पत्थर तो बड़ी तबियत से उछाले जा रहे हैं लेकिन आसमान में सूराख नहीं हो रहा। वर्दियों के सर फूट रहे हैं, कंधे चटख रहे हैं, घुटने खिसक रहे हैं...लेकिन आसमान में छेद नहीं हो रहा और हो भी कैसे, जब दुष्यंत तबियत से पत्थर उछालने का आह्वान कर गये थे तो उसमें सच्चाई की ताकत वाली बात छुपी हुई थी। यहाँ झूठ के परत में लिपटे हुये पत्थर भले ही कितनी ही तबियत से उछाले जा रहे हों उनकी औकात सर-कंधों-घुटनों तक ही सीमित रहने वाली है, आसमान में छेद करने की बिसात नहीं है इनकी।
इन बरसते पत्थरों से मन उतना विचलित नहीं होता जितना झेलम की उदासीनता से। जी करता है इस मौन-शांत प्रवाह में रमी झेलम को झिंझोड़ कर कहूँ कि तू इतनी निर्विकार कैसे रह सकती है जब तेरे किनारे खेलने-कूदने वाले बच्चे राह भटक रहे हैं चंद सरफ़िरों के इशारे पर।
इन "भारतीय कुत्तों वापस जाओ" के नारों से मन उतना खिन्न नहीं होता जितना चिनारों के बदस्तूर खिलखिलाने से। मन करता है वादी के एक-एक चिनार को झकझोड़ कर पूछूँ कि तुम इतना खिलखिला कैसे सकते हो जब तुम्हारी छाया में पले-बढ़े नौनिहाल तुम्हारे अपने ही मुल्क को गंदी गालियाँ निकाल रहे हों।
इन आजादी की बेतुकी माँगों से से मन उतना उदास नहीं होता जितना बगीचों में ललियाते रस लुटाते सेबों को देखकर होता है। दिल करता है कि...
जी करता है...मन करता है...दिल करता है...बस यूँ ही करता रहता है। कर कुछ नहीं पाता हक़ीकत में। ऐसे में निराश मन जब अखबारों, चैनलों और ब्लौग पर नजर दौड़ाता है तो वहाँ से भी उसे दुत्कार मिलती ही दिखती है। हर तरफ...हर ओर। निष्पक्ष मिडिया, ईमानदार ब्लौगर बंधु कश्मीर के जख्मी लोगों की तस्वीर तो दिखाते हैं लेकिन उनके कैमरे के लैंस, उनकी कलम की स्याही जाने कैसे फूटे सर वाले पुलिसकर्मी, टूटे कंधों वाले सीआरपीएफ़ के जवान और लंगड़ाते सुरक्षाबलों की टुकड़ी को नजरंदाज कर जाते हैं। इन टूटे-फूटे सुरक्षाकर्मियों की तस्वीर टीआरपी रेटिंग जो नहीं बढ़ाती...इन लंगड़ाते-कराहते पुलिसवालों का जिक्र ब्लौग पे बहस जो नहीं बढ़ाता।
तहसीलदार के कार्यालय को जलाने में लिप्त चंद सरफ़िरे युवाओं में से कुछ की मौत उसी कार्यालय में उन्हीं के द्वारा लगायी आग से फटे गैस के सिलेंडर से होती है और इल्जाम वर्दीवालों पर जाता है। कई दिनों से अस्पताल में भर्ती एक बीमार बुजूर्ग दम तोड़ते हैं और जब उनका जनाजा घर आता है तो अफवाह उड़ायी जाती है गली-कूचों में कि पुलिस के डंडों से मर गये हैं और पत्थरों की बारिश कहर बन कर टूटती है सुरक्षाकर्मियों पर। एक आठ साल का बच्चा दौड़ते हुये गिर पड़ता है और उसके तमाम भाई-बंधु उसे अकेला छोड़ कर भाग जाते हैं तो सुरक्षाबलों की टुकड़ी में हरियाणा के एक जवान को उस गिरे बच्चे को देखकर दूर गाँव में अपने बेटे की याद आती है, वो उसे अपनी गोद में उठाकर पानी पिलाता है, अपनी गाड़ी में अस्पताल छोड़ कर आता है और जब उस बच्चे की मौत हो जाती है अस्पताल में तो उसी बच्चे को बर्बरतापूर्वक कत्ल कर देने का इल्जाम भी अपने सर पर लेता है।
यक़ीन जानिये, अपने मुख पर "indian dogs go back" के नारे को सुनकर संयम बरतना बड़ा ही जिगर वाला काम है। एक सरफ़िरा नौजवान एक वर्दीवाले के पास आकर उसके युनिफार्म का कालर पकड़ उसके चेहरे पर चिल्ला कर कहता है बकायदा अँग्रेजी झाड़ते हुये "you bloody indian dog go back" और बदले में वो वर्दीवाला मुस्कुराता है और सरफ़िरे नौजवान को भींच कर गले से लगा लेता...पूरी भीड़ हक्की-बक्की रह जाती है और वो वर्दीवाला अपने संयम को मन-ही-मन हजारों गालियाँ देता हुआ आगे बढ़ जाता है।
एक इलाके के एसपी साब का सर बड़े पत्थर से फूट चुका है...वर्दी पूरी तरह रक्त-रंजित हो चुकी है किंतु वो महज एक हैंडीप्लास्ट लगाकर भीड़ के सामने खड़े रहते हैं अपने मातहतों को सख्त आदेश देते हुये कि कोई भी भीड़ पर चार्ज नहीं करेगा। दूसरे दिन चिकित्सकों की टोली सर पर लगे चोट की वजह से उनके एक कान को निष्क्रिय घोषित कर देती है।
अपने ट्रेनिंग एकेडमी के दिनों में सिखाये गये सबक की याद आती है..."rumour-mongering is one of the biggest enemies in the times of war"...नहीं, ये war तो कदापि नहीं है लेकिन ये तनाव के क्षण उससे कहीं कम भी नहीं हैं। कश्मीर को इन क्षणों में पूरे मुल्क के विश्वास की जरूरत है, अफवाहों की नहीं। अभी कल ही अपनी अदनी-सी टिप्पणियों से एक भरोसा जीता है मैंने, शायद ये पोस्ट कुछ और भरोसों को जीतने में कामयाबी दे मुझे...आमीन !!!
मेजर ,
ReplyDeleteहम तो आप पर हमेशा से ही भरोसा करते आये है ..... कोई शक या सवाल ??
आपके और अपने बाकी सभी फौजी साथीयो के जज्बे को सलाम करता हूँ !!
आपके मार्फ़त ही सही पर हो सके तो उन सब तक मेरा यह सलाम जरूर जरूर पहुंचा दीजियेगा !
जय हिंद !!
एक इलाके के एसपी साब का सर बड़े पत्थर से फूट चुका है...वर्दी पूरी तरह रक्त-रंजित हो चुकी है किंतु वो महज एक हैंडीप्लास्ट लगाकर भीड़ के सामने खड़े रहते हैं अपने मातहतों को सख्त आदेश देते हुये कि कोई भी भीड़ पर चार्ज नहीं करेगा। दूसरे दिन चिकित्सकों की टोली सर पर लगे चोट की वजह से उनके एक कान को निष्क्रिय घोषित कर देती है।
ReplyDeleteYe ek behad kadwa sach hai!
Aapko blog pe dekh bahut achha laga!
Aap vilakshan samvedansheel aur balanced wyakti hain...jis anukampase aapne zakhmi wardidhari ke bareme likha,wo is baatko jatata hai!
Eeeshwar kare aapki dua qubool ho!
आमीन .......माफ़ कीजियेगा, इस दुआ पर पहले नज़र नहीं गयी !
ReplyDeleteमेजर जिस पोस्ट के बाबत आपसे मेरी बात हुयी थी वह यहाँ है !
ऐसे कब तक चलेगा गौतम? कभी तो इस वहशियत को रोकना ही पडेगा, तो आज ही क्यों नहीं?
ReplyDeleteइन बरसते पत्थरों से मन उतना विचलित नही होता, जितना झेलम की उदासीनता से।
ReplyDeleteइन "भारतीय कुत्तों वापस जाओ" के नारे से मन उतना खिन्न नही होता, जितना चिनारों के बदस्तूर खिलखिलाने से...
