गुमशुदा हूँ कब से-खुद से, सब से...और इस गुमशुदगी में मिलता है चंद लापता कविताओं का पता। कटी-छँटी पंक्तियों में बँटी अनर्गल से अलापों के ड्राफ्ट में लापता कुछ कवितायें जैसे अर्थ देती हों इस गुमशुदगी को। पसीजी मुट्ठी में दबोच कर सहेजी गयी एक टुकड़ा दोपहर-सी जिंदगी चाहती है कोई एक कविता लिखना...
एक कविता जो चीड़-देवदार के घने जंगलों में बौरायी-सी घूमती है दिनों-रातों का भेद मिटाते हुये...एक कविता जो बारूद की फैली गंध में भी मुस्कुराती हुई उस पार दूर बहुत दूर अपने मुस्कान की खुश्बू भेजती रहती है...एक कविता जो नाशुक्रों की पूरी जमात को अब भी अपना हमसाया मानती फिरती है...एक कविता जो चिलचिलाती धूप में जाकर खड़ी हो जाती है कि सूरज की तपिश कुछ तो कम होगी एक उसके जलने मात्र से...एक कविता जो बारिश बन टपकती है कब से ऐंठे तने हुये उन पहाड़ों के थके कंधों पर...
एक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हँसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...
एक कविता जो बेतकल्लुफ़ी से धूप के जले गालों को पकड़कर हिला देती है और सहसा ही बादल उमड़-घुमड़ आते हैं खुली-सी एक छोटी बालकोनी में...एक कविता जो ठिठक कर बैठ जाती है फिर कभी न उठने के लिये असम के वर्षा-वनों से उखाड़े गये जंगली बाँसों को तराश कर बुने हुये किसी सोफे पर...एक कविता जो किचेन के स्लैब पर चुपचाप निहारती है चाय के खौलते पानी से उठते भाप को...एक कविता जो भरी प्लेट मैगी को पेप्सी में घुलते हुये देखती है...एक कविता जो तपती दोपहर की गहरी आँखों वाली पलकों पर काजल बन आ सजती है...एक कविता जो पुराने एलबम की तस्वीरों में अपना बचपन ढूंढ़ती है धपड़-धपड़...
एक कविता जो अपनी किस्मत पर इतराती है, इठलाती है और फिर जाने क्यों रोती है...
ऐसी कितनी ही कविताओं का ड्राफ्ट शायद ताउम्र ड्राफ्ट की ही शक्ल में कैद रहे अगली बार फिर से कहीं गुम हो जाने तलक :-)
जय हिंद सर जी,
ReplyDeleteएक लम्बी चुप्पी के बाद आपसे यही उम्मीद थी.................. बेहद उम्दा अभिव्यक्ति!
बहुत बहुत आभार इस पोस्ट के लिए और अपनी चुप्पी तो तोड़ने के लिए !
परिवार के साथ आपकी छुट्टियाँ खूब मौज मस्ती से भरी हो यही शुभकामनाएं है !
गौतमजी, बहुत दिन से गुमशुदा की तलाश थी आज कविता के आंगन में मिले। आपका चुप रहना खलता है। बस लिखते रहिए।
ReplyDeleteबहुत डूबकर लिखा है आपने .........
ReplyDeleteएक कविता जो बारूद की फैली गंध में भी मुस्कुराती हुई उस पार दूर बहुत दूर अपने मुस्कान की खुश्बू भेजती रहती है...
ReplyDeleteबारूद की फैली गंध में मुस्कान की खुसबू फैलाने वाली कवितायें गम नहीं हुआ करतीं...
*खुसबू- खुशबू, गम- गुम
ReplyDeleteगौतम जी नमस्ते,
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ी
आपने पोस्ट को सोच की जिन गहराईयों में डूबकर लिखी, पढ़ कर मैं भी उन गहराईयों में पहुंच गया
एक कविता में किसी को पच्चीसों कविता पढनी हो तो कोई यह लेख पढ़ ले :)
बहुत दिन बाद घर पहुचे हैं ये तो होना ही था, जब मैं सिहोर से लौट कर आया था तो मेरा भी कमोबेश यही हाल था
कल और आज मैं आपको बड़ी शिद्दत से याद कर रहा था, अगर कार्यक्रम बदला ना होता तो कल और आज आप इलाहाबाद में होते| और मेरा २ साल पुराना सपना पूरा हो रहा होता
एक कविता
ReplyDeleteजो बहा ले जाती है कितनी दूर तक..
एक कविता
जो अहसास कराती है लहरों पर तैरते हिचकोले का..
