छुट्टियाँ बीत रही हैं....बीतती जा रही हैं। हर रोज मिलने-जुलने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा और मिलने-जुलने वाले घाव-चोट से अधिक इच्छुक उस घटना का विस्तार जानने में रहते हैं। मिथिलावासियों को वैसे भी गप्प-सरक्का का व्यसन होता है। मैं मैथिल हूँ और अचानक से ये मैथिल होना मेरे ब्लौगर होने को धिक्कारने लगा कि कैसा मैथिल हूँ कि अभी तक बस अपने लिखे ग़ज़लों से बोर करता रहा हूँ आपसब को।...तो आज परिचय करवाता हूँ एक बहुत ही सुंदर मैथिली गीत से।
विख्यात मैथिली-कवि विद्यापति के नाम से तो आपसब परिचित ही होंगे। उनके लिखे गीत खूब उपलब्ध हैं नेट पर भी। लेकिन जो गीत मैं सुनाने जा रहा हूँ, वो उनका लिखा तो नहीं किंतु उन्हीं की शैली में है बहुत ही प्यारी धुन पर।
गीत में गौरी{पार्वती, उमा} शिकायत करती हैं शिव से कि उनके पास पहनने को कोई गहना नहीं है। लक्ष्मी और सरस्वती तो खूब हीरे-मोतियों के गहने पहनी रहती हैं और उनका उपहास उड़ाती हैं। शिव करूणामय हो उठते हैं और अपने शरीर से एक चुटकी भस्म निकाल कर गौरी को देते हैं और गौरी को उस भस्म के साथ कुबेर{धनपति} के यहाँ भेजते हैं। कुबेर उस एक चुटकी भस्म को देखकर गौरी से कहते हैं कि इस भस्म के समतुल्य तो संसार का कोई गहना ही नहीं है और साबित करने के लिये उस एक चुटकी भस्म को तौलने के लिये पलड़े पे रख देते हैं। कुबेर के भंडार की समस्त संपत्ति दूसरे पलड़े पे चढ़ जाती है लेकिन वो भस्म वाला पलड़ा फिर भी नहीं उठता है। चकित गौरी वो एक चुटकी भस्म उठाये वापस शिव के चरणों मे आ गिरती हैं और कहती हैं कि उन्हें अब कोई गहना नहीं चाहिये।
अब सुनिये ये अद्भुत गीत मेरी सबसे पसंदीदा गायिका की आवाज में...नहीं, दूसरी सबसे पसंदीदा गायिका की आवाज में। सर्वाधिक पसंदीदा गायिका का खिताब आजकल छुटकी तनया ने हथिया लिया है।...तो पेश है ये बेमिसाल गीत तनया की मम्मी की आवाज में:-
हे हर, हमरो किन दिय गहना
हे हर, हमहु पैहरब गहना
लक्ष्मी और शारदा पैहरथि
हीरा-मोती के गहना
ई उपहास सहल नहि जाई अछि
झहैर रहल दुनु नैना
हे हर......
देखि दशा गौरी अति व्याकुल
शिव जी के उपजल करूणा
एक चुटकी लैय भस्म पठौलैन
गौरी के धनपति अंगना
हे हर.....
भस्म देखि कर जोड़ धनपति
कहलनि सुनु हे उमा
एहि भस्मक समतुल्य एको नहि
त्रिभुवन के ये हि गहना
हे हर...
एक पलड़ा पर भस्म के राखल
एक पलड़ा पर गहना
भंडारक सब संपत्ति चढ़ि गेल
पलड़ा रहि गेल ओहिना
हे हर...
लीला देखि चकित भेलि गौरी
देखु भस्मक महिमा
भस्म उठाय परौलिन गौरी
खसलनि शिव जी के चरणा
हे हर, हम नै लेब आब गहना
हे हर, अहिं थिकौं हमर गहना
...कैसा लगा आपसब को ये गीत? बताइयेगा जरूर!