इन आज़ादी की बेतुकी माँगों से उतना मन उतना उदास नहीं होता जितना बगीचों में ललियाते रस लुटाते सेबों को देखकर होता है। दिल करता है कि...
बहुत आवश्यक थी ये पोस्ट आपकी तरफ से। तब जब मैं खुद उन सारी खबरों को सच मानती थी, जो अखबार वाले देते थे। उनके पीछे छिपे हुए तथ्य पढ़ कर कुछ लोगो का तो मन बदलेगा ना।
उस भरोसा जीतने वाली पोस्ट का पता देने का उद्देश्य ही यही था कि आप वहाँ जा कर आँखों देखा सच बता सकें, जबकि पता था कि पोस्ट लेखक सिर्फ संवेदनाओं में वो लिख रहा है, जो वहाँ लिखा है। चूँकि संवेदना मेरी भी जागी थीं।
और हाँ वो bloody Indian dog go back पर उस सिरफिरे को गले लगा लेने के त्वरित निर्णय पर आपको सम्मान देने का एक और कारण मिलता है।
आपकी व्यवहारिक संवेदनाओं यूँ ही बनी रहें इस बात की दुआ.... आमीन के साथ...!
We, the ordinary citizens of India get the incomplete view of what's happening there, only via what's been seeping through the media coverage. A report could be credible, manipulated or fabricated...nobody knows, but who witnessed it! ..and whereupon we make our opinions, however wrong that might be! Selfish politics and apathy of the us i.e. rest of indians, have made the monster out of the Kashmir issue. I believe that the short-sighted politicians have made them achieve that goal in three years, what the militants couldn't achieve in 25 years.. that is, mobilizing ordinary people there against their own state. Now the petty self-proclaimed leaders are dictating the terms on negotiation table, who were nowhere in the scene few years back, thanks to central and state politicians. As the army chief rightly said, the army in meant to clean the mess the politicians have caused...would that be easy?
ReplyDeleteI read that the security forces are strictly forbidden to use firearms against the mob, come what may! and I believe its been followed even in the toughest circumstances. it's not easy to keep your calm in such inflammable environment as you mentioned, but 'they' want you to loose it and give them more martyrs, the bodies which can be used on trading table. Earlier there have been atrocities from the Forces' part too, as few eyewitnesses told. But I strictly believe that every single drop of blood spilled there, be it of an ordinary citizen or a security personal, is the irreparable loss of our nation.
I'd just say what I have said before, once somebody takes a loaded arm in his hand..he is not human anymore...he isn't meant to be human then!..either he uses it to protect the innocents and thus becomes Divine..or he misuses the power that he is entrusted with..and becomes Devil!..there is no third option..you can't remain ordinary!!..and that is the most difficult part. Dear major saa'b your wisdom and your faith in human values..seems the only feeble ray of hope for people who've been betrayed and misled by dirty politicians....and for us, for the nation!!!
..we have one more reason to salute you..sir!!
गौतम , ये तुम या हमारे भारतीय सैनिक ही हो सकते हैं जो किसी के अपशब्द सुनने के बाद भी उसे गले से लगा लें ,
ReplyDeleteमैं ने वो पोस्ट भी पढ़ी और यहां भी
ये बिल्कुल सही है कि मीडिया का किरदार भी निष्पक्ष नहीं ,फिर भी
हो सकता है कि वो इस लिये सेना के या पुलिस के ज़ख़मी जवानों की तस्वीरें न दिखाते हों कि हमारा
moral down होगा लेकिन कम से कम बहादुरी के क़िस्से १५ अगस्त और २६ जनवरी के अलावा मौजूदा हालात की रौशनी में तो बताते रहें
सुनाना देश भक्ति की कथाएं
कभी ये जोश कम होने न देना
हमारा ,हमारे पूरे देश का भरपूर भरोसा तुम्हारे , भारतीय सेना और पुलिस्कर्मियों के साथ है जो इतने कठिन हालात में भी देश की रक्षा करने में सक्षम हैं
"तुम जब सीमा पर जगते हो
तब सारा भारत सोता है’
जय हिंद
.. एक आठ साल का बच्चा दौड़ते हुये गिर पड़ता है और उसके तमाम भाई-बंधु उसे अकेला छोड़ कर भाग जाते हैं तो सुरक्षाबलों की टुकड़ी में हरियाणा के एक जवान को उस गिरे बच्चे को देखकर दूर गाँव में अपने बेटे की याद आती है, वो उसे अपनी गोद में उठाकर पानी पिलाता है, अपनी गाड़ी में अस्पताल छोड़ कर आता है और जब उस बच्चे की मौत हो जाती है अस्पताल में तो उसी बच्चे को बर्बरतापूर्वक कत्ल कर देने का इल्जाम भी अपने सर पर लेता है।
ReplyDelete.....मार्मिक चित्रण.
.....तबियत से पत्थर उछालने वालों के दिल के जख्म कोई दूसरा कैसे उजागर कर सकता है!
आपका यह पोस्ट ऐसी कई गज़लों पर भारी है. शेष तो भाई अपूर्व ने लिख ही दिया..
.....Dear major saa'b your wisdom and your faith in human values..seems the only feeble ray of hope for people who've been betrayed and misled by dirty politicians....
....we have one more reason to salute you..sir!!
..आभार.
इस दर्द को समेटे रखिए क्या पता यही दर्द कभी दवा बन जाए। नफरत की आंधी जब चलती है तब आशियाने तो उजड़ ही जाते हैं। शायद इस देश को अब एक क्रांति की आवश्यकता है।
ReplyDeleteतस्वीर का वास्तविक रूख सामने लाने के लिए शुक्रिया. ये एक स्तुत्य कार्य है। कश्मीर के हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे कोई मरीज ठीक होता जा रहा हो लेकिन अचानक वह बदपरहेजी शुरू कर दे और उसकी हालत अचानक ज्यादा खराब हो जाय। मैं इस ब्लाग के माध्यम से अपनी सेना और हर देशभक्त को संदेश देना चाहता हूं कि हमें कश्मीर की चाहे जो तस्वीर दिखाई जाये लेकिन पूरे देश को रक्षा जवानों पर पूरा भरोसा है। उन्होंने आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिससे मुल्क का सर शर्म से झुक जाये। अपना एक शेर याद आता है, जिसे बुरे समय में खुद ही दोहराता हूं-
ReplyDeleteहौसला रख एक दिन तेरी फतह होगी जरूर।
हो भले ही देर से लेकिन सुबह होगी जरूर।
कल साखी पर प्रकाशित बड़े भाई ओमप्रकाश नदीम जी का ये शेर भी याद आ रहा है-
ये न सोचो रात भर करना पड़ेगा इन्तजार,
बस ये सोचो रात भर का फासला सूरज से है।
ईश्वर करे सब जल्द ही ठीक हो।
चन्द सरफिरे मुल्क की आवाज कभी भी नहीं बन सकते।
इत्तेफाक देखो फेस बुक पर अभी अपने दिल की कह कर आया हूँ....इधर तुम भी वही बात कह रहे हो.....तुमसे बड़ी सनद कोई नहीं है ....चार दिन पहले ऐसे ही किसी अपने एक अज़ीज़ बुद्धिजीवी से असहमति हो गयी थी ....जिसका कहना था कश्मीर को गोली आर्मी ने मारी है ...शायद फेशन स्टेटमेंट है ....आर्मी को गरियाना ...मैंने कहा के कभी जवान को देखा है सुबह से शाम तक उन नफरत भरी आँखों के बीच खड़े हुए .....अपनी मानवीयता ओर कर्तव्य दोनों बचाए हुए....चार दिन से उफन रहा हूँ जब कश्मीर इशू पर एन डी टी .वी पर बरखा दत्त आर्मी या फ़ोर्स को ब्लेम लगाती है .....फारुख उनसे एक सवाल पूछते है ....किससे बात करे .जब बात करने की दावत थी कोई नहीं आया.......क्यूंकि सब सेप्रेटिस्ट से डरते है ....एक ओर अज़ीज़ दोस्त है ...महिला पत्रकार है ....कहती है अनुराग फेस बुक ओर यु ट्यूब पर देखो.....क्या वो सब झूठ है .....मैंने कहा दुर्भाग्य से आर्मी के पास न फेस बुक है ओर न यु ट्यूब ....अगर तुम्हे उसकी उसकी बुनियादी इन्साय्नियत पर यकीन है तो मानो नहीं तो सब तर्क बेकार .....मै ये नहीं कहता के आर्मी से कोई चुक नहीं हुई..होगी ... संदेह के वातावरण में अपने साथियों को गिरते .शहीद होते ....घायल होते देख अपने इंसानी ज़ज्बातो को अनुशासन की डोर में बांधे रखना भी उतना मुश्किल है ...जितना किसी इस्तेमाल हुई जान के दुःख में इकठ्ठा हुई भीड़.... .मुझे याद है जब हम तुम मिले थे ....तो मेडिकल कोलेज के डॉक्टरो ओर वहां पढ़ते बच्चो से मैंने बात की थी..सब का कहना था .उन्हें अमन पसंद है .....पटरी पर वापस आती जिंदगी से वे खुश थे....उन्हें भी फिल्मे हाल में देखनी थी.उन्हें भी मोबाइल का इस्तेमाल करना था .उन्हें भी नयी नयी गाड़िया मोटर साइकिले तेज रफ़्तार से चलानी थी...पहलगाम में नए फेशन की जींस पहने खिलखिलाती कश्मीरी लडकिय थी.......जिन्होंने मुझसे पूछा था .....के क्या मैंने ऋतिक रोशन को देखा है ? .एक शाम श्रीनगर की सड़क पर जाम में फंसे ड्राइवर के चेहरे पर जरा भी झल्लाहट नहीं थी ....उसने कहा अब जाम में फंसना अच्छा लगता है .....सुनसान सडको पे गाडी चलाते बरसो गुजर गये .....एक छोटा तबका ऐसा भी था जो आर्मी को पसंद नहीं करता था......लगता है अब वही हावी हो गया है .....समस्या उसके हावी होने से नहीं पढ़े लिखे समझदार तबके के चुप होने से है .....