एक कविता
जो खो जाती है दिल की गहराईयों में कहीं...
कहीं वो यही तो नहीं...
बहुत खूब!!! बहुत दिन बाद आये और बहा ले गये.
कविता की खोज में कविता! ...कविता लिखने की तलब को परत दर परत खोलती, उधेड़ती और बुनती सी...
ReplyDeleteतुड़े मुड़े कागजों में , चंद लफ़्ज़ों में , एहसासों में ...
ReplyDeleteलापता हुई कविताओं का पटा मिला इन अल्फाजों में ...
वापसी का स्वागत है!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
कविता की तलाश भी कविता से कम नहीं..मैं भी सोच रहा था कि आखिर आप कहाँ हैं..!
ReplyDeleteकविता के इतने रूप!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteये तो कभी सोचा ही नहीं था,
कमाल की भावपूर्ण अभिव्यक्ति
वाह!बहुत ख़ूब!
अनर्गल से अलापों के ड्राफ्ट में लापता कुछ कविताओं के मध्य
ReplyDeleteएक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हंसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...
गौतम जी
दुआ है ,
मासूम की हंसी को नई खनक और कविता को उसकी धुन मिलने की अवधि सुदीर्घ हो इस बार …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
मुझे बहुत अच्छा लगा आपको देख कर..... कई बार आपका फ़ोन भी ट्राई किया..... लेकिन नौट रीचेबल जा रहा था.... फिर शिवम् भाई से भी कहा की अगर कोई खोज खबर मिलती है.... तो ज़रूर बताना.... फ़िक्र भी लग गयी थी आपकी.....कल ही शिवम् भाई ने खबर दी... की आप ठीक -ठाक हैं.... और.... एक माइल्ड सा ब्रेक लिया है.... मैं एक फौजी का मन समझ सकता हूँ.... मैंने एक पोस्ट भी लिख कर रखी है.... जिसमें आपको याद किया था.... उसे पोस्ट नहीं कर पाया क्यूंकि थोड़ी सी एडिटिंग रह गयी थी..... और फिर एडिट करने का टाइम नहीं मिल पाया .... आजकल ब्लॉग्गिंग करने का टाइम नहीं मिल पाता है.... अगर हो सके तो कॉल करियेगा..... आपसे अटैचमेंट जो है उससे बहुत आपको अपने करीब पाता हूँ.... बहुत ख़ुशी हुई आपको .... रिलैक्स देख कर....
ReplyDelete--
www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
Bahut dinon baad aapne yah gumshuda psot likhi...aur zarre,zarre me kavita bhar dee...!
ReplyDelete"Bikhare Sitare" to ab aakhari kisht pe hai..kabhi 'Simte Lamhen" pe nazar daalen to khushi hogi.
एक कविता जो मौत के मिथ से भी उसी तरह जुडी है ...जिस तरह जीवन के यथार्थ से.....एक कविता जो कल्पनाओं में डूबना उतरना चाहती है ....पर जिम्मेवारियो की उंगुली थामे .....एक कविता जिसके सीने पर जिरह बख्तर है......पर जो किस बच्चे की खिलखिलाहट से मुस्करा उठती है.....एक कविता जो दास्तानों में छिपी है ..पर किरदारों से गुफ्तगू करना नहीं चाहती ...एक कविता जो आवारा भी है साधू भी.......एक कविता जो बागी भी है ओर समझौता परस्त भी ......एक कविता जो कई सिरों के दरमिया बैठी है....
ReplyDeleteइंतज़ार में हूँ .......के कब कोई सूरत इख्तियार करे ......फिर गुम होने तलक......
एक कविता जो चिलचिलाती धूप में जाकर खड़ी हो जाती है कि सूरज की तपिश कुछ तो कम होगी एक उसके जलने मात्र से...एक कविता जो बारिश बन टपकती है कब से ऐंठे तने हुये उन पहाड़ों के थके कंधों पर...
ReplyDeleteबेहतरीन ख्यालात्………………कविता का पूरा दर्द उतार दिया……………कविता का सफ़र किन किन रह्गुजारों से गुजरता है बडी शिद्दत से बयाँ कर दिया।
कविता मेरे सुख का उद्गार, दुख की अभिव्यक्ति व जीवन का अनिवार्य अंग है । साथ बैठता हूँ तो उतराने लगता हूँ विचारों के उन्मुक्त समुन्दरों में, जहाँ न पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण, न सूरज की तपन । हर बार नया अनुभव है मेरी कविता ।
ReplyDeleteनया ब्लॉग प्रारम्भ किया है, आप भी आयें । http://praveenpandeypp.blogspot.com/2010/06/blog-post_23.html
is shubhkamna ke sath ki sare draft kavita me tabdiil hon.