गीत सुन नहीं पाए। उस लिंक की जगह खाली है। हमारा नेट कभी कभी ऐसी दग़ाबाजी कर देता है।
ReplyDeleteवैसे बिना सुने ही रस ले सकते हैं - भोजपुरी गीत सुनने और भोजपुरी जवार का होने के कारण पढ़ना ही बहुत आनन्द दे गया।
लोकगाथाएँ और गीत सरल शब्दों में गढ़ू बाते बता जाती हैं।
आभार ।
आइडिया !
ReplyDeleteधाँसू धाँसू गज़ल जो लिखे हैं इन्हीं की आवाज में गवाएं, कविता कृष्णमूर्ति जैसी ताजगी लगी आवाज में ।
बधाई !
गौतम जी - इ जानि सुखद लागल जे अहाँ मिथिलाक बेटा छी। गीत सुनलहुँ - मंत्र-मुग्ध भऽ सुनलहुँ पूरा परिवारक संग। नीक लागल।
ReplyDeleteएखन स्वास्थ्य केहेन अछि। शुभकामना सहित
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
शहद झरती आवाज में गहनों पर भारी भस्म की महिमा ...
ReplyDeleteबड़ा निक लागल बा ..!!
सुबह की नैसर्गिक सुन्दरता को पवित्र करती हुई आवाज़
ReplyDeleteत्रिभुवन के ये ही गहना...
बिना साज के गवाया जाना कठोरतम परीक्षाओं में से एक है. अब आप के जितना गुमान भाभी पर भी किया जा सकता है.
बहुत सुंदर !
मधुरतम ! स्वर अनजाने ही संयुक्त कर देता है अनगिन संवेदनाओं कॊ ।
ReplyDeleteविद्यापति के देसिल बयना की सुन्दरता को सहजतम अभिव्यक्ति मिली है । साज नहीं हैं पर सौन्दर्य अक्षुण्ण रह गया है गीत के तौर पर । आभार ।
लोक काव्य की अपनी ही एक बात है जिसका मुकाबला दुनिया की कोई दूसरी कविता नहीं कर सकती । और उस पर बहूरानी की आवाज । सुंदर बन पड़ा है गीत । चलो ये तो राहत की बात है कि बहू तुम्हारी तरह बेसुरी नहीं है । पूरा गीत स्वर के उतार चढ़ाव के साथ बहुत अच्छी तरह निभाया है । फिर आश्चर्य चकित हो रहा हूं कि तुम्हारी किस्मत पर । गीत के साथ कोई संगीत नहीं है किन्तु कहीं भी एहसास नहीं होता कि कोई संगीत नहीं है । छुट्टियों का भरपूर आनंद लिया जा रहा है ये इस गीत से ही पता चलता है ।
ReplyDeleteअहा!! कितनी ताजी और पाक आवाज!! आनन्द आ गया..कितने ही साज सुनाई दिये बिना बजे!! यह होती है आवाज की झनक!!
ReplyDeleteकाश, तुम्हें भी मिलती कुछ ऐसी ही कृपा देवी की...और हाँ, मुझे भी... :)
माटी की महक के साथ
ReplyDeleteअपनी बात रखने का शुक्रिया ....
bahut achcha laga, kahani bhi pasand aai.
ReplyDeleteबड नीक लागल। अहिना गाम-घरक बात करैत रहब। गीत ममोहक लागल।
ReplyDeletegeet to padh li magar sun nahi paa rahaa ...... uspar se bhabhi ji ki awaaz...? :) kuchh dhamaal hi hone wala hai .. fir se aata hun kya pareshaani hai jaraa aap bhi dekhen...
ReplyDeletearsh
chachu, gaana sunn ke hum sab chachi ke aur bade fan ho gaye... isse kehte hai mithla ki khushbu...waha aake ek live concert hoga sab pariwar walon ke beech.....mummy bol rahi hai ki chachi toh sone pe suhaga hai... badi acchi awaaz ke sath sur bhi ekdum pakke hai... mann khush ho gaya....divya
ReplyDeleteEmotional kar diya Major Saab bhaia... :)
ReplyDeleteJai Hind...