ReplyDeleteये घिनोनी राजनैतिक इच्छायो का औरतो ओर बच्चो का चालाकी से इस्तेमाल है .....पोलिटिकल समस्या है....जिसका सामना हमने संयम ओर धैर्य से करना है ...क्यूंकि ऐसी लड़ाई में कई दुश्मन अद्रश्य होते है .ओर जान एक मोहरे की माफिक इस्तेमाल होती है ......
मेजर साहब मीडिया वाले कुछ ही कहते रहें, तमाम भारत वासियों के दिल में आप जैसे हर सिपाही के लिये सिर्फ सम्मान है । जब भी कोई फौजियों से भरा मिलिटरी का ट्रक दिल्ली के सडकों से गुजरा है मेरा सलाम हमेशा उन फौजी भाइयों को मिला है जिनके बल बूते पर हम अभी भी आराम से सांस ले रहे हैं ।
ReplyDeleteजय हिंद ।
वैसे यहाँ भी एक हिस्से का सच पढ़ा जा सकता है
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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प्रिय गौतम,
आपके लिखे एक-एक शब्द पर पूरा यकीन है मेरा... पंद्रह साल पहले वादी में यह सब भुगता है मैंने...
"इन बरसते पत्थरों से मन उतना विचलित नहीं होता जितना झेलम की उदासीनता से।
इन "भारतीय कुत्तों वापस जाओ" के नारों से मन उतना खिन्न नहीं होता जितना चिनारों के बदस्तूर खिलखिलाने से।
इन आजादी की बेतुकी माँगों से से मन उतना उदास नहीं होता जितना बगीचों में ललियाते रस लुटाते सेबों को देखकर होता है। दिल करता है कि...
जी करता है...मन करता है...दिल करता है...बस यूँ ही करता रहता है।...
कर कुछ नहीं पाता हक़ीकत में।...
ऐसे में निराश मन जब अखबारों, चैनलों और ब्लौग पर नजर दौड़ाता है तो वहाँ से भी उसे दुत्कार मिलती ही दिखती है।"
नहीं मेरे दोस्त, देखो १२ जुलाई को ही इसी तरह की दुत्कार देती पोस्ट के जवाब में मैंने क्या लिखा।...
दोहरा देता हूँ...
कश्मीर को मैं समस्या नहीं मानता... वहाँ तो इम्तहान है उन मूल्यों का जिसके आधार पर हमारा यह देश बना है...स्वायत्तता, पाकिस्तान में विलय या नये इस्लामिक मुल्क की जो यह माँग कश्मीर में उठती है उसका आधार यह नहीं है कि पाक अधिकृत कश्मीर में बहुत अच्छा राज चलता है... आधार सिर्फ धर्म है... वे यह मान कर चलते हैं कि दिल्ली में हिंदुओं का राज है...और क्योंकि कश्मीरी पंडितों को भगाकर अब घाटी में उन लोगों ने केवल एक ही धर्म का वर्चस्व कर दिया है...अत: भारत का कोई भी दखल या अधिकार उन्हें मंजूर नहीं...
यह स्थिति 'समस्या' नहीं अपितु हमारे देश के लिये चुनौती है और अवसर भी...अपने स्थापना के मूल्यों को परखने व दॄढ़ करने का...बंदूक या पत्थर उठाकर देश को चुनौती देते यह आतंकी व अलगाववादी और उत्साहित होते हैं यदि इन्हें मीडिया में जगह मिले...कथित रूप से सुरक्षा बलों के हाथ मरे लोगों पर तो स्यापा कर रहा है मीडिया...पर क्या कश्मीर के सुदूर गांवों में इन अलगावी-आतंकियों द्वारा फैलाई दहशत के शिकार नहीं दिखते उसको... अक्सर उन गांवों में अपनी दहशत को बनाये रखने के लिये ये किसी बेकसूर का या तो गला रेत देते हैं ता सरे आम गोलियों से भून देते हैं उसे...मुखबिरी, जेहाद से दगा या कश्मीर की आजादी के खिलाफ होने का इल्जाम लगा कर...
जिस तरह की मानसिकता पाकिस्तान रखता है उसमें कश्मीर आज भारत का 'बफर जोन' बन गया है... यह अगर हाथ से निकला तो क्या यही आग जम्मू, हिमांचल, पंजाब व हरियाणा में नहीं लगाई जायेगी हमारे इस पड़ोसी द्वारा...
आतंकवाद व अलगाववाद को पूरी दुनिया में कभी भी बातचीत की मेज पर बैठ कर खत्म नहीं किया जा सका है... उसे खत्म किया जाता है प्रचार व चर्चा नाम की उसकी आक्सीजन को काट कर...लंबे समय तक उनके इरादों को विफल करते हुए थका-थका कर...एलटीटई, मिजो व नागा आतंक-अलगाव वाद इसके उदाहरण हैं...
हमारा राजनीतिक नेतृत्व इस चुनौती के आगे सीना तान कर खड़े हो...भारत की अखंडता नॉन नेगोशियेबल होनी चाहिये...जब आप ऐसे फैसले लेते हैं तो कुछ जान-माल का नुकसान लाजिमी है...पर इस नुकसान के डर से मुल्क धार्मिक आतंक-अलगाव के आगे घुटने नहीं टेकते...
कश्मीर की चुनौती का हल यही है...थका-थका कर मारो आतंकी-अलगाववादियों को...उन्हें हेडलाइन न बनने दो...अपने आप ही खतम हो जायेंगे उनमें बहुत से... बाकी के लिये फौज है ही!
जमे रहो दोस्त, थका-थका कर मारो आतंकी-अलगाववादियों को... देर-सबेर हमारा मीडिया भी समझ जायेगा... कि हर चीज को हेडलाईन देना सही नहीं...
आभार!
गौतम तुम्हारी पोस्ट व्यथित कर देती है....खुदा -इ-बरकत तेरी ज़मीं पर ज़मीं की खातिर ये जंग क्यूँ है...???" साहिर याद आते हैं लेकिन याद आने से क्या होता है...गुस्से से मुठ्ठियाँ तनती हैं लेकिन उस से भी क्या होता है? कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता...संवेदनाओं का इस कदर सड़कों चौराहों पर दम तोड़ते देखना बहुत त्रासद है...क्या इस रात की सुबह कभी आएगी?
ReplyDeleteसवालों के जवाब में सवाल है...इतने क्यूँ है के कुछ नहीं सूझता...कहाँ गए वो कृष्ण जो धर्म की ग्लानी पर प्रगट हो जाया करते थे...???कौन जवाब देगा...
