पिछले दो हफ़्ते मिले-जुले रंग वाले रहे। कुछ बड़ी सफ़लताओं वाले हर्षोल्लास के रंग तो कुछ शहादत के उदास रंग...जहाँ ढ़ेर सारे सरफिरों को दोज़ख तक का छोटा रस्ता इन दो हफ़्तों ने दिखाया, वहीं दूसरी तरफ इन्हीं दो हफ़्तों ने कुछ साथियों की शहादत से "हीरो" शब्द को नया आयाम दिया। ऐसा ही एक हीरो था अपना यंगस्टर- राजबर...योगेन्द्र राजबर...कैप्टेन योगेन्द्र राजबर। उम्र के छब्बीसवें पायदान पे खड़ा अपना ये यंगस्टर चार मई की उस काली रात में हीरोइज्म का नया अध्याय लिख कर पीछे छोड़ गया है कई उदास मन, ढ़ेर सारी यादें और चंद तस्वीरें...
...अभी इससे ज्यादा और कुछ न लिखा जायेगा यहाँ। एक कविता सुनवाता हूँ आपसब को जिसे लिखा है श्रीप्रकाश शुक्ल जी ने। शुक्ल जी रिटायर्ड एयर-फोर्स आफिसर हैं और फिलहाल लंदन में रह रहे हैं। सैनिक के मनोभावों को बड़ी खूबसूरती से उकेरते शब्दों में गुंथी ये कविता निश्चित रूप से अनगिनत पाठकों तक पहुँचने का हक माँगती है:-
सैनिक की मनोव्यथा
सोचा, गीत लिखूं इक मधुरिम,भरे सरसता, कोमल मन की
चातक की प्यास, आस बाला की, गुंजन हो, नूपुर ध्वनि की
घूंघट का पट, सूना पनघट, नटखट चितवन, प्यास पथिक की
कुंतल लट की झटक लटपटी,नाविक गीत, कूक कोयल की
साँसों की सिसकन, सजल नयन,उलझन,तड़पन विछड़ी विरहिन की
यौवन की पीड़ा, आस मिलन की,आशाएं अनगिन दुल्हन की
पर ये मंजुल भाव रुपहले,अंकुरित हुये थे जो यौवन में
बिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में
जीवन के व्यवधान अनेकों,घ्रणा,क्रोध,प्रतिशोध बो गए
कारुण्य, कल्पना, कृति, संवेदन,अनजाने ही व्यर्थ खो गये
आज तूलि, आतुर, अधीर,पर चित्र बनें धूमिल मन में
शब्द नहीं बन पाती संज्ञा,सोये पड़े भाव पलकन में
...अभी इससे ज्यादा और कुछ न लिखा जायेगा यहाँ। एक कविता सुनवाता हूँ आपसब को जिसे लिखा है श्रीप्रकाश शुक्ल जी ने। शुक्ल जी रिटायर्ड एयर-फोर्स आफिसर हैं और फिलहाल लंदन में रह रहे हैं। सैनिक के मनोभावों को बड़ी खूबसूरती से उकेरते शब्दों में गुंथी ये कविता निश्चित रूप से अनगिनत पाठकों तक पहुँचने का हक माँगती है:-
सैनिक की मनोव्यथा
सोचा, गीत लिखूं इक मधुरिम,भरे सरसता, कोमल मन की
चातक की प्यास, आस बाला की, गुंजन हो, नूपुर ध्वनि की
घूंघट का पट, सूना पनघट, नटखट चितवन, प्यास पथिक की
कुंतल लट की झटक लटपटी,नाविक गीत, कूक कोयल की
साँसों की सिसकन, सजल नयन,उलझन,तड़पन विछड़ी विरहिन की
यौवन की पीड़ा, आस मिलन की,आशाएं अनगिन दुल्हन की
पर ये मंजुल भाव रुपहले,अंकुरित हुये थे जो यौवन में
बिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में
जीवन के व्यवधान अनेकों,घ्रणा,क्रोध,प्रतिशोध बो गए
कारुण्य, कल्पना, कृति, संवेदन,अनजाने ही व्यर्थ खो गये
आज तूलि, आतुर, अधीर,पर चित्र बनें धूमिल मन में
शब्द नहीं बन पाती संज्ञा,सोये पड़े भाव पलकन में
a big salute to you Yogendra...rest in peace, Boy !!!
umr 26 :(..kya dekha hoga ab tak inhone jevan me ....
ReplyDeleteशहीद राजबर और सिंह को नमन ! आपकी रचना बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी है ...
ReplyDelete"देते हैं जो देश की ख़ातिर हंस - हंस कर क़ुर्बानियां !
ReplyDeleteउन वीर सपूतों जांबाज़ों को लाखों लाख सलामियां !!"