हम्म्म्म...याद है मुझे कि एक बार लोकगीतों की चर्चा में आपने ज़िक्र किया था भाभी के इस फेवरिट गीत के बारे में मगर यूँ अचानक सरप्राइज़्ड करेंगे उन्ही की आवाज़ सुना कर, ये नही पता था।
ReplyDeletewonderful voice...! स्वरों का उतार चढ़ाव एकदम सटीक। भौजाई के इस रूप से तो अनभिज्ञ ही थे हम....। और क्या क्या है भाई उस झोली में ?? एक साथ ही बता दीजिये, बार बार झटके मत दीजिये...!!!
बस एक ही बात का दुःख है हमें इस गीत को सुनने के बाद कि ब्लॉग में पारुल, अल्पना जी, अदा जी जैसी एक से एक गायिकाओं के चलते हम अपनी गाने की भड़ास निकाल नही पा रहे थे तो सोचा था कि अगली पोस्ट में एक लोकगीत गा के वो भड़ास निकाल लेंगे।
मगर ठीक उसी वक्त ये भाभी का गीत लगा कर आपने मेरे अरमानो पर पानी फेर दिया ....!!! :( :( Tell me ऐ खुदा अब मैं क्या करूँ :( :(
गीत सुन नहीं पायी निश्चय ही अच्छा गाया होगा ..:) लोक गीत मन मोह लेते हैं ..पढ़ के अच्छा लगा ..शुक्रिया
ReplyDeleteहे यों ! अहाँ के एक बात कहू... हमहूँ मैथिलि अछी... केत्ते त नीक लागल इ पोस्ट... भासा के विस्तार होवाक चाही... एक टा ब्लॉगर औरो आ़च "गुस्ताख"... विद्यापति के भजन त खूब पसंद आवे आछ... दो-चार टा त हिंदी किताब के सिलेबस में भी रहे...
ReplyDeleteइस्पेल्लिंग ला माफ़ करबे... दिल जीत लेलॉय अहाँ... हाँ कहल जाय छे मैथिलि और बंगला दही से भी मिट्ठ भाषा छे" माने छिये की नाय ?
मैं भी वो मधुर आवाज़ सुनने से वंचित रह गयी :(:(...पर उम्मीद नहीं छोड़ी है..शायद दुबारा log in करूँ तो सुन पाऊं...वैसे कल्पना में सुन लिया:)...नन्ही गायिका तनया को भी सुनवाएं कभी.
ReplyDeleteवाह कमाल की आवाज़ है .... कहाँ छुपा रक्खा था अब तक .... बिना संगीत के गाना बहुत मुश्किल होता है पर लग नही रहा ..... हम तो आनंद ले रहे हैं इस गीत का ...... आपकी छुट्टियाँ अची बीतें आप नयी नयी yaaden जोड़ कर वापिस लौटें ऐसे हमारी शुभकामनाएँ हैं .........
ReplyDeleteलोक गीत में ग्राम वासियों की आत्मा बसी होती है ,उनमे कोई दिखावा नही ,कोई चातुर्य नही ?केवल होती है मन की, दिल की सरल और सहज भावना और जीवन दर्शन |
ReplyDeleteजितना सुंदर गीत उतनी ही सुमधुर और सधी हुई आवाज है बहू जी की |बहुर ही सुंदर पोस्ट \लोकगीत सुनना और गाना तो मेरी कमजोरी है \
abhar
इसका मतलब छुट्टी बिलकुल छुट्टी जैसी कट रही है ....गीत अभी सुन नहीं पाए है.....शाम को फिर ट्राई करेगे ...फिर ही कुछ कहेगे .शीर्ष गायिका के खिताब पर परमानेंट का ठप्पा जरूर लग दिए है ...