अभी कुछ और कह पाने की स्तिथि में नहीं हूँ...
नीरज
राजरिशी जी
ReplyDeleteआपकी बात पर शत प्रतिशत विश्वास \कुछ बेलगाम मिडिया ने, कुछ मनगढंत विचारो ने प्रसिद्धी पाने के लिए फौज और पुलिस को बदनाम करने की साजिश रचने की कोशिश की है |
मैंने एक परिचित युवा पुलिसवाले को १८ घंटे निरंतर नेट पर काम करते देखा है और कई मुजरिमों को पकड़कर अपना कर्तव्य बखूबी से निबाहते देखा है कितु उन मुजरिमों को छुड़ाने वाले के सामने ईमानदारी कर्तव्य निष्ठां के कोई मायने नहीं है ?वही युवा आज बेक पैन , स्लीप डिस्क जैसी शारीरिक तकलीफों के बावजूद भी अपने काम में आज भी पीछे नही है |
जिस तरह दोस्ती का कोई एक दिन नहीं होना चहिये ,मदर डे हर दिन होता है उसी तरह फौजी ओर पुलिसवालों की बहादुरियों को १५ अगस्त और २६ जनवरी के आलावा भी सम्मानित कर उनके देश के लिए अमूल्य योगदान को जन जन तक प्रसारित होना चाहिए |
अपने हिस्से का सच बेकार हैं ये सोच । मुझे तो भरोसा हैं कि "गौतम" सरीखे हैं जो सीने पर गोली खा कर भी जंग के मैदान को नहीं छोडते । मेरे भरोसे किसी अखबार के पन्ने या टी वी चॅनल के मोहताज नहीं हैं । बस याद रखना गौतम की सच्चा सिपाही वही होता हैं जो ये नहीं भूलता कि उसे एक दिन वापस आना हैं उन तक जो उसके इंतज़ार मे होते हैं । बोर्डर फिम कि वो लाइन " मै वापस आऊंगा " मुझे सत्य मेव जयते कि तरह लगती हैं ।
ReplyDeleteलोग जख्म कुरेदते है ...मै भी तुम्हे एक उधडा हिस्सा सुनाता हूँ...एक ११ साल की लड़की के सगी बहन ओर उसकी भाभी के साथ बलात्कार होता है .उनके स्तन काटे जात्ते है ....उसके पिता जीजा बड़े भाई ओर ७ साल के छोटे भाई ....सात साल का बच्चा ....को निर्ममता से मार कर पेड़ पर लटका दिया जाता है ....वो पीछे स्टोर में छुपकर जान बचाहती है ....अगले दिन इंडियन आर्मी उसे बचाती है .उसका कसूर सिर्फ एक धर्म विशेष होना है .... आज वो अपने रिश्तेदार के यहाँ मेरठ में है ....वो एक ही बात कहती है .....काश तब ये जलूस ओर तब ये भीड़ सडको पर निकली होती ...अपने ही देश में शरणार्थी होना कितना पीड़ादायक है ...
ReplyDeleteइस को सुनाने का उद्देश्य ये नहीं है के हम खून का बदला खून से ले ......या किसी गलत बात को सही ठहराए .....मेरा यही कहना है के सिर्फ फेस बुक पर लिखी एक वाल पोस्ट जो किसी प्रेपेगेन्दा का तरीका भी हो सकती है .क्या वो आपके विचारो ओर आपकी बुद्धि को इतना जल्दी पलट सकती है .यदि हाँ तो जाहिर है आपके भी कोई पूर्वाग्रह है ....ओर ये दुखद बात है के पढ़ा लिखा एक वर्ग भी इस साजिश का शिकार हो रहा है ......
Enough is enough ! IT is time for action OR India looses Kashmir . I hope good sense prevails and action starts .Sorry to say that I have no regard for the poetic images of Chinaars or Jhelum . I only know that Kashmir is strategically most important for the safety of this entire sub-con.It has origin of many life-giving rivers and ignoring this problem will only make it worse.We are being taken for a ride.
ReplyDeleteसच है कितना आसान है भारतीय मास को मोबिलाईज करना। बस ब्रेकिन्ग न्यूज सरीखी कुछ अफ़वाहे और चन्द अखबार के कोलम्स...
ReplyDeleteआपकी हर एक लाईन शरीर मे रोन्गटे खडी करती है और काई लगी सच्चाईयो की तलहटी मे से एक एक सच को निकालकर उनसे रूबरू करवाती है...
और जैसे हर एक लाईन एक पन्च मारती है।
आपकी मानवीयता और आपकी लेखनी, दोनो को नमन करते हुये आपके थ्रु ही सारे जवानो को सलाम!!
पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ते हुए कितनी बार रोंगटे खड़े हो गए...सच ऐसे में झेलम या चीड का क्या अपना मुस्कुराना ,हँसना भी गुनाह लगता है.
ReplyDeleteआर्मी में एक अजीज़ हैं जो कुछ दिनों पहले कश्मीर में ही पोस्टेड थे...ऐसी ही बेबसी की बातें उनसे भी सुनती आई हूँ.
ये हम सबकी सौभाग्य की बात है..कि ब्लॉगजगत में आप भी हैं,जिनके सच पर सब यकीन कर सकते हैं.
आखिर ऐसे हालात में आशावादी कैसे रहा जा सकता है?
ReplyDeleteमन व्यथित हुआ,सब पढ़ आकर .बेहद कड़वा सच .
ReplyDeleteगौतम जी ,आप की हर बात पर यकीन है .आप में हिम्मत है सच लिखने की.
-पुलिस वालों ,बोर्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स और सेना के जवानों पर हमें आज भी पूरा विश्वास है.
-दहशतगर्दों और अलगाववादियों का काम [सालों से]यही है ये तो खुद अपने हाथों' अपनों' को मार कर भी, किसी वर्दी वाले को दोष देते हैं.उसकी विडियो बना कर गलत प्रचार करते हैं.
-घटना में जिस पुलिस अफसर का कान निष्क्रिय हुआ इन के पत्थरों की चोट से ..उसका कहीं मीडिया में कोई ज़िक्र नहीं होगा यह तो सब जानते हैं..
-सच कहूँ तो आज़ादी के बाद सब से अधिक नुकसान अगर किसी ने इस देश को पहुँचाया है तो वह मीडिया ही है.
-यह आग कब बुझेगी और कितने बलिदान
मांगेगी ये धरती ,समय ही बताएगा..
-इतना तय है कि कहीं न कहीं इन पर नियंत्रण करना आज आवश्यक हो ही गया है.
-दुःख तो यह है कि हमारे 'अपने ही लोग' अपनी जड़ें काटने पर तुले हैं ,कुछ बदला नहीं बिगड़ा ही है इन बीते सालों में ![लगभग एक पीढ़ी गुजर गयी समझें तो.]
-कलम में शक्ति है . आप की ये पोस्ट कुछ और भरोसों को जीतने में कामयाबी देगी आप को ..आमीन.
एक बेहद जरूरी पोस्ट ! कम से कम मीडिया के भाई बंधु जो पढ़ रहे होंगे वो दोनों ओर के सच को सामने लाने की कोशिश करेंगे।
ReplyDeleteलेखक का सन्दर्भ नहीं दे पाऊंगा क्योंकि जब पढ़ा था तो मालूम नहीं था कि कहीं जाकर इस बात को उद्धृत करना होगा।
ReplyDelete"राजस्थान के रास्ते विदेशी आक्रमणकारी जब इस भूमि को रौंदने के लिये आते थे, और उनका सामना करने के लिये अग्रिम रक्षा पंक्ति भील आदिवासियों की होती थी - आक्रमणकारी अपनी सेना के आगे गायों के झुंड हाँकते हुये लाते थे जिन्हें देखकर भोले आदिवासी अपने संस्कारों के चलते शरवर्षा करने में खुद को किंकर्तव्यमूढ़ पाते थे। हमलावर सफ़ल रहते थे अपने कुटिल मंसूबों में।"
समय बदल गया है अब, लेकिन मॉडस अपरेन्डी वही है, भीड़ के आगे महिलाओं व बच्चों को रखा जाता है।
आपकी पोस्ट में जिन हालातों का वर्णन किया गया है, उनसे होकर गुजरना बहुत मुश्किल है। अपने अपने घरों में बैठकर वाह-वाह या ओह-ओह कह देना बहुत आसान है।
भारतीय फ़ौज के जज़्बे को हमारा भी सलाम और आभार|
I second feelings of Munish ji.