कैप्टेन योगेन्द्र राजबर की शहादत को प्रणाम है !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
योगेन्द्र के बलिदान को नमन ।
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी है ।
मेरी भी श्रद्धांजलि…
ReplyDeleteपर ये मंजुल भाव रुपहले,अंकुरित हुये थे जो यौवन में
ReplyDeleteबिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में
जीवन के व्यवधान अनेकों,घ्रणा,क्रोध,प्रतिशोध बो गए
कारुण्य, कल्पना, कृति, संवेदन,अनजाने ही व्यर्थ खो गये
बहुत सुन्दर लिखा कवि ने, एक सच्चाई !
इस अल्पायु में वीर कैप्टेन योगेन्द्र राजबर के लिए इसी कविता की एक पंक्ति
ReplyDelete'बिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में'
-कितने सपने, कितनी आशाएं संजोई होंगी इस नौजवान ने और उसके परिवार वालों ने भविष्य के लिए.
--मेरा नमन इस वीरता और जांबाजी के लिए योगेन्द्र और विनम्र श्रद्धांजलि ,आपका बलिदान हमेशा याद किया जायेगा.
-श्री प्रकाश शुक्ल जी की कविता में एक सैनिक के मनोभावों की अभिव्यक्ति इन पंक्तियों में तो बेहद बेहद सशक्त हो गयी है-
'जीवन के व्यवधान अनेकों,घ्रणा,क्रोध,प्रतिशोध बो गए
कारुण्य, कल्पना, कृति, संवेदन,अनजाने ही व्यर्थ खो गये
आज तूलि, आतुर, अधीर,पर चित्र बनें धूमिल मन में
,शब्द नहीं बन पाती संज्ञा,सोये पड़े भाव पलकन में'
-एक कर्तव्यनिष्ठ ,समर्पित सैनिक का मन चित्रित कर दिया है.
बिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में
ReplyDeleteजीवन के व्यवधान अनेकों,घ्रणा,क्रोध,प्रतिशोध बो गए
कारुण्य, कल्पना, कृति, संवेदन,अनजाने ही व्यर्थ खो गये...
खो गए या खो दिए जानबूझ कर ...मातृभूमि के लिए ...
इन अमर बलिदानियों को शत -शत नमन ...!
English Literature में M.A. करते समय ,war poetry पढ़ी थी ..Sasoon जैसे कितने ही कवी उम्र के 21 या 22 साल में मारे गए ..यह महायुद्ध क्यों लड़ा जा रहा यह सोचनेके लिए मजबूर कर गए ..
ReplyDelete"All the hills & wales along,
The Earth is bursting into song,
The singers are the chaps,
That are going to die perhaps.."
"I am the enemy, you killed,my friend!" एक लाश दूसरे पक्ष के सैनिक को कहती है ..
शहादतें ख़त्म न होंगी ..दिलों में पड़ी सरहदें माँ ,बहन बीबियों को रुलाती रहेंगी ..
नतमस्तक हूँ शहीद राजबीर के आगे..और क्या कहा जा सकता है? शस्त्रों के दलाल देश युद्ध करवाते रहेंगे..सीमा पर और सीमान्तर्गत....
रचना बहुत मर्मस्पर्शी है....
ReplyDeleteबस इतना याद रहे एक साथी और भी था ....................
ReplyDeleteकैप्टेन योगेन्द्र राजबर की शहादत को प्रणाम!
कोटि कोटि नमन
ReplyDeleteकैप्टेन योगेन्द्र राजबर की शहादत को नमन है !
ReplyDeleteकवि श्रीप्रकाश शुक्ल जी ने कविता में जो भाव पिरोये हैं, उनका धन्यवाद!
अपनी एक अप्रकाशित ग़ज़ल के शेर कहना चाहूँगा, रोक नहीं पाया अपने आप को...
साथ उसके कफ़न चलता है
वर्दी में जवाँ बदन चलता है
- सुलभ
अब शहीदों को सलाम कहना .जैसे रस्म की किसी केंचुली के अपने हिस्से को उतारना है .... देश के एक हिस्सा ...दूसरे हिस्से से ... वाकई अनजान है .......इन चेहरों के आगे कुछ कहना खाली लफ्फाजी लगता है ...
ReplyDelete'पर ये मंजुल भाव रुपहले,अंकुरित हुये थे जो यौवन में,
ReplyDeleteबिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में.'
हम जैसे बस नमन ही तो कर सकते हैं !
शहीद को नमन !
ReplyDeleteकविता के भाव भी उम्दा।
क्या कहूँ......
ReplyDeleteशूरवीर को शत शत नमन.....
कविता तो ऐसी है की इसने मन को और भी बहा दिया...अद्वितीय कविता....
रचना बहुत मर्मस्पर्शी है....