ReplyDeleteवाह सर आप तो बहुत अच्छी मैथली लिखते हैं...
ReplyDeleteपता है जब भाई की याद आती है तो आपके ब्लॉग पर आ जाता हूँ...
मीत
बहुत सुन्दर गीत और उससे भी मधुर आवाज!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
नमस्ते भैय्या,
ReplyDeleteगीत तो नहीं सुन पा रहा हूँ लिंक काम नहीं कर रहा है. मगर सर्व्श्रेष्ट्र गायिका को कब सुनवा रहे है.
अहाँ त मने मोह गेली.......सही है? आवाज़ तो अपने मोहक घर सी है
ReplyDeleteअवाज़ की करामात देखो सास को बहु की तारीफ करनी ही पडी वाह क्या रंग जमाया है सच मे इस सुरीली आवाज़ ने मन मोह लिया। पंकज जी ने सही कहा लोक गीतों की उपमा कही नहीं जा सकती। अब अगली प्रतीक्षा तनया की आवाज़ की रहेगी। बहुत बहुत आशीर्वाद । हाँ आपकी गज़लें भी बहु की आवाज़ मे हो जायें तो क्या बात बने । तो फिर हो जाये एक गज़ल अगली पोस्ट मे? इन्तज़ार रहेगा।
ReplyDeleteEk hi shabd kaha ja sakta hai - Lajwab. Pyar logo ko Sundar to banata hi hai, Awaaj bhi aur madhur ho jati hai, aaj pata chala.
ReplyDeleteसच समय कब बीत जाता है पता ही नही चलता। और छुट्टियाँ तो बस यूँ ही बीत जाती है। कवि विधापति जी के लिखे गीत को पढकर और सुनकर आनंद आ गया। गीत की कहानी बहुत कुछ कह जाती है। पर सुनते वक्त कुछ शब्द का मतलब नही पता चल रहा था। पर सुरीली सी आवाज सुनते हुए ऐसा लगा जैसे मेरे घर में ही यह गीत गाया जा रहा है। आपकी दूसरी सबसे पसंदीदा गायिका की आवाज वाकई सुरीली है जी। और हमारी तनया बेटी के लिए खूब सारा प्यार ।
ReplyDeleteयह मैथिली गीत पहली बार सुना .तान्या की मम्मी की आवाज में सुनना बहुत भाया.बहुत ही सुन्दर मनभावन आवाज और गायकी है.उन्हें बधाई.
ReplyDeleteगौतम जी आपकी खूबसूरत ग़ज़लों का राज अब समझ में आया है...जिसके घर सरस्वती बिराजती हो वो अच्छी ग़ज़ल नहीं लिखेगा तो कौन लिखेगा...सुरों के साथ रहने वाला इंसान बेसुरा नहीं हो सकता और सुरीला इंसान ही अच्छी ग़ज़लें लिख सकता है...ऐसी मेरी मान्यता है...जिसे आज फिर बल मिला....बहु रानी की सटीक उतार चढाव के साथ शहद सी मीठी आवाज़...वाह...हमें तो धन्य कर गयी...मैथिलि के बारे में सुना ही था की बहुत मीठी जबान है..आज सुन कर यकीन भी हो गया...इस लाजवाब आवाज़ को हम तक पहुँचाने के लिए आपका कितना धन्यवाद करें समझ नहीं पा रहे...अद्भुत भाई...अद्भुत...सुर गंगा में नहा तृप्त हुए...अब सर्वश्रेष्ठ गायिका की आवाज़ भी लगे हाथ सुनवा दीजिये...उसके गले से निकली आवाज़ तो कोयल की कूक से कम नहीं होगी...पक्का यकीन है.
ReplyDeleteआप सभी खुश रहो....ये ही इश्वर से प्रार्थना करते हैं...