जिस भरोसा जीतने वाली पोस्ट का जिक्र आपने किया है, खुल नहीं पा रही, लेकिन आपकी दुआ पर ’आमीन’ तो हम कह ही रहे हैं।
मीडिया का सच सारा देश जानता है, उन पर कौन भरोसा कर रहा है?
ReplyDeleteजो विश्वास और सम्मान सैनिकों के प्रति हर भारतवासी के दिल में है, उसे इस तरह के समाचार कब डिगा सकते हैं.
निश्चित ही कभी मन उदास हो उठता है इस तरह का टी आर पी के कारण किये व्यवहार को देख-किन्तु हर देशवासी आप सैनिकों के ज़ज्बे को सलाम करता है.
media ka role aur afwahe wali baat dil ko choo gayi aur aisa aam tour par hota hai jaha poora vishv indian media ki reporting bade hi aashchraya se dekhta hai..
ReplyDeletemanish kakrania
कश्मीर का घटनाक्रम व्यथित करने वाला है. आपकी पोस्ट और उस पर डॉ अनुराग और मो सम कौन की टिप्पणियाँ पढ़ने के बाद तो मन और भी व्याकुल है. सच में अपने देश में शरणार्थी होना कितना पीड़ादायक है.
ReplyDeleteऔर सच ये भी है कि कुछ मुट्ठी भर लोगों का बहक जाना उतना नहीं अखरता, जितना कि एक बड़े वर्ग का चुप रह जाना.
गौतम ,,मैं इस पोस्ट में छुपे आपके दर्द को बहुत बेहतर समझ रही हूँ! हम भी गालियाँ खाते हैं, दुखी होते हैं और फिर अपने काम में जुट जाते हैं! पर हमारा आपका दर्द किसी अखबार की सुर्खी नहीं बनता!
ReplyDeleteमुझे झुँझलाए सरदार का कथन याद आता है - कश्मीर तो नेहरू की ससुराल है।
ReplyDeleteयह 33:67 का मामला है मेजर! देश के जिस किसी प्रांत में यह अनुपात हुआ, वह झेलेगा। तब तक झेलता रहेगा जब तक कि अनुपात 90:10 न हो जाय और उसके बाद 10, 1 होगा और उसके बाद 99 प्रतिशत आपस में लड़ते रहेंगे। शायद वह हिस्सा भी देश से कट जाएगा - ग़रीबी, जहालत, कठमग़जी के साथ एक और नासूर सा पड़ोसी।
अगर हम नहीं सँभले तो कश्मीर नहीं पूरे भारत के भविष्य की यह एक सचाई होगी। दूर लगता है? यही हाल रहा तो निकट भी आएगा।
मुनीश की प्रतिक्रिया से सहमत हूँ।
गौतम जी,
ReplyDeleteइस पोस्ट ने हक्का बक्का कर दिया
काश्मीर के बिगडते हालात की खबर तो थी मगर स्थिति इतनी विकट है अनुमान न था
नौटंकीबाज़ चैनलों पर थू है जो दुनिया भर की खबर दिखाएंगे और वो भी दिखा देते है जो किसी लिहाज़ से खबर नहीं होती, मगर काश्मीर के हालात पर एक स्लाईड लाइन चलाने से ऐसे कतरा रहे हैं कि क्या कहूँ
उस दिन भी मैं सन्नाटे में आ गया था बरेली में दो दिन से कार्फ्यू लगा हुआ था मगर चैनल में तो जैसे इस खबर पर सेंसर लगा दिया गया हो
वही हाल इस समय काश्मीर के साथ है
पता नहीं किसको क्या फ़ायदा होता है यह सब करके
Jai Hind sir.
ReplyDeleteJai Hind ki sena
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है?
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है?
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,...
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें,
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही,
...आओ मुक़ाबला करें ।
----भगत सिंह
कश्मीर की खबरें, पथराव का सिलसिला, और लगातार होए वाली मौतें, सब झिंझोड़ कर रख देता है, पोस्ट पढने के बाद टिप्पणियां पढती रही, लगा सबने तो लिख दी मेरे मन की बात... और भरोसा? संशय की गुन्जाइश भी है क्या?
ReplyDeleteगौतम भाई... आपकी इस पोस्ट ने मुझे हिला दिया... सच में झूठ -------- झूठ ही होता है... फिर भी उसके पैर होते हैं.... और बहुत दूर तक चलता है... जब तक के सच सामने आता है... तब तक के झूठ बहुत आगे निकल चुका होता है...
ReplyDelete--
www.lekhnee.blogspot.com
एक सत्य घटना....
ReplyDeleteमैं होटल मेनेजमेंट के द्वितीय वर्ष में था दिवाली कि छुट्टियों के कारण देहरादून से घर (अल्मोड़ा) जैसे ही वापिस आया माँ पूछती है कि क्या कर रखा है तुम लोगों ने इंस्टीटयूट में ? इससे पहले कि मैं माँ के प्रश्न को समझता राष्ट्रीय सहारा में ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लेश होने लागी....
राजकीय होटल प्रबंधन संस्थान देहरादून में एक युवक ने रेगिंग से तंग आकर आत्महत्या करने का प्रयास किया...२ छात्र गिरफ्तार...
इन सब वजहों से होस्टिलियर अपने अपने गृह नगर वापिस आ रहे थे मैं वापिस देहरादून रवाना हुआ.
क्यूंकि वो दो छात्र (जो गिरफ्तार हुए) मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे (हैं). जब उनसे जेल मिलने जाते तो वो अपना पूरा किस्सा बयां करते,दोनों की इतनी बुरी तरह से पिटाई होती थी कि मेरी आँखों में आँसूं आ गए थे किस तरह उन्हें उल्टा लटका के पाँव के नीचे मारा जाता फ़िर उन्हें पथरीली ज़मीन में दौड़ाया जाता ताकि रक्त प्रवाह बना रहे. हॉस्टल का थर्ड एयर (मेरे होस्टल के सहपाठी और खुद मैं) एक तरफ और सारी दुनियाँ एक तरफ, उस पर कंगाली में आटा गीला, हममें से कोई भी देहरादून का नहीं था, हमारी जान पे बन आई थी. और अगर हमें कोई जान से मार भी देता तो वो झुण्ड होता ( प्लस ऑनर किलिंग ) देहरादून के अख़बारों के मुख पृष्ठ में ये खबर बड़े बड़े अक्षरों में ३-४ दिन तक छपती रही. (बताने की आवश्यकता नहीं कि कोई भी खबर हमारे पक्ष में नहीं होती.).
पुलिस , डेस कालर , पत्रकार, युवा छात्र संघ, एन. जी. ओ, प्रशासन...
संस्थान एक किला बना हुआ था और हम हारी हुई फौज हॉस्टल के किले में बंद. (१३ लोग या उससे भी कम). जिस छात्र ने आत्महत्या का प्रयास किया उसके इलाज के खर्चे से लेकर आउट ऑव द कोर्ट मामला सुलझाने तक में दोस्तों के २-३ लाख रूपये खुल गए.
यकिन मानिए कोफ़्त होती है किसी ने जानने की कोशिश नहीं कि.... किसी ने भी नहीं... कि क्या वाकई में रेगिंग कि वजह से इतना सब कुछ हुआ? क्या वाकई में उस लड़के ने रेगिंग के कारण अपनी जान देने कि नाकाम कोशिश की? उसके दिमाग में क्या था, वो सब बयां करना तो संभव नहीं है पर इतना ज़रूर है की मेरे दोस्तों की गलती नहीं थी (कम से कम इतनी नहीं, अप्राद तो दूर की बात).
और चूंकि वास्तविकता मैं जानता हूँ इसलिए तब से केवल एक पक्ष को सुन के कभी राय नहीं बना पाता चाहे वो बलात्कार जैसा घिनौना अपराध ही क्यूँ ना हो. वैसे ७ वर्षीया बालक की मृत्य का दुःख मुझे भी है.
मुझे मुकेश भट्ट की बात याद हो आती है....
"शाहरुख़ खान को विरोध करने का हक़ है और उसके विरोध के विरोध करने वाले लोगों का भी उतना ही हक़ है." लोकत्रंत आफ्टर आल.