ReplyDeleteमेजर.....आपकी वापसी का बेसब्री से इन्तिज़ार था. आमद का शुक्रिया, पर जिन एहसासात को लेकर आप आये वे दिल को टीस देने के लिए पर्याप्त थे....... मेजर योगेन्द्र की शहादत को सलाम. किसी साथी के बिछड़ने का गम समझता हूँ......मगर ये शहादत जाया नहीं जाएगी. हालात से मेल खाती शुक्ला सर की कविता भी दिल को स्पंदित कर गयी.....! इधर "पाखी" में आपकी दस्तक हुयी है......कल ही देखा है.....पढ़ कर प्रतिक्रिया दूंगा.
ReplyDeleteअति उत्तम आलेख । शहीद को प्रणाम ।
ReplyDeleteशहीद को शत शत नमन.
ReplyDelete'मात्र-भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक'
एक और वीर उस पथ का पथिक बना. प्रणाम.
कविता भी प्रसंगानुकूल है.
बेहद भाव भरी, चमत्कृत कर देने वाली शब्दावली.
अस्तु.
शहीदों को नमन
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteश्री प्रकाश शुक्ल जी की कविता सैनिक की मनोव्यथा का अच्छे से एहसास कराती है.
पर ये मंजुल भाव रुपहले,अंकुरित हुये थे जो यौवन में
बिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में
...इन पंक्तियों से पता चलता है कि सैनिक मातृभूमि के लिए क्या-क्या अर्पित करता है.
..कैप्टेन योगेन्द्र राजबर की शहादत को कोटि-कोटि नमन.
Pata nahi kab tak hum jhoothee seemaon ke bhram me apne desh ke bete khot rahenge.. bahud hi dukhad..
ReplyDeleteऐसे बहादुर सुन्दर नौजवानों को भारत माता के लिए अपना सर्वस्य्य बलिदान कर स्वर्ग का सबसे ऊंचा आकाश मिलता होगा पर हम यहां
ReplyDeleteस्तब्ध और मौन हैं दुःख इतना घना है के शब्दों से व्यक्त करना असंभव है -
मेरे नमन व परिवार को सांत्वना ...
कविता ने अश्रु अंजली में साथ दिया है ...
सादर स स्नेह,
- लावण्या
शहीद राजबर जी को नमन !
ReplyDeleteकुछ भी तो नहीं है मेरे पास देने के लिए, कहने के लिए
ReplyDeleteसोचता हूँ खुद के प्रति ईमानदार बना रहूँ,, शायद यही सच्ची श्रद्धांजली होगी उनके प्रति जो देश के लिए ईमानदार हैं
ज्यादा कुछ कहने के लिए हैं ही नहीं ...
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteक्या कहूँ..कुछ कह पाना भी अप्रासंगिक ही होगा..शायद जमीं पर गिरने वाली कोई खून की बूँद अंततः हमे अपने अधिकारों से पहले हमारे कर्तव्यों का भान करा सके....शायद कोई बलिदान हमारे स्वार्थी हृदय और लालची आँखों की अशमनीय तृष्णा को शर्मसार कर सके..तब शायद इस पंक्ति की सार्थकता समझ आ पायेगी...
ReplyDeleteशब्द नहीं बन पाती संज्ञा,सोये पड़े भाव पलकन में
....
अद्रश्य हैं
ReplyDeleteसरहदों पर
लेते हुए
जोखिम से भरी हर सांस ...
उनकी मौत चखा देती है
हमें
कर्मठता,बलिदान,वीरता
का स्वाद...
पर ये मंजुल भाव रुपहले,अंकुरित हुये थे जो यौवन में
ReplyDeleteबिन पनपे ही, भेंट चढ गये, मातृभूमि को दिये वचन में
नमन!
सैल्यूट
ReplyDeleteकविता का सिर उड़ा दिया गया
ReplyDeleteफिर् भी ज़िन्दा है कविता
सियाचिन के बंकर मे
एक सिपाही की आँखें भिगो रही है.....
तस्वीर से नज़र हटा पाऊं तब तो कुछ लिखूं ....ऐसे में शब्द बस खो जाते हैं...साथ नहीं देते...उनके माता-पिता को ईश्वर शक्ति दे यह आघात सहने की
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजां बहक़ हो गए सरहद पे जवानाने वतन
ReplyDeleteख़ूं के क़तरे जो गिरे अब भी ज़िया देते हैं
वीर योगेन्द्र जी को हमारा शत शत नमन,इन
वीरों का लहू रहती दुनिया तक रौशनी बिखेरता रहेगा,
गौतम जी ,आप की भावनाएं इस समय क्या होंगी हम महसूस तो कर सकते हैं लेकिन उसे व्यक्त करने के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास ,
बस दुआ है कि अल्लाह उन के घर वालों को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे ,
और हम ये प्रण करें कि उनकी इस अज़ीम क़ुरबानी को ज़ाया नहीं होने देंगे,
कविता भी मन को छू गई
19 May 2010 5:50 AM
दूर क्षितिज पर सूरज चमका , सुबह कड़ी है आने को
ReplyDeleteधुंध हटेगी , धूप खिलेगी , वक़्त नया है छाने को
साहिल पर यूँ सहमे सहमे वक़्त गवाना क्या यारों ,
लहरों से टकराना होगा पार समंदर जाने को ...