ReplyDeleteऐसी कितनी ही कविताओं का ड्राफ्ट शायद ताउम्र ड्राफ्ट की ही शक्ल में कैद रहे अगली बार फिर से कहीं गुम हो जाने तलक ...abhi to sab nazar aa raha
ReplyDeleteबहुत दीनो से आप भी गुमशुदा की तरह से थे ... आज उस कवि से मुलाकात हो गयी ... आपकी संवेदनाओं भारी पोस्ट भी तो कविता का ड्राफ्ट ही है ... जीवन की कविता का ... जो चीड़-देवदार के घने जंगलों में बौरायी-सी घूमती है ....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत शब्दों और बिम्बो से बुनी रचना है ..कुछ पंक्तियों का उल्लेख करना चाहती थी पर चुन ही नहीं पाई सब की सब कितनी सुन्दर हैं.
ReplyDeleteनाशुक्रों की पूरी जमात... को सौ नंबर..
ReplyDeleteऐसी कितनी ही कविताओ के ड्राफ्ट भरे पड़े है.. सोचता हु मैं भी कभी निकालू बाहर
बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteयूं तो जानता हूं कि हर वर्दी के नीचे जो दिल छुपा होता उसमें सबके पास कई कहानी , कई फ़साने , कितनी ही कविताएं गज़लें सब छुपी होती हैं , और समय समय पर फ़ौजी इसकी तस्दीक भी करते रहते हैं । शुभकामनाएं
ReplyDeleteकमाल है! कल ही आपको याद कर रही थी, बल्कि दो- तीन मित्रों से आपकी चर्चा भी की, इस उम्मीद में कि कुछ जानकारी मिल सके, और आज आपकी ये महकती हुई पोस्ट आ गई. आभार.
ReplyDeleteएक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हँसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...
ReplyDeleteअब हाल चाल पूछने की हिम्मत नहीं है मुझे.
चलो इस गुमशुदा कविता की तलाश के बहाने ही सही आपका अता पता तो मिला
ReplyDeleteवाह आप तो आते ही छा गए
चलिए कुछ का पता तो चला, आशा है बाकी का भी जल्दी ही चल जाएगा।
ReplyDelete--------
आखिर क्यूँ हैं डा0 मिश्र मेरे ब्लॉग गुरू?
बड़े-बड़े टापते रहे, नन्ही लेखिका ने बाजी मारी।
पसीजी मुट्ठी में दबोच कर सहेजी गयी एक टुकड़ा दोपहर-सी जिंदगी चाहती है कोई एक कविता लिखना...
ReplyDeleteकितना गहरे डूब कर लिखा है
सही मे आदमी की व्यस्तता और विवशता मे कितनी कवितायें दम तोड देती हैं।-- जन्म लेने से पहले ही मर जाती हैं। बहुत अच्छी लगी कविता बहुत बहुत आशीर्वाद।
क्या खूब टेलीकास्टेड कविता लिखी भैया....
ReplyDeleteगौतम भाई नमस्कार
ReplyDeleteसब ठीक तो है?
आज की पोस्ट पढ़कर हरजीत जी का एक शेर याद आ रहा है-
इतने लागों से कैसे मिल पाते.
हम जो शायरी नहीं करते.
नया ब्लाग बना लिया है
कविता के विभिन्न रूपों की बानिगी परोसने के लिए सादर साभार धन्यवाद्
ReplyDeleteलाजवाब ...
ReplyDeleteलाख भाव भरी बातें कर लो..पर सबसे पहले तो झाड ही पड़ेगी...ऐसे कोई गुम होता है भला.....एकदम से चिंतित कर दिया...
ReplyDeleteअरे कुछ नहीं तो बीच बीच में अपना या उन चीड देवदारों का फोटो ही लटका दिया करो पोस्ट रूप में...यह जान संतोस कर लेंगे की व्यस्त हो...
खैर,अभी जो लिखा है तुमने ,उसे पढ़ ध्यान में एक ही चीज आ रहा है..."तीस्ता नदी"...
और क्या कहूँ...
लाजवाब सुपर्ब....
:(
ReplyDeleteदिल अगर फूल सा नहीं होता......
ReplyDeleteकभी इस पर हम सब ने तरही मुशायरे पर हिस्सा लिया था...
काश, इसी का एक दूसरा शे'र इस में कहना होता तो...शायद कोई कुछ नहीं कह पाता...