नीरज
आह! कनिया क गीत सुनिक गाम में बितायल गरमी-छुट्टी सब मोन पड़ी गेल. बहुत नीक, मधुर गायन. हमर एक छुटकी पीसी के एहने स्वर, एहने गायन !
ReplyDeleteमिथिला में छी त रामदाना के लड्डू खेनऊ कि नहीं? बउआ के नेह आर आशीष! उनका गोनू झा के कहानी कहि छी ?
गीत अपन बचिया के सुना रहल छी आर ओ मुस्कुरा रहल छई :)
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ओह कितने दिनों बाद मैथिली लिखी है आज मैंने!
स्नेहाशीष आपको, भाभी को और बिटिया को!
गीत सुनने के लिए Google Chrome के बजाय
ReplyDeleteInternet Explorer या किसी और Browser का प्रयोग करें
धन्यवाद :)
गिरिजेश जी,
ReplyDeleteआशा है के अब आप गीत को सुन सकेंगे....गूगल क्रोम में वाकई ये जगह खाली दिखाई दी थी...
हमें लगा के मेजर साब यूँ हम सब का अप्रैल फूल तो बना नहीं सकते...
गीत पहले पढ़ के ही संतोष कर लिया , और आवाज की कल्पना....
वो तो जब हमने इंटरनेट एक्स्प्लोरर से देखा तो ही सुन सके....
सच ....
ऐसी आवाज की कल्पना कतई नहीं की थी...
सोचा था बस हमारी चाय वाली जैसे ही आवाज होगी...
बहुत सुंदर आवाज....
गीत भी बेहद प्यारा लगा....
और गीत में छिपे भाव.....!!!!!!!!
क्या कहूँ...?
अभी शायद एक कमेन्ट और भी आये....
चाय वाली जाने मेरे ब्लॉग पर मेरी खिंचाई करेगी या आपके ब्लॉग पर...
भगवान् जाने....!!!!
:)
भई, हम तो डाउनलोड करके सुने हैं।
ReplyDeleteलगा अम्माँ गा रही हैं - इलायची और काली मिर्च की बुकनी खाने के बाद (उनका मानना है कि इससे गला खुल जाता है।)
बहुत सुंदर ओर मिट्ठी आवाज , गीत समझ मै भी आया ओर अब तनया की मम्मी की आवाज को पोर आप को यानि आप दोनो को बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteअपनी मिटटी की सोंधी सुगंध सबको सुंघा दी बड़ी सहजता से आज आपने. विद्यापति और सरस्वती के दर्शन करने जैसे laga आज का post.
ReplyDeleteधन्यवाद गायिका देवी जी को.
अरे वाह !!.
ReplyDeleteमेजर साहिब,
सैलूट,
घर में सरस्वती का बास हो तो कलम अब काहे नहीं चलेगी.....हम तो बस तनया की मम्मी आवाज़ में....ऐसे खोये की बस ..कौनो
गत के नहीं रहे.....आवाज़ में सादगी...पाकीजगी....पवित्रता सबकुछ एक ही कंठ में..? कमाल हो गया है....इ छोटकी भौजी तो मन मोह गयी है......
अब अपनी ग़ज़लों का एक अल्बम निकाल ही दीजिये लगे हाथों....
बहुत ही सुन्दर .....ह्रदय से बधाई देते हैं आपको...
और हाँ आज हमहूँ गा दिए हैं एक ठो गीत मौका निकाल कर सुनियेगा.....आपकी कोकिला से थोडा कम fantashtik है....