एक कविता उनके लिए जिनकी प्रबुद्धता और विचार केवल फेसबुक, ऑरकुट, और इंडिया टीवी के कांसिक्व्न्सेज़ हैं...
बहुत भाते हो तुम
ओ कामरेड मेरे !
कवायद करते हुये
सूरज को मिलते अतिरिक्त धूप के खिलाफ
बादल को हासिल अनावश्यक पानी के विरूद्ध
Correction: मैं होटल मेनेजमेंट के third year में था.
ReplyDeleteआपने भरोसा खोया ही कब था मेजर....
ReplyDeleteएक कडवी हकीकत जिसे आपको बर्दास्त करना ही होगा.......सबकुछ अच्छा अच्छा होने का नाटक करने वाले बुद्धिजीवी..या हर बात में विरोध करने वालों का साथ देने वाले जरा इस पोस्ट को तो पढो...शायद कश्मीर का सच जिन्दा बच जाए......
ReplyDeleteBachpan se hame 3 baton pe yakin kerna sikhaya gaya hai...blind believe...
ReplyDelete1. Hmare Sanskar
2. Hmara desh
3. Hmari army
aur mi in teeno pe aaj tak believe kerta hn n meri tarah most of the Indians....agar na bhi krte hote to kam se kam mai unper to yakin nahi kr pata jo kahte Indians ko "Bloody Indian" kahe ya fir "India murdabad" ke nare lgaaye...reason chahe jo bhi ho chahe, chahe jitni bhi pathectic condiditons ho n chahe jitni b atrocities ko unhe face kerna pada ho..bloody people who say "Bloody India" can not be justified...say bloody Indian government or bloody Indian system but dont dare to say "India murdabad" n all the sympathetic cameras should understand it...
Thanks to you ki ham aap logo ki manodasha is blog ke through jan paaye...bachpan me sikhaya gaya vishwaas aur bhi majboot ho gaya..
मेजर साहब ,
ReplyDeleteकश्मीर पर बात करते वक़्त १९ ४७' से सब कुछ एक रील में घूमने लगता है | नहरू से लेकर एस.पी.मुखर्जी और,,,काफी कुछ याद आने लगता है | दुखद अतीत , दुखद वर्तमान और शायद भविष्य भी | कहाँ की बात कहूँ | अपने इधर ही देखिये | लोगों के दिमाग पर ताला लगा है पूर्वाग्रह का | यहाँ फीलिस्तीन के नागरिकों के अधिकारों की चिंता कर रहे तथाकथित प्रगतिशील मित्रों से कश्मीर के दर्द और काश्मीरी पंडितों की बात किया तो उनका सरलीकरण था कि तुम सांप्रदायिक और ब्राह्मणवादी ढंग से सोचते हो | यह दिल्ली के लोगों का हाल है तो वहाँ की क्या कहूँ !
दर्पण साह की टिप्पणी विशेष नोटिस के लायक है |
आपकी पिछली प्रविष्टियों पर यथावसर जाउंगा , अभी तो आप समझ ही रहे हैं कहाँ शक्ति का अपव्यय कर रहा हूँ | :(
नफरत भरे इस माहौल में टिके रहना ...गोली खाकर शहीद होने से भी मुश्किल कार्य है ...!
ReplyDeleteआखिरी के पैराग्राफ्स पढ़ते पढ़ते एक शे'र ज़हन में घूमने लगा है...
ReplyDeleteगांधी गर्दी ठीक है लेकिन ऐसी भी नाचारी क्या
झापड़ खाकर एक पे आगे कर देते हो दूजा गाल..
पर चलिए...
संयम भी एक बड़ी चीज होती है...
कश्मीर की घाटी का सच आपकी लेखनी ने सुना दिया। सशस्त्र सेनाओं का मन फाड़ कर रख दिया है थोप दिये गये संयम के आदेशों ने। या तो नेता यह मान लें कि वे समस्या का हल बातचीत से निकाल सकते हैं या सेना को उनके तरीके अपनाने दें।
ReplyDeleteकैंसर का इलाज बोरोलीन से करने की जिद्दी प्रयोग कर रहे हैं हम घाटी में।
(Pardon me for writing in English..something is wrong,unable to use Hindi).Maj Gautam from a long time ever since i was watching all this in news I really wanted to write..but as u knw being a new mum i hardly find time.Today when i read this I found a tear rolling down from my eye..I relate to the sadness that you must be feeling.7 yrs ago when Neeraj was in Drass and i joined him there I was so hurt to hear that small kids call us hindustani with such detest..that how a small shopkeeper refused to sell something to me though I could see it on his shelf just bcz (as the driver told me later) I had gotten down from an army vehicle.thats another thing that right from karosene in their houses to education for their children or airlifting them in case of an emergency was being looked after by those only whom they call hindustani.very well written..I know each word comes from your soul
ReplyDeleteमनु ,मैं यहां टिप्पणी कर चुकी थी लेकिन तुम से एक बात कहना चाहती हूं कि
ReplyDelete............लेकिन ऐसी भी नाचारी क्या
ये जो गौतम ने किया ये नाचारी नहीं थी ,अहिंसा थी ,बहादुरी थी ,लोग तो ज़रा सी बात पर संयम खो देते हैं ,ऐसी स्थिति में संयम रखना वीरता की मिसाल है ,
सलाम है इस वीरता को
गौतम जी ! आप जैसे लोगों को यहाँ होना और उन पर विश्वास करना हमारे लिए गर्व की बात है ..पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ीं मन द्रवित सा है..
ReplyDeleteऔर मीडिया तो क्या है सब जानते हैं .
बहुत व्यथित हुई इस पोस्ट को पढ़कर .... आपके शब्दों के भरोसे को देख रही हूँ .... मै अपनी ढेर सारी उम्मीदों के साथ ।
ReplyDeleteव्यथित हो गया इसे पढ़कर। कल पढ़ी थी सोच नहीं पाया कि क्या लिखें!
ReplyDeleteलोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। कश्मीर में तो राजनीतिक झगड़े भी हैं। कल कानपुर में एक पुलिस वाले को लोगों ने उसकी वर्दी उतारकर पीट दिया।उसका कुसूर यह था कि वह किसी को दौड़ाकर पकड़ने की कोशिश कर रहा था। वह डरकर तालाब में कूद गया और मर गया। इसके बाद लोगों ने उसे पकड़कर जमकर पीटा।
समझ में नहीं आता कैसे सुधरेंगे हालात। ऐसे में जो वहां नौकरी कर रहे हैं उनके हालात सोचता हूं तो बड़ा कष्ट महसूस होता है। अपने ही देश में ऐसे नौकरी करो जैसे दुश्मन हो इससे बुरी सर्विस कंडीशन भी क्या हो सकती हैं।
आपसब का भरोसा सर-आँखों पर। शुक्रिया लिख कर इस भरोसे की तौहीन नहीं करूँगा।
ReplyDeleteपोस्ट का शिर्षक "रूल्स आफ इंगेजमेंट" कुछ सोच कर रखा गया है। दोतरफा सोच...एक तो ये कि दुनिया के तमाम सुरक्षाबलों के लिये कुछ लिखित कानून-कायदे होते हैं दुश्मन पर वार करने के लिये, दुश्मन को इंगेज करने के लिये...जिसे हम अपने लिंगो में प्रायः आर०ओ०ई० या रूल्स आफ इंगेजमेंट कहकर काम चलाते हैं और ऐसे हर तनाव के क्षणों में हर सुरक्षाकर्मी इस आर०ओ०ई० को विवश देखता है लेकिन संविधान के सम्मान में अक्षरशः उसका पालन करता है। गलतियाँ होती हैं शर्तिया, जैसा कि डा० अनुराग ने कहा कि वो वर्दी वाला भी तो इंसानी भावनाओं से जुड़ा है।
...और दूसरा मंतव्य इस शीर्षक का ये था कि इसी नाम से सन 2000 में हालिवुड में बहुत ही बेमिसाल फिल्म बनी थी, जिसमें सैम्युल जैक्सन और टामी ली जोन्स का बड़ा ही सशक्त परफार्मेंस था। कहानी कुछ इन्हीं तनाव के क्षणों पर बनी थी और एक सच्ची घटना पर आधारित थी...जिसमें अमेरिकी सेना के एक कर्नल पर 83 निर्दोष पुरूष महिलाओं और बच्चों को मार गिराने का आरोप था। हकीकतन जब कर्नल ने जब अपनी टीम को इस तथा-कथित निर्दोष भीड़ पर फायर खोलने का आदेश दिया था तो पूरी भीड़ जिसमें छोटे-छोटे बच्चे तक शामिल थे पत्थर फेंकने की आड में कर्नल की टीम पर एके-47 से फायर भी कर रहे थे। कर्नल की खुद अपनी सरकार उसपर अभियोग लगाती है और बाद में उसपर मुकदमा चलता है....