कुछ तो मजबूरियाँ रहीं होंगी..
यूं कोई बेवफा नहीं होता...
काफी समय से खुद के ब्लोगर होने पर कब से शक था हमें...
और अब...!!
बड़ा बेईमान है मन .. कविता बनकर इठलाता है .. फुसफुसाकर कानों में कुछ पल कुछ लम्हे , जाने कहाँ गुम हो जाता है .. कभी ख्याल आता है मेरा मन ही कविता है और कभी कविता ही मेरा मन बन जाती है .. बस यही मेरी थाती है ..
ReplyDeleteपूरी रस्म अदायगी... इस लेख के जरिये कविताओं केलिए .... ये लाइन पिहू के लिए ...एक कविता जो छुट्टी लेकर घर आती है तो किसी मासूम की हँसी को एक नयी खनक मिलती है और कविता को उसकी धुन...
ReplyDeleteकल मिलते हैं ...
शायद कुछ और कवितायेँ बनें ...
अर्श
हां कवि ही आने वाली कविता के अंदाजों से वाकिफ होता है, जोर जर्बदस्ती करने वाले के हाथ तो क्या आना है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, आपने तो गद्य और पद्य का भेदभाव मिटा दिया !
ReplyDeleteएक कविता जो जो गौतम रजर्षि के ब्लॉग पर गद्य की तरह चस्पाँ है..... कौन कहता है यहाँ लय नहीं ?
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट.
Tasleem.
ReplyDeleteKaafi dinon baad yahan aana hua. Kaafi dinon baad khud ke blog per aana hua, to yahan aana laazmi tha.
:-)
Kuchh dinon ki doori Kavya se. Masroofiyat.Na ke 'gumshuda'. :)
God bless
RC
अरसे बाद बरामद हो ही गए गौतम जी, एक अदद पोस्ट के साथ.....! पोस्ट बहुत विस्फोटक है... फिर भी उनकी पुरानी पोस्टों को देखते हुए उन्हें इस शर्त के साथ बाइज्ज़त रिहा किया जाता है कि वे हर सप्ताह अपनी हाजिरी "पाल ले एक रोग नादाँ" नामक ब्लॉग पर एक पोस्ट के मार्फ़त देते रहेंगे.
ReplyDeleteयार ......इतनी गुमशुदगी ठीक नहीं.....!
फिलहाल छुट्टी मुबारक हो सरकार.......!
पद्यनुमा गद्य (?)
ReplyDelete... सिर्फ कविता ही नहीं कई 'विचार' भी तो ड्राफ्ट में ही रह जाते हैं !
पूरे जीवन का ड्राफ्ट हैं कविता। कविता....या यू कहें जीवन ही कविता है..बहना बहते जाना बह कर कहीं मिल जाना..अनंत............................।
ReplyDeleteअब कुमार विश्वास ने भी तो कह दिया कि हम कविता कहते हैं मगर आप जी रहें हैं और क्या कह दे कोई....
ReplyDeleteभावुक कर गई ये सारी की सारी कविताएं
bahut dino bad apki kvita ki mhk bhut achhi lgi .
ReplyDeletethis is nice lekh.
ReplyDelete..ताउम्र अपने एग-शेल को तोड़ बाहर की दुनिया देख पाने को कसमसाते अनगिनत कविताओं के ड्राफ़्ट..
ReplyDeleteऔर ..हमें गुनाह करने को भी जिंदगी कम है..
जिंदगी इसी आइरॉनी की तरह कट जाती है और कविता जिंदगी की इसी कसी रस्सी पर चलते कलाकार के हाथ के बाँस की तरह होती है...जो रस्सी पर उसको बैलेंस बनाये रखने मे मदद देती है..न जाने कितनी कविताएं, कितनी दास्तानें जिंदगी के घने बीहड़ों मे बेखयाली मे गुम हो जाती हैं..और तमाम उम्र उन दास्तानों के बहाने खुद को तलाशने मे कटती रहती है...
साहिर बेखयाली मे याद से आते हैं..
वही शफ़क है वही जौ है मैं नही तो क्या
हयात गर्मे-तगो-दौ है मैं नही हो क्या
उम्मीद करता हूँ कि दोपहर की गहरी आँखों का काजल और पहाड़ों के थके कंधे ही उन कविताओं के ड्राफ़्ट नही ढोते रहेंगे..और यकीं है कि मसरूफ़ियत की गहरी दराजों मे कैद अधूरी कविताओं के बेचैन ड्राफ़्टों को हमारी मुंतजिर आँखों की धूप जल्द नसीब होगी..