ReplyDeleteजहाँ तक याद आता है कि, यह विवाहगीत विद्यापति जी की ही है ,
जो हमारे परिवार के विवाह अवसरों पर गाया जाता है ।
अयलऊँ हे बड़का बाबा
नगरा तोहार हे
अयलऊ हे सब बाबा
नगरा तोहार हे
बिलह हे सब बाबी
सिनुरा पीठार हे
अयलऊँ हे सब काका
नगरा तोहार हे
बिलहहे सब काकी
सिनुरा पीठार हे
अयलऊँ हे अप्पन बाबा
नग्र तोहार हे
बिलह हे अप्पन अम्मा
सिनुर पीठार हे
माथ चुमी-चुमी
दियड ने आशीष हे
जीबड हे दुलहीन
लाख बरीस हे
चाहे जितने भी गीत - नचारी हो जाये,
’ हे एगो बिदियापत गाऊ न ! ’ ऎसी फ़रमाइश अवश्य ही होती है ।
नॉस्टैल्ज़िक करती है, यह पोस्ट.. तऽ रऊऔ के ठाम मिथिला छिय ? मेरा जन्मस्थान ही दरभँगा ( लक्ष्मीसागर ) है !
आनन्दित हुये, आभार आपका वीर ज़वान !
imaandar tippni ke liye kaha gaya hai to hm kahenge ,lokgeet ki shelly ka poora abhaav hai ,shuru me to aapne gahna wahaan ke andaaj me gaaya hai magar baad me gahna atyant aadhunik style me gaaya hai ,aawaj baht achchi hai ,par bihaar praant ki us sugandh ka abhaav hai ,ek baar phir se gaayiye ,bhool jaayiye ki aap ek shikshit mahila hain ,tabhi aap poora nyaay kar paayengi is lokgeet ke saath ,(ek badi bahan ke taur par salaah di hai ,bihaar hmaare bhi dil me basa hai ,kyonki wahaan hmaara bachpan beeta hai ,)sabji waale ko bulaane par rukti nahi thi ,baad me poochne par pata chalta tha ki wo sabji nahi goitha (upla )bech rahi hoti thi ,aisi kai yaaden basi hain ,aaj aapka gana sunkar wapas apne bachpan me pahunch gaye hain .
ReplyDeleteयह होती है असली ब्लॉगिंग सर जी..मजा आया..
ReplyDelete..देवेंद्र सत्यार्थी जी को जरूर खुशी होती इस पोस्ट को पढ़ कर..
एक अपने कृष्ण मोहन झा साहब भी है मिथिला के..ब्लॉग पर ही..मैथिली का तो नही पढ़ा उनका..मगर लिखते एक दम कड़ाके का हैं..’आवाह” ब्लॉग है उनका...
मैथिल-कोकिल विद्यापति तो जनमानस में रचे-बसे हैं। चाहे, "जै-जै भैरवी असुर भयाउनी" हो या "नंदक नंदन कदंबक तरु तरे" उनकी तूलिका हमारे हृदय पर मधुर-चित्र उकेरती है और मैथिली के लालित्य को और बढ़ा जाती है। भाभी जी को मेरा प्रणाम निवेदित करें, उनके वाणी की दिव्यता ने गीत के मिठास को सहस्रगुना बढ़ा दिया है। लोकगीत तो वैसे भी हमेंशा हृदय के करीब लगते हैं। इन गीतों में लोकमानस का हृदय ही तो धड़कता है! और ये भी कि शायद शिव और उमा लोकगीतों के प्रमुख पात्र रहे हैं। हमारे यहां तो शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कृत्य शुरू ही इस गीत से होता है-"गाई के गोबरे महादेव, आंगना लिपाय। गजमति अयपन आहो महादेव, चौका पूराय। सुनीं ए शिव, शिव के दोहाय॥" सुंदर पोस्ट के लिये बधाई।
ReplyDeletegeet kisi bhi tarah se nahi
ReplyDeletesun paa rahaa hooN....
....???>>>>!!!!!.....????
क्या कहने! वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत और उसकी प्रस्तुति भी मधुर , बधाई ।
ReplyDeleteपोस्ट तो हाई डोज ही रही.. एक तो सुन भी नहीं पा रहा हूँ,, पर टिप्पणिया सब मस्त है तो उन्हें ही पढ़े जा रहा हूँ..
ReplyDelete"सर्वाधिक पसंदीदा गायिका का खिताब आजकल छुटकी तनया ने हथिया लिया है।"
ReplyDeleteयह तो होना ही था !