पढ़ने वालों को अगर मौका मिले तो जरूर इस फिल्म को देखिये। वैसे वीकीपिडिया के इस लिंक पर जाकर इस फिल्म के बारे में जानकारी ली जा सकती है:-
http://en.wikipedia.org/wiki/Rules_of_Engagement_(film)
...और हाँ, कश्मीर पर अपना विश्वास यूँ ही कायम रखें। जम्मू-कश्मीर की पूलिस और यहाँ सीआरपीएफ अपना काम बड़ी ईमानदारी और कुशलता से कर रही हैं। उनको मेरा सलाम...!
कुछः कहते नहीं बन रहा अपने देश के दुर्भाग्य पर दुःख होता है देश की सुरक्षा के अलावा लोगों तक सच्चाई पहुंचाने का जो काम आपकी पोस्ट ने किया है वो मिडिया नहीं कर सकती ....इन सच्चाइयों के तराजू में तोले बिना अब कश्मीर के सिलसिले में खबरें ना देख सकुंगी और ना पढ़ ...
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
सबको अपना मतलब साधना है... भले ही किसी की लाश के ऊपर से जाना पड़े. बाकी किसी को क्या पड़ी है. सबके अपने स्वार्थ हैं ऐसे लोगों के बीच किया ही क्या जा सकता है !
ReplyDeleteऔर मैं तो फिर वही कहूँगा आपको सलाम करने के अलावा हम भी कुछ ज्यादा नहीं कर सकते...
बेहद मार्मिक घटनाएँ बताएँ आपने , विडम्बना यह है कि हमारे जवान उनके साथ क्या घटता है उसे बता भी नहीं पाते , निस्संदेह इससे उनके हौसलों पर बुरा असर पड़ता है !
ReplyDeleteमीडिया को ऐसी ख़बरें चाहिए जिसे लोग और भीड़ पढ़े तभी उनको फायदा है ! शायद ही यह ख़बरें आज तक कहीं प्रकाशित हुई होंगी ! और हों भी जाएँ तो इससे आम पब्लिक को कोई फर्क नहीं पड़ता ...शायद ही किसी वर्दी धरी के प्रति कोई संवेदना व्यक्त करे !
आपका यह लेख, सत्य को बताने का एक बहुत हिम्मती और ईमानदार प्रयत्न है ....काश इसको और लोग भी आगे बढायें !
हार्दिक शुभकामनायें !
एक सच्चे सिपाही के दिल से उठता दर्द चीख चीख कर कह रह्गा है कि हमारे रक्षक कितने हताश होते हैं जब उनके काम उनकी परेशानी उनकी कुर्बानी को नज़र अंदाज़ किया जाता है। शायद ेक सिपाही का दर्द वही जानता है जब उसके पास दर्द की दवा होते हुये भी उसे खाने की मनाही हो। फिर भी वो उफ तक नही करता। सभी फौजी भाईयों बेटों को मेरा नमन आशीर्वाद है । अगर आज हम सुख की नीन्द सोते हैं तो केवल उनकी बदौलत। भगवान आपको सब दुख परेशानियाँ सहने की हिम्मत बख्शे। और अपना ये शेर याद करिये
ReplyDeleteतपिश में धूप की बरसों पिघलते हैं ये पर्वत जब
जरा फिर लुत्फ़ नदियों का ये तब मैदान लेते हैं
इसी तरह ैन फौजियों के तपने से ही तो जनता सुख की साँस लेती है। आपने ही तो ये भी कहा था
हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं
अलग ही रास्ते फिर आँधी औ’तूफ़ान लेते हैं
फिर ऐसी निराशा क्यों? लेकिन कभी कभी होता है जब मन खिन्न होता है तो सब से मन बाँटने की चाहत होती है।ाउर अन्त मे मेरी दो पँक्तियाँ आप सब फौजियों के लिये
चले बंदूक ले कर हाथ मे बेखौफ वो ऐसे
फिज़ा मे खौफ की फैली सदाओं को मिटाये कौन
जला तू आग सीने मे बने अँगार जज़्वा यूँ
सिवा तेरे बता तू देश तेरा अब बचाये कौन
बहुत बहुत आशीर्वाद।
मेजर साहब!
ReplyDeleteसबसे पहले अमीन.
फिर सैल्यूट ..
एक सरफ़िरा नौजवान एक वर्दीवाले के पास आकर उसके युनिफार्म का कालर पकड़ उसके चेहरे पर चिल्ला कर कहता है बकायदा अँग्रेजी झाड़ते हुये "you bloody indian dog go back" और बदले में वो वर्दीवाला मुस्कुराता है और सरफ़िरे नौजवान को भींच कर गले से लगा लेता...
एक और कड़क सैल्यूट!
बाकी मैं भी अपूर्व साहब की बात दोहराता हूँ...
you can't remain ordinary!!..and that is the most difficult part. Dear major saa'b your wisdom and your faith in human values..seems the only feeble ray of hope for people who've been betrayed and misled by dirty politicians....and for us, for the nation!!!
..we have one more reason to salute you..sir!!
सोचा था आपसे शीर्षक का कारण पूछूँगा...पर नीचे लिख दिया है आपने खुद ही. फिल्म देखी है मैंने भी.
आप जैसे कुछ खड़गधारी हैं तो यहाँ यज्ञ हो रहे हैं..दूर से कीचड़ उछालना आसान है, वहां रह के जो ताप आपलोग करते हैं वो कठिन.
फिर से सिर्फ, सैल्यूट!
क्या कहूँ...आक्रोश आँखों से फूट पड़ता है...पर यह समाधान न देगा...
ReplyDeleteगलत नहीं कहा गया है कि ' चिल्ला चिल्ला कर सौ बार एक झूठ को बोला जाय तो वह सच बन जाता है' ....हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कि सत्य की विजय एक न एक दिन होगी,काम नहीं चलेगा...दुसप्रचार का उत्तर प्रचार से देना होगा...गलत नहीं पर सत्य को प्रचारित करना होगा....
आज स्थिति नहीं कि एक आम आदमी अपनी आँखों जाकर वहां का सत्य देख आये..कश्मीर से बाहर सबके लिए वहां का सच जानने का माध्यम यही सब है..आज समाचार माध्यमों से हम तनिक भी उम्मीद नहीं लगा सकते कि वह इस और डग भरेगा...तो ऐसे में अन्य सभी माध्यमों को अपनी पूरी ताकत झोंकनी ही होगी...
शायद अभी आपकी यह नौकरी आपको यह इजाजत नही देगी, पर प्लीज इसके लिए माहौल बनाइये,सबको मानिए....केवल हाथों की बंदूकें सबकुछ नहीं रोक पाएंगी...माहौल बदलने के लिए भी प्रयासरत होना पड़ेगा...स्थिति ऐसी बनानी पड़ेगी कि संलिप्त मुट्ठी भर लोग अलग से पहचान में आ जाएँ..
गौतम जी, कितनी ही बार आपके ब्लॉग पर आई पर कुछ कहने का साहस न जुटा सकी.आप व्यथित हैं तो आप से पहले हम व्यथित होते है क्योंकि हम लोग तो आप के सहारे ही हैं.रही बात मिडिया की तो वो तो आजकल भगवन से भी ज्यादा ताकतवर हो गया है. मिनटों में राजा को रंक और रंक को राजा बनाने का फार्मूला है उनके पास. मैं खुद इस मिडिया की भुक्त भोगी हूँ. ये कहाँ तक जा सकते हैं शायद ये खुद ही नहीं जानते
ReplyDeleteसारे जवानो को सलाम
जय हिंद
मेजर साहेब,
ReplyDeleteफरवरी में मिलने के बाद आज आपसे कुछ बात कर रहा हूँ।
पूरे आलेख में जिस संजीदगी से बात को उठाया है वो सोचने पर मजबूर ही नही करती बल्कि हमें झकझोर के रख देती है कि क्या जो हम कर रहे हैं वही सही है? जैसे कर रहे हैं वो सही है? या जो हो रहा है उसे नियति मान लेना चाहिये?