आपकी ग़ज़ल पढ़ी तो सोच रही थी बहुत दिनों से पोस्ट न लिखने की वजह ..
26 अप्रैल के बाद अब 17 मई ... अब समझ आया... केप्टन योगेन्द्र की सहादत से आप कितने व्यथित होंगे ... इतनी छोटी उम्र .. क्या क्या सपने देखे होंगे ... सच उनके सपने बिन पनपे ही भेंट चढ़ गए.... संज्ञा शून्य हो गए हैं हम ...क्या कहे , क्यूँ इतनी बेबसी ...
शहीदों की चितायों पर, लगेंगे हर बरस मेले,
ReplyDeleteवतन पर मिटने वालों का यही बाकीं निशाँ होगा....
एक छोटी सी श्रधांजलि मेरी भी..
क्षण भर में तुम कैसे,
क्यों जीवन दांव लगाते हो?
बोलो, भारत माँ पर तुम,
क्यों सर्वस्व लुटा कर जाते हो??
एक टुकड़ा मिट्टी के लिए,
क्यों तुम, ख़ुद मिट्टी बन जाते हो?
उस मिट्टी में मिलकर भी,
तुम कैसे अमर हो जाते हो??
Jayant
Sadar Naman.
ReplyDeleteकैप्टेन योगेन्द्र राजबर की शहादत को प्रणाम ...
ReplyDeleteMarmsparshiy .. dil ko choo lene vaale bhaav liye rachna .. naman ...
"आज तूलि, आतुर, अधीर,पर चित्र बनें धूमिल मन में
ReplyDeleteशब्द नहीं बन पाती संज्ञा,सोये पड़े भाव पलकनमें"
कैप्टेन योगेन्द्र राजबर की शहादत को कोटि-कोटि नमन.
उस नवजवान की कुर्बानी सिर्फ कुछ संवेदनशील लोगों तक ही पहुंची. सत्ता के गलियारों में बैठे सफेद खद्दरधारियों के लिए शायद यह आम-रोजमर्रा की चीज़ है. जब ताबूत जैसी चीजों में कमीशन खाया जा रहा हो फिर क्या कहा जाए.
ReplyDeleteउस गुमनाम शहीद, राजबर, जिसने सिर्फ देश और कर्तव्य को ध्यान में रखा, को मेरा नमन.
ऐसी पोस्ट पढ़ के कुछ लिखते नहीं बनता ये इक महज पोस्ट नहीं है,२६ बसंत की अनकही अनपढ़ी सच्ची कहानी है,मन ठीक वैसे ही दोहराता है जैसे आपने लिखा है राजबर...योगेन्द्र राजबर...कैप्टेन योगेन्द्र राजबर.इन नामो को हम कितनी देर याद रख पाते है?अखबारों की इक खबर भर..(Defence Ministry spokesman Lt. Col. J. S. Brar said the troops were closing in on Chattibandi village to flush out militants hiding in nearby woods. All of a sudden, the militants opened fire, causing injuries to Major Yoginder Rajbar and Sipahi Uttam, both of 7 Gharwal Rifles. They succumbed to their injuries later.) क्या वतन पर मिटने वालो का यही बाकी निशां होगा ?मन इतना उदास है की कविता पर कुछ कहा नहीं जा रहा..शब्द नहीं बन पाती संज्ञा,सोये पड़े भाव पलकन में
ReplyDeleteआप जैसे ही "था " लिखते हो आपके बिना कहे ही वे सारे दृश्य साकार हो जाते है जो इस शहीद को शहीद बनाते हैं ।
ReplyDeleteशुक्ल जी ने अपने समस्त भाव उंडेल दिये हैं इस गीत में ...उनकी इस भावना का मै सम्मान करता हूँ ।
this is a permanent loss to their parents ,their friends ,relatives and us too ..........
ReplyDeletekisi ek bhi vyakti ke shaheed hone par bhi dil jar -jaar hota hai
koi hai ............jo yah sab rok de.
ya allah raham kar sab par .
कैप्टेन योगेन्द्र को विनम्र श्रधांजलि |
ReplyDeleteअंतर्मन को छू गई सैनिको ki भावनाओ प्रकट करती यः मार्मिक कविता |
I love my brother forever is my real hero.. God bless him..
ReplyDelete