शुभकामनाएं !
गौतम जी....बड़ा अच्छा लगा आप मेरे ब्लॉग पर आये....और अपने अमूल्य टिप्पणी से नवाज़ा ...... अभी आपका पूरा ब्लॉग देखा और पढ़ा .... बड़ा अच्छा लगा...तकनिकी कारणों से आपका यह गीत नहीं सुन पाया हूँ..... पर लिखे हुए बोल ..... बहुत अच्छे लगे.....आगे भी दस्तक देता रहूँगा....देरी से शुक्रिया अदा करने के लिए मुआफी चाहता हूँ....
ReplyDeleteOnce again thanx......
बहुत नीक !!!! मुग्ध छी ।
ReplyDeleteकमाल है गौतम साब.......परिवार में एक लेखक और दूसरी गायिका.....भगवान ने सब कुछ एक ही जगह समेट दिया है सब कुछ.......आपसे बात कर के सच मुच अच्छा लगा.......! जल्दी ही तफसील से बात होगी.....छुट्टी मनाने की बधाई!
ReplyDeleteBade dinon baad aapka blog padhaa..wajah thee kharab tabiyat..aap gady likhen yaa pady , behad achha likhte hain...geet abhi nahee sun paayee hun..
ReplyDelete"Bikhare Sitare" pe aapka comment padhne ke baadhee, aglee kadee likhtee hun..ye kadee chhotee hai...yahanse ek alag adhyaay shuru ho raha hai..
गौतम भाई,
ReplyDeleteअखैन जे शरीर और मन में रोमांच भरल अईछ अहिमे उदगारक सभटा शब्द पता नै कता जा के लुका हेरा गेल....आब की कहूं.....कनियाँ के हमारा तरफ सँ बहुत बहुत आशीर्वाद !!!
अपन भाषा संस्कार और संस्कृति के प्रति अहाँ सपरिवारक ई भावना हमरा अभिभूत क देलक.....माता पार्वती और बाबा भोलेनाथ अहाँ सब पर सदा सहाय रहैथ...
pata nahi sab kaise sun pa rahe hai...mujhe to link hi nahi mil raha kaha se sun pana hai geet...i tried a lot....apki purani post hai...wo padi sou dard hai sou rahte....behad achhi lagi.......
ReplyDeleteजय हो !
ReplyDeleteआप जानते नहीं कि आपने क्या भूल करी अपनी दूसरी पसंदीदा गायिका का गीत यहां सुनवाकर। अब आपकी गजल-फ़जल सब इधर-उधर हो गयी। सब यही कहेंगे कि दूसरी पसंदीदा की प्रस्तुति हो जाये। विवेक ने कह ही दिया है हम उसका समर्थन कर रहे हैं!
सुन्दर आवाज, मोहक पोस्ट!
मज़ा आ गया.
ReplyDeleteविद्यापति का नाम सुनकर सातवीं की कक्षा की पहली कविता आ जाती है। आपने पूरा अर्थ देकर गीत का आनंद बढ़ा दिया।
ReplyDeleteबस इतना ही कहेंगे इ पोस्ट नीमन लगै छी।
Devi Uma , Parbati aur Shiv Shankar , aap dono per sada
ReplyDeleteprasann rahein ..........
Bahurani ki awaaz , behad meethi lagee ...use bhee dheron ashish :)
क्या भैया आप भी टांग खीचने में लग गए, ज़रा सी किताब को लेके... बस एक हसरत थी दिल में वो पूरी कर रहा हूँ और साथ ही एक मौका दे रहा हूँ आप जैसे कमाल के शायरों को जो लोगों से इस छोटे भाई की ओर इंगित करते हुए कह सकें की ''देखो भाई, घोड़ों को नहीं है घास और गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश..'' :) हा हा हा..
ReplyDeleteजय हिंद...