मासूम संवेदनाओं से भरी पोस्ट......
जय हिन्द !!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आह!
ReplyDeleteमेजर साहब आपकी इस पोस्ट का एक एक शब्द अंतर्मन को बींधता चला गया - जहाँ तक भरोसे की बात है - ब्लॉग के माध्यम से जितना आपको जान पाया हूँ उसके आधार अपने आप से ज्यादा विश्वास है आप पर - जय हिंद
मेजर साहब,
ReplyDeleteआपके ब्लोग में पहली बार आया हूँ, इतना तय है कि आगे भी आता रहूँगा।
अमेरिकी फुटबाल में दो टीम आपस में भीड़ती है, लेकिन टीम की परफोर्मेंस और उसकी हार-जीत मैदान में एक दूसरे के सिर से सिर टकराने वाले खिलाड़ियों के प्रदर्शन में कम निर्भर करती है। खेल का असली पासा चलता है मैदान से बाहर बैठा कोच। यहाँ फर्क इतना है कि फुटबाल है काश्मीर, एक तरफ है पुलिस और फौजी, दूसरी तरफ है बहलाये फुसलाये गये बुद्धिहीन लोग। एक टीम के कोच हैं वोटों के लालची नेता और दूसरी टीम के कोच हैं कुछ धार्मिक उन्मादी और दोगले नेता। और हम, हम हैं कुर्सियों पर चिपकी खेल प्रेमी जनता जो कभी अपनी टीम की जीत पर तालियाँ बजाने लगती है तो कभी हार पर झुँझलाने और तिलमिलाने।
किसी भी खेल को जितने का सिर्फ एक ही नुकसा है - औफेंस इज द बेस्ट डिफेंस, कोई भी मैच उठा के देख लें चाहे वो मैदान में खेला जा रहा हो या गया हो या फिर सीमाओं के आर-पार, जीत हमेशा उसी की हुई है जो औफेंस इज द बेस्ट डिफेंस के फार्मुले के साथ खेलने उतरी हो।
गौतम,यह सब देखकर मुझे केवल आप जैसे लोगों का ध्यान आता है क्योंकि आप लोगों को हाथ बाँध कर एक ऐसी लडाई लडने को कहा जा रहा है जिसका न तो कोई अन्त है, न ही कोई अन्त चाहता है। शत्रु देश से लडना इसकी तुलना में बहुत सरल होता होगा। हम तो केवल आप व अन्य सुरक्षा कर्मियों के लिए प्रार्थना ही कर सकते हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
एक झकझोर देने वाली कडवी सच्चाई को उजागर किया है आपने.
ReplyDeleteएक झकझोर देने वाली कडवी सच्चाई को उजागर किया है आपने.
ReplyDeleteaamin....
ReplyDeleteमेजर साब, यक़ीनन आपने वो भरोसा हासिल किया है.. न सिर्फ़ अपने लिए बल्कि उन तमाम जवानों के लिए जिनकी तक़लीफ़े अक़्सर सामने आ ही नहीं पाती.. सचमुच, मैं मीडिया में हूं.. लेकिन मैंने किसी चैनल पर इस नज़रिए से कोई रिपोर्ट चलती नहीं देखी..
ReplyDeleteशायद जवानों को याद करने के लिए हमने महज़ कुछ तारीखें ही तय कर रखी हैं, जिस दिन अमर जवान ज्योति पर श्रद्धांजली अर्पित कर हम एक फार्मेलिटी पूरी कर देते हैं.... कड़वा है लेकिन सच है..
jindagi ke asli kirdar yahi jawaan hai..koi kya kehta hai..kya nahi..
ReplyDeletekab tak hisab rakha jaye...aur media ko lekar kya behas ki jaye..bas un jwanon ki jindadili ko salaam hai!
I can trust you & your trust Major ...
ReplyDeletebut believe me ,this is not a plight of Kashmir only ..this is a plight of the nation ...
After broadcasting of Gujraat Earthquake in 2000-01 someone at some place said that "Indian Media " is in its toddler state " !!.. sala ye toddler state kab tak chalegi 10 saal ho chuke .. TRP aur market demans k naam pe MEdia kab tak kuch bhi parosati jaayegi ...
I wish desh ki janta ko kewal market,consumer,customer na samjh kar ,citizen samjha jaayega aur sach kabhi to bahar aayega ...
Dattee raho Major .. hum kewal hausala afjaayi kar saktey hain is AC room mein baithkar ...
Jai Hind ..
Salute to Indian Army and paramilitary forces posted in kashmir. Jai Hind. Take care Gautam.
ReplyDeleteFrom: "प्रकाश सिंह "अर्श""
ReplyDeleteTo: gautam rajrishi
Sent: Sun, 8 August, 2010 4:20:22 PM
Subject: Arsh
ठगा सा महसूस कर रहा हूँ ,जबकि आप वहाँ पर इन सभी परिस्थिओं से गुजर रहे हो ,ये सभी अलगाव वादी ताकतों ने करिश्मा कर रखा है .... बात कहने को तो इस विषय पर बहुत मगर जीतनी बात कही जायेगी ... तूल देने वाली होगी ... मीडिया की पारदर्शिता पर अब वाकई सवाल उठ रहे है क्युनके वो अब बाज़ार वाद में कदम रख चुके हैं , कितनी बातें सही हैं उससे कोई मतलब नहीं है बस बात ये है के उसे ज्यादा नोटिस की जानी चाहिए उसके अन्य प्रतिस्पर्धियों से ..... कोई शक ही नहीं है ... बस ये कहूँगा के दर्द तो बस सहने वाला ही जनता है कि दर्द है क्या बला .... सच कहूँ तो सब राजनीति है जिसे अब लोग भी पसंद करने लगे हैं ... मसालेदार खबरें ना हो तो अब कोई अखबार भी ना ले ...जो अपने घर वालों से दूर सभी कि रक्षा के लिए है पत्थर खा रहा है और गालियाँ भी वो भी उन लोगों से जिनकी हिफाज़त में वो दिन रात है ,.. कोई जाकर उनकी हालात देखे तो पता चलेगा के कैसे कैसे दर्द इन्हें सहने होते हैं ,... फिर से कह रहा हूँ ठगा सा महसूस कर रहा हूँ फिर से एक बार ...
अर्श
दरवाजे पर आ कर मांगने वाले को निराश नहीं करते मेजर ! कम से कम आधा माल ईमानदारी के साथ दान कर दो रक्षाबंधन पर.. मुझे विश्वास है परिवार से मुझे बड़ी दुआएं मिलेंगी !
ReplyDeleteगौतम भैया, एक बात तो तय है. जब वादी में गश्त करते हुए आप या आप जैसा कोई रक्षक कोई खबर रिपोर्ट देता है तो इसको नज़रअंदाज करना कदापि जनहित में नहीं कहलायेगा.
ReplyDeleteये भरोसा और विश्वास ही है की सुनने समझने वालों की भीड़ बढ़ रही है, भले ही "बहुत पहुँच रखने वाला मीडिया" आज सिर्फ व्यासायिक खेल खेल रहा हो.
पता नहीं हिन्दुस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को कहाँ पहुंचा दिया है. विपरीत परिस्थितियों में लड़ते हुए सत्यता को करीब से देखना समझना और समझाना इतना आसान नहीं होता. आप एक अतिरिक्त जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं, और हम फक्र करते हैं.
देश में आप न हो तो साँस लेना दूभर है, और हक़ीकत का पता तो उसे ही चलता है जो हक़ीकत का सामना करता है। आप जैसे भावुक और सत्यनिष्ठ सैनिक का विचलित होना ज़रूरी भी है, जब आप रक्षा में जुटे होते हैं तो तोहमतें लग्ती हैं लेकिन आप तो हकीकत जानते हैं न हम भी बखूबी जानते हैं कि आपने देश की रक्षा के साथ अपने लेखन से स्नेह की खुश्बू भी बाँची है। परम सत्ता हो है न!
ReplyDeletekadava sach, man kivyathit kar gaya
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