बेखयाली मे गुम हो जाती हैं..और तमाम उम्र उन दास्तानों के बहाने खुद को तलाशने मे कटती रहती है...
    साहिर बेखयाली मे याद से आते हैं..
    वही शफ़क है वही जौ है मैं नही तो क्या
    हयात गर्मे-तगो-दौ है मैं नही हो क्या

    उम्मीद करता हूँ कि दोपहर की गहरी आँखों का काजल और पहाड़ों के थके कंधे ही उन कविताओं के ड्राफ़्ट नही ढोते रहेंगे..और यकीं है कि मसरूफ़ियत की गहरी दराजों मे कैद अधूरी कविताओं के बेचैन ड्राफ़्टों को हमारी मुंतजिर आँखों की धूप जल्द नसीब होगी..

    ReplyDelete

ईमानदार और बेबाक टिप्पणी दें...शुक्रिया !