छुट्टियाँ बीत रही हैं....बीतती जा रही हैं।
ReplyDeleteTheory Of Relativity का सिद्धांत इससे layman तरीके से नहीं समझाया जा सकता.
:)
गप्प-सरक्का का व्यसन होता है
( for that matter, किसका नहीं होता? ;) 'निंदा रस' पढ़ी थी मैंने ,बेशक यहाँ पे broader prosepective लिया गया है और 'गप्प' को निंदा से स्वप किया गया है, और जहाँ तक व्यसन की बात है तो गौतम सर...
पाल ले एक एब नादां....
PS: कंचन दी को भी बोलने का मौका नहीं दिया आज कमेन्ट देवनागरी में हैं.
सर्वाधिक पसंदीदा गायिका का खिताब आजकल छुटकी तनयाने हथिया लिया है।
तो यानि आपने भी काजोल की तरह अपना toothpaste और preferences change कर लिए हैं.
ma'am का गीत तो पहले ही सुन लिया था, पर हई रे नौकरी, firewall और websensers.
आज तबियत ख़राब है तो घर पे हूँ...
देखूं कितना backlog पूरा हो पाता है...
आपकी त्रिवेणी पढ़ी थी और बाकी की पोस्टें भी, अनुराग जी, अदादी और सभी को पढ़ सुन तो लेता हूँ पर कमेन्ट नहीं कर पाता
@manu ji and kanishk ji....
ReplyDeleteMain google chrome main hi dekh raha hoon...
aur bade badhiya tarike se sun pa raha hoon...
Proof ke liye gautam sir ko print screen bhi bhej sakta hoon,
Waise pata nahi kyun mera favourite hote ja raha hai Google...
;)
Hope they are planing to launch their OS too.
geet nai sunai deraha chai, ahaan mail kar naa diun... kab talak tadpawoge huzoor... wait kar rahaa hun... mail ka ...
ReplyDeletearsh
ahan mithilak chee.. kabhi anumaan nai lagal.. etek nik geet sunawak lel dhanyawaad sweekaar karu...
ReplyDeleteगौतम जी ,
ReplyDeleteआप तो सर्वधन संपन्न हैं ....कमाल का गातीं है आपकी अर्धांगनी जी .....आवाज़ भी इतनी प्यारी ....'' बहुत ही नीक लागल'' ....रब्ब तुहाडी जोड़ी बनाये रखे.....!!
बेहतरीन प्रस्तुति..... साधुवाद..
ReplyDeleteअद्भुत मिठास है इस गीत में.
ReplyDeleteदेव कथाओं के लोक-संस्करण ईश्वर को मानवीय ऊष्मा से भरते हैं. धार्मिक संस्कारों के उदासीन परिवेश से अलग ये हमारे मूल में आत्मीयता को व्यक्त करते हैं.
pahli baar aapke blog par aayi hun..........bahut hi sundar likha hai.........geet to sun nhi payi kyunki koi link nhi mil raha magar jo bhav hain wo bahut hi sundar aur gahan hain.
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteलोक गीत संगीत की अपनी अलग ही खासियत है . गीत और आवाज दोनो ही बहुत मधुर । आपका ये प्यारा सा रंग बहुत भाया ।
ReplyDeleteबहुत खूब भाई
ReplyDeleteपिछली बार रीडर में पढ़कर यहाँ टिपियाने आया था तो पोस्ट खुल ही नहीं पायी थी. आज आपकी गजल पढने आया तो ये पोस्ट फिर दिख गयी. अब गजल फुर्सत से पढ़ी जायेगी. अभी तो यही गुनगुना रहा हूँ .
ReplyDeleteअभी एक लम्बी यात्रा पर निकलना है. गीत सेव कर लिया है, रास्ते में सुनने के लिए. आभार!
ReplyDeleteNice Post!! Nice Blog!!! Keep Blogging....
ReplyDeletePlz follow my blog!!!
www.onlinekhaskhas.blogspot.com